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यजुर्वेद अध्याय 25 हिन्दी व्याख्या



॥ वेद ॥>॥ यजुर्वेद ॥>॥ अध्याय २५ ॥

शादं दद्भिरवकां दन्तमूलैर्मृदं वस्र्वैस्तेगान्दष्ट्राभ्यासरस्वत्याऽअग्रजिह्वं  जिह्वाया ऽ उत्सादमवक्रन्देन तालु वाजहनुभ्यामपऽआस्येन  वृषणमाण्डाभ्यामादित्याँ श्मश्रुभिः पन्थानं भ्रूभ्यां द्यावापृथिवी वर्तोभ्यां विद्युतं  कनीनकाभ्या ४ शुक्लाय स्वाहा कृष्णाय स्वाहा पार्याणि पक्ष्माण्यवार्या ऽ  इक्षवोवार्याणि पक्ष्माणि पार्या ऽ इक्षव:.. (१)

दांतों से शाद देवता ( कोमल घास), दंतमूल (दांत की जड़) से जल में उपजने वाले शैवाल देव (जल में उपजने वाली घास) व दाढ़ों से मिट्टी व दाढ़ों से तेग देव को प्रसन्न करते हैं. जिह्वा के आगे के भाग से सरस्वती देवी व उत्साद देव को प्रसन्न करते हैं. तालु से अवक्रंद देव, ठोड़ी से अन्न देव, मुख से जल देव, अंडकोषों से वृषण देव व दाढ़ीमूंछ से आदित्य देव को प्रसन्न करते हैं. भौंहों से पंथ देव, बरौनियों से स्वर्गलोक व पृथ्वीलोक, आंख की पुतलियों से विद्युत् देव को प्रसन्न करते हैं. शुक्ल देव के लिए स्वाहा. कृष्ण देव के लिए स्वाहा. पार देव के लिए स्वाहा. अवार देव के लिए स्वाहा. ऊपर के लिए स्वाहा. नीचे के लिए स्वाहा. (१

वातं प्राणेनापानेन नासिके उपयाममधरेणौष्ठेन सदुत्तरेण प्रकाशेनान्तरमनूकाशेन  बाह्यं निवेष्यं मूर्ध्ना स्तनयित्नुं निर्बाधेनाशनिं मस्तिष्केण विद्युतं कनीनकाभ्यां  कर्णाभ्या श्रोत्र १४ श्रोत्राभ्यां कर्णौ तेदनीमधरकण्ठेनापः शुष्ककण्ठेन चित्तं  मन्याभिरदिति शीर्ष्णा निरृतिं निर्जर्जल्पेन शीर्णा संक्रोशैः प्राणान् रेष्माण   स्तुपेन.. (२)

प्राण से वात देव के लिए स्वाहा. अपान से नासिका देव के लिए स्वाहा. ऊपर के होंठ से सत् देव के लिए स्वाहा. ओष्ठ से उपयाम देव के लिए स्वाहा. उत्तर के प्रकाश से अंतर देव के लिए स्वाहा. भीतर के प्रकाश से बाह्य देव के लिए स्वाहा. मूर्धा से निवेश देव के लिए स्वाहा. सिर में स्थित अस्थि से स्तनयित्नु देव के लिए स्वाहा. मस्तिष्क से अशनि देव के लिए स्वाहा. आंख की पुतलियों से विद्युत् देव के लिए स्वाहा. कानों से श्रोत्र देव के लिए स्वाहा. दोनों कानों से देवशक्ति देव के लिए स्वाहा. नीचे के कंठ से तेदनी देव के लिए स्वाहा. ऊपर के सूखे कंठ से जल देव के लिए स्वाहा. नाड़ियों से चित्त देव के लिए स्वाहा. सिर से अदिति देव के लिए स्वाहा. जर्जर सिर से निर्ऋति देव के लिए स्वाहा. बोलने वाले अंगों से प्राण देव के लिए स्वाहा. चोटी से रेष्म देव के लिए स्वाहा. (२)

मशकान् केशैरिन्द्र स्वपसा वहेन बृहस्पति शकुनिसादेन कूर्माञ्छफैराक्रमण   स्थूराभ्यामृक्षलाभिः कपिञ्जलाञ्जवं जङ्घाभ्यामध्वानं बाहुभ्यां  जाम्बीलेनारण्यमग्निमतिरुग्भ्यां पूषणं दोर्भ्यामश्विनाव : साभ्या ४ रुद्र रोराभ्याम्..  (३)

केशों से मशक देव के लिए स्वाहा. कंधों से इंद्र देव के लिए स्वाहा. पक्षी जैसे वेग से बृहस्पति देव के लिए स्वाहा. खुरों से कर्म देव के लिए स्वाहा. गुल्फों से आक्रमण देव के लिए स्वाहा. गुल्फों के नीचे नाड़ियों से कपिंजल के लिए स्वाहा. जंघाओं से वेग की देवी के लिए स्वाहा. बाहुओं से राह देव के लिए स्वाहा. घुटनों से जंगल देव के लिए स्वाहा. घुटनों से पूषा देव के लिए स्वाहा. नीचे के घुटनों से पूषा देव के लिए स्वाहा. दोनों कंधों से अश्विनी देव के लिए स्वाहा. देह की अन्य शक्तियों से रुद्र देव के लिए स्वाहा (३)

अग्नेः पक्षतिर्वायोर्निपक्षतिरिन्द्रस्य तृतीया सोमस्य चतुर्थ्यादित्यै पञ्चमीन्द्राण्यै  षष्ठी मरुतां सप्तमी बृहस्पतेरष्टम्यर्यम्णो नवमी धातुर्दशमीन्द्रस्यैकादशी वरुणस्य  द्वादशी यमस्य त्रयोदशी.. (४)

दाईं ओर की पहली अस्थि अग्नि, दूसरी ओर की अस्थि वायु, तीसरी ओर की अस्थि इंद्र देव, चौथी ओर की अस्थि, पांचवीं ओर की अस्थि अदिति देवी व छठी ओर की अस्थि इंद्राणी देवी से संबंधित हैं. सातवीं ओर की अस्थि मरुद् देव, आठवीं ओर की अस्थि बृहस्पति देव नौवीं ओर की अस्थि अर्यमा देव व दसवीं ओर की अस्थि धाता से संबंधित हैं. ग्यारहवीं ओर की अस्थि इंद्र देव से बारहवीं ओर की अस्थि वरुण देव व तेरहवीं ओर की अस्थि यम देव से संबंधित हैं. (४)

इन्द्राग्न्योः पक्षतिः सरस्वत्यै निपक्षतिर्मित्रस्य तृतीयापां चतुर्थी निर्ऋत्यै  पञ्चम्यग्नीषोमयोः षष्ठी सर्पाणा : सप्तमी विष्णोरष्टमी पूष्णो नवमी  त्वष्टुर्दशमीन्द्रस्यैकादशी वरुणस्य द्वादशी यम्यै त्रयोदशी द्यावापृथिव्योर्दक्षिणं  पार्श्व विश्वेषां देवानामुत्तरम्.. (५)

बाईं ओर की पहली अस्थि इंद्र देव और अग्नि, दूसरी अस्थि सरस्वती देवी, तीसरी अस्थि मित्र देव, चौथी अस्थि जल देव, पांचवीं अस्थि निर्ऋति देव व छठी अस्थि अग्नि और सोम से संबंधित हैं. सातवीं अस्थि सर्प देव, आठवीं अस्थि विष्णु, नौवीं अस्थि पूषा देव, दसवीं अस्थि त्वष्टा देव व ग्यारहवीं अस्थि इंद्र देव व बारहवीं अस्थि वरुण देव, तेरहवीं अस्थि यम देव, दाहिना भाग स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक बायां भाग सभी देवों व उत्तर भाग अन्य देवों से संबंधित हैं. (५)

मरुता स्कन्धा विश्वेषां देवानां प्रथमा कीकसा रुद्राणां द्वितीयादित्यानां तृतीया  वायोः पुच्छमग्नीषोमयोर्भासद क्रुञ्चौ श्रोणिभ्यामिन्द्राबृहस्पती ऊरुभ्यां  मित्रावरुणावल्गाभ्यामाक्रमण  स्थूराभ्यां बलं कुष्ठाभ्याम्.. (६)

कंधे की अस्थि मरुद्गणों, प्रथम अस्थि विश्वे देवों, दूसरी अस्थि रुद्रगणों, तीसरी अस्थि आदित्यगणों, पूंछ वायु, नितंब अग्नि और सोम से संबंधित हैं. जंघाएं क्रौंच देव व दोनों जंघाएं इंद्र देव और बृहस्पति देव, दोनों जंघाएं मित्र देव वरुण देव से संबंधित हैं. नीचे का भाग आक्रमण से संबंधित है. ऊपर का भाग बल देव से संबंधित है. (६)

पूषणं वनिष्ठुनान्धाहीन्त्स्थूलगुदया सर्पान्गुदाभिर्विहुत ऽ आन्त्रैरपो वस्तिना  वृषणमाण्डाभ्यां वाजिन शेपेन प्रजा रेतसा चाषान् पित्तेन प्रदरान् पायुना  कूश्माञ्छकपिण्डै:.. (७)

बड़ी आंत पूषा देव, स्थूल गुदा अंधे सर्प देव, सामान्य गुदा अन्य सर्प देवों, बची हुई आंतें विद्युत् देव, वस्ति भाग जल देव, अंडकोष वृषण देव व उपस्थ बल देव से संबंधित हैं. वीर्य प्रजापति देव, पित्त चाष देव, पायु (गुदा) प्रदर देव व शक पिंड कूश्म देव से संबंधित हैं. (७)

इन्द्रस्य क्रोडोदित्यै पाजस्यं दिशां जत्रवोदित्यै भसज्जीमूतान् हृदयौपशेनान्तरिक्षं  पुरीतता नभऽ उदर्येण चक्रवाकौ मतस्नाभ्यां दिवं वृक्काभ्यां गिरीन्  प्लाशिभिरुपलान् प्लीह्ना वल्मीकान् क्लोमभिग्लौभिर्गुल्मान् हिराभिः  स्रवन्तीर्हृदान् कुक्षिभ्या समुद्रमुदरेण वैश्वानरं भस्मना.. (८)

क्रोड इंद्र देव, पैर अदिति देव, हंसली अदिति देव, मेढ्राग्र अदिति देव, हृदय प्रदेश और नाड़ीप्रदेश अंतरिक्ष देव, पेट आकाश देव व फेफड़े चक्रवाक से संबंधित हैं. दोनों वृक्क ( गुरदे ) पर्वत देव, क्लोम वाल्मीकि देव, क्लोमादि गुल्म, रक्त शिराएं नदी, कांख हृदय, पेट समुद्र व भस्म वैश्वानर से संबंधित हैं. (८)

विधृतिं नाभ्या घृत : रसेनापो यूष्णा मरीचीर्विप्रुभिर्नीहारमूष्मणा शीनं वसया  प्रुष्वा अश्रुभिर्ह्रादुनीर्दूषीकाभिरस्ना रक्षा सि चित्राण्यङ्गैर्नक्षत्राणि रूपेण पृथिवीं  त्वचा जुम्बकाय स्वाहा.. (९)

नाभि विधृति, वीर्य घृत, पकवान जल देव, वसा मरीचि देव, शरीर की गरमाई ओस देव, वसा शनि देव, आंसू फुहार देव गीड़ ( आंख की कीच ) ह्रादुनी आकाशीय विद्युत् देव से संबंधित हैं. खून के कण रक्षा देव, शारीरिक विभिन्न अंग विभिन्न देवों, शारीरिक सौंदर्य, नक्षत्र देवों व त्वचा पृथ्वी देवी और त्वचा जुंबक देव से संबंधित हैं. (९)

हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्.

सदाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम... (१०)

जो प्रथम जन्मा है, हिरण्यगर्भ में रहा, जो उत्पन्न हुई पीढ़ियों का एकमात्र पालक है, जो पृथ्वीलोक और स्वर्गलोक को धारता है, उस देव के अलावा किस देव के लिए हवि का विधान करें. (१०)

यः प्राणतो निमिषतो महित्वैकऽइद्राजा जगतो बभूव.

ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम .. (११)

जो अपने प्राणपण से पल भर में इस जगत् का महिमावान शासक हुआ, जो दोपायों और चौपायों का ईश्वर है, महिमावान हम उस देवता के अलावा और किस देवता के लिए हवि का विधान करें ? ( ११ )

यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्र : रसया सहाहुः.

यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम.. (१२)

जिन की इस महिमा से हिमवान पर्वतों का निर्माण हुआ, जिस ने यह रसीले समुद्र निर्मित किए, जिन की भुजाएं दसों दिशाओं में फैली हुई हैं, हम उस देवता के अलावा और किस देवता के लिए हवि का विधान करें ? ( १२)

य ऽ आत्मदा बलदा यस्य विश्व ऽ उपासते प्रशिषं यस्य देवाः.

यस्य च्छायामृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम.. (१३)

जो आत्मशक्ति दाता और बलशक्ति दाता हैं, सारा विश्व जिस की प्रशंसा करता है, सारा विश्व जिस की उपासना करता है, जिस की छत्रच्छाया अमृत सरीखी सुखदायी है, जिस के बिना मृत्यु जैसा कष्ट होता है, उस के अलावा हम और किस देव के लिए हवि का विधान करें. (१३)

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोदब्धासो अपरीतास उद्भिदः.

देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे.. (१४)

हम यज्ञ में सब ओर से अबाध रूप से कल्याणकारी व दुर्लभ परिणाम प्राप्त करें. सभी देवगण प्रतिदिन हमारी रक्षा व बढ़ोतरी करें. ( १४ )

देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवाना : रातिरभि नो निवर्त्तताम्.

देवानां सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे.. (१५)

देवगणों की उत्तम बुद्धि हमारे लिए कल्याणकारिणी हो. देवगणों की सरलता हमारे लिए कल्याणकारिणी हो. देवगणों का दान हमारे लिए अनुकूल हो. देवगणों की मित्रता हम को मिले. हम उस मित्रता से लाभ पाएं. हम देवताओं से दीर्घ आयु प्राप्त कर जीएं. (१५ )

तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम्.

अर्यमणं वरुण सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्.. (१६)

हम मित्र देव, भग देव, अदिति देव, दक्ष देव, अर्यमा देव, वरुण देव, अश्विनी देवों व सरस्वती देवी को निमंत्रित करते हैं. हम उन का आह्वान करते हैं. वे सौभाग्यदायिनी हैं. वे हम यजमानों का कल्याण करने की कृपा करें. (१६)

तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः .

तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्.. (१७)

वायु हमारे अनुकूल होने की कृपा करें. वे हमारे लिए ओषधीय गुणों से युक्त हों. वे हमारे लिए सुखदायी वायु प्रवाहित करने की कृपा करें. माता पृथ्वी, स्वर्गलोक हमारे व सोम चुआने वाले पत्थर हमारे अनुकूल होने की कृपा करें. आप हमारी प्रार्थना सुनने की कृपा करें और हमारी प्रार्थना के अनुकूल हमें सुखी बनाएं. (१७) 

तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियन्विमवसे हूमहे वयम्.

पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये.. (१८)

हम उस परम शक्ति का अपनी रक्षा के लिए आह्वान करते हैं, जिस ने इस जगत् को स्थिर बनाया, जो शक्ति सभी को वशीभूत करने वाली है. पूषा देव हमारे ज्ञान व बुद्धि को बढ़ाने की कृपा करें. परम शक्ति एवं पूषा देव का हम अपने कल्याण के लिए आह्वान करते हैं. (१८ )

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः. स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु .. (१९)

ऐश्वर्यवान इंद्र देव, सर्वज्ञाता पूषा व अनिष्ट नाशक पंखवान गरुड़ इंद्र देव हमारा कल्याण करने की कृपा करें. बृहस्पति देव व उपर्युक्त सभी देव हमारा कल्याण करने वाले हों. (१९)

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः. अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा ऽ अवसागमन्निह.. (२०)

मरुद्गण शक्तिशाली व वेगवान घोड़ों वाले हैं. अदिति देवी मरुद्गण की माता हैं. मरुद्गण सब का कल्याण करने वाले हैं. अग्नि रूपी जीभ व सूर्य रूपी आंख वाले हैं. वे हमारे लिए सभी देवताओं को साथ ले कर यहां यज्ञ में आने की कृपा करें. (२०)

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः.

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः .. (२१)

हे यज्ञ रक्षक देवताओ! हम कानों से कल्याणकारी वचन सुनें. हम आंखों से कल्याणकारी दृश्य देखें. हम स्वस्थ अंगों एवं स्वस्थ शरीर से आप की उपासना और वंदना करते रहें. हम आप की कृपा से पूर्ण आयु प्राप्त करें. देवगण हमारा हित साधने की कृपा करें. (२१)

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्.

पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो:.. (२२)

हे देवगण! आप की कृपा से हम सौ शरद तक जीएं. आप की कृपा से हम सौ शरद तक स्वस्थ जीएं. आप की कृपा से हम सौ शरद यानी वृद्धावस्था तक जीएं. जैसे पुत्र के लिए पिता होता है, वैसे ही हमें आप का संरक्षण मिले. जीवन के बीच में हम कभी मृत्यु न पाएं. (२२)

अदितिद्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः.

विश्वे देवाऽ अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्.. (२३)

स्वर्गलोक, अंतरिक्षलोक, जगत् माता, जगत् पिता व सभी देवगण अविनाशी हैं. पांचों जन और जो कुछ उत्पन्न है, वह अविनाशी है. जो कुछ उत्पन्न होने वाला है, वह अविनाशी है. (२३)

मा नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऽ ऋभुक्षा मरुतः परि ख्यन्.

यद्वाजिनो देवजातस्य सप्तेः प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि.. (२४)

मित्र, वरुण, अर्यमा, आयु, ऋभुक्ष देव, मरुद्गण इंद्र देव कभी भी हम से विमुख न हों. देवताओं में जो बल उपजा है, हम उसी बल और उन के पराक्रम की गाथा बारबार कहते हैं. (२४)

यन्निर्णिजा रेक्णसा प्रावृतस्य रातिं गृभीतां मुखतो नयन्ति

सुप्राङजो मेम्यद्विश्वरूप इन्द्रापूष्णोः प्रियमप्येति पाथः.. (२५)

जब संस्कार युक्त ऐश्वर्यमय सब को आवृत्त करने वाले देवताओं के मुख पास हवि का अन्न ले जाया जाता है, तब अज रूप भी 'मैंमैं' करता हुआ पास आ है. वह इंद्र देव और पूषा देव के इस प्रिय पदार्थ को प्राप्त करता है. (२५)

एष छागः पुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः.

अभिप्रियं यत्पुरोडाशमर्वता त्वष्टेदेनसौश्रवसाय जिन्वति.. (२६)

यह बकरा जब शक्तिशाली घोड़े के सामने लाया जाता है तब यजमान चंचल घोड़े के साथ बकरे को भी मीठा अन्न (पुरोडाश) प्रदान करता है. पुरोडाश सभी को प्रिय लगता है और उस का उत्तम भाग दे कर यश पाया जाता है. (२६)

यद्धविष्यमृतुशो देवयानं त्रिर्मानुषाः पर्यश्वं नयन्ति

अत्रा पूष्णः प्रथमो भाग ऽ एति यज्ञं देवेभ्यः प्रतिवेदयन्नजः.. (२७)

जब यजमान हवि को तीन देवमार्गों से चारों ओर घोड़े की तरह ले जाते हैं, तब यहां यह अज पोषण का प्रथम भाग पा कर देवताओं के लिए यज्ञ का प्रतिवेदन करता है. (२७)

होताध्वर्युरावया अग्निमिन्धो ग्रावग्राभ ऽ उत श स्ता सुविप्रः.

तेन यज्ञेन स्वरंकृतेन स्विष्टेन वक्षणा ऽ आ पृणध्वम्.. (२८)

होता, अध्वर्यु, प्रतिस्थाता, आग्नीध्र, ग्रावस्तोता, प्रशास्ता, विद्वान् ब्रह्मा आदि हे यजमानो! आप उस यज्ञ से इच्छित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रवाहों को पूर्ण करने की कृपा कीजिए. ( २८ )

यूपव्रस्का उत ये यूपवाहाश्चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति.

ये चार्वते पचन सम्भरन्त्युतो तेषामभिगूर्त्तिर्न ऽ इन्वतु.. (२९)

खंभे का निर्माण करने वाले, उस को वहन करने वाले लोहे और लकड़ी की फिरकी के निर्माता घोड़े के लिए खंभे बनाने वाले - इन सभी लोगों का कार्य हमारे यज्ञ का हित साधने वाला हो. (२९ )

उप प्रागात्सुमन्मेधायि मन्म देवानामाशा ऽ उप वीतपृष्ठ:.

अन्वेनं विप्रा ऽ ऋषयो मदन्ति देवानां पुष्टे चक्रमा सुबन्धुम् .. (३०)

हम अच्छे मन से यज्ञ का फल पाएं. यह घोड़ा देवताओं की भी इच्छा पूरी करने का सामर्थ्य रखता है. देवताओं को भी आनंदित करता है. देवगण भी इसे अपना मित्र मानते हैं. ब्राह्मण तथा ऋषिगण इस का अनुमोदन करने की कृपा करें. (३०)

यद्वाजिनो दाम सन्दानमर्वतो या शीर्षण्या रशना रज्जुरस्य.

यद्वा घास्य प्रभृतमास्ये तृण ४ सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु.. (३१)

इस शक्तिशाली और चंचल को नियंत्रण में रखने के लिए गरदन का बंधन देवताओं को समर्पित हो. इस शक्तिशाली को नियंत्रण में रखने के लिए कमर तथा सिर के बंधन देवताओं को समर्पित हों. इस शक्तिशाली व घास, तृण आदि देवताओं को नियंत्रण में रखने के लिए गरदन का बंधन देवताओं को समर्पित हो. (३१)

यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधितौ रिप्तमस्ति.

यद्धस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु.. (३२)

जिस अश्व का बचाखुचा भाग मक्खियां खाती हैं, जो भाग यजमान के हाथों और अंगुलियों में लगा रहता है, वह सब भी देवताओं के प्रति समर्पित हो. (३२)

यदूवध्यमुदरस्यापवाति य ऽ आमस्य क्रविषो गन्धो अस्ति.

सुकृता तच्छमितारः कृण्वन्तूत मेध शृतपाकं पचन्तु.. (३३)

यज्ञ के उदर (पेट) में जो अधपचे अन्न, गंध आदि निकल रहे हैं, उन की शांति भलीभांति किए गए यज्ञ के उपचार से हो. वे पचें यह पाचन देवगणों के अनुसार हो. (३३)

यत्ते गात्रादग्निना पच्यमानादभि शूलं निहतस्यावधावति.

मा तद्भूम्यामाश्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भयो रातमस्तु .. (३४)

जो आप के अग्नि से पचाए जाते हुए अंग, (दर्द) से शूल इधरउधर दौड़ते हुए गिर गए हैं, उन्हें भूमि पर ही मत पड़ा रहने दीजिए. कहीं वे तिनकों में ही न मिल जाएं. वे भी देवताओं का भोजन बनें. (३४ )

ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्वं यऽ ईमाहुः सुरभिर्निर्हरेति.

ये चार्वतो मा सभिक्षामुपासतऽ उतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु .. (३५)

जो इस अन्न व पुरोडाश को पकता हुआ देखते हैं, जो इस पुरोडाश को सुगंध युक्त बनाते हैं, जो इस अन्न से बने पुरोडाश को मांगते हैं, उन का पुरुषार्थ भी हमारे लिए फलीभूत हो. (३५)

यन्नीक्षणं माँस्पचन्या ऽ उखाया या पात्राणि यूष्णऽआसेचनानि.

ऊष्मण्यापिधाना चरूणामङ्काः सूनाः परि भूषन्त्यश्वम्.. (३६)

जो पुरोडाश को पात्र में बनता (पकता ) हुआ देखते हैं, जो पात्र को मांज कर पूरी तरह साफ करते हैं, ऊष्मा को रोकने वाले चरु आदि को गोद में रखते हैं, वे सभी इस यज्ञ को भूषित करने की कृपा करें. ( ३६ )

मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्धूमगन्धिर्मोखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रि:.

इष्टं वीतमभिगूर्त्तं वषट्कृत तं देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम्.. (३७)

हे पुरोडाश! धुएं वाली आग और गंध आप को पीड़ा न दें. चमकीला उखा आप को पीड़ा न दे. इस प्रकार पके हुए पुरोडाश को देवगण भलीभांति स्वीकार करते हैं. (३७)

निक्रमणं निषदनं विवर्त्तनं यच्च पड्वीशमर्वतः.

यच्च पपौ यच्च घासिं जघास सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु.. (३८)

हे यज्ञ अश्व! आप का निकलना, बैठना, हिलना, पलटना, खानापीना आदि सभी क्रियाएं देवताओं के ही बीच में हों. (३८)

यदश्वाय वास ऽ उपस्तृणन्त्यधीवासं या हिरण्यान्यस्मै.

सन्दानमर्वन्तं पड्वीशं प्रिया देवेष्वा यामयन्ति.. (३९)

अश्व का वस्त्र, ऊपर का आवरण वस्त्र, अधिवास ( नीचे का वस्त्र ) सोने के आभूषण, सिर एवं पैर को बांधने की मेखलाएं आदि सभी देवताओं को प्रसन्न करने की कृपा करें. (३९)

यत्ते सादे महसा शूकृतस्य पार्ष्या वा कशया वा तुतोद .

स्रुचेव ता हविषो अध्वरेषु सर्वा ता ते ब्रह्मणा सूदयामि .. (४०)

हे अश्व! जो आप के पीड़क हैं, जो पीछे और नीचे के भाग के पीड़क हैं, वे त्रुटियां और यज्ञों में हवि संबंधी अन्य त्रुटियां ब्राह्मण स्रुवा की घी की आहुतियों से सुधारते हैं. (४०)

चतुस्त्रिशद्वाजिनो देवबन्धोर्वङ्कीरश्वस्य स्वधिति: समेति.

अच्छिद्रा गात्रा वयुना कृणोत परुष्परुरनुघुष्या विशस्त.. ( ४१ )

हे यजमानो! यह अश्व देवताओं का बंधु है. यह धारण की क्षमता रखता है. सामर्थ्यवान है. चौंतीस शक्तियों से युक्त हो. शरीर छिद्र रहित ( दोष रहित ) हो. देवगण इस की सभी कमियों को दूर करने की कृपा करें. ( ४१ )

एकस्त्वष्टुरश्वस्या विशस्ता द्वा यन्तारा भवतस्तथ ऋतु:.

या ते गात्राणामृतुथा कृणोमि ता ता पिण्डानां प्र जुहोम्यग्नौ .. (४२)

वर्ष त्वष्टा (सूर्य) रूप अश्व को बांटता है. वह उसे दो भागों (उत्तरायण व दक्षिणायन) में बांटता है, दोनों भागों को ऋतुओं (छह ) में बांटता है. शरीर के अंगों के स्वास्थ्य के लिए ऋतु के अनुसार पदार्थों की आहुति अग्नि में भेंट की जाती है. (४२)

मा त्वा तपत्प्रिय ऽ आत्मापियन्तं मा स्वधितिस्तन्वऽ आ तिष्ठिपत्ते.

मा ते गृध्नुरविशस्तातिहाय छिद्रा गात्राण्यसिना मिथू क... (४३)

हे अश्व! अपना प्यारा आत्मतत्त्व सदा आप धारण करते रहें. वह प्यारा आत्मतत्त्व कभी आप को छोड़ कर न जाएं. बांटने वाली शक्तियां कभी आप के शरीर और अंगों पर अधिकार न कर सकें. अनिपुण व्यक्ति भी आप के शरीर तथा किसी अंग पर तलवार न चला सके. उस की तलवार आप के दोषों पर चले. (४३)

न वा उ एतन्प्रियसे न रिष्यसि देवाँ  इदेषि पथिभि: सुगेभिः. 

हरी ते युञ्जा पृषती अभूतामुपास्थाद्वाजी धुरि रासभस्य.. (४४)

हे अश्व! न आप मारते हैं, न मरते हैं. आप सुगम पथ से देवताओं के पास जाते हैं. घोड़े आप के रथ में जुड़ कर पुष्ट होते हैं. वे शब्द मात्र से ही रथ में जुड़ जाते हैं. घोड़े बहुत वेगवान हैं. (४४)

सुगव्यं नो वाजी स्वश्व्यं पु सः पुत्राँ  उत विश्वापुष ९ रयिम्. 

अनागास्त्वं नो अदितिः कृणोतु क्षत्रं नो अश्वो वनताहविष्मान्.. (४५)

यह अच्छी तरह देवताओं को प्राप्त कराने वाला है. यह हमें अपने वश में रखे, पुत्र व पौत्र प्रदान करे. हम सब को धन से पुष्ट करे व गरीबी व पाप से दूर रखे. हमें बलवान बनाए. हम इस के लिए हविमान हैं. (४५)

इमा नु कं भुवना सीषधामेन्द्रश्च विश्वे च देवा:. 

आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्मभ्यं भेषजा करत्.

यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजां चादित्यैरिन्द्रः सह सीषधाति.. (४६)

इंद्र देव तथा सभी देव सभी भुवनों को अपने वश में रखें. आदित्यगण मरुद्गण तथा इंद्र देव अपने गण सहित हमें निरोग रखें. यह यज्ञ इंद्र देव और आदित्यगण सहित हमारे शरीर और प्रजाओं को अपने वश में रखें. (४६ )

अग्ने त्वं नो अन्तमऽ उत त्राता शिवो भवा वरूथ्यः. 

वसुरग्निर्वसुश्रवाऽ अच्छा नक्षि द्युमत्तमरयिं दाः.

तं त्वा शोचिष्ठ दीदिवः सुम्नाय नूनमीमहे सखिभ्यः.. (४७)

हे अग्नि ! आप अन्यतम, त्राता व कल्याणकारी हैं. हे अग्नि ! आप हितैषी हैं. आप हिंसकों व आततायियों से हमारी रक्षा करें. आप प्रख्यात हैं. हमारी रक्षा करें. आप धनवान हैं. हमारी रक्षा करें. आप प्रकाशवान हैं. हमारी रक्षा करें. आप स्वर्गलोक को भी प्रकाशित करते हैं. आप हमें मित्रों सहित धन और वैभव दीजिए. हम अच्छे मन से आप के लिए प्रार्थना करते हैं. (४७)


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