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यजुर्वेद अध्याय 27 हिन्दी व्याख्या



यजुर्वेद अध्याय 27

॥ वेद ॥>॥ यजुर्वेद ॥>॥ अध्याय २७ ॥

समास्त्वाग्न ऽ ऋतवो वर्धयन्तु संवत्सरा ऽ ऋषयो यानि सत्या.

सं दिव्येन दीदिहि रोचनेन विश्वा ऽ आ भाहि प्रदिशश्चतस्रः.. (१)

हे अग्नि ! सत्यवादी ऋषिगण हर माह, ऋतु व वर्ष में आप की बढ़ोतरी करते हैं. आप अपनी दिव्यता दीजिए. आप संसार को आलोकित व चारों दिशाओं और उपदिशाओं को आभासित करने की कृपा कीजिए. ( १ )

सं चेध्यस्वाग्ने प्र च बोधयैनमुच्च तिष्ठ महते सौभगाय .

मा च रिषदुपसत्ता ते अग्ने ब्रह्माणस्ते यशसः सन्तु मान्ये.. (२)

हे अग्नि ! आप यजमान को चेताइए व जगाइए! आप ऊंचे आसन पर विराजिए. आप हमें सौभाग्य प्रदान कीजिए. आप हमें अपनी उपसत्ता और हम ब्राह्मणों को अपना वह यश प्रदान कीजिए. आप हमें मान्यता प्रदान करने की कृपा कीजिए. (२)

त्वामग्ने वृणते ब्राह्मणा ऽ इमे शिवो अग्ने संवरणे भवा नः.

सपनहा नो अभिमातिजिच्च स्वे गये जागृह्यप्रयुच्छन् .. (३)

हे अग्नि ! ब्राह्मण आप का वरण करते हैं. आप हमारे लिए कल्याणकारी होइए. आप हमारे शत्रुओं का संवरण कीजिए. आप शत्रुओं पर हमें जिताइए. आप की कृपा से हम अपने घर में आलस्य रहित हो कर जागते रहें. (३)

इहैवाग्ने अधि धारया रयिं मा त्वा नि क्रन्पूर्वचितो निकारिणः.

क्षत्रमग्ने 'सुयममस्तु तुभ्यमुपसत्ता वर्धतां ते अनिष्टृत:.. (४)

हे अग्नि ! आप इधर पधारिए. आप हमारे लिए धन धारण करिए. यजमान आप की आज्ञा का उल्लंघन न करें. क्षत्रिय भी आप के वश में हो जाएं. आप की उपासना में बढ़ोतरी हो. आप के भक्त अविनाशी हों. आप उन की बढ़ोतरी करने की कृपा कीजिए. (४)

क्षत्रेणाग्ने स्वायुः स रभस्व मित्रेणाग्ने मित्रधेये यतस्व.

सजातानां मध्यमस्था ऽ एधि राज्ञामग्ने विहव्यो दीदिहीह.. (५)

हे अग्नि ! क्षत्रियों को आप अपनी आयु व उन्हें अपना वैभव प्रदान कीजिए. मित्र देव के साथ रह कर रचनात्मक कार्य करने का यत्न कीजिए. आप सजातियों के बीच रहने की कृपा कीजिए. आप राजा हैं. आप आइए. आप यज्ञ में प्रज्वलित होने की कृपा कीजिए. ( ५ )

अति निहो अति स्त्रिधोत्यचित्तिमत्यरातिमग्ने.

विश्वा ह्यग्ने दुरिता सहस्वाथास्मभ्य सहवीरा रयिं दा:.. (६)

हे अग्नि ! हत्यारों, अत्याचारियों, स्वेच्छाचारियों, शत्रुओं को साहस के साथ दूर करने की कृपा कीजिए. आप हमें वीर पुत्रों के साथसाथ धन भी प्रदान करने की कृपा कीजिए. (६)

अनाधृष्यो जातवेदा ऽ अनिष्टृतो विराडग्ने क्षत्रभृद्दीदिहीह.

विश्वा ऽ आशाः प्रमुञ्चन्मानुषीर्भियः शिवेभिरद्य परि पाहि नो वृधे.. (७)

हे अग्नि ! आप को कोई नहीं हरा सकता. आप सब कुछ जानते हैं. आप अनश्वर, विराट्, क्षात्र धर्म के पोषक व सब की आशा हैं. आप मनुष्यों को कष्ट मुक्त कीजिए. आप हमारा आज कल्याण कीजिए. आप सब ओर से हमारी रक्षा व हमारी बढ़ोतरी करने की कृपा कीजिए. (७)

बृहस्पते सवितर्बोधयैन स शितं चित्सन्तरा स शिशाधि.

वर्धयैनं महते सौभगाय विश्व ऽ एनमनु मदन्तु देवा... (८)

हे बृहस्पति व सविता देव! आप इन यजमानों को बोधित व चेतना प्रदान कीजिए, आप यजमानों के सौभाग्य की बढ़ोतरी कीजिए. सभी देवता यजमान के अनुकूल होने व उन को आनंद प्रदान करने की कृपा करें. (८)

अमुत्रभूयादध यद्यमस्य बृहस्पते अभिशस्तेरमुञ्चः.

प्रत्यौहतामश्विना मृत्युमस्माद्देवानामग्ने भिषजा शचीभि:.. (९)

हे बृहस्पति देव ! आप हमें यमराज के घर जाने के डर से मुक्त कीजिए. अश्विनी देव हमारे मृत्यु के भय को दूर करने की कृपा करें. अश्विनी देव ओषधियों के ज्ञाता हैं. वे अग्नि को पवित्र बनाने की कृपा करें. (९ )

उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त ऽ उत्तरम्.

देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्.. (१०)

सूर्य ! आप देवों के देव हैं. हम अंधकार से ऊपर उठें और आत्मावलोकन करें (अपनेआप को देखें ). हमें उत्तरोत्तर सुख मिले. हम सविता देव व सब से उत्तम ज्योति को प्राप्त करें. (१०)

ऊर्ध्वाऽ अस्य समिधो भवन्त्यूर्ध्वा शुक्रा शोची & ष्यग्ने:.

मत्तमा सुप्रतीकस्य सूनोः .. (११)

अग्नि की लपटें पवित्र, चमकीली, ऊपर की ओर जाती हैं. वे लपटें समिधा से ऊर्ध्वगमन करती हैं और स्वर्गलोक तक जाती हैं. अग्नि की लपटें यजमान के लिए श्रेष्ठ प्रतीक हैं. ( ११ )

तनूनपादसुरो विश्ववेदा देवो देवेषु देवः पथो अनक्तु मध्वा घृतेन.. (१)

हे अग्नि ! आप देवताओं के देव, सर्वज्ञाता, शरीर रक्षक व असुरनाशक हैं. आप मधुर घी की आहुतियों से अपने पथ पर बढ़ने की कृपा कीजिए. आप हमें भी श्रेष्ठ मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा दीजिए. ( १ )

मध्वा यज्ञं नक्षसे प्रीणानो नराश सो अग्ने सुकृद्देवः सविता विश्ववार:.. (१३)

हे अग्नि! आप को प्राणी यज्ञ में मधु (आदि सामग्रियों से ) पूजते हैं. आप सर्वप्रिय हैं. आप श्रेष्ठ कार्य करने वाले हैं. आप सभी को प्रिय लगते हैं. (१३)

अच्छायमेति शवसा घृतेनेडानो वह्निर्नमसा अग्नि स्रुचो अध्वरेषु प्रयत्सु.. (१४)

अग्नि ! यज्ञ में अध्वर्यु प्रयत्नपूर्वक घी से आहुति प्रदान कर रहे हैं. अग्नि को नमन कर रहे हैं. विभिन्न प्रार्थनाओं से अग्नि के समीप जाते हैं. (१४)

स यक्षदस्य महिमानमग्नेः स ईं मन्द्रा सुप्रयसः वसुश्चेतिष्ठो वसुधातमश्च.. (१५)

हे अग्नि ! आप महिमावान, प्रकाशमान, श्रेष्ठ संपत्तिदाता व धनवान हैं. हम आनंदपूर्वक धनधारी अग्नि को आहुति प्रदान करते हैं. (१५)

द्वारो देवीरन्वस्य विश्वे व्रता ददन्ते अग्नेः उरुव्यचसो धाम्ना पत्यमाना:.. (१६)

हे अग्नि ! आप देवों का द्वार, व्रतशील व वर्चस्वी हैं. आप हम सभी की रक्षा करते हैं. (१६)

ते अस्य योषणे दिव्ये न योना उषासानक्ता. 

इमं यज्ञमवतामध्वरं नः.. (१७)

अग्नि की दो दिव्य देवियां हैं - उषा व रात्रि ये दोनों देवियां हमारे यज्ञ में अग्नि के साथ विराजने की कृपा करें. ( १७ )

दैव्या होतारा ऽ ऊर्ध्वमध्वरं नोग्नेर्जिह्वामभि गृणीतम्. 

कृणुतं नः स्विष्टिम् .. (१८)

दिव्य अध्वर्यु अग्नि और वायु ! विधिवत इस यज्ञ को संपन्न कराने की कृपा करें. अग्नि की जा ऊपर की ओर बढ़ती है. वे हमें भी ऊपर बढ़ने की प्रेरणा देने की कृपा करें. (१८ )

तिस्रो देवीर्बर्हिरेद सदन्त्विडा सरस्वती भारती मही गृणाना.. (१९)

इड़ा देवी, सरस्वती देवी और भारती देवी महिमामयी हैं. वे गणमान्य हैं. वे (यज्ञ) सदन में पधारने और कुश के आसन पर विराजने की कृपा करें. (१९)

तन्नस्तुरीपमद्भुतं पुरुक्षु त्वष्टा सुवीर्यम्. 

रायस्पोषं वि ष्यतु नाभिमस्मे.. ( २० )

त्वष्टा देव! अद्भुत, सर्वद्रष्टा, श्रेष्ठ वीर्य वाले और गतिमान हैं. वे देव हमें पोषक धन प्रदान करने की कृपा करें. ( २० )

वनस्पतेव सृजा रराणस्त्मना देवेषु. अग्निर्हव्य शमिता सूदयाति.. (२१)

हे वनस्पति! आप हमारे और देवताओं के लिए ओषधि उपलब्ध कराएं. अग्नि सुखदायी हैं. वे हमारी आहुति को शोधित करने की कृपा करें. (२१)

अग्ने स्वाहा कृणुहि जातवेदऽ इन्द्राय हव्यम्.

विश्वे देवा हविरिदं जुषन्ताम्.. (२२)

हे अग्नि ! आप सर्वज्ञ हैं. आप इंद्र देव के लिए हमारी ओर से दी गई आहुति व यज्ञ में सभी देवताओं तक हमारी हवि पहुंचाने की कृपा कीजिए. (२२)

पीवो अन्ना रयिवृधः सुमेधाः श्वेतः सिषक्ति नियुतामभिश्रीः.

ते वायवे समनसो वि तस्थुर्विश्वेन्नरः स्वपत्यानि चक्रुः.. (२३)

वायु अन्न व धन से बढ़ोतरी पाते हैं. वे श्रेष्ठ बुद्धि संपन्न, श्वेत व समान मन वाले हैं. श्रेष्ठ मनुष्य अच्छी संतान पाने के लिए वायु की आराधना करते हैं. (२३) 

ये नु यं जज्ञतू रोदसीमे राये देवी धिषणा धाति देवम्.

अध वायुं नियुतः सश्चतः स्वा उत श्वेतं वसुधितिं निरेके.. (२४)

देवी देव को धन के लिए धारण करती है. स्वर्गलोक और पृथ्वी लोक हमारे यज्ञ में हमारे लिए धन धारण करें. वायु धनधारी हैं. सभी उन का सेवन करते हैं. (२४)

आपो ह यद्बृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम्.

ततो देवाना थं समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम.. (२५)

जल अपार है. विश्व को अपने में समाए हुए है. अग्नि को गर्भ में धारण करता है. उस से देवताओं की उत्पत्ति हुई. उन के अलावा हम अब किस देवता के लिए हवि का विधान करें ? (२५)

यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद्दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम्.

यो देवेष्वधि देव एक ऽ आसीत् कस्मै देवाय हविषा विधेम.. (२६)

जिन्होंने पृथ्वी के चारों ओर जल देखा, जिस ने यज्ञ धारण करने वालों को जना, जो देवों के एकमात्र अधिदेव हैं, उन के अलावा अब हम किस देवता के लिए हवि का विधान करें ? ( २६ )

प्र याभिर्यासि दाश्वां समच्छा नियुद्भिर्वायविष्टये दुरोणे.

नि नो रयि सुभोजसं युवस्व नि वीरं गव्यमश्व्यं च राध:.. (२७)

हे वायु ! आप जिन यजमान के पास घोड़े की गति से जाते हैं, उसी युवा गति से हमारे पास आइए. आप हमें वीर संतान, गोधन व अश्वधन दीजिए. आप हमें धन प्रदान करने की कृपा कीजिए. (२७)

आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर १ सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम्.

वायो अस्मिन्त्सव मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः.. (२८)

वायु ! आप अपने सैकड़ों और हजारों घोड़ों को रथ में जोत कर इस यज्ञ में जल्दी से पधारिए. हे वायु ! इस यज्ञ में आप भी आनंदित होइए और अपने कल्याणकारी साधनों से हमारी भी रक्षा करने की कृपा कीजिए. ( २८ )

नियुत्वान्वायवा गह्ययं शुक्रो अयामि ते. 

गन्तासि सुन्वतो गृहम्.. (२९)

हे वायु ! शुक्र ग्रह आप को धारण करना चाहते हैं. आप अपने घोड़े रथ में जोतिए, आप हमारी सुनिए शीघ्र गंतव्य ( यजमान के घर ) की ओर पधारिए. (२९)

वायो शुक्रो अयामि ते मध्वो अग्रं दिविष्टिषु.

आ याहि सोमपीतये स्पार्हो देव नियुत्वता.. (३०)

हे वायु ! आप को शुक्र ग्रह धारण करना चाहते हैं. हे देव! आप अग्रगण्य हैं. आप स्वर्गलोक से पधारिए. आप मधुर सोमरस का पान करने के लिए तेजी से पधारिए. (३०)

वायुरग्रेगा यज्ञप्री: साकं गन्मनसा यज्ञम् शिवो नियुद्भिः शिवाभि:.. (३१)

हे वायु ! आप अग्रगामी, यज्ञ से प्रीति रखने वाले व कल्याणकारी हैं. आप अपने कल्याणकारी घोड़ों को रथ में जोतिए आप अपने मन के साथ इस यज्ञ में पधारने की कृपा कीजिए. (३१)

वायो ये ते सहस्रिणो रथासस्तेभिरा गहि . 

नियुत्वान्त्सोमपीतये.. (३२)

हे वायु ! आप के जो हजारों रथ हैं, आप उन में घोड़े जोतिए, आप सोमरस पीने के लिए पधारिए. (३२)

एकया च दशभिश्च स्वभूते द्वाभ्यामिष्टये वि शती च.

तिसृभिश्च वहसे त्रि थं शताच नियुद्भिर्वायविह ता विमुञ्च.. (३३)

हे वायु ! आप एक, दो, तीन, दस, बीस, तीस, तीन सौ और जितने चाहे, उतने घोड़े जोत कर अपने रथ अभीष्ट कार्य के लिए छोड़िए. (३३)

तव वायवृतस्पते त्वष्टुर्जामातरद्भुत. 

अवा स्या वृणीमहे.. (३४)

हे वायु ! आप संकल्पशील, अद्भुत व त्वष्टा देव के जमाई हैं. हम आप के रक्षा साधनों का वरण करते हैं. (३४)

अभि त्वा शूर नोनुमोदुग्धाऽ इव धेनवः.

ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः.. (३५)

हे इंद्र देव! आप शूरवीर, संसार के स्वामी, सर्वद्रष्टा व ईश्वर हैं. बिना दुही हुई गाय की तरह हम आप से धन पाना चाहते हैं. (३५)

न त्वावाँ  अन्यो दिव्यो न पार्थिवो न जातो न जनिष्यते.

अश्वायन्तो मघवन्निन्द्र वाजिनो गव्यन्तस्त्वा हवामहे.. (३६)

हे इंद्र देव! आप जैसा दिव्य कोई देव न कभी पृथ्वी पर पैदा हुआ है और न ही होगा. आप धनवान हैं. आप हमें अश्वायित (घोड़ों से युक्त ) कीजिए. आप हमें बलशाली बनाइए. हम आप का आह्वान करते हैं. (३६)

त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः.

त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः.. (३७)

हे इंद्र देव ! आप सत्पति व वृत्रनाशक हैं. याजक सर्वत्र विजय और अन्न बल पाने के लिए आप का आह्वान करते हैं. ( ३७ )

स त्वं नश्चित्र वज्रहस्त धृष्णुया मह स्तवानो अद्रिवः.

गामश्वं रथ्यमिन्द्र सं किर सत्रा वाजं न जिग्युषे.. (३८)

हे इंद्र देव ! आप अद्भुत, वज्रधारी व पृथ्वी पर स्तुत्य हैं. आप हमें गोधन और अश्वमय रथ दीजिए. आप हमें बलवान बनाइए, ताकि हम युद्धों में विजय पा सकें. (३८ )

या नश्चित्र ऽ आ भुवदूती सदावृधः सखा. 

कया शचिष्ठया वृता.. (३९)

हे इंद्र देव ! आप हमारे सखा हैं. आप सदैव बढ़ोतरी पाते हैं. आप हमारी किस पवित्र वृत्ति से प्रसन्न हो कर हम पर कृपा करते हैं. (३९)

कस्त्वा सत्यो मदानां महिष्ठो मत्सदन्धसः दृढा चिदारुजे वसु .. (४०)

हे इंद्र देव ! आप धनवान व सत्यवान हैं. कौन सी वस्तु आप को प्रिय है. आनंददायी है, जिस से आप यजमानों पर धन बरसाते हैं ? (४०)

अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्. 

शतं भवास्यूतये .. ( ४१ )

हे इंद्र देव ! आप हमारे मित्र जैसे हैं. आप हम लोगों की रक्षा के लिए सैकड़ों यत्न करते हैं. ( ४१ )

यज्ञा यज्ञा वो अग्नये गिरा गिरा च दक्षसे

प्र प्र वयममृतं जातवेदसं प्रियं मित्रं न श  सिषम्.. (४२)

हर यज्ञ में अग्नि की स्तोत्रों से उपासना की जाती है. आप अमर, सर्वज्ञ, हमारे प्रिय व मित्र हैं. आप प्रशंसित हैं. (४२)

पाहि नो अग्नऽ एकया पाह्युत द्वितीयया.

पाहि गीर्भिस्तिसृभिरूर्जां पते पाहि चतसृभिर्वसो.. (४३)

हे अग्नि! आप हमारी रक्षा कीजिए. हम एक स्तुति करते हैं. आप हमारी रक्षा कीजिए. हम दो प्रार्थनाओं से उपासना करते हैं. आप हमारी रक्षा कीजिए. हम तीन प्रार्थनाओं से आप की उपासना करते हैं. आप हमारी रक्षा कीजिए. हम चार प्रार्थनाओं से आप की उपासना करते हैं. आप हमारी रक्षा कीजिए. (४३)

ऊर्जो नपात स हिनायमस्मयुर्दाशेम हव्यदातये. 

भुवद्वाजेष्वविता भुवद्वृध ऽ उत त्राता तनूनाम्.. (४४)

अग्नि ऊर्जस्वी हैं. हवि देने के लिए उन का आह्वान करते हैं. वे हमारे तन की रक्षा करते हैं और हमारी मनोकामना पूरी करते हैं. (४४)

संवत्सरोसि परिवत्सरोसीदावत्सरोसीद्वत्सरोऽसि वत्सरोसि. उषसस्ते कल्पन्तामहोरात्रास्ते कल्पन्तामर्धमासास्ते कल्पन्तां मासास्ते  कल्पन्तामृतवस्ते कल्पन्ता & संवत्सरस्ते कल्पताम्. प्रेत्या ऽ एत्यै सं चाञ्च प्र च सारय. सुपर्णचिदसि तया देवतयाङ्गिरस्वद् ध्रुवः सीद.. (४५)

हे अग्नि! आप संवत्सर, परिवत्सर, इद्वत्सर व वत्सर हैं. उषा आप की है. दिनरात आप के हैं. आधा मास ( पक्ष ) आप का है. माह आप के हैं. वर्ष आप के हैं. कल्पांत संवत्सर आदि का आप समुचित विस्तार करते हैं. आप आइए. आप इन सब को संवारिए, आप चित्त की प्राणवायु जैसे हैं. आप ध्रुव (स्थिर ) हो कर विराजिए. आप हमारी आहुति अंगीकार कीजिए और देवताओं से अंगीकार कराइए. ( ४५ )


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