॥। अथ द्वितीयो5ध्याय:
।।
दूसरा अध्याय
'मनसाचचितित कार्य अर्थानमनसे, सोचे हुए कार्य
की वाणी द्वारा प्रकट नहीं करना चाहिए, परंतु मननपूर्वक भली
प्रकार सोचते हुए उसकी रक्षा करनी चाहिए और स्वयं चुप रहते हुए उस सोची हुई बात को
कार्यरूप में बदलना चाहिए।
The thought work should not
be revealed by the voice, but it should be protected by thinking carefully well
and keeping quiet itself, turning that thought into a work form.
अनृतं साहसं माया
मूर्खत्वमतिलुब्धता।
अशौचचत्वं निर्दयत्वं
सत्रीणां दोषा: स्वभावजा:।।
झूठ बोलना, बिना
सोचे-समझे किसी कार्य को प्रारंभ कर देना, दुस्साहस करना,
छलकपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्र रहना और निर्दयता-ये स्त्रियों के
स्वाभाविक दोष हैं। ।।1।।
स्त्रियों में
प्रायः ये दोष पाए जाते हैं--वे सामान्य बात पर भी झूठ बोल सकती हैं, अपनी
शक्ति का विचार न करके अधिक साहस दिखाती हैं, छल-कपट पूर्ण
कार्य करती हैं, मूर्खता, अधिक लोभ,
अपवित्रता तथा निर्दयी होना, ये ऐसी बातें हैं
जो प्राय: स्त्रियों के स्वभाव में होती हैं। ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं
अर्थात अधिकांश स्त्रियों में ये होते हैं। अब तो स्त्रियां शिक्षित होती जा रही
हैं। समय बदल रहा है। लेकिन आज भी अधिकांश अशिक्षित स्त्रियां इन दोषों से युक्त
हो सकती हैं। इन दोषों को स्त्री की समाज में स्थिति और उसके परिणामस्वरूप बने उनके
मनोविज्ञान के संदर्भ में देखना चाहिए।
Lying,
starting an act without thinking, audacity, deceitfulness, foolish acts,
coveting, being profane, and cruelty are the natural faults of women. 1।।
Women
often have these defects — they can lie even on the ordinary thing, show more
courage by not thinking about their power, do deceitful acts, stupidity, more
greed, profanity and being cruel, these are things that often happen in the
nature of women. These are the natural defects of women, that is, most women
have them. Now women are getting educated. Times are changing. But even today,
most uneducated women may be prone to these defects. These defects should be
seen in the context of the woman's position in society and their psychology
created as a result.
भोज्यं भोजनशक्तिश्न
रतिशक्तिरवरांगना।
विभवो दानशक्तिश्न ना$ल्पस्थ तपस: फलम्।।
भोजन के लिए अच्छे
पदार्थों का प्राप्त होना, उन्हें खाकर पचाने की शक्ति होना, सुंदर स्त्री का मिलना, उसके उपभोग के लिए कामशक्ति
होना, धन के साथ-साथ दान देने की इच्छा होना--ये बातें
मनुष्य को किसी महान तप के कारण प्राप्त होती हैं। ।।2।।
भोजन में अच्छी
वस्तुओं की कामना सभी करते हैं, परंतु उनका प्राप्त होना और उन्हें
पचाने की शक्ति होना भी आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसकी पत्नी सुंदर
हो, परंतु उसके उपभोग के लिए व्यक्ति में कामशक्ति भी होनी
चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसके पास धन हो, परंतु
धन प्राप्ति के बाद कितने ऐसे लोग हैं, जो उसका सदुपयोग कर
पाते हैं। धन का सदुपयोग दान में ही है। अच्छी जीवन संगिनी, शारीरिक
शक्ति, पौरुष एवं निरोगता, धन तथा
वक्त-- जरूरत पर किसी के काम आने की प्रवृत्ति आदि पूर्वजन्मों में किन्ही शुभ
कर्मों द्वारा ही प्राप्त होते हैं। तपस: फलम्” का अर्थ है
कठोर श्रम और आत्मसंयम।
To
get good things for food, to have the power to eat and digest them, to get a
beautiful woman, to have the power to consume her, to have the desire to donate
along with wealth - these things are obtained by man due to some great
tenacity. 2।।
Everyone wishes for good
things in food, but it is also necessary to have the power to get them and
digest them. Every man wants his wife to be beautiful, but for her consumption,
the person should also have the work power. Every person wants to have money,
but after getting money, there are so many people who are able to make good use
of it. The good use of money is in charity. Good life partner, physical
strength, virility and well-being, money and the tendency to be useful to
someone on time-need, etc. are obtained only by some auspicious deeds in
previous lives. Tapas: "Phalam" means hard labour and self-restraint.
यस्य पुत्रो वशीभूतो
भार्या छन््दा5नुगामिनी।
विभवे यश्च सन््तुष्टस्तस्य
स्वर्ग इहैव हि।।
जिसका बेटा वश में
रहता है,
पत्नी पति की इच्छा के अनुरूप कार्य करती है और जो व्यक्ति धन के
कारण पूरी तरह संतुष्ट है, उसके लिए पृथ्वी ही स्वर्ग के
समान है। ।3।।
प्रत्येक व्यक्ति
संसार में सुखी रहना चाहता है, यही तो स्वर्ग है। स्वर्ग में भी सभी
प्रकार के सुखों को उपभोग करने की कल्पना की गई है। इस बारे में चाणक्य कहते हैं
कि जिसका पुत्र वश में है, स्त्री जिसकी इच्छा के अनुसार
कार्य करती है, जो अपने कमाए धन से संतुष्ट है, जिसे लोभ-लालच और अधिक कमाने की चाह नहीं है, ऐसे
मनुष्य के लिए किसी अन्य प्रकार के स्वर्ग की कल्पना करना व्यर्थ है। स्वर्ग तो वह
जाना चाहेगा, जो यहां दुखी हो।
For
one whose son is subdued, the wife acts according to the husband's will and for
a person who is completely satisfied with wealth, the earth is like heaven. 3।।
Everyone
wants to be happy in the world, that is heaven. It is conceived to consume all
kinds of pleasures even in heaven. Chanakya says that it is futile for such a
man whose son is subdued, the woman who works according to whose will, who is
satisfied with the money earned, who does not want greed and more earning, to
imagine any other kind of heaven. Heaven will be like to go to one who is
unhappy here.
ते पुत्रा ये
पितुर्भक्ता: स पिता यस्तु पोषक:।
तम्समित्रं यस्य
विश्वास: सा भार्या यत्र निर्वति:।।
पुत्र उन्हें ही
कहा जा सकता है जो पिता के भक्त होते हैं, पिता भी वही है जो पुत्रों
का पालन-पोषण करता है, इसी प्रकार मित्र भी वही है जिस पर
विश्वास किया जा सकता है और भार्या अर्थात पत्नी भी वही है जिससे सुख की प्राप्ति
होती है। ।4।।
चाणक्य का मानना
है कि वही गृहस्थ सुखी है, जिसकी संतान उसके वश में है और उसकी आज्ञा
का पालन करती है। यदि संतान पिता की आज्ञा का पालन नहीं करती तो घर में क्लेश और
दुख पैदा होता है। चाणक्य के अनुसार पिता का भी कर्तव्य है कि वह अपनी संतान का
पालन-पोषण भली प्रकार से करे। जिसने अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लिया हो, उसे पुत्र से भी भक्ति की आशा नहीं करनी चाहिए। इसी प्रकार मित्र के विषय
में चाणक्य का मत है कि ऐसे व्यक्ति को मित्र कैसे कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सकता और ऐसी पत्नी किस काम की, जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न हो तथा जो सदैव ही क्लेश करके घर में
अशान्ति फैलाती हो।
A
son can only be said to be those who are devotees of the father, the father is
also the one who nurtures the sons, similarly the friend is also the one who
can be trusted and Bharya i.e. the wife is also the one who attains happiness.
4।।
Chanakya believes that the same householder is happy, whose
children are in his control and obey him. If the child does not obey the
father, then there is distress and sorrow in the house. According to Chanakya,
it is also the duty of the father to raise his child well. One who has turned
away from his duties should not expect devotion even from the son. Similarly,
Chanakya is of the opinion about a friend that how can such a person be called
a friend, who cannot be trusted and what is the use of such a wife, who does
not get any kind of happiness and who always spreads unrest in the house by
suffering.
परोक्षे कार्यहन्तारं
प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्र
विषकुम्भ पयोमुखम्।।
जो पीठ पीछे कार्य
को बिगाड़े और सामने होने पर मीठी-मीठी बातें बनाए, ऐसे मित्र को उस
घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके मुंह पर तो दूध भरा हुआ है परंतु अंदर विष
हो। ।॥5।।
जो मित्र सामने
चिकनी-चुपड़ी बातें बनाता हो और पीठ पीछे उसकी बुराई करके कार्य को बिगाड़ देता हो, ऐसे
मित्र को त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है,
जिसके ऊपर के हिस्से में दूध भरा है परंतु अंदर विष भरा हुआ हो।
ऊपर से मीठे और
अंदर से दुष्ट व्यक्ति को मित्र नहीं कहा जा सकता। यहां एक बात विशेष रूप से ध्यान
देने की है कि ऐसा मित्र आपके व्यक्तिगत और सामाजिक वातावरण को भी आपके प्रतिकूल
बना देता है।
A
friend who spoils the work behind his back and makes sweet things when he is in
front, such a friend should be abandoned like a pitcher whose mouth is full of
milk but poison inside. 5।।
It is good to abandon a
friend who makes smooth things in front of him and spoils the work by doing
evil to him behind his back. Chanakya says that it is like a vessel, whose
upper part is filled with milk but inside it is full of poison. A sweet person from above and evil on the
inside cannot be called a friend. One thing to note here is that such a friend
also makes your personal and social environment adverse to you.
न विश्वसेत्
कुमित्रे च मित्रे चाउपि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं
मित्र सर्व गुहूं प्रकाशयेत्।।
जो मित्र खोटा है, उस
पर विश्वास नहीं करना चाहिए और जो मित्र है, उस पर भी अति
विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा हो सकता है कि वह मित्र कभी नाराज होकर सारी
गुप्त बातें प्रकट कर दे। ।।6।।
चाणक्य मानते हैं
कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास करने का प्रश्न ही नहीं उठता, परंतु
उनका यह भी कहना उचित है कि अच्छे मित्र के संबंध में भी पूरी तरह विश्वास नहीं
करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि वह नाराज हो गया तो
सारे भेद खोल देगा। आज बड़े-बड़े नगरों में जो अपराध बढ़ रहे हैं, जो कुकर्म हो रहे हैं, उनके पीछे परिचित व्यक्ति ही
अधिक पाए जाते हैं। 'घर का भेदी लंका ढाए'--यह कहावत गलत नहीं है। जो बहुत अच्छा मित्र बन जाता है, वह घर के सदस्य जैसा हो जाता है। व्यक्ति भावुक होकर उसे अपने सारे भेद
बता देता है, फिर जब कभी मन-मुटाव उत्पन्न होते हैं तो वह
कथित मित्र ही सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला सिद्ध होता है। ऐसा मित्र जानता है
आपके र्मस्थल कौन से हैं। घर में काम करने वाले कर्मचारी के बारे में भी इस प्रकार
की सावधानी रखना आवश्यक है।
The
friend who is false should not be trusted and the friend who is also not
trusted too much, because it may happen that the friend will sometimes get
angry and reveal all the secret things. 6।।
Chanakya believes that
there is no question of believing in a person who is not a good friend, but it
is also fair to say that one should not believe completely in relation to a
good friend, because for some reason if he gets angry, he will open all the
distinctions. Today, the crimes that are increasing in big cities, the misdeeds
that are happening, the familiar people are found more behind them. The saying
'ghar ka bhedi Lanka dhaaye' is not wrong. One who becomes a very good friend
becomes like a member of the household. The person gets emotional and tells him
all his secrets, then whenever there are conflicts, that so-called friend
proves to be the most harmful. Such a friend knows which are your places. It is
also necessary to take this type of caution about the employee working in the
house.
मनसा चिन्तितं कार्य
वाचा नैव प्रकाशयेत्।
मन्त्रेण रक्षयेद्
गूढं कार्ये चाईपि नियोजयेत्।।
मन
से सोचे हुए कार्य को वाणी द्वारा प्रकट नहीं करना चाहिए, परंतु मननपूर्वक भली प्रकार सोचते हुए उसकी रक्षा करनी चाहिए और चुप रहते
हुए उस सोची हुई बात को कार्यरूप में बदलना चाहिए। ।।7।।
आचार्य
का कहना है कि व्यक्ति को कभी किसी को अपने मन का भेद नहीं देना चाहिए। जो भी
कार्य करना है, उसे अपने मन में रखें और समय आने पर पूरा
करें। कुछ लोग किए जाने वाले कार्य के बारे में गाते रहते हैं। इस प्रकार उनकी बात
का महत्व कम हो जाता है और यदि किसी कारणवश वह व्यक्ति उक्त कार्य को पूरा न कर
सके तो उसकी हंसी होती है। इससे व्यक्ति का विश्वास भी कम होता है। फिर कुछ समय
बाद ऐसा होता है कि लोग उसकी बातों पर ध्यान नहीं देते। उसे बे-सिर-पैर की हांकने
वाला समझ लिया जाता है। अतः बुद्धिमान को कहने से अधिक करने के प्रति प्रयत्नशील
होना चाहिए।
The work thought
from the mind should not be revealed by speech, but it should be protected by
thinking well with mind and should be turned into a work form while remaining
silent. 7।।
Acharya says that
a person should never give his mind to anyone. Whatever work you have to do,
keep it in your mind and complete it when the time comes. Some people keep
singing about the work to be done. In this way, the importance of his talk
decreases and if for some reason that person cannot complete the said work,
then he laughs. It also reduces the person's confidence. Then after some time
it happens that people do not pay attention to his words. He is mistaken for a
head-toe. Therefore, the wise should strive to do more than they say.
कष्ट च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु
यौवनम्।
कष्ट तु कष्टतरं चैव परगेहनिवासनम्।।
मूर्खता
और जवानी निश्चित रूप से दुखदायक होती है। दूसरे के घर में निवास करना अर्थात किसी
पर अश्रित होना तो अत्यन्त कष्टदायक होता है। ।।8।।
मूर्ख
होना कष्टदायक है, क्योंकि वह स्वयं को, अपनों को और दूसरों को एक समान हानि पहुंचाता है। मूर्खता के समान यौवन भी
दुखदायी इसलिए माना गया है क्योंकि उसमें व्यक्ति काम, क्रोध
आदि विकारों के आवेग में उत्तेजित होकर कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है,
जिसके कारण उसे उसके अपनों और दूसरे लोगों को अनेक कष्ट उठाने पड़
सकते हैं। चाणक्य कहते हैं कि ये बातें तो कष्टदायक हैं ही परंतु इनसे भी अधिक
कष्टदायक है दूसरे के घर में रहना, क्योंकि दूसरे के घर में
रहने से व्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है, जिससे
व्यक्तित्व का पूर्णरूप से विकास नहीं हो पाता
Stupidity and
youth are definitely painful. It is very painful to live in another's house,
that is, to be angry at someone. 8।।
It is painful to be foolish, because he
causes harm to himself, his own and others alike. Like stupidity, youth is also
considered painful because in it a person can do any foolish work by getting
agitated in the impulse of vices like work, anger, etc., due to which he may
have to suffer many sufferings to his loved ones and other people. Chanakya
says that these things are painful, but even more painful is to live in another's
house, because living in another's house ends the freedom of the person, due to
which the personality is not fully developed.
शैले शैले न माणिक्यं
मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो न हि सर्वत्र
चन्दनं न वने वने।।
सभी
पहाड़ों पर रत्न और मणियां नहीं मिलतीं। न ही प्रत्येक हाथी के मस्तक में गजमुक्ता
नामक मणि होती है। प्रत्येक वन में चंदन भी उत्पन्न नहीं होता। इसी प्रकार सज्जन
पुरुष सब स्थानों पर नहीं मिलते। ।।9।।
आचार्य
चाणक्य के अनुसार प्रत्येक स्थान पर सब कुछ उपलब्ध नहीं होता। विशिष्ट वस्तुएं
विशेष स्थानों पर ही होती हैं। उन्हें वहीं ढूंढ़ना चाहिए और उसी के अनुसार उनका
मूल्यांकन भी करना चाहिए।
माणिक्य
एक लाल रंग का बहुमूल्य रत्न होता है जो सभी पर्वतों पर अथवा खानों में प्राप्त
नहीं हो सकता। ऐसी मान्यता है कि विशिष्ट हाथियों के माथे में एक बहुमूल्य मोती
होता है। सब जंगलों और वनों में चंदन के वृक्ष जिस प्रकार नहीं मिलते, उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति भी सभी स्थानों पर दिखाई नहीं देते अर्थात
श्रेष्ठ वस्तुएं मिलनी दुर्लभ होती हैं।
Gems and beads
are not found on all mountains. Nor does every elephant have a gem called
Gajmukta in its head. Sandalwood is not even produced in every forest.
Similarly, gentlemen are not found in all places. 9।।
According to Acharya
Chanakya, not everything is available at every place. Specific objects occur
only in particular places. They should be found there and evaluated accordingly. Manikya is a precious gemstone of red color
which cannot be found on all mountains or in mines. It is believed that typical
elephants have a precious pearl in their foreheads. Just as sandalwood trees
are not found in all forests and forests, similarly gentlemen are also not seen
in all places, that is, it is rare to find the best things.
पुत्राश्न विविधै: शीलैर्नियोज्या:
सततं बुधे:।
नीतिज्ञा: शीलसम्पन्ना भवन्ति
कुलपूजिता:।।
बुद्धिमान लोगों
को चाहिए कि वह अपने पुत्र और पुत्रियों को अनेक प्रकार के अच्छे गुणों से युक्त
करें। उन्हें अच्छे कार्यों में लगाएं, क्योंकि नीति जानने वाले
और अच्छे गुणों से युक्त सज्जन स्वभाव वाले व्यक्ति ही कुल में पूजनीय होते हैं।
।।0॥।
चाणक्य कहते हैं
कि बचपन में बच्चों को जैसी शिक्षा दी जाएगी, उनके जीवन का विकास उसी
प्रकार का होगा, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें
ऐसे मार्ग पर चलाएं, जिससे उनमें चातुर्य के साथ-साथ शील
स्वभाव का भी विकास हो। गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा होती है।
Wise
people should have their sons and daughters with many good qualities. Put them
in good works, because only people who know policy and have a gentleman's nature
with good qualities are revered in the clan. 10॥।
Chanakya says that the way
children will be taught in childhood, the development of their life will be the
same, so it is the duty of parents to lead them on such a path, so that they
develop tact as well as modesty nature. The family is adorned only by virtuous
people.
माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न
पाठित:।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको
यथा।।
वे माता-पिता
बच्चों के शत्रु हैं, जिन्होंने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया नहीं,
क्योंकि अनपढ़ बालक विद्वानों के समूह में शोभा नहीं पाता, उसका सदैव तिरस्कार होता है। विद्वानों के समूह में उसका अपमान उसी प्रकार
होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। ।।11।।
केवल मनुष्य जन्म लेने
से ही कोई बुद्धिमान नहीं हो जाता। उसके लिए शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। शक््ल-सूरत, आकार-प्रकार
तो सभी मनुष्यों का एक जैसा होता है, अंतर केवल उनकी
दिद्वत्ता से ही प्रकट होता है। जिस प्रकार सफेद बगुला सफेद हंसों में बैठकर हंस
नहीं बन सकता, उसी प्रकार अशिक्षित व्यक्ति शिक्षित
व्यक्तियों के बीच में बैठकर शोभा नहीं पा सकता। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि
वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें, जिससे वे समाज की शोभा बन
सकें।
Those parents are enemies of children, who did not teach children, because the illiterate child does not adorn the group of scholars, he is always despised. His humiliation in the group of scholars is in the same way as the position of a heron in a flock of swans. 11।।
No one becomes wise
only by being born a human being. It is very important for him to be educated.
The power-appearance, shape-type are the same for all human beings, the
difference is revealed only by their scholarship. Just as a white heron cannot
become a swan sitting in white swans, so an uneducated person cannot be adorned
by sitting among educated persons. Therefore, it is the duty of parents to give
such education to the children, so that they can become the beauty of the
society.
लालनादू बहवो दोषास्ताडनादू बहवो
गुणा:।
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न
तु लालयेत।।
लाड़-दुलार से
पुत्रों में बहुत से दोष उत्पन्न हो जाते हैं। उनकी ताड़ना करने से अर्थात दंड
देने से उनमें गुणों का विकास होता है, इसलिए पुत्रों और शिष्यों
को अधिक लाड़-दुलार नहीं करना चाहिए, उनकी ताड़ना करते रहनी
चाहिए। ।।42॥।
यह ठीक है कि
बच्चों को लाड़-प्यार करना चाहिए, किंतु अधिक लाड़-प्यार करने से बच्चों
में अनेक दोष भी उत्पन्न हो सकते हैं। माता-पिता का ध्यान प्रेमवश उन दोषों की ओर
नहीं जाता। इसलिए बच्चे यदि कोई गलत काम करते हैं तो उन्हें पहले ही समझा-बुझाकर
उस गलत काम से दूर रखने का प्रयत्न करना चाहिए। बच्चे के द्वारा गलत काम करने पर,
उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं। बच्चे को डांटना भी
चाहिए। किए गए अपराध के लिए दंडित भी करना चाहिए ताकि उसे सही-गलत की समझ आए।
Pampering creates many defects in sons. By chastising them, that is, by punishing them, qualities develop in them, so sons and disciples should not be pampered too much, they should continue to chastise. 42॥।
It
is okay that children should be pampered, but excessive pampering can also
cause many defects in children. Parents' attention does not go towards those
defects out of love. Therefore, if children do any wrong thing, then they should
try to keep them away from that wrong thing by explaining them in advance. When
the child does the wrong thing, it is not appropriate to ignore him and pamper
him. The child should also be scolded. He should also be punished for the crime
committed so that he understands right and wrong.
श्लोकेन वा तदर्धेन पादेनैकाक्षरेण
वा।
अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययन
कर्मभि:।।
व्यक्ति को एक
वेदमंत्र का अध्ययन, चिंतन अथवा मनन करना चाहिए। यदि वह पूरे
मंत्र का चिंतन-मनन नहीं कर सकता तो उसके आधे अथवा उसके एक भाग का और यदि एक भाग
का भी नहीं तो एक अक्षर का ही प्रतिदिन अध्ययन करे, ऐसा
नीतिशास्त्र का आदेश है। अपने दिन को व्यर्थ न जाने दें। अध्ययन आदि अच्छे कार्यों
को करते हुए अपने दिन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करें। ।।3॥।
चाणक्य कहते हैं
कि मनुष्य जन्म बड़े भाग्य से मिलता है, इसलिए उसे व्यर्थ नहीं
जाने देना चाहिए--व्यक्ति को चाहिए कि वह अपना समय, अपना दिन
वेदादि शास्त्रों के अध्ययन में ही बिताए तथा उसके साथ-साथ दान आदि अच्छे कार्य भी
करे। महान पुरुषों की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा गया है--“व्यसनं श्रुतौ” अर्थात् श्रेष्ठ ग्रंथों का अध्ययन
करना उनका व्यसन होता है।
One should study, contemplate or meditate on a Veda mantra. If he cannot contemplate the whole mantra, then he should study half or one part of it and if not even one part, then only one letter is studied daily, it is the order of ethics. Don't let your day go in vain. Try to make your day meaningful by doing good work like study etc. 13॥।
Chanakya
says that a person is born with great fortune, so he should not be allowed to
go in vain - a person should spend his time, his day studying vedadi scriptures
and along with it, do good works like charity etc. Describing the
characteristics of great men, it has been said - "Addiction, Shrutau"
i.e. studying the best texts is their addiction.
कान्तावियोग: स्वजनापमान: ऋणस्य
शेष: कुनृपस्य सेवा।
दरिद्रभावो विषमा सभा च
विनानिनिनैते प्रदहन्ति कायम्।।
पत्नी का बिछड़ना, अपने
बंधु-बांधवों से अपमानित होना, कर्ज चढ़े रहना, दुष्ट अथवा बुरे मालिक की सेवा में रहना, निर्धन बने
रहना, दुष्ट लोगों और स्वार्थियों की सभा अथवा समाज में रहना,
ये सब ऐसी बातें हैं, जो बिना अग्नि के शरीर
को हर समय जलाती रहती हैं। ।।4।।
सज्जन लोग अपनी
पत्नी के वियोग को सहन नहीं कर सकते। यदि उनके अपने भाई-बन्धु उनका अपमान अथवा
निरादर करते हैं तो वह उसे भी नहीं भुला सकते। जो व्यक्ति कर्जे से दबा है, उसे
हर समय कर्ज न उतार पाने का दुख रहता है। दुष्ट राजा अथवा मालिक की सेवा में रहने
वाला नौकर भी हर समय दुखी रहता है। निर्धनता तो ऐसा अभिशाप है, जिसे मनुष्य सोते और उठते-बैठते कभी नहीं भुला पाता। उसे अपने स्वजनों और
समाज में बार-बार अपमानित होना पड़ता है। अपमान का वष्ट मृत्यु के समान है। ये सब
बातें ऐसी हैं, जिनसे बिना आग के ही व्यक्ति अंदर-ही-अंदर
जलता रहता है। जीते-जी चिता का अनुभव करने की स्थिति है यह।
The separation of the wife, being humiliated by her brothers and sisters, being in debt, living in the service of the evil or evil master, remaining poor, living in the assembly or society of evil people and selfish people, all these things, which keep burning the body all the time without fire. 14।।
Gentlemen cannot tolerate their wife's disconnection. If his own
brothers and sisters insult him, he cannot forget that either. The person who
is under debt, he is sad about not being able to repay the debt all the time.
The servant who is in the service of the evil king or master is also unhappy
all the time. Poverty is such a curse that man can never forget while sleeping
and sitting. He has to be humiliated again and again in his relatives and
society. The meaning of humiliation is like death. All these things are such
that a person keeps burning inside without fire. This is the state of
experiencing the pyre while living.
नदीतीरे च ये वृक्षा: परगेहेषु
कामिनी।
मन्त्रिहीनाश्व राजान: शीघ्र
नश्यन्त्यसंशयम्।।
जो वृक्ष बिलकुल
नदी के किनारे पैदा होते हैं, जो स्त्री दूसरों के घर में रहती है और
जिस राजा के मंत्री अच्छे नहीं होते वे जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। ।। 15॥।
नदी के किनारे के
वृक्षों का जीवन कितने दिन का हो सकता है, यह कोई नहीं कह सकता,
क्योंकि बाढ़ तथा तूफान के समय नदियां अपने किनारे के पेड़ों को ही
क्या, अपने आसपास की फसलों और बस्तियों को भी उजाड़ देती
हैं। इसी प्रकार दूसरे घरों में रहने वाली स्त्री कब तक अपने आपको बचा सकती है?
जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले मंत्री नहीं होते, वह कब तक अपने राज्य की रक्षा कर सकता है? अर्थात ये
सब निश्चयपूर्वक जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं।
There is no doubt that the trees that are born on the banks of the river, the woman who lives in the house of others, and the king whose ministers are not good, are soon destroyed. 15॥।
No one can say how long the life of
the trees on the banks of the river can be, because in the time of floods and
storms, the rivers destroy not only the trees on their banks, but also the
crops and settlements around them. Similarly, how long can a woman living in
other houses save herself? How long can a king who does not have ministers who
give good advice protect his kingdom? That is, all these are definitely
destroyed soon.
बलं विद्या च विप्राणां राज्ञां
सैन्यं बलं तथा।
बलं वित्तं च वैश्यानां शूद्राणां परिचर्यकम्।।
ब्राह्मणों का बल
विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना, व्यापारियों
का बल उनका धन है और शूद्रों का बल दूसरों की सेवा करना है। |।6।।
ब्राह्मणों का
कर्तव्य है कि विद्या ग्रहण करें। राजाओं का कर्तव्य यह है कि सैनिकों द्वारा वे
अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों को चाहिए कि वे पशु-पालन और व्यापार द्वारा धन
बढ़ाएं,
शूद्रों का बल सेवा है। चाणक्य ने इस श्लोक में चारों वर्णों के
कर्तव्यों की ओर संकेत किया है। उनके अनुसार--चारों वर्णों को अपने-अपने कार्यों
में निपुण होना चाहिए। समाज में किसी की स्थिति कम नहीं है। समय के अनुसार
परिस्थितियां बदलती हैं, संभवतः किसी समय जन्म के अनुसार
चारों वर्ण माने जाते रहे हों, परंतु तथ्य यह है कि वर्णों
की मान्यता कार्यों पर निर्भर करती है। इसलिए किसी भी कुल में जन्म लेने वाला
व्यक्ति शिक्षा के क्षेत्र में है, तो उसे ब्राह्मण ही माना
जाएगा। जो व्यक्ति व्यापार करता है, कृषि कार्य में लगा है,
पशु-पालन करता है उसे वैश्य माना जाएगा। जो सेना में भर्ती हैं अथवा
सेना से संबंधित कार्य कर रहा है, उसे क्षत्रिय कहा जाएगा।
शेष व्यक्ति शूद्रों की श्रेणी में आते हैं। शूद्र भी शिक्षित हो सकता है। परंतु
किसी भी वर्ण में पैदा हुआ व्यक्ति, जो लोगों की सेवा के
कार्य में लगा है, उसे शूद्र माना जाएगा--शूद्र का अर्थ नीच
नहीं है। आज्ञापालन की भावना शूद्र का विशेष गुण है। प्रायः इस श्रेणी के लोग
मानसिक रूप से संतुष्ट होते हैं।
The strength of Brahmins is learning, the strength of kings is their army, the strength of traders is their wealth and the strength of Shudras is to serve others. |. 16।।
It is the duty of
Brahmins to receive knowledge. It is the duty of kings to keep increasing their
force by soldiers. Vaishyas should increase wealth through animal husbandry and
trade, the force of Shudras is service. Chanakya has pointed out the duties of
the four varnas in this verse. According to him, the four varnas should be
proficient in their respective tasks. No one's position in society is less.
Circumstances change over time, probably at some point of time the four varnas
were considered according to birth, but the fact is that the recognition of
characters depends on actions. Therefore, if a person born in any clan is in
the field of education, then he will be considered a Brahmin. A person who does
business, is engaged in agricultural work, rears animals will be considered as
a Vaishya. Those who are recruited in the army or are doing army related work
will be called Kshatriya. The remaining persons fall under the category of
Shudras. Shudras also ...
निर्धनं पुरुष वेश्या प्रजा भग्नं
नृपं त्यजेत्।
खगा वीतफल वृक्ष भुक्त्वा चा5भ्यागता
गृहम्।।
वेश्या निर्धन
पुरुष को,
प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलहीन वृक्षों को
और अचानक आया हुआ अतिथि भोजन करने के बाद घर को त्यागकर चले जाते हैं। ।।7।।
आचार्य ने यहां
संबंधों की सार्थकता की ओर संकेत किया है। कोई तभी तक संबंध रखता है, जब
तक उसके स्वार्थ की पूर्ति होती है। वेश्या का धंधा परपुरुषों से धन लूटना होता
है। धन के समाप्त होने पर वह मुंह मोड़ लेती है। प्रजा प्रतापी राजा को ही सम्मान
देती है। जब वह शक्तिहीन हो जाता है तो प्रजा राजा का साथ छोड़ देती है। इसी
प्रकार प्रकृति के सामान्य नियम के अनुसार--वृक्षों पर रहने वाले पक्षी तभी तक
किसी वृक्ष पर बसेरा रखते हैं, जब तक वहां से उन्हें छाया और
फल प्राप्त होते रहते हैं। घर में अचानक आने वाले अतिथि का जब भोजन-पान आदि से
स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह भी सामाजिक नियम के अनुसार विदा लेकर अपने
लक्ष्य की ओर चल पड़ता है। भाव यह है कि व्यक्ति को अपने सम्मान की रक्षा का स्वयं
ध्यान रखना चाहिए। उसे अपेक्षा करते समय संबंधों के स्वरूप को सही प्रकार से समझना
चाहिए। किसी स्थान, व्यक्ति या वस्तु से आवश्यकता से अधिक
लगाव नहीं रखना चाहिए।
The prostitutes leave the house after eating the poor man, the subjects the defeated king, the birds the fruitless trees and the guest who suddenly come. 17।।
Acharya has pointed out the
significance of the relationship here. One belongs only as long as one's
self-interest is fulfilled. The business of prostitutes is to loot money from
men. She turns her back when the money runs out. The people respect the
majestic king. When he becomes powerless, the people leave the king's side.
Similarly, according to the general law of nature- birds living on trees keep
lying on a tree only as long as they continue to get shade and fruit from there.
When the guest who suddenly comes to the house is welcomed with food and drink
etc., he also leaves according to the social rule and walks towards his goal.
The feeling is that one should take care of oneself to protect one's honor. He
should understand the nature of the relationship properly when expecting it.
One should not be attached to a place, person or object more than necessary.
गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति
यजमानकम्|
प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धा5रण्यं
मृगास्तथा।।
ब्राह्मण दक्षिणा
प्राप्त करने के बाद यजमान का घर छोड़ देते हैं, विद्या प्राप्त
करने के बाद शिष्य गुरु के आश्रम से विदा ले लेता है, वन में
आग लग जाने पर वहां रहने वाले हिरण आदि पशु उस जंगल को छोड़कर किसी दूसरे जंगल की
ओर चल देते हैं। ।18।।
यह श्लोक भी उसी
बात की पुष्टि करता है, जिसे पहले कहा गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी
विशेष कार्य के कारण किसी के पास जाता है, तो अपना कार्य
सिद्ध हो जाने पर उसे वह स्थान छोड़ देना चाहिए, जिस प्रकार
ब्राह्मण लोग यजमान के किसी कार्य की पूर्ति के बाद दक्षिणा प्राप्त हो जाने पर
आशीर्वाद देकर वहां से चले जाते हैं। शिष्य भी विद्या की प्राप्ति के बाद गुरुकुल
छोड़कर अपने-अपने घर चले जाते हैं। जब किसी जंगल में आग लग जाती है तो वहां रहने
वाले पशु भी उस जंगल को छोड़कर किसी दूसरे जंगल की खोज में चल पड़ते हैं अर्थात
व्यक्ति को अपना कार्य समाप्त हो जाने पर किसी के यहां डेरा डालने की मंशा नहीं
करनी चाहिए।
दुराचारी दुरदृष्टि्दुरा5डवासी
च दुर्जन:।
यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नर:
शीघ्रं विनश्यति।।
बुरे चरित्र वाले, अकारण
दूसरे को हानि पहुंचाने वाले तथा गंदे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष
मित्रता करता है, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है। ।।19।।
सभी साधु-संतों, ऋषि-मुनियों
का कहना है कि दुर्जन का संग नरक में वास करने के समान होता है, इसलिए मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे। आचार्य ने यहां यह भी संकेत किया है कि
मित्रता करते समय यह भली प्रकार से जांच-परख लेना चाहिए कि जिससे मित्रता की जा
रही है, उसमें ये दोष तो नहीं हैं। यदि ऐसा है, तो उससे होने वाली हानि से बच पाना संभव नहीं। इसलिए ज्यादा अच्छा है कि
उससे दूर ही रहा जाए।
Brahmins leave the host's house after receiving dakshina, after receiving knowledge, the disciple leaves the guru's ashram, when the forest catches fire, the deer etc. living there leave that forest and go towards another forest. 18।।
This verse also confirms the same
thing as has been said earlier. If a person goes to someone due to a particular
task, then after his work is completed, he should leave the place, just as
Brahmins leave after blessing when dakshina is received after the completion of
any work of the host. The disciples also leave the gurukul after attaining
knowledge and go to their respective homes. When there is a fire in a forest,
the animals living there also leave that forest and go in search of another
forest, that is, the person should not intend to camp at anyone's place when
his work is over.
समाने शोभते प्रीति: राज्ञि सेवा च
शोभते।
वाणिज्यं व्यवहारेषु दिव्या स्त्री
शो भते गृहे।।
प्रेम व्यवहार
बराबरी वाले व्यक्तियों में ही ठीक रहता है। यदि नौकरी करनी ही हो तो राजा की
नौकरी करनी चाहिए। कार्य अथवा व्यवसाय में सबसे अच्छा काम व्यापार करना है। इसी
प्रकार उत्तम गुणों वाली स्त्री की शोभा घर में ही है। ।।20।।
अपनी बराबरी वाले
व्यक्ति से प्रेम-संबंध शोभा देता है। असमानता सामने आए बिना नहीं रहती, तब
प्रेम शत्रुता में बदल जाता है। इसलिए क्यों न पहले ही ध्यान रखा जाए। इसी प्रकार
यदि व्यक्ति को नौकरी तथा किसी सेवा कार्य में जाना है तो उसे प्रयत्न करना चाहिए
कि सरकारी सेवा प्राप्त हो, क्योंकि उसमें एक बार प्रवेश
करने पर अवकाश प्राप्त होने तक किसी विशेष प्रकार का झंझट नहीं रहता।
Love behavior is fine only in equal people. If you want to do a job, you must do a king's job. The best job in work or business is to do business. Similarly, the beauty of a woman with good qualities is in the house. 20।।
Love-relationship with a person equal to you is beautiful.
Inequality does not live without coming out, then love turns into enmity. So
why not take care in advance. Similarly, if a person has to go to a job and any
service work, then he should try to get government service, because once he
enters it, there is no special kind of hassle till he gets retirement.
फिर वह निर्दिष्ट
नियमों से संचालित होता है, न कि किसी व्यक्ति विशेष के आदेशों से। यदि
अन्य कार्य करना पड़े तो व्यक्ति अपना ही कोई रुचि का व्यापार करे। गुणयुक्त
स्त्री से घर की शोभा है और घर में अपनी मर्यादाओं और कर्तव्यों का पालन करते हुए
स्त्री भी अपने सदगुणों की रक्षा कर सकती है।
अध्याय का सार
इस अध्याय के
प्रारंभ में ही स्त्रियों की ओर ध्यान दिलाया गया है। देखा जाए तो दोष तो सभी में
होता है। कुछ के पास अनेक पदार्थ होते हैं, परंतु वे या तो उनका उपभोग
नहीं जानते अथवा फिर उनमें उपभोग की शक्ति नहीं होती। इस अध्याय में यह भी बताया
गया है कि कौन-सा परिवार सुखी रहता है। सुख उसी परिवार को प्राप्त होता है,
जहां सब एक- दूसरे का सम्मान करते हैं, एक-दूसरे
में श्रद्धा रखते हैं--अर्थात पुत्र को पिता और पिता को पुत्र का ध्यान रखना
चाहिए।
यह संसार बड़ा
विचित्र है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो सामने तो मीठी बातें
करते हैं, परंतु पीठ पीछे बुराइयां करते हैं। ऐसे लोगों से
बचना चाहिए। चाणक्य तो यहां तक कहते हैं कि मन से सोची हुई बात का वाणी से भी
उल्लेख नहीं करना चाहिए अर्थात अपना रहस्य अपने मित्र को भी नहीं बताना चाहिए।
मूर्खता तो कष्टदायक होती ही है, जवानी और दूसरे के घर में
आश्रित होकर रहना भी भारी दुख देने वाला होता है। उसके साथ यह भी ध्यान में रखना
चाहिए कि श्रेष्ठ और उत्तम वस्तुएं तथा सज्जन लोग सब स्थानों पर प्राप्त नहीं
होते।
चाणक्य ने बार-बार
इस बात पर जोर दिया है कि माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी संतान को गुणवान बनाएं, उनका
ध्यान रखें और उन्हें बिगड़ने न दें। आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति को चाहिए कि वह
अपना समय सार्थक बनाए, अच्छा कार्य करे। इसके साथ उनका कहना
है कि सब लोगों को अपना कार्य अर्थात कर्तव्य पूरा करना चाहिए। कौटिल्य ने मनुष्य
को बार-बार सचेत किया है कि उसे वास्तविकता समझनी चाहिए, गफलत
में नहीं रहना चाहिए। उसे यह ज्ञात होना चाहिए कि वेश्या का प्रेम एक धोखा है।
इसलिए उसे इस प्रकार की स्त्रियों तथा दुष्ट पुरुषों से बचना चाहिए। उसे चाहिए कि
वह प्रेम और मित्रता अपने बराबर वालों से ही रखे।
Then he is governed by specified rules,
not by the orders of a particular person. If other work has to be done, then
the person should do a business of his own interest. A quality woman is the
beauty of the house and while performing her limitations and duties in the
house, the woman can also protect her good qualities. The essence of the chapter is drawn to women
at the beginning of this chapter. If seen, the fault is in everyone. Some have
many substances, but they either do not know their consumption or they do not
have the power to consume them. This chapter also describes which family
remains happy. Happiness is attained by the same family, where everyone
respects each other, has faith in each other - that is, the son should take
care of the father and the father should take care of the son. This world is very strange. There are some
people who talk sweetly in front of them, but do evils behind their backs. Such
people should be avoided. Chanakya even says that the thought of the mind should
not be mentioned even by speech, that is, your secret should be told to your
friend...
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