परिचय
भारत में जिस शास्त्र की मदद से निरोगी होकर जीवन व्यतीत करने का
ज्ञान मिलता है उसे आयुर्वेद कहते है । आयुर्वेद में निरोगी होकर जीवन
व्यतीत करना ही धर्म माना गया है । रोगी होकर लंबी आयु को प्राप्त
करना या निरोगी होकर कम आयु को प्राप्त करना दोनों ही आयुर्वेद में
मान्य नहीं है । इसलिए जो भी नागरिक अपने जीवन को निरोगी रखकर
लंबी आयु चाहते हैं , उन सभी को आयुर्वेद के ज्ञान को अपने जीवन में
धारण करना चाहिए । निरोगी जीवन के बिना किसी को भी धन की
प्राप्ति , सुख की प्राप्ति , धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं । रोगी व्यक्ति
किसी भी तरह का सुख प्राप्त नहीं कर सकता हैं । रोगी व्यक्ति कोई भी
कार्य करके ठीक से धन भी नहीं कमा सकता हैं । हमारा स्वस्थ शरीर ही
सभी तरह के ज्ञान को प्राप्त कर सकता हैं । शरीर के नष्ट हो जाने पर
संसार की सभी वस्तुएं बेकार हैं । यदि स्वस्थ शरीर है तो सभी प्रकार के
सुखों का आनन्द लिया जा सकता हैं ।
दुनिया में आयुर्वेद ही एक मात्र शास्त्र या चिकित्सा पद्धति है जो मनुष्य
को निरोगी जीवन देने की गारंटी देता है। बाकी अन्य सभी चिकित्सा
पद्धतियों में पहले बीमार बने फिर आपका इलाज किया जायेगा, लेकिन
गारंटी कुछ भी नहीं है । आयुर्वेद एक शाश्वत एवं सातत्य वाला शास्त्र हैं ।
इसकी उत्पत्ति सृष्टि के रचियता श्री ब्रह्माजी के द्वारा हुई ऐसा कहा जाता
है । ब्रह्माजी ने आयुर्वेद का ज्ञान दक्ष प्रजापति को दिया । श्री दक्ष प्रजापति
ने यह ज्ञान अश्विनी कुमारों को दिया । उसके बाद यह ज्ञान देवताओं के
राजा इन्द्र के पास पहुँचा। देवराज इन्द्र ने इस ज्ञान को ऋषियों -मुनियों
जैसे आत्रेय, पुतर्वसु आदि को दिया। उसके बाद यह ज्ञान पृथ्वी पर
फैलता चला गया। इस ज्ञान को पृथ्वी पर फैलाने वाले अनेक महान ऋषि
एवं वैद्य हुए हैं । जो समय - समय पर आते रहे और लोगों को यह ज्ञान देते
रहे हैं । जैसे चरक ऋषि, सुश्रुत , आत्रेय ऋषि, पुनर्वसु ऋषि, कश्यप ऋषि
आदि । इसी श्रृंखला में एक महान ऋषि हुए वाग्भट्ट ऋषि जिन्होंने आयुर्वेद
[ 5 ]
के ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने का लिए एक शास्त्र की रचना की ,
जिसका नाम “ अष्टांग ह्रदयम् " ।
इस अष्टांग ह्रदयम् शास्त्र में लगभग 7000 श्लोक दिये गये हैं । ये
श्लोक मनुष्य जीवन को पूरी तरह निरोगी बनाने के लिए हैं । प्रस्तुत
पुस्तक में कुछ श्लोक , हिन्दी अनुवाद के साथ दिये जा रहे हैं । इन
श्लोंकों का सामान्य जीवन में अधिक से अधिक उपयोग हो सके इसके
लिए विश्लेषण भी सरल भाषा में देने की कोशिश की गयी हैं ।
भारत की जनसंख्या 127 करोड़ है व इनमें से 85 % लोग
शारीरिक / मानसिक रूप से बीमार हैं अर्थात् लगभग 105 करोड़ लोग
बीमार हैं । 29 नंवबर 2011 की भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार
कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार भारत में डॉक्टरों और लोगों की
संख्या का अनुपात 1: 2000 हैं डॉक्टरों और बीमारों की संख्या का
अनुपात 1:1600 हैं । एक दिन में एक डॉक्टर अधिक से अधिक 50 लोगों
का इलाज कर सकता हैं अतः जब तक, भारत के सभी डॉक्टर एक दिन
में 1600 रोगियों का इलाज ना करें तब तक भारत के हर रोगी को
चिकित्सा उपलब्ध कराना संभव ही नहीं व अर्जुन सेन गुप्ता की रिपोर्ट के
अनुसार भारत के लगभग 80 % लोगों की एक दिन की आय 20 रूपये
हैं , इतनी सीमित व टुचपूंजी आय से किसी भी अच्छे सरकारी अथवा
निजी अस्पतालों में भारत के इन 80 % गरीब लोगों के लिए उपचार
कराना असंभव ही हैं ।
राजीव भाई को इस तथ्य का एहसास हो चुका था कि जब तक
भारत का हर व्यक्ति अपनी बीमारी स्वयं ठीक ना करे तब तक भारत में
रोगियों की संख्या घटेगी नही । इस संदर्भ में राजीव भाई ने सन् 2007 में
चेन्नई में चिकित्सा पर सात दिन का व्याख्यान दिया, इस व्याख्यान का
उद्देश्य था कि हर व्यक्ति बिना डॉक्टर के व बिना
एलोपैथिक ,होम्योपैथिक अथवा आयुर्वेदिक औषधियों के अपनी बीमारी
को स्वयं ठीक कर सकें । इस पद्धति को स्वदेशी चिकित्सा की संज्ञा दी
जिसके अंतगर्त राजीव भाई ने ऐसा विकल्प दिया जो सस्ता हैं एवं
बीमारियों को स्थायी रूप से बिना किसी दुष्प्रभाव के ठीक करता हैं ।
[ 6 ]
आज आप व हम जिस काल में जी रहे हैं शायद इतिहास का वह सबसे
बुरा समय हैं । जो कुछ भी हम अनाज, दालें , सब्जी, फल आदि का सेवन
कर रहे हैं वे सब विषयुक्त हैं । दूध, घी, तेल , मसाले आदि मिलावटी हैं ,
कुछ दवाईयाँ नकली हैं व जिस हवा से हम साँस लेते हैं वह दूषित है,
जीवन तनाव व चिंता से भरा हैं । दूसरी ओर महंगाई इतनी बढ़तीजा रही
हैं कि जहाँ पेट भरना कठिन होता जा रहा हैं वहाँ बीमार पड़ने पर मरते
दम तक डॉक्टर की फीस, रोगों का परीक्षण व दवाई खरीदने में लगने
वाले पैसे जुटा पाना असंभव सा
होता जा रहा हैं । ऐसे वातावरण में भी क्या हम निरोगी रह सकते हैं ?
इसका उत्तर हैं हाँ, और यदि हमें कोई दीर्घकालीन असाध्य बीमारी हो
गई हैं तो क्या वह भी ठीक की जा सकती हैं ? इसका भी उत्तर है हाँ । यह
बहुत आवश्यक हो गया था कि रोग से मुक्त होने के लिए कोई सस्ता,
प्रभावकारी व बिना किसी दुष्प्रभाव वाला विकल्प निकाला जाये व
असाध्य और दीर्घकालीन रोगों से स्थायी रूप से मुक्ति पाई जाये ।
बीमारियाँ दो प्रकार की होती हैं -
1. वे जिनकी उत्पत्ति किसी जीवाणु बैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस,
फंगस आदि से होती हैं , उदाहरणार्थ- क्षय रोग( टी. बी),
टायफाईड, टिटनेस, मलेरिया, न्युमोनिया आदि । इन बीमारियों
के कारणों का पता परीक्षणों से आसानी से लग जाता हैं ।
2. वे जिनकी उत्पत्ति किसी भी जीवाणु, बैक्टीरिया , पैथोजन ,
वायरस, फंगस आदि से कभी भी नहीं होती । उदारणार्थ -
अम्लपित्त,दमा, गठिया, जोड़ो का दर्द, कर्क रोग, कब्ज , बवासीर ,
मधुमेह, हृदय रोग, बवासीर, भगंदर, रक्तार्श, आधीसीसी, सिर
दर्द , प्रोस्टेट आदि । इन बीमारियों के कारणों का पता नहीं लग
पाता ।
जब तक हमारे शरीर में वात , पित्त व कफ का एक प्राकृतिक
विशिष्ट संतुलन रहता हैं , तब तक हम बीमार नहीं पड़ते, यह संतुलन
बिगड़ने पर ही हम बीमार पड़ते है व यदि संतुलन कहीं ज्यादा
[ 7 ]
बिगड़ जाये तो मृत्यु तक हो सकती है, बीमार होने के कारण
निम्नलिखित हैं ।
1. भोजन व पानी का सेवन प्राकृतिक नियमों के अनुसार न करना ।
___ इस गलती के कारण शरीर में 80 प्रकार के वात रोग , 40 प्रकार
के पित्त रोग व 20 प्रकार के कफ रोग उत्पन्न होते हैं ।
2. भोजन दिनचर्या व ऋतुचर्या के अनुसार ना करना
3. विरूद्ध आहार का सेवन
4. रिफाइंड तेल , रिफाइंड नमक , चीनी व मैदा आदि का सेवन
5. मिलावटी दूध, घी, मसाले, तेल इत्यादि का सेवन ।
6. अनाज, दालें , फल, सब्जी इत्यादि में छिड़के गये रासायनिक
खाद , कीटनाशक व जंतुनाशक इत्यादि का शरीर में पहुँचना ।
7. प्राकृतिक / नैसर्गिक वेगों को ( भूख , प्यास, मलमूत्र निष्कासन
आदि ) रोकना ।
8. विकारों(क्रोध, द्वेष, अंहकार ) आदि को पनपने देना ।
- यदि हम 24 घंटे का निरीक्षण करें तो यह पायेंगे कि 24 घंटों में
नैसर्गिक भूख दिन में केवल 2 बार लगती हैं । सूर्योदय से 2 घंटे
तक और दूसरी सूर्यास्त के पहले । पेट( जठर) सबेरे 7 बजे से 9
बजे तक अधिक कार्य क्षमता से काम करता हैं । उसी तरह
सूर्यास्त से पहले हमारे पेट की जठर अग्नि तीव्र होती है । इसलिये
भोजन सूर्यास्त के पहले समाप्त कर लेना चाहिए ।
हमारे पूर्वज बहुत वैज्ञानिक थे, वे अच्छी तरह से उपवास के
वैज्ञानिक महत्व को समझ चुके थे इसलिए उन्होंने समय - समय
पर व विशेष रूप से बारिश के मौसम में धर्म को आधार बनाकर
अधिक से अधिक उपवास करने की पंरपरा स्थापित की ।
क्योंकि बारिश के तीन- चार महीने सूर्योदय ठीक से नहीं होता
और सूर्योदय तथा भूख का गहरा नाता हैं । उपवास करने से यदि
पेट घंटे बिना भोजन के कण के रखा जाये तो पेट साफ - सफाई
[ 8]
की क्रिया प्रारंभ कर देता हैं । उपवास के दिन शरीर का तापमान
2 से 3 डिग्री सेण्टीग्रेड कम हो जाता है जिसके कारण
हानिकारक जीवाणुओं की वृद्धि में बहुत कमी आ जाती हैं ।
जन्म से लेकर 14 वर्ष की आयु तक हमारे शरीर में कफ की
प्रधानता रहती है व कफ का स्थान शरीर में हृदय से सिर तक है,
इस प्रधानता के अंतर्गत बहुत भूख लगती है व आधिक नींद भी
आती हैं । आयु के 14 वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक पित्त की
प्रधानता रहती है व पित्त का स्थान हमारे शरीर में हृदय से नाभि
तक हैं , इसी प्रकार आयु के 50 वर्ष से लेकर मृत्यु तक वात की
प्रधानता रहती हैं व वात का स्थान शरीर में नाभि से नीचे पैरों
तक हैं ।
> हमारी पाचन संस्था में दो चक्कियाँ हैं जो भोजन को पीसकर
इतना महीन बना देती है कि जिससे भोजन का प्रत्येक कण
पाचक रस से संपूर्ण लिप्त होकर पूरी तरह से पच जाये । हली
चक्की दाँत हैं जो भोजन को 80 % तक पीसते हैं व दूसरी चक्की
पेट का ऊपरी भाग हैं जिसे फंडस कहते हैं जो भोजन को केवल
20 % ही पीस सकता हैं । यदि भोजन दाँतों की सहायता से ठीक
से न चबाया जाये तो भोजन का काफी बड़ा भाग वैसे ही बिना
पीसे रह जायेगा, ऐसे भोजन का पाचन ठीक से नही हो पायेगा ।
परिणामस्वरूप, कब्ज व बड़ी आँत से संबंधित अनेक बीमारियाँ
पैदा होती हैं ।
> महर्षि वाग्भट्ट के नियमानुसार जिस भोजन को पकाते समय सूर्य
का प्रकाश व पवन का स्पर्श ना मिले वह भोजन विष के समान
है । प्रेशर कुकर में भोजन पकाते समय सूर्य का प्रकाश नहीं
मिलता। भोजन पकते सूर्य का प्रकाश मिलने के लिए बर्तन को
बिना ढके भोजन पकाना होगा और बिना ढके पकाने से हवा का
[ 9 ]
दबाव सामान्य रहता है परिणामस्वरूप प्रोटीन खराब नहीं होते ।
प्रेशर कुकर के अंदर भोजन पकाते समय हवा का दबाव
वातावरण से दुगुना हो जाता है व तापमान 120 डिग्री सेण्टीग्रेड
तक पहुँच जाता हैं जिसके फलस्वरूप दाल और सब्जी के
प्रोटीन हानिकारक प्रोटीन हो जाते हैं । राजीव भाई ने प्रेशर
कुकर में पकाई दाल का जब परीक्षण करायातो यह पाया कि
87 % प्रोटीन नष्ट हो जाते हैं व आरोग्य के लिए हानिकारक हो
जाते हैं ।
» मिट्टी ऊष्णता की कुचालक है अतः मिट्टी के बर्तन में भोजन
पकाने से भोजन को धीरे - धीरे ऊष्णता प्राप्त होती हैं व
परिणामस्वरूप भोजन के तत्व जैसे दाल - सब्जी आदि का प्रोटीन
नहीं होने पाता व 100 % प्रोटीन सुरक्षित रहते हैं । यदि काँसे के
बर्तन में पकाया जाये तो कुछ प्रोटीन नष्ट हो जायेंगे व
एल्युमीनियम के बर्तन में पकाने से 87 % प्रोटीन आरोग्य के लिए
हानिकारक हो जायेंगे और भोजन में कुछ एल्यूमीनियम की
मात्रा भी चली जायेगी जो अनेक बीमारियाँ भी उदाहरणार्थ
पार्किसन्स, एल्जाईमर आदि को उत्पन्न करेगी । मिट्टी के अंदर
शरीर को आवश्यक सारे खनिज तत्व हैं । मिट्टी के बर्तन में
भोजन पकाने से मिट्टी का कुछ अंश भोजन में चला जाता हैं व
यह मिट्टी पेट में जाने के बाद घुल जाती है व मिट्टी में उपस्थित
सारे तत्व भोजन पचने के बाद रस में मिल जाते हैं व रक्त में
पहुँच जाते हैं इस प्रकार मल - मूत्र द्वारा होने वाला खनिजों के
क्षति की पूर्ति रोज हो जाया करती है व शरीर निरोगी रहता हैं ।
मुख्यतः खनिजों की पूर्ति भोज्य पदार्थ( अनाज , दालें , फल,
सब्जियाँ) आदि के द्वारा होती हैं ।
» सुबह उठते ही , पेशाब करने के बाद बिना मुँह धोए अपनी
संतुष्टि तक पानी पियें । रात भर में हमारे मुख में Lysozyme
[ 10 ]
नामक एक Antibiotic तैयार होता हैं शायद भगवान ने हमारी
जीवाणुओं से रक्षा करने के लिए यह विधान बनाया हो । यह पानी
पेट में जाकर पूरे पाचन संस्था को रोग के जीवाणु रहित कर देता
हैं , दूसरे यह पूरे पाचन तंत्र को धोकर स्वच्छ कर देता हैं । कम से
कम एक से दो ग्लास गुनगुना पानी पीना ही चाहिए। कई लोगों
की धारणा है कि कम से कम आधे से एक लीटर पानी पियें पर
अनुभव यह कहता है कि पानी की कोई मात्रा ना बांधी जाये ।
आपका अंतःकरण सबसे अच्छा डॉक्टर है और वह पानी की
मात्रा मौसम व शारीरिक अवस्था के अनुसार निर्धारित करता हैं ।
पानी खाना खाने के डेढ़ से दो घंटे के बाद ही अवश्य पीना
चाहिए, क्योंकि खाना पचने के बाद वह एक रस में रुपान्तरित
होता हैं । यह रस छोटी आँत में पहुँचने के बाद इसका रक्त में
शोषण होता हैं और इस रस का शोषण यदि पानी वहाँ न हो तो
हो ही नही सकता। भोजन के तुरन्त बाद और भोजन से तुरन्त
पहले पानी पीना विष के समान है ।
» पानी गुनगुना ही पियें क्योंकि हमारे पाचन तंत्र का तापमान 37
डिग्री सेल्सियस रहता है । यदि हम ठंडा पानी पी लें तो हमारे पेट
को व पाचन तंत्र को फिर से 37 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करने
के लिए आस - पास के किसी भी अवयव से अतिरिक्त रक्त लेना
पड़ेगा । परिणाम स्वरूप जो अवयव अधिक बार रक्त भेजेगा वह
अवयव ( हार्ट , आंत,किड़नी आदि) कमजोर हो जायेगा व उससे
संबधित रोग हो जायेंगें । गर्मियों में आप मिट्टी के घड़े का पानी
अवश्य पी सकते हैं ।
> पानी खड़े हो कर ना पियें, बैठकर ही पियें व घुट - घुट पियें
क्योंकि जब हम ठोस पदार्थनिगलते हैं तो उसको मुख से पेट
तक धीरे - धीरे एक क्रमाकुंचन मूवमेंट द्वारा ही पेट तक पहुँचाया
[ 11 ]
जाता हैं । वह मुख से पेट में धड़ाम से नहीं गिरता । लेकिन पानी
जब मुख से पेट की ओर जाता हैं तो उसे रोकने वाला कोई नहीं,
वह तो पहाड़ पर से जमीन पर गिरने वालों झरने की तरह गिरता
हैं । उसी प्रकार यदि हम खड़े होकर पानी पीयें तो उसके धक्के
को झेलने के लिए पेट डायफ्राम को कड़ा कर देता हैं । यदि हम
बार - बार ऐसे ही पानी पीते रहें तो हमें हार्निया, पाईल्स , प्रोस्टेट,
अर्थरायटिस जैसी बीमारियाँ अवश्य होगी ।
» हमारे शरीर में , नींद आना, भूख, प्यास , छींक , मल निष्कासन,
मूत्र निष्कासन, पादना, खाँसी, हँसना, रोना, हिचकी आना,
डकार आना, जम्हाई लेना इत्यादि चौदह प्रकार के वेग हैं । यदि
इन वेगों को रोका गया तो अनेक प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो
जाती हैं । हमारी समझ में यह डाल दिया गया हैं ( पाश्चात्य
संस्कृति के द्वारा) कि जोर से इन वेगों का निकालना जंगलीपन
या असभ्यता की निशानी हैं । इसीलिए आज कल खास करके
लड़कियाँ/ स्त्री वर्ग व कुछ आधुनिक कहलाने वाले युवक ,
कर्मचारी वर्ग छींकते, खाँसते इत्यादि समय कम से कम आवाज
में व मुख पर रूमाल रखकर ही छींकतें , खाँसते हैं , इस प्रकार
के वेग शरीर की किसी नाड़ी तंत्र को दुरुस्त करने के लिए हैं
और ये लोग उसके लाभ को 75 % नष्ट कर देते हैं ।
> यह समस्या मल्टीनेशनल की देन हैं आज से कुछ दशकों पूर्व,
जब यह मल्टीनेशनल का कल्चर भारत तक नहीं पहुंचा था , लोग
सबेरे 10 बजे भरपेट खाना खाकर ऑफिस, स्कूल, कॉलेज आदि
जाते थे व शाम को 6 बजे तक घर लौट कर भोजन कर लेते थे।
उनका कार्यकाल अधिक से अधिक 8 घंटे हुआ करता था अतः
वे निरोगी व दीर्घायु थे। आजकल मल्टीनेशनल ने अपने
कार्यकाल को 8 घंटों से बढ़ाकर तेरह - चौदह घंटों तक कर दिया
हैं और उनकी देखा- देखी भारत के सभी छोटे - बड़े उद्योग करने
[12]
वालों ने भी कार्यकाल बढ़ा दिये, इसके अलावा खास करके
शहरों में ऑफिस, स्कूल , कॉलेज , आने-जाने में दो से तीन घंटे
अलग लग जाते हैं । जिसके कारण स्वस्थ मनुष्य के पास नींद ,
भोजन, स्नान, आदि के लिए लगभग 8 ही घंटे बचते हैं । अब ऐसे
व्यक्तियों का स्वास्थ्य कैसा रहता हैं खुद ही सोच लो ।। इसी
कारण वह आरोग्य से काफी दूर होता जायेगा व दीर्घकालीन
असाध्य रोग का शिकार हो जायेगा ।
» नमक बदल दो , रिफाइन्ड नमक कभी न खाए । बाजार में मिलने
वाले नमक को रिफाइन्ड करने पर उसमें से पोषक तत्व निकल
जाते हैं । आयोडिन नमक हमेशा ब्लड प्रेशर बढ़ाता हैं और
नपुंसक बनाता है । वीर्य की ताकत कम करता हैं । खाने में सदैव
काला नमक या सेंधा नमक ले, इसमें सोडियम की मात्रा कम
होती हैं । मैग्नीशियम , कैल्शीयम, पौटेशियम आदि का अनुपात
बराबर होता हैं । सेंधा नमक शरीर के अंदर के विष को कम
करता हैं और थाइराइड़ , लकवा एवं मिरगी जैसे रोगों को दूर
रखता हैं ।
» चीनी ना खाये, चीनी बनते ही फोस्फोरस खत्म हो जाता है और
एसिड बनता हैं । एसिड पचता नही, चीनी खून को गाढ़ा करती हैं
और कोलेस्ट्रोल बढ़ाती हैं । बिना सल्फर के चीनी नहीं बनती
और पटाखों में भी सल्फर का इस्तेमाल होता हैं । अगर खाने के
बाद चीनी खायी तो आपका भोजन पचने नहीं देगी और आपको
103 बीमारियाँ होने का खतरा बढ़ेगा ।
रिफाइंड और डबल रिफाइंड तेल का उपयोग बिल्कुल ना करें ,
तेल को रिफाइंड करने के लिए उसमें से सारे प्रोटीन निकाल
लिए जाते हैं । इसलिए आप शुद्ध चीज नही पर कचरा खाते हैं ।
रिफाइन्ड तेल काफी रोगों का कारण बनता है । इस तेल में पाम
[ 13 ]
तेल भी डाला जाता है जो खतरनाक हैं । खाने में हमेशा शुद्ध तेल
का इस्तेमाल करें । घाणी का तेल खाने में श्रेष्ठ हैं । शुद्ध तेल वायु
को शांत करने में मदद करता हैं ।
मैदा से बनी वस्तुओं का सेवन कभी ना करें , मैदा गेहँ से ही
बनता है पर मैदे में से सारे आवश्यक फाइबर निकाल लिए जाते
हैं । नूडल्स,पिज्जा, बर्गर , पाँव रोटी, डबल रोटी , बिस्कुट वगैरह
कभी ना खाये, जो सड़े हुए मैदे से बनते हैं । मैदे की रोटी रबर
जैसी होती हैं जो खाने के बाद आँतों में चिपक जाती हैं । जो
स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हैं ।
* स्वस्थ रहने की कुंजी
जीवन शैली व खान - पान में बदलाव से कई रोगों से मुक्ति पाई जा
सकती हैं । घेरलू वस्तुओं के उपयोग से शरीर तो स्वस्थ रहेगा ही बीमारी
पर होने वाला खर्च भी बचेगा ।
> फलों का रस, अत्याधिक तेल की चीजें , मट्ठा , खट्टी चीजें रात में
नहीं खानी चाहिए ।
» घी या तेल की चीजें खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए
___ बल्कि एक - डेढ़ घण्टे के बाद पानी पीना चाहिए ।
» भोजन के तुरंत बाद अधिक तेज चलना या दौड़ना हानिकारक
हैं । इसलिए कुछ देर आराम करके ही जाना चाहिए ।
» शाम को भोजन के बाद शुद्ध हवा में टहलना चाहिए खाने के
__ तुरंत बाद सो जाने से पेट की गड़बड़ियाँ हो जाती हैं ।
» प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए और खुली हवा में व्यायाम या
शरीर श्रम अवश्य करना चाहिए ।
» तेज धूप में चलने के बाद, शारीरिक मेहनत करने के बाद या
शौच जाने के तुरंत बाद पानी कदापि नहीं पीना चाहिए ।
[14]
> केवल शहद और घी बराबर मात्रा में मिलाकर नहीं खाना चाहिए
वह विष हो जाता हैं ।
→ खाने पीने में विरोधी पदार्थों को एक साथ नहीं लेना चाहिए जैसे
दूध और कटहल, दूध और दही, मछली और दूध आदि चीजें
एक साथ नहीं लेनी चाहिए ।
→ सिर पर कपड़ा बांधकर या मोजे पहनकर कभी नही सोना
चाहिए ।
> बहुत तेज या धीमी रोशनी में पढ़ना , अत्याधिक टीवी या सिनेमा
देखना गर्म -ठंड़ी चीजों का सेवन करना, अधिक मिर्च मसालों का
प्रयोग करना, तेज धूप में चलना इन सबसे बचना चाहिए । यदि
तेज धूप में चलाना भी हो तो सर और कान पर कपड़ा बांधकर
चलना चाहिए ।
» रोगी को हमेशा गर्म अथवा गुनगुना पानी ही पिलाना चाहिए और
रोगी को ठंडी हवा, परिश्रम, तथा क्रोध से बचाना चाहिए ।
» कान में दर्द होने पर यदि पत्तों का रस कान में डालना हो तो
सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद ही डालना चाहिए ।
आयुर्वेद में लिखा हैं कि निद्रा से पित्त शांत होता हैं , मालिश से
वायु कम होती हैं , उल्टी से कफ कम होता हैं और लंघन करने
से बुखार शांत होता हैं । इसलिए घरेलू चिकित्सा करते समय इन
बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए ।
» आग या किसी गर्म चीज से जल जाने पर जले भाग को ठंड़े पानी
में डालकर रखना चाहिए ।
→ किसी भी रोगी को तेल, घी या अधिक चिकने पदार्थों के सेवन से
बचना चाहिए ।
> अजीर्ण तथा मंदाग्नि दूर करने वाली दवाएँ हमेशा भोजन के बाद
ही लेनी चाहिए ।
→ मल रुकने या कब्ज होने की स्थिति में यदि दस्त कराने हों तो
प्रातःकाल ही कराने चाहिए, रात्रि में नहीं ।
> यदि घर में किशोरी या युवती को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो उसे
उल्टी, दस्त या लंघन नहीं कराना चाहिए ।
[ 15]
> यदि किसी दवा को पतले पदार्थ में मिलाना हों तो चाय , कॉफी
या दूध में न मिलाकर छाछ, नारियल पानी या सादे पानी में
मिलाना चाहिए ।
» हींग को सदैव देशी घी में भून कर ही उपयोग में लाना चाहिए ।
लेप में कच्ची हींग लगानी चाहिए ।
त्रिदोष सिद्धान्त
आयुर्वेद में त्रिदोष सिद्धान्त की विस्तृत व्याख्या हैं, वात, पित्त ,
कफ - दोषों के शरीर में बढ़ जाने या प्रकुपित होने पर उनको
शांत करने के उपायों का विशद वर्णन हैं । आहार के प्रत्येक द्रव्य
के गुण- दोष का सूक्ष्म विश्लेषण हैं , ऋतुचर्या-दिनचर्या, आदि के
माध्यम में स्वास्थ्य -रक्षक उपायों का सुन्दर विवेचन हैं तथा रोगों
से बचने व रोगों की चिरस्थायी चिकित्सा के लिए पथ्य - अपथ्य
पालन के लिए उचित मार्ग दर्शन हैं । आयुर्वेद में परहेज - पालन
के महत्व को आजकल आधुनिक डॉक्टर भी समझने लग गए हैं
और आवश्यक परहेज - पालन पर जोर देने लग गए हैं ।
वात - पित्त - कफ रोग लक्षण
पित्त रोग लक्षण - पेट फूलना दर्द दस्त मरोड़ गैस , खट्टी डकारें ,
ऐसीडीटी, अल्सर, पेशाब जलन, रूक रूक कर बूंद- बूंद बार बार
पेशाब , पथरी, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, लार जैसी घात घात गिरना, शुक्राणु
की कमी, बांझपन, खून जाना, ल्यूकोरिया, गर्भाशय ओवरी में छाले ,
अण्डकोश बढ़ना, एलर्जी खुजली शरीर में दाने शीत निकलना कैसा भी
सिर दर्द मधुमेह से उत्पन्न शीघ्रपतन कमजोरी, इंसुलिन की कमी,
पीलिया, खून की कमी बवासीर , सफेद दाग , महावारी कम ज्यादा आदि ।
वात रोग लक्षण - अस्सी प्रकार के वात, सात प्रकार के बुखार ,
घुटना कमर जोड़ो में दर्द संधिवात सवाईकल स्पांडिलाइटडिस, लकवा,
गठिया, हाथ पैर शरीर कांपना, पूरे शरीर में सूजन कही भी दबाने से
[16 ]
गड्ढा हो जाना, लिंग दोष , नामर्दी, इन्द्री में लूजपन, नसों में टेढ़ापन ,
छोटापन, उत्तेजना की कमी, मंदबुद्धि वीर्य की कमी, बुढ़ापे की
कमजोरी,मिर्गी चक्कर, एकांत में रहना आदि ।
कफ रोग लक्षण - बार - बार सर्दी, खांसी, छीकें आना, एलर्जी,
ईयोसिनोफिलिया, नजला , टी. बी ., सीने में दर्द, घबराहट, मृत्यु भय, हार्ट
अटैक के लक्षण , स्वास फूलना, गले में दर्द गांठ , सूजन, टांन्सिल ,कैंसर
के लक्षण, थायराइड़ , ब्लड़ प्रेशर, बिस्तर में पेशाब करना, शरीर मुंह से
बदबू , लीवर किड़नी, का दर्द सूजन, सेक्स इच्छा कमी, चेहरे का
कालापन, मोटापा, जांघों का आपस में जुड़ना, गुप्तांग में खुजली, घाव,
सुजाक, कान बहना, शरीर फूल जाना, गर्भ नली का चोक होना, कमजोर
अण्डाणु आदि ।
दिनचर्या
> रात को दाँत साफ करके सोये । सुबह उठ कर गुनगुना पानी
बिना कुल्ला किए बैठकर, चूंट - घूट करके पीये । एक दो गिलास
जितना आप सुविधा से पी सकें उतने से शुरुआत करके , धीरे
धीरे बढ़ा कर सवा लीटर तक पीना हैं ।
भोजनान्ते विषमबारी अर्थात् भोजन के अंत में पानी पीना विष
पीने के समान हैं । इस लिए खाना खाने से आधा घंटा पहले और
डेढ़ घंटा बाद तक पानी नहीं पीना । डेढ़ घंटे बाद पानी जरूर
पीना ।
> पानी के विकल्प में आप सुबह के भोजन के बाद मौसमी फलों
का ताजा रस पी सकते हैं , दोपहर के भोजन के बाद छाछ और
अगर आप हृदय रोगी नहीं हैं तो आप दहीं की लस्सी भी पी
__ [17]
सकते हैं । शाम के भोजन के बाद गर्म दूध। यह आवश्यक हैं कि
इन चीजों का क्रम उलट - पलट मत करें ।
पानी जब भी पीये बैठ कर पीयें और चूंट - घूट करके पीये
फ्रीजर का पानी कभी ना पीये । गर्मी के दिनों में मिट्टी के घड़े का
पानी पी सकते हैं ।
सुबह का भोजन सूर्योदय के दो से तीन घंटे के अन्दर खा लेना
चाहिए । आप अपने शहर में सूर्योदय का समय देख लें और फिर
भोजन का समय निश्चित कर लें । सुबह का भोजन पेट भर कर
खाएं । अपना मनपंसद खाना सुबह पेट भर कर खाएं ।
> दोपहर का भोजन सुबह के भोजन से एक तिहाई कम करके
खाएं, जैसे सुबह अगर तीन रोटी खाते हैं तो दोपहर को दो खाएं ।
दोपहर का भोजन करने के तुरंत बाद बाई करवट लेट जाए,
चाहे तो नींद भी ले सकते हैं , मगर कम से कम 20 मिनट अधिक
से अधिक 40 मिनट । 40 मिनट से ज्यादा नहीं ।
> इसके विपरीत शाम को भोजन के तुरंत बाद नहीं सोना । भोजन
के बाद कम से कम 500 कदम जरूर सैर करें । संभव हो तो
रात का खाना सूर्यास्त से पहले खा लें । भोजन बनाने में फ्रीजर,
माइक्रोवेव ओवन , प्रेशर कूकर तथा एल्युमीनियम के बर्तनों का
प्रयोग ना करें ।
> खाने में रिफाइन्ड तेल का इस्तेमाल ना करें । आप जिस क्षेत्र में
रहते हैं वहाँ जो तेल के बीज उगाये जाते हैं उसका शुद्ध तेल
प्रयोग करें, जैसे यदि आपके क्षेत्र में सरसों ज्यादा होती हैं तो
सरसों का तेल , मूंगफली होती हैं तो मूंगफली का तेल , नारियल
हैं तो नारियल का तेल । तेल सीधे सीधे घानी से निकला हुआ
होना चाहिए ।
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