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यजुर्वेद अध्याय 22 हिन्दी व्याख्या

 ॥ वेद ॥


॥ वेद ॥>॥ यजुर्वेद ॥>॥ अध्याय २२ ॥

तेजोसि शुक्रममृतमायुष्पा ऽ आयुर्मे पाहि. देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्यामाददे.. (१)

हे देव! आप तेजोमय, चमकीले, अमर व आयु की रक्षा करने वाले हैं. आप हमारी आयु की रक्षा कीजिए. सविता देव और अश्विनीकुमार की बाहु तथा पूषा देव के हाथों आप हम पर कृपा दान कीजिए. ( १ )

इमामगृभ्णन् रशनामृतस्य पूर्वऽआयुषि विदथेषु कव्या.सा नो अस्मिन्त्सुत ऽ आ बभूव ऋतस्य सामन्त्सरमारपन्ती.. (२)

कवियों ने यज्ञ से ज्ञान पाया. ज्ञान से सृष्टि व आयु को जाना. वे हमारे पुत्रों के लिए ऋत को जानें. प्रकृति के रहस्यों को जान जाएं. (२)

अभिधा असि भुवनमसि यन्तासि धर्त्ता.

स त्वमग्निं वैश्वानर सप्रथसं गच्छ स्वाहाकृत:.. (३)

हे अश्व! आप दोनों लोकों के धारक, भुवन, नियंत्रक व धारक हैं. आप वैश्वानर अग्नि में आहुति दीजिए. आप आहुतिपूर्वक अपने निर्धारित स्थान तक पहुँचने की कृपा कीजिए. ( ३ )

स्वगा त्वा देवेभ्यः प्रजापतये ब्रह्मन्नश्वं भन्त्स्यामि देवेभ्यः प्रजापतये तेन  राध्यासम्. तं बधान देवेभ्यः प्रजापतये तेन राध्नुहि.. (४)

आप सर्वत्र गमन करने वाले हैं. आप देवों तक स्वयं जाने वाले हैं. आप प्रजापति तक पहुंचने वाले हैं. अग्नि ब्रह्मज्ञानी हैं. हम आप से देवताओं तक पहुंचने की प्रार्थना करते हैं. देवता और प्रजापति हमें सब प्रकार के धन प्रदान करने की कृपा करें. (४)

प्रजापतये त्वा जुष्टं प्रोक्षामीन्द्राग्निभ्यां त्वा जुष्टं प्रोक्षामि वायवे त्वा जुष्टं प्रोक्षामि  विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यो जुष्टं प्रोक्षामि सर्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यो जुष्टं प्रोक्षामि.यो अर्वन्तं जिघा सति तमभ्यमीति वरुणः.परो मर्त्तः परः श्वा.. (५)

प्रजापति सब के प्रिय हैं. हम प्रजापति की संतुष्टि हेतु आप का अभिषेक करते बाईसवां अध्याय हैं. इंद्र और अग्नि की संतुष्टि हेतु आप का अभिषेक करते हैं. हम वायु की संतुष्टि हेतु आप का अभिषेक करते हैं. हम विश्वे देव की संतुष्टि हेतु आप का अभिषेक करते हैं. हम सभी देवों की संतुष्टि हेतु आप का अभिषेक करते हैं. यज्ञ की जो चंचल ऊंची उठती हुई लपटें हैं उन्हें जो भी हानि पहुंचाने वाले हों, उन्हें वरुण देव नष्ट करने की कृपा करें. यज्ञ को नुकसान पहुंचाने वाले कुत्तों और ऐसे व्यक्तियों को दूर पहुंचाने की कृपा करें. (५)

अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहापां मोदाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा वायवे स्वाहा  विष्णवे स्वाहेन्द्राय स्वाहा बृहस्पतये स्वाहा मित्राय स्वाहा वरुणाय स्वाहा.. (६)

अग्नि के लिए स्वाहा. सोम के लिए स्वाहा. प्रसन्नता के लिए स्वाहा. सविता के लिए स्वाहा. वायु के लिए स्वाहा. विष्णु के लिए स्वाहा. इंद्र के लिए स्वाहा. बृहस्पति के लिए स्वाहा. मित्र के लिए स्वाहा. वरुण के लिए स्वाहा. (६)

हिङ्काराय स्वाहा हिङ्कृताय स्वाहा क्रन्दते स्वाहावक्रन्दाय स्वाहा प्रोथते स्वाहा  प्रप्रोथाय स्वाहा गन्धाय स्वाहा घ्राताय स्वाहा निविष्टाय स्वाहोपविष्टाय स्वाहा  सन्दिताय स्वाहा वल्गते स्वाहासीनाय स्वाहा शयानाय स्वाहा स्वपते स्वाहा  जाग्रते स्वाहा कूजते स्वाहा प्रबुद्धाय स्वाहा विजृम्भमाणाय स्वाहा विचृत्ताय  स्वाहा स हानाय स्वाहोपस्थिताय स्वाहायनाय स्वाहा प्रायणाय स्वाहा.. (७)

हिंकार के लिए स्वाहा. हिंकृत के लिए स्वाहा. क्रंदन के लिए स्वाहा. अवक्रंदन के लिए स्वाहा. कार्य शुरू करने के लिए स्वाहा. कार्य समाप्त करने के लिए स्वाहा. गंध के लिए स्वाहा. सूंघने के लिए स्वाहा. स्थित के लिए स्वाहा. बैठने के लिए स्वाहा. स्थिर के लिए स्वाहा. गतिमान के लिए स्वाहा. आसन ग्रहण करने के लिए स्वाहा. सोने के लिए स्वाहा. जाग्रत के लिए स्वाहा. कूजने के लिए स्वाहा. प्रबुद्ध के लिए स्वाहा. जम्हा के लिए स्वाहा. चैतन्य होने के लिए स्वाहा. उपस्थित के लिए स्वाहा. आगमन के लिए स्वाहा. गमन के लिए स्वाहा. (७)

यते स्वाहा धावते स्वाहोद्रावाय स्वाहोताय स्वाहा शूकाराय स्वाहा शूकृताय  स्वाहा निषण्णाय स्वाहोत्थिताय स्वाहा जवाय स्वाहा बलाय स्वाहा  विवर्त्तमानाय स्वाहा विवृत्ताय स्वाहा विधून्वानाय स्वाहा विधूताय स्वाहा  शुश्रूषमाणाय स्वाहा शृण्वते स्वाहे क्षमाणाय स्वाहेक्षिताय स्वाहा वीक्षिताय  स्वाहा निमेषाय स्वाहा यदत्ति तस्मै स्वाहा यत् पिबति तस्मै स्वाहा यन्मूत्रं करोति  तस्मै स्वाहा कुर्वते स्वाहा कृताय स्वाहा.. (८)

जाते हुए के लिए स्वाहा. दौड़ते हुए के लिए स्वाहा. उत्कर्षशील के लिए स्वाहा. उत्कर्ष हेतु गतिमान के लिए स्वाहा. बैठे हुए के लिए स्वाहा. उठे हुए के लिए स्वाहा. वेगवान के लिए स्वाहा. बल के लिए स्वाहा. बारबार किए जाने के लिए स्वाहा. बारबार किए गए के लिए स्वाहा. कांपने वाले के लिए स्वाहा. कांपने के लिए स्वाहा. सुनने की इच्छा वाले के लिए स्वाहा. सुनने के लिए स्वाहा. देखने के बाईसवां अध्याय लिए स्वाहा. देख चुके के लिए स्वाहा. देखनेपरखने के लिए स्वाहा. पलक झपकाने के लिए स्वाहा. जो खाता है, उस के लिए स्वाहा. जो पीता है, उस के लिए स्वाहा. जो मूत्र विसर्जित करता है, उस के लिए स्वाहा. करने वाले के लिए स्वाहा. कर चुके के लिए स्वाहा. (८)

तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्.. ( ९ )

सविता देव को नमस्कार है. सविता देव वरेण्य, सौभाग्यदायी व देवों को धारण करते हैं. वे बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर उन्मुख करते हैं. वे हमारी बुद्धि को प्रेरित करने की कृपा करें. (९)

हिरण्यपाणिमूतये सवितारमुप ह्वये. स चेत्ता देवता पदम्.. (१०)

सविता देव! आप सोने के हाथों वाले व आप सर्वज्ञ व चित्त में धारण करने योग्य हैं. हम अपनी रक्षा के लिए आप का आह्वान करते हैं. (१०)

देवस्य चेततो महीं प्र सवितुर्हवामहे सुमतिसत्यराधसम्.. .. (११)

हे सविता देव! आप चैतन्य करते हैं. आप सत्य रूपी धन वाले हैं. हम सुमति (अच्छी बुद्धि) हेतु आप का आह्वान करते हैं. ( ११ )

सुष्टुति सुमतीवृधो राति सवितुरीमहे . प्र देवाय मतीविदे.. (१)

हे सविता देव! आप सुमति की बढ़ोतरी करते हैं. आप हम को सुष्ठु (श्रेष्ठ) गति प्रदान करने की कृपा कीजिए. हम बुद्धिपूर्वक सविता देव की उपासना करते हैं. (१)

राति सत्पतिं महे सवितारमुप ह्वये. आसवं देववीतये.. (१३)

हम सत्पति, धनशील, वैभववान सविता देव की उपासना करते हैं. हम देवताओं को तृप्त करने के लिए सविता देव की उपासना करते हैं. (१३)

देवस्य सवितुर्मतिमासवं विश्वदेव्यम्. धिया भगं मनामहे.. (१४)

सविता देव वैभववान हैं. सभी देवताओं के हितैषी हैं. सौभाग्य बढ़ाने वाली बुद्धि को पाने के लिए हम उन की उपासना करते हैं. (१४)

अग्नि स्तोमेन बोधय समिधानो अमर्त्यम्. 

हव्या देवेषु नो दधत्.. (१५)

हे पुरोहित ! आप अग्नि को स्तोत्रों से जाग्रत कीजिए. समिधाओं से प्रज्वलित कीजिए. अग्नि अमर हैं. देवताओं के लिए हमारी हवि को धारण करते हैं. (१५)

स हव्यवाडमर्त्य ऽ उशिग्दूतश्चनोहितः अग्निर्धिया समृण्वति.. (१६)

हे अग्नि ! आप हवि वहन करते हैं. आप अमर हैं. आप स्वयं प्रज्वलित होते हैं. आप देवताओं के दूत हैं. आप हितैषी हैं. आप हवि धारण कर के उसे पहुंचाने की कृपा करें. (१६)

अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे. देवाँ  आ सादयादिह.. (१७)

अग्नि दूत व हव्य वाहक हैं. हम सम्मुख ही उन की स्थापना करते हैं. हम उन से अनुरोध करते हैं कि वह यहां पधारें व विराजें और हवि को देवताओं तक पहुंचाएं. (१७)

अजीजनो हि पवमान सूर्यं विधारे शक्मना पयः.गोजीरया र हमाणः पुरन्ध्या.. (१८)

हे अग्नि ! आप पवित्र करने वाले हैं. आप ने सूर्य को प्रकटाया. आप जल धारण करने की सामर्थ्य रखते हैं. आप गौ आदि के लिए जीवन धारण करते हैं. गौ आदि आप की कृपा से जल (दूध) धारती हैं. (१८ )

विभूर्मात्रा प्रभूः पित्राश्वो ऽसि हयो ऽस्यत्यो ऽसि मयो ऽस्यर्वा ऽसि सप्तिरसि  वाज्यसि वृषासि नृमणा ऽ असि.

ययुर्नामासि शिशुर्नामास्यादित्यानां पत्वान्विहि देवा ऽ आशापाला ऽ एतं देवेभ्यो  ऽश्वं मेधाय प्रोक्षित रक्षतेह रन्तिरिह रमतामिह धृतिरिह स्वधृतिः स्वाहा.. (१९)

अग्नि ! आप वैभव संपन्न हैं. आप माता हैं. आप पिता हैं. आप अश्व हैं. आप हम हैं. आप गतिशील हैं. आप मय हैं. आप पराक्रमी हैं. आप सुखदायी हैं. आप नम्र हैं. आप शिशु हैं. आप रक्षक हैं. आप आदित्यों की तरह अपनी राह पर चलते हैं. आप दिशापति हैं. आप देवताओं के लिए इस संस्कार संपन्न घोड़े की रक्षा की कृपा कीजिए. यह यहाँ प्रसन्नता से रमण करें, रमें. यह यज्ञ को धारें, यह स्वयं धारण करने की शक्ति वाले हैं. इन के लिए स्वाहा. (१९)

काय स्वाहा कस्मै स्वाहा कतमस्मै स्वाहा स्वाहाधिमाधीताय स्वाहा मनः  प्रजापतये स्वाहा चित्तं विज्ञातायादित्यै स्वाहादित्यै मयै स्वाहादित्यै सुमृडीकायै  स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा सरस्वत्यै पावकायै स्वाहा सरस्वत्यै बृहत्यै स्वाहा पूष्णे  स्वाहा पूष्णे प्रपथ्याय स्वाहा पूष्णे नरन्धिषाय स्वाहा त्वष्ट्रे स्वाहा त्वष्ट्रे तुरीपाय  स्वाहा त्वष्ट्रे पुरुरूपाय स्वाहा विष्णवे स्वाहा विष्णवे निभूयपाय स्वाहा विष्णवे  शिपिविष्टाय स्वाहा.. (२०)

प्रजापति के लिए स्वाहा. सुख हेतु स्वाहा. सर्वश्रेष्ठ के लिए स्वाहा. विद्या धारण करने हेतु स्वाहा. मन स्वरूप प्रजापति के लिए स्वाहा. चित्त स्वरूप प्रजापति के लिए स्वाहा. विशिष्ट ज्ञात आदित्य के लिए स्वाहा. मध्यादित्य के लिए स्वाहा. सुखदायी के लिए स्वाहा. पवित्र सरस्वती देवी के लिए स्वाहा. विशालवती देवी के लिए स्वाहा. पूषा देव के लिए स्वाहा. श्रेष्ठ पथवाले पूषा देव के लिए स्वाहा. मानवधारी पूजा देव के लिए स्वाहा. त्वष्टा पूजा देव के लिए स्वाहा. तीव्र पूषा देव के लिए स्वाहा. विविध रूप पूषा देव के लिए स्वाहा. विष्णु हेतु स्वाहा. भूपति देव हेतु स्वाहा. सब के चित्त में स्थित विष्णु देव हेतु स्वाहा. (२०)

विश्वो देवस्य नेतुर्मर्ती वुरीत सख्यम्.विश्वो राय ऽइषुध्यति द्युम्नं वृणीत पुष्यसे स्वाहा.. (२१)

सविता देव संसार के नायक हैं. हम उन की मित्रता व संसार के सारे वैभव पाना चाहते हैं. हम पुष्टता चाहते हैं. हम स्वर्गलोक चाहते हैं. सविता देव हेतु स्वाहा. (२१)

आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योतिव्याधी  महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः  सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामेनिकामे नः पर्जन्यो वर्षतु  फलवत्यो न ऽ ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्.. (२२)

हे ब्राह्मण! आप ब्रह्मवर्चस्वी हैं. राष्ट्र में शूरवीर बाणविद्या में निपुण महारथी क्षत्रिय उत्पन्न हों. तीव्र वेग वाले घोड़े, भार ढोने वाले बैल, दुधारू गाएं लोगों को मिलें. स्त्रियां चरित्रवती और गुणवती हों. वीर विजयी हों. सभी युवा हों. अच्छे वक्ता हों. बादल अच्छे बरसें. ओषधियां फलवती हों. योगक्षेम का भी निर्वाह हो. (२२)

प्राणाय स्वाहापानाय स्वाहा व्यानाय स्वाहा चक्षुषे स्वाहा श्रोत्राय स्वाहा वाचे  स्वाहा मनसे स्वाहा.. (२३)

प्राण को स्वाहा. अपान को स्वाहा. व्यान को स्वाहा. चक्षु को स्वाहा. वाणी को स्वाहा. मन को स्वाहा. ( २३ )

प्राच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा दक्षिणायै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा  प्रतीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोदीच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहोर्ध्वायै  दिशे स्वाहार्वाच्य दिशे स्वाहावाच्यै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा.. (२४)

पूर्व दिशा के लिए स्वाहा. पश्चिम दिशा के लिए स्वाहा. दक्षिण दिशा के लिए स्वाहा. ईशान दिशा के लिए स्वाहा. ऊर्ध्व दिशा के लिए स्वाहा. प्रतीच्य दिशा के लिए स्वाहा. उदीच्य दिशा के लिए स्वाहा. अर्वाच्य दिशा के लिए स्वाहा. अध्वार्य दिशा के लिए स्वाहा. अर्वाच्य दिशा के लिए स्वाहा. (२४)

अद्भ्यः स्वाहा वार्भ्यः स्वाहोदकाय स्वाहा तिष्ठन्तीभ्यः स्वाहा स्रवन्तीभ्यः  स्वाहा स्यन्दमानाभ्यः स्वाहा कूप्याभ्यः स्वाहा सूद्याभ्यः स्वाहा धार्याभ्यः  स्वाहार्णवाय स्वाहासमुद्राय स्वाहा सरिराय स्वाहा.. (२५)

जलों के लिए स्वाहा. वारि के लिए स्वाहा. उदक के लिए स्वाहा. स्थिर जलों के लिए स्वाहा. प्रवाहितों के लिए स्वाहा. बहते जलों के लिए स्वाहा. कूप जल के लिए स्वाहा. सागर जलों के लिए स्वाहा. धारण योग्य जल के लिए स्वाहा. समुद्र जलों के लिए स्वाहा. सरोवर के लिए स्वाहा. (२५)

वाताय स्वाहा धूमाय स्वाहाभ्राय स्वाहा मेघाय स्वाहा विद्योतमानाय स्वाहा  स्तनयते स्वाहावस्फूर्जते स्वाहा वर्षते स्वाहाववर्षते स्वाहोग्रं वर्षते स्वाहा शीघ्रं  वर्षते स्वाहोद्गृह्णते स्वाहोद्गृहीताय स्वाहा प्रुष्णते स्वाहा शीकायते स्वाहा प्रुष्वाभ्यः  स्वाहा ह्रादुनीभ्यः स्वाहा नीहाराय स्वाहा.. (२६)

वायु के लिए स्वाहा. धुएं के लिए स्वाहा. विद्युत् वाले के लिए स्वाहा. गर्जने वाले के लिए स्वाहा. वर्षक के लिए स्वाहा. कमवर्षक के लिए स्वाहा. अति वर्षक के लिए स्वाहा. शीघ्र वर्षक के लिए स्वाहा. ऊपर उठने वाले के लिए स्वाहा. ऊपर से जलग्राही के लिए स्वाहा. बूंदाबांदी के लिए स्वाहा. घनघोर वर्षक के लिए स्वाहा. गड़गड़ाहट वाले के लिए स्वाहा. कोहरे वाले के लिए स्वाहा. सभी मेघों के लिए स्वाहा. (२६)

अग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहेन्द्राय स्वाहा पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा  दिवेस्वाहा दिग्भ्यः स्वाहाशाभ्यः स्वाहोयै दिशे स्वाहार्वाच्यै दिशे स्वाहा.. (२७)

अग्नि के लिए स्वाहा. सोम के लिए स्वाहा. इंद्र के लिए स्वाहा. पृथ्वी के लिए स्वाहा. अंतरिक्ष के लिए स्वाहा. स्वर्ग के लिए स्वाहा. दिशाओं के लिए स्वाहा. उपदिशा के लिए स्वाहा. अपर दिशाओं के लिए स्वाहा. नीच दिशा के लिए स्वाहा. (२७)

नक्षत्रेभ्यः स्वाहा नक्षत्रियेभ्यः स्वाहाहोरात्रेभ्यः स्वाहार्धमासेभ्यः स्वाहा मासेभ्यः  स्वाहा ऋतुभ्यः स्वाहार्तवेभ्यः स्वाहा संवत्सराय स्वाहा द्यावापृथिवीभ्यां स्वाहा  चन्द्राय स्वाहा सूर्याय स्वाहा रश्मिभ्यः स्वाहा वसुभ्यः स्वाहा रुद्रेभ्यः  स्वाहादित्येभ्यः स्वाहा मरुद्भ्यः स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा मूलेभ्यः स्वाहा  शाखाभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा पुष्पेभ्यः स्वाहा फलेभ्यः स्वाहौषधीभ्यः  स्वाहा.. (२८)

नक्षत्रों के लिए स्वाहा. नक्षत्रों से संबंधित देवताओं के लिए स्वाहा. दिनरात के लिए स्वाहा. अर्द्धमास के लिए स्वाहा. मास के लिए स्वाहा. ऋतुमास के लिए स्वाहा. ऋतु से उत्पन्नों के लिए स्वाहा. वर्ष के लिए स्वाहा. स्वर्ग के लिए स्वाहा. पृथ्वी के लिए स्वाहा. चंद्र के लिए स्वाहा. सूर्य के लिए स्वाहा. किरणों के लिए स्वाहा. वसुओं के लिए स्वाहा. रुद्रों के लिए स्वाहा. आदित्यों के लिए स्वाहा. मरुतों के लिए स्वाहा. सभी देवों के लिए स्वाहा. शाखाओं के लिए स्वाहा. वनस्पतियों के लिए स्वाहा. पुष्पों के लिए स्वाहा. फलों के लिए स्वाहा. ओषधियों के लिए स्वाहा. ( २८ )

पृथिव्यै स्वाहान्तरिक्षाय स्वाहा दिवे स्वाहा सूर्याय स्वाहा चन्द्राय स्वाहा  नक्षत्रेभ्यः स्वाहाद्भ्यः स्वाहौषधीभ्यः स्वाहा वनस्पतिभ्यः स्वाहा परिप्लवेभ्यः  स्वाहा चराचरेभ्यः स्वाहा सरीसृपेभ्यः स्वाहा.. (२९)

पृथ्वी के लिए स्वाहा. अंतरिक्ष के लिए स्वाहा. स्वर्ग के लिए स्वाहा. सूर्य के लिए स्वाहा. चंद्र के लिए स्वाहा. नक्षत्रों के लिए स्वाहा. जलों के लिए स्वाहा. ओषधियों के लिए स्वाहा. वनस्पतियों के लिए स्वाहा. चराचर के लिए स्वाहा. रेंगने और रपटने वालों के लिए स्वाहा. (२९)

असवे स्वाहा वसवे स्वाहा विभुवे स्वाहा विवस्वते स्वाहा गणश्रिये स्वाहा  गणपतये स्वाहाभिभुवे स्वाहाधिपतये स्वाहा शूषाय स्वाहा स सर्पाय स्वाहा  चन्द्राय स्वाहा ज्योतिषे स्वाहा मलिम्लुचाय स्वाहा दिव पतयते स्वाहा.. (३०)

असव के लिए स्वाहा. वसव के लिए स्वाहा. विभु के लिए स्वाहा. विवस्वत (सूर्य) के लिए स्वाहा. गण श्री के लिए स्वाहा. गणपति के लिए स्वाहा. अभिभु के लिए स्वाहा. अधिपति के लिए स्वाहा. सामर्थ्यवान के लिए स्वाहा. सर्प के लिए स्वाहा. चंद्र के लिए स्वाहा. ज्योतिवान के लिए स्वाहा. अधिमास के देव के लिए स्वाहा. स्वर्गलोक के पालक के लिए स्वाहा. (३०)

मधवे स्वाहा माधवाय स्वाहा शुक्राय स्वाहा शुचये स्वाहा नभसे स्वाहा नभस्याय  स्वाहेषाय स्वाहोर्जाय स्वाहा सहसे स्वाहा सहस्याय स्वाहा तपसे स्वाहा तपस्याय  स्वाहा  हसस्पतये स्वाहा.. (३१)

चैत मास के लिए स्वाहा. वैशाख मास के लिए स्वाहा. ज्येष्ठ मास के लिए स्वाहा. आषाढ़ मास के लिए स्वाहा. सावन मास के लिए स्वाहा. भादों मास के लिए स्वाहा. आश्विन मास के लिए स्वाहा. कार्तिक मास के लिए स्वाहा. अगहन मास के लिए स्वाहा. पौष मास के लिए स्वाहा. फाल्गुन मास के लिए स्वाहा. अधिमास के लिए संतुलन हेतु स्वाहा. (३१ )

वाजाय स्वाहा प्रसवाय स्वाहापिजाय स्वाहा क्रतवे स्वाहा स्वः स्वाहा मूर्ध्न  स्वाहा व्यश्नुविने स्वाहान्त्याय स्वाहान्त्याय भौवनाय स्वाहा भुवनस्य पतये  स्वाहाधिपतये स्वाहा प्रजापतये स्वाहा.. (३२)

अन्न के लिए स्वाहा. उत्पादक के लिए स्वाहा. जल में उत्पन्न अन्न के लिए स्वाहा. यज्ञ के लिए स्वाहा. मूर्धा में उत्पन्न अन्न के लिए स्वाहा. व्यापक अन्न के लिए स्वाहा. अंतिम उत्पन्न अन्न के लिए स्वाहा. भुवन के लिए स्वाहा. भुवनपति के लिए स्वाहा. अधिपति के लिए स्वाहा. प्रजापति के लिए स्वाहा. (३२)

बाईसवां अध्याय आयुर्यज्ञेन कल्पता स्वाहा प्राणो यज्ञेन कल्पता २  स्वाहापानो यज्ञेन कल्पता स्वाहा व्यानो यज्ञेन कल्पता २ स्वाहोदानो यज्ञेन  कल्पता स्वाहा समानो यज्ञेन कल्पता स्वाहा चक्षुर्यज्ञेन कल्पता स्वाहा श्रोत्रं  यज्ञेन कल्पता ४ स्वाहा वाग्यज्ञेन कल्पता स्वाहा मनो यज्ञेन कल्पता  स्वाहात्मा यज्ञेन कल्पता स्वाहा ब्रह्मा यज्ञेन कल्पता स्वाहा ज्योतिर्यज्ञेन  कल्पता: स्वाहा स्वर्यज्ञेन कल्पता २ स्वाहा पृष्ठं यज्ञेन कल्पता स्वाहा यज्ञो  यज्ञेन कल्पता  स्वाहा.. (३३)

यज्ञ से आयु वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से प्राण वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से अपान वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से व्यान वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से उदान वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से समान वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से चक्षु बल वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से कर्ण बल वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से वाणी बल वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से मन बल वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से आत्म बल वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से ब्रह्म बल वृद्धि के लिए स्वाहा. ज्योतिर्मय यज्ञ के लिए स्वाहा. स्वयं प्रकाशित यज्ञ के लिए स्वाहा. यज्ञ से यज्ञ वृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ अग्रवृद्धि के लिए स्वाहा. यज्ञ से तृण वृद्धि के लिए स्वाहा. ( ३३ )

एकस्मै स्वाहा द्वाभ्यां स्वाहा शताय स्वाहैकशताय स्वाहा व्युष्ट्यै स्वाहा स्वर्गाय  स्वाहा.. (३४)

एक के लिए स्वाहा. दो के लिए स्वाहा. सौ के लिए स्वाहा. एक सौ के लिए स्वाहा. व्यष्टि के लिए स्वाहा. स्वर्ग के लिए स्वाहा. (३४ )

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