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आज का वेद मंत्र

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩



🕉️🙏नमस्ते जी🙏


दिनांक  - - २९ जनवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - बुधवार 


  🌘 तिथि -- अमावस्या ( १८:०५ तक तत्पश्चात  प्रतिपदा )


🪐 नक्षत्र - - उत्तराषाढ ( ८:२० तक तत्पश्चात  श्रवण )

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  माघ 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:११ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:५८ पर 

 🌘 चन्द्रोदय  --  चन्द्रोदय नही होगा

  🌘 चन्द्रास्त  - - १७:४८ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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🚩‼️ओ३म् ‼️🚩


     🔥ओ३म् आ रोहतायुर्जरसं वृणाना अनुपूर्वं यतमाना यतिष्ठ।

इह त्वष्टा सुजनिमा सजोषा दीर्घमायुः करति जीवसे वः।। ऋग्वेद १०\१८\६

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  भावार्थ: परमात्मा ने इस संसार में सभी को दीर्घ आयु प्रदान की है किंतु मनुष्य अनुचित आहार-बिहार द्वारा आयु-क्षय कर लेता है। इसलिए नियमपूर्वक जीवन जीते हुए पूर्ण आयु प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है।


    मानव जीवन की यह महान उपलब्धि परमेश्वर ने हमें ऐसे ही प्रदान नहीं कर दी है। उसने हमें संसार में अपने उत्तराधिकारी के रूप में भेजा है कि हम सौ वर्ष तक हृष्ट-पुष्ट रहकर समाज में सबकी भलाई के कार्य करते हुए यशस्वी एवं श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करें और हमारी कीर्ति पताका सर्वत्र फैहराती रहे। जीवन बहुत महत्वपूर्ण है, इसे नीचतापूर्ण कर्मों में गंवाना अच्छी बात नहीं। इसलिए पुरूषार्थी बने और दुराचार त्याग कर सदाचारी हों इससे मनुष्य पूर्ण आयु प्राप्त करता है।


     प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में श्रेष्ठ, यशस्वी और कीर्तिमान होने की कामना करनी चाहिए। उसे सदैव सत्कर्मों के द्वारा समाज हितकारी कार्य करने चाहिए। जिस प्रकार संसार का उपकार करते रहने से सूर्य, चंद्र, पवन को यश मिलता है, उसी प्रकार हम भी ऐसे ही कार्य करें। कभी भी कोई ऐसा कार्य न करें जो हमें अपयश का भागी बनाए।


   यशस्वी एवं सर्वश्रेष्ठ बनने का सर्वोत्तम मार्ग है अपने जीवन को दोष एवं दुर्गुणों से मुक्त करके आसुरी वृत्तियों का पूरी तरह से दमन करना। दुराचारी व्यक्ति अपने नीच कर्मों से थोडा बहुत लाभ भले ही प्राप्त कर लें परंतु वे आंतरिक रूप से निरंतर उदास, दुखी, क्षुब्ध और रोते हुए ही दिखाई देते हैं। हमें इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। विषय सेवन से अपने को दूर रखें। इनमें फंसने से सदा अपयश ही मिलता है।


     हमें स्वयं अपना समीक्षक और न्यायधीश बनकर अपने आपको दुराचारों के लिए दंडित करते रहना चाहिए। हमारी भावना होनी चाहिए की जो पांव कुमार्ग पर चलें उन्हे काट दो, जो हाथ किसी की सहायता न करें उन्हे काट दो, जो जिह्वा परनिंदा में लगी रहे उसे काट दो, जिस आंख में करूणा के आंसू न हों उसे फोड दो। इस प्रकार स्वयं अपने आचरण की समीक्षा करते हुए पुरूषार्थी और सदाचारी बनकर यशस्वी बनें।


    संसार में सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए मनुष्य को उच्चकोटि का ज्ञान, स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मस्तिष्क, और उत्कृष्ट मनोबल चाहिए। ज्ञानी, विद्वान, सदाचारी, परोपकारी और उदारमना व्यक्ति ही मनुष्यों में अपना सर्वोच्च स्थान बना सकता है। इसी से वह दैवी गुणों में वृद्धि करते रहने का साहस कर सकता है और पाप कर्मों के प्रलोभन से अपने को बचा सकता है। दैवी गुणों से दिव्यता आती है तथा सुशीलता, वर्चस्विता, तेजस्विता और प्राण शक्ति में वृद्धि होती है। करूणा, प्रेम, दया, उदारता, सरसता, शिष्टता, विनय के प्रभाव से उसके व्यक्तित्व में निखार आता है और वह समाज में अद्वितीय, अनुपम एवं अग्रणी होने का सम्मान पाता है। दीर्घायु प्राप्त करने का यही साधन है ।


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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🚩🕉️


   🌷ओ३म् ग॒न्ध॒र्वस्त्वा॑ वि॒श्वाव॑सुः॒ परि॑दधातु॒ विश्व॒स्यारि॑ष्ट्यै॒ यज॑मानस्य परि॒धिर॑स्य॒ग्निरि॒डऽई॑डि॒तः। इन्द्र॑स्य बा॒हुर॑सि॒ दक्षि॑णो॒ विश्व॒स्यारि॑ष्ट्यै॒ यज॑मानस्य परि॒धिर॑स्य॒ग्निरि॒डऽई॑डि॒तः। मि॒त्रावरु॑णौ त्वोत्तर॒तः परि॑धत्तां ध्रु॒वेण॒ धर्म॑णा॒ विश्व॒स्यारि॑ष्ट्यै॒ यज॑मानस्य परि॒धिर॑स्य॒ग्निरि॒डऽई॑डि॒तः॥३॥


   💐भावार्थ - ईश्वर ने जो सूर्य्य, विद्युत् और प्रत्यक्ष रूप से तीन प्रकार का अग्नि रचा है, वह विद्वानों से शिल्पविद्या के द्वारा यन्त्रादिकों में अच्छी प्रकार युक्त किया हुआ अनेक कार्य्यों को सिद्ध करने वाला होता है॥३॥


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, कृष्ण पक्षे, अमावस्यायां

 तिथौ, 

    उत्तराषाढ नक्षत्रे, बुधवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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