पाठ 5
पूर्वोक्त वाक्यों तथा शब्दों को
याद करने से पाठ स्वयं कई वाक्य बनाकर प्रयोग में ला सकेंगे। हमने शब्द तथा वाक्य
इस प्रकार रखे हैं कि व्याकरण का बोझ पाठकों पर न पड़कर उनके मन पर व्याकरण का
संस्कार स्वयं हो जाएं और वे स्वयं वाक्य बना सकें । इसलिए पाठकों को चाहिए कि वे
पहला पाठ याद किए बिना आगामी पाठ प्रारम्भ न करें, तथा जो-जो शब्द पाठों में दिए हुए
हैं उनसे अन्यान्य वाक्य स्वयं बनाने का यत्न करें। अब नीचे लिखें हुए शब्द याद
कीजिए। -
नक्तम – रात्रि में।
नयसि – तू ले जाता है।
नेष्यति – वह ले जाएगा।
नेष्यामि – मैं ले जाऊँगा।
सर्वम् – सब
आनयसि – तू लाता है।
आनेष्यति – वह लाएगा।
आनेष्यामि – मैं लाऊँगा।
नयति – वह ले जाता है।
नयामि – मैं ले जाता हूं।
नेष्यसि – तू ले जाएगा।
नवीनम् – नया।
आनयाति – लाता है।
आमयामि – मैं लाता हूं।
आनेष्यसि – तू लाएगा।
पुराणम् – पुराना।
वाक्य
1.
सः फलं नयति – वह फल ले जाता है।
2.
अहम् आम्रम् आनयामि – मैं आम लाता हूं।
3. त्वम् अन्नम् आनेष्यसि किं - तू
अन्न लाएगा क्या ?
4. अहं तत्र गमिष्यामि - मैं वहाँ
जाऊँगा ।
5. फलं च आनेष्यामि - और फल लाऊँगा
।
6. त्वं श्वः कुत्र गमिष्यसि - तू
कल कहाँ जाएगा ?
7. त्वं कदा आगमिष्यसि - तू कब आएगा
?
शब्द
जलम् - जल |
पुष्पम् - फूल।
अपूपम् - पूड़ा।
सूपम् - दाल।
पुस्तकम् - पुस्तक ।
किमर्थम्-किसलिए।
लेखनी - क़लम ।
मसी- स्याही ।
मसीपात्रम् - दवात ।
वस्त्रम् - कपड़ा ।
उत्तरीयम् - दुपट्टा ।
व्यर्थम्-व्यर्थ, फ़िज़ूल ।
वाक्य
1. अहं जलम् आनयामि - मैं जल लाता हूँ ।
2. त्वं पुष्पम् आनयसि - तू फूल लाता है ।
3. सः वस्त्रं तत्र नयति - वह वस्त्र वहाँ ले जाता है
।
4. सः सदा नगरं गच्छति पुस्तकं च आनयति-
वह हमेशा शहर जाता है और पुस्तक लाता है।
5. सः अद्य आगमिष्यति वस्त्रं च नेष्यति-
वह आज आएगा और कपड़ा ले जाएगा।
6. अहम् आम्रम् आनयामि - मैं आम लाता हूँ ।
7. त्वम् अपूपम् आनयसि - तू पूड़ा लाता
8. सः उत्तरीयं नयति- वह दुपट्टा ले जाता है ।
9. कदा सः मसीपात्रं पुस्तकं च तत्र नेष्यति –
वह दवात और पुस्तक वहाँ क ले जाएगा।
1.
सः सायं तत्र मसीपात्रं लेखनी च नेष्यति –
2. वह शाम को वहाँ दवात और कलम
ले जाएगा।
11. त्वं रात्रौ हरिद्वारं गमिष्यसि किम् - तू रात्रि
में हरिद्वार जाएगा क्या ?
12. नहि, अहं श्वः मध्याह्ने तत्र गमिष्यामि -नहीं,
मैं कल दोपहर को वहाँ जाऊँगा ।
13. अहं गृहं गमिष्यामि सूपं च भक्षयिष्यामि - मैं घर
जाऊँगा और दाल खाऊँगा ।
इस समय तक पाठकों के पास वाक्य
बनाने का बहुत सा मसाला पहुँच चुका है । पूर्व पाठ में जैसे 'देव' शब्द की सातों विभक्तियों के रूप दिए थे, वैसे इस
पाठ में 'राम' शब्द के रूप हैं ।
'राम ' शब्द के रूप
विभक्तियों के नाम
शब्दों के रूप हिन्दी
में अर्थ
1. प्रथमा रामः राम (ने)
2. द्वितीया रामम् राम को
3. तृतीया रामेण' राम के द्वारा
4. चतुर्थी रामाय
राम के लिए, को
5. पंचमी रामात्
राम से
6. षष्ठी रामस्य राम का, की, के
7. सप्तमी रामे राम में, पर
सम्बोधन हे राम! हे राम!
देव और राम इन दो शब्दों के रूप यदि
पाठक भली प्रकार स्मरण करेंगे तो
वे निम्न शब्दों के रूप बना सकेंगे ।
यज्ञदत्त, ईश्वर, गणेश, पुरुष, मनुष्य, अश्व, खग, पाठ, दीप, उदय, गण, समूह, दिवस, मास, कण - ये शब्द देव तथा राम के समान ही चलते हैं। इनके रूप बनाकर थोड़े-से
वाक्य नीचे देते हैं-
1. यज्ञदत्तः गृहं गच्छति - यज्ञदत्त घर जाता है ।
2. ईश्वरः सर्वत्र अस्ति - ईश्वर सब स्थान पर है।
3. हे ईश्वर ! दयां कुरु - हे ईश्वर ! दया करो ।
4. हे पुरुष ! धर्मं कुरु - हे पुरुष ! धर्म करो ।
5. तत्र अश्वं पश्य - वहाँ घोड़े को देख |
6. अत्र दीपं पश्य - यहाँ दीए को देख ।
7. सः रात्रौ दीपेन पुस्तकं पठति - वह रात्रि में दीए
से पुस्तक पढ़ता है।
8. ईश्वरेण धनं दत्तम् - ईश्वर ने धन दिया ।
9. मनुष्याय ज्ञानं देहि - मनुष्य को ज्ञान दे ।
10. अश्वाय जलं देहि - घोड़े के लिए जल दे ।
11. दीपात् प्रकाशः भवति-दीप से प्रकाश होता है ।
12. ईश्वरात् ज्ञानं भवति - ईश्वर से ज्ञान होता है ।
13. सः गणस्य ईश्वरः अस्ति - वह गण (समूह) का मालिक
है ।
14. सः समूहस्य ईशः अस्ति - वह समूह का मालिक है।
15. पुस्तके ज्ञानम् अस्ति - किताब में ज्ञान है ।
16. मासे दिवसाः सन्ति महीने में दिन होते हैं ।
17. समूहे मनुष्याः सन्ति - समूह में मनुष्य होते हैं
।
18. आकाशे खगाः सन्ति - आकाश में पक्षी हैं ।
इनके निषेध के वाक्य पाठक स्वयं बना
सकते हैं। पाठकों को चाहिए कि वे उक्त शब्दों की अन्य विभक्तियों के रूप बनाकर
उनसे भी वाक्य बनाएं और अपना अभ्यास करें ।
वाक्य
1. तत्र आकाशे खगं पश्य ।
2. हे देवदत्त ! यज्ञदत्तः कुत्र गच्छति ?
3. इदानीं यज्ञदत्तः गृहं गच्छति। 4.
श्रीकृष्णस्य उत्तरीयम् अत्र आनय ।
5. सः तत्र व्यर्थं गच्छति।
6. सः पुरुषः किमर्थं पुष्पम् आनयति ?
पाठ 6
उपदेशकः - उपदेशक ।
देवदत्तः - देवदत्त |
करोति - वह करता है ।
करोमि - करता हूँ ।
पटः- वस्त्र, कपड़ा ।
लवणम् - नमक ।
कृष्णचन्द्रः - कृष्णचन्द्र ।
करोषि - तू करता है ।
चित्रम् - चित्र, तस्वीर ।
पुष्पमालाम्-फूलों की माला को
वाक्य
1.
रामचन्द्रः पाठशालां गमिष्यति लेखं च लेखिष्यति –
2. रामचन्द्र पाठशाला जाएगा और
लेख लिखेगा |
3. सत्यकामः गृहं गमिष्यति
मधुरं च फलं भक्षयिष्यति –
4. सत्यकाम घर जाएगा और मधुर
फल खाएगा ।
3.
अहं वनं गमिष्यामि पुष्पमालां च करिष्यामि –
4.
मैं वन को जाऊँगा और फूलों की माला बनाऊँगा ।
5.
हरिश्चन्द्रः कदा उद्यानं गमिष्यति –
6.
हरिश्चन्द्र बाग़ कब जाएगा ?
5. सः श्वः तत्र गमिष्यति - वह कल वहाँ जाएगा ।
6. देवदत्तः सर्वदा उद्यानं गच्छति पुष्पमालां च
करोति किम्-
देवदत्त हमेशा बाग़ जाता है और पुष्पमाला बनाता है
क्या ?
7.
यदि हरिश्चन्द्रः उद्यानं न गमिष्यति –
8.
अगर हरिश्चन्द्र बाग़ को न जाएगा ।
9.
तर्हि देवदत्तः अपि
न गमिष्यति –
10. तो देवदत्त भी न जाएगा ।
शब्द
गच्छ-जा ।
नय - ले जा |
धनम् - द्रव्य ।
वृक्षम् - वृक्ष को ।
कुरु-कर |
स्वीकुरु - स्वीकार कर ।
एकम् - एक ।
धौतम् - धुला हुआ।
सूत्रम् - सूत्र ।
आगच्छ-आ।
आनय - ले आ ।
रूप्यकम् - रुपया ।
द्रव्यम् - धन
भक्षय - खा ।
देहि-दे।
गृहाण - ले।
अन्यः - दूसरा ।
वाक्य
1. त्वं गृहं गच्छ, धौतं वस्त्रं च आनय - तू घर जा और
धोया हुआ वस्त्र ले आ ।
2. अत्र आगच्छ मधुरं च फलं भक्षय- यहाँ आ और मीठा फल
खा ।
3. सः वनं गच्छति अन्यं पुष्पं च आनयति - वह वन को
जाता है और दूसरा फूल लाता है ।
4. एक रूप्यकं देहि-एक रुपया दे ।
5. अत्र आगच्छ मधुरं दुग्धं च गृहाण - यहाँ आ और मीठा
दूध ले ।
6. उद्यानं गच्छ फलं च भक्षय- बाग़ को जा और फल खा ।
7. अन्यत् वस्त्रं देहि - दूसरा वस्त्र दे ।
8. अन्यत् पुस्तकम् आनय - दूसरी पुस्तक ले आ ।
9. अपूपं देहि सूपं च स्वीकुरु-पूड़ा दे और दाल ले ।
10. मुद्गौदनं देहि दुग्धं च तत्र नय - खिचड़ी दे और
दूध वहाँ ले जा ।
11. अत्र त्वम् आगच्छ स्वादु फलं च देहि-यहाँ तू आ और
मीठा फल दे।
12. ओदनं भक्षय, यत्र कुत्रापि च गच्छ - चावल खा और जहाँ
चाहे जा ।
पूर्व दो पाठों में 'देव' तथा 'राम' इन दो शब्दों की
सातों विभक्तियों के एकवचन के रूप दिए हैं। एकवचन वह होता है जो एक संख्या का बोधक
हो, जैसे- छत्रम् (एक छाता)। ‘छाता'
शब्द से एक ही छाते का बोध होता है। बहुत हुए तो उनको 'छाते' कहेंगे।
हिन्दी में एक संख्या के दर्शक वचन
को 'एकवचन'
कहते हैं । एक से अधिक संख्या का बोधक जो वचन होता है उसको 'अनेक' (बहु) वचन कहते हैं। जैसे- छाता ( एकवचन) ।
छाते (अनेकवचन) ।
संस्कृत में तीन वचन हैं। एक संख्या
बतानेवाला 'एकवचन' होता है। दो संख्या बतानेवाला ‘द्विवचन' कहलाता है तथा तीन अथवा तीन से अधिक संख्या
बतानेवाले को 'बहुवचन' कहते हैं।
द्विवचन तथा बहुवचन के रूप इस पुस्तक के दूसरे भाग
में दिए गये हैं। इस प्रथम भाग में केवल एकवचन के ही रूप दिए हैं। यदि पाठक एकवचन
के ही रूप ध्यान में रखेंगे तो वे बहुत उपयोगी वाक्य बना सकेंगे। इसलिए पाठकों को
चाहिए कि वे इन रूपों की ओर विशेष ध्यान दें। अब कुछ वाक्य देते हैं-
1. विष्णुमित्रस्य गृहं कुत्र अस्ति - विष्णुमित्र का
घर कहाँ है ?
2. तस्य गृहं तत्र न अस्ति - उसका घर वहाँ नहीं है ।
3. हुसैनन द्रव्यं दत्तम् - हुसैन ने धन दिया ।
4. यज्ञदत्तः कदा अत्र आगमिष्यति - यज्ञदत्त कब यहाँ
आएगा ।
5. फलस्य बीज कुत्र अस्ति- फल का बीज कहाँ है ?
6. पश्य सः तत्र न अस्ति-देख वह वहाँ नहीं है ।
7. पर्वतस्य शिखरं रमणीयम् अस्ति - पर्वत का शिखर
रमणीय है ।
8. पाठे शब्दाः सन्ति-पाठ के अन्दर शब्द हैं।
9. शब्दे अक्षराणि सन्ति - शब्द के अन्दर अक्षर हैं ।
10. पुस्तकं त्यक्त्वा गच्छ - किताब को छोड़कर जा ।
11. एकस्य पुस्तकम् अन्यः कथं नेष्यति - एक की पुस्तक
दूसरा कैसे ले जाएगा।
12. मनुष्यस्य बलं नास्ति - मनुष्य का बल नहीं है ।
13. बालकस्य मुखं मलिनम् अस्ति - लड़के का मुख मलिन
है ।
14 तस्य मुखं मलिनं न अस्ति- उसका मुख मलिन नहीं है ।
15. राजपुरुषस्य आज्ञा अस्ति - राज्याधिकारी की आज्ञा
है ।
पाठ 7
पाठकों को उचित है कि वे प्रतिदिन
पूर्व - पाठों में से भी शब्द याद किया करें तथा वाक्यों की ओर बार-बार ध्यान दिया
करें और आए हुए शब्दों से अन्यान्य नए-नए वाक्य बनाते रहें। ऐसा प्रयत्न करने से
ही उनकी इस देवभाषा में शीघ्र गति होगी अन्यथा नहीं । अब नीचे लिखे शब्द याद
कीजिए-
कथय - कह ।
अस्ति - वह है ।
अस्मि हूँ ।
दयाम् - दया को ।
आगच्छ-आ।
ब्रूहि-बोल |
पश्य - देख |
पाठम् - पाठ को ।
दर्शय - दिखा, बता ।
असि - तू है ।
सत्य - सच्चाई |
सन्ध्याम् - सन्ध्या को ।
शृणु - सुन । वद - कह ।
कर्म - काम, कार्य ।
वाक्य
1. सत्यं ब्रूहि - सत्य बोल ।
2. उद्यानं पश्य - बाग़ को देख ।
3. दयां कुरु - दया कर ।
4. सन्ध्यां कुरु – सन्ध्या
कर ।
5. सत्यकामः तत्र अस्ति - सत्यकाम वहाँ है ।
6. हरिश्चंद्रः अत्र अस्ति - हरिश्चन्द्र यहाँ है !
7. अहम् अस्मि - मैं हूँ ।
8. त्वम् असि - तू है ।
9. सः अस्ति - वह है ।
10. विष्णुमित्रः कुत्र अस्ति - विष्णुमित्र कहाँ है ?
11. पश्य सः तत्र अस्ति - देख, वह वहाँ है ।
12. सः तत्र नास्ति - नहीं, नहीं, वह वहाँ नहीं है।
शब्द
रथम् - गाड़ी।
पात्रम् -बर्तन ।
उद्घाटय- खोल ।
द्वारम् - द्वार, दरवाज़ा ।
वातायनम् - खिड़की।
मुखम् - मुँह ।
पिधेहि-बन्द कर ।
पिब- पी ।
नेत्रम् - आँख |
कपाटम् - किवाड़ ।
वाक्य
1. द्वारम् उद्घाटय पात्रं च अत्र आनय - दरवाज़ा खोल
और बरतन यहाँ ले आ ।
2. वातायनं पिधेहि जलं च पिब-खिड़की बन्द कर और जल पी
।
3. रथम् अत्र आनय फलं च तत्र नय-रथ यहाँ ले आ और फल
वहाँ ले जा ।
4. पात्रम् अत्र न आनय - बरतन यहाँ न ला ।
5. कथं त्वम् अन्यत् पात्रम् आनयसि - तू दूसरा बर्तन
क्यों लाता है ?
6. अहम् अन्यत् पात्रं न आनयामि-मैं दूसरा बर्तन नहीं
लाता हूँ।
7. स्यम् आनय वनं च श्वः प्रभाते गच्छ-रथ ले आ और वन
को कल सवरे जा ।
8. जलं देहि मोदकं दुग्धं च स्वीकुरु-जल दे, लड्डू
9. त्वं कुत्र असि - तू कहाँ है ।
10. अहम् अत्र अस्मि - मैं यहाँ हूँ ।
11. धन् दाह स्वादु दुग्धं च अत्र आनय-धन दे और
स्वादिष्ट दूध यहाँ ले आ ।
12. कपाटम् उद्घाटय पुष्पमालां च तत्र नय-किवाड़ खोल
और फूलों की माला वहाँ ले जा ।
13. त्वं फलं भक्षयसि किम्-क्या तू फल खाता है ?
14. नहि, अहं मोदकम् आनं च भक्षयामि नहीं, मैं लड्डू और आम खाता हूँ ।
15. यदि त्वं स्यम् आनेष्यसि तर्हि अहं हरिद्वारं
गमिष्यामि –
अगर तू रथ ले आएगा तो मैं हरिद्वार जाऊँगा ।
अब ‘रथ' और ‘मार्ग'
शब्द के सातों विभक्तियों के एकवचन के रूप देते
'रथ' शब्द के रूप ‘मार्ग’ शब्द
के रूप
1. रथः - रथ । मार्गः – मार्ग।
2. रथम् - रथ को । मार्गम्- मार्ग को।
3. रथेन - रथ द्वारा, से । मार्गेण - मार्ग
द्वारा, से ।
4. रथाय - रथ के लिए । मार्गाय-मार्ग के
लिए ।
5. रथात् - रथ से । मार्गात् -
मार्ग से ।
6. रथस्य - रथ का । मार्गस्य
-मार्ग का ।
7. रथे - रथ में, पर । मार्गे - मार्ग में ।
(हे) रथ ! - हे रथ ! (हे) मार्ग ! - हे मार्ग !
शब्द
इसी प्रकार राम, बालक, मृग, सर्प, सूर्य, आनन्द, आकार, कुमार, लेख, दण्ड इत्यादि अकारान्त पुल्लिंग शब्द चलते हैं
। जिन शब्दों के अन्त में अकार का उच्चारण होता है, उनको
अकारान्त शब्द कहते हैं । अब कुछ अकारान्त शब्द देते हैं, जिनके
रूप 'देव' या 'राम'
शब्दों के समान ही होते हैं ।
इन्द्रः - राजा, प्रमुख ।
ग्रामः - गाँव |
नृपः - राजा ।
अर्भकः - लड़का |
चरणः - पैर ।
प्रसादः - मेहरबानी ।
मूषकः - चूहा ।
रसः - रस ।
वासः - रहने का स्थान ।
समुद्रः -- समुद्र, सागर ।
स्वरः - आवाज़ ।
चौरः - चोर |
पुत्रः - बेटा ।
दण्डः -सोटी ।
रक्षकः - पहरेदार |
वत्सः - लड़का ।
वृक्षः - दरख़्त । सर्पः- साँप ।
आचार्यः - गुरु | जनः - लोक ।
वेदः–वेद, ज्ञान।
मनुष्यः - मनुष्य ।
1.
शीघ्रं - जल्दी ।
वाक्य
1. अर्भकः रथं पश्यति - लड़का गाड़ी देखता है ।
2. नृपः चौरं ताडयति - राजा चोर को पीटता है ।
3. सः रथेन अन्यं ग्रामं शीघ्रं गच्छति - वह रथ से
दूसरे ग्राम को जल्दी जाता।
4. वृक्षात् फलं पतति - पेड़ से फल गिरता है ।
5. समुद्रात् जलम् आनयति- समुद्र से पानी लाता है ।
6. आचार्यः धर्मस्य मार्गं शिष्याय' दर्शयति- गुरु धर्म
का मार्ग शिष्य के लिए दर्शाता है।
7. तस्य वासः तत्र भविष्यति - उसका वहाँ रहना होगा।
8. चौरः धनं चोरयति-चोर धन चुराता है ।
9. नृपः जनान् रञ्जयति-राजा लोगों का रंजन (समाधान)
करता है।
10. इन्द्रः स्वर्गस्य राजा : अस्ति - इन्द्र स्वर्ग
का राजा है।
अब कुछ वाक्य नीचे देते हैं जिन्हें पाठक स्वयं समझ
सकेंगे-
1. पुत्रः रसं पिबति ।
2. वत्सः रथं न पश्यति ।
3. सः मार्गेण न गच्छति ।
4. किं सः रथेन ग्रामं न गमिष्यति ।
5. यज्ञमित्रः कदा तत्र गमिष्यति ।
6. रथे नृपः उपविष्टः ।
7. मनुष्येण लेख लिखितः ।
8. आचार्यः कदा आगमिष्यति ।
9. मनुष्यः दण्डेन मूषकं ताडयति ।
10. मार्गे तस्य पुस्तकं पतितम् ' ।
11. यया त्वं गच्छसि तथा रामकृष्णः अपि गच्छति ।
12. यथा त्वं वदसि तथा सः न वदति ।
13. त्वं किमर्थं फलं न भक्षयसि ।
14. सः इदानीं नैव ग्रामं गमिष्यति ।
15. यथा नृपः अस्ति तथा एव विप्रः अस्ति ।
16. यदा आचार्यः तत्र गमिष्यति तदा एव त्वं तत्र गच्छ
।
17. तस्य पुत्रः पात्रेण जलं पिबति ।
18. यः पात्रेण जलं पिबति सः तस्य पुत्रः नास्ति ।
19. तर्हि कः सः ।
20. सः आचार्यस्य पुत्रः अस्ति ।
पाठ 8
शब्द
श्रवणाय - सुनने के लिए।
दर्शनाय - देखने के लिए ।
शयनाय - सोने के लिए।
पठति - वह पढ़ता है ।
पठामि - पढ़ता हूँ ।
गमनाय - जाने के लिए।
क्रीडनाय - खेलने के लिए ।
पठसि - तू पढ़ता है। पठ- पढ़ ।
पानाय - पीने के लिए ।
भक्षणाय - खाने के लिए।
पठिष्यति - वह पढ़ेगा ।
पठिष्यामि – मैं पढूँगा ।
स्नानाय - स्नान के लिए ।
भोजनाय - भोजन के लिए ।
पठनाय - पढ़ने के लिए।
पठिष्यसि - तू पढ़ेगा। लिख-लिख ।
1. शिष्याय - शागिर्द ।
2. पिबति-पीता है।
3. उपविष्टः - बैठा है।
4. लिखितः - लिखा है |
5. ताडयति - पीटता है।
6. पतितम् - गिरी है।
लेख :- लेख |
दैत्यः- राक्षस ।
अर्थः- पैसा, धन ।
कर्णः - कान ।
विप्रः - ब्राह्मण |
दीपः - दीप, दीया ।
समाज:- समाज ।
वानरः - बन्दर ।
दिवसः - दिन ।
अकारान्त पुंल्लिंग शब्द
पाठ: - पाठ ।
पान्यः - मुसाफ़िर
करः - हाथ |
चन्द्रः- चाँद ।
सूर्य:- सूरज |
जनः - मनुष्य ।
मृगः - हिरण ।
अस्ताचलः - सूर्य जहाँ डूबता है वह पश्चिमी दिशा का
पहाड़ ।
स्वर्गः - स्वर्ग |
यत्नः - प्रयत्न, पुरुषार्थ ।
कुमारः - लड़का ।
वेदः - राजा, विद्वान् ।
पादः - पांव |
पाठकों को चाहिए कि वे इनके सातों विभक्तियों के रूप 'देव' और 'राम'
शब्दों के समान बनाएं।
1. स्नानाय जलं देहि - स्नान के लिए जल दे ।
2. पठनाय पुस्तकम् अस्ति - पढ़ने के लिए पुस्तक है ।
3. भोजनाय अन्नं भविष्यति किम् - भोजन के लिए अन्न
होगा क्या ?
4. भक्षणाय फलं देहि खाने के लिए फल दे ।
5. तत्र सूर्यं पश्य - वहाँ सूर्य को देख ।
6. विष्णुमित्रः कुमारम् अत्र किमर्थम् आनयति -
विष्णुमित्र लड़के को यहाँ किसलिए लाता है ?
7. हरिश्चन्द्रः अग्नि तत्र नेष्यति किम् -
हरिश्चन्द्र क्या आग को वहाँ ले जाएगा ?
8. पठनाय दीपं पुस्तकं च अत्र आनय - पढ़ने के लिए
दीपक और पुस्तक यहाँ ले आ ।
. 9. प्रातः स्नानाय गच्छामि -सवेरे स्नान के लिए
जाता हूँ ।
10. पानाय मधुरं दुग्धं देहि-पीने के लिए मीठा दूध दे
।
11. अत्र स्वादु दुग्धम् अस्ति - यहाँ स्वादिष्ट दूध
है ।
12. किं स्वादु दुग्धम् अत्र नास्ति - क्या स्वादिष्ट
दूध यहाँ नहीं है ?
13. स्नानाय जलं नय-स्नान के लिए जल ले जा ।
शब्द
किमर्थम् - किसलिए ।
पश्चात् - बाद में ।
शीघ्रम् -जल्दी |
गत्वा - जा करके ।
भक्षयित्वा - खाकर ।
किमर्थम् - किसलिए |
सत्वरम् - शीघ्र, जल्दी |
परन्तु - परन्तु, लेकिन ।
पठित्वा - पढ़कर |
अधुना - अब ।
पूर्वम् - पहले ।
कृत्वा - करके ।
दत्वा - देकर |
विचार्य -सोचकर |
इदानीम् - अब ।
एव - ही ।
स्नात्वा - स्नान करके ।
नीत्वा - लेकर ।
दृष्ट्वा - देखकर ।
विलोक्य - देखकर |
वाक्य
1. तत्र जलं पीत्वा शीघ्रम् अत्र आगच्छ - वहाँ जल
पीकर जल्दी यहाँ आ ।
2. स्नानाय जलं दत्वा सत्वरम् उद्यानं गच्छ-स्नान लिए
पानी देकर शीघ्र बाग़ को जा ।
3. त्वम् इदानीं पठसि परन्तु अहं न पठामि - तू अब
पढ़ता है परन्तु मैं नहीं पढ़ता
4. विष्णुमित्रः कर्म कृत्वा स्नानं करिष्यति -
विष्णुमित्र काम करके स्नान करेगा ।
5. त्वं पूर्वं गृहं गत्वा पश्चात् स्नानं कुरु - तू
पहले घर जाकर बाद में स्नान कर ।
6. तत्र स्नानाय जलम् अस्ति किम्-क्या वहाँ स्नान के
लिए जल है ?
7. तत्र स्नानाय जलं नास्ति परन्तु अत्र अस्ति - वहाँ
स्नान के लिए जल नहीं है परन्तु यहाँ है।
8. देवदत्तः भोजनं भक्षयित्वा पाठशालां गमिष्यति -
देवदत्त खाना खाकर पाठशाला को जाएगा।
9. त्वं पठित्वा शीघ्रम् आगच्छ मसीपात्रं च देहि-तू
पढ़कर जल्दी आ और दवात दे।
10. मोदकं भक्षयित्वा त्वं कुत्र गमिष्यसि - लड्डू
खाकर तू कहाँ जाएगा ?
11. मोदकं शीघ्रं भक्षय पश्चात् जलं पिब- लड्डू जल्दी
खा, फिर
पानी पी ।
12. प्रातः वनं गत्वा सायम् आगमिष्यामि - सवेरे वन को
जाकर शाम को आऊँगा ।
अकारान्त पुंल्लिंग शब्द
अपराधः-कसूर ।
पर्वतः - पहाड़ ।
उपायः - उपाय |
ज्वरः - बुखार |
कामः - इच्छा, कामवासना ।
भृत्यः - नौकर ।
मोहः - संशय, भूल ।
धूमः--धुआँ।
सम्मानः- मान, आदर।
बुधः - ज्ञानी ।
सङ्ग-मुहब्बत, साथ ।
मनोरथः- इच्छा।
विनयः - नम्रता |
गुणः - गुण ।
विहगः - पक्षी ।
समागमः - सहवास,
भेंट लोभः - लालच |
कासारः - तालाब ।
योधः - लड़नेवाला, शूर ।
सैनिकः - फ़ौजी आदमी ।
इन शब्दों के रूप 'देव' तथा 'राम' के समान बनते हैं।
पाठकों को चाहिए कि वे इनके सातों विभक्तियों के एकवचन के रूप बनाएँ । अब इनके रूप
बनाकर कुछ वाक्य देते हैं-
1. तेन अपराधः कृतः - उसने अपराध किया ।
2. सः पर्वतस्य उपरि गतः - वह पहाड़ के ऊपर गया ।
3. सः बुधः सायम् अत्र आगमिष्यति - वह ज्ञानी शाम को
यहाँ आएगा।
4. एकः विहगः वृक्षे अस्ति तं पश्य - एक पक्षी दरख़्त
पर है, उसको
देख |
5. भृत्यः तत्र गतः - नौकर वहाँ गया ।
6. मम पुत्रः अधुना पुस्तकं पठति - मेरा लड़का अब
किताब पढ़ता है ।
7. योधः युद्धं करोति - योद्धा लड़ाई करता है ।
8. सैनिकः तत्र न अस्ति- फ़ौजी वहाँ नहीं है ।
9. सः ज्वरेण पीडितः अस्ति - वह बुखार से पीड़ित है ।
10. गुणः सम्मानाय भवति - गुण आदर के लिए होता है ।
11. कुमारस्य पुस्तकं कुत्र अस्ति, दर्शय-लड़के की
किताब कहाँ है, दिखा ।
12. बुधस्य समागमेन तेन ज्ञानं प्राप्तम्- ज्ञानी के
सहवास से उसने ज्ञान प्राप्त किया ।
अब नीचे ऐसे वाक्य देते हैं जो कि
भाषान्तर बिना ही पाठक समझ जाएँगे –
(1)
त्वम् इदानीम् किं तत् पुस्तकं पठसि ?
( 2 ) तत्र स्नानाय
शुद्धं जलम् अस्ति ।
(3) तव भृत्यः कुत्र गतः ?
(4) मम भृत्यः आपणं
गतः ।
(5) किमर्थं स आपणं गतः ?
(6) सः
फलम् अन्नं च आनेष्यति ।
( 7 )
अहं फलम् अन्नं च भक्षयितुम् इच्छामि ।
(8) सः मोदकं भक्षयित्वा पाठशालां पठितुं गतः ।
( 9 ) सः
दिने दिने प्रातः स्नानं कृत्वा वनं गच्छति।
(10) सः
तत्र किं करोति ?
( 11
) सः वनं गत्वा सन्ध्यां करोति ।
(12) नृपः
अत्र आगतः।
(13) बुधः
इदानीम् एव तत्र गतः।
(14) तस्य
मनोरथः उत्तमः अस्ति ।
(15) सः
स्नानाय कासारं गच्छति ।
( 16 )
तत्र कासारस्य जलं स्वादु अस्ति ।
( 17 )
तत्र कूपस्य जलं स्वादु नास्ति ।
अब हिन्दी के निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में
भाषान्तर कीजिए-
(1)
स्नान के लिए जल दे ।
( 2 ) खाने के लिए अन्न जाता है ?
( 3 ) हरिश्चन्द्र
कहाँ .
(4) हरिश्चन्द्र गाँव
को जाता है।
(5) पीने के लिए मीठा दूध दे ।
(6) तू अब पढ़ता है, परन्तु मैं नहीं पढ़ता।
(7) वहाँ स्नान के लिए जल है या
नहीं ?
(8) उसका मनोरथ उत्तम
है।
( 9 ) वह तालाब के पास स्नान के लिए
जाता है ।
(10) तेरे
कुएँ का जल मीठा है I
शिष्यः- शिष्य, पढ़नेवाला ।
दासः - नौकर ।
भानुः - सूर्य ।
गुरुः- पढ़ानेवाला ।
बन्धुः - सम्बन्धी |
पुत्रः - पुत्र, लड़का ।
तवते - तेरा ।
मम - मेरा |
तस्य- उसका ।
पाठ 9
शब्द
कृपा- दया, मेहरबानी ।
स्वसा - बहिन |
माता - माँ ।
पिता - पिता, बाप |
भगिनी - बहिन |
तुभ्यम्-तेरे लिए ।
मह्यम् - मेरे लिए ।
तस्मै— उसके लिए ।
अस्मै - इसके लिए |
वाक्य
1. तव गुरुः कुत्र अस्ति - तेरा गुरु कहाँ ?
2. इदानीं मम गुरुः तत्र अस्ति - अब मेरा गुरु वहाँ
है ।
3. मम माता अद्य सायं वनं गमिष्यति मेरी माता आज शाम
को वन जाएगी।
4. अधुना मह्यं पठनाय पुस्तकं देहि- अब मुझको पढ़ने
के लिए पुस्तक दे ।
5. तस्य गृहं कुत्र अस्ति - उसका घर कहाँ ?
6. तव दासः ग्रामं गमिष्यति किम् ? - तेरा नौकर गाँव
को जाएगा क्या ?
7. तव पुत्रः कदा वनं गमिष्यति - तेरा पुत्र कब वन को
जाएगा ?
8. मम बन्धुः इदानीं पुस्तकं पठति - मेरा सम्बन्धी अब
पुस्तक पढ़ा
9. मम माता पुष्पमालां करोति - मेरी माता पुष्पमाला
बनाती है ।
10. तव पिता तव च माता - तेरा पिता और तेरी माता ।
11. पानाय मह्यं जलं देहि-पीने के लिए मुझे पानी दे ।
12. स्नात्वा सायम् आगमिष्यति - स्नान करके शाम को
आएगा ।
13. नहि, नहि, सः ग्रामं गत्वा
रात्रौ आगमिष्यति - नहीं, नहीं, वह
गाँव जाकर रात्रि को आएगा ।
शब्द
इच्छति - वह चाहता है ।
लिखति - वह लिखता है।
इच्छसि - तू चाहता है ।
लिखसि - तू लिखता है ।
इच्छामि - मैं चाहता हूँ ।
पत्रम् - पत्र ।
शुद्धम् - शुद्ध, साफ़ ।
मार्गः-मार्ग, रास्ता।
कर्तुम् - करने के लिए ।
भोक्तुम् - खाने के लिए ।
दातुम् - देने के लिए |
भक्षयितुम् - खाने के लिए ।
पातुम् - पीने के लिए ।
पठितुम् - पढ़ने के लिए ।
लिखामि - मैं लिखता हूँ ।
कूपम् — कुआँ ।
औषधम् - औषध, दवा |
उत्तरीयम् - दुपट्टा ।
लेखितम् - लिखने के लिए ।
स्वीकर्तुम् - स्वीकार करने के लिए ।
गन्तुम् - जाने के लिए ।
आगन्तुम् - आने के लिए ।
नेतुम् - ले जाने के लिए ।
आनेतुम् - लाने के लिए ।
वाक्य
1. रामचन्द्रः पुस्तकं पठितुम् इच्छति - रामचन्द्र
पुस्तक पढ़ने की इच्छा करता है ।
2. हरिश्चन्द्रः शुद्धं जलं पातुम् इच्छति -
हरिश्चन्द्र शुद्ध जल पीने की इच्छा करता है ।
3. अहं कूपं गत्वा स्नानं कर्तुम् इच्छामि - मैं कुएँ
पर जाकर स्नान करना चाहता हूँ।
4. त्वं श्वः प्रातः स्नानं करिष्यसि किम्-क्या तू कल
प्रातः स्नान करेगा ?
5. नहि, अहं श्वः प्रातः स्नानं कर्तुम् न इच्छामि
नहीं, मैं कल सवेरे स्नान करना नहीं चाहता ।
6. यदि प्रातः न करिष्यसि तर्हि कदा करिष्यसि - अगर
सवेरे नहीं करेगा तो कब करेगा ?
7. सायं करिष्यामि - शाम को करूँगा ।
8. त्वम् इदानीम् पठितुम् इच्छसि किम्-क्या तू अब
पढ़ना चाहता है ?
9. नहि, इदानीम् अहं फलं भक्षयितुम् इच्छामि -नहीं,
अब मैं फल खाना नहीं चाहता ।
अकारान्त पुंल्लिंग शब्द
अलंकारः- ज़ेवर ।
छात्रः- शिष्य ।
व्याधः- शिकारी ।
स्नेहः - दोस्ती ।
दण्डः - सोटा ।
ब्राह्मणः - ब्राह्मण ।
स्तेनः - चोर |
वर्णः - रंग |
कपोलः - गाल ।
तरङ्गः - लहर ( पानी की) ।
नयनम् - आँख ।
प्रवाहः -वेग |
आतपः- धूप ।
पुरुषार्थः - प्रयत्न |
ओष्ठः - ओठ ।
चातकः - पपीहा ।
द्विरेफः - भ्रमर, भंवरा ।
नेत्रम् - आँख |
शक्रः - इन्द्र |
उद्यमः - उद्योग |
उपदेशः - उपदेश |
कुक्कुरः - कुत्ता |
इन शब्दों के रूप 'राम' और 'देव' शब्दों के समान ही
होते हैं। पाठकों को चाहिए कि वे इनके सातों विभक्तियों के रूप बनाएं और उनका
वाक्यों में प्रयोग करें।
वाक्य
1. तेन कर्णे हस्ते च अलङ्कारः घृतः - उसने कान में
और हाथ में ज़ेवर धारण किया है ।
2. मित्रेण हस्ते श्वेतः दण्डः घृतः - मित्र ने हाथ
में सफेद सोटी पकड़ी है।
3. कुमारेण मुखे हस्तः धृतः - लड़के ने मुख में हाथ
डाला है।
4. कृष्णः हस्तेन रामाय फलं ददाति - कृष्ण हाथ से राम
के लिए फल देता है।
5. अत्र जलस्य प्रवाहः अस्ति-यहाँ जल का वेग है।
6. सः पुरुषः आतपे तिष्ठति - वह व्यक्ति धूप में खड़ा
है।
7. हे मित्र, जलस्य तरङ्गं पश्य - दोस्त ! जल की लहर को
देख ।
8. सः सदा उद्यमं करोति - वह हमेशा पुरुषार्थ करता है
।
9. आचार्यः उपदेशं करोति-गुरु उपदेश देता है ।
10. जनः मुखेन वदति - पुरुष मुँह से बोलता है ।
11. कुमारः व्याघ्रं ताडयति - लड़का शेर को पीटता है।
12. तस्य कुक्कुरः अन्नं भक्षयति-उसका कुत्ता अन्न
खाता है ।
13. लोकः नेत्राभ्यां पश्यति - मनुष्य आँखों से देखता
है।
14. मनुष्यः कर्णाभ्यां शृणोति - मनुष्य कानों से
सुनता है ।
15. छात्रः प्रातर् अध्ययनं करोति - विद्यार्थी सवेरे
पठन करता है ।
अब कुछ वाक्य नीचे देते हैं जिनको
पाठक पढ़ते ही समझ जाएँगे। उनका हिन्दी में भाषान्तर देने की ज़रूरत नहीं ।
1. तेन कर्णयोः अलङ्कारः न धृतः ।
2. भृत्येन हस्ते दण्डः न धृतः ।
3. कुमारेण हस्ते मोदकः धृतः ।
4. केशवदत्तः धनञ्जयाय धनं ददाति ।
5. मनुष्यः कर्णाभ्यां शृणोति नेत्राभ्यां च पश्यति ।
निम्न वाक्यों की संस्कृत बनाइए-
1. लड़का शेर को पीटता है ।
2. मेरा भाई अब यहाँ नहीं है ।
ज्ञानम् - ज्ञान विद्या ।
जानामि - मैं जानता हूँ ।
जानाति - वह जानता है ।
विज्ञाय - जानकर |
भो मित्र - हे मित्र !
व्यायामम् - व्यायाम को ।
उत्थानम् - उठना ।
ददासि - तू देता है ।
ज्ञातुम् - जानने के लिए।
शौचम् - शौच, टट्टी ।
भोजनम् - भोजन ।
पाठ 10
शब्द
दानम् - दान |
जानासि - तू जानता
ज्ञात्वा -- जानकर ।
जातः - हो गया ।
उत्तिष्ठ - उठ ।
प्रक्षालनम् - धोना ।
ददामि – देता हूँ ।
ददाति - वह देता है
प्रातःकालः - सवेरा |
मुखप्रक्षालनम् - मुंह, धोना ।
कुतः - क्यों, कहाँ से।
भ्रमणाय - घूमने के लिए ।
किमर्थम् - किसलिए |
तिष्ठसि - तू ठहरता है, वैठता है ।
स्थास्यति - वह ठहरेगा, वैठेगा।
स्थितः - ठहरा हुआ ।
पीतः- पीला ।
स्थातुम् - ठहरने के लिए।
स्थास्यामि-ठहरूँगा, बैठूंगा ।
उत्तिष्ठ-उठ ।
वाक्य
1. भो मित्र ! पश्य, प्रातःकालः जातः- हे मित्र ! देख,
सवेरा हो गया ।
2. उत्तिष्ठ ! शौचं कृत्वा शीघ्र स्नानं कुरु - उठ !
शौच करके जल्दी स्नान कर ।
3. अहं शौचं कृत्वा मुखप्रक्षालनं करिष्यामि - मैं
शौच करके मुँह धोऊँगा ।
4. पश्चात् स्नानं कृत्वा सन्ध्यां करिष्यसि किम्--
फिर स्नान करके सन्ध्या करेगा क्या ?
5. नहि, अहं पश्चात् व्यायामं कृत्वा स्नानं कर्तुम्
इच्छामि -
नहीं, मैं बाद में व्यायाम करके स्नान करना चाहता
हूँ ।
6. तथा कुरु - वैसा कर ।
7. स्नानं सन्ध्यां च कृत्वा पुस्तकं पठिष्यामि स्नान
और सन्ध्या करके पुस्तक पढूँगा ।
8. भो मित्र ! किं त्वं प्रातर् अग्निहोत्रं न करोषि
- हे मित्र ! क्या तू सवेरे अग्निहोत्र नहीं करता ?
9. कुतः न करोमि, सदा करोमि एव क्यों नहीं करता ? हमेशा करता हूँ ।
10. पश्चात् मध्याह्ने किं किं करिष्यसि - फिर दोपहर
को क्या-क्या करेगा ?
11. भोजनं कृत्वा पठनाय पाठशालां गच्छामि- भोजन करके
पढ़ने के लिए मैं पाठशाला जाता हूँ।
12. अहं सर्वदा पुस्तकं पठितुम् इच्छामि - मैं हमेशा
पुस्तक पढ़ना चाहता हूँ।
शब्द
दानाय - देने के लिए ।
तिष्ठति - ठहरता है, बैठता है ।
तिष्ठामि - ठहरता हूँ, बैठता हूँ ।
तिष्ठ- ठहर, बैठ |
रक्तम् - लाल या ख़ून ।
स्थित्वा - ठहरकर, बैठकर ।
स्थास्यति - तू ठहरेगा, बैठेगा ।
अथ किम् - और क्या ?
उत्थितः - उठा हुआ।
वाक्य
1. अत्र त्वं किमर्थं तिष्ठसि, वद - यहाँ तू
किसलिए ठहरता है, बता ।
2. इदानीम् अत्र विष्णुमित्रः आगमिष्यति - अब यहाँ
विष्णुमित्र आएगा।
3. पश्चात् किं करिष्यसि - (तू) इसके बाद क्या करेगा ?
4. सायं भ्रमणाय अहं गमिष्यामि - शाम को घूमने के लिए
जाऊँगा ।
5. धनं किमर्थम् अस्ति धन किस प्रयोजन के लिए है ?
6. धनं दानाय एव अस्ति-धन दान के लिए ही है ।
7. उद्यानं गत्वा तत्र स्थातुम् इच्छामि - बाग़ जाकर
वहाँ बैठना चाहता हूँ ।
8. तत्र स्थित्वा किं करिष्यसि - वहाँ बैठकर तू क्या
करेगा ?
9. पुस्तकं पठितुं पत्रं च लेखितुम् इच्छामि - पुस्तक
पढ़ना और पत्र लिखना चाहता हूँ।
10. इदानीम् एव उद्यानं गच्छ रक्तं पुष्पं च आनय -
अभी बाग़ जा और लाल फूल ले आ ।
11. पीतं पुष्पं न आनय - पीला फूल न ला ।
12. अत्र शुद्धं जलम् अस्ति - यहाँ शुद्ध जल है ।
13. किमर्थं स्नानम् इदानीम् एव न करोषि - स्नान अभी
क्यों नहीं करता ?
14. इदानीम् एव स्नानं कर्तुं न इच्छामि - अभी स्नान
करने की मेरी इच्छा नहीं ।
अकारान्त पुल्लिंग शब्द
अक्षः - पांसा, जुआ ।
ग्रन्थः- पुस्तक |
पार्थिवः - राजा ।
अनर्थः - कष्ट, दुःख ।
प्रभवः - उत्पत्ति |
विन्ध्यः - एक पर्वत ।
शृगालः - गीदड़ ।
मेघः - बादल |
आश्रमः - आश्रम रहने का स्थान ।
तापः - गर्मी ।
वरः- वर, इष्ट |
कपोतः - कबूतर |
सिंहः - शेर |
कोपः - क्रोध, गुस्सा |
दुर्ग:-क़िला ।
शुकः - तोता ।
नागः - सांप |
जनकः - पिता ।
वायसः - कौवा ।
देहः - शरीर ।
याचकः - माँगने वाला ।
सैनिकः - सिपाही ।
इन शब्दों के रूप भी 'देव' और 'राम' रूप शब्दों के समान होते हैं । पाठक
इनके सब विभक्तियों में बना सकते हैं ।
वाक्य
पाठक इन वाक्यों को पढ़ते ही समझ जाएँगे, इसलिए उनके अर्थ
नहीं दिए
1. तेन बुधेन ग्रन्थः लिखतः ।
2. पर्वते सिंहः अस्ति ।
3. नगरे अद्य नृपः आगतः ।
4. सः सैनिकः दुर्गं गमिष्यति ।
5. याचकः मार्गे तिष्ठति ।
6. तस्य जनकः गृहे तिष्ठति ।
7. तस्य पुत्रः पाठशालां गतः ।
8. आकाशे मेघः अस्ति ।
9. पार्थिवः युद्धं करोति ।
10. नृपस्य प्रसादेन तेन धनं प्राप्तम् ।
11. तेन मित्रस्य गृहात् पुस्तकं आनीतम् ।
12. सः वनस्य मार्गं पश्यति ।
13. आकाशे सूर्यः अस्ति ।
14. वने वृक्षः अस्ति ।
15. वृक्षे खगः अस्ति ।
परीक्षा
पाठकों को चाहिए कि वे इन प्रश्नों
के उत्तर देकर ही आगे बढ़ें। अगर ठीक उत्तर न दे सकें तो पहले दस पाठ दुबारा
पढ़ें-
(1) निम्न शब्दों के सातों विभक्तियों के एकवचन रूप
लिखिए- ग्राम । चरण । देव। नृप । मार्ग । रक्षक। राम। वृक्ष। दुर्ग। ग्रन्थ ।
आश्रम । अनर्थ ।
(2) निम्नलिखित शब्दों का पंचमी तथा षष्ठी का एकवचन
लिखिए। इस प्रकार का उत्तर अतिशीघ्र लिखना चाहिए- नाग । पर्वत । देह । दिन । कपोल।
कृष्ण। सिंह। लोभ । विनय । धनिक । खल । समागम ।
(3) निम्नलिखित वाक्यों के अर्थ कीजिए-
( 1 ) त्वं श्वः प्रातः स्नानं करिष्यसि किम् ?
( 2 ) त्वम् इदानीं पठितुम् इच्छसि किम् ?
(3) अहं कासारं गत्वा स्नानं कर्तुम् इच्छामि
।
(4) त्वं तं रथम् आनय ।
(5) अन्यत् पुस्तकम् आनय ।
(6) मुद्गौदनं याचकाय देहि । याचकः तत्र मार्गे
तिष्ठति । तं पश्य ।
(7) अत्र त्वं शीघ्रम् आगच्छ ।
(8) सः सायं तत्र पुस्तकं नेष्यति।
(9) कदा सः आगमिष्यति ?
(10) सः श्वः प्रभाते आगमिष्यति ।
(4) निम्न वाक्यों के संस्कृत वाक्य बनाइए-
(1) वह दुपट्टा ले जाता है।
(2) मैं कल दोपहर को जाऊँगा ।
(3) लड्डू जल्दी खा और फिर पानी पी ले।
(4) देवदत्त भोजन खाकर पाठशाला को जाएगा ।
(5) तू अब पढ़ता है, परन्तु मैं नहीं पढ़ती ।
( 6 ) बाग़ को जा और फल खा ।
(7) तू घर जा और धोया हुआ वस्त्र ले आ ।
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