बुलबुल: हैंस
क्रिश्चियन एंडर्सन
सब
जानते हैं कि चीन में राजा, उसके
दरबारी और प्रजा सब चीनी होते हैं। यह कहानी बहुत पहले घटी थी; और इसीलिए इससे पहले कि इसे सब भूल जायँ
सुन लेनी चाहिए। राजा का महल पूरी दुनिया में सबसे सुंदर था। वह शीशे का बना था और
उसे बनाना बड़ा महँगा पड़ा था। वह इतना नाजुक था कि किसी भी चीज को छूने में डर
लगता था और यह एक बड़ा मुश्किल काम था। बगीचे बहुत सुंदर फूलों से भरे थे, जो फूल सबसे ज्यादा सुंदर थे उनमें
चाँदी की घंटियाँ थीं जो बजती रहती थीं। कोई उन्हें देखे बिना निकल नहीं सकता था।
राजा
के बगीचे में हर चीज़ बड़ी चतुराई से बनाई गई थी। बह बगीचा इतना बड़ा था कि सबसे
बड़ा माली भी यह नहीं जानता था कि वह कितना बड़ा है। चलते जाने पर आप एक सुंदर
जंगल में पहुँच जाओगे जहाँ के ऊँचे-ऊँचे पेड़ गहरे तालाबों में अपने को देखते रहते
थे। जंगल समुद्र तक फैला हुआ था। समुद्र नीला और इतना गहरा था कि बड़ी नावें भी
किनारे के इतने करीब आ सकती थीं कि उन पर पेड़ों की छाया पड़ती थी। यहाँ एक बुलबुल
रहती थी जो इतना मीठा गाती थी कि वह मछुआरा जो रोज़ रात को वहाँ जाल डालने जाता था,
इसे सुनकर रुक जाता था और कहता था : 'हे भगवान, यह कितना सुंदर गाती है!' पर वह ज्यादा देर नहीं सुन पाता था
क्योंकि उसे काम करना होता था, और
जल्दी ही वह चिड़िया के बारे में भूल जाता था। पर अगली रात फिर जब वह उसकी आवाज़
सुनता था तो पहली रात की बात दोहराता था : 'हे भगवान, यह कितना सुंदर गाती है !'
पूरी
दुनिया से यात्री राजा का महल और बगीचा देखने उसके शहर में आते थे; पर बुलबुल की आवाज़ सुनने के बाद कहते
थे कि वही सबसे प्यारी है। अपने देश लौटने पर वे शहर, महल और बगीचे के बारे में लंबी ज्ञानभरी
किताबें लिखते थे; पर
बुलबुल को कभी नहीं भूलते थे। पहले अध्याय में ही उसके बारे में लिखा रहता था। जो
कविता लिख सकते थे वे उसकी प्रशंसा में लंबी कविताएँ लिखते थे कि कैसे गहरे नीले
समुद्र के किनारे के जंगल में एक बुलबुल रहती थी।
ये
किताबें सारे संसार ने पढ़ीं, एक
किताब राजा को भी भेजी गई। उसने अपनी सोने की कुर्सी पर बैठकर पढ़ना शुरू किया।
थोड़ी-थोड़ी देर में वह सिर हिलाता जाता था क्योंकि उसे अपने शहर, अपने महल और बगीचे के बारे में पढ़कर
बहुत खुशी हो रही थी; पर
तभी उसने पढ़ा : 'पर
बुलबुल का गाना सबसे ज्यादा प्यारा है।'
'क्या!'
राजा बोला, 'बुलबुल ? मैं तो उसे जानता भी नहीं, न मैंने उसके बारे में सुना है; और वह न सिर्फ मेरे राज्य में बल्कि
मेरे बगीचे में रहती है। ऐसी बातें लोगों की किताबें पढ़ने पर ही पता चलती हैं।'
उसने
अपने मुख्य दरबारी को बुलाया, वह
बहुत भद्र था यहाँ तक कि कोई उससे नीचे स्तर का आदमी भी अगर उससे बात करता या उससे
कुछ पूछता था तो उसका जवाब सिर्फ 'जी'
होता था। और इसका कोई अर्थ नहीं होता।
राजा
ने पूछना शुरू किया, 'एक
अजीब और मशहूर चिड़िया है, जिसे
बुलबुल कहते हैं। लोग सोचते हैं कि मेरे राज्य में वही सबसे बढ़िया चीज़ है। मैंने
उसके बारे में क्यों नहीं सुना ?'
दरबारी
बोला, 'मैंने उसके बारे में
कभी नहीं सुना, न
उसे कभी दरबार में पेश किया गया है।'
राजा
ने माँग की कि 'उसे
आज शाम को आकर मेरे लिए गाना पड़ेगा। सारी दुनिया उसके बारे में जानती है, मैं ही नहीं जानता।'
दरबारी
ने झुककर कहा, 'मैंने
इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना पर मैं उसे ढूँढ़कर लाऊँगा।'
पर
यह कहना आसान था, करना
मुश्किल | दरबारी पूरे महल की
सीढ़ियों में ऊपर-नीचे दौड़ता रहा, लंबे
गलियारे में भागता रहा, पर
जितने लोगों से पूछा कोई बुलबुल के बारे में कुछ नहीं जानता था । वह राजा के पास
लौटा और बोला कि किताबें लिखने वालों की पूरी कहानी गप्प के अलावा कुछ नहीं है। “महाराज, आपको हर लिखी बात पर विश्वास नहीं करना
चाहिए। एक चीज़ की खोज और कलात्मक कल्पनाएँ अलग होती हैं; यह कहानी है।'
राजा
ने जवाब में कहा, 'जो
किताब मैंने अभी पढ़ी है वह मुझे जापान के राजा ने भेजी है; इसलिए उसमें लिखी हर बात ज़रूर सच होगी
। मैं आज रात को बुलबुल को सुनना चाहता हूँ। अगर वह नहीं आएगी तो पूरे दरबारियों
के पेटों पर भोजन के बाद मुक्के मारे जाएँगे।'
दरबारी
बोला, 'सिंग पे!' वह फिर सीढ़ियों पर ऊपर-नीचे, गलियारे में दौड़ने लगा; आधा दरबार उसके साथ दौड़ रहा था क्योंकि
वे अपना पेट पिटवाना नहीं चाहते थे। वे सबसे बुलबुल के बारे में पूछ रहे थे,
जिसके बारे में सारी दुनिया जानती थी,
पर दरबारी नहीं जानते थे।
आखिर
वे रसोई में पहुँचे। वहाँ एक गरीब लड़की बरतन माँजती थी। वह बोली, 'ओह, मैं बुलबुल को जानती हूँ। वह बहुत सुंदर
गाती है। हर शाम को मैं समुद्र के किनारे रहती अपनी बीमार माँ के लिए, बचा हुआ खाना लेकर जाती हूँ। वह जगह
बहुत दूर है, इसलिए
लौटते वक्त जंगल में आराम करती हूँ और तब बुलबुल की आवाज़ सुनती हूँ। मेरी आँखों
में आँसू आ जाते हैं, ऐसा
लगता है जैसे मेरो माँ मुझे चूम रही है।' दरबारी बोला, “सुनो
लड़की, मैं तुम्हें रसोई में
पक्की नौकरी दिलवा दूँगा, साथ
ही राजा को भोजन करते हुए देखने की आज्ञा भी, पर तुम्हें हमें बुलबुल तक पहुँचाना
होगा और उसे आज रात को दरबार में बुलाना होगा।' आधा दरबार जंगल में बुलबुल को ढूँढ़ने
गया। जब वे जा रहे थे तो एक गाय रंभाने लगी। वे लोग चिल्लाए, 'ओह! वह रही। छोटे-से जानवर की आवाज़
कितनी ताकतवर है; हमने
पहले भी सुनी है।'
रसोई
की नौकरानी बोली, 'वह
तो गाय है। अभी हम बुलबुल के रहने की जगह से बहुत दूर हैं।'
वे
एक छोटे-से तालाब के पास से निकले, कुछ
मेंढ़क टर्रा रहे थे। राजा का एक दरबारी साँस खींचकर बोला, “बहुत खूब, मैं उसकी आवाज़ सुन पा रहा हूँ। ऐसा लग
रहा है जैसे गिरजे में घंटियाँ बज रही हों।' छोटी नौकरानी फिर बोली, 'नहीं, ये तो मेंढ़क हैं, पर अब किसी भी वक्त हमें उसकी आवाज़
सुनाई दे जाएगी।' उसी
वक्त बुलबुल गाने लगी।
लड़की
बोली, “वह रही! सुनो,
सुनो । वह वहाँ ऊपर डाल पर है।' और उसने हरी-भरी डाल पर बैठी एक छोटी
सलेटी-सी चिड़िया की तरफ इशारा किया।
मुख्य
दरबारी बोला, 'यह
कैसे हो सकता है ! मैं सोच भी नहीं सकता था कि वह ऐसी होगी। यह तो बहुत मामूली है!
कहीं एक साथ इतने ऊँचे लोगों को देखकर शर्म से उसका रंग तो नहीं उतर गया है।'
नौकरानी
बोली, 'छोटी बुलबुल, हमारा राजा चाहता है कि तुम उसके लिए
गाओ।'
'ख़ुशी
से।' बुलबुल ने जवाब दिया
और जितना अच्छा गा सकती थी, गाया।
मुख्य
दरबारी ने ठंडी साँस लेकर कहा, 'ऐसा
लगता है जैसे काँच की घंटियाँ बज रही हैं। इसके छोटे-से गले को देखो, कैसे धड़क रहा है। कितनी अजीब बात है कि
हमने पहले इसे सुना ही नहीं; दरबार
में इसे बहुत पसंद किया जाएगा।'
बुलबुल
ने पूछा, "क्या
मैं राजा के लिए और गीत गाऊँ ?” उसने
सोचा, राजा भी वहीं है।
मुख्य
दरबारी बोला, 'ओ
सर्वोत्तम छोटी बुलबुल, मैं
बड़ी खुशी से आज रात को तुम्हें राजदरबार में आने का न्यौता देता हूँ चीन के राजा
चाहते हैं कि तुम अपनी सुंदर कला से उन्हें मुग्ध करो।'
बुलबुल
बोली, ' हरे-भरे जंगलों में
ही यह अच्छा लगता है।' पर
जब उसे पता चला कि राजा वहीं सुनना चाहते हैं तो बह उनके साथ महल तक गई।
वहाँ
हर कमरा चमकाया गया था, सैकड़ों
सोने के लैंप चमकीली दीवारों और फर्श पर अपनी परछाईं देख रहे थे। गलियारों में
बहुत सुंदर फूल खड़े थे, ऐसे
फूल जिनमें चाँदी की घंटियाँ थीं; नौकरों
के आने-जाने से, दरवाज़े
खोलने और बंद करने से जो झोंके आ रहे थे उनसे वे घंटियाँ ऐसे बजने लगती थीं कि
किसी की कही बात सुनाई नहीं देती थी।
एक
बड़े कमरे में जहाँ राजा का सिंहासन रखा था, एक सोने की डंडी लगाई गई ताकि बुलबुल उस
पर बैठ सके। पूरा दरबार वहाँ था और उस छोटी नौकरानी को जिसे अब राजा की रसोई में
ऊंची जगह दे दी गई थी, एक
दरवाज़े के पीछे खड़े होकर सुनने की इजाजत थी। सब अपने बढ़िया कपड़े पहने हुए थे
और उस छोटी-सी स्लेटी रंग की चिड़िया की तरफ देख रहे थे, जिसकी तरफ राजा भी देखकर सिर हिला रहा
था।
बुलबुल
का गाना इतना मीठा था कि राजा की आँखों में आँसू आ गए; जब आँसू गालों पर बहने लगे तब वह पहले
से भी सुंदर गाने लगी। उसका गाना लोगों के दिल को छू रहा था। राजा इतना खुश हुआ कि
उसने हुक्म दिया कि उसकी सोने की चप्पल चिड़िया के गले में लटका दी जाए। इससे
बढ़कर कोई इज्जत नहीं दी जा सकती थी। पर बुलबुल ने धन्यवाद देते हुए कहा कि उसे तो
पहले ही बहुत इज्जत मिल चुकी।
“मैंने
राजा की आँखों में आँसू देखे हैं, मेरे
लिए वही बहुत बड़ी दौलत है। राजा के आँसुओं में अजीब ताकत होती है और भगवान जानते
हैं कि वह बहुत बड़ा इंसान है।' फिर
उसने एक और गीत गाया।
दरबार
की सभी औरतों ने कहा कि हमने इससे अच्छा गाना कभी नहीं सुना। और तभी से वे सब मुँह
में पानी भरकर आवाज़ निकालने की कोशिश करती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि तब आवाज
बुलबुल जैसी सुनाई देगी। नौकर-नौकरानी खुश थे और यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि नौकर
बड़ी मुश्किल से खुश होते हैं। बुलबुल बहुत सफल हो गई थी।
दरबार
में उसका अपना पिंजरा होना था, उसे
सुबह-शाम दोनों वक्त घूमने जाने की इजाजत मिली थी। पर बारह नौकर उस बेचारी
चिड़िया की टाँगों में बँधे रेशमी रिबनों को कस कर पकड़े रहने वाले थे। ऐसे बाहर
जाने में क्या मज़ा आता ?
पूरा
शहर उस कमाल की चिड़िया के बारे में बातें कर रहा था। जब भी दो लोग गली में मिलते
तो ठंडी साँस भरते और एक कहता 'बुल'
और दूसरा कहता 'बुल'। दोनों एक- दूसरे की बात समझ जाते।
बारह मिठाई की दूकान वालों ने अपने बच्चों के नाम बुलबुल रखे, पर एक भी गाना नहीं जानता था।
एक
दिन राजा के लिए एक पैकेट आया जिस पर 'बुलबुल' लिखा
था।
राजा
बोला, 'शायद यह हमारी चिड़िया
पर एक और किताब है।' पर
राजा गलत था; वह
एक मशीनी बुलबुल थी। वह एक छोटे-से डिब्बे में थी और असली लग रही थी। वह सोने और
चाँदी से बनी थी और उसमें हीरे, लाल,
हरे बेशकीमती रत्न जड़े हुए थे। जब
उसमें चाभी भरी जाती थी तो वह असली बुलबुल वाला एक गाना गाती थी; और जब वह गाती थी तो उसकी छोटी-सी चाँदी
की पूँछ ऊपर-नीचे होती थी। उसके गले पर एक रिबन बँधा था जिस पर लिखा था, 'जापान के राजा की बुलबुल चीन के राजा की
बुलबुल से घटिया (नीची) है।'
पूरा
दरबार बोला, ' यह
सुंदर है! जो दूत उसे लेकर आया था उसे फौरन 'सर्वोत्तम राजकीय बुलबुल देने वाले'
का खिताब दिया गया।
सब
बोले, 'इन दोनों को साथ-साथ
गाना चाहिए।' दोनों
ने गाया। पर वह उतना अच्छा नहीं रहा। क्योंकि असली चिड़िया अपने ढंग से गा रही थी
और जो मशीनी चिड़िया थी उसकी छाती में दिल की जगह सिलेंडर लगा था। राजकीय संगीत
शिक्षक ने कहा कि 'यह
इसकी गलती नहीं है। यह बिल्कुल वक्त से चलती है। यह मेरे संगीत विद्यालय की तरह
है।' फिर मशीनी बुलबुल को
अकेले गाना पड़ा। सब मान गए कि उसका गाना असली बुलबुल के गाने की तरह सुंदर था।
इसके अलावा नकली चिड़िया देखने में ज्यादा सुंदर थी क्योंकि वह हीरे-पन्ने मानिक
से जड़ी थी और जड़ाऊ कंगन और पिन की तरह चमक रही थी।
मशीनी
बुलबुल ने तेंतीस बार गाना गाया और फिर भी नहीं थकी। दरबारियों का मन था कि वह
चौंतीसवीं बार गाए लेकिन राजा को लगा कि अब असली बुलबुल को गाना चाहिए। पर वह थी
कहाँ? किसी ने ध्यान भी
नहीं दिया कि वह खुली खिड़की से उड़कर अपने प्यारे जंगल में चली गई थी।
राजा
ने गुस्से से कहा, 'इसका
क्या मतलब है?' और
पूरा दरबार भी बुलबुल को दोष देते हुए कहने लगा कि वह कितनी कृतघ्न है।
'फिर
भी अच्छी चिड़िया तो मौजूद है,' उन्होंने
कहा और मशीनी चिड़िया ने फिर एक बार गाना गाया। वही गाना था क्योंकि वह दूसरा गाना
तो जानती ही नहीं थी। पर वह बड़ा मुश्किल गाना था, इसलिए दरबारियों को अभी याद नहीं हुआ
था। राजकीय गाने के मास्टर ने चिड़िया की तारीफ करते हुए कहा कि वह असली चिडिया से
सिर्फ देखने में ही नहीं, बल्कि
अंदर से भी बेहतर है।
'महाराज
और लोगो, आप जानते ही हैं कि
असली बुलबुल पर निर्भर नहीं किया जा सकता। उसका कुछ नहीं पता कि वह क्या गाने लगे,
जबकि मशीनी बुलबुल का सब कुछ तय होता
है। बस एक ही गाना तय है, दूसरा
नहीं! इसके बारे में सब कुछ बताया जा सकता है। हम इसे खोलकर देख सकते हैं, इंसानी सोच की तारीफ कर सकते हैं जिसने
इसमें गोल घूमने का यंत्र लगाया, फिर
वापस वैसे ही बंद कर सकते हैं जैसा होना चाहिए।'
पूरा
दरबार एक सुर में बोला, 'बिल्कुल,
मैं भी यही सोच रहा था।' फिर यह तय किया गया कि राजकीय संगीत
शिक्षक आने वाले इतवार को लोगों को नई बुलबुल दिखाएँगे।
राजा
को लगा कि उन्हें भी चिड़िया की आवाज़ सुनने का मौका मिलना चाहिए । उन्होंने सुना
और ऐसे खुश हुए जैसे ज्यादा चाय पी ली हो। सब कुछ चीनी था। उन्होंने अपनी उँगलियाँ
आसमान की तरफ उठाते हुए कहा,
ओह!'
पर
जिन गरीब मछुआरों ने असली बुलबुल का गीत सुना हुआ था, वे फुसफुसाए, 'यह चिड़िया के गीत की तरह सुंदर तो है
पर कोई कमी है जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।'
असली
बुलबुल को देशनिकाला दे दिया गया।
मशीनी
बुलबुल को राजा के पलंग के पास आराम करने के लिए रेशमी तकिया दिया गया; उसे जो तोहफे मिले थे, उसके आस-पास रख दिए गए। उनमें सोना और
कीमती रत्न भी थे। उसे सर्वोच्च राजकीय रात की मेज के गायक का पद और बाईं ओर का
पहला नंबर दिया गया-राजा का ख्याल था कि बाईं तरफ ज्यादा ऊँची है क्योंकि उसी तरफ
दिल होता है, यहाँ
तक कि एक राजा का दिल भी उधर ही होता है।
राजकीय
संगीत शिक्षक ने पच्चीस भागों में मशीनी बुलबुल पर एक किताब लिखी। वह सिर्फ लंबी
और ज्ञान से भरी ही नहीं थी बल्कि उसमें सबसे मुश्किल चीनी शब्द भी थे, इसलिए सबने उसे खरीद लिया और कहा कि पढ़
ली और समझ भी ली है, क्योंकि
नहीं तो लोग सोचेंगे कि वे बेवकूफ हैं और फिर उनके पेट पर घूँसे मारे जाएँगे।
एक
साल बीत गया। राजा, दरबार
और चीन के सभी लोगों ने सर्वोच्च राजकीय रात की मेज़ के गायक का गाना याद कर लिया
था और यही कारण था कि उन्हें वह इतना अच्छा लगता था; वे खुद इसे गा सकते थे, और गाते थे। गली के बच्चे भी गाते थे 'ज़ि ज़ि ज़िज़्ज़ी, क्लक् क्लक् क्लक् क्लक् '। राजा भी गाता था। ओह, मज़ा आता था।
पर
एक शाम को राजा बिस्तर में लेटा हुआ सुन रहा था और चिड़िया बहुत बढ़िया गा रही थी
कि तभी उसके अंदर आवाज़ हुई : 'क्लाँग!'
वह टूट गई थी। सब पहिए घूम रहे थे और
फिर चिड़िया चुप हो गई।
राजा
पलंग से कूदा, अपने
डॉक्टर को बुलाया पर वह कुछ नहीं कर सका, इसलिए राजा के घड़ीसाज को बुलाया गया। उसने बड़ी मुश्किल से
चिड़िया की मरम्मत की, पर
उसने बताया कि सिलेंडर घिस गए हैं और नए नहीं लग सकते । चिड़िया को रिहाई देनी
पड़ेगी, उसे इतनी बार नहीं
चलाया जाना चाहिए।
यह
बहुत बड़ी दुर्घटना थी। अब सिर्फ साल में एक बार मशीनी चिड़िया को गाने दिया जाता
था और तब भी पूरा गाना गाने में उसे मुश्किल होती थी, पर राजकीय संगीत मास्टर ने बड़े मुश्किल
शब्दों में एक भाषण दिया और बताया कि चिड़िया पहले की तरह बिल्कुल ठीक थी, और थी भी।
पाँच
साल बीत गए। एक बड़ी बदकिस्मती की बात हुई। सब बूढ़े राजा को बहुत प्यार करते थे,
पर वह बीमार पड़ा, सब मान गए कि अब वह ठीक नहीं होगा। कहा
गया कि नया राजा चुन लिया गया था। जब लोगों को सड़क पर मुख्य दरबारी मिलता तो वे
राजा का हाल पूछते थे पर वह सिर हिलाकर सिर्फ एक शब्द कहता था--- 'पी'।
राजा
अपने सोने के पलंग पर पीला और निर्जीव-सा पड़ा था। सारे दरबारी सोच रहे थे कि वह
मर ही गया था और वे नए राजा के पास जाने और उसको इज्जत देने में लग गए। सारे नौकर
गलियों में गप्पें मार रहे थे और सारी नौकरानियाँ कॉफी पीने में लगी हुई थीं। पूरे
महल की हर मंज़िल पर काले कालीन बिछा दिए गए थे ताकि मरते हुए राजा को किसी के
पैरों की आवाज़ से परेशानी न हो; और
इसलिए पूरे महल में जितनी हो सकती थी उतनी चुप्पी थी।
पर
राजा अभी मरा नहीं था। अपने बड़े सोने के पलंग पर पड़ा था। रंग पीला था और वह
हिलडुल भी नहीं रहा था; लंबे-लंबे
मखमल के पर्दे खिंचे हुए थे। एक खिड़की खुली थी और उसमें से आती हवा में पर्दों के
छोर हल्के-हल्के हिल रहे थे। चाँद की चाँदनी राजा पर और मशीनी चिड़िया के हीरों पर
पड़ रही थी।
राजा
मुश्किल से साँस ले रहा था, उसे
लग रहा था जैसे कोई उसकी छाती पर बैठा था। उसने आँखें खोलीं। वहाँ मौत बैठी थी।
उसने राजा का सोने का मुकुट पहना हुआ था, एक हाथ में सोने का राजदंड था दूसरे में राजकीय झंडा। पर्दों
के बीच से अजीब चेहरे राजा की तरफ देख रहे थे। कुछ चेहरे डरावने और बदसूरत थे और
कुछ मामूली और दयालु। ये राजा के अब तक के किए हुए कर्म थे, जिनमें कुछ अच्छे और कुछ बुरे थे। मौत
उसकी छाती पर बैठी थी और वे उसे देख रहे थे।
पहले
एक फिर दूसरा फुसफुसाकर पूछ रहे थे : 'तुम्हें याद है ?' और वे ऐसी बातें बता रहे थे जिनके डर से राजा के माथे पर ठंडा
पसीना आ गया।
“नहीं,
नहीं, मुझे याद नहीं है! यह सच नहीं है!'
राजा चिल्लाया, वह बिनती करने लगा, “संगीत, संगीत, चीनी घंटा बजाओ, जिससे मुझे इनकी बातें सुनाई न दें।'
पर
चेहरे बोलते रहे, और
मौत पक्के चीनी की तरह हर कही हुई बात पर सिर हिलाती रही।
राजा
ने कहा, 'ओ सोने की चिड़िया,
गाओ, गाओ। मैंने तुम्हें अपने हाथों से सोना
और अमूल्य रत्न दिए थे और अपना सुनहरी स्लीपर तुम्हारे गले में लटकाया था, गाओ । कृपा कर गाओ!'
पर
मशीनी चिड़िया वैसी ही चुप खड़ी रही क्योंकि उसमें चाभी भरने वाला कोई नहीं था,
और ऐसे में वह कैसे गा सकती थी।
मौत
खोपड़ी के खोखले छेदों में से राजा को घूरती रही, महल में डरावना सन्नाटा था।
सहसा
एक सुंदर गीत ने सन्नाटा तोड़ दिया। वह बुलबुल थी, जिसने राजा की बीमारी और परेशानी की बात
सुनी थी। वह उसकी खिड़की के बाहर एक डाल पर बैठकर गा रही थी जिससे राजा को आराम और
उम्मीद मिले । जैसे-जैसे वह गा रही थी, पर्दों से झाँकते चेहरे गायब होने लगे, राजा के कमज़ोर शरीर में खून तेज़ी से
बहने लगा। खुद मौत ने गाना सुना और कहा, 'छोटी बुलबुल, कृपा
करके गाती जाओ !'
बुलबुल
ने पूछा, ' क्या तुम मुझे अपना
सोने का राजदंड दोगी। क्या तुम मुझे राजा का झंडा दोगी ? सोने का मुकुट दोगी ?'
मौत
ने एक-एक गीत के बदले में एक-एक चीज़ दे दी; फिर बुलबुल ने शांत गिरजाघर के बगीचे
में जाकर गाया, जहाँ
सफेद गुलाब खिलते हैं जहाँ सफेद फूलों के खुशबूदार पेड़ हैं, जहाँ की घास आने वाले दुःखी लोगों के
आँसुओं से हरी है। मौत को अपने बगीचे की इतनी याद आई कि वह ठंडे सफेद कोहरे की तरह
खिड़की से बाहर उड़ गई।
'धन्यवाद,
धन्यवाद' राजा ने फुसफुसाकर कहा, 'ओ दिव्य चिड़िया, मुझे तुम याद आ गयी हो। मैंने तुम्हें
अपने राज्य से निकाल दिया था, पर
तुम फिर भी आ गईं और तुमने मेरे लिए गाया। तुम्हारे गाने से मुझे सताने वाले बुरे
भूत-पिशाच गायब हो गए और स्वयं मौत मेरा दिल छोड़ गई। मैं तुम्हें क्या इनाम दूँ?'
बुलबुल
ने कहा, 'आपने मुझे पहले ही
बहुत इनाम दे दिए। मैं कभी नहीं भूल सकती कि जब मैंने आपके लिए पहली बार गाया था
तो आपने मुझे अपनी आँखों के आँसू दिए थे, और एक कवि के दिल के लिए वे बेशकीमती हैं। पर अब आप सो जाओ
ताकि आप ठीक और ताकतवर हो जाओ। मैं आपके लिए गाती हूँ।'
छोटी
चिड़िया गाती रही और राजा शांतिपूर्वक सोता रहा।
जब
वह उठा तो उसकी खिड़की में सूरज चमक रहा था, अब उसे ऐसा नहीं लग रहा था कि वह बीमार
है। उसका कोई भी नौकर नहीं आया क्योंकि उन्होंने सोचा था कि वह मर गया होगा,
पर बुलबुल वहीं थी और गा रही थी।
राजा
बोला, 'तुम्हें हमेशा आना
पड़ेगा। जब तुम चाहोगी मैं तभी तुमसे गाने को कहूँगा। और इस मशीनी चिड़िया के मैं
टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा।'
बुलबुल
ने जवाब दिया, 'ऐसा
मत करना! मशीनी चिड़िया जितना अच्छा गा सकती थी, उसने गाया, उसे रखे रहिए। मैं महल में अपना घोंसला
नहीं बना सकती; मुझे
मेरी इच्छा से आने दें, मैं
आपकी खिड़की के बाहर डाल पर बैठकर आपके लिए गाऊँगी। मेरे गाने से आपको खुशी
मिलेगी। मैं सिर्फ उनके बारे में नहीं गाऊँगी जो खुश हैं बल्कि दुखी लोगों के बारे
में भी गाऊँगी। मैं आपके आस-पास अच्छा-बुरा जो होता है सबके बारे में गाऊँगी,
पर फिर भी आपसे छिपी रहूँगी। क्योंकि एक
गाने वाली चिड़िया बहुत दूर- दूर तक उड़ती है। मैं गरीब मछुआरों की कुटिया में
जाऊँगी और किसानों की झोपड़ी में भी। मैं आपके महल और दरबार से बहुत दूर-दूर तक
जाऊँगी। मैं आपके मुकुट से ज्यादा आपके दिल को प्यार करती हूँ, पर यह भी मानती हूँ कि मुकुट में
पवित्रता की गंध होती है। मैं आऊँगी, आपके लिए गाऊँगी, पर आपको एक वायदा करना होगा।'
राजा
ने अपनी राजसी पोशाक पहन ली थी, राजदंड
अपनी छाती से सटाकर बोला, 'मैं
तुमसे कोई भी वायदा कर लूँगा।'
'मेरी
विनती है कि आप किसी को नहीं बताना कि आपके पास एक चिड़िया है जो आपको सब कुछ
बताती है। तब आप और भी अच्छे काम करेंगे।' इतना कहकर बुलबुल उड़ गई।
नौकर
अपने मरे हुए मालिक को देखने कमरे में आए। जब राजा ने 'शुभ प्रभात' कहा तो वे देखते रह गए।
माचिस बेचने वाली
छोटी सी लड़की: हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
यह
नए साल का दिन था और भयंकर सर्दी थी जैसे-जैसे शाम हो रही थी और अंधेरा हो रहा था,
बर्फ तेजी से पड़ने लगी थी। गली में
नंगे पैर और बिना जूतों के एक गरीब और छोटी लड़की चल रही थी। हालांकि यह सत्य है
कि जब वह घर से निकली तो उसके पास चप्पलें थी। लेकिन वह चप्पलें उसके पैरों के लिए
बहुत ज्यादा बड़ी थी। पहले उसकी मां उन चप्पलों को पहनती थी। एक दिन जब दो
गाड़ियां गली से तेजी से गुजरी तो उस लड़की को अपने आप को बचाने के चक्कर में इधर
से उधर भागी जिसके कारण एक चप्पल मिली नहीं और दूसरी चप्पल को एक लड़का लेकर भाग
गया।
इसलिए
वह छोटी लड़की नंगे पैर ही गली में जा रही थी उसके पैर ठंड से लाल और नीली पड़ गए
थे। एक पुरानी पोशाक जो उसने पहनी हुई थी उसमें माचिस की गठरी थी। कुछ माचिस की
गठरी उसने अपने हाथ में ले रखी थी। उसकी माचिसों को किसी ने नहीं खरीदा था नहीं
किसी ने पूरे दिन में एक पैसा भी उसे दिया था।
वह
छोटी लड़की ठंड और भूख से कांपते हुए धीरे-धीरे रेंगती हुई चली जा रही थी और अपने
आपको अभागी महसूस कर रही थी। बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े उसके लंबे बालों पर गिर रहे
थे जो उसकी गर्दन के पास एक सुंदर घेरा बनाए हुए थे। लेकिन उसने ऐसी ठंड में अपनी
सुंदरता के बारे में नहीं सोचा। हर एक खिड़की से प्रकाश बाहर आ रहा था और वह नए
साल के लिए बनाए जा रहे हैं पकवानों की सुगंध को सूँघ सकती थी। वह अपने आपको उसके
बारे में सोचने से नहीं रोक सकी।
दो
घरों के बीच के कोनो में वह बैठ गई और उसने अपने छोटे पैरों को अपने नीचे लगा
लिया। लेकिन तब भी उसे बहुत ज्यादा ठंड लग रही थी। उसे घर जाने की हिम्मत नहीं हो
रही थी क्योंकि उसने अभी तक एक भी माचिस नहीं बेची थी और एक भी पैसा उसके पास नहीं
था। और उसके पिताजी निश्चित ही इस बात से खुश नहीं होते ।इसके अतिरिक्त घर पर भी
सर्दी बहुत ज्यादा थी और उनके घर पर केवल एक छत थी जो छेदों से भरी हुई थी।
अब
उसके छोटे-छोटे हाथ सर्दी से लगभग जम से गए थे ।उसने सोचा कि शायद एक माचिस उसकी
उंगलियों को गर्म कर सकती है यदि वह उसे जलाए। इसलिए उसने एक माचिस निकाली और उसे
जलाया। उसे जलाते ही गर्म और चमकदार एक छोटी मोमबत्ती की तरह लौ निकली। उसने अपने
हाथ उसके ऊपर रखे। यह लौ बहुत ही सुंदर लग रही थी। और उस छोटी लड़की को लग रहा था
कि वह एक बड़े आयरन स्टोव के आगे बैठी हुई है और उसमें प्यारी सी आग जल रही है ।
वह बहुत अच्छे से चली और उस लड़की ने अपने पैरों को गरम करने के लिए फैला लिया. वह
बहुत आरामदायक महसूस कर रही थी लेकिन तभी वह आग बुझ गई स्टोव गायब हो गया कुछ नहीं
बचा सिवाय उसके हाथ में जली हुई तीली के ।
दीवार
के सहारे उसने दूसरी माचिस जलाई यह चमकदार जली। जब दीवार पर यह प्रकाश पड़ रहा था
तब उसने अचानक से एक कमरे में देखा। एक बार की तरह सफेद कपड़ा मेज पर बिछा हुआ था
जिस पर चाइना की प्लेट्स लगी हुई थी और उस पर भुनी हुई बतख जिसको पकाया गया था,
उस पर रखी थी और उसमें से बहुत अच्छी सुगंध
आ रही थी। और सबसे शानदार यह रहा कि वह बत्तख उस पकवान से निकल कर कूद पड़ी और
छोटी लड़की की तरफ उछली और सब बत्तख के सीने में अब भी चाकू और फॉर्क लगे हुए थे ।
लेकिन तीली बुझ गई और कुछ नहीं बचा सिवाय दीवार के।
उसने
दूसरी तीली जलाई। अब हर एक सुंदर क्रिसमस ट्री के नीचे थी, वह बहुत बड़ा था और उसको बहुत सुंदर
तरीके से सजाया गया था। उसने इतना सुंदर क्रिसमस का पेड़ कभी नहीं देखा था। उसने
अब तक सारे क्रिसमस के पेड़ केवल दुकानदारों के यहां कांच से ही देखे थे। उस पेड़
की हरी हरी डालियों पर हजारों मोमबत्तियां जल रही थी और छोटे-छोटे पेंट की हुई
आकृति जो उसने दुकान की खिड़की पर देखी थीं उस पर लगी हुई थी। जैसे ही उस लड़की ने
अपने हाथ उनकी तरफ बढ़ाएं तीली बुझ गई लेकिन फिर भी क्रिसमस के पेड़ पर लगी हुई
लाइट तेजी से चल रही थी और आकाश में बहुत ऊंची थी उसने एक लाइट को ऊपर से गिरते
हुए देखा जो आग की एक लंबी निशानी बना रही थी। 'अब कोई मर गया है' वह बच्ची धीरे से अपनी दादी मां के लिए
बोली, वह व्यक्ति जो उसे
सबसे ज्यादा प्यार करता था और वह अब इस दुनिया में नहीं है। उसने कहा था कि जब भी
तारे गिरते हैं तो आत्मा स्वर्ग में जाती है उसने दीवार के सहारे खड़े होकर दूसरी
तीली जलाई उस तीली की चमक ने उसकी प्रिय दादी मां को उसके सामने लाकर खड़ा कर
दिया।
ओह
दादी मां वह बच्ची चिल्लाई मुझे अपने साथ ले लो मुझे पता है जब यह तीली बुझ जाएगी
तो आप उस गरम स्टोव और शानदार नए साल के उत्सव और सुंदर क्रिसमस के पेड़ की तरह
चली जाओगी। कहीं उसकी दादी मां चली न जाए इसलिए उसने सारी माचिस दीवार के सहारे
खड़ी होकर जला दी।
इन
माचिसों के जलाने से इतनी तेज प्रकाश हुआ जो कि दोपहर के सूरज से भी ज्यादा था।
उसकी दादी मां इतनी भव्य और सुंदर कभी नहीं लगी थी जितनी आज लग रही थी।
उसने
उस छोटी लड़की को अपनी बाहों में ले लिया और दोनों खुशी खुशी ऊंचे बहुत ऊंचे धरती
से ऊपर सर्दी और भूख से दूर स्वर्ग की ओर उड़ चले।
अगली
सुबह जब लोगों को वह मिली तो वह दीवार के सहारे झुकी हुई थी । पुराने साल की अंतिम
शाम को उसके गाल लाल थे और हंसता हुआ चेहरा मौत से जम गया था। 'बेचारी गरीब लड़की वह अपने आप को गर्म
करना चाहती थी' , लोगों
ने कहा।
लेकिन
आश्चर्य वह इतनी खुश क्यों थी लोगों ने पूछा ।लेकिन किसी ने यह कल्पना नहीं की,
कि कितनी सुंदर चीजों को उसने देखा और
नई साल की शाम को कितना खुश होकर वह अपनी दादी मां के साथ स्वर्ग को गई।
नन्हीं जलपरी/लिटिल
मरमेड: हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
बहुत
गहरे समुद्र में समुद्री राजा का महल था। वो अपनी बेटियों और बूढ़ी मां के साथ वहां
रहता था। राजा का महल बेहद ख़ूबसूरत था और वो अपनी बेटियों से बहुत प्यार करता था।
सबसे ज़्यादा प्यार वो अपनी सबसे छोटी बेटी से करता था।
इस
समुद्री राज्य का एक नियम था कि जो भी राजकुमारी 18 साल की हो जाती थी, उसे समंदर की सतह पर जाने का मौक़ा मिलता
था। उससे पहले कोई भी राजकुमारी सतह पर नहीं जा सकती थी। राजा की पांचवीं बेटी की
सालगिरह का मौक़ा था। सभी बहुत ख़ुश थे। राजकुमारी को सभी जन्मदिन की बधाई दे रहे
थे। राजा ने ऐलान किया कि मरीना अब 18 साल की हो गई और उसे सतह पर जाने की इजाज़त
दी जाती है, ताकि
वो बाहरी की दुनिया, धूप
व इंसानी दुनिया देख सके, उसका
आनंद ले सके। राजा ने साथ ही मरीना को आगाह भी किया कि सागर की दुनिया इंसानी
दुनिया से बहुत अलग होती है, इसलिए
वो इंसानों के क़रीब न जाए और समय रहते अपनी दुनिया में लौट आए। यह सुन सबसे छोटी
राजकुमारी इवा भी सतह पर जाने की ज़िद करने लगी, लेकिन राजा ने साफ़ इंकार कर दिया,
क्योंकि वो 18 साल की नहीं हुई थी। इवा
बहुत दुखी हुई, उसे
बेसब्री से अपने 18वें जन्मदिन का इंतज़ार था। इवा बेहद ख़ूबसूरत थी और उसकी सबसे
बड़ी ख़ासियत यह थी कि वो बेहद दयालू थी। समंदर के सभी जीवों से उसे प्यार थे। यही
वजह थी कि वो सबकी फेवरेट थी।
इवा
को इंसानों के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता रहती थी। वो अक्सर अपनी दादी मां
से उन्हीं के बारे में पूछती रहती थी। एक बार यूं ही उसने पूछा कि क्या इंसान
हमारी तरह ही होते हैं या हमसे बेहतर होते हैं?
दादी
में ने बताया कि उनके पैर होते हैं, जबकि हमारे पैर नहीं होते, मछलियों की तरह हमारे शरीर की बनावट
होती है। इंसान बहुत प्रदूषण फैलाते हैं, इसलिए वो हमसे बेहतर नहीं होते। इवा ने जानना चाहा कि क्या
इंसान हमसे ज़्यादा जीते हैं, तो
दादी मां ने समझाया कि वो 100 साल से ज़्यादा नहीं जीते, जबकि मरमेड्स 300 साला तक जी सकती हैं
और मरने के बाद वो समुद्री झाग बन जाती हैं। लेकिन यदि हम जीवनभर भले काम करें,
तो हम अमर हो सकते हैं और हवा की परियां
हमें स्वर्ग ले जाती हैं उनके साथ रहने के लिए।
इसी
तरह समय बीतता गया और इवा का 18वां जन्मदिन आ गया। उसे सबने बधाई दी। वो ख़ुद बेहद
उत्साहित थी, आख़िर
जिस पल का उसे इंतज़ार था, वो
आ गया था। राजा ने कहा कि मैं तुम्हें बाहरी दुनिया दिखा लाता हूं, पर इवा ने कहा कि बाकी सब अकेले गए,
तो वो भी अकेली ही जाना चाहती है। इतने
में उसके दोस्त श्रिंप ने राजा से कहा कि वो उसका ख़्याल रखेगा। राजा ने कहा कि
सूर्यास्त से पहले लौट आना। इवा तेज़ी से सतह की ओर चल पड़ी। बाहर आते ही वो
मंत्रमुग्ध हो गई। इस नई अंजान दुनिया ने उसे मोहित कर लिया। इतने में ही उसे एक
जहाज़ नज़र आया, जिसमें
एक युवक था। उसने श्रिंप से पूछा कि ये क्या चीज़ है। फिर उसने देखा कि वो युवक तो
बिल्कुल उसके गुड्डे जैसा ही है। श्रिंप ने बताया कि वो राजकुमार है और शायद अपना
जन्मदिन मनाने आया है। इवा राजकुमार की ख़ूबसूरती से मोहित हो गई थी और वो गाना
गाने लगी। इतने में ही तूफ़ान आ गया। आसमान में काले बादल छा गए और तेज़ लहरों के
बीच राजकुमार का जहाज़ फंस गया। इस तूफ़ान में जहाज़ डूब गया। इवा ने देखा, तो वो राजकुमार को बचाने चल पड़ी और वो
कामयाब भी रही। राजकुमार को वो किनार पर लाई। इतने में ही किसी के आने की आहट
सुनकर वो छिप गई।
कुछ
लड़कियां वहां से गुज़र रही थीं और उन्होंने देखा कि राजकुमार वहां बेहोश था। इतने
में राजकुमार को भी होश आ गया और उसने देखा कि एक ख़ूबसूरत लड़की वहां खड़ी है।
राजकुमार ने उसे अपनी जान बचाने के लिए धन्यवाद कहा। राजकुमार उसे अपना दिल दे
बैठा। उस लड़की ने भी सच नहीं कहा। एवा ने यह सब देखा, श्रिंप ने कहा कि वो लड़की झूठा श्रेय ले
रही है। पर इवा ने कहा कि कोई बात नहीं, राजकुमार की जान बच गई, वो इसी से ख़ुश है। सूर्यास्त होने को था,
तो दोनों वापस समंदर में लौट आए।
नन्हीं
जलपरी का मन उदास था, क्योंकि
वो राजकुमार को पहली नज़र में ही दिल दे बैठी थी। पर वो जानती थी कि उसे पाना
नामुमकिन है। सागर के नियम ऐसे ही थे कि वो इंसानों से नहीं मिल सकती थी। श्रिंप
ने नन्हीं राजकुमारी की हालत देख उसे एक उपाय सुझाया। वो उसे समुद्री डायन के बारे
में बताने लगा, लेकिन
उसने आगाह भी किया कि इसमें बहुत ख़तरा भी हो सकता है, लेकिन नन्हीं जलपरी को तो बस राजकुमार
को पाने की धुन थी। वो चल पड़ी समुद्री डायन से मिलने।
समुद्री
डायन ने अपने जादुई गोले में देखा कि लिटिल मरमेड उसकी मांद की ओर आ रही है। इतने
में ही गोले में से एक भविष्यवाणी हुई कि राजकुमारी सबसे प्यारी और भावुक मन की
है। वो अपने अच्छे कामों की वजह से एक पवन परी बन जाएगी और उसी व़क्त तुम्हारे पाप
ख़त्म हो जाएंगे और तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। डायन ने कहा कि ऐसा कभी नहीं होगा।
इतने
में ही राजकुमारी डायन तक पहुंच गई और उसने गुज़ारिश की कि वो इंसान बनना चाहती है।
डायन ने कहा कि उस राजकुमार के लिए ऐसा करना सही नहीं, क्योंकि ये तुम्हारे दुखों का कारण भी
बन सकता है। एवा ने कहा वो हर क़ीमत के लिए तैयार है। डायन ने कहा कि मैं तुम्हें
इंसान तो मैं बना दूंगी, लेकिन
तुम्हारी आवाज़ छीन लूंगी। तुम्हें राजकुमार का दिल जीतना होगा, अगर तुम कामयाब रही, तो तुम्हारी आवाज़ भी लौट आएगी, लेकिन यदि ऐसा नहीं हो सका, तो तुम्हारी मौत निश्चित है और तुम
समुद्री झाग बन जाओगी।
नन्हीं
जलपरी ने शर्त मान ली। डायन ने उसे जादुई शर्बत दिया और कहा इसे तट पर जाकर पीना।
मरमेड ने ऐसा ही किया। शर्बत पीते ही वो बेहोश हो गई। इस बीच उसकी मछली जैसी पूंछ
पैरों में बदल गई, पर
उसकी आवाज़ चली गई। उसे होश आया तो सामने राजकुमार था। राजकुमार ने कहा तुम ठीक हो,
पर तुम हो कौन? और सागर तट पर क्या कर रही थी? राजकुमार ने उसे आराम करने की सलाह दी।
अगले
दिन वो चलने लगी, तो
राजकुमार बेहद ख़ुश हुआ। उसने उसके साथ डांस किया और उसकी नृत्य कला से काफ़ी
प्रभावित हुआ। राजकुमार ने कहा कि आज का दिन बहुत अच्छा है, मुझे मेरे जीवन का प्यार भी मिल गया।
नन्हीं परी को लगा कि वो उसकी बात कर रहा है। इतने में ही राजा का आगमन हुआ और
राजकुमार ने राजा से उस लड़की का परिचय करवाया, जो उसे तूफ़ान वाले दिन मिली थी।
राजकुमार ने कहा कि इसी ने मेरी जान बचाई थी। मैं इससे शादी करना चाहता हूं। राजा
भी मान गए। लिटिल मरमेड का दिल टूट चुका था। यह सब देख श्रिंप ने सागर में जाकर
राजा को सब कुछ बताया।
राजा
ने सागर की देवी से प्रार्थना की और सतह पर चला गया। एवा की बहनें डायन के पास गई,
ताकि वो अपना श्राप वापस ले। डायन ख़ुश थी
कि राजा की बेटियां उसके सामने गिड़गिड़ा रही हैं। फिर डायन ने कहा कि उसके पास एक
उपाय है, लेकिन उसके लिए एवा
को राजकुमार की हत्या करनी होगी। यदि लिटिल मरमेड इस जादुई खंजर से राजकुमार को
मार देगी, तो उसे अपनी जलपरी
वाली ज़िंदगी वापस मिल जाएगी। उसकी बहनें वो खंजर लेकर सतह पर गई। सबने देखा इवा
अपने गुड्डे के साथ सागर तट पर एक पेड़ के नीचे उदास बैठी है। राजा ने उसे आवाज़
लगाई। इवा बेहद भावुक हो उठी। राजा ने इवा को वो खंजर दिया, पर इवा ने कहा कि वो राजकुमार को नहीं
मार सकती। पर अपने भावुक पिता और बहनों को देख वो खंजर ले लेती है। वो राजकुमार के
महल तक गई, पर वो राजकुमार को
मार नहीं पाई, क्योंकि
वो उसका प्यार था। वो लौट आई। अपने पिता और बहनों से माफ़ी मांगी। इवा ने कहा कि अब
मेरी मौत निश्चित है। आप सब मुझे माफ़ कर देना। मैं अब झाग में बदलना चाहती हूं।
इस दुनिया से जाना चाहती हूं। इतना कहकर वो समंदर में कूद गई। इतने में ही एक
चमत्कारी शक्ति ने उसे खींच लिया और उसने देखा कि सामने पवन परी है। राजा बेहद ख़ुश
था कि उसकी सबसे प्यारी बेटी की जान बच गई। राजा ने परी को धन्यवाद कहा।
इवा
समझ नहीं पा रही थी। परी ने बताया कि हम आकाश की परियां हैं और तुम अब हमारे साथ
परी बनकर रहोगी। तुम्हारे उदार मन और सागर व इंसानों के प्रति प्यार को देखते हुए
ये तुम्हारा इनाम है। तुम भविष्य में इंसानी रूप में भी जन्म ले सकती हो। लिटिल
मरमेड ने सबको अलविदा कहा और अपने राजकुमार से भी कहा कि अगले जन्म में तुम ही
मेरा प्यार बनोगे। मैं हमेशा तुम से प्यार करूंगी। उसने परी मां को धन्यवाद कहा और
उनके साथ स्वर्ग में चली गई। ऐसा होते ही उस डायन और उसके पापों का भी अंत हो गया।
सभी लोग संतुष्ट थे।
(गीता
शर्मा)
फूलों की राजकुमारी
थंबलीना: हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
बहुत
समय पहले की बात है। एक महिला अकेली रहती थी, उसकी कोई संतान नहीं थी। वो बेहद निराश
हो गई थी कि एक रोज़ वो एक परी के पास गई। उस परी ने उसे एक बीज दिया और कहा घर
जाकर इसे गमले में लगा देना। उस महिला ने वैसा ही किया। जब वो सुबह सोकर उठी,
तो उस बीज में से सुंदर जादुई फूल-
टूलिप उग चुका था। टूलिप की एक पंखुड़ी अधखुली थी। उस महिला ने उस पंखुड़ी को चूमा
तो वो पूरी तरह खुल गई और उसमें से एक बेहद सुंदर और प्यारी से लड़की निकली। वो
लड़की बहुत ही नाज़ुक थी, एकदम
फूल की तरह और वो इतनी छोटी थी कि उस महिला ने उसका नाम थंबलीना रख दिया, क्योंकि वो अंगूठे के आकार जितनी ही थी।
उस महिला ने कहा कि मैं तुम्हारी मां हूं और तुम्हें बहुत प्यार से रखूंगी।
थंबलीना भी बेहद ख़ुश थी। वो फूलों के बिस्तर पर सोती और उसकी मां उसका बहुत ख़्याल
रखती।
एक
रोज़ वो खेल रही थी, तो
एक मेंढक की नज़र उस पर पड़ी। उसने सोचा, यह लड़की तो बहुत ही सुंदर है। मैं अपने बेटे की शादी इससे
करवाऊंगा। वो थंबलीना को उठाकर ले गया। उसे देख मेंढक का बदसूरत लड़का बहुत ख़ुश हुआ,
थंबलीना को उन्होंने पास के तालाब के एक
पत्ते पर रख दिया, जहां
से वो चाहकर भी भाग नहीं सकती थी और ख़ुद शादी की तैयारियो में जुट गए।
थंबलीना
रोने लगी कि तभी एक तितली की नज़र उस पर पड़ी, तो उसने उसे उठाकर फूलों के शहर में छोड़
दिया। तितली थंबलीना के लिए कुछ खाने का इंतज़ाम करने गई थी और इतने में ही एक काले
झिंगुर ने उसे देखा और उसकी ख़ूबसूरती पर फ़िदा हो गया। लेकिन थंबलीना ने उसे कहा कि
हमलोग बहुत ही अलग प्राणी है, झिंगुर
के दोस्तों ने भी कहा कि ये तो बहुत ही अजीब है, ये हमारी तरह सुंदर नहीं है, तो उन्होंने थंबलीना को छोड़ दिया।
थंबलीना घर जाने का रास्ता ढूंढ़ रही थी और जंगल में भटकते-भटकते वो एक बिल के पास
पहुंची। बिल की माल्किन एक बूढ़ी चुहिया थी।
उस
चुहिया ने थंबलीना को आसरा दिया, लेकिन
बदले में उसे घर के सारे काम करने को कहा। साथ ही एक और शर्त रखी कि चाय के समय
थंबलीना को उसे और उसके पड़ोसी चूहे मिस्टर मोल को कहानी भी सुनानी होगी। इतने में
ही वो पड़ोसी चूहा मिस्टर मोल आया और उसने थंबलीना को देखा। थंबलीना पर उसका दिल आ
गया। मिस्टर मोल ने बूढ़ी चुहिया को कहा कि उन्हें एक नया घर देखने चलना है,
तो वो थंबलीना को भी साथ लेकर चल दिए।
रास्ते में थंबलीना ने देखा कि एक चिड़िया घायल अवस्था में बेहोश पड़ी है। थंबलीना
ने उसकी मदद करनी चाही, तो
दोनों चूहों ने कहा कि इसे मरने दो, इसकी क्या मदद करोगी। पर थंबलीना का दिल न माना। उसने चिड़िया
को खाना खिलाया, पानी
पिलाया। उसके घाव पर वो रोज़ मरहम लगाती। एक दिन मिस्टर मोल ने अपने दिल की बात
बूढ़ी चुहिया को कही कि वो थंबलीना से शादी करना चाहता है, तो वो बेहद ख़ुश हुई।
थंबलीना
को जब यह बात पता चली, तो
उसने साफ़ इंकार कर दिया, लेकिन
चुहिया न मानी, तब
थंबलीना ने कहा कि ठीक है, लेकिन
एक आख़िरी बार मुझे उस घायल चिड़िया से मिलना है। थंबलीना जब वहां गई, तो उसने देखा वो चिड़िया ठीक हो चुकी है
और आसमान में उड़ रही है। चिड़िया ने थंबलीना से कहा कि वो जल्दी से उसकी पीठ पर बैठ
जाए, ताकि वो उसे यहां से
दूर ले जा सके। थंबलीना ने वैसा ही किया।
चिड़िया
उसे दूर फूलों के देश में ले आई। थंबलीना ने देखा कि वहां एक सुंदर-सा राजकुमार
है। राजकुमार ने भी थंबलीना को देखा, तो देखते ही उस पर मुग्ध हो गया। थंबलीना को भी राजकुमार से
पहली नज़र में प्यार हो गया। राजकुमार बड़े ही अदब से थंबलीना के पास आया और अपना
परिचय दिया कि मैं इस फूलों के देश का राजकुमार हूं, क्या तुम मेरी रानी बनोगी…? थंबलीना शरमा गई और उसे फूलों के देश की
ओर से पंख भी मिल गए, जिससे
वो राजकुमार के साथ यहां-वहां उड़कर सैर पर जा सके। दोनों ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे।
सीख:
कर भला, हो भला… थंबलीना का मन बहुत ही भावुक और प्यारा
था, इसलिए इतनी
परेशानियों के बावजूद वो अपने मुकाम तक पहुंची। उसने दूसरों की मदद की, तो बदले में उसे भी मदद मिली। साथ ही
उसने अपनी बहादुरी और समझदारी नहीं छोड़ी।
(गीता
शर्मा)
राजा के नए कपड़े:
हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
('राजा के नए कपड़े' स्पेनिश कहानी है। इस पूरे मजेदार कथानक
के विचार के लिए मैं राजकुमार डॉन जुअन मैनुअल का आभारी हूँ। वे 1277 में पैदा हुए
और 1347 में मरे थे।-हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन)
बहुत
दिनों पहले एक राजा था, जो
नए-नए कपड़ों का इतना शौकीन था कि वह अपने राज्य की आमदनी अपने शौक को पूरा करने
में ही लुटा देता था। उसकी कामना हर समय यह रहती थी कि लोग उसके कपड़ों को देखते
ही रहें। उसे न सेना को मजबूत बनाने की फिक्र थी, न ही खेल-तमाशे में वह कोई रस लेता था,
न घूमने-फिरने को ही उसका मन करता था।
हां, अपने नए कपड़ों को
दिखाने के लिए वह चाहे दस कोस चला जाता। दिन और रात के हर घंटे के लिए उसके पास
अलग पोशाक थी। जिस तरह किसी राज्य में राजा के बारे में पूछने पर उत्तर मिलता है
कि वह अपने मंत्रियों की बैठक में है, उसी तरह यदि कोई इस राजा के बारे में पूछता कि वह कहां है,
तो उत्तर मिलता कि वह पोशाक बदलने वाले
कमरे में है।
जिस
शहर में राजा की राजधानी थी वह भरा-पूरा था और वहां रात-दिन आने-जाने वालों की
चहल-पहल रहती थी। कोई ही दिन ऐसा गुजरता होगा, जिस दिन बाहर से आने वाले लोग सैकड़ों
की तादाद में राजधानी के बाजारों में दिखाई न पड़ते हों। इन्हीं में एक दिन दो ठग
भी आए। उन्होंने लोगों को बताया कि वे बुनकर हैं और ऐसा बढ़िया कपड़ा बुनना जानते
हैं कि सारे संसार में दीया लेकर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिल सकता-यहां तक कि कोई उसकी
कल्पना तक नहीं कर सकता। न केवल उस कपड़े का रंग और डिजाइन ही सुन्दर होगा,
बल्कि उसमें यह भी विशेषता होगी कि जो
आदमी अपने पद के योग्य नहीं होगा या हद दरजे का बेवकूफ होगा उसे वे वस्त्र दिखाई
तक नहीं देंगे।
राजा
ने मन-ही-मन सोचा, 'इस
तरह के वस्त्र तो अनमोल होंगे। यदि मैं ऐसे कपड़े पहन लूं, तो मुझे पलक मारते उन लोगों का पता मिल
जाएगा, जो अपने-अपने पदों के
योग्य नहीं हैं। तब मैं अपनी प्रजा में से होशियार लोगों को भी चुन पाऊँगा। इनसे
अपने लिए कपड़े बनवाता हूँ।' और
उसने उन ठगों को कपड़ा बनाने के लिए फौरन ढेर सारा रुपया दिया और कहा कि वे फौरन
काम शुरू कर दें।
ठगों
ने एक करघा लगाया, और
ऐसे दिखाने लगे जैसे कपड़ा बुन रहे हों।पर करघा खाली था। उन्होंने राजा से बढ़िया
रेशम और सोने के तार माँगे थे पर उन्हें इस्तेमाल करने की जगह अपने झोलों में छिपा
लिया। देर रात तक वे खाली करघे के सामने बैठकर ऐसा जाहिर करते थे जैसे कपड़ा बुन
रहे हों।
राजा
ने सोचा, देखूँ तो सही कि वे
कैसे काम कर रहे हैं, पर
यह सोचकर भी उसका दिल अजीब ढंग से धड़कने लगा कि जो बेवकुफ और अपने पद के लिए लायक
नहीं है वह उस कपड़े को देख भी नहीं पाएगा। उसे यह चिंता नहीं थी कि उसके अपने साथ
ऐसा होगा। फिर भी उसने सोचा कि पहली बार यह देखने के लिए कि वे कैसा काम कर रहे
हैं, किसी और को भेजना
चाहिए। पूरे शहर में सबने कपड़े के जादुई गुण के बारे में सुना था। सभी यह जानने
को बेचैन थे कि उनका पड़ोसी कितना बेवकूफ और बेकार है।
राजा
ने सोचा, मैं अपने वफादार
प्रधानमंत्री को भेजता हूँ, वह
देखकर आएगा कि जुलाहों का काम कैसा चल रहा है। वह होशियार और अपने काम में लायक
आदमी है। अगर कोई जाँच कर सकता है तो यह वही होगा।
प्रधानमंत्री
अच्छे स्वभाव वाला बूढ़ा आदमी था। जब वह उस कमरे में पहुँचा जहाँ जुलाहे काम कर
रहे थे तो उसने देखा कि करघा खाली था। उसने अपनी आँखें बंद कीं, फिर खोलीं, और सोचने लगा, 'हे भगवान, मुझे बचाओ! मुझे तो एक भी चीज़ दिखाई
नहीं दे रही।' फिर
भी वह कुछ बोला नहीं।
ठगों
ने उसे करघे के पास बुलाया जिससे वह उनके बनाए कपड़े का रंग और डिज़ाइन देख सके।
खाली करघे की तरफ इशारा करके उससे देखने को कहा। बेचारा प्रधानमंत्री, मंत्री करघे के एकदम निकट आकर आंखें
फाड़-फाड़कर देखने लगा, मगर
उसे फिर भी कुछ दिखाई नहीं दिया। दिखाई तो तब देता, जब वहां कुछ होता। उसने मन में सोचा कि
क्या ऐसा भी संभव हो सकता है कि मैं मूर्ख होऊं? मुझे तो इस बात का गुमान तक भी नहीं था।
मगर खैर, अब तो यह बात किसी पर
प्रकट नहीं होनी चाहिए। और भला क्या ऐसा भी हो सकता है कि मैं अपने पद के योग्य न
होऊं? ओह! यह बताने से तो
कतई काम नहीं चलेगा कि मुझे कपड़ा दिखाई नहीं देता।
“अरे,
आपने हमारे काम के बारे में अभी तक भी
कुछ नहीं बताया!” दोनों
ठगों में से एक बोला।
“ओह!
यह कपड़ा तो बहुत सुन्दर है, बहुत
लुभावना है।” बूढ़े
मंत्री ने कहा। फिर और भी निकट से अपने चश्मे को संभालते हुए उसने कहा, “डिजाइन भी सुन्दर है और रंग का तो कहना
ही क्या! अब मैं राजा साहब को कपड़े का राई-रत्ती हाल बता सकता हूं। बहुत शानदार
कपड़ा है।”
“हमें
यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई,” दोनों
बुनकर बोले। फिर उन्होंने कपड़े के डिजाइन और रंग की बारीकियां मंत्री को समझाने
का प्रयत्न किया। मंत्री सब ध्यान देकर सुनता रहा, जिससे राजा साहब के सामने कपड़े की
सुन्दरता बयान करते समय वह सारी बातें बता सके और उन्हीं शब्दों का प्रयोग कर सके,
जिनके द्वारा दोनों ठग कपड़े की
बारीकियां समझा रहे थे। उसने ऐसा ही किया भी ।
अब
दोनों ठगों ने और अधिक रेशम, सोने
के तारों और धन की फरमाईश की तुरन्त सब चीज़ें उन्हें दी गईं। उन्होंने सब चीज़ों
का भी निवाला बनाया और आराम के साथ फिर अपने निरर्थक धंधे में जुट गए। वही 'खटाखट, खटाखट' और हवा की बुनाई जारी रही।
एक
दिन राजा ने एक दूसरे कुशल मंत्री को यह देखने के लिए भेजा कि बुनकरों का काम कैसा
चल रहा है। उसके साथ भी बिलकुल वैसी ही घटना घटी । वह यह देखकर हक््का-बक्का रह
गया कि करधों पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा।
“क्या
खयाल है आपका? कपड़ा
सुन्दर है या नहीं?” दोनों
ठगों ने उससे भी यही सवाल किया और साथ-के-साथ उस झूठ-मूठ के कपड़े के डिजाइन और
रंगों की सुन्दरता बखानना आरंभ कर दिया।
'मैं
मूर्ख तो नहीं हूं', उस
मंत्री ने सोचा, “न
ही मैं अपने पद के लिए अयोग्य हूं। हां, यह हो सकता है कि राजा साहब ने जिस काम के लिए मुझे अब भेजा है
मैं उसी के अयोग्य होऊं। है तो यह बड़ी अजीब बात, पर पता इसका किसी को नहीं चलना चाहिए
इसलिए उसने भी कपड़े की तारीफ और उसके रंगों तथा डिजाइन को खूब सराहा। फिर राजा के
पास जाकर बोला, “कपड़ा
वास्तव में बहुत ही प्यारा है और आज तक किसी ने ऐसा कपड़ा नहीं देखा होगा।"”
शहर में जिसके मुंह से सुनो कपड़े की
तारीफ हो रही है।
अब
तो राजा ने उसे स्वयं भी देखना चाहा। बाद में तो सामने आएगा ही, मगर करघे पर बुना जाता देखने में और ही
बात थी। इसलिए राजा ने बहुत से सभासदों को अपने साथ लिया और कपड़ा देखने के लिए चल
दिया। उन सभासदों में वे ईमानदार और बुद्धिमान मंत्री भी थे, जो पहले कपड़ा देखने गए थे। जब राजा
दोनों ठगों के पास पहुंचा तो उसने देखा कि दोनों-के-दोनों पसीने-पसीने हो रहे हैं
और तेज़ी के साथ मशीन की तरह अपना काम कर रहे हैं, हालांकि उनके पास एक भी सूत का रेशा
नहीं था।
“कितना
शानदार कपड़ा है!” दोनों
मंत्रियों ने कहा, “महाराज,
तनिक और निकट चलकर देखिए और इस कपड़े के
डिजाइन और रंगों को सराहिए।” उन्होंने
खाली करघों की ओर इशारा किया। वे समझते थे कि चाहे उन्हें कपड़ा दिखाई न दे रहा हो,
मगर औरों को तो जरूर दिखाई दे ही रहा
होगा।
“यह
क्या? राजा सोचने लगा,
'वाह! यहां तो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा
है। वह तो बड़ी गड़बड़ की बात हुई। क्या यह हो सकता है कि मैं बेवकूफ होऊं या राजा
होने की योग्यता मुझमें न हो। यह तो मेरे लिए बड़ी खराब बात होगी और सारे राज्य
में मेरी बदनामी हो जाएगी ।” इसलिए
उसने प्रकट में कहा, “हां
सचमुच कपड़ा बहुत सुन्दर है। मैं इसे बहुत पसन्द करता हूं।” और वह खाली करघों की ओर देख-देखकर इस
तरह मुस्कराने लगा, मानो
डिजाइन की परख करने के बाद वह उस पर मोहित हो गया हो। यह तो वह किसी भी तरह
स्वीकार करने को तत्पर नहीं था कि उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है। लोगों ने “वाह-वाह” की झड़ी लगा दी। जितने मुंह उतनी बातें-'कपड़ा सुन्दर है, बढ़िया है, शानदार है, रोबीला है...ऐसा है, वैसा है..' और सभी प्रसन्न हो रहे थे, मानो उन्होंने कपड़े को अपनी आंखों देखा
है। राजा ने तुरन्त उन्हें 'राजकीय
बुनकर' के पदक प्रदान किए और
आज्ञा दी कि उन पदकों को वे अपने-अपने कोटों के काजों में लगा लें। राजा के
सभासदों ने उसे सलाह दी कि उन मूल्यवान कपड़ों को आने वाले महासम्मेलन के दिन पहना
जाए। राजा ने उनकी बात मान ली।
जिस
दिन महासम्मेलन का जुलूस निकलना था उससे पहली रात को दोनों ठग जागकर काम करते रहे
और बीस हंडे उन दोनों ने जलवाए रखे! हर आदमी देख सकता था कि वे दोनों राजा के नए
कपड़े तैयार करने में ज़मीन-आसमान एक कर रहे हैं। उन लोगों ने ऐसा दिखाया मानो
कपड़ा करघों पर से उतर गया है। अब उन्होंने बड़ी-बड़ी तेज़ कैंचियां लीं और बड़े
कायदे से हवा में ही चलाया। फिर बिना धागे की सूईयां लेकर ऐसा दिखावा किया,
मानो कपड़े सिए जा रहे हैं। अन्त में
जुलूस के समय से थोड़ी ही देर पहले वे हाथ-पैर झाड़कर निबट गए, मानो बड़ा भारी किला फतह कर डाला हो।
उन्होंने संदेशवाहक से कहा, “देख
नहीं रहे हो कपड़े तैयार हो गए हैं? राजा साहब को सूचना दो।”
संदेशवाहक
तुरन्त जाकर राजा को खबर दे आया, “महाराज,
बहुत बढ़िया कपड़े सिलकर तैयार हो गए
हैं। मैंने अपनी आंखों से देखे हैं ।”
राजा
अपने साथियों को लेकर स्वयं तैयार कपड़ों को देखने के लिए आया। ठगों ने अपने एक-एक
हाथ फैलाकर इस तरह दिखाए, मानो
बड़े कीमती कपड़े पहन रखे हों। एक बोला, “देखिए, महाराज,
इस प्रकार के कपड़े सारी दुनिया में
देखने को नहीं मिलेंगे। यह देखिए, गले
की काट बिलकुल नए तर्ज की है और आस्तीन के घुमाव पर झोल की छाया तक नहीं है और कमर
तो मानो स्वयं राजा की कमर का मुकाबला कर रही है। हुजूर, इन कपड़ों को पहनकर न केवल आप अपने
राज्य के राजा दिखाई देंगे, बल्कि
फैशन के राजा भी कहलायेंगे। इन कपड़ों की बारीकी को देखिए। इसकी वजह से इनमें वज़न
भी मकड़ी के जाले से अधिक नहीं है। जो उन्हें पहनता है उसे यही मालूम नहीं होता कि
वह कुछ पहने हुए भी है। लेकिन इसी में तो इन कपड़ों की खूबसूरती छिपी हुई है।'”
“जी
हां, यह बात सौ फीसदी सही
है।” सारे सभासद बोल उठे,
मगर वास्तव में उन्होंने देखा कुछ नहीं
था, क्योंकि था ही कुछ
नहीं, जिसे वे देखते।
“अगर
महाराज अपने कपड़े उतार डालें, तो
हम यहीं शीशे के सामने महाराज को ये नए शानदार वस्त्र पहना दें।” ठगों ने कहा।
राजा
ने अपने सारे कपड़े उतार डाले। ठगों ने एक के बाद एक राजकीय वस्त्र राजा को पहनाने
का दिखावा किया और राजा भी जैसे-जैसे वे कहते गए वैसे-वैसे हरकत करता गया। यही
नहीं, लोगों को यह दिखाने
के लिए कि वह अपने नए वस्त्रों को कितने ढंग से पहन रहा है, शीशे के सामने खड़े राजा साहब कभी झुकते,
कभी सीधे होकर कॉलर झटकाते मालूम होते।
सभी
लोग चिल्ला उठे, “वाह-वाह!
कितने नफ़ीस कपड़े हैं! कमाल है, ऐसा
नमूना आज तक नहीं देखा था। रंग तो इन्द्रधनुष को मात करते हैं। डिजाइन आज तक ऐसा
नहीं निकला था। बहुत शानदार राजसी पोशाक है।”
मुख्य
चोबदार ने कहा, “महाराज,
आपका छत्र आपको ले जाने के लिए बाहर
प्रतीक्षा कर रहा है।”
“ठीक
है, हम तैयार हैं!”
राजा ने कहा, “क्यों, फिट हो गए न?” और वह कॉलर ठीक करता हुआ शीशे में अपने
को अकड़कर देखने लगा, मानो
उन नए वस्त्रों में अपने जंचाव को स्वयं भी जांच रहा हो।
राजा
के लम्बे लटकते चलने वाले चोगे को उठाने वाले दासों ने नीचे झुककर ऐसा दिखावा किया,
मानो सचमुच पोशाक को कायदे से उठाकर चल
रहे हों। वे भी यह नहीं चाहते थे कि कोई यह कह सके कि उन्होंने हाथ में कुछ उठा
नहीं रखा है अथवा उन्हें वस्त्र दिखाई नहीं देते।
इस
प्रकार शानदार छत्र के नीचे, चंवर
डुलवाता हुआ राजा जुलूस के आगे-आगे चला। सड़क के दोनों ओर खड़े तथा खिड़कियों पर
लदे स्त्रियों और पुरुषों ने गला फाड़-फाड़कर राजा के कपड़ों की प्रशंसा की,
“क्या सुन्दर और फिट पोशाक है!” क्या शानदार फैशन है! संसार का कोई
वस्त्र इनका मुकाबला नहीं कर सकता। कितना सुन्दर चोगा लटकता जा रहा है।”
वास्तव
में कोई भी यह नहीं चाहता था कि वह जो काम कर रहा है उसके अयोग्य ठहरा दिया जाए
अथवा मूर्ख मान लिया जाय । इसलिए राजा ने आज तक जितनी पोशाकें पहनी थीं, उनमें से यह पोशाक सबसे अधिक सफल सिद्ध
हुई। यह दूसरी बात है कि पोशाक वास्तव में थी ही नहीं।
अन्त
में एक छोटे-से बच्चे ने चिल्लाकर कहा, “देखो तो, राजा
नंगा है।”
'लो,
सुनो तो इस अबोध बालक की बात!' बच्चे का पिता घबराकर बोला। परन्तु बात
ने जड़ पकड़ ली और लोग एक-दूसरे के कान में खुसर-फुसर करने लगे, “सच ही राजा नंगा है।”
अन्त
में सब लोग चिल्ला पड़े, “राजा
ने कोई कपड़ा नहीं पहन रखा है। सब वहम है।”
राजा
बड़े चक्कर में पड़ा, क्योंकि
मन-ही-मन वह समझ रहा था कि वे लोग सही कह रहे हैं। मगर उसने सोचा कि जब इसे शुरू
ही कर दिया गया है, तो
अन्त करके छोड़ना चाहिए, नहीं
तो बड़ी हेठी होगी...जुलूस आगे बढ़ता चला गया और दास लोग उस पोशाक को थामे लिए
चलते रहे, जो थी ही नहीं।
राजकुमारी और मटर का
दाना: हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
एक
समय की बात है एक राजकुमार था जो शादी करना चाहता था । उसके लिए चाहिए थी एक
राजकुमारी । उसकी परियों ने उसे बहुत ही प्यार से पाला था । इसलिए उसकी यह
प्रतिज्ञा और आग्रह था कि उसकी होने वाली पत्नी भी उसके लिए सही मायने में
राजकुमारी हो।
लेकिन
उसके राज्य में ऐसी कोई भी राजकुमारी नहीं थी जो सही मायने में उसके लिए राजकुमारी
बन सके । इसलिए राजकुमार अपनी पत्नी की तलाश में सारी दुनिया घूमने लगा । जो कोई
भी राजकुमारी मिलती उसमें कोई न कोई खामी होती थी। किसी की नाक ऊंची थी तो किसी का
कद छोटा था किसी की चाल में खोट था। तो किसी की आवाज में खोट था। इतनी तलाश के
बावजूद भी ऐसी कोई भी । राजकुमारी नहीं मिली जो वह अपनी पत्नी बना सके वह निराश
होकर अपनी राज्य लौट आया। उसने सोचा कि शायद उसके जीवन में पत्नी का सुख है ही
नहीं।
एक
दिन जब वह अपने महल वापस लौटे तो जोर की बारिश होने लगी। आसमान में काले बादल छा
गए। और कड़कती बिजली की आवाज ने महल की दीवारों को हिला कर रख दिया । महल के पास
सभी लोग इकट्ठा होकर आग जलाकर कुदरत के कहर को देखने लगे। तभी महल की मुख्य द्वार
पर किसी की गेट खटखटाने की आवाज आई ।
राजकुमार
के पिता ने यानी महाराज ने जब दरवाजा खोला। तो बाहर एक बहुत ही सुंदर राजकुमारी
खड़ी हुई थी। उसके लंबे सुनहरे घने बाल बारिश में भीग रहे थे । और उसके रेशम के
जूतों से पानी टपक रहा था । उसने कहा कि वह एक राजकुमारी है। उसने कहा कि वह
नजदीकी राज्य से अपने राज्य वापस लौट रहे थे । उसकी ऐसी अवस्था को देखकर महाराज को
विश्वास नहीं हुआ कि वह एक राजकुमारी है।
महाराज
ने सोचा कि क्या वह सच बोल रही है । महाराज उन्हें भीतर ले आया । और सभी से परिचय
करवाया महारानी ने कहा । तुम्हारी ऐसी दशा पर भरोसा करना मुश्किल है । मैंने कभी
इतनी अस्त-व्यस्त राजकुमारी नहीं देखी ।
चतुर
रानी को दाल में कुछ काला नजर आया क्योंकि उन्हें महल की सुरक्षा जो करनी थी ।
महारानी ने असलियत जानने के लिए एक युक्ति की । उन्होंने घर से एक सूखा मटर का
दाना लिया। और मेहमान कक्ष के भीतर उनके बिस्तर के बीचो बीच रख दिया । और फिर उस
मटर के ऊपर अच्छे से अच्छे मुलायम गद्दे रख दिए।
इतने
आकर्षक मुलायम गद्दे किसी ने नहीं देखे होंगे । इन गद्दों से राजकुमारी की पसंद का
अंदाजा लगाया जा सकता था। पहला गद्दा गहरा मुलायम रंग का। दूसरा बैंगनी रंग का। जो
अच्छे धागों से बना हुआ था। तीसरा सफेद रंग का पट्टे वाले गद्दे। स्प्रिंग वाले
गद्दे । जरी वाले गद्दे बहुत ही अच्छे और मुलायम गद्दे। और सोने की धागों से बनी
हुई गद्दे।
जिसके
ऊपर अच्छे-अच्छे चित्र बने हुए थे ।डिजाइन बने हुए थे । मटर के दाने के ऊपर यह
सारे मुलायम गद्दे रखने के बाद राजकुमारी को उस पर सुलाया गया । मटर के दाने के
ऊपर इतने सारे गद्दे रखने की फिजूल की मेहनत के बाद महारानी बोली । -अब चलें चेक
करते हैं कि वह राजकुमारी है या नहीं ।
इतने
सारे गद्दों के ऊपर सोने के बाद राजकुमारी सुबह जब नाश्ता करने आई। तो खुद को
अस्वस्थ महसूस कर रही थी । महारानी ने राजकुमारी से पूछा क्या अच्छी नींद आई। तो
राजकुमारी ने जवाब दिया । नहीं मैं नहीं सो पाई मुझे बिस्तर पर कुछ चुभ रहा था ।
जो पत्थर से भी ज्यादा सख्त था मुझे लगता है । वह टोपियों में लगाने वाला कोई लोहे
का गोला ही था । जो मेरे पूरे शरीर पर घाव के निशान पड़ गए हैं। सभी घर के सदस्य
हंसने लगे थे।
क्योंकि
वह राजकुमारी असली राजकुमारी थी । और यह सबको पता चल चुका था। क्योंकि इतनी मुलायम
और कोमल त्वचा किसी राजकुमारी की ही हो सकती थी । और फिर राजकुमार ने उसके साथ
राजकुमारी शादी कर ली । और फिर मटर के दाने को बिस्तर से निकालकर राज्य के
संग्रहालय में रख दिया गया । जहां वह मटर आज भी महफूज है।
बत्तख का बदसूरत
बच्चा: हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
एक
दूर के गाँव में एक किसान रहता था। बहुत ज्यादा ज़मीन तो उसके पास नहीं थी,
मगर उसके पास एक छोटा सा तालाब था वहां
कुछ मछलियाँ होती थी किसान कुछ बत्तख भी उसी में पालता था।
एक
बत्तख ने कुछ अंडे दे रखे थे। रोज़ वो अण्डों को सेती, इनमे छः अंडे तो ठीक थे मगर सातवां अंडा
थोड़ा बड़ा था। माँ बत्तख को याद भी नहीं आता था की ये सातवां अंडा उसने दिया कब
था।
शायद
मुझसे ही अंडे गिनने में गलती हुई होगी! माँ बतख सोचा करती। थोड़े दिन में छः
अण्डों से टक टक की आवाज़ आने लगी अण्डों के फूटने का समय हो चला था। मगर सातवें
अंडे में कोई हलचल नहीं हुई! माँ बतख परेशान हुई और उस आखरी अंडे को सेती रही।
थोड़ी
ही देर में बाकी के छः अंडे फूटे और उसमें से पीले पीले बतख के चूज़े निकल आये।
बत्तख के बच्चों ने अंडे से निकलते ही शोर मचाना शुरू किया क्वैक - क्वैक और खाना
ढूँढने में जुट गए। लेकिन सातवां अंडा अभी तक नहीं फूटा था।
आखिर
अगली शाम होते होते आखरी अंडे में भी हलचल हुई। टक टक की आवाज़ आई और थोड़ी ही देर
में आखरी चूज़ा भी अंडे से बाहर आ गया ! लेकिन ये क्या? बाकि प्यारे प्यारे पीले चूज़ों जैसा तो
ये बिलकुल नहीं था, ये
तो भूरा सा कुछ ज्यादा ही बड़ा और बेडौल सा था!
ये
गन्दा सा बदसूरत चूज़ा मेरा कैसे हो सकता है? माँ बतख ने सोचा। खैर बाकी सारे बत्तख
के बच्चे तो ज्यादा खाते ही थे, ये
सातवां वाला उनसे भी ज्यादा खाता था। थोड़े ही दिन में वो आकार में सब चूज़ों से
बड़ा हो गया।
बेचारा
ये बदसूरत बत्तख का बच्चा लेकिन बड़ा दुखी रहता था। बाकी चूज़े न तो उस से बात
करना चाहते न ही उसके साथ खेलना चाहते थे। उनके जैसा प्यारा सा तो ये था नहीं! माँ
बत्तव उसे समझाने की कोशिश करती, कहती,
ओह प्यारे बच्चे तुम बाकियों से इतने
अलग क्यों हो?
ये
सुनकर बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा और दुखी हो जाता। उसकी बेढब चाल को देख कर
किसान के खेत पर रहने वाले और जानवर तो उस पर हँसते ही थे, किसान के बच्चे भी अक्सर उसका मजाक
उड़ाने पहुँच जाते। अक्सर रात में अकेले बैठा बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा रोया
करता।
एक
दिन बहुत दुखी होकर बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा किसान के खेत से भाग गया। पास
में ही जंगल शुरू होता था। वहां से हर सुबह कई चिड़ियों की आवाज़ आती थी, बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा सोचता था
कि वहां जरूर मेरे जैसे भूरे पंखों वाला कोई न कोई रहता होगा। वो पक्का मेरा मजाक
नहीं उड़ाएंगे। यही सोचता बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा जंगल में जा घुसा।
वहां
सच में कई पक्षी थे। रंग बिरंगे, कुछ
झाड़ियों में कुछ पेड़ों पर बैठे। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा दौड़कर उनके पास
जा पहुंचा। उसने सर उठा कर पुकारा, सुनिए,
क्या आप लोगों ने मेरे जैसा भूरे पंखों
वाला कोई बत्तख देखा है? चिड़िया
ने उसे हिक़ारत की नजर से देखा, कुछ
हंस भी पड़े, सबने
ना कह दिया। एक बूढ़े बगुले ने उसे आगे जाने का इशारा कर दिया।
बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा समझा कि शायद आगे कहीं मेरे जैसे बत्तख के बच्चे रहते होंगे
और बूढ़ा बगुला वहीं जाने कह रहा है। वैसे भी बूढ़े ज्यादा बोलते नहीं, इसलिए इशारा किया होगा। यही सोचता हुआ
बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा आगे चल पड़ा, और घने जंगल के अन्दर। वहां पेड़ ज्यादा
घने थे और सूरज की रौशनी मुश्किल से ही ज़मीन तक आती थी। चलते-चलते दोपहर हुई,
फिर शाम भी होने लगी। इसी तरह चलते चलते
जब कुछ दिन बीत गए तो, कहीं
मैं घने जंगल में रास्ता तो नहीं भूल गया? बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा सोचने लगा। तभी आगे एक बड़ा सा
तालाब नज़र आने लगा, बेचारे
बदसूरत बत्तख के बच्चे ने सोचा रात रुक जाने के लिए यही जगह ठीक रहेगी।
जैसे
तैसे उसने रात वहीँ गुजारी, सुबह
हुई तो बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा आगे चलने की सोचने लगा। तभी वहां कुछ जंगली
बत्तखों का एक झुण्ड उसे नज़र आया। तालाब के दूसरे कोने पर उनके घोंसले थे जो रात
में वो देख नहीं पाया था दूसरी बत्तखों को। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा दौड़ा
भागा उनके पास पहुंचा। एक नए बत्तख को देख कर पहले तो जंगलीबत्तखों ने उसे घेर लिया,
फिर पीछे से कोई बत्तख का बच्चा
चिल्लाया, जरा इसकी बेढब चाल तो
देखो !! फिर जोर का ठहाका लगा, बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा झेंप गया, लेकिन
उसने सोचा इनसे पूछ कर देखते हैं, शायद
इन्हें मेरे जैसी बत्तखों का पता मालूम हो।
मगर
जंगली बत्तखों ने कहा कि उस जैसी बदसूरत और बेढब चाल वाली बत्तख तो उन्होंने कभी
देखी ही नहीं ! हां जंगल के कोने पर एक छोटा तालाब है शायद वहां कोई बदसूरत बत्तख
मिल जाये। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा सोचने लगा कि उसे आगे जाना चाहिए या वापिस
किसान के घर ही लौट जाना चाहिए। इतने मेँ दूसरे बत्तख के बच्चों ने उसे चोंच मारनी
शुरू कर दी ! झुण्ड के सरदार ने कहा, तुम्हारी बदसूरती से हमारे झुण्ड की शोभा बिगड़ रही है लड़के,
दूसरे तालाब का पता तुम्हें बता दिया है,
फ़ौरन उस तरफ भाग जाओ !
बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा क्या करता वो कुछ दिन का सफ़र और तय कर के जंगल के किनारे
तक पहुंचा। वहां सचमुच एक दूसरा तालाब था। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा सोचने लगा,
वो बड़े तालाब वाले सरदार बत्तख इतने
बुरे भी नहीं थे, उन्होंने
अपने साथ नहीं रखा क्योंकि बच्चे मेरा मजाक उड़ा रहे थे, रास्ता तो उन्होंने बिलकुल सही बताया
था। तालाब के किनारे पहुँच कर वो इधर उधर देखने लगा। झाड़ियाँ के पास उसे कुछ और
जंगली बत्तख दिख गए। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा फ़ौरन उनके पास पहुंचा और पूछा
कि क्या वो उस जैसी किसी बत्तख का पता जानते हैं। मगर इस बार भी बत्तखों ने उसे
देख कर मुंह बनाया और कहा कि फ़ौरन यहाँ से भाग जाये, इस तालाब के पास बन्दूक वाले शिकारी भी
आते हैं और बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा जरूर शिकारियों की गोली का निशाना बन
जाएगा। बातें हो ही रही थी की एक तेज़ आवाज़ आई, सारे जंगली बत्तख क्वैक - क्वैक करते
पंख फड़-फड़ाते एकतरफ़ भागे, बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा कुछ समझ नहीं पाया। इतने में दूसरी तेज़ आवाज़ आई और एक दो
जंगली बत्तख ढेर हो गए।
बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा समझ गया कि ये शिकारियों की बन्दूक की आवाज़ है। वो जान बचा
कर दूसरी तरफ़ भागा। भागता हुआ वो एक छोटे से झोंपड़े के पास पहुंचा, इतनी देर में उसे भूख भी लग आई थी। तभी
उसे झौंपड़े के आगे एक टोकरे के नीचे कुछ रोटी के टुकड़े दिखाई दिए। उन्हें खाने
बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा टोकरे के नीचे जा घुसा। ठप्प की आवाज़ आई और टोकरा
बंद हो गया।
दरअसल
वो झोंपड़ा एक बुढ़िया का था जिसे कम नज़र आता था। वो अपनी कुछ मुर्गियों और अपने
कुत्ते के साथ शहर के बाहर ही रहती थी। जंगली चिड़िया पकड़ने के लिए उसने वो फंदा
लगा रखा था। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा देखकर उसने सोचा इसे कुछ दिन अपने पास
रखती हूँ शायद ये कुछ अंडे दे तो उन्हें बाज़ार में बेच कर कुछ पैसे घर आयेंगे।
लेकिन
पिंजड़े में कई दिन बंद रहने के बाद भी बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा कोई अंडे तो
दे नहीं रहा था। बुढ़िया ने एक दिन कहा, एक दो दिन और देखती हूँ। अगर फिर भी इसने अंडे नहीं दिए तो इसे
पका कर तो खाया ही जा सकता है। ये सुनते ही बुढ़िया के कुत्ते और मुर्गियों की
बांछे खिल गई। मुर्गियां चिल्लाई, हां
हां !! तू कुछ दिन और अंडे मत दे, फिर
बुढ़िया तेरी गर्दन तोड़ कर, तेरे
गंदे पंख नोचेगी और तुझे कढ़ाई में पकाएगी। तेरे पिंजड़ा खाली करते ही ये जगह
वापिस हमें मिल जाएगी। कुत्ता भी अपने पंजे चाटता हुआ बोला, अगर बुढ़िया इसे पकाएगी तो मुझे भी कुछ
हड्डियाँ चबाने को मिल जाएँगी ! बड़े दिन हुए हडडियाँ चटकाए, मजा आ जायेगा !
अब
तो बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा सोच में पड़ गया, हे भगवान् ! मैं ये कहाँ आ फंसा ! इस
से तो किसान का घर ही ठीक था। कम से कम कोई मेरे पंख नोच कर पकाने की तैयारी तो
नहीं कर रहा होता था। अब तक किसान के घर से निकले कुछ महीने बीत चुके थे और
गर्मियां बीत रही थी। एक रात जब बुढ़िया पिंजड़े का दरवाज़ा ठीक से बंद किये बिना
सोयी तो बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा वहां से निकल भागा। जान बचा कर वो बिना रुके
भागता रहा। अब जाड़ों का मौसम नजदीक आ गया था और खाना भी आसानी से नहीं मिलता था।
एक दिन ऊपर आसमान में उसने देखा कि लम्बी गर्दन, पीली चोंच और बड़े बड़े पंख वाले कई
पक्षी दक्षिण की तरफ उड़े जा रहे हैं। जाड़ों में वो गर्म इलाकों की तरफ़ जा रहे
थे। बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा सोचने लगा, काश कि मैं एक दिन के लिए ऐसा ख़ूबसूरत
दिखता !
फिर
जाड़ों का मौसम आ गया, तालाबों
का पानी जमने जगा, बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा आगे चलता रहा। एक दिन बर्फ़ गिरी और भूखा बेचारा बदसूरत
बत्तख का बच्चा ठण्ड से बेहोश हो गया। वहीं से एक किसान गुजर रहा था उसकी नज़र
बेहोश पक्षी पर पड़ी, उसने
उठा कर अपने झोले में डाला और सोचा ये बच्चों के लिए अच्छा खिलौना होगा। किसान की
गर्म झोपड़ी में बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा होश में आया, किसान के बच्चों ने कुछ दाना पानी दिया
तो उसकी जान में जान आई। इस तरह बर्फ़-बारी में भी बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा
जिन्दा बच गया।
लेकिन
किसान गरीब था और अगली वसंत ऋतू आने तक बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा इतना बड़ा हो
गया था की किसान और उसके बच्चों को उसे झोपड़ी में रखने में दिक्कत होने लगी। एक
दिन सबने सोचा इसे घर में रखना अब ठीक नहीं। अगली सुबह किसान ने उसे एक झोले मेँ
डाला और पास ही मौजूद राजा की झील में फेंक आया।
बेचारा
बदसूरत बत्तख का बच्चा कई दिन से पानी से दूर रहा था। उसने जैसे तैसे पैर चलाये और
सतह पर आया, उसे
तैरने में मज़ा आ रहा था। अचानक पानी में उसने अपनी परछाई देखी। तभी दक्षिण की ओर
गए पक्षी वापिस अपने तालाबों में लौटने लगे, लम्बी गर्दन, पीली चोंच और बड़े पंखों वाले हंस भी घर
लौटे। फिर बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा समझ पाया कि वो बत्तख तो था ही नहीं ! वो
तो हंस था !
हंसों
के झुण्ड ने उसे घेर लिया, तुम
कहाँ गायब रहे ? हमारे
साथ दक्षिण तो गए नहीं थे तुम ? क्या
तुम किसी और झुण्ड के हो ? सबने
अलग अलग सवाल पूछा। वो बत्तखों से कई गुना ख़ूबसूरत हो चुका था, किसी ने उसे बेचारा बदसूरत बत्तख का
बच्चा भी नहीं कहा। हँसते हुए वो नया हंस बोला, ये तो एक लम्बी कहानी है !
हंस
की चाल पर फ़िदा राजकुमारी और उसकी सहेलियाँ भी उसे खिलाने, उस से खेलने आतीं।
वो
बेचारा बदसूरत बत्तख का बच्चा नहीं था, वो हमेशा से हंस था।
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