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अपने संस्कृत के शिक्षक स्वयं बने भाग-3


 

पाठ 12

 

शब्द

स्वीकरणम् - स्वीकार करना ।

धावसि - तू दौड़ता है।

इच्छया - इच्छा से |

नगरे - शहर में ।

रचनम् - रचना |

पश्यसि - तू देखता है।

पश्यामि - देखता हूँ ।

पिपासा - प्यास ।

 

वाक्य

 

1. सः इच्छया स्वीकरिष्यति - वह इच्छा से स्वीकार करेगा ।

2. प्रकाशदेवः उद्याने व्यर्थं धावति - प्रकाशदेव बाग़ में व्यर्थ दौड़ता है।

3. त्वम् इदानीं किमर्थं धावसि - तू अब क्यों दौड़ता है ?

4. अहम् अधुना धावामि- मैं अब दौड़ता हूँ ।

5. अन्तरिक्षे सूर्यं पश्यसि किम्-क्या तू आकाश में सूर्य को देखता है ?

6. रात्रौ सूर्यं न पश्यामि - रात्रि में सूर्य को नहीं देखता ।

7. विश्वामित्रः भ्रमणाय सायं गमिष्यति किम् - विश्वामित्र घूमने के लिए क्या शाम को जाएगा ?

8. सः तत्र स्थातुम् इच्छति - वह वहाँ ठहरना चाहता है ।

9. जालन्धरनगरे मम गृहम् अस्ति - जालन्धर शहर में मेरा घर है ।

10. भो मित्र ! तव गृहं कुत्र अस्ति- मित्र, तेरा घर कहाँ है ?

11. मम गृहं पेशावरनगरे अस्ति- मेरा घर पेशावर शहर में है ।

12. धूम्रयानेन त्वं तत्र गमिष्यसि किम् - रेलगाड़ी से वहाँ जाएगा क्या ?

13. अथ किंम्, धूम्रयानेन अहं तत्र परश्वः गमिष्यामि –

और क्या, रेलगाड़ी से मैं वहाँ परसों जाऊँगा ।

14. इदानीं पिपासा अस्ति, मह्यं शीतलं जलं देहि- अब प्यास लगी है, मुझे ठंडा।

15. अधुना बुभुक्षा न अस्ति, अन्नं न देहि- अब भूख नहीं है, अन्न न दे ।

 

कन्या - पुत्री, लड़की ।

कृश - दुर्बल ।

मित्रम् - मित्र, दोस्त |

पितृव्यः - चाचा ।

पिवसि-तू पीता है

पिवति - वह पीता है ।

पिवामि - पीता हूँ ।

संघातः - समूह |

पास्यति - वह पिएगा ।

नास्ति नहीं है ।

 

शब्द

भ्राता - भाई ।

संयोगः - मिलाप ।

स्वसा - बहिन |

जामाता - दामाद ।

अवश्यम् - अवश्य ।

नोचेत्-नहीं तो

सन्धिः - सुलह, मित्रता ।

नैव- नहीं ।

पास्यसि - तू पिएगा ।

स्पष्टम् - साफ़ |

 

वाक्य

1. तव जामाता मधुरं दुग्धं रात्रौ पास्यति - तेरा दामाद रात्रि में मीठा दूध पिएगा।

2. अहं रात्रौ दुग्धं नैव पिवामि - मैं रात्रि में दूध नहीं पीता ।

3. मम स्वसा उष्णं जलं पिबति - मेरी बहिन गरम पानी पीती है ।

4. अहं कदा अपि उष्णं जलं पातुं न इच्छामि - मैं कभी भी गरम जल पीना नहीं चाहता ।

5. तव भ्राता मद्रासनगरं कदा गमिष्यति - तेरा भाई मद्रास शहर कब जाएगा ?

6. यदि तव पिता गमिष्यति तर्हि सोऽपि गमिष्यति -अगर तेरा पिता जाएगा तो वह भी जाएगा।

7. नोचेत् नैव गमिष्यति - नहीं तो, नहीं जाएगा ।

8. सः पीतम् उत्तरीयं कदा आनयति-वह पीला दुपट्टा कब लाता है ?

9. भो मित्र ! इदानीं पीतं वस्त्रं न आनय - हे मित्र ! इस समय पीला वस्त्र न ला ।

10. मम रक्तं वस्त्रं कुत्र अस्ति, जानासि किम् - मेरा लाल कपड़ा कहाँ है, जानते हो क्या ?.

11. अत्र दीपः नास्ति, न जानामि तव रक्तं वस्त्रम् –

यहाँ दीया नहीं है, (मैं) तेरा लाल कपड़ा नहीं जानता ।

12. इदानी सायंकालः जातः, भ्रमणाय गच्छ- अब शाम हो गई, घूमने के लिए जा ।

13. त्वं कदा भ्रमणं करिष्यसि - तू कब भ्रमण करेगा ?

14. अहं प्रातः भ्रमणाय गच्छामि, न सायम् - मैं सवेरे घूमने जाता हूँ, शाम को नहीं ।

15. त्वं कदा अपि न आगच्छसि - तू कभी भी नहीं आता है ।

 

 

इकारान्त पुल्लिंग शब्द

 

भूपतिः - राजा ।

क्षेत्रपतिः - खेत का मालिक ।

प्राणपतिः - प्राणों का स्वामी ।

मारुतिः - हनुमान् ।

ऋषिः - ऋषि ।

नृपतिः - राजा ।

प्रजापतिः - ईश्वर, राजा ।

सुमतिः- उत्तम वुद्धिवाला

मुरारिः - विष्णु ।

यतिः- तपस्वी ।

सेनापतिः - फ़ौज का बड़ा अफ़सर ।

वह्निः - आग |

मुनिः- तपस्वी ।

दुर्मतिः - बुरी बुद्धिवाला ।

राशि:- ढेर |

वाल्मीकिः - रामायण के लेखक का नाम ।

विधिः- दैव, ब्रह्मा, ईश्वर ।

 

ये सब शब्द पूर्वोक्त 'रवि' शब्द के समान ही चलते हैं । नमूने के लिए 'नृपति' और 'मुनि' के रूप देते हैं ।


1. नृपतिः - राजा ।

2. नृपतिम् - राजा को ।

3. नृपतिना - राजा ने द्वारा ।

4. नृपतये - राजा के लिए ।

5. नृपतेः - राजा से ।

6. नृपतेः - राजा का ।

7. नृपतौ- राजा में 1

सं. हे नृपते - हे राजन् ।

1. मुनि: - मुनि

2. मुनिम् - मुनि को ।

3. मुनिना - मुनि ने द्वारा

4. मुनये - मुनि के लिए ।

5. मुनेः - मुनि से ।

6. मुनेः - मुनि का।

7. मुनौ - मुनि में ।

सं. हे मुने - हे मुनि ।


 

पाठकों को चाहिए कि वे इस प्रकार अन्यान्य शब्दों के भी रूप बनाएँ और विभक्ति द्वारा उनके अर्थ कैसे होते हैं, यह देखें ।

 

(1)            किं क्षेत्रपतिना तव उत्तरीयं न दत्तम् ?

(2)           तस्य गृहे अद्य यतिः आगतः ।

(3)          दुर्मतिना सह मित्रतां न कुरु ।

(4)         सुमतिना सह मित्रतां कुरु।

(5)         सेनापतिः सैन्यं पश्यति।

(6)         पश्य कथं सः मुनिना सह गच्छति ।

(7)          वाल्मीकिना रामायणं रचितम् ।

(8)         रामायणे रामचन्द्रस्य चरितम्' अस्ति ।

(9)         तव बन्धुः रात्रौ एव उष्णं जलं पिवति।

(10)      उष्णं जलं तस्मै इदानीम् एव देहि ।

(11)         अत्र रक्तं दीपं शीघ्रम् आनय ।

(12)       नृपतिः अद्य भ्रमणाय गमिष्यति ।

(13)       त्वम् इदानीं यत्र कुत्र अपि गच्छ ।

(14)      विष्णुमित्रः उद्यानं गत्वा पश्चात् गृहं गमिष्यति ।

(15)      यत्र जगदीशचन्द्रः गमिष्यति तत्र विष्णुदत्तः अपि गमिष्यति एव ।

(16)      अहम् ओदनं नैव भक्षयिष्यामि।

(17)       सः दुग्धम् एव पिवति, कदापि अन्नं नैव भक्षयति ।

(18)      सः व्यर्थं तत्र गतः, तस्य पुस्तकं तत्र नास्ति ।

 

1. चरितम् - कथा ।

 

पाठ 13

शब्द


मन्दः - सुस्त |

उपरि- ऊपर ।

मध्ये-बीच में ।

वदामि-बोलता हूँ ।

वदति - (वह) बोलता है ।

अगदः - दवा ।

नीचैः - धीमे ।

उक्त्वा - बोलकर ।

मूकः- गूंगा ।

अधः- नीचे |

शनैः - आहिस्ता, धीरे-धीरे ।

वदसि - (तू) बोलता है ।

डिण्डिमः - ढोल |

उच्चैः-ऊँचा ।

वक्तुम् - वोलने के लिए ।

वदिष्यसि – तू बोलेगा

वदिष्यामि - मैं बोलूँगा ।

वदिष्यति - वह बोलेगा ।


 

वाक्य

1. त्वम् उपरि गच्छ, अहम् अधः गमिष्यामि - तू ऊपर जा, मैं नीचे जाऊँगा ।

2. न, अहम् उपरि तिष्ठामि, त्वम् अधः गच्छ-नहीं, मैं ऊपर ठहरता हूँ, तू नीचे जा ।

3. भो मित्र ! इदानीं शनैः अधः गच्छ - हे मित्र ! अब धीरे-धीरे नीचे जा ।

4. सः सदा तत्र तिष्ठति उच्चैः वदति च - वह हमेशा वहाँ बैठता है और ऊँचा बोलता है ।

5. त्वं किं सर्वदा नीचैः एव वदसि - तू क्या हमेशा धीमे ही बोलता है ?

6. अहं सदा नीचैः एव वक्तुम् इच्छामि - मैं हमेशा धीमे ही बोलना चाहता हूँ ।

7. भो मित्र ! त्वं मध्ये किमर्थं तिष्ठसि - मित्र ! तू बीच में किस लिए ठहरता है ?

8. अहं जलं पीत्वा रात्रौ उपरि गमिष्यामि - मैं जल पीकर रात्रि में ऊपर जाऊँगा ।

9. अहं रात्रौ नैव जलं पिबामि- मैं रात्रि में जल नहीं पीता ।

10. किं त्वं रात्रौ उष्णं मिष्टं च दुग्धं न पास्यसि –

क्या तू रात्रि में गरम और मीठा दूध नहीं पिएगा ?

11. कुतः न पास्यामि एव- क्यों नहीं पीऊँगा ।

12. उत्तिष्ठः इदानीं तस्मै फलं देहि-उठ, अब उसको फल दे

13. फल स्वादु नास्ति, कथं दास्यामि फल मीठा नहीं है, कैसे दूँ ।

14: यथा अस्ति तथा एव देहि-जैसा है, वैसा ही दे ।

 

शब्द


इति - ऐसा ।

वा - अथवा, या ।

पर्यन्तम्-तक ।

क्रीडामि - मैं खेलता हूँ ।

क्रीडसि - तू खेलता है।

अथवा - या ।

किंवा - या ।

अवश्यम् - अवश्य ।

वरम् - श्रेष्ठ, अच्छा।

क्रीडिष्यति - वह खेलेगा।

क्रीडति - वह खेलता है ।

सुष्ठु - ठीक, अच्छा। कन्दुकः - गेंद |

क्रीडिष्यसि - तू खेलेगा |

मदीयम् - मेरा ।

क्रीडिष्यामि - मैं खेलूँगा ।


 

वाक्य

1. देवदत्तः तत्र क्रीडति - देवदत्त वहाँ खेलता है ।

2. सः तत्र सायंकाले गत्वा क्रीडिष्यति - वह वहाँ शाम को जाकर खेलेगा।

3. सः तत्र प्रातः गमिष्यति न वा वह वहाँ सबेरे जाएगा या नहीं ?

4. अहं तत्र सायंकालपर्यन्तं स्थास्यामि - मैं वहाँ शाम तक ठहरूँगा ।

5. त्वम् अवश्यम् आगच्छ - तू अवश्य आ ।

6. सः कन्दुकेन सुष्ठु क्रीडति - वह गेंद से अच्छा खेलता है ।

7. सः न तथा सुष्ठु क्रीडति यथा विष्णुमित्रः - वह वैसा अच्छा नहीं खेलता जैसा विष्णुमित्र ।

8. सत्यम् अस्ति - सत्य है ।

9. यथा त्वं वदसि तथा एव अस्ति- जैसा तू कहता है, वैसा ही है ।

10. रात्रौ जलम् उपरि नयसि न वा - तू रात्रि में जल ऊपर ले जाता है या नहीं ?

11. अवश्यं नेष्यामि, सत्यं वदामि - अवश्य ले जाऊँगा, सत्य बोलता हूँ ।

12. यदि त्वं सत्यं वदसि नेष्यसि एव- अगर तू सच बोलता है तो ले जाएगा।

13. वरं यथा वदसि तथा कुरु-अच्छा, जैसा बोलता है, वैसा कर ।

14. इदानीं भोजनं कर्तुम् इच्छामि, अन्नम् आनय - अब भोजन करना चाहता हूँ, अन्न ले आ ।

15. अन्नं नास्ति, मोदकम् अस्ति - अन्न नहीं है, लड्डू है ।

 

यहाँ तक पाठक जान चुके हैं कि अकारान्त तथा इकारान्त पुल्लिंग शब्द कैसे चलते हैं। अब आपको उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप बनाना सीखना है। आशा है कि पहले का ज्ञान न भूलकर पाठक आगे पढ़ेंगे।

 

उकारान्त पुल्लिंग 'भानु' शब्द के रूप

1. प्रथमा               भानुः                   भानु (सूर्य)

2. द्वितीया            भानुम्                 भानु को

3. तृतीया            भानुना               भानु ने, द्वारा

4. चतुर्थी             भानवे                 भानु के लिए

5. पञ्चमी           भानोः                 भानु से

6. षष्ठी                                       भानु का

7. सप्तमी           भानौ                   भानु में पर

सम्बोधन          हे भानो                  हे भानो

 

इकारान्त तथा उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के पंचमी तथा पष्ठी के एकवचन रूप एक जैसे होते हैं। पाठकों ने यह बात 'रवि, नृपति, मुनि शब्दों में देखी होगी तथा 'भानु' शब्द के रूपों में इस पाठ में स्पष्ट हो गई होगी। पंचमी तथा षप्टी के रूप समान होते हैं, इस कारण षष्ठी के स्थान पर ऐसा चिह्न दिया है जिसका मतलब यह है कि यहाँ का रूप पूर्व की विभक्ति के समान ही है । आशा है कि पाठक इस विशेषता को ध्यान में रखेंगे।

 

उकारान्त पुल्लिंग शब्द

 


गुरुः - अध्यापक ।

विष्णुः - विष्णुदेव ।

तरुः- पेड़ |

भानुः - सूर्य ।

कारुः- कारीगर ।

अंशुः - किरण |

सिन्धुः - समुद्र, नदी ।

मरुः- रेगिस्तान |

शम्भुः -शिवजी ।

शत्रुः - दुश्मन ।

जिष्णुः - विजयशील ।

मृत्युः - मौत ।

ऋतुः - यज्ञ ।

साधुः -- सन्त, महात्मा ।

शङ्कुः - नुकीला पदार्थ |

स्नायुः - पुट्ठा, रग ।

बाहुः - भुजा ।

लड्डूःलड्डू, पेड़ा।

शान्तनुः - भीष्म पितामह के पिता ।


 

ये सब शब्द पूर्वोक्त भानु' शब्द के समान ही चलते हैं ।

 

वाक्य

 

1. गुरुः पाठशालां गच्छति - अध्यापक पाठशाला जाता है ।

2. भानोः अंशुं पश्य - सूर्य की किरण देख ।

3. सिन्धोः जलम् आनयति नदी से जल लाता है।

4. मरौ देशे जलं नास्तिं रेतीले देश में जल नहीं है ।

5. मृत्यवे किं दास्यसि - मौत के लिए क्या दोगे ?

6. शत्रुं पश्यसि किम् - दुश्मन को देखते हो क्या ?

7. शान्तनुः राजा आसीत् - शान्तनु राजा था ।

8. शान्तनुना ऋतुः समाप्तः - शान्तनु ने यज्ञ समाप्त किया ।

9. शम्भुना राक्षसो हतः - शिवजी ने राक्षस मारा ।

10. साधुना उपदेशः कृतः – साधु ने उपदेश किया ।

11. तरोः फलं पतितम् - पेड़ से फल गिरा ।

 

अब कुछ ऐसे वाक्य देते हैं कि जिन्हें पाठक स्वयं समझ सकते हैं-

 


सः तं मार्गं पृच्छति ।

मृगः मृगेण सह गच्छति ।

मनुष्यः मनुष्येण सह न गच्छति ।

सदा मूर्खः मूर्खेण सह वदति ।

वानरः वने धावति ।

विष्णुः सर्वत्र अस्ति ।

ईश्वरः सदा सर्वं पश्यति।

नृपः रक्षकं वदति ।

सः नंगरात् धनम् आनयति ।

वशिष्ठस्य चरणं पश्य ।

बालकाय मोदकं देहि ।

ब्राह्मणाय धनं देहि ।

तस्मै जलं देहि ।

शम्भुः राक्षसं हन्ति ।

उद्याने तरुर् (:) अस्ति।

शत्रुः ग्रामे नास्ति ।

कारुः गृहं करोति ।

भानुः प्रकाशं ददाति'

सः कदापि न तुष्यति'

पुष्पम् आनयति ।

पुष्पं जले पतितम् ।

तस्य पुत्रः कूपे पतितः ।

तस्य बाहुः शोभनः अस्ति ।

सः कन्दुकेन क्रीडति ।

तत्र गत्वा तं पश्य ।

बालकः अधुना न आगतः ।

त्वं गच्छ भोजनं च कुरु ।


 

हिन्दी के निम्न वाक्यों के संस्कृत वाक्य बनाइए-

 

1. वह आँख से देखता है।

2. वह बालक कैसे गया ?

3. बालक धूप में गया, उसको यहाँ ले आ।

4. अब राजा कहाँ है ?

5. नौकर ने हाथ में सीटी ली।

6. गाँव में शत्रु हैं।

7. वह फूल लाता है।

8. वहाँ जाकर देख ।

9. वह दुर्मति के साथ मित्रता करता है।

10. जहाँ राम जाएगा, वहाँ कृष्ण भी जाएगा। जहाँ मैं जाऊँगा, वहाँ तू जा

 

1. ददाति देता है।

2. तुष्यति - ख़ुश होता है।

3. शोभनः- उत्तम ।

 

पाठ 14

 

शब्द

 


श्रमः - कष्ट |

कुतः - किसलिए |

ताडयति - वह पीटता।

ताडयामि - पीटता हूँ ।

दुर्बलः- बलहीन |

परिश्रमः - मेहनत |

यद् - जो कि ।

ताडयिष्यति - पीटेगा ।

अतः - इसलिए।

यतः - जिसलिए ।

ताडयसि - तू पीटता है ।

ज्वरितः - ज्वर से पीड़ित ।

अतीव - बहुत ।

एतद् - यह ।

तद् - वह |

ताडयिष्यसि - पीटेगा

केवलम् - केवल, सिर्फ़ ।

नीरोगः - स्वस्थ, तन्दुरुस्त ।

ताडयिष्यामि-पीढूँगा ।

अल्पम्-थोड़ा ।


 

वाक्य

 

1. यज्ञदत्तः किमर्थं न पठति - यज्ञदत्त क्यों नहीं पढ़ता ?

2. सः ज्वरेण पीडितः अस्ति, अतः न पठति - यह ज्वर से पीड़ित है, इस कारण नहीं पढ़ता ।

3. किम् एतत् सत्यमस्ति यत् सः ज्वरेण पीडितः अस्ति-

क्या यह सच है कि वह ज्वर से पीड़ित है ?

4. अर्थ किं सः न केवलं ज्वरितः अस्ति, परन्तु सः अतीव दुर्बलः अपि अस्ति-

और क्या, वह न केवल ज्वरग्रस्त है, परन्तु बहुत दुर्बल भी है ।

5. किं सः अन्नं भक्षयति न वा ? कथय - वह अन्न खाता है या नहीं ? बता ।

6. न भक्षयति परन्तु अल्पम् अल्पं दुग्धं पिवति - नहीं खाता, परन्तु थोड़ा-थोड़ा दूध पीता है।

7. कदा सः पुनः नीरोगः भविष्यति - वह कब स्वस्थ होगा ?

8. एतद् अहं न जानामि - यह मैं नहीं जानता । 9. सः किं किं वदति - वह क्या-क्या बोलता है ?

10. सः किमपि न वदति - वह कुछ भी नहीं बोलता ।

11. यदा सः पुनः नीरोगः भविष्यति - जब वह फिर नीरोग होगा ।

12. तदा सः अत्र आगमिष्यति एव-तब वह यहाँ आएगा ही ।

13. पाठं च पठिष्यसि - और पाठ पढ़ेगा।

 

शब्द

 


स्वपिति - वह सोता है।

स्वपिषि-तू सोता है ।

स्वपिमि - मैं सोता हूँ ।

दशघण्टासमये - दस बजे ।

एषः - यह ।

इतिहासः – इतिहास।

खादसि - तू खाता है।

भवति - वह होता है ।

दशवादने - दस बजे

तदानीम् - उसी समय |

शोभनः - उत्तम ।

खादति - वह खाता है ।

खादामि - मैं खाता हूँ ।

भवसि - तू होता है ।

दरिद्रः - निर्धन |

मेरुः - मेरु पर्वत ।

भवामि - होता हूँ ।

भृत्यः- सेवक ।


 

वाक्य

1. त्वं रात्रौ कदा स्वपिषि - तू रात्रि कब सोता है ?

2. अहं दशघण्टासमये स्वपिमि - मैं दस बजे सोता हूँ ।

3. परन्तु विश्वनाथः तदार्नी न स्वपिति - परन्तु विश्वनाथ उस समय नहीं सोता ॥

4. यदि सः न स्वपिति तर्हि तदा सः किं करोति- अगर वह नहीं सोता तो क्या करता ?

5. सः तदानीं पुस्तकं पठति अतीव कोलाहलं च करोति-

तब वह पुस्तक पढ़ता है और बहुत शोर मचाता है ।

6. सः किमर्थं कोलाहलं करोति - वह कोलाहल क्यों करता है ?

7. सः उच्चैः पठति अतः कोलाहलः भवति-वह ऊँचे से पढ़ता है इसलिए शोर होता है।

8. कोलाहलं न कुरु इति त्वं तं वद-शोर न कर, तू उससे कह ।

9. सः प्रातः किं पिवति मध्याह्ने च किं भक्षयति-

वह सवेरे क्या पीता है और दोपहर में क्या खाता है ?

10. सः प्रातःकाले दुग्धं पिवति मध्याह्ने च स्वादु भोजनं खादति -

वह सवेरे दूध पीता  है और दोपहर को स्वादिष्ट भोजन खाता है ।

11. सः इदानीं तं किमर्थं ताडयति - वह अब उसको क्यों पीटता है ?

12. यतः सः न लिखति - क्योंकि वह नहीं लिखता ।

13. एषः शोभनः समयः, भ्रमणाय गच्छामि - यह उत्तम समय है, घूमने के लिए जाता हूँ ।

14. सः दरिद्रः अस्ति, अतः द्रव्यं न ददाति - वह निर्धन है, इसलिए पैसा नहीं देता है ।

 

उकारान्त शब्दों के रूप बनाने का प्रकार पिछले पाठक में आ चुका है। अब ऋकारान्त शब्दों के रूप इस पाठ में बनाएँगे ।

ऋकारान्त पुल्लिंग 'धातृ' शब्द

1. प्रथमा                       धाता                                 ब्रह्मा

2. द्वितीया                     धातारम्                           ब्रह्मा को

3. तृतीया                     धात्रा                                ब्रह्मा ने (द्वारा)

4. चतुर्थी                      धात्रे                                 ब्रह्मा के लिए

5. पञ्चमी                    धातुः                                ब्रह्मा से

6. षष्ठी                       धातुः                                ब्रह्मा का

7. सप्तमी                    धातरि                             ब्रह्मा में, पर

सम्बोधन                     हे धातः !                          हे ब्रह्मा

 

ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द

 


धातृ - ब्रह्मा, विश्वकर्ता, उत्पन्नकर्ता ।

कर्तृ-बनानेवाला ।

शास्तृ - शासन करनेवाला ।

गातृ - गानेवाला ।

गन्तृ - जानेवाला ।

वक्तृ - बोलनेवाला ।

श्रोतृ-सुननेवाला ।

स्रष्टृ - उत्पन्न करनेवाला ।

द्वेष्टृ - द्वेष करनेवाला ।

नेतृ-ले जानेवाला ।

उद्गातृ-गानेवाला |

नप्तृ-पोता । दातृ - देनेवाला ।

द्रष्टृ - देखनेवाला ।

भोक्तृ - खानेवाला ।

पातृ - रक्षा करनेवाला।

ध्यातृ-ध्यान करनेवाला ।


 

वाक्य

 

1. धाता सकलं विश्वं रचयति - ब्रह्मा सब विश्व को रचता है ।

2. दातुः इच्छा कीदृशी अस्ति-दाता की इच्छा कैसी है ?

3. भोक्त्रे मोदकं देहि - खानेवाले को लड्डू दे ।

4. नप्त्रा भोजनं न कृतम् - पोते ने भोजन नहीं किया ।

5. मम द्वेष्टारं पश्य - मेरे द्वेष करनेवाले को देख ।

6. ध्याता ईश्वरं ध्याति-ध्यान करनेवाला ईश्वर का ध्यान करता है ।

7. मूषकः धान्यं खादति - चूहा धान खाता है

8. वक्ता सत्यं वदति - बोलनेवाला सच बोलता।

9. भुवनस्य कर्तारम् ईश्वरं कुत्र पश्यसि - (तू) जगत् के कर्ता ईश्वर को कहाँ देखता है ।

10. अहं भुवनस्य कर्तारम् ईश्वरं वन्दे - मैं जगत्कर्ता ईश्वर को नमस्कार करता हूँ ।

(1) त्वं तं ग्रामं गच्छसि ?

( 2 ) त्वं तं ग्रामं कदा गमष्यिसि ?

( 3 ) त्वं तं ग्रामं किमर्थं न गच्छसि ?

(4) त्वं तं ग्रामं गत्वा किम् आनेष्यसि ?

( 5 ) त्वं तं बहुशोभनं ग्रामं गत्वा शीघ्रम् अत्र आगच्छ ।

( 6 ) त्वं तं शोभनम् उदयपुरनामकं नगरं गत्वा तं मित्रं दृष्ट्वा शीघ्रम् एव अत्र आगच्छ । (7) हे धातः ! त्वं भुवनस्य कर्त्ता असि, त्वया एव सर्वम् एतत् निर्मितम्।

(8) ब्राह्मणाय धनं दुग्धं च देहि ।

(9) ब्राह्मणः अत्र एव अस्ति ।

( 10 ) तम् अत्र आनय ।

 

पाठ 15

 

शब्द


साधुः - साधु, फ़कीर ।

धावति - वह दौड़ता है।

धावामि-दौड़ता हूँ ।

कर्दमे कीचड़ में |

दुकूलम् - रेशमी वस्त्र |

यज्ञः - यज्ञ ।

हससि - तू हँसता है।

वेतनम्तनखाह।

धावसि - तू दौड़ता।

पतितः - गिर गया ।

स्खलितः - फिसल गया ।

अञ्जनम् - सुरमा, अंजन ।

हसति - वह हँसता है ।

वृद्धः - बूढ़ा |

बालः - लड़का ।

हामि - मैं हँसता हूँ ।

युवा - जवान |


 

वाक्य

 

1. सः किमर्थं हसति - वह क्यों हँसता है ?

2. यतः विष्णुदत्तः तत्र कर्दमे पतितः - क्योंकि विष्णुदत्त वहाँ कीचड़ में गिर गया है ।

3. कथं सः कर्दमे पतितः - वह कीचड़ में कैसे गिर पड़ा ?

4. सः पूर्वं स्खलितः पश्चात् पतितः - वह पहले फिसला और फिर गिर गया ।

5. त्वं तथा धावसि किम्, यथा अहं धावामि - क्या तू वैसे दौड़ता है जैसे मैं दौड़ता हूँ।

6. त्वम् अपि तथा न लिखसि यथा विष्णुशर्मा लिखति - तू भी वैसा नहीं लिखता जैसा विष्णुशर्मा लिखता है ।

7. यदा त्वं पठसि तदा अहं क्रीडामि - जब तू पढ़ता है तब मैं खेलता हूँ ।

8. सः कन्दुकेन वरं क्रीडति - वह गेंद से अच्छा खेलता है।

9. यदा सः कन्दुकेन क्रीडति तदा सः धावति - जब वह गेंद से खेलता है, तब वह दौड़ता है।

10. यदा सः धावति तदा अहं हसामि - जब वह दौड़ता है, तब मैं हँसता हूँ ।

11. मह्यम् आम्रं देहि - मुझे आम दें ।

12. किम् अद्य त्वम् आम्रं भक्षयिष्यसि - क्या तू आज आम खाएगा ?

13. अद्य किम् अस्ति - आज क्या है ?

14. अद्य उष्णं दिनम् अस्ति अतः आम्र न भक्षय- आज गर्म दिन है इसलिए आम न खा ।

15. तर्हि शीतं दुग्धं देहि - तो ठंडा दूध दे ।

16. स्वीकुरु, अत्र शीतं मिष्टं च दुग्धम् अस्ति - ले, यहाँ ठंडा और मीठा दूध

 

शब्द


खनति - (वह) खोदता है ।

खनामि - खोदता हूँ ।

रक्षसि - तू रक्षा करता है ।

भूमिम् - ज़मीन को ।

गाम् - गाय को ।

स्वकीया - अपनी |

कूपम् - कूएँ को ।

खनसि - (तू) खोदता है ।

रक्षति - वह रक्षा करता है ।

रक्षामि - मैं रक्षा करता हूँ ।

व्यर्थम्-व्यर्थ ।

गानम् - गाना |

परकीया - दूसरे की ।

नर्तनम् - नाचना ।


 

वाक्य

1. तस्य पिता अतीव वृद्धः अस्ति-उसका पिता बहुत बूढ़ा है I

2. परन्तु तस्य भ्राता युवा अस्ति-परन्तु उसका भाई जवान है ।

3. सः भूमिम् अद्य किमर्थं खनति - वह भूमि को आज किसलिए खोदता है ?

4. सः अद्य व्यर्थं खनति - वह आज व्यर्थ खोदता है ।

5. सः स्वकीयां भूमिं रक्षति न वा - वह अपनी भूमि की रक्षा करता है या नहीं ?

6. सः स्वकीयां गाम् आनयति - वह अपनी गाय को लाता है।

7. सः गृहं रक्षति किम् - वह घर की रक्षा करता है क्या ?

8. अथ किम् ! सः न केवल गृहं रक्षति - और क्या ! वह न केवल घर की रक्षा करता है।

9. परन्तु उद्यानम् अपि वरं रक्षति - परंतु बाग़ की भी अच्छी तरह रक्षा करता है।

10. सः तथा न रक्षति यथा देवप्रियः - वह वैसी रक्षा नहीं करता जैसी देवप्रिय करता है |

11. देवप्रियः अतीव बालः अस्ति - देवप्रिय अत्यन्त बालक (छोटा) है ।

12. परन्तु भद्रसेनः युवा अस्ति-परन्तु भद्रसेन जवान है ।

13. अतः सः प्रातः काले सुष्ठु धावति - इस कारण वह प्रायः अच्छा दौड़ता है।

14. अहं पश्यामि, देवदत्तः खनति इति - मैं देखता हूँ कि देवदत्त खोदता है ।

15. देवदत्तः कूपं खनति - देवदत्त कुआँ खोदता है!

16. पश्य इदानीं सः तत्र कथं खनति - देख, अब वह वहाँ कैसे खोदता है ।

17. सः जलपानर्थं कूपं खनति - वह पानी पीने के लिए कुआँ खोदता है ।

 

पूर्व पाठ में ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दों को चलाने का प्रकार बताया गया है। इस पाठ में दुबारा ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दों का रूप बताते हैं ।

 

ऋकारान्त पुल्लिंग ' पालयितृ' शब्द

 

1. प्रथमा                                   पालयिता                                      रक्षक

2. द्वितीया                                पालयितारम्                                 रक्षक को

3. तृतीया                                पालयित्रा                                    ( रक्षक के द्वारा)

4. चतुर्थी                                 पालयित्रे                                       रक्षक के लिए, को

5. पञ्चमी                              पालयितुः                                        रक्षक से

6. षष्ठी                                                                                       रक्षक का       

7. सप्तमी                              पालयितरि                                      रक्षक में, पर 

सम्बोधन""                           (हे) पालयितः                                   हे रक्षक

 

ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द

 


अतृ- खानेवाला ।

विज्ञातृ - जाननेवाला ।

निहन्तृ - हनन करनेवाला ।

क्रेतु - खरीदनेवाला ।

भर्तु - पोषण करनेवाला, पति ।

हर्तु - हरण करनेवाला |

ज्ञातृ - जाननेवाला ।

अध्येतृ-पढ़नेवाला ।

विक्रेतृ-बेचनेवाला ।

अवज्ञातृ - अपमान करनेवाला ।

भेतृ-भेद करनेवाला ।

चोरयितृ - चोरी करनेवाला ।

स्तोतृ-स्तुति करनेवाला ।

सत्कर्तु - सत्कार करनेवाला ।

संस्कर्तु - संस्कार करनेवाला ।

संहर्तु - संहार करनेवाला ।


 

वाक्य

 

1. अत्ता अन्नम् अत्ति-खानेवाला अन्न खाता

2. अत्रे अन्नं देहि- खानेवाला को अन्न दे ।

3. ज्ञात्रा ज्ञानं ज्ञातम् - ज्ञानी ने ज्ञान जाना ।

4. ज्ञात्रे नमः कुरु - ज्ञानी के लिए नमस्कार कर ।

5. निहन्त्रा व्याघ्रः हतः - मारनेवाले ने शेर मारा ।

6. भर्तुः सेवा कर्त्तव्या - पति की सेवा करनी चाहिए ।

7. स्तोतुः स्तोत्रं श्रृणु - स्तोता की स्तुति सुन ।

8. धान्यस्य विक्रेता कुत्र गतः - धान्य बेचनेवाला कहाँ गया ?

9. अध्येत्रे पुस्तकं देहि - पढ़नेवाले को पुस्तक दे।

10. अश्वस्य क्रेता अत्र आगतः - घोड़े का ख़रीदार यहाँ आया ।

11. अश्वस्य चोरयिता नगरे अस्ति - घोड़े को चुरानेवाला शहर में है ।

12. अन्नस्य संस्कर्ता मम गृहे अन्नं संस्करोति - अन्न का संस्कार करनेवाला मेरे घर में अन्न को ठीक करता है ।

13. व्याकरणस्य अध्येता अद्य न आगतः - व्याकरण अध्ययन करनेवाला आज नहीं आया ।

 

शब्द

धूमः - धुआँ ।

यामि-जाता हूँ ।

शास्त्रम् - शास्त्र |

वसति - (वह) रहता है ।

वससि - (तू) रहता है

वसामि रहता हूँ ।

यासि - (तू) जाता है।

याति - (वह) जाता है ।

उदकम् - जल |

गुणः - गुण |

 

संस्कृत वाक्य

 

यत्र धूमः तत्र अग्निः अस्ति ।

अहं तं ग्रामं गच्छामि, यत्र वेदस्य ज्ञाता वसति ।

तस्मै गुरवे नमः।

नृपतिः शास्त्रस्य ज्ञात्रे द्रव्यं ददाति ।

यस्य बुद्धिः बलम् अपि तस्य एव ।

शत्रुं भूपतिः जयति ।

अहं सायं नगराद् बहिः गच्छामि ।

तस्य हस्तात् माला पतिता ।

सः एव पर्वतः यत्र वसिष्ठः मुनिः वसति ।

व्याघ्रात् भयं भवति ।

गुरोः ज्ञानं भवति ।

मृगः वनात् वनं गच्छति ।

 

हिन्दी के निम्न वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए-

 

(1) ऊँट, ऊँचे न बोल।

(2) तू उस गाँव को जा। (

3) उसका धन दे।

(4) मुझे अन्न दे।

(5) मैं ऊपर ठहरता हूँ।

(6) मैं गर्म जल कभी नहीं पीता ।

(7) उठ, मेरे गुरु के लिए फल ला ।

(8) अब तू खेल।

(9) आज नहीं खेलूँगा ।

(10) तू सच बोलता है।

 

यस्य - जिसका ।

अस्य - इसका |

दूरम् - दूर |

सर्वस्य - सबका ।

देवस्य - ईश्वर का ।

 

पाठ 16

 

शब्द

कस्य - किसका ।

क्व - कहाँ । नियमः - नियम |

मित्रस्य - मित्र का |

नितान्तम्- बिल्कुल ।

पादत्राणम् - जूता ।

मिष्टान्नम् - मिठाई ।

वैद्यः- वैद्य, डाक्टर |

 

वाक्य

1. यस्य पुस्तकम् अस्ति तस्मै देहि- जिसकी पुस्तक है, उसी को दे ।

2. एतत् कस्य गृहम् अस्ति - यह किसका घर है ?

3. एतत् मम मित्रस्य गृहम् अस्ति - यह मेरे मित्र का घर है ।

4. त्वं कथं जानासि - तू कैसे जानता है ?

5. यद् अहं वदामि तत् सत्यम् अस्ति - जो मैं कहता हूँ, वह सच है।

6. तस्य माता किं वदति - उसकी माता क्या कहती है ?

7. मम पादत्राणम् आनय - मेरा जूता ले आ ।

8. कुत्र अस्ति तव पादत्राणम् - कहाँ है तेरा जूता ?

9. तत्र अस्ति, तत् पश्य - वहाँ है, वह देख ।

10. सः दूरं गच्छति किम्-वह दूर जाता है क्या ?

11. सः मिष्टान्नं भक्षयति- वह मिठाई खाता है। 1

12. अस्य लेखनी कुत्र अस्ति - इसकी कलम कहाँ है ?

13. त्वम् इदानीं किं लिखसि - तू अब क्या लिखता है ?

14. सः रक्तं पुष्पं पश्यति - वह लाल फूल देखता है ।

 

शब्द

 

करपट्टिका - रोटी, फुलका ।

कुण्डलिनी - जलेबी |

तक्रम् - छाछ, दधि - दही । लस्सी ।

क्वथिका - कढ़ी |

गृह्णामि - लेता हूँ ।

गृह्णाति - वह लेता है ।

नवनीतम् - मक्खन ।

व्यञ्जनम् - सब्ज़ी, भाजी, तरकारी

गृह्णासि - तू लेता है ।

दैवम्-भाग्य ।

घृतम् - घी |

दुग्धम् - दूध ।

सूपम् - दाल ।

गृहाण - ले

वद - बोल, कह ।

लिख-लिख ।

दुर्दैवम् - दुर्भाग्य, आफ़त ।

 

वाक्य

1. मह्यम् इदानीम् एव करपट्टिकां देहि-मुझे अभी रोटी दे ।

2. त्वं प्रातः तक्रं पिबसि किम् - क्या तू सवेरे लस्सी पीता है ?

3. सः प्रातः कुण्डलिनीं भक्षयति - वह प्रातः जलेबी खाता है ।

4. मह्यं क्वथिकां ददासि किम्- मुझे कढ़ी देता है क्या ?

5. सः भक्षणार्थं व्यञ्जनम् इच्छति - वह खाने के लिए सब्ज़ी चाहता है ।

6. एतत् नवनीतं गृहाण - यह मक्खन ले ।

7. घृतं तत्र किमर्थं नयसि ? वद-घी वहाँ किसलिए ले जाता है ? बता ।

8. अहं भक्षणार्थं घृतं दधिं न नयामि - मैं खाने के लिए घी और दही ले जाता हूँ ।

9. यदि त्वं सूपम् इच्छसि तर्हि गृहाण - अगर तू दाल चाहता है तो ले।

10. सः बहु व्यञ्जनं भक्षयति, तत् न वरम् - वह बहुत सब्ज़ी खाता है, यह अच्छा नहीं ।

11. वद, त्वं कुत्र गच्छसि - बोल, तू कहाँ जाता है ?

 

पूर्व पाठों में ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दों के रूप बनाने का प्रकार दिया है। कई ऋकारान्त शब्दों के रूप भिन्न भी होते हैं। विशेष भिन्नता नहीं होती, केवल एक रूप में भेद होता है-

 

ऋकारान्त पुल्लिंग 'पितृ' शब्द

 

1. प्रथमा                              पिता                        पिता

2. द्वितीया                            पितरम्                   पिता को

3. तृतीया                            पित्रा                        पिता ने

4. चतुर्थी                             पित्रे                       पिता के लिए, को

5. पञ्चमी                           पितुः                       पिता से

6. षष्ठी                                                            पिता का

7. सप्तमी                          पितरि                      पिता में, पर

सम्बोधन                           हे पितः                     हे पिता

 

'पिता' शब्द में और 'धाता' शब्द में इतना ही भेद है कि 'धाता' शब्द का द्वितीया का एकवचन 'धातारम्' है और 'पिता' शब्द का 'पितरम्' है, 'पितारम्' नहीं । यही विशेषता निम्न शब्दों में होती है। पाठकों को उचित है कि इस बात को स्मरण रखें।

'

पितृ ' शब्द के समान चलनेवाले ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द

भ्रातृ-भाई

देव-देवर |

जामातृ-दामाद ।

शंस्तृ-स्तुति करनेवाला

नृ-नर |

सव्येष्ट - गाड़ीवान |

 

वाक्य

1. पिता पुत्रं पश्यति - पिता पुत्र को देखता है ।

2. पुत्रः पितरं पश्यति - लड़का पिता को देखता है ।

3. पित्रा पुत्राय वस्त्रं दत्तम् - पिता ने पुत्र को वस्त्र दिया ।

4. भ्राता भ्रातरं द्वेष्टि - भाई भाई से द्वेष करता है ।

5. भ्रात्रा धनं दत्तम् - भाई ने धन दिया ।

6. जामात्रे वस्त्रं देहि-दामाद के लिए वस्त्र दे ।

7. पित्रे नमः कुरु-पिता को नमस्कार कर ।

 

इस प्रकार पाठक कई वाक्य बना सकते हैं। उक्त वाक्यों के विपरीत अर्थ के वाक्य-

 

1. पिता पुत्रं न पश्यति।

2. पुत्रः पितरं न पश्यति ।

3. पित्रा पुत्राय वस्त्रं न दत्तम् ।

4. भ्राता भ्रातरं न द्वेष्टि ।

5. भ्रात्रा धनं न दत्तम् ।

6. जामात्रे वस्त्रं नं देहि ।

 

निम्न वाक्यों की संस्कृत बनाइए-

 

वह गाँव जाता है।

2. जहाँ तू जाता है, वहाँ मैं जाता हूँ।

3. क्या तू सदा बाग़ जाता है ?

4. तू कहाँ जाता है ?

5. वह दिन में नगर जाता है और रात में घर जाता है।

6. हरिश्चन्द्र फल खाता है ।

 

निम्न वाक्यों के हिन्दी - वाक्य बनाइए -

 

1. अहम् इदानीं फलं नैव भक्षयामि ।

2. हरिश्चन्द्रः पुस्तकं तत्र नयति ।

3. किमर्थं त्वम् अपूपं तत्र नयसि ।

4. अहं गृहं गत्वा निजघौतं वस्त्रम् आनेष्यामि ।

5. ब्रूहि यज्ञप्रियः कुत्र अस्ति ?

 

पाठ 17

 

शब्द

 

शक्तिः - सामर्थ्य |

शक्नोमि - सकता हूँ ।

शक्नोति - (वह) सकता है ।

स्वभाषाम् - अपनी भाषा को ।

चन्द्रः - चाँद |

आंग्लभाषा - अंग्रेज़ी भाषा ।

नवीनम् - नवीन, नई |

मातृभाषा - मादरी ज़बान ।

शक्यः- मुमकिन ।

शक्नोषि - (तू) सकता है ।

वक्तुम् - बोलने के लिए ।

नारङ्ग - संतरा का वृक्ष ।

संस्कृतम्-संस्कृत भाषा । देशभाषा - देशी भाषा ।

पुराणम् - पुराना |

आसनम् - आसन ।

नारङ्गः -- संतरा (फल) 1

 

वाक्य

 

1. त्वं संस्कृतं वक्तुं शक्नोषि - तू संस्कृत बोल सकता है ?

2. नहि नहि, अहम् आंग्लभाषां वक्तुं शक्नोमि -नहीं नहीं, मैं अंग्रेज़ी बोल सकता हूँ।

3. किम् एतत् वरम् अस्तियत् त्वं स्वभाषां वक्तुं न शक्नोषि - क्या यह अच्छा है कि तू अपनी भाषा नहीं बोल सकता ?

4. कः एवं वदति - कौन कहता है ?

5. तर्हि संस्कृतं किं न पठसि - तो संस्कृत क्यों नहीं पढ़ता ?

6. अहं पठामि एव- मैं पढ़ता हूँ ।

7. त्वं तत्र गन्तुं शक्नोषि किम्-क्या तू वहाँ जा सकता है ?

8. सः क्रीडितुं शक्नोति - वह खेल सकता "

9. अहं लेखितुं न शक्नोमि - मैं लिख नहीं सकता ।

10. सः वरं लेखितुं शक्नोति - वह अच्छा लिख सकता

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