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स्वप्न की सामग्री

 स्वप्न की सामग्री



जो सूर्य की किरणों में मिल कर चमकता है,


और जो मित्रों को प्रिय शत्रुओं को अप्रिय है,


चंद्रमा की किरणों का सार है,


और समन्दर के झाग का नमक है।


जो धूर्तों के लिये बंधन है,


और हिमालय के शिखर पर चढ़ने वालों के लिये वह रस्सी क समान है।


जो ज्वलित ज्वाला है और ठंडी राख के समान है।


वहीं अमूल्य रत्न के समान है, और बेकार धूल के समान है।


जो अपने कठोर हिस्से को अपने सु दूर ही रखता है।


और जो औरतों के हृदय में निवास करता है।


निद्रादर्पन----


सूची


गंगा के किनारे


एक औरत का हृदय


बिना अंत की एक कहानी


समर्पण


अव्यक्त सज्जनता की मूर्ति मेरी मां को समर्पित


भूमिका


    मैं यह बिना किसी संकोच के कहने का साहस कर सका, कि जितना कोई और मेरे जैसा इस लौकिक कहानी को व्यक्त कर सकता है। अत्यधिक सहज जिज्ञासा और बड़ी विचित्रता के साथ इस रुचिकर पुरानी कहानी के सार को व्यक्त किया है। एक सत्य प्रेम कथा को जो कभी भी सहजता के साथ अपनी पूर्णता को उपलब्ध नहीं हो सकती है।


और निश्चित रूप बहुत से लोगों ने मुझ से पूछा है की इन कहानियों का श्रोत क्या है इनका लेखक कौन है? इसके लिए मैं केवल कुछ एक शब्दों कुछ नहीं कह सकता, कि यह कहानियाँ कहां से आइ हैं। अथवा मैं पूर्ण रूप से नहीं जानता हूं। मैं बहुत अधिक खोज बिन करने के बाद जाना की यह कहानियाँ किसी औरत के द्वारा लिखित हैं। जो अविश्वसनीय रूप से मेरे सामने प्रकट हुई हैं, लेकिन वास्तव में इन को किसने लिखा है इसके बारें में मैं निश्चित रुप से कुछ भी नहीं जानता हूं। यह कहानियाँ एक एक कर मेरे पास पहुंची हैं जैसे सूर्य की किरणें एक के बाद एक चमचमाते हुए एक साथ आती हैं। मैं इन को अपने पास पहुंचने से पहले हवा में देखा था। जैसे किसी फिल्म की पट्टी प्रारंभ से अंत तक जिसको मैंने अपनी कापी पर उतार दिया। मुश्किल से मैंने अपनी पेन को पेपर से उपर उठाया होगा, जब तक की कहानी अपनी पूर्णता को उपलब्ध नहीं हो गई। इनके बारें में मैंने जो भी जान पाया वह केवल एक दिन लिखने से पहले, जब भी मेरे हृदय में एक कहानी उभरी उसी प्रकार जैसे किसी बंदूक से गोली निकलती है। जिसके बारें में कोई भी भविष्य वाणी नहीं कर सकता है। वह उसी प्रकार से हैं जैसे की यह सब किसी के पहले जन्म की कहानी हो।


स्वप्न की सामग्री आधा हकीकत प्रेम कथा और आधा परियों की कहानी की फसाना है, जैसा की वस्तुतः हम सब जानते है की कोई भी प्रेम कथा किसी परियों की कहानी जैसी ही होती हैं। क्योंकि ऐसी कहानियों में बहुत कुछ अनगिनत रहस्यात्मक तथ्य होते हैं, जिसमें परिपक्व काम का आकार्षण होता है, जो जीवन का सार रूप होता है, इसके अतिरिक्त सब कुछ जीवन में संयोग और तुच्छ वस्तु होता है। अकसर इस संसार में जिसे हम मनोरंजन का साधन समझ सकते हैं। जो समय की लहरों पर सवार हो कर मध्यम गति से आवश्यक आकस्मिक रूप से अवतरित होता है। और जीवन परिवर्तित हो जाता है साधारणतः सामान्य लोगों के जीवन से कही अधिक प्रेम लीला के रूप को धारण कर लेता है। और ऐसा ही किसी दूसरी प्रेम कथा के साथ भी होता है। इस छोटी सी कहानी के माध्यम से हर किसी पाठक के कामुकता को व्यक्त करना बहुत कठिन होगा, जैसा की किसी सफेद दाढ़ी वाले व्यक्ति का किसी बिना दाढ़ी वाले युवक से कुछ अलग नजरिया, इस कहानी को पढ़ने के बाद हो सकता है, या फिर किसी औरत के लिये। जैसा की महान परमेश्वर ने अंत में कहा अपने व्यक्तिगत काम के लिये अपर्याप्त दया होती है। और इस कहानी की नाईका एक विचित्र किस्म की नाईका है। जैसा की मोना लिसा के बारें में हम सब जानते है। इस लिए कहा जो मजबूती के साथ सभी को अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगी, जैसा की उसने भगवान शिव को अपनी तरफ आकर्षित किया जब वह उसके समीप हुए। मैंने विनम्रता के साथ साहस किया दिव्य विचारों को जितने के लिए, क्योंकि उसने अपने अनंत सामान्य प्रेमीयो की तरह से मुझ को भी अपने वश में कर लिया है। जैसा कि एक पाठक बड़ी कठिनाई से परमेश्वर के भाव को उस महिला के प्रति समझने में समर्थ हो सकेगा, जैसा की मेरे अतिरिक्त केवल परमेश्वर ने उसको आगाह किया की वह समझदारी से अपने जीवन का सदुपयोग करें। पाठक को अवश्य कहानी के अंत तक चलना चाहिये। पाठक यह नहीं विचारे कि उसका समय व्यर्थ में व्यतीत होगा। अगर पाठक आधे आनंद के साथ भी कहानी को पढ़ता है, जैसा की मैंने प्रामाणिकता के साथ कहानी को अनुवादित किया है। इसके बाद भी जब पाठक किताब को पढ़ना बंद कर देगा, फिर भी इस कहानी की सुन्दरता की वह स्वयं इसके नाम से प्रशंसा करेगा। क्योंकि कोई भी दूसरा नाम इस कहानी पर उपर्युक्त नहीं बैठता है। जैसा की यह अपने आप बहुत अधिक शुद्ध और परिष्कृत है। क्योंकि स्वप्न की सामग्री ने अपने उपर हर समय सौंदर्य को धारण कर के रखा है, यह हमारी अभिलाषा पर खरी उतरती है अकसर एक अजीबो गरीब आकर्षण के साथ अपने जह्न पर नशे के समान चढ़ती है। जिस प्रकार से हम महान कवि काली दास की किसी रचना को पढ़ते है तो उसके साथ भाव विभोर हो कर अपना तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं।


निश्चित रूप से बहुत सी कड़वी घटनाओं से कहानी का प्रारंभ होता है, जिसमें पुरुष को औरत कहती, हालांकि ना बहुत अधिक कड़वी है और ना ही इसके जैसी बहुत अधिक प्रेम कथाएँ ही हैं। जैसा की बुद्धिमान फ़्रांसीसी किसी आदमी ने इसकी तरफ इंगित किया है। जैसा की औरत के द्वारा इस पृथ्वी पर एक से बढ़ कर एक घटनाएं घटित हे चुकी हैं, जैसा की हम सब जानते वह औरत ही थी जिसके लिए भयानक महाभारत और रामायण जैसे विनाशकारी युद्ध हुए हैं। जैसा की आदम और हव्या को स्वर्ग से नीचे उतरनें का कारण एक औरत ही जिसको मना करने पर उसने वृक्ष से फल को तोड़ कर खा लिया था। और ऐसी ही एक घटना आती हाँ नौह की पत्नी ने जलप्लावन के समय जरूरी काग़ज़ात पानी में डाल दिया जिसके कारण नुह को बहुत अधिक कष्टों को सहना पड़ा था। यहां हम इन कहानी को नहीं का पूर्ण वर्णन नहीं करने वाला हूं। जिनके कारण ही इनका इस दुनीया में अत्यधिक आलोचना की गई है। यह निश्चित है की इन घटनाओं के अंदर एक स्त्रैण चेतना निवास करती है। जैसा की साधारणतः यह इस संसार में किसी भी घटना पीछे दृश्य की तरह से खड़ी होती है। और औरत स्वयं को इसके लिए जिम्मेदार नहीं मानती है। जहां कहीं भी किसी बहादूर नश्वर पुरुष के साथ कोई शरारत होती है इसके पीछे यहीं होती हैं। वह युगों के साथ आती रही है और अपने अपराध बोध को किसी पुरुष के उपर आरोपित कर दिया है जैसा की आज भी हमारे संसार में होता है। वह किसी ना किसी तरह से स्वयं को बचा लेती बिना किसी बड़े नुकसान के ही। इसके पीछे जो मुख्य कारण है वह की इसके पास सभी बिपत्तियों से बचने के साधन के रूप में इसके पास एक श्रेष्ठ संसाधन इसका सौन्दर्य है अपने किसी भी संसक्त शत्रु को निशस्त्र करने में, क्योंकि इसको बड़ी ही धूर्तता के साथ इसी मकसद को ध्यान में रख कर इसके रचना कार ने इसको रचा है। यह किसी ढक्कन की तरह से है। यह कभी भी किसी भयानक से भयानक बाढ़ के पानी नहीं डुबती है। यह हमेशा बहती ही रहती है, किसी नाव की पतवार की तरह से यह दो शब्द यह हमेशा अपने लिए सुरक्षित रखती है। इसलिए यह हमेशा क्रोधित हो जाती जब भी आप इसके साथ एक होना चाहते हैं। और आप हमेशा अपने आपको इसके सामने असहाय पाते जिसके कारण इसको कभी भी आप अपराधी या दोषी नहीं ठहरा सकते है। यद्यपि आप उससे हमेशा क्षमा मांगने के लिए तैयार रहते हैं। जिसके लिए आप प्रसन्न ते हैं, यह एक आशाहीन दशा होती है, इससे और अधिक क्यों हो सकता है क्योंकि आप सबको इसके लिए तैयार किया गया है कि यह कभी ना ही अच्छी होती है और नहीं हमेशा के लिए बुरी ही होती है। ऐसे ही व्यक्तियों को हमारा समाज समझदार कहता है। इसके अतिरिक्त और क्या अर्थ हो सकता है जिसको हम किसी खेल का नियम कहते है, जैसे क्रिकेट खेलने के लिए उसके नियम का अनुसरण करना पड़ता है। इसी प्रकार से इस संसार में जो किसी औरत के साथ सामंजस्य बनाने में समर्थ होता है वही यहां पर सफल कहा जाता है। आप किसी औरत को संसार में किसी नियम का अनुसरण करने के लिए विवश नहीं कर सकते हैं। वह संसार में किसी भी खेल को सिर्फ जितने के लिए ही खेलती है, किसी जर्मन के तरह जो हमेशा धोका देने के लिए ही किसी खेल को खेलते हैं। अगर वह बना सकती है तो किसी अंतरराष्ट्रीय कानून को वह बनाने वाली हो सकती है। जहाँ तक भी संभव है आज तक उसके खिलाफ कोई भी खड़ा होने के लिए कभी तैयार नहीं होता है। अगर आपने उसको किसी अपराध के लिए दोषी पा लिया और उसको डाट दिया तो वह अकड़ जाती है और आपके साथ खेलने से मना कर देती है। और फिर जैसा की साधारणतः व्यवस्था होती है की आप उसके साथ खेलना चाहते हैं, बहुत बुरी तरह से इसके बाद आप कर भी क्या सकते हैं, हाँ य आशा हीन स्थिती होती है।


अब भी यदि हम बहुत कठोरता पूर्वक इसके प्राकृतिक स्वभाव को लेकर विचार करते हैं तो हम देखते हैं कि इसकी महत्वपूर्णता जनता में बहुत अधिक है और एक हद तो लोग इसकी कामना करते हैं। यह हम आसानी से समझ सकते हैं, हालांकि जब भी हम इसके अपराध की पहचान करते हैं जिसके माध्यम से हमें बृहद स्तर पर केवल हमारी मूर्खता का ही प्रदर्शन प्रतीत होता है। यह स्वयं मनुष्य ही उसका विरोधी सिद्ध होता है और जो हमेशा बहुत अधिक जिम्मेदार होता है। उसकी बुद्धिमत्ता उसके साथ ही तुलना की जाती है, और सभी उससे पीछे ही रहते हैं। ( इसमें वही अंतर होता है जैसा की साधारणतः कुत्ते और बिल्ली के बीच में होता है।) वह कभी भी अपने आप को गहराई से समझ नहीं पाता है दोनों के स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर होता है। जो प्राकृतिक रूप से उसको अलग से विभाजित करता है, क्योंकि उसके पास काल्पनिक सामर्थ्य की हमेशा कमी होती है, वह हमेशा स्वयं के बारे केवल स्वयं ही निर्णय करती है, वह अपने प्रति अत्यधिक आत्मविश्वासी होती है जो स्वयं के व्यवहार और स्वभाव के अनुकूल कारण को तलाश कर लेती है। जैसा कि वह हमेशा किसी कार्य को करती है जिससे वह स्वयं को रसातल में पहुँचती है जहां से वह स्वयं को बाहर निकालने के लिए सारे नियमों की आलोचना करके उनको तोड़ देती है। वह स्वयं को सुरक्षित करने के लिए ही ऐसा विचार करती है, लेकिन यहां पर वह गलत होती है। औरत कभी भी किसी कार्य को बहुत अधिक सोच विचार कर नहीं करती है, मनुष्यों के साथ उसका जो भी रिश्ता होता है सभी के सात हमेशा वह एक जैसा ही व्यवहार करती है, बड़ी मुश्किल से वह कभी किसी मनुष्य के साथ वह तार्किक रुप से कार्य को करती है। औरत एक हथियार की तरह से जिसकी प्रकृति का निर्वाण स्वयं परमेश्वर ने किया है, जो सामान्य रूप से यह जानता है कि वह क्या कर रहा है। अपने लिंग के प्रती दूसरे लिंग को आकर्षित करने की कला में जिसने महारत को प्राप्त कर रखा है। यही उसकी चेतना की भावना का मुल कारण है। यह औरत कभी अपनी असफलता का निर्वाण नहीं करती है और यह आंतरिक रूप से अपने श्रेष्ठ कृत्यों के माध्यम से प्रकृति पर विजय को प्राप्त करती है। और इस कला से हर एक औरत परिचित होती है, प्रकृति के संविधान द्वारा प्रदत्त इस गुण को वह समय के साथ महसूस करती है हां यह अवश्य की इसको जानने और समझने में उसको काफी समय लगता है लगभग तब तक जब तक की वह अपने पैरों पर खड़ा होना सीख पाती है। इसके परिणामस्वरूप इसे किसी प्रकार के कृतिम संसाधनो को आवश्यकता नहीं पड़ती है और इसके पीछे किसी प्रकार कोई गणित भी नहीं होता है, इस के शरीर में ऐसा जादू होता जो भी इसको छूता है वह इसका ही बन कर रह जाता है। जब यह औरत अपने व्यक्तित्व के बारें में सचेत होती है और यह जानती है इसका प्रभाव जो किसी मनुष्य के सर उपर चढ़ कर बोलता है। उसके शरीर में एक केन्द्र होता है जिसको समझने वह कभी गलत नहीं होती है। जैसा की मनुष्य हमेशा स्वयं को समझने में दुविधापूर्ण स्थिती में रहता है। जबकि औरत हमेशा स्वयं को समझती है जिसके प्रती वह सकारात्मक रहती है। जब उसके द्वारा छोड़ा गया वाण अपने लक्ष्य को साधता है, और इस निवास स्थान को अपने अचेतन में प्राप्त करती है जिससे उसे अपनी अपार शक्ति का आभास होता है। इसी के द्वारा अपने स्वयं के अस्तित्व में बहुत अधिक गहराई तक प्रवेश करने में समर्थ होती है। जिससे वह सिद्धि को उपलब्ध होती है जिसके कारण ही वह स्वयं को कभी साहित्य संसार से वंचित करने समर्थ नहीं हो पाती है। क्योंकि इसके द्वारा उसको असीमित परम आनंद को प्राप्त होता है। यह उसके जीवन में सुखी घास के समान होता है इसलिए वह कहती है की जब उसका स्वयं का सूरज चमकता है तब उसको अपनी चेतना की शक्ति का और अधिक स्वाद प्राप्त करती है, क्योंकि वह इसके बारें में अच्छी तरह से जानती है की वह इस आनंद को एक दीन स्वयं से खो देगी। जब उसका युवापन समाप्त हो जायेगा या जब उसके शरीर का सौन्दर्य समाप्त हो जायेगा, और वह वृद्ध हो जायेगी तो उसको कोई भी घास नहीं डालेगा। जब हर एक औरत राक्षसी की तरह से प्रतीत होती है जैसे उसे शरीर के अलमारी में शिवाय हड्डियों के ढाँचे के और कुछ शेष नहीं रहता है, जिससे वह मृत्यु से भी अधिक भयभीत होती है। जिस प्रकार से किसी के चेहरा पर छोटा सा चेचक धब्बा पड़ जाता है जिसके कारण पुरा चेहरा बद सुरत दिखने लगता है। और जब उसको यह ज्ञात हुआ की उसका विचार सह दिशा में चल रहा है फिर वह कभी भी अपने पीछे मुंड़ कर नहीं देखती है, वह कभी स्वप्न में भी नहीं सोचती है की जो वह समझ रही है वह गलत भी हो सकता है। और फिर तत्काल वह जागरूक होती है कि किस अग्निज्वाला के साथ वह खेलने से इन्कार कर रही है। और फिर वह स्वयं को एक बार फिर स्वयं के केन्द्र के करीब करती है, और ऐसा करके वह मन को आनंदित करती है। जब वह अपनी जीत को सुनिश्चित करती है जिसके प्रति वह अतृप्त रहती है। और जब इसके अनसुलझे प्रेमी इसकी बेवफाई का शिकार होते है तो वह इस पर क्रोधित होते है और इसको गालियां देते हैं। क्योंकि वह औरत के बारें में जिस काल्पनिक स्वर्ग में जीता है जब उसका स्वप्न टूटता है तो उसे पता चलता है की सच में औरत क्या बला है वह साक्षात चुड़ैल प्रतीत होती है। इस संसार में लाखों में कभी एक कोई ऐसी औरत मिलती है जो उसके स्वप्नों को साक्षात मूर्त रूप होती है। एक मनुष्य का होना क्या होता है जिसको वह कभी भी अपने जीवन में ठीक ठीक समझ पाती है। उसका अंत ही उसका प्रारंभ होता है, उसकी रुचि हमेशा उसके संसाधन में ही रहता है, वह हर समय अपने आकर्षण और सुन्दरता को विकसित करने में ही व्यतीत करती है औरत का स्वभाव है अपने जीवन भर खेलते रहना वह एक बच्चे से अधिक नहीं होती है। और पुरुष निःसंदेह भाव से औरत को अपने अस्तित्व के रूप में देखता है, और वह स्वयं को बधाई का पात्र समझता है की उसने अपने साथ औरत करने में समर्थ है जो इस समाज की मांग है, जो समाज धनियों के बीच में घूँट कर स्वयं के जीवन की अंतिम शांस ले रहा है अपनी चीता पर लेट कर किसी लास की तरह से जैसे कोई मनुष्य कोमा की स्थिती में होता है। तभी मानव को होश में आता है जब वह किसी औरत के द्वारा धक्का खा औंधे मुंह जमीन पर गिरता है। सारी कठिनाईयों के बावजूद जिसका अर्थ मनुष्य अपने जीवन में कभी भी नहीं समझ पाता है। औरत उसी प्रकार से है जैसे किसी अच्छे वृक्ष पर अमर बेल चढ़ उस वृक्ष को पूर्ण रूप से सुखा देता है इसी प्रकार से यह औरत किसी अच्छे मनुष्य को पथ भ्रष्ट कर के स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती है। औरत अपनी आत्मा की भूख को शांत करने के लिये किसी पुरुष का साथ नहीं देती है यद्यपि वह अपनी शरीर की भूख को शांत करने के लिए एक होती है और वह उम्र के साथ और अधिक बढ़ती जाती है जिसके कारण वह साक्षात पुतना और सुर्पूढ़का का रूप धारण करने में भी संकोच नहीं करती है। औरत का वास्तविक अपराध अपूर्णता नहीं है जैसा की लोग समझते हैं, लोग यह भी समझते है की औरत कमजोर है जैसा ऋषियों द्वारा सारी भाषाओं के शास्त्र करते हैं, जिसको लोकतंत्र भी नजरंदाज करने में असमर्थ सिद्ध हो चुका है। जबकि सत्य यह है की औरत की कमजोरी ही उसकी सबसे बड़ी ताकत और आधा उसके सौन्दर्य का आधार भूत स्तंभ है। इसके लिए वह समाज में कभी किसी रेगने वाली प्राणी के समान अकेली नहीं पड़ती है। इसी के कारण से आप किसी अच्छी या बुरी औरत के उपर कभी निर्भर नहीं रह सकते हैं, उसकी मानसिक स्थिती संकुचित होती है उसे भौतिकता की चकाचौंध में जीना प्रिय लगता है। वह किसी दूसरे मार्ग का संकल्प करती है और चलती हमेशा अपने संकल्प के विपरीत ही है। किसी भी दबाव के अनुसार वह स्वयं को बदल लेती है। चारित्रिक दृष्टि से उसका कोई अपना दृष्टि कोण नहीं होता । अथवा नफरत, घमंड, संवेदना, दया, भय, अथवा इससे भी कुछ अधिक वह हमेशा पुरुष को पराजित करने के मौक़े की तलाश में रहती है यह सब उसके कारण होते है किसी पुरुष को अपूर्ण सिद्ध करने के लिये। इनसे ही ताकत प्राप्त करके वह अपने जीवन में आगे बढ़ती है। तार्किक भाषा को समझने में वह बिल्कुल असमर्थ होती है वह हमेशा गणित के सूत्रों का अपने जीवन में अनुसरण करती है। जिस प्रकार से कोई व्यक्ति किसी किराने की दूकान से लिये गये समान की कीमत जोड़ घटा कर देता है या कोई आदमी भाग कर किसी ट्रेन पर सवार होता है। यह साहित्यिक रूप से कभी भी अपने हृदय से काम नहीं किया है। इससे बढ़ को कोई और मूर्खता नहीं होगी की लोग इसको मान लेते हैं की यह जैसा वह समझते है वैसा ही है। इसी मूर्खता के कारण ही आज तक जितने भी दोष उसके उपर लगाये सब उसके विरुद्ध सिद्ध हुए हैं। इसी कारण से वह अपने जीवन में हमेशा असंतुलित और बेचैन अतृप्त रहती है। और आप उसे पुरुष से कमजोर समझते हैं। वह पुरुष का स्वप्न है, उसका चुम्बकीय आकर्षण, उसकी ताकत, उसकी प्रेरणा, और उसकी कमजोरी। उसे स्वयं से दूर कर सकते है, और आप उसको दण्ड दे सकते है। ओथेलो का व्यवसाय खत्म हो चुका है, नौ से दस बड़ी त्रासदी केवल औरत के कारण इस संसार आ चुका है। ऐसा क्यों है? सच में ऐसा हुआ क्योंकि वह शहर की गली में आग लगा सकती है अपने बच्चे के दूध के लिए। समझदार कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता है। इसके अतिरिक्त हम सब का जीवन इस औरत का ऋणी है।


यह हो सकता है की हम उसके कृत्य स्वयं का संतुलन खो सकते है यहां तक पागल या फिर जीवन की भयंकर कठिन परिस्थितियों में थक हार और असहाय समझ कर जब हमारे सामने आगे बढ़ने का रास्ता नहीं दिखाई देता है तो हम आत्महत्या भी कर लेते है। मूर्खता के समन्दर में छलाँग लगा सकते हैं। जब वह आपके महत्वाकांक्षा को नष्ट कर देती है। जब वह अपने स्वभाव अनुकूल कार्य को अंजाम देती है। जैसा की कोई एक ना समझ बच्चा बिना किसी क्षमा याचना के ही किसी कार्य को करता है। जैसे आप अपने हाथ के आग से जला कर इसके लिए दीपक को दोष नहीं दे सकते हैं। इसको आप सभी अच्छी तरह से जानते हैं। जब अरीस्टोटल ने इस पर अपनी आलोचना की थी तो उन्होंने कहा था जिसके साथ कुछ पुराने अर्थशास्त्री राजनीतिज्ञ ने भी उनकी बात का समर्थन किया था। किसी भिखारी को भीख देने पर वह कहते हैं, मैं किस मानव को भिक्षा नहीं देता मानवता क दे रहा जो दरिद्र है। इसके उत्तर में उनकी काफी प्रशंसा की गई थी। बिल्कुल ऐसा ही कुछ यहाँ पर भी है, जब औरत आप के गृह में हंस का आपके साथ साहस के साथ प्रतिशोध करती है तो आप भी उस समय एक पुरुष की तरह से प्रतिक्रिया नहीं देते हैं यद्यपि आप उसके सौन्दर्य के वशीभूत हो कर वह सब कुछ करते जो करने योग्य नहीं होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आप एक आदमी है और यह सब औरत के हर प्रकार के नखरे के सहना मानव का स्वभाव बन चुका है। ऐसा सब के लिए कोई आवश्यक तत्व नहीं है। इस पर बहस करने का मतलब है कि आप अपने समय को व्यर्थ व्यतीत नहीं करना चाहते हैं। इस तर्क को कोट भी पसंद नहीं करता है। अगर वह स्वयं को प्रेम नहीं करती है तो इसमें कोट कर भी क्या सकता है? इसके लिए उसको कोई विवश भी नहीं कर सकता है। इसीलिए कभी भी किसी कवि ने इस विषय पर किसी प्रकार कोई चर्चा अभी तक नहीं की है। की शैतान उसको क्यों अपने पास उठा लो जाता है। जैसा की हम रामायण में सीता को देखते है की रावण जो राक्षसों का राजा होता है वह उठा के ले जाता जिसके लिये उसको अपने समूल बंस के साथ सर्वनाश को प्राप्त होना पड़ता है। क्या इसके पीछे हम यह तर्क दे सकते है की वह अबला और कमजोर है, क्या उसमें इस प्रकार के बदलाव संभव नहीं है? क्योंकि वह मीठी कामुकता से भरी है, या फिर वह किसी भी को स्वयं का समर्पण करने के लिए तैयार हो जाती है चाहे वह जानवर रूप पुरुष ही क्यों ना हो, उसकी केवल एक आकांक्षा होती है की पुरुष उसके सामने आत्म समर्पण करें। निश्चित रूप से यह कोई कठोरता उसके साथ नहीं है यद्यपि यह अविश्वसनीय जैसा प्रतीत होता है, भले ही यह अपमानजनक है लेकिन उसके लिए यह सब कोई मायने नहीं रखता है। क्या आप आश्वस्त है कि आपकी योग्यता के अनुरूप ही आप उसके प्रति सज्जनता का प्रदर्शन करते हैं? और अब भी यहां में औरत मानव के लिए किसी दुर्भाग्य से कम नहीं है। उसके रचना कार ने क्यों इतना अधिक उसमें अतुलनीय कामुक आकर्षण के तत्वों को भर रखा है जो अपने आप में अकल्पनीय दुर्लभता के साथ अद्भुत और अगोचर है, हर प्रेमी अकसर उसका अनुसरण करता है, एक उसके हाथ से निकलती है वह दूसरे और तीसरे के पीछे लगा रहता है, जैसा की हम देख सकते है ऐसी बहुत सी कविता जो महान पुरुषों ने रचित किया है, उदाहरण के लिए हम सैक्सपियर की मीड नाइट ड्रिम, को देख सकते हैं, एक इम्बोरोगलीयो ओडली में पर्याप्त मात्रा में कविता वर्णित है, ग्रीक के मोसचुस और हिन्दू में भरती हरी का श्रृंङ्गार शतक विश्व प्रसिद्ध है। क्या यह किसी गलती का प्रमाणिक चित्रण हैं। उन्होंने ऐसा क्यों नहीं बनाया क्रिया और प्रतिक्रिया को समान रूप से या इसके विरोध में कुछ जो यथार्थ की धरातल पर स्थिर हो। जैसे वे सब किसी यंत्र की तरह से कार्यरत हैं। यहां उनकी औरत के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं घसीटता है यद्यपि वह सब पूर्ण रूप परिपक्व हैं। वहां अप्रसन्नता नहीं है क्योंकि अस्वस्थ अपूर्ण विवाह है, उन्होंने विशेष क्या किया है? जैसा की एक विवाहित व्यक्ति कर सकता है, उससे कहीं अधिक उन्होंने उसके सौन्दर्य का उन्मुक्त स्वभाव से गायन करके उसका प्रचार प्रसार किया है। क्या परिपक्व गुरुत्वाकर्षण कामुकता का नियम है? जैसे वह सभी का केन्द्र है, जिस प्रकार से यह पृथ्वी कभी नहीं समझ सकती है की उसे स्वर्ग की आवश्यकता है, क्योंकि निश्चित रूप से पहले से ही स्वर्ग में ही स्थित है। क्योंकि सांसारिक स्वर्ग विवाह की प्रसन्नता में ही विद्यमान है। जैसा की यह है जब यह नरक नहीं है तो, एक विवाह अकसर केवल हमेशा के लिए पीड़ा ही होता है।


और जहां विवाह नहीं है वहां केवल जीवन है, क्योंकि इसी में रहस्य का समाधान पड़ा है जिसने ऋषियों के मन को भ्रमित कर दिया था, जो मुख्य रुप से इसके पीछे के कारण को तलाश ने में असमर्थ सिद्ध हुए हैं। क्योंकि उन लोगों ने स्वयं के ब्रह्मज्ञान, और दार्शनिक भ्रम के विचार वाद और अंधश्रद्धा के कारण अपने आप को अंधा बना लिया है। ऐसा क्यों हैं जो की वह सब प्रकृति के असीमित सौन्दर्य को निहारते हुए नहीं थकते हैं। और हम सब के उपर उसको अत्यधिक समृद्धि के साथ विलास पूर्ण जीवन की प्रेरणा देते है। उसको सूर्य के उदय और सूर्य अस्त होने के साथ उसके हाव भाव भंगिमा के साथ लहरों के उपर दहाड़ते मौन को बर्फ की चमक के साथ वह अपनी आत्मा की चोटी पर कड़कती है, दूर से वह नीले आकाश रूप पतझड़ के समान अनंत रूप इन्द्रधनुस की झलक देती है, उसको खिलते हुए फूल के ऐश्वर्य की प्रतिष्ठा उत्थान और पतन को दिखाते हैं, और उसके क्रोध के साथ उसकी शांति की उपमा में उचे हिमालय के शिखर से करते है और उसकी गहराई पर्वत की घाटियों और खाड़ियों से करते है। ऐसा क्यों है इसी के आधार से हम सब अपनी ललचाई हुये दृष्टि से उसको घूरते हैं जैसे इनके द्वारा किये जाने वाला चमत्कार का कभी अंत नहीं होगा। इसकी वजह से ही हम सब इनके द्वारा मिलने वाले अनंत दुखों के शिकार होते हैं। जो वस्तुए अपने आप में स्वयं नहीं है क्योंकि प्रकृति कभी भी शोक ग्रस्त नहीं होती है लेकिन उनमें से कितनी वस्तुओ को हम सब अपने जीवन में आयात कर लेते है, क्योंकि हमें समझाया गया है हम उसकी दृष्टि से देखे जैसा कि कवि देखते हैं मनुष्य की आत्मा केवल प्रकृति के आईने में झलकती हुई तस्वीर के समान है। जबकि यह सब कुछ दुःख स्वप्न के समान है। क्योंकि यह हम सब की आत्मा चेतना की सतह से बहुत नीचे प्राणों की अंधेरे गुफा में विद्यमान है। हम सब बिना उसको अच्छी तरह से समझे ही महसूस करते हैं, जैसा की हिन्दू संस्कृति हमें सचेत करती है कि हम सब अपने अस्तित्व के फल को प्राप्त करने में असफल सिद्ध हो रहें हैं। क्योंकि हमारी शरीर का आधा हिस्सा औरत को कहा गया और इस हिस्से हम कभी भी जुड़ नहीं पाते है और ना ही यह औरत अपने अस्तित्व के आधे हिस्से पुरुष से मिल पाती है। इसी कारण से हम स्वयं के अस्तित्व पर संपूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं रहते है, एक व्यक्तिगत लयबद्धता अपूर्ण ही रहता है। जो इसके लिये जरूरी दार्शनिक संतुष्टि है वह भी अपूर्ण ही रहती है, इससे अलग रहने का मतलब है की हम अपनी शांति को कभी भी प्राप्त नहीं कर पाते है जिसका रास्ता समझ से ही हो कर जाता है। इसके ना होने मूर्खता पूर्ण जीवन को पशुवत जीवन जीते है जैसा संस्कृत में कहावत है जिसके अंदर ना विद्या है ना तप है, ना दान है, ना ही किसी विषय का पूर्ण ज्ञान ही हाँ ना शील है वह मनुष्य रूप में पशु के समकक्ष ही होता है। और यह कोई सरल कार्य नहीं है जब तक अपने जीवन में प्राप्त नहीं कर लिया जाता है। क्योंकि अभी इसके पीछे हमारा दुर्भाग्य है यह समझते है जो भी हम अपने जीवन प्राप्त करते है वह काम देव का आशीर्वाद होता है, मनुष्य जो इसके साथ लगभग औरत की सहानुभूति के विचार हैं, और दूसरे शब्दों में कहें तो किसी प्रकार की सांसारिक सफलता इसकी अनुपस्थिति में पुरस्कार के समान है। जो हर तरह की विशेष प्रसन्नता का कारण है। अथवा हम जीवन के क्लेशों में स्वयं को डूबने से स्वयं को बचाने में हमारा पुरुषार्थ अपर्याप्त सिद्ध पड़ता है, जीवन की सफलता की तुलना में यह अपना कोई मायने नहीं रखता है। इस अज्ञान के भंवर में फंस कर हम सब अपने वर्तमान को यूं ही निराशा में ही खर्च देते हैं। यह अकेले ही हमारी आत्मा को नष्ट करने में समर्थ है। बिना आत्मज्ञान के हम सब वृक्ष के टूटे पत्तों के समान हवा में तैरते हैं जिसको हवा का झोंका अपनी मर्जी से लेकर अपने साथ उड़ता है जिसके सामने हम दाश के समान होते हैं, अथवा संसार के झंझावात में स्वयं को नष्ट भ्रष्ट कर देते हैं। विरोधाभास ही इसकी जड़ है क्योंकि अकेले यह नश्वर है प्रसन्नता वसंत के समान है। जैसा पौराणिक मान्यता है जो सहजता की गहराई से बहुत दूर है फिर इस श्रेष्ठ उपलब्धि के बाद जहाँ सारे संदेह समाप्त हो जाते है प्रत्येक देवता ने अपने आधे हिस्से को बहुत सुन्दर तरीके से औरत को दे रखा है यह उत्तम द्वैत वाद का दिव्य जोड़ा है। इसका एक हिस्सा चाँद को अपने जुड़े में धारण करने वाले स्वयं भगवान शिव है और इसका दूसरा हिस्सा हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। प्रकृत और पुरुष को प्रतीक रुप में व्यक्त किया गया है। जो हमें संसार में दो रूपों में दिखाई देता है वह अस्तित्व के धरातल पर एक हो जाते हैं जिसको अर्ध नारी कहा गया है। अस्तित्व जिसका आधा हिस्सा पुरुष का और आधा हिस्सा स्त्री का है। परम पुरुष ने अपने आधे हिस्से को अपनी पत्नी के रूप में बनाया है। जो श्रेष्ठतम है जब इसको दो में विभाजित कर दिया जाता है तो यह दोनों नष्ट हो जाते हैं। इस द्वैत वाद को हृदयहीन विचारकों ने बाद में बहुत अधिक प्रचारित और प्रसारित किया है।


ऐसा बहुत अधिक समय पहले था जिसको मैंने समझा है, इसका समाधान मुझे अचानक समझ में आया अपने स्वयं के अनुरूप, जैसा किसी समस्या का समाधान हमेशा उस विषय के बारे में गहराई से चिंतन और मनन करने के बाद किसी को प्राप्त है। और हमें ऐसा प्रतीत होता है की यह सब आकस्मिक रूप से घटित हो रहा है। जैसे किसी एक खेल को खेलने की कला को हम खेलते खेलते ही उसमें दक्ष हो जाते है। जहां दूसरे लोग अकुशल अर्थात इस प्रकार के ज्ञान को विकसित करने से दूर ही स्वयं को रखते हैं। जैसा की हम सब जानते है की पानी का वाष्पन पारा के सौ डिग्री पहुंचने पर ही होता है, इसी प्रकार से आप में भी कुछ थोड़ीसी अपरिपक्वता के कारण आप स्वयं दिव्य पुरुष और दिव्य स्त्री से दूर ही रखते हैं। जैसे दो पत्थर के टुकड़ों को आपस में घिसने से उसमें एक तीसरा तत्व चिनगारी के रूप में प्रकट होता है, जो अंधेरे को प्रकाश में परिवर्तित कर देता है, इन दोनों वस्तुओ का संबंध स्वयं से है, सूर्यास्त और एक बच्चा। बच्चा सूर्यास्त को देखता है और मैं बच्चे को देखता हूं। इस कहानी के कुछ पाठकों में पहले से इससे परिचित होंगे, वह मुझे धन्यवाद देंगे की मैं उनके परिचित से दोबारा फिर से परिचय करा रहा हूं, जैसा की डाकिया अपने किसी पुराने मित्र के बारें में समाचार को लाता है।


हर सूर्यास्त हमेशा एक जैसा ही होता है, मृत्यु का वस्त्र देवता समान है, और यह एक परमेश्वर के उपहार के समान है। हालांकि इसकी अपनी स्वयं की व्यक्तिगत विशेष विशेषता है। और इसी दुर्लभ विशेषता के कारण ही यह किसी भी बच्चे को आपने आकर्षण में जब्त कर लेती है। क्योंकि बच्चे छोटे जानवर के समान होते हैं, वह सामान्यतः सूर्यास्त को देखते हैं जैसा की मां, बाप अपने घर, घर के सामान और दरी गलीचा को देखते हैं, सामान्यतः जिसके लिए वह सुनिश्चित होते है, वह उन वस्तुओ पर वैसे अधिकार करते है जैस वह जीवन के लिए बहुमूल्य वस्तु हैं। यही खेल है बच्चे बड़ी सावधानी से पानी के बुल बुला को उड़ाते हैं। और कभी – कभी वह खुद भी साबुनदानी में बुल बुलों को सुरक्षित रखने के लिए उत्सुक दिखते हैं। इस प्रकार के क्रियाकलाप में हर बच्चा अद्भुत भाव विभोर या मगन चित्त हो कर अपने बचपन में आनंदित होता है। और अप्राकृतिक पिला सूर्य के समान दिखने वाला झाग से बना बुल बुला हवा में धीरे 2 लुप्त हो जाता है।


वर्तमान में थका हुआ सूर्य जैसे भारी गर्म लाल भारतीय चित्र पट्टी के स्याही में जल रहा है। वारिस का मौसम है लेकिन बादल धीरे - धीरे अदृश्य हो रहा है टूटी गहरी धुंध की कतार में, उनके पीछे सूर्य दिख रहा है जैसे बूँद बूंद करके सोना बरस रहा हो। अथवा ताम्र वत झरने के रूप में, जबकि इनके नीचे अथवा इनके मध्य में हल्के नीलम के समान पर्वत की चोटियों में आधी छिपी हुई प्रतीत हो रही हैं। जो अब साफ और बिलकुल स्पष्ट दिख रही है जैसे किसी कलाकार ने इन को कैंची की सहायता से काट कर बनाया हों किसी बड़े कागज के वृक्षों से, जिनके पीछे नारंगी आकाश की नक्काशी की है। और तभी आश्चर्यचकित करने वाली घटना घटित होती है सीधा आकाश में आर पार सूर्य से थोड़ा सा उपर एक लम्बा पतला बादल का टुकड़ा अचानक अपने रंग को बदलता है बहुत अधिक गहरे जामुनी रंग में, और इसके साथ उसके उपरि एक छोर पर दो विशाल चट्टान जैसे आपस में टकराते है उसी प्रकार से एक कठोर बिजली झटका कड़कते हुए तत्काल पृथ्वी स्वर्गीय साम्राज्य के गरिमामय ऐश्वर्य को बिखेरती है। जबकि नीचे उनके द्वारा उड़ेला गया वारिस का पानी नियाग्रा झरने के रूप सुनहरे धुंध सा प्रतीत हो रहा था। जैसे उनको आगे बढ़ने के लिये अचानक रास्ता दे दिया गया हो स्वर्ग से आने वाली बाढ़ के पानी के लिए सभी बाधों के दरवाजे को खोल दिया गया हो। और सभी कठोर बहुमूल्य वस्तुए उनके लिये पानी की तेज धारा से बचने के लिये उद्धत हों, जो एक विशाल पानी की बूंद के समान हमेशा के लिए आधार हीन सुरंग में खो जाती है।


अचानक मृत मौन मेरा भंग होता है, मेरे कानों में कड़वाहट भरी ध्वनि का शोर गुल गुँजता है। जो दिन के प्रारंभ का आगाज था। मैं जल्दी से अपने स्थान से घूमा और बच्चे की झलक को देखा, वह अब भी किसी पत्थर के समान खड़ी थी अपने एक हाथ में पुराने बाँसुरी को पकड़े हुए दूसरे किनारे को अपने मुख से लगाये हुए, जैसे वह स्वर्गीय स्वर लहरियों को छोड़ने वाली है, मैं उसकी आंखों जो आश्चर्यचकित कर देने वाले लालिमा से भरी थी, खुले हुये मुख के द्वार के साथ हल्की सी मुस्कुराहट जिससे वह पूर्ण रूप से चेतना शून्य हो रही थी, धुँधले, विचार शून्यता के साथ मैं स्वयं को असमर्थ पा रहा था उसको समझने में मेरी प्रसन्नता ने उसे स्वयं में समाहित कर लिया तब तक वह जा चुकी थी, मैंने उसको उसके नाम से बुलाया, जिसको उसने कभी भी नहीं सुना, उसकी आत्मा सुनहरे दरवाजे से दूर जा चुकी थी।


और इसको बाद मैंने अपने आप से कहा, जैसे मैंने उसको देखा एकाग्रता पूर्ण जिज्ञासा के साथ, जिसमें प्रायश्चित के भाव मिश्रित थे। मैं राइफल नहीं था इसलिए अद्भुत शानदार दृश्य था। यहीं ऋषियों की बुद्धिमत्ता है, प्लुटो का गुप्त संदेश है, बुद्ध इसे निर्वाण मोक्ष, योग कहते है, अप्राप्त आनंद का प्रसाद, पूर्णता की उपलब्धि, जिसको मनुष्य बहुत से नामों से पुकारते हैं, जो अंत की तरफ ले कर जाता परिपक्व पुरुष के पुरुषार्थ को या उसको सिद्ध करता है। जिसके लिए वह निराश रहता है उसको वह पुनः प्राप्त कर लेता है, अर्थात उसने अपने बचपन में क्या प्राप्त करने बचपन को छोड़ दिया था, वह उसका स्वयं का बच्चा पन ही था जिसको वह प्राप्त कर लेता है, अर्थात वह पुनः बच्चा हो जाता है, जिसमें काम कहीं भी नहीं होता है, वह अतृप्त आत्मजीवनी रहस्य के बारें में जानना चाहता था यद्यपि कुछ भी नहीं जान पाता है, हां! रहस्यात्मक एकरूपता के करीब पहुँच जाता है। पूर्णरूपेण से जानने वाले का विलय हो जाता है सब में, वह अपने आप को असीमित में खो देता है। बिना किसी प्रायश्चित के अवशेष के, अप्राप्त को प्राप्त कर लेता है, जो स्वयं के समाप्ति का केन्द्र है, जहां पर कर्ता और कर्म के सभी प्रकार के मतभेद कुछ और नहीं अदृश्य हो जाते है, फिर से बच्चे की तरह से जन्म लेने के लिए यह आवश्यक है। पुनर्जन्म! इस में दुःख अप्रसन्नता से गुत्थी से मुक्त होने की चाभी है।


और इसके कुछ देर के जैसे मैंने उसको देखा वह स्वयं में वापिस आगई, हमारी आँखें एक दूसरे से मिल कर एक हो गई, और उसने मुझे ध्यान से देखा, बिना किसी अभिव्यक्ति के साथ, जिसकी व्याख्या मैं नहीं कर सकता हूं और अंत में एक गहरी शांस के साथ उसने कहा, यहां पर दिव्य वारिस कभी क्यों नहीं होती है? हमारी वर्षा हमेशा साधारण वर्षा होती है।


और मैंने गंभीरता के साथ कहा छोटी 2 लड़की इस क्यों का कारण है, लेकिन वह नहीं समझती। उसने मुझको असहमति के साथ अपनी आँखों में उलझती पहेली की तरह से देखा। ऐसी महान, भूरि, सुन्दर, सागर जैसी गहरी आँखें! __और फिर उसने एक गहरी शांस ली। और वापिस अपने बुल बुलों के पास ची गई, और हमने एक साथ अपने से दूर जाते बबूलों को नीचे घाटी में बहते हुए बचकानी उत्तेजना के साथ देखा, जिसमें मेरे और उसके बबूले थे, फूटने से पहले वह हमसे बहुत दूर जा चुके थे। जब तक बाहर से बुलावा राधाकृष्णन का आ गया, और बबूलों को उड़ाने वाली विस्तर पर जा चुकी थी।


पुना 1919


गंगा के किनारे पर

मंगलाचरण


जिसने सोलह कला से युक्त चंद्रमा को अपने जुड़े में धारण किया है, जिस जुड़े में स्वयं गंगा ने अपने आश्रय को बनाया है। और जिनके सामने स्वयं औरत की आराध्य मां गौरी अपने घुटने टेक कर बैठि रहती हैं, जो सब प्रकार के काम रूपी प्रेम के बाणों के सामर्थ्य को असमर्थ करने के योग्य हैं। वहीं हम सबके आराध्य देवो के देव महादेव जो सभी आश्चर्यों में सबसे बड़े आश्चर्य हैं। जो इस तीनों लोक की प्रज्वलित काम अग्नि की ज्वाला में कभी पिघलने वाले नहीं है। उनकी मैं अपने हृदय की गहराई से चरण वंदन और अभिनंदन करता हूं।


बहुत लंबे समय पहले कि बात है, जब एक बार ऐसा हुआ कि पार्वती स्वयं कैलाश के शिखर पर कुछ समय के लिए बिल्कुल अकेली थी, और वह बड़ी व्यग्रता के साथ अपने आराध्य देवो के देव जो अपने सोलह कला से युक्त चंद्रमा को धारण करने वाले महादेव हैं उनका इंतजार कर रही थी। और जब वहां पर उनको करने के लिए कुछ भी नहीं था। जिसके कारण वह अपना मनोरंजन करने के लिए कैलास पर उपस्थित बर्फ से एक सुंदर हाथी और उसकी सुंड़ को बनाने लगी, जिसके लंबे कान, चोटी और पूछ थी, जिसको उन्होंने पहाड़ी साँड़ों के बालों से बनाया था। और जब वह बन कर पुरी तरह से तैयार हो गया, तो वह अपने द्वारा बनाये गये खिलौने से बहुत अधिक आनंदित हुई। जिसके कारण वह अपने हाथों से ताली बजा कर अपनी खुशी का इजहार करने लगी। और तब जब वह अपने आराध्य का इंतजार करने में वह बिल्कुल स्वयं को अयोग्य पा रही थी। इस बेचैनी के कारण वह तत्काल वहां से उठी और सोलह कला को धारण करने वाले महादेव को उनकी समाधि से बाहर निकालने के लिए चल पड़ी। क्योंकि वह महादेव को यह दिखाना चाहती थी की उन्होंने कितनी सुन्दर हाथी का खिलौना बनाया है। और इस आनंद के उत्सव में उनको भी शामिल करना चाहती थी। और जैसे ही वह अपनी कला कृती से अपना मुख घूमा कर थोड़ीसी दूरी पर पहुंची, तभी भगवान शिव का सेवक नंदी अपने स्थान से उठा और उसने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया, कि उसके सामने क्या है? वह एक डकार के साथ उस कला कृती के पास पहुंचा, जो अभी निष्प्राण बर्फ में खड़ी थी, उसने समझा की यह स्वयं कोई बर्फ से बनी आकृति है, जिससे उसके अंदर उसको नष्ट करने की इच्छा हुई, और उसने अपने खुरों से उस मूर्ति को रौद दिया, जिससे एक बार पुनः वह बर्फ से निर्मित सुंदर हाथी बर्फ में तबदील हो गया। इसके बाद भी नंदी अपने पैरों से बर्फ के ढेर को हवा में इधर उधर फैलाने लगा। और इस समय उसका सौभाग्य बहुत अच्छा था कि पार्वती ने ऐसा करते हुए नहीं देखा था। तभी पर्वतों की पुत्री पार्वती रोमांचित अवस्था में अपने हाथों में महादेव के हाथ को पकड़े हुए उस तरफ बड़ी उत्सुकता और व्यग्रता के साथ आई। और देखा कि जहां पर उन्होंने उस सुंदर बर्फ से हाथी को बनाया था वह वहां पर नहीं था उसके स्थान पर वहां सब कुछ सपाट था, और नंदी वहां पर रोमांचित हो कर अपने पैरों से बर्फ को उड़ाता हुआ इधर - उधर भाग रहा था। जिसके कारण वह अत्यधिक क्रोध और निराशा के साथ परेशान होकर जोर-जोर से रोती और चिल्लाती हुई अपने स्थान पर खड़ी हो गई । और उन्होंने इस शरारत को करने वाले को श्राप देने के लिए अपना मुंह खोला, और श्राप देने ही वाली थी की तुमने जो यह कार्य किया है जिसके कारण तू मृत्यु लोक में हजार जन्मों को ले कर दुखों को भोगेगा तू विनाशकारी है! तभी भगवान महेश्वर ने उनके मुंह पर अपने हाथ को लगाकर शांत रहने के लिए कहा, क्योंकि उन्होंने पार्वती के भाव का अनुमान पहले से लगा लिया था। जिससे उन्होने एक भयावह कार्य को करने से उनको रोक दिया। और उन्होंने कहा ओ प्रिय क्रोध में तुम इस पर नाराज हो कर इसे कुछ मत कहो, क्योंकि नंदी ने इसके पीछे किसी उद्देश्य को ध्यान में रख कर ऐसा नहीं किया है। और एक अच्छे सेवक को इस संयोगवश गलती के लिए श्राप देना योग्य नहीं है।


और फिर इस पर पार्वती की आँखों से आँसू की धारा निकल पड़ी, और वह चिल्लाने लगी, और कहा इसने मेरी आँखों के सामने मेरी कला कृती को नष्ट किया है, जिसके लिए मैं इसको कभी भी क्षमा नहीं कर सकती हूं। और वह महादेव से दूर सुबकते हुए चली गई। और महेश्वर भगवान शिव उनको इस तरह से अपने से दूर जाते हुए, अपनी आँखों के एक किनारे से देखते रहें, और अपने आप से कहा कि अब मुझे ही कुछ इसके लिए करना होगा। जिससे पार्वती को उसके बर्फ के हाथी के नष्ट होने के दुःख से कुछ सांत्वना मिल सके। जिससे उसके स्वभाव में फिर से बदलाव आ सके, और वह मुझ से खुश हो जाये। क्योंकि दुष्ट स्वभाव औरत का सब कुछ नष्ट कर सकता है। और फिर उन्होने पार्वती को अपने पास बुलाया, और उनसे कहा बहुत हो गया! क्योंकि नंदी तुम से अपमानित होकर मुझ से दूर चला गया है। जिसके लिए मैंने उसको कुछ समय के लिए निर्वासन के रूप से दंडित किया गया है। और वह अपने अपराध से अनजान होने के कारण वह बहुत दुःखी है। और हम थोड़ीसी देर के लिए यहां से कही और घूमने के लिए चलते हैं। जिसमें हम कुछ नया खोजेगे, जो हमारे अप्रसन्न करने वाली यादों को खत्म करने में मदद कर सकता है, और जिससे हमारी उदासी कुछ समय में मुस्कुराहट में बदल सकती है।


और फिर भगवान शिव ने अपने बाँहों में देवी जो ले लिया, जैसा की वह भगवान के घुटनों पर सुबुक रही थी। और कैलाश के चोटियों से उपर उठ कर वहां से आकाश मार्ग से चल पड़े जैसे कोई आकाश से नीचे मैदान में गिरता है। वहां से हरिद्वार आ गये जहां पर गंगा पर्वतों से निकल कर मैदानी इलाक़े में प्रवेश करती हैं। और वह गंगा नदी का अनुसरण प्रारंभ कर दिया, आकाश में बहते हुए, बिलकुल पानी के धारा के उपर से, यह ऐसा ही था। जैसे बादल आकाश में तैरते हुए अपने प्रतिबिंब की झलक को गंगा के निर्मल स्वच्छ जल में अस्वीकृत नहीं कर सकते है। उसी प्रकार से अपने छाया के चित्र को नीले गंगा के लहरों देखते हुए भगवान शिव अपनी प्रियतमा पार्वती के साथ आगे बढ़े चले जा रहे थे। और अंत में वे गंगा नदी के अंदर एक रेत के द्वीप पर पहुँचे जो मगर से भरा पड़ा था। जो सर्दी की मीठी धूप का आनंद ले रहे थे अपनी माँद से बाहर निकल कर। इस पर भगवान शिव ने कहा देखो! हम लोग नीचे उतरेगे। और मगरों के मध्य में थोड़ीसी देर तक इस रेत पर आराम करेंगे । जहां से गंगा नदी का किनारा बहुत ही अद्भुत नजर आ रहा था और यह मगर गंगा के ही अंग जैसे एक सीधी रेखा को बना रहे थे। इसको देख कर देवी उमा ने अप्रसन्नता के साथ कहा यह क्या है? हम इतना अधिक मगरों का परवाह क्यों कर रहे हैं? जो घंटों तक एक ही आसन में बिना हीले बैठे रहते है जैसे कोई योगी समाधि में तल्लीन होता है।


फिर भगवान शिव ने कहा कुछ कम है, हम नीचे चलते चलेंगे। क्योंकि यह द्वीप मगरों से कुछ अधिक अपने अंदर छिपा कर रखा है। और जैसे ही वे उस द्वीप पर अपने पहुंच कर व्यवस्थित हो गये। उन्होंने फिर कह क्या मैंने नहीं कहा था? कि हम यहाँ पर अवश्य कुछ प्राप्त करेंगे। क्योंकि वह काफी समय से इसके अंदर दफन है, जिससे देवी उमा की जिज्ञासा और अधिक बढ़ गई, और उन्होंने कहा तो क्या आप इसके बारें में मुझको आप नहीं बता सकते है की वह क्या है?


और वह उस द्वीप को एक खोजी की दृष्टि से देखने लगी। और तत्काल देवी उमा ने कहा मैं इसके बारे में सब कुछ बता सकती हूं, बहुत समय पहले से ही यह पानी में पड़ा होगा, इससे पहले यह नदी के किनारे से जुड़ा होगा, आकार रहित विशाल मिट्टी के टुकड़े रुप में होगा जो नदी में बाढ़ आने के कारण वहां से बह कर यहां पहुंच गया है जिस पर समय के साथ कीचड़ और रेत का ढेर समय के साथ एकत्रित हो गया है। इसके बारे में इस द्वीप को देख कर कोई भी अंदाज लगा सकता है।


इस पर भगवान महेश्वर ने कहा इसने बहुत लंबी यात्रा की है केवल इसी द्वीप ने ही इन मगरों ने भी की है। क्योंकि मगरों ने सब कुछ निगल लिया था। और बहुत समय पहले इसको एक मनुष्य के द्वारा लाया गया था। जो गंगा नदी के किसी दूसरी धारा में अपने नाव के साथ डूब गया था। जिस नाव पर एक वृद्ध शिकारी मगर को भी ले रखा था। जो लंबे समय पहले मर गया था। मगर किसी तरह से स्वयं को बचाने में सफल हो गया और अपनी माँद से निकल कर किसी तरह से वहां वह गंगा की धारा में पहुंच गया। और इसके कुछ दिनों के बाद वारिस के मौसम पानी के वेग ने उसे इस द्वीप पर पहुंचा दिया। और जब नदी वारिस का पानी सूख कर कम हो गया। वह यहीं पर पड़ा रहा और उसी के वंशज यह सारे मगर हैं। जैसा की अभी मगर पड़े हुए हैं। जैसा की यह हमारे यहां आने की आशा में प्रतीक्षा कर रहे हैं। और हमारे मनोरंजन करना चाहते हैं। और जो भी अब तक हुआ है उसमें नंदी के आशीर्वाद देना चाहिये ना की श्राप। निश्चित रूप से उसने आपके द्वारा बर्फ से बने हाथी को अनजाने में नष्ट किया गया है। जिसके बारे में कुछ पहले से नहीं जानता था।


और इस पर देवी पार्वती न स्वाद लेते हुए कहा, इसमें मनोरंजन कहा है यह मूर्खता पूर्ण मिट्टी के व्यर्थ कबाड़ी टुकड़े के और क्या है। जिसके लिए आप इतनी बड़ी भूमिका को गढ़ रहें है इसमें रोमांच कहां है जिसको बीना बतायें मैं कैसे समझ सकती हूं।


इस पर भगवान शिव ने कहा देवी जल्दी से निर्णय मत करो, कि यह केवल बेकार मिट्टी का टुकड़ा है, जैसे किसी मनुष्य के बाहरी स्वरूप को देख कर यह अंदाज नहीं लगा सकते हैं, कि उसके हृदय में क्या है? यह मिट्टी का सुखा टुकड़ा किसी नारियल के समान है जो बाहर से तो सुखा और कठोर होता हैं, लेकिन उसके अंदर अमृत मय अपने रस को सुरक्षित रखा है। इसी प्रकार से यह मिट्टी का टुकड़ा जो काफी लंबे समय से बंद है जिसके अंदर कुछ गुप्त पड़ा है जिसको शिवाय मेरे कोई साधारण मनुष्य नहीं खोल सकता है। और भगवान शिव ने अपने पैर से उस द्वीप छू कर कहा क खुल जाओ, और वह किसी बंद गुफे के दरवाजे की तरह से खुल जाता है। जिसमें एक बहुत पुरानी तिजोरी पड़ी हुई थी। और उन्होंने कहा देखो इसमें कुछ अद्भुत बीज पड़ा है, जो पूर्णतः संरक्षित ताजा और सुरक्षित है, क्योंकि इस तिजोरी में सारा साहस का रोमांच जुड़ा हुआ है। जिसको समय की मार से बचाने के लिए एक के बाद कई परतों में ढका गया था। जिसके अंदर बहुत सारे ताड़ पत्रों को रेशमी कपड़े में बाध कर रखा था, और जिसके उपर शील लगाया गया था। इसको देखकर देवी ने कहा इसमें इतनी व्यवस्थित रूप से क्या सुरक्षित रखा गया है? इसमें एक मनुष्य के काल क्रम को संरक्षित करके रखा गया, जिसका परिणाम अंत में कुछ नहीं निकलता है, एक पत्र है जो अपने गंतव्य पर कभी भी नहीं पहुंच पाया रास्ते में ही जो खत्म हो गया। क्योंकि संदेशवाहक बहुत अधिक जल्दी में था जो अपने कर्म द्वारा ही परास्त कर दिया गया था। संदेशवाहक को बहुत तीव्र जाने के लिए कहा गया था, वह जिस नाव पर सवारी कर रह था वह नाव गंगा की तेज धार में असंतुलित हो कर डूब जाती है जिससे संदेशवाहक को नदी के जानवरों द्वारा आहार बना लिया जाता है। क्योंकि जो बहुत अधिक चलते है वह अकसर आते वक्त बहुत अधिक सुस्त और ढीलें पड़ जाते है जिसके कारण से वह कभी अपने मंजिल पर नहीं पहुंच पाते है। ऐसा ही कुछ इस कहानी के साथ हुआ है। इस पर देवी उमा ने कहा इस संदेशवाहक को भेजने वाला अवश्य मूर्ख होगा। इस पर भगवान महेश्वर ने नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। इससे वह बहुत विलक्षण है और वह भी हो गया, जैसा कि बहुत लोग करते हैं, एक मूर्ख एक अवसर के लिए, अपनी वासना के वशी भूत होकर, जिसने उसकी आँखों को अंधा और कानों को बंद कर दिये थे। एक मानव के संपूर्ण चरित्र में दोहरा पन स्थित हो जाता है, तब वह स्वयं के विपरीत आचरण करने लगता है। जैसा की कोई मानव अचानक बदल जाता है किसी दूसरे रूप में, अथवा उसकी आत्मा की क्षणिक अनुपस्थिति के समय में उसके शरीर में कोई बेताल प्रवेश कर जाता है।


इसको सुन कर पार्वती ने कहा की किसी प्रकार की वासना यहां पर विद्यमान थी? चंद्रमा को अपने शीर पर धारण करने वाले भगवान ने धीरे से कहा यह बहुत मजबूत तेहरा रस्सा प्रेम का था। और प्रेम तत्काल निराशा में तबदील हो जाता है, निराशा नफरत में, और ज्वलंत नफरत की तरंगें विद्रोह का रूप धारण कर लेती हैं। इसमें से हर एक किसी भी पुरुष को पागल बनाने का कारण बन जाता है। यद्यपि पुरी कहानी को स्वयं इसके नायक के द्वारा वर्णन किया गया है। देवी उमा ने फिर कहा आप सब कुछ इसके बारे में जानते हैं फिर क्यों नहीं आप इसको अपनी तरह से बताते हैं। बिना पढ़ने की समस्या के? इस पर भगवान महेश्वर ने कहा नहीं यह इस कहानी कार के साथ अन्याय होगा, इससे अच्छा है की इस कहानी कार के नायक द्वारा वर्णित कहानी को उसको ही बताने दे, क्योंकि वह इसको रचने वाला है वह इसके बारे में अच्छी तरह से जानता है। इसके अतिरिक्त एक अजनबी कहानी से अपरिचित हमेशा गलत ढंग से कहानी की व्याख्या करता है, निश्चित रुप से वह जरूरत के मुताबिक़ कहानी के रिक्त स्थान पर अपने ज्ञान द्वारा उसको भरता है अपनी कल्पना अथवा वह अंदाज लगा लेता होगा की ऐसा ही होगा। जब की जब कहानी का नायक स्वयं ही अपनी का वर्णन करता है तब वह बहुत अधिक सत्य और यथार्थ होती है। और जब कभी कुछ भी असत्य या काल्पनिक होता है तो वह उसको अस्वीकृत कर देता है। जबकि हमारे साथ ऐसा बिल्कुल नहीं है। क्योंकि वस्तुतः वह बहुत चिंतित और उतावला रहता है वह अपने शत्रु को सब कुछ बताना चाहता है इसके पीछे उसके मकसद है की वह उसे पराजित करना चाहता है। इसके साथ कहानी के नायक केवल एक गलती कर दिया है, जिसको मैं समय के साथ तुम को दिखाऊगा। इसलिए मैं इस कहानी को पढ़ता बिल्कुल वैसे ही जैसा की वास्तव में है, उसके साथ जैसा कुछ हुआ था उसने बिना किसी त्रुटि के सब कुछ बताया है। इसके बाद देवी उमा ने कहा ठीक है पढ़ें, लेकिन वह स्वयं वह विचार करने लगी, कि यदी यह कहानी सुनने में मुझे रुचि कर नहीं होगी, तो यह पढ़ते रहेगे, और मैं सहजता के साथ सो जाउंगी। और इस पर भगवान महेश्वर ने कहा नहीं देवी, मैं आपको आश्वस्त करता हूं की जब मैं कहानी को पढ़ुगा तो आपको निद्रा नहीं आयेगी।


और अचानक देवी ने अपनी बांहों को भगवान शिव के गर्दन में डाल दिया, और अपने चेहरे को उनके छाती में छिपा लिया। और उन्होंने कहा इस तरह से सुरक्षित रखने के पीछे क्या कारण था, और क्या जरूरत थी जिसके कारण इसके रचना कार ने इसको छिपाने का प्रयास किया है ,चले ठीक जे कुछ भी आप पढ़िए, लेकिन जब मेरी इच्छा होगी मैं सो जाउंगी।


और उन्होंने कहानी को पढ़ना शुरु किया जैसे ही पत्ते पर लिखा हुआ पुरा होता वह उसको अपने से दूर एक एक कर के पानी की धारा में फेंक देते थे, जिससे पानी की धारा उन्हें उनसे दूर ले जाती थी, इसके साथ ही सारे मगर उनके चारों तरफ एक घेरे पड़े हुए अपने परमेश्वर की आराधना में लीन हो चुके थे।


2- एक औरत का हृदय


जैसे की काला नाग बैठ कर और अपने फन को फैला कर अपने शत्रु पर फुफकारता है अथवा वह आक्रमण करता है, ऐसा ही मैं शत्रुनंजया एक वीणा वादक, राजा का पुत्र इसको मैं अपने मकसद के लिये भेजा हूं, रानी के प्रेमी नरसीम्हा को उसके लिये यह बहुत अच्छा होगा जैसा उससे कहा वह वैसे ही कार्य को सिद्ध करे, क्योंकि मेरे शत्रु के साथ बहुत ही भयानक घटना घटने वाली है जिससे वह आतंकित हो सकता है। मैं नहीं चाहता की कोई भी मेरे खिलाफ किसी प्रकार की शिकायत करें की मैंने अपने शत्रु को बिना किसी प्रकार के चेतावनी या उसके आगाह किये बगैर ही उसको मार दिया है। जिस प्रकार से रात्रि बहुत अधिक तेजी से दिन की तरफ दौड़ती है और इसी प्रकार से दीन भी रात्रि की तरफ निश्चित समय पर प्राप्त होता है यह अटल नियम है, इस प्रकार से मेरा संदेशवाहक भी मेरे आतंक से भरें हुए संदेश को लेकर मेरे शत्रु के पास पहुंच जायेगा, जिसको मैंने अत्यधिक तीव्रता के साथ उसके पास ले जाने के लिए निश्चित किया है। क्योंकि मेरी अत्यधिक अभिलाषा एक प्यासे प्राणी की तरह से है अपने शत्रु के हत्या करने की है। निश्चित रूप इसके इंतजार में मेरा एक - एक दिन एक - एक युग के समान व्यतीत होता । क्योंकि मैं अपने शत्रु की हत्या बिना किसी हथियार के अपने नग्न हाथों से करुंगा।


और अचानक महान भगवान पढ़ना बंद कर दिया और वह जोर से हँसते हे कहा देखो, की कैसे यह बेचारा वीणा वादक अपने आपको ही धोखा दे रहा है! क्योंकि उसके द्वारा लिखा गया पत्र कभी उसके शत्रु तक नहीं पहुंच सका, यद्यपि पत्रवाहक को पत्र ले कर उसके पास से निकलते ही, उसके शत्रु द्वारा निश्चित आदमियों के द्वारा स्वयं उसकी हत्या कर दी गई, जिसने अपने शत्रु कभी चेतावनी नहीं दी थी, यद्यपि वह हमेशा अपने शत्रु को कभी इसके लिये सतर्क होने का मौका ही नहीं देता था, और इस तरह से उसने अपने शत्रु को मार दिया। इस पत्र में उसने जो भी लिख कर सुरक्षित रख कर वह स्वयं इसके प्रती वह जागरूक नहीं था, इस पत्र से ज उसको शिक्षा लेनी थी उसको वह कभी नहीं ले सका । जिसके कारण वह अपने युवा काल में मार दिया गया। यह दृष्टांत यह बताता है कि कभी भी अपने खतरनाक शत्रु पर वास्तविक आक्रमण करने से पहले आगाह नहीं करना चाहिए, जैसा की स्वयं काला नाग भी नहीं करता है, लेकिन इस कहानी कार शत्रुंजया ने किया जिसकी कीमत बाद में उसे चुकाना पड़ा।


इस पर देवी उमा ने कहा कहानी बहुत अच्छी है आपने क्यों बंद कर दिया इसको पुरा हमसे कहें, जब तक की फिर से यह अपने प्रारंभ तक नहीं पहुंच जाती है।


इस पर भगवान शिव ने कहा, हां देवी मनुष्य के कर्मों का परिणाम उसके साथ कभी नहीं सोता है, बहुत सी ऐसी वस्तुए होती है जो प्रारंभ तो होती है लेकिन वह कभी अपने अंत तक नहीं पहुँचती हैं, यद्यपि इससे कहानी को किसी प्रकार कोई नुकसान नहीं होता है। जो अपने अंत से ही शुरु होती हैं। क्योंकि ऐसी कहानी का सारा सार कहानी के मध्य में विद्यमान होता है। जैसा की आप को इस कहानी के में मध्य इस कहानी का सार प्राप्त होगा, जिससे यह कहानी पुरी हो जाती है फिर भी इस कहानी का कभी अंत नहीं होता है,


जिसके बारें में मैंने पहले बताया इससे इस कहानी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, रानी की क्या परेशानी थी, क्योंकि वह सभी औरतों में असाधारण औरत थी, उसके जैसा ना भूत में कोई हुआ है ना ही वर्तमान में कोई है और ना ही कोई भविष्य में ही होगा।


इस देवी उमा ने कहा ठीक है आग चले और पत्रों को स्वयं कहानी कहने दे उसमें जो भी हो इसको आप इसके अंत तक जारी रखिये। क्योंकि सभी प्रकार आलोचना या टिप्पड़ीयां मूल्यहीन होती है जो किसी अनजाने लेख के बारे में की जाती हैं।


2


और फिर भगवान शिव ने पत्रों का आगे लगातार पढ़ना जारी रखा, और कहा इसमें एक भी शब्द मूल्यहीन नहीं है इस लिए एक भी शब्द मैं पढ़ने से छोड़ नहीं सकता हूं, क्योंकि इसके पीछे जो कारण है उसको जानकार आप अच्छी तरह से जानती है। क्योंकि रानी ने मुझ से कहा था जब मैं अंतिम बार उनसे मिला था, जैसा मैंने बताया वहीं उनसे मेरा अंतिम दर्शन था। जब मैंने उनसे पूछा की आखिर वह मुझ से अब दोबारा क्यों नहीं मिलना चाहती हैं, तो उन्होंने कहा की यह मालिक की इच्छा है, उसने मुझे आदेश दिया की इस कुत्ते को मुझ से हमेशा के लिए दूर कर दीजिये। क्या उन्होंने उस आदेश का पालन किया या फिर मैंने किया था? और अब मैं इसको अच्छी तरह से जानता हूं, यह सब उन्होंने मुझ से यह सब कहने से पहले किया था। क्योंकि जैसा व्यवहार उन्होंने मेरे साथ किया ऐसा मेरे साथ इससे पहले कभी नहीं किया था। उन्होंने अपने पीछे होने के लिये मुझे धक्का दिया था। इसके बाद जब पहली बार हम उनसे मिले थे, जब उन्होंने मुझ से कहा मैं सब कुछ अच्छी तरह से समझती हूं, और मैं भविष्य में होने वाली घटना को देख रहीं हूं और आशा करती हूं जैसा मैं समझ रही हूं वैसा ही होगा। मुझे बताया की उनके पीछे देखने के लिये मुझे लोगों की दृष्टि से छीपना होगा। क्योंकि उनके सामने रह कर मैं वह सब कुछ नहीं देख सकता था जिसको वह होने वाले भविष्य में देख रही थी। और इसलिए उन्होंने मुझको अपराधी बना दिया, और वह स्वयं एक अपराधी बन गई, मेरा दावा उनके प्रेम के प्रती जो किया गया था क्या वह सत्य नहीं था? अथवा क्या मैंने वहीं कार्य किया जो एक भीरु पुरुष इस संसार में अपने लिये संरक्षित रखता है। जिन्होंने परदे के पीछे से एक औरत के रूप में रह कर उन्होंने अपने शत्रु पर आक्रमण किया था। मैं इस प्रश्न का उत्तर दुंगा, और इसको थोड़े समय में ही प्रमाण के साथ सिद्ध करुंगा। लेकिन इस समय मैं उनकी आँखों को खोलुंगा, और उनको बताउंगा।


बहुत समय पहले जब हर कोई महल में रहता था। और मैं भी वहीं रहता था, मैं वहां से क्यों निकल गया इसके बारे में हर कोई जान पायेगा की किस तरह से मैं उनसे छीप कर उनसे दूर हो गया, उनको धिक्कारने के बजाय, जैसा की आज मैं अपने को छद्म वेश में करके उनसे बचाकर निकल आया, साथ में अपने जीवन को भी नकली बना लिया है। और मेरे जीवन का उद्देश्य बना गया कि पहले हम उनके जीवन में विषैले और खतरनाक जहर घोल देंगे, और फिर हम स्वयं को सभी से दूर कर देंगे।


3


वस्तुतः इससे पहले मैं उनके किस तरह से मिला था, इसको मैं नहीं बता सकता हूं, कि वह मेरे लिए पुरस्कार था या मेरे लिए मेरे पिछले जन्म के कर्म फलों के कारण से कोई दण्ड था। क्योंकि इस घटना से मिलने वाला आनंद बहुत सस्ता है, यद्यपि इसकी पूर्णता के लिए सैकड़ों जीवन का बलिदान किया गया है। और भी इसमें आनंद से बहुत अधिक मात्र दुःख की है। और ऐसा तब हुआ जब में संसार का भ्रमण कर रहा था, जब मेरे साथ मेरे मित्र के रुप में केवल मेरी वीणा के कोई और नहीं था। क्योंकि सभी लोग जानते थे यह आवश्यक सत्य भी था। कि मैंने अपने विरासत में मिलने वाले साम्राज्य से मुख मोड़ लिया है। और अपने रिश्तेदारों से झगड़ा कर के उन सब का साथ छोड़ दिया है, और यह सब मेरी वीणा के कारण हुआ है। क्योंकि निश्चित रूप से जब एक बच्चा था, तब मैं शिवाय अपनी वीणा के किसी और की जरा भी कोई परवाह नहीं करता था, और जैसा की मैं सोचता था की मैं इस जन्म से पहले अवश्य अपने पिछले जन्म में जरूर कोई “गन्धर्व” अर्थात संगीत का देवता था। निश्चित रूप वीणा के तारों से तो यहीं सिद्ध होता था। जब मैं अपने हाथों से वीणा के तारों को स्पर्श करता था ऐसा लगता था जैसे किसी संगीतज्ञ द्वारा उनको बजाया जा रहा है, जैसे किसान अपने मजबूत बैलों को रस्सी के द्वारा अपने इच्छा के अनुरूप चलाता था, वैसा ही मैं भी वीणा के तारों अपने मन माफिक बजाता था। जब मैं उनसे निकलने वला स्वर लहरियों को सुनता तो बिल्कुल जहां का तहां शांत हो जाता था। जैसे कोई अपने मित्र की आवाज को अपनी आँखों में आँसू भर कर उसकी याद में सुनता है जो मर चुका है। हाँ यह बहुत अधिक आश्चर्यचकित करने वाला अद्भुत विस्मरण मेरे पिछले जीवन का था! क्योंकि मैं एक राजपूत राजा के यहां जन्म लिया था, इसके विपरीत औपचारीक रूप से अपने सामाजिक जाती प्रथा के अनुरूप मैं कार्य नहीं करता था। जैसा की राजपूत का धर्म होता है केवल मार काट करना है, उनका संगीत से कोई भी संबंध नहीं होता है। यही मेरे लिये भी उपयुक्त कर्म था लेकिन इसके विरोध में मैं एक वीणा वादक बन गया। और यह सब ऐसा ही था जैसे मेरी मां को गर्मी के मौसम में महल की छत पर चाँदनी रात में निद्रा ने अपने आगोश में कर लिया है, किसी विन्ध्य क्षेत्र के राजा के साथ, और वह हवा से नीचे जमीन पर देख रही है। क्योंकि स्वर्गीय आनंद हमेशा ऐसी काम पिड़ित परिस्थितियों में प्रारंभ होता है, यहां तक किसी सिद्ध पुरुष या ऋषि को भी इसी काम वासना के मनोभाव को उसके हृदय में जागृत करके उसको पथ भ्रष्ट किया जाता है। देवताओं के द्वार इसी प्रकार से मेरी मां इस काम के वशीभूत हो कर अपने सर को किसी राजा के बांह रूपी तकिये पर रख कर मध्य रात्रि में चाँद के प्रकाश में विश्राम कर रही थी। इसका मतलब इतना ही की वह बचपन से ही मेरे प्रती अत्यधिक लापरवाह थी। जब मेरा सब समय मेरे संगीत के प्रती ही समर्पित रहता था। मैं अपने सभी भाई बहन में सब से लंबा और सबसे शक्तिशाली के साथ एक शिकारी था। तब मैंने अपने इस दुर्भाग्य को चूना क्योंकि मुझे राज महल का जीवन किसी जंगली भील से अधिक श्रेष्ठ प्रतीत नहीं हो रहा था।


और ऐसा भी एक दिन मेरे जीवन में आया जब मेरे राजा पिता ने अपने एक सेवक मेरे पास भेज कर मुझे अपने पास बुलाया। और जब मैं राजा के पास पहुंचा, तो उन्होंने मुझ पर गहरी दृष्टि डालते हुए कहा, तुम अपना मार्ग भटक चुके हो, और फिर उन्होंने मुझे बताया कि शिवाय वीणा बजाने के दिन भी किसी दूसरे कार्य को नहीं करते हो, यह कार्य मेरे पुत्र के लिए कभी भी शोभनीय नहीं है अर्थात मेरे पुत्र के लिए किसी प्रकार से योग्य नहीं है। या फिर मेरे किसी गलत कार्य के परिणाम स्वरूप मेरे घर में मेरे पुत्र के रूप में किसी संगीतज्ञ ने जन्म ले लिया है। या यह मेरे साम्राज्य में किसी ने घुसपैठ कर लिया मेरे ना रहने की स्थिती में, जब मैं किसी दूसरे कार्य में व्यस्त था। कौन मेरे स्थान पर मेरा उत्तराधिकारी युवराज बनेगा? जब मैं अपनी जीवन लीला को समाप्त करके अपनी चीता पर चला जाउंगा। क्या तुम को नहीं लगाता है कि तुम अपने कर्तव्यों और जीम्मेदारियों को नजरंदाज कर रहें मात्र इस तुच्छ वीणा के तारों के लिये, इस वीणा को फेंक कर मेरे पास आओ। इस पर मैंने कहा नहीं कभी नहीं सैकड़ों राज्य को मैं कुछ भी नहीं समझता क्योंकि मैं राधा का भक्त हूं, और मुझे किसी राज्य का कोई भी परवाह नहीं है। इसको सुनते ही मेरा पिता आग बबूला हो उठा और उनकी आँखें क्रोध से लाल हो गई । और उन्होंने कहा यह तुम्हारे उपर निर्भर करता है कि तुम्हें क्या करना है, तुम अपने मर्जी पर चलते हो या फिर तुम मेरी इच्छा के अनुकूल कार्य करते हो, लेकिन मेरी इच्छा है की तुम एक रास्ता को चुनाव करो या राज्य या अपनी वीणा को, और जो मेरी इच्छा को नहीं मानोगें तो मैं तुम्हारी हत्या करा दुंगा। और तुम्हारे छोटे भाई को युवराज बना दिया जायेगा। इस पर मैंने कहा इस संसार में बहुत अधिक राजा और राज्य है, लेकिन मेरे जैसा वीणा वादक संसार में शायद ही कोई हो। आपको जिसको मर्जी हो उसको राजा बना दीजिए मैं तो अपनी वीणा को ही चुनता हूं। तब राजा ने कहा यह तुम्हारे लिए राज्य से बहुमूल्य हो तो तुम इसको लेकर अभी इस राज्य को छोड़ चले जाओ, मैं तुम्हें अपने राज्य से निष्कासित करता हूं, तुम हमारे लिए आज से मर चुके हो। इसको सुन कर मैं उनके सामने ही हँसने लगा, और वहां से दूर हो गया। अपने घोड़े को लेकर, मैंने हमेशा के लिये हँसते हुए अपनी वीणा को अपने गर्दन में लटका कर किसी तुड़ा के समान मान कर राज्य का परित्याग हमेशा के लिए कर दिया। और इसके बाद मैं उपर नीचे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घुमक्कड़ी करने लगा। इसके बाद भी अकसर रोज मेरे पास मेरी मां का संदेश आता था जिसको मैं अस्वीकार कर दिया करता था। जो मेरे लिये थैले भर कर रुपया और मेरे आवश्यक की सभी वस्तुओ को भी मेरे पास इस अनुरोध के साथ भेजती थी की मैं अपने राज्य में वापिस आ जाऊ, जिससे वह हमेशा निराशा को ही प्राप्त होती था। और मेरी कहानी केवल वीणा बजाने के और कुछ नहीं थी, मेरे बारे में लोगों में मुँह मुँह से हर तरफ जहां भी मैं जाता था लोग कहने लगे की, हां देखो वह शत्रुंजया जा रहा है जो एक पागल संगीतज्ञ है, जिसने राज्य से अधिक अपनी वीणा को महत्व दिया है और राज्य को किसी घास फूस की कुटिया की तरह से त्याग दिया है। अगर सभी लोग इसके समान इसके नीतियों का अनुसरण करने लगे तो राज्य का क्या होगा? और यह कितना बड़ा महा मूर्ख है जिसके लिए इस तीन लोक में सबसे अधिक बहुमूल्य शिवाय वीणा के तारों के र कुछ भी नहीं है।


4


अब तक वे सभी गलत सिद्ध हुए थे, क्योंकि इसके बारें में कोई भी नहीं जानता था एक वस्तु और है जिसकी परवाह मैं करता हूं जो मेरी वीणा से अतिरिक्त है। और इन सब पर मुझे बहुत अधिक आश्चर्य हो रहा था, मैं किसी ऐसी वस्तु को देख रहा था जो मेरे पीछे चला करती थी जहां भी मैं जाया करता था। और मैं भी उसका बहुत अधिक ध्यान रखता था। जिस प्रकार से सूर्य के साथ उसका अस्त होना लगा रहता है। और वह अब भी वह मेरे उपर लटक रही थी, वह मेरे आँखों के सामने हमेशा रहती थी, जिस प्रकार से कोई तस्वीर किसी दीवार पर लटकता है। इसलिए अकसर मैं जैसे ही किसी स्थान पर बैठता था तो उससे बातें किया करता था, जैसे की वह कोई जीवित वस्तु हो, अभी तक कभी भी मेरे किसी प्रश्न उत्तर उसने नहीं दिया है, वह पीछे से मुझे अपनी विचित्र दया से भरी आँखों देखा करती थी। जिसको देख कर ऐसा प्रतीत होता था कि वह मेरी बातों को सुन कर मुझ से उदास हो गई है, वह जो मेरे वीणा के साथ खेलती थी। और यह एक औरत थी, जो मेरे स्वप्न में आती थी, मेरा अपने पिता के साथ हुए झगड़े के कुछ दिन बाद से, मैं एक दिन दोपहर में ऐसे ही लेटा हुआ था। जब मैं जंगल का भ्रमण करते हुए नगर से काफी दूर निकल गया था। बहुत अधिक घोड़ पर सवारी करने के कारण बुरी तरह से थक चुका था और मेरे सर में दर्द होने लगा, इसलिए मैं आराम करने के लिए नदी किनारे एक वृक्ष के नीचे लेट गया जहां पर मुझे बहुत जल्दी नींद आगई। जिसके बारें मैं सोचता हूं कि मैं बहुत अधिक ऐसे ही बिना किसी उद्देश्य घूमता रहा लेकिन उस जगह कभी इससे पहले मैंने नहीं देखा था। तब तक अचानक मैं एक पहाड़ की चोटी के उपर पहुंच गया, जो एक झील से थोड़ीसी दूरी पर थी और वह कमल पुष्पों से भरी थी जो अस्त होते सूर्य की किरणों के प्रकाश से लाल हो रहे थे, जो उपर पहाड़ी की ढलान पर बिना हीले खड़े थे, जैसे वह मुझको देख रहे थे कि मैं वहाँ पर क्या करने वाला हूं, इससे पहले की मैं वहाँ से दूर निकल जाता। उससे पहले वहां एक विचित्र शांति छा गई जिसके कारण मुझे भय लगने लगा, जैसे वहां अभी तत्काल कुछ घटित होने वाला है, जिसके बारें मैं कुछ भी नहीं जानता था। इसलिए मैं वहीं गुप चुप अस्त होते सूर्य के साथ बिलकुल शांत होकर इंतजार करने लगा वहां जो होने वाला था। वहां पर मेरे अतिरिक्त कमल पुष्प और सूर्य के कोई भी नहीं था। इस सब के बाद तत्काल मैं अपने पीछे से आती हुई एक कोयल जैसी आवाज को सुना, जो बहुत धीरे से कह रही थी की मैं तुम्हारा यहां पर बहुत समय से इंतजार कर रहीं हूं क्या तुमने मुझको क्षमा कर दिया है?


इस पर मैं जैसे ही अपने पीछे धीरे से मुंड कर देखा! मेरे सामने एक औरत खड़ी था जो मुझको मुसकुराहट साथ देख रही थी। जो बिलकुल शांत अपने स्थान पर खड़ी, जिसको देख कर लगता था की वह तांबे से बनी प्रतिमा है, वास्तव में वह कमल पुष्पों के समान थी, जिसके शरीर पर अस्त होते सूर्य की किरणें पड़ रही जिसके कारण वह बिल्कुल लाल दिख रही थी, और उसके कपड़े गहरे लाला रंग में चमक रहे थे जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे ताड़ के पत्ते रात्रि के मध्य जलती आग के ज्वाला से चमकते हैं। और उसके घने बाल ऐसे लग रहे थे जैसे किसी तपस्वी ने अपने बालों का जुड़ा बना कर अपनी भौहों के उपर सज़ा रखा है, जैसे बादलों के मध्य में कोई मणि चमकता है, जो किसी तारे के समान प्रतीत हो रहा था, और उसकी आँखे कड़कड़ाती और चमकती हुई हीरे के समान अपने रंग को बदलती है जिसमें दूधिया रंग मिला हुआ है। जबकि उसके आँखों के नीचे तालाबों से प्रतीत होते थे जो पानी से नहीं चमकती हुई रोशनी से भरी हुई थी। जो मुझ पर एक टक जमी हुई थी, जैसे वह ध्यान मुद्रा में स्थित हों, जैसे उनमें मेरे प्रती आधा संदेह था की मैं मैं ही हूं कोई और हूं। और अब भी उसके होठों मुसकुरा रहें थे, जो अपने मुसकुराने का अर्थ व्यक्त नहीं कर रहें थे। क्योंकि उसका हंसना उसका साथ नहीं दे रहे थे, आत्मा की मधुरता से जो संचालित हो रहे थे, जिनके पीछे एक गुप्त अंजान धोखा था। और एक श्रेष्ठ अंड आकृति उसके चेहरे के चारों तरफ लकीर उभरी हुई थी, इसलिए कहते हैं अवर्णित स्थिती के नरम आकर्षण के साथ जिनके द्वारा धुंधला सुझाव देते है जिससे की कोई फल अपने पूर्ण रूप से परिपक्व हो खील जाता है जैसा कि स्वयं परमेश्वर ने बनाया है, जिसमें उसने इसके रूप को बनाते हुए कुछ अधिक जादुई स्पर्श के गुणों को मिश्रित कर दिया है। क्या इसके पीछे परमेश्वर की इच्छा है कि उसकी सभी कृत्यों में यह सबसे अधिक सौन्दर्य पूर्ण हो, जैसा कि देखने में कितना अधिक आकर्षक औरत है, जो एक लड़की के शरीर में अवतरित होती है! वह औरत उचित रूप से लंबी थी जो बिल्कुल सीधा खड़ी थी, जिसको देख मेरे सीने में मेरा हृदय बहुत अधिक अंदर ही अंदर हंस रहा था, जब की अब भी मैं उसको देख रहा था, क्योंकि जिसमें पूर्ण आनंद विद्यमान था। उसका आकार बहुत अधिक प्रतिष्ठित और प्रशंसनीय था जिससे उसके आत्मविश्वास की झलक मिल रही थी। जिसके उपयुक्त गोलाकार स्वादिष्ट वक्र कार बाँहों के साथ पतली कमर थी, जो प्रसन्नता के साथ उपर उठते हुए ऐश्वर्यशाली शानदार अद्वितीय छाती तक पहुंच रही थी जिस पर उसका हाथ ठहरा हुआ था। जिसे व अपनी उंगलियों से बहुत हल्के से छू रही थी। जैसे हवा पत्तों को हवा छूता है, जैसे बर्फ़ीले चोटियों पर जहां पर दो पहाड़ी एक हो जाती है। और जिनके मध्य में संसार के श्रेष्ठ वृक्षों में चीड़ के वृक्ष दूसरे वृक्षों को चुनौती देते हैं, उसी के समान वह अपने शरीर के भार को अपने बाएं पैर पर उठाए हुए खड़ी थी इसी प्रकार से उसका दाहिना हाथ उसके कूल्हे पर टिका हुआ था। विशाल चक्राकार उसके नितंब घुटनों से जुड़े थे। जो वहां से घूमते हुए बाहर की तरफ होते उसके पैरों की उंगलियों तक एका कार पूर्णता को उपलब्ध करते थे।


और इस तरह से मृत मौन में हम एक दूसरे को देख रहे थे,, अचानक वह मुसकुराते अपने हाथों को उपर उठा कर उनको एक साथ पकड़ लिया। और इसी पल सूर्य अस्त हो गया। और जैसे मैं वहां वृक्ष की जड़ के समान वहां खड़ा था जहां से असहाय भाव से चलने के लिए प्रयास करने लगा। वह वहां से लुप्त हो गई, बहुत धीरे से वापस फिर अचानक वह अंधेरे एक बार फिर प्रकट हुई, जैसे सूर्य प्रातः काल धीरे – धीरे आकाश में उदित होता है। और फिर साम को धीरे – धीरे अस्त है उसी प्रकार से वह भी वहां से लुप्त हो गई, मुझे आकाश में तारों के साथ अकेला छोड़ कर, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह बहुत दूर से देख कर मुझ पर टीम टिमा रहे थे। थोड़ा नीचे आकाश के किनारे से लाल आकाश की गहराई में, जहां से मैं बार – बार चलने का संघर्ष कर रहा था। निराशा और चिंता ने अपनी मजबूत बाँध रखा थ। और अचानक तेजी से रोते हुए जाग गया, और मैंने देखा कि मैं वही नदी किनारे अकेले पड़ा हुआ था जहाँ पर पहले सोया था।


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ऐसा मेरे जीवन पहली बार हुआ था, केवल मैं इसका मतलब जानता था, मेरे लिए शिवाय शब्दों के कुछ नहीं था किसी कहुं भी तो क्या? जिसका कोई अर्थ ही नहीं निकलती है। क्योंकि जैसे ही नदी के किनारे बैठा हुआ था, मैं जानता था की मैंने अदृश्य स्वप्न के साथ अपनी आत्मा को उसके पीछे छोड़ दिया था। और मेरा हृदय कुछ इस प्रकार से कराह रहा थे जिसके कारण बड़ी मुश्किल से सांसें ले पा रहा था, और मेरी आँखों से नदी की धारा निकल रही थी। यह जो भी मेरे साथ हो रहा था जिस पर मेरा कोई भी वश नहीं रहा। इस पर मैंने दुःखी हो कर अपने आप से कहा कि यह निश्चित रूप से बिना किसी संदेह के, कि मैंने किसी स्वर्गीय अप्सरा को अपने स्वप्न में देखा तो जो मेरे लिए तारों के दुनिया से आई थी। जिसको मैं कहीं भी इस संसार में कही भी तलाश सकता हूं। मैंने एक फल को पैदा होने से पहले ही खो दिया था। इसलिए अब मेरे पास करने के लिए केवल एक ही काम बचा था, कि मैं उसको मेरे स्वप्न में फिर आने का इंतजार करना चाहिए। इसके प्रति भी मैं पुरी तरह से आश्वस्त था कि उसे तलाशा नहीं जा सकता है। मैं अपनी इस दुःख स्वप्न शरीर में बिना उसके रहना मुश्किल ही नहीं असंभव होगा, और मैं इसका त्याग भी नहीं सकता बिना उससे मिले, मेरे लिए अपनी शरीर में रहना उसी प्रकार से था जैसे मछली एक पल भी बिना पानी के किसी मछली का रहना हो। मुझे इतना भरोसा था की कही ना कहीं वह अवश्य होगी, जिसके मैं प्राप्त कर सकता लूगा, यह कैसे संभव है कि कोई वस्तु केवल स्वप्न में ही स्थित हो? क्योंकि किसी मनुष्य के लिए उसका आविष्कार करना संभव नहीं है कोई मानव ऐसा कभी भी नहीं कर सकता है यहां तक स्वप्न में भी नहीं कर सकता है। यह हो सकता है की जब मैं सो रहा था तो मेरी आत्मा भ्रमण कर रही होगी। जिससे उसने उसे कही देख लिया हो। सच मैं इस प्रकार से मैं उसको कहीं प्राप्त कर सकता हूं। अगर मेरी आत्मा कहीं पर दोबारा उसको पहचान लिया तो फिर मेरे द्वारा उसको उपलब्ध किया जा सकता है। परंतु आह! मेरी शरीर मेरी आत्मा के समान आसानी से यात्रा नहीं कर सकती हैं, क्योंकि परमेश्वर ने पक्षी को छोड़ कर किसी दूसरे प्राणी को पंख देना ही भूल गया था। अब केवल एक रास्ता है उसे जल्दी से जल्दी प्राप्त करने का वह हैं की मुझे बिना किसी प्रकार के समय को व्यतीत किये और बिना कहीं रुके हर स्थान पर जाकर उसकी खोज करनी चाहिए, निश्चित रूप से जब तक वह मुझे प्राप्त नहीं हो जाती हैं अन्यथा उसे कभी तलाशा नहीं जा सकता है। अगर मैं अचल पर्वत पर ही इनके समान पड़ा रहा तो संभव है, इस लिए मुझे अपने संबंधीयों से बचने के लिए कोई योजना तैयार करनी होगी। इससे पहले किसी को पता चले की मैंने ऐसा क्यों किया?


जैसा मैंने सोचा ठीक मैंने वैसा ही किया यहीं सबसे बड़ा कारण है अपने रिश्तेदारों से अपना संबंध विच्छेद करने का, यहां तक मैं अपने पिता के द्वारा मिलने वाले राज्य का भी परित्याग कर दिया था। और तब से ही मैं रोज उसको अपने स्वप्न में उसको देखने का प्रयास करता रहा, लेकिन अब तक वह कभी भी मेरे स्वप्न में नहीं आई। हलाकी मुझे कभी ना अंत होने वाले स्वप्न तो आते है लेकिन मेरे स्वप्नों में मैं जंगलों और पहाड़ों के अतिरिक्त अनंत रास्तों पर घूमता रहता हूं ऐसा दिखता है। ऐसे रास्ते जिनका अंत मुझे कभी भी दिखाई देता है जैसे मैं जंगल और पहाड़ के मध्य कही रास्ता भटक गया हूं। और अकसर जब मुझे लगता है कि मैं उसे पाने वाला हूं लेकिन अंत में मुझे कुछ भी नहीं मिलता है। और विचित्र रूप से जो मुझे निराशा के सागर में घुटने के लिए मजबूर करते हैं। इस प्रकार की लगातार असफलता वास्तव में पहले से और अधिक साहस से भर देते हैं, जिसके कारण ही मैं कहता हूं, की यदी वास्तव में स्वप्न की सत्ता है तो सब कुछ स्वप्न ही है इससे अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।


यह निश्चित है बिना किसी संदेह के कि वह अवश्य वापिस आयेगी, जैसा की नियम है स्वप्न केवल चित्र की तरह हैं जिनके बारे में हम सब दिन में विचार करते है उन्हीं विचारों को ही दृश्य की तरह से रात्रि के समय निद्रा में स्वप्न की भांति देखते हैं। अब तक वह मेरे स्वप्नों में कभी भी नहीं आई है, हालांकि मैं दिन भर केवल उसके बारें में ही सोचता हूं। निश्चित रूप से ऐसा कोई चित्र नहीं है जिसको मैं अपने दिन भर में देखता हूं। या फिर कभी मैंने ऐसे किसी चित्र को ही देखा है। इससे स्पष्ट हैं कि सच में उसको सीधे मेरी आत्मा ही प्राप्त कर लेगी। जैस वह अपने रास्ते में भटक गई, और वह नहीं जानती है की किसी तरह से वापिस आयेगी।


जब से वह गई है उसकी जरा भी कहीं पर किसी प्रकार की झलक नहीं पाई है, इसलिए मैं वापिस अपनी वीणा पर पुनः एक बार एकाग्र हो गया, जो मेरे आत्मविश्वास का गुप्त राज है, जिससे मैं अपनी निराशा और अप्रसन्नता को अपने से दूर रखने में समर्थ हो पाया हूं। मैं जब भी अपनी वीणा के तारों को छेड़ता हूं तो सिर्फ उसको ख़यालों में ही रहता हूं, इसलिए सामान्यतः ऐसा प्रतीत होता है की मेरे वीणा की ध्वनि हवा की लय बन गई है। जिसको श्रोता सुन कर कहते हैं कि बिना किसी संदेह के यह वीणा वादक अवश्य किसी किन्नर का अवतार रूप से है, क्योंकि इसके संगीत की ध्वनियों में को सुन कर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि खोखला बांस समन्दर की लहरों पर सवार हो कर किसी झरने से गिरते हुए किसी बर्फ़ीले पर्वतों से हो कर गुजरता है, और इसकी वीणा जैसे रो रही है, किसी असहनीय हृदय की पीड़ा को जिसे गुप्त कृतिम शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है। यह अवश्य ऐसी कहानी होगी जिसको व्यक्त नहीं किया जा सकता है। यह वीणा वादक जब भी अपनी उंगलियों को वीणा के तारों पर चलाता है, तो उसके में से असहनीय दर्द का सागर जाने क्यों झरने लगता है? मैं इस दर्द भरें संगीत के कारण ही विश्व के हर कोने में प्रसिद्धि को उपलब्ध होने लगा था। जिस प्रकार से मलय पर्वत पर से चंदन की खुशबू हवा के साथ मैदानों क्षेत्रों तक पहुंच जाती है।


और फिर इस प्रकार से अंत में एक दिन ऐसा मेरे जीवन में आता है, जब मैं अपनी यात्रा के दौरान कमल पुरा से गुजर रहा था। जब मैं वहां के चारों तरफ के प्राकृतिक सौन्दर्य को देख कर प्रसन्न हो रहा था, जिसमें कमल पुष्पों से सुसज्जित नदी के साथ दूर तक वृक्षों का झुरमुट में था, वहीं पर मैंने एक छोटा से चार दीवारी से घेरे घर को देखा जहां पर कुछ दिन आराम करने के लिए ठहर गया। वही पर एक दिन सुबह मुझ से मिलने के लिये उस नगर का एक संगीत कार आया, जिसे मेरे वीणा बजाना बहुत अधिक पसंद था। जिसने मुझ से कहा शत्रुन्जया आप तारावली के सामने अपनी वीणा को क्यों नहीं बजाते हैं? और इस पर मैंने कहा कि तारावली कौन है? जिसके पास जा कर मुझ को अपनी वीणा बजाना चाहिए, जैसा कि आज तक मैं कभी किसी के पास जा कर अपनी वीणा को नहीं बजाता हूं। इस पर वह हँसते हुए जोर से कहने लगा कि इसका मतलब क्या है कि तारावली कौन है? जो इस राज्य की रानी है क्या आपने कभी तारावली के बारें में कभी भी कुछ नहीं सुना है? इस को सुन कर मैंने कहा इस प्रकार की किसी औरत के बारे में कभी सुना होगा, लेकिन कभी ऐसी तारावली नाम कि किसी रानी के बारे में नहीं सुना है। मैंने ऐसा बहुत पहले अकसर सुना करता था जो इस राज्य में आते जाते थे, क्योंकि लोगों से ऐसा सुना हैं कि यहां के नागरिक कभी भी किसी से इनके बारें में कुछ भी ना कहते ही हैं और ना ही उनके बारे में सुनना ही पसंद करते हैं, जैसा कि स्वयं उसने अपने लोगों से में ऐसी व्यवस्था की है। तब ही मैं उसके बारे में निश्चित हो गया कि वह एक स्वतंत्र औरत है, जो अपनी तरह से अपने जीवन के जीती है, जैसा की हवा लग-भग कहीं से कुछ भी अपने साथ नहीं लेती है अथवा उसको कोई क्या कहता है? इससे उसे कोई मतलब नहीं होता है। इस पर उस संगीत कार ने कहा चले और उनसे कहते है कि लोग उनके बारे में क्या कहता हैं? यद्यपि वह स्वयं एक संगीतज्ञ हैं, और वह स्वयं वीणा को बजाती हैं, सिर्फ वीणा ही नहीं बजाती है, यद्यपि उन्होंने आपके बारें में बहुत कुछ सुन रखा है और जिसके कारण वह आपसे मिलने के लिए बहुत अधिक उत्सुक ऐसा उन्होंने स्वयं मुझ से कहा है। इस पर मैंने बेपरवाही के साथ यह जिज्ञासा परिपूर्ण नहीं है, मेरी समझ से तो बिलकुल ही नहीं है, इसके अतिरिक्त मैं एक स्वतंत्र औरत को उतना अधिक पसंद नहीं करता हूं, इससे कोई फर्क मुझे नहीं पड़ता है भले ही वह एक रानी ही क्यों ना हो। इसलिए हम दोनों के लिए यहीं भला होगा की हम उसकी जिज्ञासा को अशांत ही रहने दें। इसके बाद उसने कहा इसीलिए आपको एक पागल संगीतज्ञ के नाम से जानते हैं, क्योंकि आप किसी दूसरे मनुष्य को पसंद नहीं करते है। जिसने अपने साम्राज्य को अपनी वीणा के लिए त्याग दिया हैं, और अब एक स्त्री को एक पत्थर के समान व्यवहार कर रहा है, तारावली के जिज्ञासा को जानने के बाद भी, जो एक ऐसी वस्तु है जिसके बारें कोई दूसरा मनुष्य दिन भर नाचता रहता है जैसे बादलों के घेरे पर मोर नाचते रहते हैं। और आप है कि जो उनके साथ एक पत्थर के समान व्यवहार कर हैं, यह आपका बहुत बड़ा अज्ञान है जो आप तारावली को नजरंदाज कर रहे हैं। इस पर मैंने कहा वह किस प्रकार की है, इस पर उसने कहा वह संसार में अतुलनीय है उनके जैसा संसार में कुछ भी नहीं है। इसलिए उसके बारें में संपूर्ण रूप शब्दों से नहीं बताया जा सकता है, केवल उनको देखा जा सकता है। इस लिए आप के पास केवल एक रास्ता है कि आप अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए, उनके पास चलकर स्वयं आपको उन्हें देखना होगा। इस पर मैंने कहा तब इस प्रश्न का कभी भी उत्तर प्राप्त नहीं होगा क्योंकि मैं उससे देखने के लिए नहीं जाउंगा। मैं कोई पालतू जानवर नहीं हूं कि जहां पर भी मुझे बुलाया जायें वहां पर मैं चला जाउंगा, मैं स्वयं एक जंगली जानवर के समान हूं। इस पर उसने कहा हां! परंतु जंगली हंस भी उनके महल के मानस झील में अपनी स्वेच्छा से आते हैं, आप भी युवा जंगली हंस की तरह से हैं, इसलिए आप भी इतनी कठोरता के साथ महल में जाने से स्वयं को मना कर रहें हैं, जिसके सिर्फ वहीं पर देखा जा सकता है जिसको कभी भी रेगिस्तान में नहीं देखा जा सकता है इस प्रकार की मानस झील की समान स्वयं तारावली है। और आप रेगिस्तान के हंस के समान व्यवहार कर रहें हैं। इस प्रकार के उत्तर को सुन कर मैं अपनी वीणा को उठा लिया और उनके तारों पर अपनी उंगलियों को चलाने लगा।


इस पर वह खड़ा हो गया और, खिड़की से होकर आती हुई आवाज की तरफ वह बाहर देखने लगा, और फिर वहां से तेजी से घूमते हुए उसने कहा यदि आप में उनसे मिलने की कोई जिज्ञासा नहीं है तो इसका मतलब है की आप में किसी राजा पुत्र होने के गुण बिलकुल नहीं है, आप एक असभ्य हैं जो आप तारावली के आमंत्रण को अस्वीकृत कर रहें हैं, अगर उसने आपको बुलाया तो आपको अवश्य उसके पास जा कर उसे देखना चाहिए। इस पर मैंने कहा हम ऐसा क्यों मान जैसा की कभी नहीं होने वाला है? निश्चित रूप से ऐसी एक स्वतंत्र किस्म की औरत कभी अपने आपको लंबे समय के लिए एक भिक्षु के समान नहीं बना सकती है, और अपने मस्तक को हर घुमक्कड़ के लिए नहीं झुका सकती है जो एक शहर से दूसरे शहर में यूं ही घूमता रहता है। इस पर उसने हँसते हुए कहा सच में आप स्वयं अपना दरवाजा उसको देखने से बंद कर रहें हैं, इसको जानने के बाद भी की उसके समान सुन्दर कोई दूसरी औरत इस संसार में नहीं है जिससे उसकी तुलना की जा सके। यहां तक एक भिक्षुणी भी किसी का स्वागत करने के लिए तैयार सिर्फ अपने अहम या स्वयं को उचा उठाने के लिए ही होगी। जैसा की प्रकृति ने उसके ऐसा बनाया है जिसके कारण वह सभी औरत से नफरत करेगी। और इस पर मैंने कहा की मैं क्यों सभी औरतों से नफरत करता हूं? जो स्वयं को उनमें कभी नहीं समझती है।


इस पर वह मुझे लंबे समय तक एक चित्त देखता रहा, फिर उसने कहा कौन जानता है? हालांकि जो सभी वस्तुओ में अकेली हैं, यह भी हो सकता है की आप जो कह रहें हैं वह भी सत्य हो, लेकिन इस पर विश्वास करना, और आप जैसे युवा व्यक्ति के मुँह से सुनना असंभव जैसा लगता है। जैसा आप कह रहें है इससे ऐसा प्रतीत होता कि आपका हृदय खाली है जिसको सिर्फ तारावली ही आसानी से भर सकती है। क्योंकि वह एक रेगिस्तान जैसे मरुस्थल हृदय की तरफ भी यदी एक झलक देख ले, तो उस हृदय में भी सागर हिलकोरे लेने लगेगा। और उसमें भी उबाल उठने लगेगा जिससे उसके चारों तरफ नमक पैदा हो जायेगा।


और फिर वह मेरे पास से चला गया, और तत्काल मैं उसके बारें में सब कुछ भूल गया, इसके साथ मैं दोबार अपनी वीणा की दर्द भरी स्वर लहरियों के साथ अपनी स्वप्न सुन्दरी के स्वप्न में खो गया।


6


लेकिन अगले दिन सुबह, जब मैं जागा, उसके सभी शब्द मुझे फिर सुनाई दिए, और मुझको उदासी से भर दिया। जिससे मैं उसके बारें में बहुत गहराई से सोचते हुए अपने विस्तर पर बैठ गया, और अपने आप से कहने लगा, और अब इसके बाद, इसके शब्दों का मतलब इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता है कि वह स्वयं रानी की एक शुभ चिंतक की तरह से कार्य कर रही है। जो एक विधि की तरह से रानी के द्वारा उपयोग की जा रही है, जिससे मैं रानी पास जा कर उसको देखुं। जबकि यह सुनिश्चित नहीं है कि मैं उसके पास जाउंगा या नहीं। ऐसा प्रतीत होता है कि रानी के संगीत का जादू लोगों को अपने वश में कर लेता है, जिससे वह सब उसकी प्रशंसा करने में स्वयं को गौरवान्वित करते हैं, जब की यह सभी लोग नहीं जानते हैं कि वह एक रानी भी है। सभी रानीयों से भिन्न यह रानी यह नहीं जानती है कि यह औरों के समान संसार को नहीं समझती है, ना ही उनके समान किसी कार्य को ही करने में ही रुचि रखती है। लेकिन अब मैं एक घूमने वाला बेच दिया जाउंगा, जिससे मैं बचने का प्रयास कर रहा था, इससे बचने के लिए मुझे तत्काल जाकर अपने घोड़े को तैयार कर के यहां से निकलना चाहिए, हो सकता है कि वह निराशा में किसी तांत्रिक साधना में लग गई हो। क्योंकि वह किसी पक्षी को आकाश में उड़ने नहीं देना चाहती है जिस रोकने के लिए वह किसी हद तक जा सकती है।


इसके बाद मैं धीरे से अपने विस्तर से उठ कर दरवाजे के पास गया, और मैं जब खिड़की से बाहर गली में देखा तो वहां पर एक औरत खड़ी हुई दिखाई दी। और वह हमारे दरवाजे के पास आकर दरवाजा खट – खटाने अंदर आने के लिए, जैसे ही मैंने दरवाजे को खींच कर खोला, वह बहुत करीब आकर मेरी बांहों में गीर गई। और फिर उसने हंसना शुरु कर दिया, मैंने रिक्तता पूर्ण अद्भुत आश्चर्य के साथ उसको देखा। क्योंकि वह किसी दिव्य अवतारी औरत के रूप में मुझे प्रतीत हो रही थी। उसकी सुन्दरता को देख कर ऐसा लगता था जैसे वह कोई अप्सरा है जिसने अपने पूर्ण यौवन को प्राप्त कर लिया है जिसने लाल रेशमी वस्त्रों को अपनी शरीर पर धारण कर रखा है, जिसमें सोने के तारों से कढ़ाई की गई थी, इसके साथ उसने अपने हाथों में सोने की चूड़िया, पैजनी और गले में हार को धारण किया था, अपने साड़ी के एक किनारे को पकड़ कर घूँघट के रूप में अपने सीर पर रख रखा था । वस्त्रों से उसके शरीर के सभी अंग छिपे हुए थे, जिससे उसकी बांहों पर स्वर्णिम आभा मंडल घेर रखा था, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई सुनहरा बेल उन पर चढ़ा हुआ हो। इसलिए मैं उसके घूँघट के अंदर से झाँकती सिर्फ उसकी आँखों को देख पा रहा था जो मुझ पर केन्द्रित थी। मैं दरवाजे को पकड़े हुए लगभग निराश और अपनी उदासी के साथ उसको देख रहा था, जिसके कारण मुझ में एक प्रकार का अंजान भय भी था, जो कह रहा था कि इस सब के बाद भी मैं बाँध लिया गया और बांधने वाली यहीं है। जो अपनी स्वेच्छा से मेरे पास आती है। और अंत मैं हिचकिचाते हुए उससे कहा कि क्या तुम तारावली हो?


और तभी एक विचित्र आह्लाद के साथ हंसी कै सैलाब फुट पड़ा, और उसने कहा मैं तारावली, क्या तुम पागल होगये हो? अथवा क्या तुम कल्पना करने लगे की तारावली लोगों के दरवाजे तक आयेगी? हां! अवश्य है कि अब भी तुम तारावली के ख़यालों में खोये हुए हो। क्या तुम इस तरह से चाहते हो की हमारी बातों को गली सभी लोग सुने, तुम मुझे अंदर तो आने दो। इस पर उसे अंदर आने के लिये मैं एक तरफ हो गया, जिससे वह जल्दी से दरवाजे की कड़ी को पकड़ते हुए दरवाजे के अंदर आगई, दरवाजे के कुण्डी को इसलिए उसने पकड़ रखा था की जब उसकी इच्छा हो तो वह निश्चित रूप से दरवाजे से बाहर निकल सके। और उसने कहा क्या आप वीणा वादक शत्रुंजया हैं? मैंने कहा हां मैं ही हूं, फिर उसने कहा की आपने अपनी हत्या को लगभग निश्चित कर लिया है, क्योंकि यह एक असाधारण तुम्हारे लिये अभाग्य का उदय है कि मैं रानी तारावली के साथ हूं। इस सब के बाद भी आप अपने कर्मों के परिणाम के बारे में बिचार नहीं कर रहे हैं, मैं स्वयं तारावली नहीं हूं यद्यपि मैं उसकी छाया के समान हूं, और मैं कभी भी उससे दूर नहीं रहती हूं, क्योंकि मैं उसकी विश्वस्त सेविका हूं। मैं यहां तुम्हारे पास उसका संदेश को लेकर आइ हूं, संदेश यह है कि वह आपकी शिष्य बनना चाहती है, उसे शत्रुंजय की जरूरत है, जिसमें एक गुरु ही उसकी सहायता कर सकता है उसको वीणा की कुछ धुन क बजाने में व्यवधान आ रहा है। जिसके लिये वह आपका अपने बाग़ीचे में सूर्य के अस्त होने पर इंतजार करेगी।


इस पर मैंने उससे कहा ओ लाल सुन्दरी तुम्हारा नाम क्या है? इस पर उसने कहा की मेरा नाम चतुरीका है, फिर मैंने कहा चतुरीका तुम वापिस जाओ और रानी से जा कर कहना की मैं उसके लिये उपलब्ध नहीं हूं, मैं उसके पास नहीं आऊँगा, और यहां उसके लिये सोना रखा है। इस पर वह हँसने लगी, और अपने सुन्दर बाँहों को हवा में लहराते हुए, अपने हाथों से दरवाजे के हत्थे को पीछे से पकड़ते हुए उस पर टेक कर अपने धार दार नशीली आँखों से देखने लगी। इसके साथ अपने शीर को एक तरफ थोड़ा सा झुकाते हुए, मुसकुराते हुए मुझ से कहा एक बार दोबारा फिर से विचार कर लो, संगीत के गुरु क्योंकि इससे सुन्दर गीत तुमने अपने जीवन में कभी नहीं सुना होगा। वह जब किसी के पास आती है तो अमृत तुल्य है और वह किसी से दूर जाती है तो जहर के समान होती है। और हां वह एक दुर्लभ किस्म का अमृत है जिसका आपने कभी अपने स्वप्न में भी स्वाद नहीं लिया होगा। सूर्य अस्त! को याद रखना, इसके बाद उसने अपनी उंगलियों से मुझको झकझोरा, फिर वहां से अचानक उसने दरवाजे को खोल कर उससे बाहर निकल गई इसके बाद दरवाजे को बंद कर दिया। वह मुझे पीछे से जाते हुए स्वयं को देखता हुआ अकेला छोड़ कर वह जा चुकी थी। वह आई और कब चली गई जैसे यह सब किसी स्वप्न जैसा ही प्रतीत हो रहा था। इसके बाद आश्चर्य के साथ अपने आप से कहा, बिना किसी संदेह के, उसके बात करने के लहजे से ऐसा लग रहा था, जैसे उसको मेरे स्वप्न के बारें में कुछ ज्ञात नहीं था। उसकी मात्र एक दृष्टि ने मुझे मेरे अंदर से झकझोर दिया था, क्योंकि उसके आँखों निशाना सीधा मेरे हृदय के केन्द्र तक पहुँच रहा था। जैसा की उसने स्वयं कहा था कि वह अपनी मालकिन के सदृश्य उसकी छाया है, इससे मुझे पूर्ण विश्वास हो चुका है कि वह ना ही मालकिन है और ना ही उसकी सेविका ही है, और ना ही कोई उसके समान कोई दूसरा ही है जो मेरे स्वप्न को समझ सकता हो। लेकिन सब कुछ एक समान है क्योंकि मैं उसकी जाल में फंस चुका हूं, लेकिन अब मुझको क्या करना चाहिए? क्योंकि वह मेरे पास से जाने के बाद सब कुछ अपनी रानी को बतायेगी, और यदि मैं उसके पास नहीं गया तो बार –बार अनुरोध करने प भी तो वह एक प्रकार से रानी का अपमान मेरे द्वारा किया जायेगा। जिसको रानी कभी भी नहीं भूल सकेती है, और यह एक प्रकार से रानी का आदेश भी मेरे लिए हो सकता है। जिसकी वजह से मेरे लिये रानी के अनुरोध को ना स्वीकारना मेरे लिए बहुत कठिन होगा। यह रानी और इस की सेविका मेरे लिये एक भंयकर समस्या का रूप धारण कर सकती है, अगर मैंने उनसे मिलने में किसी प्रकार की देरी को किया, इससे बचने का रास्ता एक है की मैं यहां से शांति के साथ कहीं दूर चला जाऊ, जिससे मैं बिलकुल साफ – साफ बच सकता हूं।


इसी के बारें में काफी समय तक विचार विमर्श करने लगा, मेरे द्वारा यह अन्याय होगा, या फिर मैं जाऊ या नहीं जाऊ। अंत में मैं स्वयं से जोर से कहा की मैं उसको एक मौका अवश्य दुंगा, और मैंने अपनी कटारी को म्यान से बाहर निकाल लिया, और इस निर्णय के सात हवा में फेंक दिया की यदि यह अपने निश्चित स्थान पर गिरती है तो मैं रानी से मिलने के लिए जाउंगा और यह यदि अपने निश्चित स्थान पर नहीं गिरती है तो मैं उसके पास नहीं जाऊंगा, लेकिन मेरा दुर्भाग्य था की मेरी कटारी अपने निश्चित स्थान पर ही गीरी जिसके अनुसार मुझे रानी से मिलने के लिए सूर्य अस्त होने पर जाना पड़ेगा। इससे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे की चातुरीका अपने अंगुली को हिलाते हुए कह रहीं हो देख लो तुम्हें रानी से मिलने सूर्यास्त पर जाना जिसे तुम चाह कर भी अस्वीकृत कर सकते हो।


इस सब के बाद मैंने अपने को सभी विचारों से मुक्त कर लिया, और साम को रानी से उसके बाग़ीचे में मिलने के लिये शहर की गली में निकल पड़ा। बिना किसी स्वेच्छा के धीरे – धीरे महल की तरफ बढ़ रहा था, और जब मैं महल के पास पहुँच गया तो ठीक उस महल के दरवाजे के सामने जा कर खड़ा हो गया। और अपने आप कहा यहां से भी अभी वापिस हुआ जा सकता है, फिर मेरे हृदय ने कहा यह ठीक नहीं है, इस पर मैंने अपने मन में कहा की मैं सौ तक गिनती गीनुगा इसके बीच में यदि कोई महावत अपने हाथी पर सवार हो कर मेरी तरफ आयेगा तो मैं रानी से मिलने के लिये जाउंगा अंयथा नहीं जाउंगा। मैंने गिनती को शुरु किया अभी पचास के करीब पहुंचा था कि एक महावत अपनी हाथी क अपने अंकुश से हाँकते हुए सामने से मुझको दिखा जो मुझको अपनी छोटी – छोटी आँखों से देख कर हंस रहा था। और जैसे कह रहा था की यह रानी से मिलने का समय है। क्योंकि मैं अपने जीवन में कभी भी इतना करीब तारावली नहीं आया था।


7


इस प्रकार से अंत में मैंने जाना का मेरा दुर्भाग्य प्रबल है जो मेरे उपर हावी हो चुका है, जिसमें मेरी कोई भी किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकता है। इस प्रकार से अपने अंदर विचारों के साथ संघर्ष करता हुआ महल के दरवाजे के पास पहुँच गया। और मैंने वहां दरवाजे पर एक सेविका के द्वारा मुझको यह ज्ञात हुआ की मैं कौन हूं? जिसने मुझे महल के अंदर ले जाने में मेरा नेतृत्व करने लगी, मैं उसके साथ बहुत से बड़े कमरों और गलियारों से चलते हुए, अंत में एक बड़ी दीवाल के पास पहुँचे, जिसमें एक बड़ा दरवाजा लगा हुआ था, जिसको परदे से ढका गया था, परदे के किनारे में चाभी से खोलनें के लिये ताला लगा हुआ था। जिसको सेविका ने चाभी से खोला मुझको अंदर करके वह स्वयं बाहर हो गई और दरवाजे को झटके साथ बंद कर दिया। दरवाजे के पीछे मैं अकेला कुछ समय खड़ा रहा फिर मैं धीरे – धीरे जहां मुझको मेरे पैर ले जाते वहां चलने लगा। उस स्थान को देख कर लगता था की वह एक बग़ीचा है जिसका अंत मुझे कहीं भी नहीं दिखाई दे रहा था। वस्तुतः वह किसी विशाल जंगल के समान था जहां पर विशाल वृक्षों की श्रृंखला एक कतार में दूर तक खड़े थे, जहां मैं बना किसी दिशा निर्देश के धीरे –धीरे आगे बढ़ रहा था। मैंने स्वयं से कहा की यहां पर मैं बिल्कुल अकेला हूं मुझे हो रहा था की मुझको कही भी रानी नजर नहीं आ रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी वस्तु की खोज में स्वयं को ही खो दिया है। इस प्रकार से धीरे – धीरे मैं उसके बारें में भूल गया क्योंकि मैं उस महल के सौन्दर्य को देख उससे अभिभूत हो गया था। जिसके आश्चर्य को देख कर मैंने स्वयं से कहा यह कोई सामान्य जंगल के समान नहीं है अपने आप में असाधारण है जिसको साधारणतः लोग बग़ीचा नहीं कहते हैं, निश्चित रूप से इसके जैसा संसार में कोई दूसरा स्थान नहीं है, क्योंकि यहां पर शिवाय वृक्षों के कई प्रकार के फूलों मैंने देखा था। और वृक्षों में भी केवल चार प्रकार के ही वृक्षों की संख्या सबसे अधिक थी, जिसमें चम्पक, शाल, न्यागरोधा और बांस थे, यह वृक्ष सैकड़ों की संख्या में थे, जो अपने आप में बहुत विशाल और मोटे थे। यह सब एक साथ एक आश्चर्य को व्यक्त कर रहे थे। चम्पा और शाल के वृक्ष फूलों की खुशबू से महक रहें थे। जिसके कारण वहां की सारी हवा खुशबू से भर गई थी। जो आकाश में चमक रहे थे, इसके साथ बांस के वृक्ष खंभे के समान आकाश को छू रहे थे जो मोटाई में मेरी शरीर के समान थे, जिनके उपर के कल्ले नीचे मेरे शीर के उपर झूल रहे थे, न्याग्रोध की साखा आपस में एक साथ लिपटते हुए किसी सर्प के समान औरत के गोल अंगों जैसे लग रहे थे, जिन को देख कर ऐसा लगता था मुझको कि वह सब मुझे देख रहें हैं, और उन सबने लकड़ी की बांहों को धारण कर रखा है। इनके मध्य में मुझको ऐसा लग रहा था कि मैं किसी स्वप्न को देख रहा हूं जिसकी रक्षा के लिए कोई यक्ष और यक्षिणी निवास करते हैं, और वह मुझे वहां पर चलते हुए देख रहें हैं। इसके बाद मैंने अचानक वृक्षों के मध्य में से उपर बहुत दूर पूर्व आकाश के छोर से चाँद को देखा जो धीरे – धीरे उदित हो रहा था। जैसे रात्रि का सूर्य आकाश में प्रकट हो रहा है। जिन को सिर्फ मैं ही नहीं देख रहा था यद्यपि वह भी मुझे देखने के लिए सूर्य के अस्त होने के बाद आ रहे हैं। इसके अनंतर मेरा आत्मा में अचानक भय व्याप्त हो गया, जैसा कि मैं धीरे – धीर वहां चल रहा था और यह नहीं जानता था की मैं कहां जा रहा हूं। इसके बाद तत्काल एक छत के उपर अपने आप को खड़ा पाया, और ठीक मेरे नीचे एक सुन्दर झील बह रही थी, जिसका पानी काला और लगभग बिल्कुल शांत था और वह पुरी तरह से कमल पुष्पों से भरी हुई थी जो सीधे ऐसे खड़े थे जैसे की वह शीशे में स्वयं को देख रहे हों, जिनकी पंखुड़ी अस्त होने सूर्य के प्रकाश के कारण लाल दिख रही थी। जो तत्काल अदृश्य होने वाली थी।


और मेरे हृदय में जैसे बिजली का झटका लगा हो अचानक जिससे मेरी आत्मा में अजीब चमक जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसमें मेरा हृदय जैसे बंधा हो और वह हमारे शरीर से निकलना चाहता हो, जिसको जान कर मैं अचानक हृदय वेदना से चीख पड़ा, और मैंने स्वयं से कहा यह झील क्यों कमल पुष्पों से भरी है। और इसी अस्त होते सूर्य के साथ मैंने अपने स्वप्न में देखा था। जैसे ही मैंने ऐसा कहा तभी मेरे पीछे से मधुर धीमी औरत का आवाज को आते हुए मैंने सुना। जिसने धीरे से कहा मुझे संदेह था की मैं लंबे समय तक केवल आपका इंतजार करूंगी और आप मुझे भूला देंगे।


और तत्काल मैं चिल्ला उठा वहीं शब्द! शब्द! और मैं तेजी से पीछे घूमा जिस प्रकार से कोई पत्ता हिलता हो, जिसके साथ मेरा हृदय मेरे शरीर में किसी ढोलक की तरह बज रहा था। धीरे! वहां मेरे बिल्कुल पीछे मेरे पीछे मेरे स्वप्न में आने वाली स्त्री खड़ी थी। जिसके नीले गहरे रंग के कपड़े अस्त होते सूर्य की किरणों के कारण तांबे के समान चमक रहें थे और उसके लंबे और घने बालों में जैसे तारे झिलमिला रहें थे। बिल्कुल पहले जैसी ही लग-भग सीधे खड़ी थी, जैसे अपने सुडौल संगीतमय शरीर को विश्राम देने की मुद्रा में हो, अर्ध मुख से मुसकुराते हुए, अपनी चमकती आँखों के साथ। मैं जानता था की मैं अपराधी एक अपराधी था निश्चित रूप से उसके आकर्षक चुंबकीय व्यक्तित्व को देख कर स्वयं को लग-भग पुरी तरह से भूल चुका था। निश्चित रूप से आपने अपने हृदय में स्वयं को डाटते हुए नहीं देख सकते हैं। और किसी दूसरी तरह से कहें तो उसके आस पास एक अद्भुत खुशबू महक रही थी। जिसमें एक गंभीर प्रसन्नता के साथ उसकी आज्ञा पालने के लिये विवश कर रहें थे। जिस मधुरता के साथ अभी – अभी उसने बात की थी, जिसमें कुछ रहस्यात्मक प्रशंसात्मक संदेश को संचारित कर रही थी। जैसा कि उसकी भरसक इच्छा थी की उसकी आज्ञा का अवश्य पालन किसी भी सर्त पर किया जाये। जिसने अपने एक हाथ में पीले तारों वाली वीणा के नीचे लटका रखा था। जबकि दूसरे हाथ से अपने गले में बहुमूल्य मोतियों के हार के साथ खेल रही थी। जो समन्दर के समान उसके सीने पर झूल रहे थे। जो उसकी शांस के साथ उपर नीच हो रहे थे। और मेरे सामने खड़े होकर मुझको देख रही था। किसी करीबी प्रिय मित्र की भाती निर्दोष दैवीय अप्सरा की तरह से, जो किसी असाधारण यंत्र के द्वारा बदल चुकी हो जिसमें से कामुकता की खुशबू बह रही थी जो अपने विरोधी पुरुष को अपने नशे के आगोश में करने के लिये ही अवतरित हुई हो। जो कहना चाहती है की कितने प्रियतम अपने प्रियतमा को अपने मित्र की तरह से देखते हैं, जब भी वह किसी औरत की आँखों में देखते हैं।


मैं बिल्कुल शांत एक चित्त उसके सामने खड़ा हो कर उसे देख रहा था और मेरी आत्मा मेरे शरीर से निकलने के लिए संघर्ष कर रही थी। जैसे की वह मुझको किसी भी छड़ पहचान सकती है, जिसका दावा होगा की उसकी आदेश का पालन होना ही चाहिए। और मैं उसकी तरफ अपने बढ़ने के लिए अपने कदम को बढ़ाया अपने दोनों हाथों को फैलाते हुए, और तभी मैं तीखी चीख के साथ रो पड़ा जब मैंने स्वयं को देखा की मूर्छा अवस्था में मैं उसके क़दमों में पड़ा हुआ था।


VIII


और जब मैं अपने होश हवास में वापिस आया, और अपना आँखों को खोल कर उसको देखा कि वह मेरे पास में ही खड़ी थी और जो झुक कर अपनी आँखों में करुणा को भाव को भर कर मुझ को देख रही थी। इसके बाद जैसे ही मैं भ्रम के साथ अपने क़दमों पर खड़ा हुआ, उसने जल्दी से कहा, नहीं आपके लिये खड़ा होना ठीक नहीं होगा कुछ देर आप यही पर बैठे रहें। जब तक आप पुरी तरह से ठीक नहीं हो जाते हैं। क्या अभी आप बीमार हैं, अथवा अचानक आप के साथ क्या हो गया? और मैं उसको देख रहा था, जैसे मैं निश्चित करने चाहते था अपने आप से ती वास्तव में वहीं है या कोई और है इसी भाव के साथ मैंने कहा नहीं यह केवल आकस्मिक है। इसके बजाय मैं बिल्कुल ठीक हूं, और मैंने देखा की वास्तव में हमारे सामने थी वह कोई स्वप्न नहीं थी, जैसा की मैं यह कभी नहीं सोचा था की मैं उससे अपने इस जीवन में कभी देखुगा। क्योंकि मैं उसको देख कर बुरी तरह से भयभीत हो चुका था जिसके कारण ही मैं मूर्छित हो कर गीर गया था। मेरे दुर्भाग्य के कारण मुझे झटका लगा था, क्योंकि लंबे समय से उसको देखना चाहता था, और उसने आश्चर्य चकित होकर मुझको देखा, जैसा उसने पहले कहा था वहीं दोबारा कहा, इसका मतलब क्या है? क्या हम इससे पहले भी मिल चुके हैं। तब मैंने कहा मेरे स्वप्न में आप आकर मुझ से इसी प्रकार से मिली थी। और यह हो सकता है की हमा किसी और जन्म में पहले मिले होंगे। इसके बारें में सत्य क्या है इसके बारें में मैं कुछ भी नहीं कह सकता हूं, लेकिन तत्काल मुझे वह सब याद आ गया, जिसके कारण मेरा हृदय रुक गया, जिसने असाधारण आनंद को पा कर उसको सहन नहीं कर सका, अचानक आश्चर्यचकित हो कर दर्द से कराहने लगा। यह मेरे साथ ऐसा ही हुआ जैसे कि कोई बिजली का झटका बिना किसी चेतावनी के किसी के उपर गिरता है ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी। और जैसे ही मैंने ऐसा कहा मैं पुरी तरह से सफेद पड़ गया जैसे की मैं यह सब अपने दुर्भाग्य को प्रबल करने के लिए कर रहा हूं। जैसा की मेरे साथ पहले भी हो चुका है, अपने भाग्य को दुर्भाग्य में बदल दिया था। क्योंकि मैंने उसको अपनी आँखों को खुलते ही नहीं देखा यदि ऐसा होता तो मैं अवश्य ही मर जाना चाहिये था। जबकि वह जिज्ञासा के साथ मुझको देख रही थी जैसे वह मेरी बातों पर चिंतन कर रही थी जो भी मैंने कहा था। और फिर उसने आह भरी, और धीरे स्वर में कहा जैसे की वह स्वयं से कह रही हो, यह मेरी स्वयं की गलती है! क्योंकि मैं जानती हु जो भी मेरे पास आता है उसके जीवन पर अवश्य खतरा आ जाता है। और मैं चिल्लाया खतरा! यह मेरी चिंता का विषय नहीं था। क्योंकि जितने समय से मैं तुम्हारे पास हूं किसी प्रकार का कोई खतरा मुझे नहीं प्रतीत हो रहा है। तुम्हें मुझ से भयभीत होने की जरूरत नहीं है, फिर उसने कहा नहीं क्योंकि सत्य को तुम नहीं समझ पा रहे हो, क्योंकि खतरा तुम से मुझ को नहीं है, जिससे मैं भयभीत हो रही हूं, खतरा तुम्हारे लिए है। और ऐसे मैंने उसको देखा जैसे मैं यह जानना चाहता था कि इसका क्या मतलब है, फिर उसने कहा मैं जानती हूं कि इसका कारण मैं ही क्योंकि मैं जिससे भी काम संबंध स्थापित करती हूं उसके लिए इस दुनीया में जीना लग-भग असंभव हो जाता है, क्योंकि काम संबंध का परिणाम कुछ ऐसा ही आता है, और ऐसा मैंने अपने अनुभव से जाना है। और अब इसमें मेरा कोई अपराध नहीं है इसके बाद तुम्हारे साथ जो भी होगा इसके लिए मुझे दोष मत देना। वस्तुतः तुम मुझको बनाने वाले को दोष दे सकते हो, जिसने मुझको ऐसा बनाया है। और मैंने जोर से कहा बनाने वाले को इसके लिए किसी प्रकार को दोष! नहीं वस्तुतः इस अभूतपूर्व कलाकृति के लिए उसकी श्रद्धा पूर्वक पूजा अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि निश्चित रूप से आप रचेता की अप्रतिम कृती हैं। क्या मुझको इसके लिए उसको दोष देना चाहिये की उसने ऐसी कृती की रचना की जिसकी मैं उसके स्थान पर उपासना करता हूं। और उसने धीरे से अपने शीर को झटका जैसे ही मैंने ऐसा कहा, फिर उसने कहा तुम देखना की मैं जो भी कह रही हूं वहीं सत्य है, मैं आपके लिए जहर के समान हूं, और मैं अपनी शांत गंभीर उत्सुकता पूर्ण जिज्ञासा के साथ उसको सुनते हुए देख रहा था। और मैं अचानक खिल खिला अपनी आँखों में आशु भर कर हंस पड़ा। और मैंने कहा जहर! तुम जहर के समान हो तो आओ मुझे इस खतरनाक जहर को पीने दो, इसके बारे मैं और कुछ अधिक नहीं जानना चाहता हूं। और फिर उसने कहा चले वहां सीढ़ी पर बैठते हैं। शायद आप ठीक हो चुके हैं। और जब हम सात में सीढ़ी पर बैठे थे, वहाँ पर कुछ क्षण शांत रहने के बाद कहा मुझको भूल जाओ अगर तुम ऐसा करने में समर्थ हो तो, कुछ देर के लिये, क्योंकि मैं जो तुम को बताना चाहती हूं उसको ध्यान से सुने, मेरे साथ आने वाला सत्य जो कठिनाई से स्वीकारना योग्य है, मेरे साथ तुम्हारी मृत्यु का भी बुलावा आया है। और जिसके कारण मैंने तुम को अपने सहयोगी से यहां पर बुलाया है, उस पर ध्यान दो।


और फिर वह मुझ से संगीत के बारें में बात चित करने लगी, जबकि मैं बैठ कर उसको देख रहा था और सम्मानित मदिरा के साथ उसको पी रहा था। जिससे मेरे हृदय कभी गर और कभी ठंडा हो रहा था। मैंने कभी उसके कहें हुए किसी शब्द को नहीं सुना, यद्यपि बिना किसी व्यवधान के मूक होकर उसके मधुर शब्दों के साथ निकलने वाली ध्वनियों का स्वाद ले रहा था। जैसे कोई प्यास से मरने नाला आदमी दूर से आ वाले किसी झरने की आवाज को सुनता है। और तभी बिना उसके किसी शब्द को ध्यान से सुने ही कहा ओ तारावली तुम्हारा नाम किसने रखा है जिसका अर्थ तारों का जगत होता है वास्तव में तुम किसी दूसरे जगत की प्रतीत होती हो, और जब मैं सोचता हूं की मैं तुम्हारे कितने करीब आ चुका हूं, और ऐसा मेरे जीवन में कभी नहीं हुआ है, मैं इसके बारें में सोच कर अत्यधिक आतंकित हो जाता हूं जब मैं सोचता हूं यह अवसर मुझ से कहीं छुट नहीं जायें, और तुम को मैं हमेशा के लिए को दु। और मैं ऋणी हूं तुम्हारे एक प्रायश्चित्त के लिए जो उस परमेश्वर ने अपनी अज्ञानता में किया है, चातुरीका ने ठीक ही कहा था, मैं मृत्यु के लिए बहुमूल्य हूं क्योंकि मैं उसको देख कर भ्रमित हो गया था।


और इस पर उसने कहा एक आह के साथ तुम वह नहीं सुन रहे हो जो मैं कह रही हूं, और फिर वह हँसने लगी, जिससे मेरे हृदय को थोड़ा सा सुकून मिला, और उसने कहा चातुरीका ने मुझको आपकी गलती के बारें में मुझको बताया था। लेकिन उसने मुझ से कहा तो उस पर मुझको भरोसा नहीं हुआ। क्योंकि वह मुझ से मजाक करती है, और अब मुझको ज्ञात हुआ कि वह ठीक थी, जो क्षमा योग्य है जिसको कोई भी आसानी से क्षमा कर सकता है। क्योंकि वह बहुत सुन्दर है, उतनी तो मैं भी नहीं हूं। लेकिन सच में हम अपने मुख्य उद्देश्य से भटक रहें हैं, जो इस प्रकार की बकवास को कर के अपने बहुमूल्य समय को व्यतीत कर रहें हैं। इस पर हम एक बार पुनः बिचार करते है, उसकी शुरु वात को मैंने अपने हाथों को लहरा कर धो दिया। और मैं चीखते हुए कहा यह सब बेकार है मैंने सब कुछ सुना जो मेरे लिए अनुपयोगी और बिल्कुल बेकार है। मेरी आत्मा में शिवाय तुम्हारे किसी भी प्रकार के बकवास के लिए कोई स्थान नहीं है। मुझे अपने बारें में कुछ बताओ, मैं अपने जीवन के बारें में किसी प्रकार की बिना चिंता के वह सब कुछ सुनना चाहता हूं। और फिर उसने तत्काल आह भरते हुए अपने हाथ को हिलाते हुए निराशा में कहा, और सज्जनता के साथ कहा यदि आप अपने उस कार्य को नहीं करना चाहते जिसके लिए यहां पर आपका बुलाया गया है तो आपके आने का यहां क्या प्रयोजन है? और मैंने कहा साल भर इसी तरह से तुम मुझ को रोज साम को सूर्य अस्त होने पर बुलाया करो, तो मैं वह सब कुछ भुला दूंगा, जो मेरे लिए बहुमूल्य क्योंकि मैं सब कुछ त्याग कर तुम को पाना चाहता हूं।


और वह अचानक जोर – जोर से हँसने लगी जो बिल्कुल किसी छोटे बच्चे के समान था, और फिर उसने कहा तुम बहुत बड़े कलाकार हो, लंबी चालाकी भरी योजना बना रहें हैं, न पाने या फिर किसी तुच्छ वस्तु को पाने के लिए। इसके बाद भी मैं निश्चित नहीं हूं कि वास्तव में तुम को भूल सकती हूं। इस पर मैं तनाव के साथ जोर से बोला, तुम बिल्कुल ठीक हो कह रही हो क्योंकि निश्चित रूप से ऐसा समय फिर कभी मिल सकता है इसके लिए मैं संदिग्ध हूं, लेकिन तुम अद्भुत किस्म की रानी हो, अपने इस विशेषता के बारें में मुझे केवल एक बात बताओ। और उसने कहा क्या? वह किसी प्रकार का तुम्हारा राजा पति है जो अपनी रानी पत्नी को किसी दूसरे मर्द के साथ देखने में उसको बुरा नहीं लगता है, इसके पीछे क्या कारण है या कोई मजबूरी है, जिससे कोई दूसरा मर्द इस तारें को देख सकता है। या फिर सत्य में वह अंधा है जिससे मैं यह समझ सकता हूं की वास्तव में वह यह सब देख ही नहीं सकता है।


इस पर आश्चर्य के साथ उसने मुझको देखा, और धीरे से मुझको कहा, क्या सच में तुम सके बारें में कुछ भी नहीं जानते हो, जिसके बारे में हर कोई जानता है। जिसके बारे में सब कुछ जानते हैं उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता हूं, इसके बारे में मैं एक अजनबी के समान हूं, लेकिन मैं यह अच्छी तरह से जानता हूं, कि तुम मेरे लिये मोती के समान हैं जिसको मैं बहुत अधिक सम्हाल कर रखूंगा। क्योंकि एक ईमानदार आदमी भी डकैत बन जाता है जब बहुमूल्य समन्दर के मोती को यूं ही कही देखता है। इस पर उसने कहा बड़े शान्त भाव के साथ कि मोती को चुराने के लिए किसी चोर की जरूरत नहीं पड़ती है, अगर वास्तव में कोई मोती ही है, जिसको उसके मालिक ने मूल्यहीन जान कर छोड़ दिया हो, ऐसी वस्तु की कोई कीमत नहीं होती है। जिसको कोई भी रास्ते में चलने वाला उठा लेता जाता है।


इस पर उसके भ्रम को दूर करने का प्रयास करते हुए, मैंने अपने दोनों हाथों को एक साथ कस कर पकड़ लिया, और जोर से कहा क्या तुम पागल हो चुकी हो अथवा मैं कोई स्वप्न देख रहा हूं? इस पर उसने सज्जनता के साथ कहा यह सत्य है। जिसके बारें में हर कोई जानता उसके बारे में आपको भी जानना चाहिए, जिसके बारें में किसी प्रकार की कोई जरूरत नहीं है, और उसने अपनी आँखों को नीचे झुका कर अपनी उंगलियों को वीणा के तारों पर चलाने लगी। इसके पीछे उसका मकसद ता जैसे वह स्वयं को एक चित्र के रूप में बना लिया जिसको मैं एक तक उसकी नशीली आँखों को देख सकूँ, और अचानक उसने कहा मैं ऐसे वस्तु को क्यों गुप्त रखे जिसके बारे में हर कोई पहले से जानता है, अगर मैं सत्य को उसकी नग्नता में नहीं कह पाते तो इसका अर्थ है की हम असत्य को प्रचारित करते हैं। यह हमारे और आपके लिये आवश्यक है कि आप हमारे मुँह से सुन ले जिसको छिपाना मेरे लिये असंभव है। मेरा संबंध एक राजा के साथ है जिसका नाम नरसिन्हा है, जिसने मुझे संयोग वश एक दिन देख लिया था, जब मैं महल की छत पर खड़ी थी, और उसने मुझको देख कर अपना होश हवास को दिया, जैसा की सभी मनुष्य मुझको देखने के बाद करते हैं। इसके कुछ समय के बाद राजा कई युद्ध में व्यस्त रहने लगे, ऐसे ही एक युद्ध में उनकी हत्या होने वाली थी जिसमें नरसिन्हा ने अपनी जान को खतरें में डाल कर उनकी जान को बचाया था। युद्ध के समाप्त होने के बाद राजा ने नरसिन्हा से कहा ओ नरसिन्हा तुम मुझ से कुछ बी मांग सकते वह भले ही कितनी बहुमूल्य हो इसकी चिंता तुम्हें नहीं करनी है। इस पर नरसिन्हा का मन मांगा अवसर मिल गया और उसने अपनी आँक बंद कर लिया, जैसे कोई जीवन और मृत्यु के लिये एक चोटी से दूसरी चोटी पर कूदने के लिए तैयार हो जाता है। और उसने कहा आप मुझे रानी तारावली को दे दे अन्यथा मेरी हत्या कर दीजिये इसी तलवार से जिसने आपके जीवन को बचाया है। और इसके बाद वह अचंभित हो कर अपने सर को झुका राजा के सामने मृत्यु के भय से खड़ा हो गया। इस पर राजा बहुत तेज हँसने लगे। और फिर उन्होंने कहा क्या वही तुम्हारे लिये सब कुछ है? ओह नरसिन्हा हम दोनों भयभीत थे, मैं भयभीत था कि तुम मुझसे क्या मांग सकते हो, और तुमने क्या मांग लिया, क्या तुमने इसके मांगने से पहले नहीं विचार किया की इसके लिए मैं तुम्हारी हत्या भी कर सकता हूं, क्या तुम नहीं जानते की जो स्वप्न में भी रानी तारावली के बारें में सोचता है उसकी मैं हत्या कर देता हूं। फिर भी मेरे जीवन का कोई मुलेय नहीं है यदि इसको बचाने वाले को इसका इनाम ना दु तो, इसलिए आज से तारावली तुम्हारी है। उसके सात वह सब कुछ तुम कर सकते जो भी तुम्हारी इच्छा हो, क्योंकि मेरे पास केवल एक ही जीवन है, जबकि रानी कहीं भी प्राप्त की जा सकती है, जब भी मेरी स्वेच्छा हो तो उसको मैं बड़ी सहजता से बदल सकता हूं। सर्त केवल एक है कि वह हमारे महल को नहीं छोड़ सकती है क्योंकि कुछ भी वह मेरी रानी हैं, और इसलिए उनको अवश्य यहां रहना चाहिए, र इसके बारे में केवल मैं और तुम ही जानते हैं, इस तरह से गुप्त रूप से राजा ने मुझको नरसिन्हा के लिए समर्पित कर दिया। लेकिन इस गुप्त राज को हर कोई जानता है, और गुप्त रूप से हर किसी से बताते हैं, कि मैं राजा के स्थान पर नरसिन्हा की संपत्ति हो चुकी हूं। क्योंकि नरसिन्हा ने दो बार अपने जीवन को जोखिम डाला है मुझको प्राप्त करने के लिए, और राजा ने कभी भी अपनी उँगली को भी जख्मी नहीं किया है अपनी सैकड़ों रानी के जीवन को बचाने के लिए। इसलिए राजा ने मुझे तुड़ा के मान नरसिन्हा को दे दिया। इसके बारे में मुझ से उसने कुछ भी नहीं पुछा और ना ही इसके बारें में ही विचार किया की मुझे तुड़ा के समान जान कर मुझको दे दिया, उसको यह ज्ञान नहीं रहा कि मेरे साथ उन्होंने मेरे गुप्त सम्मान को भी मेरे साथ दान दे दिया। और मुझे अपने से दूर करने के लिये मैंने राजा को क्षमा कर दिया। लेकिन वह कैसे राजा को क्षमा कर सकता है? जो अपने जीवन को अपने से सम्मान कम समझता है। और राजा के लिए मैं एक जरूरी आभूषण से अधिक नहीं हूं, एक ऐसी वस्तु जैसे सिंहासन और मुकुट होता है या फिर एक साही कुर्सी मेज़ का टुकड़ा, जबकि नरसिन्हा के लिए मैं उसके वन से अधिक हूं उसकी आँखों के सेब के समान।


IX


जैसा की वह बोल रही थी और मैं उसकी एक - एक बात को बड़े ध्यान के साथ सुन रहा था, मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, और मैंने अपने आप से कहा क्या यह सब कुच सत्य है? अथवा यह सब केवल मैं अपने स्वप्न में देख रहा हूं, कितना आश्चर्यचकित कर देना वाला वह दुःखी राजा है, जिसने अपने बहुमूल्य व्यक्तिगत इज्जत का परित्याग कर दिया, इसके समान औरत का त्याग करना उसकी बहुत बड़ी मूर्खता को सिद्ध करता है की पहले आदमी के मांगने पर ही उसने तारावली दे दिया। तारावली स्वयं अपनी पुरी कहानी को कम कर बताया है, असहमति के बावजूद कितनी ईमानदारी से मेरे जैसे व्यक्ति से सब कुछ कह दिया। हां वस्तुतः उस अक्षम्य अपने पति के प्रति घृणा को प्रदर्शित किया वास्तव में जो इसके योग्य घृणा लायक ही है। अब भी राजा की अचेतनता यही सिद्ध करती है कि वह अपनी इज्जत को बिना समझे अपनी अंधता में दे दिया जिसकी कीमत उसने नहीं जानी। और उसने वह सब कुछ जो भी कहने योग्य था मुझ से कहा, क्योंकि वह मेरे प्रति वह आश्वस्त थी इस लिए उसने मुझको अपने मन की सच्ची बातों को बताया। और कौन जानता है? कि क्यों यह स्वयं को घोड़े के समान नरसिन्हा के साथ रहने को सहमत हो गई, जबकि वह स्वयं कहती है की वह उसके योग्य नहीं है और फिर भी उसने उस आदमी को चून लिया जो आज उसका मालिक है, और क्या होगा जब मैं रानी को उत्साहित करुँ की वह नरसिन्हा को हमारे लिए छोड़ दे। इस विचार को मेरे मस्तिष्क में आते ही मेरा शीर बेचैनी के सागर में गोते लगाने लगा, लगभग अकल्पनीय अवसाद से भर गया जिसमें मुझको आशा नहीं दिखाई दे रही थी। और मैंने कहा प्रिय तारावली क्या इसमें गलती सागर के रत्न की है, यदि उसका कठोर मालिक उसको अपने से दूर फेंक देता है, उसकी अतुलनीय बहुमूल्यता को नजरंदाज करके और उसके बदले में मूल्यहीन साधारण सीसे को उठा लेता है। इसके स्थान पर कोई दूसरा बुद्धिमान मानव अपने जीवन को भी दांव पर लगा कर उसको उठाना चाहता है।


इस पर उसने मुसकुराते हुए मेरी तरफ देखा और मेरे कंधे पर अपना सर रख लिया, और फिर कहा अपनी आँखों में सज्जनता भरी शरारत को भर कर मैंने वही कहा जिसको मैंने विचार किया था, इससे हो सकता है कि आपने जिस कीले को हवा में बनाने का प्रयास किया है वह बनने से पहले ही ढह जाये, और आपको प्रशंसा करनी चाहिये उस राजा की जिसने मेरे बारें में बिना किसी प्रकार के बिचार के किये बगैर अपने से दूर कर दिया। और इस पर आप आश्चर्यचकित हो रहे हैं, कि मैंने आपको यह सब क्यों बताया, और अंत में यह भी हो सकता है कि आप को इसमें मेरी स्वच्छंदता भी दिख सकती है, लेकिन इसमें ऐसा नहीं है। और इस पर शांति से मैंने अपने सर को हवा में टाँग दिया, और स्वयं को शर्मिदित महसूस किया क्योंकि असाधारण बोध वाली रानी ने मेरे सूक्ष्म भाव को अच्छी तरह से पहचान लिया था। और उसने इस तरह से कहा जैसे वह मेरे भ्रम को सांत्वना देनी चाहती हो, अपनी अलौकिक मधुरता पूरण आवाज के साथ, और कहना चाहती है कि तुम अपने काल्पनिक माया के वश में स्वयं को मत करो, उसके अपने से दूर ही रखो। और स्वयं को एक बुद्धिमान बनाए। क्योंकि मैं आत्मा और शरीर के साथ नरसिन्हा से संबंधित हूं। और इस सब के बावजूद मैं अपनी स्वयं की मालकिन हूं और मैंने इसको बिल्कुल अपने होश हवास में चूना है। मैं किसी को भी देख सकती हूं जिसको मैं पसंद करती हूं, क्योंकि यह मेरा समय है उसको मैं अपने हिसाब से उपयोग करती हूं, मुझे जहां भी मेरे मनोभाव ले जाते है मैं वहीं पर चली जाती हूं। और संगीत मेरी जुनून है जैसे एक जंगली हाथी होता है। मैंने आपके संगीत के बारे में सुना जिसके लिए मैंने आपको अपने पास बुलाया, और अब आप मेरे सामने उपस्थित हैं, मैं आपको पसंद करती हूं। क्या आप मेरा मित्र बनना चाहेगे?


जैसे ही उसने कहना बंद किया, उसने अपने दोनों हाथों को मेरी तरफ फैलाया, मुसकुराते हुए मेरी तरफ देखते हुए, जिसकी आँखों में पूर्ण आमंत्रण के भाव भरें थे, अत्यधिक अनियन्त्रीत रूप से मुझ पे आश्रित होते हुए, जिससे लगभग मेरा स्वयं पर से नियंत्रण पुरी तरफ से समाप्त हो रहा था। यह इसी प्रकार से था जैसे जंगल का सुखी घास में किसी ने आग की चिनगारी को डाल दिया हो। जिससे मैं तत्काल अपन स्थान पर खड़ा हो कर वहां से कुछ कदम आगे बढ़ गया, मेरे साथ तत्काल वह भी स्वयं खड़ी हो गई। और मैंने उसके दाहिने हाथ को अपने हाथों में थाम लिया, जैसे मैं उसको हमेशा के लिए अपनी कैद में कर लेना चाहता हूं जिससे बचने की कोई आशा नहीं थी। और चिल्लाते हुए लगभग विक्षिप्त अवस्था में कहा मित्र! केवल मित्र! आह! ओ तारावली क्या तुमने अपनी शरीर और आत्मा को पुरी तरह से नरसिन्हा को दे दिया है, क्या तुम्हारे पास हमारे लिये सबसे तुच्छ परमाणु के समान वस्तु नहीं है मुझको देने के लिए? जैसा कि मैंने तुम को बहुत अधिक परिश्रम के बाद तलाश पाया हूं, मैंने तुम को अपने स्वप्न में लंबे समय से देखा है और तुम्हारी मधुर आवाज को लंबे समय से सुन रहा हूं।


संपूर्ण संसार को भूल कर मैं उसको देख रहा था, यद्यपि मेरे अंदर उसको पाने की अनियंत्रित प्यास बरकरार थी। उसने पहले आह भरी फिर करुणा के साथ कहा बेचारे गरीब लड़के, मैं तुम को बुला कर स्वयं भी बीमार हो चुकी हूं। हालांकि तुम केवल जहर को पीने के लिए उत्सुक हो रहे हो जिससे तुम्हारी जान जा सकती है। यह भी मैं अच्छी तरह से जानती हूं इससे बचने की कोई और औषधि नहीं है, मैं तुम से केवल ही चाहती हूं की तुम यहां से दूर जा कर किसी तरह से अपनी जान को बचा लो।


इसको सुन कर मूर्ख की भांति अपने स्थान पर खड़ा रहा, बिना यह जाने की मैं क्या कर रहा हूं, और मैं उसके अपनी तरफ खींच लिया, अनिच्छा के साथ वह मेरी गिरफ्त में पुरी तरह से आ चुकी थी, और मेरी पकड़ से स्वयं को स्वतंत्र करने के लिये वह प्रयास करने लगी। आधे स्वीकृति और आधे अस्वीकृति के साथ अपनी स्वेच्छा के विपरीत खींचते हुए, धीरे – धीरे वह मेरे करीब आने लगी, और मुझ से चिपक कर मेरी आँखों में देखने लगी जैसे वह चाहती हो की मैं उसको अपनी बाँहों के गिरफ्त से मुक्त कर दु, वह मेरा विरोध करने में असमर्थ थी। मैं उसके साथ क्या कर रहा हूं इससे वह बिल्कुल बेखबर थी, अंत में जब वह मेरे सीने से सट गई, और अपनी आँखों को बंद कर लिया, और जब मैंने उसके होठों का चुंबन लिया तो वह लगभग मुझ से आतंकित होकर भयभीत दिखने लगी। इसके बाद मैंने तत्काल उसको अपने हाथों की पकड़ से स्वतंत्र कर दिया, और मैं अपने स्थान पर पहले की भाती खड़ा हो गया, और मैं सोचने लगा कि मैंने यह क्या कर दिया? और मैंने हिचकिचाते हुए क्षमा को चाहा! क्योंकि मैं नहीं जानता था कि मैंने उसके साथ क्या कर रहा था?


और उसने अपने शीर को झटका और बहुत सज्जनता के साथ कहा, नहीं इसके लिए मैं स्वयं को दोषी मानती हूं, इसके बारें मुझे पहले से जानना चाहिये की यहीं हमारे आमंत्रण के मिलन का अंत होगा, लेकिन अब अलविदा! क्योंकि हमें यहां पर पहले से बहुत अधिक समय बित चुका है। और फिर उसने हिचकिचाते हुए तत्काल दया भरी दृष्टि से मुझको देखा, और उसने हँसते हुए कहा आब आपको यहां से अवश्य से जाना चाहिये। जिसके लिए मैं अपने हृदय से अब भी दुःखी था, क्योंकि मैं समझ गया था उसके यह कहने का मतलब क्या था की मैं वहां से चला जाऊ, मेरे मन भी यहीं आया की मुझे उसको अलविदा कहना चाहिये।


और जैसे उसने अपनी बांहों को मुझ से दूर किया, और हंस कर कहा मेरा आपसे मिलना असफल रहा, और मैंने किसी तरह से उसके हाथ को कलाई से पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके गले को अनजाने में पकड़ लिया, इसलिए अचानक मैंने उसको अपनी बाँहों में पड़े हुए पाया, जो अपनी आँखों को उपर उठा कर मुझे देख रही थी, काँपते होठों के साथ जैसे वह हँसने का प्रयास कर रही हो। और मैंने अपने हृदय में गहरी साँस को भरते हुए, पागलों की भाती उसका चुंबन लेने लगा एक बार दो बार – बार - बार जैसे इसका कभी अंत ही नहीं होगा।


और फिर अचानक रोते हुए मैंने उसको अपने से दूर कर दिया। और वहां से उसको पीछे बिना देखे चल पड़ा, और मैं अपने आप को दरवाजे के पास पाया किस प्रकार से मैं यह नहीं जानता था, और मैंने दरवाजे को खट खटाया, और दरवाजा खुल गया, जिससे मैं बाहर निकल गया किसी तरह से दूसरी गली में। इसके बाद मैं किसी तरह से अपने घर की तरफ चल पड़ा, जैसे मैं स्वप्न में चल रहा था, जैसे मेरे पैर अपना रास्ता अपनी स्वेच्छा से स्वयं चून रहे थे।


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और मैंने अपने आपको विस्तर पर फेंक दिया, सारी रात तंद्रा में जागता रहा, मैं नहीं जानता था की ऐसा क्यों मेरे साथ हो रहा था, यद्यपि अँधेरें में चमकती आँखों को देखता रहा, आनंद पूर्ण जलते हुए हृदय के साथ, बेसुध आत्मा जो बीती यादों में पुरी तरह से स्वयं को खो चुकी थी। बिना रुके बार – बार यहीं कह रहा था की मैं उसको पा लिया है। और वास्तविकता स्वप्न से कहीं अधिक स्वादिष्ट है। इसके साथ सुबह हो गई, जिसमें ऐसा लग रहा था जैसे रात का प्रारंभ हो रहा है, क्योंकि मेरा सारा समय उसको याद करने में गुजर गया था, और मैं अपने विस्तर से उठ कर खड़ा हुआ, अब तक अपनी आँखों को जमीन पर देखते हुए, जैसे मैं उसके साथ मिलन के हर छोटे से छोटे से पल को बार - बार विस्तार से याद कर रहा था, जो पिछले दिन साम को मेरे साथ हुआ था। और फिर मैंने स्वयं से कहा हां मैं कितना बड़ा मूर्ख था, मैं उसको बिल्कुल खोने वाला था जो मैं उससे मिलने से मना कर रहा था। जैसे किसी सौभाग्यशाली हाथी को मिलने का मौका मिलता है, मैं उसको खोने वाला था, मैं कैसे अंदाज लगा सका की वह तारावली ही हो सकती है जो मेरे स्वप्न में आती है, मिलने वाले आनंद से मैं स्वयं को दूर रखने वाला था, उसकी बालों में रहने वाले तारे के साथ उसकी मधुर आवाज से, कितना बड़ी असहनीय वेदना को मैं सहने वाला था जब मैं उसके होठों के चुंबन से स्वयं को रिक्त रखता ।


और फिर इस सब के बाद तत्काल मैं अपने विचारों के साथ दौड़ना शुरु कर दिया जो मेरे हृदय में चल रहा था। और मैं जोर से कहा आह! मैं यह भूल गया था कि मैंने कैसे इस संसार में उसको दुबारा फिर से देख पाया। और उसने कह दिया अलविदा! क्या इसके पीछे उसकी कोई योजना तो नहीं है? मुझे कभी वापिस नहीं आना था। आह बिना किसी संदेह के अलविदा का अर्थ केवल अलविदा ही है, और उसकी असाधारण सज्जनता की पीछे क्या कारण हो सकता है, वह मेरे अत्यधिक उत्सुकता पूर्ण आग्रह से स्वयं को अपमानित महसूस किया था। इसलिए उसने मुझे अपने आप से दूर भेज दिया, और मुझे दुबारा अपने पास नहीं बुलायेगी। आह! अब सब कुछ खत्म हो चुका है, क्योंकि वह दुर्गा के समान है, उसका पाना लगभग मेरे लिए दुर्लभ है, यह तभी संभव है जब तक वह ना चाहे कि अपने चाहने वाले दुःखी भक्त को चुनना। हां यह मेरे अभिमान ने लगभग मुझ को समाप्त कर दिया है, मैं इसका कभी आशा नहीं कर सकता कि मैं उससे कभी फिर मिल सकता हूं। मूर्ख कितना बड़ा पागल हूं मैं जो मैं उससे मिलने के वादे को लिए उसके पास से एक डरे हिरन के समान भाग आया! वस्तुतः मैंने स्वयं को कूयें में गिरा लिया बिना किसी रस्सी के ही, सच में वह मेरी पहुंच से बहुत दूर आकाश में किसी तारे के समान थी।


इसके साथ मेरे घुटने में झटका सा लगा जिससे मैं नीचे जमीन पर गीर गया, अपने सर को अपने हाथों में पकड़ कर, अत्यधिक वेदना के कारण मैं लगभग रोने लगा, जब यह विचार आया की मैं उसको प्राप्त करने के योग्य नहीं हूं, अपने मकसद को सिद्ध ना कर पाने के कारण मुझ में संदेह के साथ मेरी व्यग्रता ने क्लेशित कर दिया।


और अंत में मुझे चातुरीका का याद आया उसने कहा था सूर्यास्त! इस में भयभीत होने की क्या बात है? मैं उसका कुशल क्षेम पूछने के लिए गया था।


और जैसे ही वह दुबारा हँसने, मैंने उसको उसके हाथों से पकड़ लिया अत्यधिक प्रसन्नता ते साथ, और उसका अचानक हँसना रोने में तबदील हो गया था। और उसने कहा और ज्यादा हँसते हुए, नहीं क्या आप मेरे हाथों को छोटे - छोटे टुकड़े में करना चाहते हैं, हाथ को ऐसे पकड़ा है जैसे कि आप ने किसी टहनी को पकड़ा हो, और अपने आप को डूबने से बचाना चाहते है, इस प्रकार के प्रतिशोध से आपको क्या फायदा होने वाला है? या फिर जो आपको फायदा पहुंचाने वाला है उसको नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, क्या आप पुनः गलती कर रहें हैं एक हाथ के साथ दूसरे के लिए? और उसने पागलों की तरह मुझको देख कर फिर से दुबारा हँसना शुरु कर दिया, तनाव भरी अपनी प्यारी आँखों के साथ, और फिर कहा कोई बात नहीं मैं तुम्हें क्षमा कर दिया है, क्योंकि जैसे ही मैंने कहा समझ गया। लेकिन ओ वीणा वादक शत्रुंजया तुम्हारे साथ कल ऐसा क्या हुआ जिससे तुमने अपना विचार बदल दिया? अथवा मैं वापिस जा कर एक बार फिर मैं रानी से कहुं की संगीत के गुरु नहीं आयेगे।


और वह हंस कर घूमते हुए वहाँ जाने वाली थी उससे पहले मैं आगे बढ़ कर उसको अपनी बाँहों में दुबारा भर लिया, और कहा प्रिय चातुरीका अभी मत जाओ। थोड़ीसी देर यहां रुक जाओ। क्योंकि तुम उसकी छाया की तरह नहीं हो?


और एक बार दोबारा वह हंसना शुरु कर दिया, इसके साथ उसने जोर से कहा की ओ शत्रुंजया यह असंभव है क्योंकि मुझे करने के लिए बहुत कार्य है जिसके कारण मेरे पास बहुत कम समय है। जिससे मैं इसके लिए निश्चिंत नहीं हु की मैं तुम को अपने गल फिर लगा पाऊगी, क्योंकि मैं किसी दूसरे की छाया के समान हूं। इसलिए तुम मेरे बिना रहने का प्रयास करो, और हर किसी को इस प्रकार से गले लगाने से स्वयं को रोकों जब तक सूर्य का अस्त नहीं होता है। धैर्य रखो क्योंकि सूर्यास्त हे में ज्यादा समय नहीं है।


और जैसे ही वह कमरे से बाहर दरवाजे को बंद कर के गई, और अचानक उसने दरवाजे को पुनः खोला, जैसा की उसे स्वयं बंद किया था, और अपना सर अंदर करके कहा। क्या मैं अपनी चिंता को उससे कहूं, की तुमने मुझको गले लगाया है। अथवा ना कहूं, प्रिय चातुरीका आह! आह! जब वह पास होती है जीवन अमृत के समान लगता है और जब दूर जाती है तो जीवन जहर के समान लगता है।


और फिर उसने दरवाजे को बंद करके वहां से अदृश्य हो गई।


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