विज्ञान भैरव तंत्र का जगत बौद्धिक नहीं है। वह दार्शनिक भी नहीं है। तंत्र शब्द का अर्थ है। विधि, उपाय, मार्ग। इस लिए यह एक वैज्ञानिक ग्रंथ है। विज्ञान क्यों की नहीं, कैसे की फिक्र करता है। दर्शन और विज्ञान में यही बुनियादी भेद है। दर्शन पूछता है। यह अस्तित्व क्यों है: विज्ञान पूछता है.यह आस्तित्व कैसे है। जब तुम कैसे का प्रश्न पूछते हो, तब उपाय, विधि,महत्वपूर्ण हो जाती है। तब सिद्धांत व्यर्थ हो जाती है। अनुभव केन्द्र बन जाता है।
विज्ञान का मतलब है चेतना है। और भैरव का विशेष शब्द है, तांत्रिक शब्द, जो पारगामी के लिए कहा जाता है। इसीलिए शिव को भैरव कहते है, और देवी को भैरवी-वे जो समस्त द्वेत के पार चले जाते है। पार्वती कहती है आपका सत्य रूप क्या है?
यह आपका आश्चर्य-भरा जगत क्या है?
इसका बीज क्या है?
विश्व चक्र की धुरी क्या है?
यह चक्र चलता ही जाता है-महा परिवर्तन, सतत प्रवाह।
इसका मध्य बिंदु क्या है?
इसकी पूर्णता कहा हैं?
अचल केंद्र कहां है?
रुपों पर छाए लेकिन रूप के परे यह जीवन क्या है?
देश और काल, नाम और प्रत्यय के परे जाकर हम इसमें को पूर्णतः प्रवेश करें?
मेरे संशय को निर्मूल करें.....
लेकिन संशय निर्मूल कैसे होगे? किसके ऊपर से? क्या कोई उत्तर है जो कि मन के संशय दूर कर दे? मन ही तो संशय है। जब तक मन नही मिटता है, संशय निर्मूल कैसे होगा?
शिव उत्तर देगें। उनके उत्तर में सिर्फ विधियां हैं, सबसे पुरानी, सबसे प्राचीन विधियां। लेकिन तुम उन्हें अत्याधुनिक भी कह सकते हो। क्योंकि उनमें जोड़ा नहीं जा सकता। वे पूर्ण है, एक सौ बारह विधियां। उनमें सभी संभावनाओं का समावेश है। मन को शुद्ध करने के, मन के अतिक्रमण के सभी उपाय उनमें समाएँ है। शिव की एक सौ बारह विधियों में एक और विधि नहीं जोड़ी जा सकती। कुछ जोड़ने की गुंजाईश ही नहीं है। यह सर्वागीण है, संपूर्ण है, अंतिम है। यह सब से प्राचीन है और साथ ही सबसे आधुनिक, सबसे नवीन। पुराने पर्वतों की भांति ये तंत्र पुराने हैं, शाश्वत जैसे लगते हैं। और साथ ही सुबह के सूरज के सामने पड़े ओस-कण की भांति नएं है। ये इतने ताजे है, ध्यान की इन एक सौ बारह विधियों से मन के रूपांतरण का पूरा विज्ञान निर्मित हुआ है। एक-एक कर हम उनममें प्रवेश करेंगे। पहले हम उन्हें बुद्धि से समझाने की चेष्टा करेंगे। लेकिन बुद्धि को मात्र एक यंत्र की तरह काम में लाओ, मालिक की तरह नहीं। समझाने के लिए मंत्र की तरह उसका उपयोग करों। लेकिन उसके जरिए नए व्यवधान मत पैदा करो। जिस समय हम इन विधियों की चर्चा करेंगे। तुम अपने पुराने ज्ञान को पुरानी जानकारियों को एक किनारे धर देना। उन्हें अलग ही कर देना। ये रास्ते की धूल भर हैं।
इन विधियों का साक्षात्कार निश्चित ही सावचेत मन से करो; लेकिन तर्क को हटा कर करो। इस भ्रम में मत रहो, कि विवाद करने वाला मन सावचेत मन है। वह नहीं है। क्योंकि जिस क्षण तुम विवाद में उतरते हो, उसी क्षण सजगता खो जाती है। सावचेत नहीं रहते हो। तुम तब वहां हो ही नहीं।
ये विधियां किसी धर्म की नहीं है। वे ठीक वैसे ही हिंदू नहीं है जैसे सापेक्षवाद का सिद्धांत आइंस्टीन के द्वारा प्रतिपादित होने के कारण यहूदी नहीं हो जाता है। रेडियों टेलीविजन ईसाई नहीं है। ये विधियां हिंदुओं की ईजाद अवश्य है, लेकिन वे स्वयं हिंदू नहीं है। इसलिए इन विधियों में किसी धार्मिक अनुष्ठान का उल्लेख नहीं रहेगा। किसी मंदिर की जमात नहीं है। तुम स्वयं मंदिर हो। तुम ही प्रयोगशाला हो, तुम्हारे भीतर ही पूरा प्रयोग होने वाला है। और विश्वास की भी जरूरत नहीं है।
तंत्र धर्म नहीं है। विज्ञान है। किसी विश्वास की जरूरत नहीं है। कुरान या वेद में, बुद्ध या महावीर में आस्था रखने की आवश्यकता नहीं है। नहीं, किसी विश्वास की आवश्यकता है। प्रयोग करने का महा साहस पर्याप्त है। प्रयोग करने की हिम्मत काफी है। एक मुसलमान प्रयोग कर सकता है। वह कुरान के गहरे अर्थ को उपलब्ध हो जाएगा। एक हिंदू अभ्यास कर सकता है। और वह पहली दफा जानेगा कि वेद क्या है, वैसे ही एक जैन इस साधना में उतर सकता है, बौद्ध इस साधना में उत्तर सकता है, एक ईसाई इस साधना में उत्तर सकता है, जहा है तब उन्हें आप्त काम करेगा। उनके अपने चुने हुए रास्ते जो भी हो तंत्र सहयोगी होगा।
यही कारण है कि जनसाधारण के लिए तंत्र नहीं समझा गया, और सदा यह होता है, कि जब तुम किसी को नहीं समझते हो, तो उसे गलत जरूर समझते हो। क्योकि तब तुम्हें लगता है। कि समझते जरूर हो। तुम रिक्त स्थान में बने रहने को राजी नही हो।
दूसरी बात कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो, तो तुम उसे गाली देने लगते हो। यह इसलिए कि यह तुम अपमानजनक लगता है। तुम सोचते हो मैं और नहीं समझ यह असंभव है। इस बीज के साथ ही कुछ भूल होगी। और तब तुम गाली देने लगते हो। तब तुम ऊलजलूल बकने लगते हो। और कहते हो कि अब ठीक है।
इस लिए तंत्र को नहीं समझा गया। और तंत्र को गलत समझा गया। महान राजा भोज ने पवित्र उज्जैन नगरी में तंत्र के विद्यालय पीठ को खत्म कर दिया। एक लाख तांत्रिक जोड़ों को काट दिया। क्या ये क्या है? हमारी समझ में नहीं आता। कुछ सालों पहले वहीं पर राजा विक्रमादित्य ने उन्हीं तांत्रिनिको कितना सम्मान दिया था। यह इतना गहरा और इतना ऊंचा था, कि यह होना स्वाभाविक था।
तीसरी बात कि चुंकि तंत्र द्वैत के पार जाता है इसलिए उसका दृष्टिकोण अति अनैतिक है। कृपया इन शब्दों को समाझो, नैतिक, अनैतिक अति नैतिक। नैतिक क्या है? हम समझते है अनैतिक क्या है, हम समझते है लेकिन जब कोई चीज अति नैतिक हो जाती है, दोनों के पार चली जाती है। तब उसे समझना कठिन है।
तंत्र अति नैतिक है। तंत्र कहता है। कोई नैतिकता जरूरी नहीं है। कोई खास नैतिकता जरूरी नहीं है। सच तो यह है कि तुम अनैतिक हो, क्योंकि तुम्हारा चित अशांत है। इसलिए तंत्र शर्त नहीं लगाता, कि पहले तुम नैतिक बनो। तब तंत्र की साधना कर सकते हो। तंत्र के लिए यह बात ही बेतुकी है। कोई बीमार है, बुखार में है। डाक्टर आकर कहता है: पहले अपना बुखार कम को, पहले पूरा स्वस्थ हो जो और तब मैं दवा दूंगा।
यही जो हो रहा है, चोर साधु के पास जाता है। और कहता है, मैं चोर हूं. मुझे ध्यान करना सिखाएं। साधु कहता है, पहले चोरी छोड़ो, चोर रहते ध्यान कैसे कर सकते हो। एक शराबी आकर कहता है,मैं शराब पीता हूं मुझे ध्यान बताएं। और साधु कहता है. पहली शर्त कि शराब छड़ो तब ध्यान कर सकोगे।
तंत्र तुम्हारी तथाकथित नैतिकता की, तुम्हारे समाजिक रस्म-रिवाज आदि की चिंता नहीं करता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि तंत्र तुम्हें अनैतिक होने को कहता है। नहीं, तंत्र जब तुम्हारी नैतिकता की ही इतनी परवाह नहीं करता। तो वह तुम अनैतिक होने को नहीं कह सकता। तंत्र तो वैज्ञानिक विधि बताता है कि कैसे चित को बदला जाए। और एक बार चित दूसर हुआ कि तुम्हारा परिष दूसरा हो जाएगा। एक बार तुम्हारे ढांचे का आधार बदला कि पूरी इमारत दूसरी हो जाएगी।
इसी अतिनैतिक सुझाव के कारण तंत्र तुम्हारे तथाकथित साधु-महात्माओं को बर्दाशत नहीं हुआ। वे सब उसके विरोध में खड़े हो गए। क्योंकि अगर तंत्र सफल होता है तो धर्म के नाम पर चलने वाली सारी नासमझी समाप्त हो जाएगी।
तंत्र कहता है कि उस अवस्था का नाम भैरव है जब मन नहीं रहता-अ-मन की अवस्था है। और तब पहल दफा तुम यथार्यतः उसको देखते हो जो है। जब तक मन है. तुम अपना ही संसार रखे जाते हो, तुम उसे आरोपित, प्रक्षेपित किए जाते हो, इसलिए पहवाले मन को बदलों और तब मन को अ-मन में बदलो।
और ये एक सौ बारह विधियां सभी लोगों के काम आ सकती हैं। हो सकता है, कोई विशेष उपाय तुमको ठीक न पड़े, इसलिए तो शिव अनेक उपाय बताए चले जाते है। कोई एक विधि चुन लो जो तुमको जच जाए।
और यह जानना कठिन नहीं है। कि कौन सी विधि तुम्हें जंचती है। हम यहां प्रत्येक विधि को समझाने की कोशिश करेंगे। तुम अपने लिए यह विधि समझो जो कि तुम्हें और तुम्हारे मन को रूपांतरित करदे यह समझ,बौद्धिक समझ बुनियादी तौर से जरूरी है। लेकिन अंत नहीं है। जिस विधि की भी चर्चा मैं यहां का उसको प्रयोग करो। सब में यह है, कि जब तुम अपनी सही विधि का प्रयोग करते हो, तब झट से उसका तार तुम्हारे किसी तार से लगाकर बज उठता है।
एक विधि को उसके साथ तीन दिन खेलो। अगर तुम्हें उसके साथ निकटता की अनुभूति हो, अगर उसके साथ तुम थोड़ा स्वस्थ महसूस करो, अगर तुमने समझा कि यह तुम्हारे लिए है तो फिर उसके प्रति गंभीर हो जाओ। तब दूसरी विधियों को भूल जाओ, उनमें खेलना बंद करो। और अपनी विधि के साथ टीको, कम से कम तीन महीने टीको। चमत्कार संभव है। बस इतना होना चाहिए कि वह विधि सचमुच तुम्हारे लिए हो। यदि तुम्हारे लिए नहीं है तो कुछ नहीं होगा। तब उसके साथ जन्मो-जन्मों तक प्रयोग करके भी कुछ नहीं होगा।
लेकिन ये एक सौ बारह विधियां तो समस्त मानव-जाति के लिए है। और वे उन सभी युगों के लिए है जो गुजर गए है और आने वाले है। और किसी भी युग में एक बी एसा आदमी नहीं हुआ, और न होने वाला ही है। जो कह सके कि ये सभी एक सौ बारह विधियां मेरे लिए व्यर्थ है। असंभव, यह असंभव है।
प्रत्येक ढंग के चित के लिए यहां गुंजाइश है। तंत्र में प्रत्येक किस्म के चित्त के लिए विधि है। कई विधियां है जिनके उपयुक्त आदमी अभी उपलब्ध नहीं है, वे भविष्य के लिए है। और ऐसी विधियां भी है जिनके उपयुक्त मनुषय रहे ही नहीं। वे अतीत के लिए है। लेकिन डर मत जाना। अनेक विधियां है जो तुम्हारे लिए ही हैं।
विज्ञान भैरव तंत्र
भाग-1(तंत्र सूत्र)
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know