🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -३० नवम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - शनिवार
🌘 तिथि -- चतुर्दशी ( १०:२९ तक तत्पश्चात अमावस्या )
🪐 नक्षत्र - - विशाखा ( १२:३५ तक तत्पश्चात अनुराधा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - मार्गशीर्ष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५६ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर
🌘चन्द्रोदय -- चन्द्रोदय नही होगा
🌘 चन्द्रास्त - - १६:३१ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म् ‼️🚩
🔥 मुक्ति क्या है ?
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मुञ्चन्ति पृथग् भवन्ति जना यस्यां सा मुक्तिः।।
जिसमें छूट जाना हो उसका नाम मुक्ति है, अर्थात् सांसारिक दुःखों से छूटना ही मुक्ति कहाती है।
दुःखजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानानां उत्तरोत्तरापाये तदन्तरापायादपवर्गः।।
―(न्याय० १/१/२)
अर्थात्―दुःख, जन्म, प्रवृत्ति, दोष और मिथ्याज्ञान उत्तरोत्तर अर्थात् आगे-आगे के नष्ट हो जाने पर उसके अनन्तर के अव्यवहित पूर्व के नाश हो जाने से मोक्ष होता है।
इसमें दुःख, जन्म, प्रवृत्ति, दोष और मिथ्याज्ञान―ये पाँच पदार्थ कहे गए हैं। उसमें उत्तर अर्थात् अगला पदार्थ अपने से पहले का कारण है। इस प्रकार दुःख का कारण जन्म, जन्म का कारण प्रवृत्ति, प्रवृत्ति का कारण दोष और दोष का कारण मिथ्याज्ञान है।
यह एक तर्कपूर्ण व्यवस्था है कि कारण के नाश हो जाने पर कार्य का नाश हो जाता है। फल स्वरुप मिथ्याज्ञान के नाश से दोषों का नाश, दोषों के नाश से प्रवृत्ति का नाश, प्रवृत्ति के नाश से जन्म का नाश और जन्म के नाश से दुःखों का नाश सम्भव है।
तदत्यन्तविमोक्षोऽपवर्गः।।―(न्याय० १/१/२२)
जो दुःख का अत्यन्त विच्छेद होता है, वही मुक्ति कहाती है।
महर्षि कपिल मुक्ति के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं―
अथ त्रिविधदुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्तपुरुषार्थः।।
―(सांख्य १/१)
तीन प्रकार के दुःखों की अतिशय निवृत्ति मोक्ष है।
संसार में दुःखों से छूटने के लिए धन आदि अनेक उपायों का प्रयोग करते हैं। थोड़े-बहुत समय के लिए हम छुटकारा पाते भी हैं, पर फिर हमें शीघ्र ही अन्य दुःख-समूह आ घेरता है। किसी एक दुःख-निवृत्ति के काल में भी अन्य दुःख आते रहते हैं। इस प्रकार सांसारिक साधनों के द्वारा न तो हमारे दुःख अधिक समय के लिए छूट पाते हैं और न उतने काल में नैरन्तर्य की स्थिति आ पाती है। क्योंकि जितने समय के लिए कोई कष्ट दूर होता है, उसके अन्तराल में अन्य कष्ट आ उपस्थित होते हैं। अत एव इन अवस्थाओं को परम पुरुषार्थ, मोक्ष या अपवर्ग नहीं कहा जा सकता। मोक्ष की अवस्था वही है, जहाँ तीनों प्रकार के दुःखों की अधिकाधिक समय के लिए मुक्ति हो जाये, उस में नैरन्तर्य की अवस्था बनी रहे। अभिप्राय यह है उतने समय में किसी प्रकार के दुःख का अस्तित्व नहीं रहना चाहिए।
दुःख के समस्त प्रकारों का तीन वर्गों में समावेश किया गया है―आध्यात्मिक, आधिभौतिक तथा आधिदैविक। आध्यात्मिक दुःख वह है जो अपने आन्तरिक कारणों से उत्पन्न होता है। यह दो प्रकार का है―एक शारीरिक, दूसरा मानसिक। शरीर की वात, पित्त, कफ आदि की विषमता से अथवा आहार-विहार आदि की विषमता से जो दुःख उत्पन्न होता है, वह शारीरिक दुःख कहा जाता है। जो काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, राग आदि मनोविकारों के कारण दुःख उत्पन्न होता है उसे मानसिक दुःख कहते हैं।
आधिभौतिक वह दुःख है जो अन्य भूत-प्राणियों से हमें प्राप्त होता है। साँप, बिच्छू आदि के काटने से, अन्य हिंसक प्राणियों द्वारा आघात पहुँचाने से, किसी के मारने-पीटने अथवा कटु वाक्य कहने से, इसी ढंग की किसी भी रीति से होने वाला दुःख आधिभौतिक दुःख कहलाता है।
आधिदैविक दुःख वह है जो वर्षा, आतप, हिमपात, विद्युत्पात, भूकम्प तथा वायु जनित उत्पातों के कारण उत्पन्न होता है।
इन तीनों प्रकार के दुःखों की अत्यन्त निवृत्ति, अथवा आत्मा का इन दुःखों से अलग हो जाना छ पुरुषार्थ अर्थात् मोक्ष कहा जाता है।
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🚩‼️आज का वेद मन्त्र‼️🚩
🌷 ओ३म् पूषा पञ्चाक्षरेण पञ्च दिशऽउदजयत् ताऽउज्जेषं सविता षडक्षरेण षड् ऋतूनुदजयत् तानुज्जेषं मरुत: सप्ताक्षरेण सप्त ग्राम्यान् पशूनुदजयँस्तानुज्जेषं बृहस्पतिरष्टाक्षरेण गायत्रीमुदजयत् तामुज्जेषम्॥_
(यजुर्वेद ९-३२)
💐शासक चंद्रमा की कीर्ति के समान सभी पांचो दिशाओं(पूर्वादि चार और एक ऊपर/नीचे) को पुष्ट करने वाला हो।
शासक सूर्य की तरह सभी छः वसन्तादि ऋतुओं में शुद्ध करने वाला वाला हो।
शासक वायु के वेग की तरह उपयोगी सात पशुओ(गाय घोङा भैंस ऊंट बकरी भेङ और गधा) की वृद्धि करने वाला हो।
शासक को विद्वानों की तरह विद्याओं का ज्ञान हो। जिससे जन कल्याण के लिए उत्तम नीतियां अपना सके।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां
तिथौ,
नक्षत्रे, विशाखा शनिवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे ढनभरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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