Ad Code

ज्ञानबर्धक कथाएं भाग-1

 प्रेम की परिभाषा


🔴 एक बार संत राबिया एक धार्मिक पुस्तक पढ़ रही थीं। पुस्तक में एक जगह लिखा था, शैतान से घृणा करो, प्रेम नहीं। राबिया ने वह लाइन काट दी। कुछ दिन बाद उससे मिलने एक संत आए। वह उस पुस्तक को पढ़ने लगे। उन्होंने कटा हुआ वाक्य देख कर सोचा कि किसी नासमझ ने उसे काटा होगा। उसे धर्म का ज्ञान नहीं होगा। उन्होंने राबिया को वह पंक्ति दिखा कर कहा, जिसने यह पंक्ति काटी है वह जरूर नास्तिक होगा।


🔵 राबिया ने कहा- इसे तो मैंने ही काटा है।


🔴 संत ने अधीरता से कहा- तुम इतनी महान संत होकर यह कैसे कह सकती हो कि शैतान से घृणा मत करो। शैतान तो इंसान का दुश्मन होता है।


🔵 इस पर राबिया ने कहा- पहले मैं भी यही सोचती थी कि शैतान से घृणा करो। लेकिन उस समय मैं प्रेम को समझ नहीं सकी थी। लेकिन जब से मैं प्रेम को समझी, तब से बड़ी मुश्किल में पड़ गई हूं कि घृणा किससे करूं। मेरी नजर में घृणा लायक कोई नहीं है।


🔴 संत ने पूछा- “क्या तुम यह कहना चाहती हो कि जो हमसे घृणा करते हैं, हम उनसे प्रेम करें।“


🔵 राबिया बोली- प्रेम किया नहीं जाता। प्रेम तो मन के भीतर अपने आप अंकुरित होने वाली भावना है। प्रेम के अंकुरित होने पर मन के अंदर घृणा के लिए कोई जगह नहीं होगी। हम सबकी एक ही तकलीफ है। हम सोचते हैं कि हमसे कोई प्रेम नहीं करता। यह कोई नहीं सोचता कि प्रेम दूसरों से लेने की चीज नहीं है, यह देने की चीज है। हम प्रेम देते हैं। यदि शैतान से प्रेम करोगे तो वह भी प्रेम का हाथ बढ़ाएगा।


🔴 संत ने कहा- “अब समझा, राबिया! तुमने उस पंक्ति को काट कर ठीक ही किया है। दरअसल हमारे ही मन के अंदर प्रेम करने का अहंकार भरा है। इसलिए हम प्रेम नहीं करते, प्रेम करने का नाटक करते हैं। यही कारण है कि संसार में नफरत और द्वेष फैलता नजर आता।“


🔵 वास्तव में प्रेम की परिभाषा ईश्वर की परिभाषा से अलग नहीं है। दोनो ही देते हैं बदले में बिना कुछ लिये। ईश्वर, माता-पिता, प्रकृति सभी बिना हमसे कुछ पाने की आशा किये हमें देते हैं, और यह इंतजार करते रहते हैं कि; हम कब उनसे और अधिक पाने के योग्य स्वयं को साबित करेंगे और वे हमें और अधिक दे सकेंगे। प्रेम को जानना है तो पेडों और फूलों को देखिये तोडे और काटे जाने की शिकायत तक नहीं बस देने में लगे हैं।


👉 ईर्ष्या या नफ़रत


🔵 एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल से प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बडे़ आलू साथ लेकर आयें, उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिये जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं। जो व्यक्ति जितने व्यक्तियों से घृणा करता हो, वह उतने आलू लेकर आये।


🔴 अगले दिन सभी लोग आलू लेकर आये, किसी पास चार आलू थे, किसी के पास छः या आठ और प्रत्येक आलू पर उस व्यक्ति का नाम लिखा था जिससे वे नफ़रत करते थे।


🔵 अब महात्मा जी ने कहा कि, अगले सात दिनों तक ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें, जहाँ भी जायें, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू आप सदैव अपने साथ रखें। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया कि महात्मा जी क्या चाहते हैं, लेकिन महात्मा के आदेश का पालन उन्होंने अक्षरशः किया। दो-तीन दिनों के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू किया, जिनके आलू ज्यादा थे, वे बडे कष्ट में थे। जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताये, और शिष्यों ने महात्मा की शरण ली। महात्मा ने कहा, अब अपने-अपने आलू की थैलियाँ निकालकर रख दें, शिष्यों ने चैन की साँस ली।


🔴 महात्माजी ने पूछा – विगत सात दिनों का अनुभव कैसा रहा? शिष्यों ने महात्मा से अपनी आपबीती सुनाई, अपने कष्टों का विवरण दिया, आलुओं की बदबू से होने वाली परेशानी के बारे में बताया, सभी ने कहा कि बडा हल्का महसूस हो रहा है… महात्मा ने कहा – यह अनुभव मैने आपको एक शिक्षा देने के लिये किया था…


🔵 जब मात्र सात दिनों में ही आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिये कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफ़रत करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर होता होगा, और वह बोझ आप लोग तमाम जिन्दगी ढोते रहते हैं, सोचिये कि आपके मन और दिमाग की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, उनके कारण तुम्हारे मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक उन आलुओं की तरह…. इसलिये अपने मन से इन भावनाओं को निकाल दो।


🔴 यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफ़रत मत करो, तभी तुम्हारा मन स्वच्छ, निर्मल और हल्का रहेगा, वरना जीवन भर इनको ढोते-ढोते तुम्हारा मन भी बीमार हो जायेगा


👉 आपसी मतभेद से विनाश :-


🔵 एक बहेलिए ने एक ही तरह के पक्षियों के एक छोटे से झुंड़ को खूब मौज-मस्ती करते देखा तो उन्हें फंसाने की सोची. उसने पास के घने पेड़ के नीचे अपना जाल बिछा दिया. बहेलिया अनुभवी था, उसका अनुमान ठीक निकला. पक्षी पेड़ पर आए और फिर दाना चुगने पेड़ के नीचे उतरे. वे सब आपस में मित्र थे सो भोजन देख समूचा झुंड़ ही एक साथ उतरा. पक्षी ज्यादा तो नहीं थे पर जितने भी थे सब के सब बहेलिये के बिछाए जाल में फंस गए।


🔴 जाल में फंसे पक्षी आपस में राय बात करने लगे कि अब क्या किया जाए. क्या बचने की अभी कोई राह है?  उधर बहेलिया खुश हो गया कि पहली बार में ही कामयाबी मिल गयी। बहेलिया जाल उठाने को चला ही था कि आपस में बातचीत कर सभी पक्षी एकमत हुए. पक्षियों का झुंड़ जाल ले कर उड़ चला।


🔵 बहेलिया हैरान खड़ा रह गया. उसके हाथ में शिकार तो आया नहीं, उलटा जाल भी निकल गया. अचरज में पड़ा बहेलिया अपने जाल को देखता हुआ उन पक्षियों का पीछा करने लगा. आसमान में जाल समेत पक्षी उड़े जा रहे थे और हाथ में लाठी लिए बहेलिया उनके पीछे भागता चला जा रहा था. रास्ते में एक ऋषि का आश्रम था. उन्होंने यह माजरा देखा तो उन्हें हंसी आ गयी. ऋषि ने आवाज देकर बहेलिये को पुकारा. बहेलिया जाना तो न चाहता था पर ऋषि के बुलावे को कैसे टालता. उसने आसमान में अपना जाल लेकर भागते पक्षियों पर टकटकी लगाए रखी और ऋषि के पास पहुंचा।


🔴 ऋषि ने कहा- तुम्हारा दौड़ना व्यर्थ है. पक्षी तो आसमान में हैं. वे उड़ते हुए जाने कहां पहुंचेंगे, कहां रूकेंगे. तुम्हारे हाथ न आयेंगे. बुद्धि से काम लो, यह बेकार की भाग-दौड़ छोड़ दो।


🔵 बहेलिया बोला- ऋषिवर अभी इन सभी पक्षियों में एकता है. क्या पता कब किस बात पर इनमें आपस में झगड़ा हो जाए. मैं उसी समय के इंतज़ार में इनके पीछे दौड़ रहा हूं. लड़-झगड़ कर जब ये जमीन पर आ जाएंगे तो मैं इन्हें पकड़ लूंगा।


🔴 यह कहते हुए बहेलिया ऋषि को प्रणाम कर फिर से आसमान में जाल समेत उड़ती चिड़ियों के पीछे दौड़ा. एक ही दिशा में उड़ते उड़ते कुछ पक्षी थकने लगे थे. कुछ पक्षी अभी और दूर तक उड़ सकते थे।


🔵 थके पक्षियों और मजबूत पक्षियों के बीच एक तरह की होड़ शुरू हो गई. कुछ देर पहले तक संकट में फंसे होने के कारण जो एकता थी वह संकट से आधा-अधूरा निकलते ही छिन्न-भिन्न होने लगी. थके पक्षी जाल को कहीं नजदीक ही उतारना चाहते थे तो दूसरों की राय थी कि अभी उड़ते हुए और दूर जाना चाहिए. थके पक्षियों में आपस में भी इस बात पर बहस होने लगी कि किस स्थान पर सुस्ताने के लिए उतरना चाहिए। जितने मुंह उतनी बात. सब अपनी पसंद के अनुसार आराम करने का सुरक्षित ठिकाना सुझा रहे थे. एक के बताए स्थान के लिए दूसरा राजी न होता। देखते ही देखते उनमें इसी बात पर आपस में ही तू-तू, मैं-मैं हो गई. एकता भंग हो चुकी थी। कोई किधर को उड़ने लगा कोई किधर को. थके कमजोर पक्षियों ने तो चाल ही धीमी कर दी. इन सबके चलते जाल अब और संभल न पाया. नीचे गिरने लगा। अब तो पक्षियों के पंख भी उसमें फंस गए.  दौड़ता बहेलिया यह देखकर और उत्साह से भागने लगा. जल्द ही वे जमीन पर गिरे।


🔴 बहेलिया अपने जाल और उसमें फंसे पक्षियों के पास पहुंच गया. सभी पक्षियों को सावधानी से निकाला और फिर उन्हें बेचने बाजार को चल पड़ा।


🔵 तुलसीदासजी कहते है- जहां सुमति तहां संपत्ति नाना, जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना. यानी जहां एक जुटता है वहां कल्याण है. जहां फूट है वहां अंत निश्चित है. महाभारत के उद्योग पर्व की यह कथा बताती कि आपसी मतभेद में किस तरह पूरे समाज का विनाश हो जाता है।


👉 "आखिर यह भी तो नही रहेगा"


🔵 एक फकीर अरब मे हज के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर एक गांव मे शाकिर नामक व्यक्ति के दरवाजे पर रूका। शाकिर ने फकीर की खूब सेवा किया। दूसरे दिन शाकिर ने बहुत सारे उपहार दे कर बिदा किया। फकीर ने दुआ किया -"खुदा करे तू दिनो दिन बढता ही रहे।"


🔴 सुन कर शाकिर हंस पड़ा और कहा -"अरे फकीर! जो है यह भी नही रहने वाला है"। यह सुनकर फकीर चला गया ।


🔵 दो वर्ष बाद फकीर फिर शाकिर के घर गया और देखा कि शाकिर का सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि शाकिर अब बगल के गांव मे एक जमींदार के वहा नौकरी करता है। फकीर शाकिर से मिलने गया। शाकिर ने अभाव मे भी फकीर का स्वागत किया। झोपड़ी मे फटी चटाई पर बिठाया ।खाने के लिए सूखी रोटी दिया।


🔴 दूसरे दिन जाते समय फकीर की आखो मे आसू थे। फकीर कहने लगा अल्लाह ये तूने क्या क्रिया?


🔵 शाकिर पुनः हस पड़ा  और बोला -"फकीर तू क्यो दुखी हो रहा है? महापुरुषो ने कहा है -"खुदा  इन्सान को जिस हाल मे रखे  खुदा को धन्यावाद दे कर खुश रहना चाहिए।समय सदा बदलता रहता है और सुनो यह भी नही रहने वाला है"।


🔴 फकीर सोचने लगा -"मै तो केवल भेस से फकीर हू सच्चा फकीर तो शाकिर तू ही है।"


🔵 दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और शाकिर से मिला तो देख कर हैरान रह गया कि शाकिर तो अब जमींदारो का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि हमदाद जिसके वहा शाकिर नौकरी करता था वह संतान विहीन था मरते समय अपनी सारी जायदाद शाकिर को दे गया।


🔴 फकीर ने शाकिर से कहा - "अच्छा हुआ वो जमाना गुजर गया। अल्लाह करे अब तू ऐसा ही बना रहे।"


🔵 यह सुनकर शाकिर फिर हंस पड़ा  और कहने लगा - "फकीर!  अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है"।

🔴 फकीर ने पूछा क्या यह भी नही रहने वाला है? शाकिर ने उत्तर दिया -"या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नही है। और अगर शाश्वत कुछ है तो वह हैं परमात्मा और इसका अंश आत्मा। "फकीर चला गया ।


🔵 डेढ साल बाद लौटता है तो देखता है कि शाकिर का महल तो है किन्तु कबूतर उसमे गुटरगू कर रहे है। शाकिर कब्रिस्तान मे सो रहा है। बेटियां अपने-अपने घर चली गई है।बूढी पत्नी कोने मे पड़ी है ।


"कह रहा है आसमा यह समा कुछ भी नही।

रो रही है शबनमे नौरंगे जहाँ कुछ भी नही।

जिनके महतो मे हजारो रंग के जलते थे फानूस।

झाड उनके कब्र पर बाकी निशा कुछ भी नही।"


🔵 फकीर सोचता है -" अरे इन्सान ! तू किस बात का  अभिमान करता है? क्यो इतराता है? यहा कुछ भी टिकने वाला नही है दुख या सुख कुछ भी सदा नही रहता।


🔴 तू सोचता है - "पडोसी मुसीबत मे है और मै मौज मे हू। लेकिन सुन न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा।


"सच्चे इन्सान है वे जो हर हाल मे खुश रहते है।

मिल गया माल तो उस माल मे खुश रहते है।

हो गये बेहाल तो उस हाल मे खुश रहते है।"


🔵 धन्य है शाकिर तेरा सत्संग  और धन्य है तुम्हारे सद्गुरु। मै तो झूठा फकीर हू। असली फकीर तो तेरी जिन्दगी है।


🔴 अब मै तेरी कब्र देखना चाहता हू। कुछ फूल चढा कर दुआ तो माग लू।


🔵 फकीर कब्र पर जाता है तो देखता है कि शाकिर ने अपनी कब्र पर लिखवा रखा है-


🌹 "आखिर यह भी तो नही रहेगा"


👉 जीवन के लिए


🔵 पत्नी ने कहा - आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना…


🔴 पति- क्यों ??


🔵 उसने कहा -अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी…


🔴 पति- क्यों??


🔵 पत्नी- गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी…


🔴 पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता…


🔵 पत्नी- और हाँ गणपति के लिए पाँच सौ रुपए दे दूँ उसे ? त्यौहार का बोनस..


🔴 पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे…


🔵 पत्नी- अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा… और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!


🔴 पति- तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो…


🔵 पत्नी- अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वाह पाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…


🔴 पति- वा, वा… क्या कहने!! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में??


🔵 तीन दिन बाद… पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से पति ने पूछा...


🔴 पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी?


🔵 बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब… दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना.. त्यौहार का बोनस..


🔴 पति- तो जा आई बेटी के यहाँ…मिल ली अपने नाती से…?


🔵 बाई- हाँ साब… मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए…


🔴 पति- अच्छा ! मतलब क्या किया 500 रूपए का??


🔵 बाई- नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की गुड़िया, बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए… झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर रटा हुआ था…


🔴 पति- 500 रूपए में इतना कुछ???


🔵 वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा...उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा… अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा… पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का..आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है… लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी… पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे…


🔴 “जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ गया…l


👉 दिखावा ना करे!


🔵 मैनेजमेंट की शिक्षा प्राप्त एक युवा नौजवान की नौकरी लग जाती है, उसे कंपनी की और सेकाम करने के लिए अलग से एक केबिन दे दिया जाता है। वह नौजवान जब पहले दिन ऑफिस जाता है और बैठ कर अपने शानदार केबिन को निहार रहा होता है तभी दरवाजा खट-खटाने कीआवाज आती है दरवाजे पर एक साधारण सा व्यक्ति रहता है, पर उसे अंदर आने कहने के बजाय वह युवा व्यक्ति उसे आधा घँटा बाहर इंतजार करने के लिए कहता है। आधा घँटा बीतने के पश्चात वह आदमी पुन: ऑफिस के अंदर जाने की अनुमति मांगता है, उसे अंदर आते देख युवक टेलीफोन से बात करना शुरु कर देता है वह फोन पर बहुत सारे पैसो की बाते करता है,अपने ऐशो आराम के बारे मे कई प्रकार की डींगें हाँकने लगता है, सामने वाला व्यक्ति उसकी सारी बाते सुन रहा होता है, पर वो युवा व्यक्ति फोन पर बड़ी-बड़ी डींगें हांकनाजारी रखता है।


🔴 जब उसकी बाते खत्म हो जाती है तब जाकर वह उस साधारण व्यक्ति से पूछता है है कि तुम यहाँ क्या करने आये हो?


🔵 वह आदमी उस युवा व्यक्ति को विनम्र भाव से देखते हुए कहता है, “साहब, मै यहाँ टेलीफोन रिपेयर करने के लिए आया हुँ, मुझे खबर मिली है कि आप जिस टेलीफोन से बात कर रह थे वो हफ्ते भर से बँद पड़ा है इसीलिए मै इस टेलीफोन को रिपेयर करने के लिए आया हूँ।”


🔴 इतना सुनते ही युवा व्यक्ति शर्म से लाल हो जाता है और चुप-चाप कमरे से बाहर चला जाता है। उसे उसके दिखावे का फल मिल चुका होता है।


🔵 कहानी का सार यह है कि जब हम सफल होते है एक लेवल हासिल करते हैं, तब हम अपने आप पर बहुत गर्व होता है और यह स्वाभाविक भी है। गर्व करने से हमे स्वाभिमानी होने का एहसास होता है लेकिन  एक सीमा के बाद ये अहंकार का रूप ले लेता है और आप स्वाभिमानी से अभिमानी बन जाते हैं और अभिमानी बनते ही आप दुसरो के सामने दिखावा करने लगते हैं, और जो लोग ऐसा करते हैं वो उसी लेवल पर या उससे भी निचे आ जाते हैं |


🔴 अतः हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम चाहे कितने भी सफल क्यों ना हो जाएं व्यर्थ के अहंकार और झूठे दिखावे में ना पड़ें अन्यथा उस युवक की तरह हमे भी कभी न कभी शर्मिदा होना पड़ सकता है। हमे हमेशा एक लेवल हासिल करने के बाद दुसरे फिर तीसरे और इस तरह से हमे अपने सर्वश्रेस्ट लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लगातार काम करते रहना चाहियें


👉 चांदी की छड़ी:-


🔵 एक आदमी सागर के किनारे टहल रहा था। एकाएक उसकी नजर चांदी की एक छड़ी पर पड़ी, जो बहती-बहती किनारे आ लगी थी।


🔴 वह खुश हुआ और झटपट छड़ी उठा ली। अब वह छड़ी लेकर टहलने लगा।


🔵 धूप चढ़ी तो उसका मन सागर में नहाने का हुआ। उसने सोचा, अगर छड़ी को किनारे रखकर नहाऊंगा, तो कोई ले जाएगा। इसलिए वह छड़ी हाथ में ही पकड़ कर नहाने लगा।


🔴 तभी एक ऊंची लहर आई और तेजी से छड़ी को बहाकर ले गई। वह अफसोस करने लगा और दुखी हो कर तट पर आ बैठा।


🔵 उधर से एक संत आ रहे थे। उसे उदास देख पूछा, इतने दुखी क्यों हो?


🔴 उसने बताया, स्वामी जी नहाते हुए मेरी चांदी की छड़ी सागर में बह गई।


🔵 संत ने हैरानी जताई, छड़ी लेकर नहा रहे थे? वह बोला, क्या करता? किनारे रख कर नहाता, तो कोई ले जा सकता था।


🔴 लेकिन चांदी की छड़ी ले कर नहाने क्यों आए थे? स्वामी जी ने पूछा।


🔵 ले कर नहीं आया था, वह तो यहीं पड़ी मिली थी, उसने बताया।


🔴 सुन कर स्वामी जी हंसने लगे और बोले, जब वह तुम्हारी थी ही नहीं, तो फिर दुख या उदासी कैसी?


🔵 मित्रों कभी कुछ खुशियां अनायास मिल जाती हैं और कभी कुछ श्रम करने और कष्ट उठाने से मिलती हैं।


🔴 जो खुशियां अनायास मिलती हैं, परमात्मा की ओर से मिलती हैं, उन्हें सराहने का हमारे पास समय नहीं होता।


🔵 इंसान व्यस्त है तमाम ऐसे सुखों की गिनती करने में, जो उसके पास नहीं हैं- आलीशान बंगला, शानदार कार, स्टेटस, पॉवर वगैरह और भूल जाता है कि एक दिन सब कुछ यूं ही छोड़कर उसे अगले सफर में निकल जाना है।


👉 साधु की संगति:-


🔵 एक चोर को कई दिनों तक चोरी करने का अवसर ही नहीं मिला उसके खाने के लाले पड़ गए मरता क्या न करता मध्य रात्रि गांव के बाहर बनी एक साधु की कुटिया में ही घुस गया।


🔴 वह जानता था कि साधु बड़े त्यागी हैं अपने पास कुछ संचय करते तो नहीं रखते फिर भी खाने पीने को तो कुछ मिल ही जायेगा आज का गुजारा हो जाएगा फिर आगे की सोची जाएगी।


🔵 चोर कुटिया में घुसा ही था कि संयोगवश साधु बाबा लघुशंका के निमित्त बाहर निकले चोर से उनका सामना हो गया साधु उसे देखकर पहचान गये क्योंकि पहले कई बार देखा था पर उन्हें यह नहीं पता था कि वह चोर है।


🔴 उन्हें आश्चर्य हुआ कि यह आधी रात को यहाँ क्यों आया ! साधु ने बड़े प्रेम से पूछा- कहो बालक ! आधी रात को कैसे कष्ट किया ? कुछ काम है क्या ? चोर बोला- महाराज ! मैं दिन भर का भूखा हूं।


🔵 साधु बोले- ठीक है, आओ बैठो मैंने शाम को धूनी में कुछ शकरकंद डाले थे वे भुन गये होंगे, निकाल देता हूं तुम्हारा पेट भर जायेगा शाम को आये होते तो जो था हम दोनों मिलकर खा लेते।


🔴 पेट का क्या है बेटा ! अगर मन में संतोष हो तो जितना मिले उसमें ही मनुष्य खुश रह सकता है यथा लाभ संतोष’ यही तो है साधु ने दीपक जलाया, चोर को बैठने के लिए आसन दिया, पानी दिया और एक पत्ते पर भुने हुए शकरकंद रख दिए।


🔵 साधु बाबा ने चोर को अपने पास में बैठा कर उसे इस तरह प्रेम से खिलाया, जैसे कोई माँ भूख से बिलखते अपने बच्चे को खिलाती है उनके व्यवहार से चोर निहाल हो गया।


🔴 सोचने लगा- एक मैं हूं और एक ये बाबा है मैं चोरी करने आया और ये प्यार से खिला रहे हैं ! मनुष्य ये भी हैं और मैं भी हूं यह भी सच कहा है- आदमी-आदमी में अंतर, कोई हीरा कोई कंकर मैं तो इनके सामने कंकर से भी बदतर हूं।


🔵 मनुष्य में बुरी के साथ भली वृत्तियाँ भी रहती हैं जो समय पाकर जाग उठती हैं जैसे उचित खाद-पानी पाकर बीज पनप जाता है, वैसे ही संत का संग पाकर मनुष्य की सदवृत्तियाँ लहलहा उठती हैं चोर के मन के सारे कुसंस्कार हवा हो गए।


🔴 उसे संत के दर्शन, सान्निध्य और अमृत वर्षा सी दृष्टि का लाभ मिला तुलसी दास जी ने कहा है:-


एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।

तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध।।


🔵 साधु की संगति पाकर आधे घंटे के संत समागम से चोर के कितने ही मलिन संस्कार नष्ट हो गये साधु के सामने अपना अपराध कबूल करने को उसका मन उतावला हो उठा


🔴 फिर उसे लगा कि ‘साधु बाबा को पता चलेगा कि मैं चोरी की नियत से आया था तो उनकी नजर में मेरी क्या इज्जत रह जायेगी ! क्या सोचेंगे बाबा कि कैसा पतित प्राणी है, जो मुझ संत के यहाँ चोरी करने आया!


🔵 लेकिन फिर सोचा, ‘साधु मन में चाहे जो समझें, मैं तो इनके सामने अपना अपराध स्वीकार करके प्रायश्चित करूँगा दयालु महापुरुष हैं, ये मेरा अपराध अवश्य क्षमा कर देंगे संत के सामने प्रायश्चित करने से सारे पाप जलकर राख हो जाते हैं।


🔴 भोजन पूरा होने के बाद साधु ने कहा- बेटा ! अब इतनी रात में तुम कहाँ जाओगे मेरे पास एक चटाई है इसे ले लो और आराम से यहीं कहीं डालकर सो जाओ सुबह चले जाना


🔵 नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था वह साधु के पैरों पर गिर पड़ा और फूट-फूट कर रोने लगा साधु समझ न सके कि यह क्या हुआ ! साधु ने उसे प्रेमपूर्वक उठाया, प्रेम से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा- बेटा ! क्या हुआ?


🔴 रोते-रोते चोर का गला रूँध गया उसने बड़ी कठिनाई से अपने को संभालकर कहा-महाराज ! मैं बड़ा अपराधी हूं साधु बोले- भगवान सबके अपराध क्षमा करने वाले हैं शरण में आने से बड़े-से-बड़ा अपराध क्षमा कर देते हैं उन्हीं की शरण में जा।


🔵 चोर बोला-मैंने बड़ी चोरियां की हैं आज भी मैं भूख से व्याकुल आपके यहां चोरी करने आया था पर आपके प्रेम ने मेरा जीवन ही पलट दिया आज मैं कसम खाता हूँ कि आगे कभी चोरी नहीं करूँगा मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।


🔴 साधु के प्रेम के जादू ने चोर को साधु बना दिया उसने अपना पूरा जीवन उन साधु के चरणों में सदा के समर्पित करके जीवन को परमात्मा को पाने के रास्ते लगा दिया।


🔵 महापुरुषों की सीख है, सबसे आत्मवत व्यवहार करें क्योंकि सुखी जीवन के लिए निःस्वार्थ प्रेम ही असली खुराक है संसार इसी की भूख से मर रहा है अपने हृदय के आत्मिक प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखो।


🔴 प्रेम और स्नेह को उदारता से खर्च करो जगत का बहुत-सा दुःख दूर हो जाएगा भटके हुए व्यक्ति को अपनाकर ही मार्ग पर लाया जा सकता है, दुत्कार कर नहीं।


👉 जैसा बीज वैसा फल


🔵 अफ्रीका के दयार नोवा नगर में जगत प्रसिद्ध हकीम लुकमान का जन्म हुआ था। हब्शी परिवार में जन्म होने के कारण उन्हें गुलामों की तरह जीवन बिताने के लिए बाध्य होना पड़ा। मिश्र देश के एक अमीर ने तीस रुपयों में अपनी गुलामी करने के लिए लुकमान को खरीद लिया ओर उनसे खेती बाड़ी का काम लेने लगा।


🔴 यह अमीर बड़ा क्रूर और निर्दयी था वह जरा सी बात पर अपने गुलामों को बहुत सताता था। किन्तु बाहर से उसने धर्म का बड़ा आडम्बर रच रखा था। दिखाने के लिए वह ईश्वर की रट लगाता और खूब धर्म शास्त्र सुनता ताकि लोग उसे बड़ा धर्मात्मा समझें। अमीर का ख्याल था कि धार्मिक कर्मकाण्डों को करके ही मैं स्वर्ग का अधिकारी हो जाऊंगा।


🔵 एक बार मालिक ने हुक्म किया कि अमुक खेत में जाकर जौ बो आओ लुकमान उस खेत में गये और चने बो आये जब खेत उगा और मालिक ने चने के पौधे खड़े देखे तो वह बहुत नाराज हुआ और लुकमान से पूछा कि मैंने तो तुझे जौ बोने के लिये कहा था। तूने चने क्यों बो दिये लुकमान ने शिर झुकाकर नम्रता से कहा मालिक मैंने यह समझ कर चने बोये थे कि इसके बदले जौ उपजेंगे।


🔴 मालिक का पारा बहुत गरम हो गया। उसने गरज कर कहा- ‘मूर्ख कहीं दुनिया भर में आज तक ऐसा हुआ है कि चने बोये जायं और जौ उपजें?


🔵 लुकमान और नम्र हो गये उन्होंने मन्द स्वर में कहा- ‘मालिक मेरा कसूर माफ हो। मैं देखता हूँ कि आप दया के खेत में हमेशा पाप के बीज बोते हैं और सोचते हैं कि ईश्वर मुझे अच्छे फल देगा। इसलिए मैंने भी सोचा कि जब ईश्वर के खेतों में पाप बोने पर भी पुण्य फल मिल सकते हैं, तो मेरे चने बोने पर जौ भी पैदा हो सकते हैं।”


🔴 अमीर के दिल में लुकमान की बात तीर की तरह गई उसने निश्चय किया कि अब मैं अपना आचरण करूंगा और शुभ कर्म करने में दत्त चित्त रहूँगा, क्योंकि बिना पुण्य फल प्राप्त नहीं हो सकता। अमीर को धन के उपदेश से बहुत शिक्षा मिली उसने उन्हें पूर्वक गुलामी से मुक्त कर दिया।


🌹 अखण्ड ज्योति जुलाई 1942 पृष्ठ 29



👉 दो अक्षर की गम्भीर समस्या और दो अक्षर से ही समाधान




🔵  एक बार एक नगर मे कई व्यक्ति बड़े दुःखी थे बस अपने दुखों की दवा पाने के लिये इधरउधर मारे मारे फिरते थे!


🔴  एक बार उस नगर मे कोई संत आये और वो रोज प्रवचन दिया करते थे एक दिन जब वो प्रवचन देकर उठे तो बाहर से एक आदमी आया और वो लोगो को मिठाई बाँट रहा था और खुशी मे झूम रहा था लोगो ने पूछा अरे भाई क्या मिल गया तुम्हे ऐसा की इतने खुश हो रहे हो और ये मिठाई किस बात की बाँट रहे हो?


🔵  तो उसने कहाँ मेरे जीवन की एक बहुत ही गम्भीर समस्या थी मै उस समस्या से बड़ा दुःखी रहता था भगवान श्री राम की इस कथा मे आने से मेरी उस समस्या का समाधान हो गया उस करुणानिधान ने मेरी सारी समस्या को समाप्त कर दिया! तो लोगो ने पूछा की आखिर ऐसा क्या मिला तो उसने कहा मिला नही मेरा घोड़ा खो गया तो लोगो ने पूछा की घोड़ा मूल्यहीन होगा इसलिये लड्डू बाँट रहा है तो उसने कहा अरे नही वो तो बहुत ही चंचल और मूल्यवान है पर वो खो गया इसलिये मै बड़ा खुश हुं उसने सन्त श्री के चरणों मे खुब प्रणाम किया और नाचते गाते चला गया!


🔴  सभी लोग सन्त श्री के पास गये और उन्होंने कहा की हॆ देव ये कैसा पागल इंसान है जो लोगो से कह रहा है और मिठाई बाँट रहा है की इस कथा मे मेरा घोड़ा खो गया है ये कैसा पागल है?


🔵  तो सन्त श्री ने कहा की यहाँ मेरी कथा सार्थक हो गई तो लोगो ने कहा की हॆ देव हम आपका मतलब नही समझ पा रहे है तो सन्त श्री ने कहा की मै तो यही चाहता हुं जो भी कथा मे आये उन सब के घोड़े खो जाये तो लोगो ने कहा की हमारे पास तो घोड़े है ही नही तो फिर घोड़े खोयेँगे कैसे तो सन्त श्री ने जो उत्तर दिया तो सब अवाक रह गये!


🔴  सन्त श्री ने कहा की "मन" वो घोड़ा है जो बड़ा चंचल है और यदि ये "राम" मे खो जायें अर्थात ईष्ट मे खो जायें सार मे खो जाये तो आनन्द ही आनन्द है और संसार मे खो जाये तो दुःख दुःख और बस दुःख ही दुःख है !मन बड़ा चंचल है पता नही कहाँ कहाँ खो जाता है अरे जिसमे इसे खोना है ये उसमे तो नही खोता है और जिसमे इसे नही खोना है बस उसी मे खो जाता है!


🔵  सद्गुरु देव से एक अति विनम्र प्रार्थना है मेरी की हॆ नाथ इस मन को संसार मे मत खोने देना हॆ नाथ इस मन को सार मे लगा देना! मेरा मन खो जाये मेरे ईष्ट मे और पुरी तरह से खो जायें ईष्ट मे और सद्गुरु के चरणों मे, बस इतनी सी कृपा करना हॆ माँ की ये चंचल मन तुझमे खो जायें हॆ माँ!


🔴  बस हमको भी यही माँगना की मन रूपी घोड़ा खो जाये " संसार " मे ताकि फिर दुखी न हो संसार मे!


👉 मदद और दया सबसे बड़ा धर्म


🔵 कहा जाता है दूसरों की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मदद एक ऐसी चीज़ है जिसकी जरुरत हर इंसान को पड़ती है, चाहे आप बूढ़े हों, बच्चे हों या जवान; सभी के जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है जब हमें दूसरों की मदद की जरुरत पड़ती है।


🔴 आज हर इंसान ये बोलता है कि कोई किसी की मदद नहीं करता, पर आप खुद से पूछिये- क्या आपने कभी किसी की मदद की है? अगर नहीं तो आप दूसरों से मदद की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?


🔵 किशोर नाम का एक लड़का था जो बहुत गरीब था। दिन भर कड़ी मेहनत के बाद जंगल से लकड़ियाँ काट के लाता और उन्हें जंगल में बेचा करता। एक दिन किशोर सर पे लकड़ियों का गट्ठर लिए जंगल से गुजर रहा था।


🔴 अचानक उसने रास्ते में एक बूढ़े इंसान को देखा जो बहुत दुर्बल था उसको देखकर लगा कि जैसे उसने काफी दिनों खाना नहीं खाया है। किशोर का दिल पिघल गया, लेकिन वो क्या करता उसके पास खुद खाने को नहीं था वो उस बूढ़े व्यक्ति का पेट कैसे भरता? यही सोचकर दुःखी मन से किशोर आगे बढ़ गया।


🔵 आगे कुछ दूर चलने के बाद किशोर को एक औरत दिखाई दी जिसका बच्चा प्यास से रो रहा था क्यूंकि जंगल में कहीं पानी नहीं था। बच्चे की हालत देखकर किशोर से रहा नहीं गया लेकिन क्या करता बेचारा उसके खुद के पास जंगल में पानी नहीं था। दुःखी मन से वो फिर आगे चल दिया। कुछ दूर जाकर किशोर को एक व्यक्ति दिखाई दिया जो तम्बू लगाने के लिए लकड़ियों की तलाश में था।


🔴 किशोर ने उसे लकड़ियाँ बेच दीं और बदले में उसने किशोर को कुछ खाना और पानी दिया। किशोर के मन में कुछ ख्याल आया और वो खाना, पानी लेकर वापस जंगल की ओर दौड़ा। और जाकर बूढ़े व्यक्ति को खाना खिलाया और उस औरत के बच्चे को भी पानी पीने को दिया। ऐसा करके किशोर बहुत अच्छा महसूस कर रहा था।


🔵 इसके कुछ दिन बाद किशोर एक दिन एक पहाड़ी पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था अचानक उसका पैर फिसला और वो नीचे आ गिरा। उसके पैर में बुरी तरह चोट लग गयी और वो दर्द से चिल्लाने लगा। तभी वही बूढ़ा व्यक्ति भागा हुआ आया और उसने किशोर को उठाया। जब उस औरत को पता चला तो वो भी आई और उसने अपनी साड़ी का चीर फाड़ कर उसके पैर पे पट्टी कर दी। किशोर अब बहुत अच्छा महसूस कर रहा था।


🔴 मित्रों दूसरों की मदद करके भी हम असल में खुद की ही मदद कर रहे होते हैं। जब हम दूसरों की मदद करेंगे तभी जरुरत पढ़ने पर कोई दूसरा हमारी भी मदद करेगा। तो आज इस कहानी को पढ़ते हुए एक वादा करिये की रोज किसी की मदद जरूर करेंगे, रोज नहीं तो कम से कम सप्ताह एक बार , नहीं तो महीने में एक बार।


🔵 जरुरी नहीं कि मदद पैसे से ही की जाये, आप किसी वृद्ध व्यक्ति को सड़क पार करा सकते हैं या किसी प्यासे को पानी पिला सकते हैं या किसी हताश इंसान को सलाह दे सकते हैं या किसी को खाना खिला सकते हैं। यकीन मानिये ऐसा करते हुए आपको बहुत ख़ुशी मिलेगी और लोग भी आपकी मदद जरूर करेंगे।


👉 बाड़े की कील


 🔵 बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था, छोटी-छोटी बात पर अपना आप खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि, अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना.”


🔴 पहले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी. पर धीरे-धीरे कीलों  की संख्या घटने लगी, उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक  काबू करना सीख लिया. और फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी अपना temper नहीं loose किया.


🔵 जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने कहा कि, अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना.”


🔴 लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी, और अपने पिता को ख़ुशी से ये बात बतायी.


🔵 तब पिताजी उसका हाथ पकड़कर उस बाड़े के पास ले गए, और बोले, बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो. अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था.जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं.


🔵 इसलिए अगली बार अपना temper loose करने से पहले सोचिये कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोकना चाहते हैं!!


👉 मैं क्या करूँ देव


🔴 एक बार एक शिष्य में आपने गुरुदेव से कहा की - हॆ देव एक डर हमेशा रहता है! की माया बड़ी ठगनी है विशवामित्र जी का तप एक अप्सरा के आकर्षण मे चला गया तो राजा भरत जैसै महान सन्त एक हिरण के मोह मे ऐसे फँसे की उन्हे हिरण की योनि मे जन्म लेना पड़ा और तो और देवर्षि नारद तक को माया ने आकर्षित कर लिया और वो बच न पाये हॆ नाथ बस यही डर हमेशा बना रहता है की कही कामदेव की प्रबल सेना मुझे आप से अलग न कर दे हॆ नाथ आप ही बताओ की मैं क्या करूँ?


🔵 गुरुदेव कुछ देर मौन रहे फिर बोले

हॆ वत्स चलो मेरे साथ और बिल्कुल सावधान होकर चलना, देखना और फिर दोनो नगर पहुँचे और एक घर मे गये जहाँ एक माँ की गोद मे छोटा सा बच्चा बैठा था गुरुदेव ने उस बच्चे के आगे कुछ स्वर्ण मुद्रायें डाली पर वो बच्चा गोद से न उतरा फिर आकर्षक खिलोने रखे पर वो गोद से न उतरा फिर गुरुदेव ने उस बच्चे को लिया तो वो बच्चा जोर जोर से रोने लगा फिर ऋषिवर ने उस बच्चे को वापिस माँ की गोद मे बिठाया तो वो बस अपनी माँ से चिपक कर रोने लगा!


🔴 गुरुदेव फिर आगे बढे फिर एक माँ की गोद मे एक बालक बैठा था गुरुदेव ने उस बच्चे के सामने स्वर्ण मुद्रा और खिलौने डाले तो वो बच्चा खिलौने की तरफ़ बढ़ा और उन खिलौनों को अपने हाथों मे ले लिया पर जैसै ही उसकी माँ उठकर जाने लगी तो उसने उन खिलौनों को वही छोड़कर अपनी माँ की तरफ़ भागा और उस माँ ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया!


🔵 फिर गुरुदेव आश्रम पहुँचे और शिष्य से कहने लगे हॆ वत्स जब तक बच्चा अबोध है वो न खिलौनों को महत्व देगा न स्वर्ण मुद्रा को और वो बस अपनी माँ की गोद मे ही रहना चाहेगा!


🔴 दुसरा वो जिसने खिलौने तो ले रखे है पर जैसै ही उसे तनिक भी आभास हुआ की माँ जा रही है तो उसने उन खिलौनों का त्याग कर दिया और अपनी माँ के पास चला गया!


🔵 इसलिये हॆ वत्स माँ और सद्गुरु  के सामने अबोध बना रहना और त्यागी बनना! हॆ वत्स वस्तुतः होता क्या है जब तक बच्चा अबोध होता है तब तक माँ से दुर नही होना चाहता फिर जैसै जैसै वो बड़ा होता है तो सबसे पहले वो खिलौनों के आकर्षण मे आ जाता है फिर रिश्तों के आकर्षण मे चला जाता है फिर दौलत के आकर्षण मे चला जाता है और फिर इस तरह से आकर्षण बदलता रहता है कभी किसी के प्रति तो कभी किसी के प्रति और फिर वो धीरे धीरे आकर्षण के दलदल मे फंसता ही चला जाता है !


🔴 शिष्य ने गुरुदेव से पूछा की  - हॆ गुरुदेव इससे कैसे बचे ?


🔵 गुरुदेव नें कहा - हॆ वत्स माँ और सद्गुरु के सामने अबोध बन, त्यागी बन और प्रेमी बन और हॆ वत्स सद्गुरु के चरणों मे जब प्रीति बढ़ती है तो फिर आकर्षण सिर्फ ईष्ट मे आ जाता है सद्गुरु उसके जीवन मे किसी और आकर्षण को टिकने न देंगे!


🔴 आकर्षण अल्पकालिन है और प्रेम अजर और अमर है, आकर्षण सहज है और प्रेम मुश्किल और निःस्वार्थ, निष्काम और निष्कपट प्रेम बहुत ही दुर्लभ है क्योंकि प्रेम त्याग मांगता है देने का नाम प्रेम है और लेने का नाम स्वार्थ और जहाँ स्वार्थ हावी हो जाता है वहाँ से प्रेम चला जाता है!


🔵 आकर्षण किसी के भी प्रति आ सकता है आकर्षण से मोह का जन्म होता है और मोह से आसक्ति का उदय होता है और आसक्ति किसी के भी प्रति आ सकती है और एक बात अच्छी तरह से याद रखना की इष्ट के सिवा किसी और मे आसक्ति कभी मत आने देना नही तो अंततः परिणाम बड़े दर्दनाक होंगे! जब आकर्षण आने लगे तो सद्गुरु के दरबार मे चले जाना इष्ट मे एकनिष्ठ हो जाना!


🔴 एक बात हमेशा याद रखना की प्रेम गली बहुत सकडि है जहाँ दो के लिये जगह नही है जैसै एक म्यान मे दो तलवारें एक साथ नही आ सकती है वैसे ही एक जीवन मे दो से प्रेम नही हो सकता है! हाँ चयन के लिये तुम पुरी तरह से स्वतंत्र हो चाहो तो ईश्वर को चुन लो और चाहो तो नश्वर को चुन लो!


🔵 हॆ वत्स ये कभी न भुलना की सारे मिट्टी के खिलौने नश्वर है और केवल श्री हरि ही नित्य है और श्री हरि और गुरु के दरबार मे अबोध बने रहना नही तो अहम, मोह और अन्य दुर्गुणों को आने मे समय न लगेगा!


👉 खुशी की वजह.....


🔴 मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जाकर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।


🔵 अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? जबकि आप खुद भी रोती हो।


🔴 उसने जवाब दिया भाई साहब इसके पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उनके जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इसकी पढ़ाई का खर्च बामुश्किल उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है।


🔵 जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिसकी वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।


🔴 इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते तो उनसे कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता।


🔵 मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उसकी झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।


🔴 अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिसकी दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया।


🔵 वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिसकी दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने बच्चे को कुछ नहीं कहा।


🔴 थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और चल पड़ा। और मैं भी उसके पीछे पीछे चल रहा था।


🔵 बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धोकर स्कूल चल दिया। मै भी उसके पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उसके टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जाकर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार मै इसके घर पर भी खबर दे चुका हूँ।


🔴 खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।


🔵 सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।


🔴 वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।


🔵 अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह  बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगातार रो रही थी, और मैने फौरन उसके टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का एहसास हो रहा हो।


🔴 उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट लेलो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया।


🔵 आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रखकर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगाकर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।


🔴 मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किसके लिए है। बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इसलिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।


🔵 तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे ? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।


🔴 टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों और विधवाओं के साथ ऐसा होता रहेगा उनके बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।


🔵 क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े पैसे निकालकर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों की मदद नहीं कर सकते।

🔴 आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना !!!!


👉 लज्जा ही नारी का सच्चा आभूषण है


मगध की सौंदर्य साम्राज्ञी वासवदत्ता उपवन विहार के लिये निकली। आज का साज-शृंगार उस राज-वधू की तरह था जो पहली बार ससुराल जाती हैं।


एकाएक दृष्टि उपवन-ताल के किनारे स्फटिक शिला पर बैठे तरुण संन्यासी उपगुप्त पर गई। दीवारी ने बाह्य सौन्दर्य को अनिर्दिष्ट कर लिया था और उस आनन्द में कुछ ऐसा निमग्न हो गया कि उसे बाह्य जगत् की कोई सुध न रही थी।


हवा में पायल की स्वर झंकृति और सुगन्ध की लहरें पैदा करती वासवदत्ता समीप जा खड़ी हुई। भिक्षु के नेत्र खोले। वासवदत्ता ने चपल-भाव से पूछा-महामहिम बतायेंगे नारी का सर्वश्रेष्ठ आभूषण क्या है?”


“जो उसके सौंदर्य को सहज रूप से बड़ा दे-तपस्वी ने उत्तर दिया।


सहज का क्या अर्थ है? चंचल नेत्रों को उपगुप्त पर डालती वासवदत्ता ने फिर प्रश्न दोहराया।


उपगुप्त ने सौम्य मुस्कान के साथ कहा-देवि आत्मा जिन गुणों को बिना किसी बाह्य इच्छा, आकर्षण, भय, या छल के अभिव्यक्त करे, उसे ही सहज भाव कहते हैं, सौंदर्य को जो बिना किसी कृत्रिम साधन के बढ़ाता हो, नारी का वह भाव ही सच्चा आभूषण है।”


किन्तु वह भी वासवदत्ता समझ न सकी। उसने कहा-मैं स्पष्ट जानना चाहती हूँ, यों पहेलियों में आप मुझे न उलझायें।”


उपगुप्त अब कुछ गम्भीर हो गये और बोले-भद्रे यदि आप और स्पष्ट जानना चाहती हैं तो इन कृत्रिम सौंदर्य परिधान और आभूषणों को उतार फैकिये।”


पैरों की थिरकन के साथ वासव ने एक-एक आभूषण उतार दिये। संन्यासी निर्निमेष वह क्रीड़ा देख रहा था, निश्छल, मौन, विचार-मग्न वासवदत्ता ने अब परिधान उतारने भी प्रारम्भ कर दिये। साड़ी, चुनरी, लहंगा और कंचुकी सब उत्तर गये। शुभ्र निर्वसन देह के अतिरिक्त शरीर पर कोई पट-परिधान शेष नहीं रहा। तपस्वी ने कहा-देवि किंचित् मेरी ओर तो देखिये।” किन्तु इस बार वासवदत्ता लज्जा से आविर्भूत ऊपर को सिर न उठा सकी। तपस्वी ने कहा-देवि यही, लज्जा ही नारी का सच्चा आभूषण है।” और जब तक उसने वस्त्राभूषण पुनः धारण किये, उपगुप्त वहाँ से जा चुके थे।


अखण्ड ज्योति- अप्रैल 1969 पृष्ठ 7



👉 मुठ्ठी खोलो बंधन मुक्त हो जाओ:-


🔴 एक बार एक संत अपनी कुटिया में शांत बैठे थे, तभी उन्हें कुछ शोर सुनाई दिया जा कर देखा तो एक बंदर ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था. उसका एक हाथ एक घड़े के अंदर था और वह बंदर अपना हाथ छुड़ाने के लिए चिल्ला रहा था।


🔵 संत को देख वह बंदर संत से आग्रह करने लगा के महाराज कृपया कर के मुझे इस बंधन से मुक्त करवाए संत ने बंदर को कहा के तुमने घड़े के अंदर हाथ डाला तो वह आसानी से उसमे चला गया....


🔴 परन्तु अब इसलिए बाहर नहीं निकल रहा है क्यूंकी तुमने अपने हाथ में लड्डू पकड़ा हुआ है जो की उस घड़े के अंदर है, अगर तुम वह लड्डू हाथ से छोड़ दो तो तुम आसानी से मुक्त हो सकते हो।


🔵 बंदर ने कहा के महाराज, लड्डू तो मैं नहीं छोड़ने वाला, अब आप मुझे बिना लड्डू छोड़े ही मुक्त होने की कोई युक्ति सुझाए।


🔴 संत मुस्कुराए और कहा के या तो लड्डू छोड़ दो अन्यथा तुम कभी भी मुक्त नही हो सकते।


🔵 हज़ार कोशिशों के बाद बंदर को इस बात का एहसास हुआ कि बिना लड्डू छोड़े मेरा हाथ इस घड़े से बाहर नही निकल सकता और मैं मुक्त नही हो सकता।


🔴 आख़िरकार बंदर ने वो लड्डू छोड़ा और सहजता से ही उस घड़े से मुक्त हो गया।


🔵 यह कहानी सिर्फ़ उस बंदर की ही नहीं बल्कि आज के हर उस इंसान की है जो की उस घड़े में (संसार में) फँसा बैठा है।


🔴 लड्डू (संसारिक वस्तुओं) को छोड़ना भी नहीं चाहता और उस घड़े (84 के फेरे से) से मुक्त भी होना चाहता है।


🔵 संत (सदगुरु) ने समझानें का कार्य कर दिया...... अब किसे कब समझ आए और वह कब मुक्त होगा यह उसकी समझ है।


👉 विश्वासघात से प्राण जाना अच्छा।


🔴 महाराणा प्रताप के सदस्यों में एक बड़ा पराक्रमी योद्धा रघुपति सिंह था। वह छिपकर छापे मारने में बड़ा कुशल था। अकबर उससे बड़ा परेशान रहता। उसे पकड़ने के लिए एक बड़े इनाम की घोषणा की हुई थी।


🔵 एक बार रघुपति सिंह का लड़का बीमार पड़ा। वह उसे देखने के लिए वेष बदल कर घर को चला। चित्तौड़ के सभी दरवाजों पर पहरेदार बैठे थे। घर पहुँचने का कोई रास्ता न था। आखिर उसने पकड़े जाने का खतरा उठा कर भी मरणासन्न लड़के का मुँह देखने की ठानी। रघुपति सिंह ने एक पहरेदार के पास जाकर कहा-मेरा नाम रघुपति सिंह है। मैं अपने मरणासन्न बेटे को देखने आया हूँ। इस समय तुम मुझे पकड़ो मत, मैं घर जाकर वापिस तुम्हारे पास आ जाऊँगा तब तुम गिरफ्तार कर लेना। पहरेदार उसकी सच्चाई से बड़ा प्रभावित हुआ। उसने घर जाने की इजाजत दे दी। अपने वचनानुसार रघुपति सिंह लौटा और उसी पहरेदार के पास आकर अपने को गिरफ्तार करा दिया।


🔴 पहरेदार उसे अकबर के पास ले गया। जिस खूँखार योद्धा को पकड़ने के लिए इतने दिन से इतने प्रयत्न हो रहे थे और इतना इनाम घोषित था उसे हाथ पकड़कर एक साधारण पहरेदार लिए आ रहा है और वह चुपचाप चला आ रहा है, इस दृश्य को देखकर अकबर स्तब्ध रह गये। उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास न हुआ। उन्होंने पहरेदार से इस अनहोनी बात का कारण पूछा तो उसने सच-सच सब बात कह सुनाई।


अकबर ने पूछा-तुम जब घर चले गये थे तो फिर छिपकर क्यों न भाग गये। पहरेदार के पास आकर अपनी जान जोखिम में क्यों डाली?


🔴 रघुपति सिंह ने कहा-राजपूत अपने वचन पर दृढ़ रहते हैं, वे किसी के साथ विश्वासघात करने की अपेक्षा मरना अधिक अच्छा समझते हैं।


🔵 विश्वासघात मनुष्य का सबसे बड़ा अपराध है। सच्चे लोग कितनी ही बड़ी यहाँ तक कि प्राणों की हानि उठाकर भी शत्रु तक के साथ विश्वासघात नहीं करते।


👉 उदारता और संकीर्णता :-


🔴 राजा सत्यनारायण की दो अलग अलग वाटिका मे एक विशेष वृक्ष था और राजा स्वयं अपने हाथो से उन वृक्षों को जल देने जाते थे और उन्हे सींचते व हमेशा हराभरा बनाये रखते थे!


🔵 एक बार उन्हे अचानक लम्बी अवधी के लिये राज्य से बहुत दुर जाना पड़ा जाते जाते उन्होंने उन वृक्षों की जिम्मेदारी अपनी दो सन्तानों को दी और उन्हे कहा की तुम दोनो का एक ही कार्य है की तुम्हे इन वृक्षों को अपनी जान से ज्यादा सम्भालकर रखना है और याद रखना की इनकी हरियाली समाप्त न हो पाये अन्यथा कहर ढा जायेगा सारा राज्य समाप्त सा होकर रह जायेगा !


🔴 एक वर्ष के बाद राजा पुनः अपने राज्य मे लोटे तो उन्होंने देखा की एक वृक्ष तो हराभरा है और दूसरा खड़ा तो है पर पुरी तरह से सूखा हुआ था!


🔵 राजा ने तत्काल दोनो संतानों को बुलाया और कहा क्यों रे तुमने इन्हे पानी नही दिया तो एक संतान ने कहा हॆ आदरणीय पिताश्री पानी तो हम दोनो ने ही दिया पर इसने वृक्ष की जड़ को समाप्त कर दिया हालाँकि इसने कोई कमी न रखी परन्तु ये जड़ को न बचा पाया और वृक्ष भीतर ही भीतर समाप्त होता चला गया और मैने इसे बहुत समझाया की जड़ को बचा नही तो पुरा वृक्ष समाप्त हो जायेगा परन्तु इसने मेरी एक न सुनी और अब पश्चाताप कर रहा है पर अब बहुत देर हो चुकी है...!


🔴 पर जाते समय मैने कहा था की वृक्ष को खुशहाल रखना है और फल प्राप्त करना है तो जड़ का विशेष ध्यान रखना...!


🔵 हाँ पिताश्री , और आपके कथनानुसार और आपकी कृपा से मैने जड़ को बचा लिया इसलिये ये वृक्ष हराभरा है !


🌹👉 सारांश


🔴 ये सारी सृष्टि और मनुष्य की सारी जिन्दगी एक वृक्ष की तरह ही तो है और "राम" इस सॄष्टि के मूलतत्व है और जिस जिस ने संकीर्णता और विकारों की ज्वाला से  "मूल" को बचा लिया उसके जीवन का वृक्ष कभी नही सूखा और जिसने संकीर्णता की चादर ओढ़ ली एकदिन उसका समूल विनाश हो गया !


🔵 यहाँ दो चादर है एक उदारता की दूसरी संकीर्णता की जिसने उदारता की चादर ओढ़ ली एकदिन उसके लिये सारा जगत "राममय" हो गया वो हर जीव मे , सारी सृष्टि मे , कणकण मे अपने "आराध्य" को देखता है और उसके मानव जीवन का लक्ष्य हराभरा हो जाता है !


🔴 उदारता ही जीवन है और संकीर्णता ही मृत्यु और उदारतापूर्वक अपने आराध्य के मार्ग पे चलते रहना और एक दिन उस अवस्था को पाने का प्रयास करना की हमें हर जीव और कण कण मे अपने आराध्य दिखने लगे जैसे की भक्त प्रहलाद को सर्वत्र नारायण ही दिखाई देते थे और ये उज्जवल अवस्था संकीर्णता से नही उदारता से प्राप्त की जा सकती है इसलिये जिन्दगी मे उदारवादिता के साथ आगे बढ़ना संकीर्णता से नही क्योंकि संकीर्ण एक दिन अशांति के गहरे अन्धकार मे लुप्त हो जाते है।


👉 सफलता का रहस्य



🔴 एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या  है?


🔵 सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल मुझे नदी के किनारे मिलो.वो मिले. फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा.और जब आगे बढ़ते-बढ़ते पानी गले तक पहुँच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़ के पानी में डुबो दिया. लड़का बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा , लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे तब तक डुबोये रखे जब तक की वो नीला नहीं पड़ने लगा. फिर सुकरात ने उसका सर पानी से बाहर निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो चीज उस लड़के ने सबसे पहले की वो थी हाँफते-हाँफते तेजी से सांस लेना.


🔴 सुकरात ने पूछा, जब तुम वहाँ थे तो तुम सबसे ज्यादा क्या चाहते थे?”


🔵 लड़के ने उत्तर दिया, ”सांस लेना”


🔴 सुकरात ने कहा, यही सफलता का रहस्य है. जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना की तुम सांस लेना  चाहते थे  तो वो तुम्हे मिल जाएगी” इसके आलावा और कोई रहस्य नहीं है।


👉 रूपान्तरण कैसे हो


🔴 एक शिष्य ने अपने गुरुदेव से पूछा- "गुरुदेव, आपने कहा था कि धर्म से जीवन का रूपान्तरण होता है। लेकिन इतने दीर्घ समय तक आपके चरणों में रहने के बावजूद भी मैं अपने रूपान्तरण को महसूस नहीं कर पा रहा हूँ, तो क्या धर्म से जीवन का रूपान्तरण नहीं होता है?"


🔵 गुरुदेव मुस्कुराये और उन्होंने बतलाया- "एक काम करो, थोड़ी सी मदिरा लेकर आओ।"(शिष्य चौंक गया पर फिर भी शिष्य उठ कर गया और लोटे में मदिरा लेकर आया।) गुरुदेव ने शिष्य से कहा- "अब इससे कुल्ला करो।"(अपने शिष्य को समझाने के लिए गुरु को हर प्रकार के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। मदिरा को लोटे में भरकर शिष्य कुल्ला करने लगा। कुल्ला करते-करते लोटा खाली हो गया।)


🔴 गुरुदेव ने पुछा- "बताओ तुम्हें नशा चढ़ा या नहीं?"शिष्य ने कहा- "गुरुदेव, नशा कैसे चढ़ेगा? मैंने तो सिर्फ कुल्ला ही किया है। मैंने उसको कंठ के नीचे उतारा ही नहीं, तो नशा चढ़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता।


🔵 इस पर संत ने कहा- "इतने वर्षो से तुम धर्म का कुल्ला करते आ रहे हो। यदि तुम इसको गले से नीचे उतारते तो तुम पर धर्म का असर पड़ता।


🔴 जो लोग केवल सतही स्तर पर धर्म का पालन करते हैं। जिनके गले से नीचे धर्म नहीं उतरता, उनकी धार्मिक क्रियायें और जीवन-व्यवहार में बहुत अंतर दिखाई पड़ता है। वे मंदिर में कुछ होते हैं, व्यापार में कुछ और हो जाते है। वे प्रभु के चरणों में कुछ और होते हैं एवं अपने जीवन-व्यवहार में कुछ और, धर्म ऐसा नहीं हैं, जहाँ हम बहुरूपियों की तरह जब चाहे जैसा चाहे वैसा स्वांग रच ले।


🔵 धर्म स्वांग नहीं है, धर्म अभिनय नहीं है, अपितु धर्म तो जीने की कला है, एक श्रेष्ठ पद्धति है।।"

Post a Comment

0 Comments

Ad Code