English version is at the end
वैदिक भजन १२०० वां
राग भीमपलासी
गायन समय दोपहर १२ से ३ बजे तक
ताल दादरा ६ मात्रा
👇 वैदिक मन्त्र 👇
सहस्त्राह्ण्यं वियतावस्य पक्षौ हरेर्हंसस्य पतत: स्वर्गम्।
स देवान्त्सर्वानुरस्यपद्य संपश्यन् याति भुवनानि विश्वा।।
अथर्व• ६/१२४/१
👇 वैदिक भजन👇
प्राण-अपान के पंखों से,फैलाए पंख उड़ता रहा
अनगिन दिन बीते मगर स्वर्ग-अभीष्ट जाता रहा ।।
प्राण.........
अगणित अभीष्ट पाने को हम कुछ तो प्रयास करते रहे
जब तक प्रयास हुआ ना सफल होकर बेचैन सहते रहे पूर्ण होगी कल्पनाए, कल्पनाएं करते रहे ।।
प्राण...........
इच्छा थी स्वर्गलोक की बनके 'हरी' वह उड़ता रहा
ज्ञान- कर्म के बल पर स्वर्ग- कामना करता रहा
कब से यह हंस उड़ रहा,स्वर्गीय राह तकता रहा ।।
प्राण..........
दिन तो हजारों गए गुजर,पंख फैले ही रहे मगर
ना ही अभीष्ट- स्वर्ग मिला ना उड़ान ने थामा सफर
हृदय में दैवी गुण लिए चाहता है स्वर्ग- प्रतर
प्राण............
👇 भाग २👇
अजरत्व,अमरत्व, निष्कामत्व इन देवत्वों के आश्रय
नाना योनि नाना देशों में देख रहा वस्तु भुवनों की लय स्वर्ग-प्राप्ति का हर देश जिसके लिए बना हृदय ।।
प्राण..........
दिन-रात हर पल चेष्टा किए, स्वर्ग ढूंढ रहा है यह हंस
ज्ञान कर्म दो पर्ंणों से करता है गतियाँ फैला के पंख
ऐ हंस! बैठ जा, पंख समेट, छोड़ दे भय हो जा नि:शंक प्राण...........
ऐ हंस!भोगों से हो जा विरक्त उड़ जाना है आनन्दधाम बन्धन से मुक्ति का मौन सफर, पार लगा देंगे भगवन्
मुक्ति मिलेगी चिरकाल तक,जन्म बन्धन से होगा उपराम प्राण........
👇 शब्दार्थ:-👇
प्राण-अपान= स्वाच्छोस्वास
अभीष्ट= मनोरथ
'हरि'= इधर-उधर फिरने वाला
प्रतर=पार होना
अजरत्व= विनाश ना होना
अमरत्व= अमर होना
निष्कामत्व= त्याग पूर्ण भावना
पर्ण=पंख
नि:शंक=सन्देह रहित
उपराम= वैराग्य
👇 उपदेश 👇
मनुष्य प्रतिक्षण चेष्टायमान है। जीव को दिन-रात किसी न किसी अभीष्ट के पाने की चाह या किसी के दु:ख को हटाने की चाह लगी रहती है और उसके लिए वह सदा कुछ- न- कुछ करता रहता है। जीव को तब तक चैन नहीं मिल सकता जबतक की वह उस अवस्था में न पहुंच जाए, जहां उसे कुछ कमी ना रहेगी,जहां उसकी सब कामनाएं पूर्ण हो जाएंगी, सब दु:ख समाप्त हो जायेंगे। वह स्वर्गलोक को पाने के लिए यह 'हरि'( इधर-उधर फिरने वाला) हंस न जाने कब से उड़ रहा है। यह अपने अभीष्ट लोक को कब पहुंचेगा? यह लगातार ज्ञान और कर्म के सहारे से उस स्वर्ग को न जाने कब से ढूंढ रहा है! सुख- प्राप्ति के विषय में उसे जो ज्ञान मिलता है उसके अनुसार वह कर्म करता है, कर्म करने के बाद उसे कुछ अन्य नया अनुभव (ज्ञान) मिलता है तो वह फिर उसके अनुसार कर्म करता है। इस प्रकार यह हंस अपने ज्ञान और कर्म (अन्दर से बाहर की ओर चेष्टा और बाहर से अन्दर की ओर चेष्टा प्राण और अपान )के पंखों को हिलता हुआ उड़ा चला जा रहा है। हज़ारों दिन बीत गए हैं पर उसके पंख फैले ही हुए हैं। न उसे अभीष्ट स्वर्ग मिलता है और ना वह अपनी उड़ान बन्द करता है। पर मजे़दार बात यह है कि स्वर्ग के सब देवों को सब देव-गुणों को अजरत्व, अमरत्व, निष्कामत्व, पूर्णत्व आदि सब देवताओं को--अपने हृदय में लिए हुए फिर रहा है। वह लाखों योनियों में लोगों में, नाना देशों में, उड़ रहा है।
इस जगत् की सब उत्पन्न वस्तुओं, सब भुवनों को देखता हुआ जा रहा है,पर सब देश तो उसके हृदय में ही स्थित हैं, अतः उसे जब कभी स्वर्ग की प्राप्ति होगी, तब उसे अपने हृदय में ही होगी। तबतक वह आसंख्यात स्थानों में, प्रभु की इस अगम्य सृष्टि के करोड़ों भुवनों को देखता हुआ विचर रहा है चौबीस घंटे ज्ञान और कर्म को कुछ-न- कुछ चेष्टा करता हुआ स्वर्ग को ढूंढ रहा है,अपने इन पंखों को फड़फड़ाता हुआ निरन्तर गति कर रहा है। ओह ! यह कब अपने लक्ष्य पर पहुंचेगा? किस दिन अपने पंखों को समेट कर बैठेगा? इसके पंख तो हजारों हजारों-हज़ारों दिनों से खुले हुए हैं !
🕉 द्वितीय श्रृंखला का १९४ वां वैदिक भजन 🙏
🙏और अब तक का १२०० वां वैदिक भजन
🙏सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹
The wings are open
vaidik bhajan 1200th
Raag bhimapalasi
Singing time 12 to 3 p.m.
Taal dadara 6 beats
👇 vaidik Bhajan👇
sahastrahnyam viyatavasya pakshau harerhansasya patat: svargam। sa devantsarvanurasyapadya sampashyan yaati bhuvanaani vishvaa।।
Atharva• 6/124/1
👇 vaidik bhajan👇
praan-apaan ke pankhon se,failaaye pankh udataa rahaa
anagin din beete magar swarg-abheesht jataa rahaa ।।
praan.........
aganit abheesht paane ko ham kuchha to prayaas karate rahe
jab tak prayaas huaa na saphal hokar bechain sahate rahe purna hogi kalpanaayen, kalpanaayen karate rahe ।।
pran...........
ichchhaa thee swarg-lok ki banake 'hari' vah udtaa rahaa
Gyaan- karm ke bal par swarg- kamanaa karataa rahaa
kab se yah hans ud rahaa,swargeeya raah takataa rahaa ।।
pran..........
din to hazaaron gaye guzar,pankh faile hi rahe magar
naa hi abheesht- swarg milaa na udaan ne thaamaa saphar
hridaya men daivi guna liye chaahataa hai swarg- pratar
praan............
👇 part 2👇
ajaratva,amaratva, nishkaamatva in devatvon ke aashraya
naanaa yoni naanaa deshon men dekh rahaa vastu bhuvanon ki luy swarg-prapti kaa har desh, jisake lliye bana hridaya ।।
praan..........
din-raat har pal cheshtaa kiye, swarg dhoondh rahaa hai yah hans
Gyaan- karm do parnnon se karataa hai gatiyaan failaa ke pankh
Ai hans! baith jaa, pankh samet, chhod de bhay ho jaa ni:shank
pran...........
ai hans!bhogon se ho jaa virakt ud janaa hai anandadhaam bandhan se mukti kaa maun saphar, paar lagaa denge bhagavan
mukti milegi chirakaal tak,janma bandhan se hogaa uparaam
pran........
The wings are open
👇 Semantics:-👇
Praan-apaan= breath & exhalation
Abheeshta= desire
'Hari'= wandering about
Pratar=to cross
Ajaratwa= not to be destroyed
Amaratwa= to be immortal
Nishkamatva= feeling of sacrifice
Parna=wings
Ni:shank=without doubt
Uparaam= renunciation
👇 meaning of Vedic Bhajans👇
With the wings of life and death, the wings spread continued to fly
Countless days passed but the heavenly-desired continued to go.
Praana.........
We kept trying something to get countless desires
Until the effort was not successful, restlessly endure, imagination will be fulfilled, imagination will be fulfilled.
Praana..........
He wanted to become 'green' in heaven and kept flying
By virtue of knowledge- karma, he wished for heaven
Since when this swan has been flying, looking for the heavenly path.
Praana.........
Thousands of days have passed, but the wings remain spread
Neither the desired- heaven was found nor the flight took the journey
Heaven- pratar wants to take divine qualities in the heart
Praana........
👇 Part 2👇
Ever young, Immortality, unselflessness are the shelters of these divinities
Various vagina and various countries seeing object worlds rhythm of heaven-attainment every country for whom the heart is made.
Prana........
Day and night every moment tried, heaven is looking for this swan
Knowledge does action with two leaves moves spreading wings
O swan! Sit down, gather your wings, leave the fear and be without doubt your soul.
O swan! Be detached from pleasures and fly to Ananddham The silent journey of liberation from bondage, Lord will cross
Mukti milegi chirkal tak,janm bandhan se hoga uparam praan.
********
The wings are open
👇 Preaching 👇
Man is moving every moment. The being is day and night desirous of attaining some desired object or of removing someone's suffering and he always does something for it. The soul cannot find peace until it reaches a state where it will lack nothing, where all its desires will be fulfilled, all suffering will be eliminated. He has been flying for a long time to get to heaven. When will it reach its desired world? It has been constantly seeking that heaven with the help of knowledge and action for some time! He acts according to the knowledge he gets about attaining happiness. After doing the karma, he gets some other new experience (knowledge) and then he acts according to it. Thus this swan is flying away shaking the wings of its knowledge and action (movement from inside to outside and movement from outside to inside, prana and apana). Thousands of days have passed but his wings are still spread. He does not get the desired heaven and he does not stop his flight. But the funny thing is that all the gods of heaven, all the god-qualities of immortality, immortality, selflessness, perfection, etc., all the gods--have been carrying in their hearts. He is flying in millions of vaginas in people, in various countries.
He is seeing all the produced things of this world, all the worlds, but all the countries are situated in his heart, so whenever he attains heaven, it will be in his heart. Until then he is wandering in innumerable places, seeing the millions of worlds of this inaccessible creation of the Lord, twenty-four hours a day, trying something to knowledge and action, seeking heaven, flapping his wings and moving constantly is. Oh ! When will it reach its goal? What day will it fold its wings? Its wings have been open for thousands and thousands of days!
🕉 194th Vedic Bhajan of the Second Series 🙏
🙏And the 1200th Vedic Bhajan ever
🙏Wish all Vedic listeners🙏🌹
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know