ज्ञानवर्धक
कथाएं भाग -40
👉 आखिरी प्रयास
किसी दूर गाँव में एक पुजारी रहते
थे जो हमेशा धर्म कर्म के कामों में लगे रहते थे। एक दिन किसी काम से गांव के बाहर
जा रहे थे तो अचानक उनकी नज़र एक बड़े से पत्थर पे पड़ी। तभी उनके मन में विचार आया
कितना विशाल पत्थर है क्यूँ ना इस पत्थर से भगवान की एक मूर्ति बनाई जाये। यही
सोचकर पुजारी ने वो पत्थर उठवा लिया।
गाँव लौटते हुए पुजारी ने वो पत्थर
के टुकड़ा एक मूर्तिकार को दे दिया जो बहुत ही प्रसिद्ध मूर्तिकार था। अब मूर्तिकार
जल्दी ही अपने औजार लेकर पत्थर को काटने में जुट गया। जैसे ही मूर्तिकार ने पहला
वार किया उसे एहसास हुआ की पत्थर बहुत ही कठोर है। मूर्तिकार ने एक बार फिर से
पूरे जोश के साथ प्रहार किया लेकिन पत्थर टस से मस भी नहीं हुआ। अब तो मूर्तिकार
का पसीना छूट गया वो लगातार हथौड़े से प्रहार करता रहा लेकिन पत्थर नहीं टुटा। उसने
लगातार 99 प्रयास किये लेकिन पत्थर तोड़ने में नाकाम रहा।
अगले दिन जब पुजारी आये तो
मूर्तिकार ने भगवान की मूर्ति बनाने से मना कर दिया और सारी बात बताई। पुजारी जी
दुखी मन से पत्थर वापस उठाया और गाँव के ही एक छोटे मूर्तिकार को वो पत्थर मूर्ति
बनाने के लिए दे दिया। अब मूर्तिकार ने अपने औजार उठाये और पत्थर काटने में जुट
गया,
जैसे ही उसने पहला हथोड़ा मारा पत्थर टूट गया क्यूंकि पत्थर पहले
मूर्तिकार की चोटों से काफी कमजोर हो गया था। पुजारी यह देखकर बहुत खुश हुआ और
देखते ही देखते मूर्तिकार ने भगवान शिव की बहुत सुन्दर मूर्ति बना डाली।
पुजारी जी मन ही मन पहले मूर्तिकार
की दशा सोचकर मुसकुराये कि उस मूर्तिकार ने 99 प्रहार किये और थक गया, काश
उसने एक आखिरी प्रहार भी किया होता तो वो सफल हो गया होता।
मित्रों यही बात हर इंसान के दैनिक
जीवन पे भी लागू होती है, बहुत सारे लोग जो ये शिकायत रखते हैं कि वो
कठिन प्रयासों के बावजूद सफल नहीं हो पाते लेकिन सच यही है कि वो आखिरी प्रयास से
पहले ही थक जाते हैं। लगातार कोशिशें करते रहिये क्या पता आपका अगला प्रयास ही वो
आखिरी प्रयास हो जो आपका जीवन बदल दे।
👉 गुरु कौन
बहुत समय पहले की बात है, किसी
नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत रहते थे। उन के पास शिक्षा लेने हेतु दूर -
दूर से शिष्य आते थे।
एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल
किया,
स्वामीजी आपके गुरु कौन है? आपने किस गुरु से
शिक्षा प्राप्त की है? महंत शिष्य का सवाल सुन मुसकुराए और
बोले, मेरे हजारों गुरु हैं! यदि मैं उनके नाम गिनाने बैठ
जाऊ तो शायद महीनों लग जाए। लेकिन फिर भी मैं अपने तीन गुरुओं के बारे में तुम्हें
जरूर बताऊंगा। मेरा पहला गुरु था एक चोर।
एक बार में रास्ता भटक गया था और जब
दूर किसी गाव में पहुंचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकानें और घर बंद हो चुके थे।
लेकिन आखिरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था। मैंने
उससे पूछा कि मैं कहा ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए
इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होगा, लेकिन
आप चाहे तो मेरे साथ आज कि रात ठहर सकते हो। मैं एक चोर हु और अगर एक चोर के साथ
रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होंगी तो आप मेरे साथ रह सकते है। वह इतना प्यारा
आदमी था कि मैं उसके साथ एक रात कि जगह एक महीने तक रह गया! वह हर रात मुझे कहता
कि मैं अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो। जब वह काम से आता तो मैं उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हें?
तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही
जरूर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, और
हमेशा मस्त रहता था। कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस अपने घर आ गया। जब
मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे
क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता था। और
तब अचानक मुझे उस चोर की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरूर
मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता| मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था।
एक बार बहुत गर्मी वाले दिन मैं कही
जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था और पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक
कुत्ता दौड़ता हुआ आया। वह भी बहुत प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे
जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी ही
परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर गया। वह परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता, लेकिन
बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी के पास लौट आता। अंततः, अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब
हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सिख मिल गई। अपने डर के
बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर
का हिम्मत से साहस से मुकाबला करता है। मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है।
मैं एक गांव से गुजर रहा था कि
मैंने देखा एक छोटा बच्चा एक जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था। वह पास के किसी
मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था।
मजाक में ही मैंने उससे पूछा की
क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है? वह बोला, जी
मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और
फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहां
से वह ज्योति आई?
वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फुंक
मारकर बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहा गई
वह? आप ही मुझे बताइए।
मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा
ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे
ज्ञान से हाथ धो लिए। शिष्य होने का अर्थ क्या है? शिष्य
होने का अर्थ है पूरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को
तैयार रहना। कभी किसी कि बात का बुरा नहीं मानना चाहिए, किसी
भी इंसान कि कही हुई बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए के उसने
क्या-क्या कहा और क्यों कहा तब उसकी कही बातों से अपनी कि हुई गलतियों को समझे और
अपनी कमियों को दूर करें।
जीवन का हर क्षण, हमें
कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातों
को सीखते रहना चाहिए। यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से
मिलाता रहता है, यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत
की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की
नहीं।
👉 संघर्ष से बनती है जिंदगी बेहतर
हर किसी के जीवन में कभी ना कभी ऐसा
समय आता है जब हम मुश्किलों में घिर जाते हैं और हमारे सामने अनेकों समस्यायें एक
साथ आ जाती हैं। ऐसी स्थिति में ज्यादातर लोग घबरा जाते हैं और हमें खुद पर भरोसा
नहीं रहता और हम अपना आत्मविश्वास खो देते हैं। और खुद प्रयास करने के बजाय दूसरों
से उम्मीद लगाने लग जाते हैं जिससे हमें और ज्यादा नुकसान होता है तथा और ज्यादा
तनाव होता है और हम नकारात्मकता के शिकार हो जाते हैं और संघर्ष करना छोड़ देते
हैं।
एक आदमी हर रोज सुबह बगीचे में
टहलने जाता था। एक बार उसने बगीचे में एक पेड़ की टहनी पर एक तितली का कोकून
(छत्ता) देखा। अब वह रोजाना उसे देखने लगा। एक दिन उसने देखा कि उस कोकून में एक
छोटा सा छेद हो गया है। उत्सुकतावश वह उसके पास जाकर बड़े ध्यान से उसे देखने लगा।
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि एक छोटी तितली उस छेद में से बाहर आने की कोशिश कर रही
है लेकिन बहुत कोशिशों के बाद भी उसे बाहर निकलने में तकलीफ हो रही है। उस आदमी को
उस पर दया आ गयी। उसने उस कोकून का छेद इतना बड़ा कर दिया कि तितली आसानी से बाहर
निकल जाये | कुछ समय बाद तितली कोकून से बाहर आ गयी लेकिन उसका शरीर
सूजा हुआ था और पंख भी सूखे पड़े थे। आदमी ने सोचा कि तितली अब उड़ेगी लेकिन सूजन के
कारण तितली उड़ नहीं सकी और कुछ देर बाद मर गयी।
दरअसल भगवान ने ही तितली के कोकून
से बाहर आने की प्रक्रिया को इतना कठिन बनाया है जिससे की संघर्ष करने के दौरान
तितली के शरीर पर मौजूद तरल उसके पंखों तक पहुँच सके और उसके पंख मजबूत होकर उड़ने
लायक बन सकें और तितली खुले आसमान में उडान भर सके। यह संघर्ष ही उस तितली को उसकी
क्षमताओं का एहसास कराता है।
यही बात हम पर भी लागू होती है।
मुश्किलें, समस्यायें हमें कमजोर करने के लिए नहीं बल्कि हमें हमारी
क्षमताओं का एहसास कराकर अपने आप को बेहतर बनाने के लिए हैं अपने आप को मजबूत
बनाने के लिए हैं।
इसलिए जब भी कभी आपके जीवन में
मुश्किलें या समस्यायें आयें तो उनसे घबरायें नहीं बल्कि डट कर उनका सामना करें।
संघर्ष करते रहें तथा नकारात्मक विचार त्याग कर सकारात्मकता के साथ प्रयास करते
रहें। एक दिन आप अपने मुश्किल रूपी कोकून से बाहर आयेंगे और खुले आसमान में उडान
भरेंगे अर्थात आप जीत जायेंगे।
आप सभी मुश्किलों, समस्यायों
पर विजय पा लेंगे।
👉 !! जीभ का रस !!
एक बूढ़ा राहगीर थक कर कहीं टिकने
का स्थान खोजने लगा। एक महिला ने उसे अपने बाड़े में ठहरने का स्थान बता दिया। बूढ़ा
वहीं चैन से सो गया। सुबह उठने पर उसने आगे चलने से पूर्व सोचा कि यह अच्छी जगह है, यहीं
पर खिचड़ी पका ली जाए और फिर उसे खाकर आगे का सफर किया जाए। बूढ़े ने वहीं पड़ी सूखी
लकड़ियां इकट्ठा कीं और ईंटों का चूल्हा बनाकर खिचड़ी पकाने लगा। बटलोई उसने उसी
महिला से मांग ली।
बूढ़े राहगीर ने महिला का ध्यान
बंटाते हुए कहा, 'एक बात कहूं।? बाड़े का दरवाजा कम
चौड़ा है। अगर सामने वाली मोटी भैंस मर जाए तो फिर उसे उठाकर बाहर कैसे ले जाया
जाएगा।?' महिला को इस व्यर्थ की कड़वी बात का बुरा तो लगा,
पर वह यह सोचकर चुप रह गई कि बुजुर्ग है और फिर कुछ देर बाद जाने ही
वाला है, इसके मुंह क्यों लगा जाए।
उधर चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी आधी ही पक
पाई थी कि वह महिला किसी काम से बाड़े से होकर गुजरी। इस बार बूढ़ा फिर उससे बोला: 'तुम्हारे
हाथों का चूड़ा बहुत कीमती लगता है। यदि तुम विधवा हो गईं तो इसे तोड़ना पड़ेगा। ऐसे
तो बहुत नुकसान हो जाएगा।?'
इस बार महिला से सहा न गया। वह
भागती हुई आई और उसने बुड्ढे के गमछे में अधपकी खिचड़ी उलट दी। चूल्हे की आग पर
पानी डाल दिया। अपनी बटलोई छीन ली और बुड्ढे को धक्के देकर निकाल दिया।
तब बुड्ढे को अपनी भूल का एहसास
हुआ। उसने माफी मांगी और आगे बढ़ गया। उसके गमछे से अधपकी खिचड़ी का पानी टपकता रहा
और सारे कपड़े उससे खराब होते रहे। रास्ते में लोगों ने पूछा, 'यह
सब क्या है।?' बूढ़े ने कहा, 'यह मेरी
जीभ का रस टपका है, जिसने पहले तिरस्कार कराया और अब हंसी
उड़वा रहा है।'
शिक्षा:-
तात्पर्य यह है के पहले तोलें फिर
बोलें। चाहे कम बोलें मगर जितना भी बोलें, मधुर बोलें और सोच समझ कर
बोलें।
👉 आपसी मतभेद से विनाश:-
एक बहेलिए ने एक ही तरह के पक्षियों
के एक छोटे से झुंड़ को खूब मौज-मस्ती करते देखा तो उन्हें फंसाने की सोची। उसने
पास के घने पेड़ के नीचे अपना जाल बिछा दिया। बहेलिया अनुभवी था, उसका
अनुमान ठीक निकला। पक्षी पेड़ पर आए और फिर दाना चुगने पेड़ के नीचे उतरे। वे सब आपस
में मित्र थे सो भोजन देख समूचा झुंड़ ही एक साथ उतरा। पक्षी ज्यादा तो नहीं थे पर
जितने भी थे सब के सब बहेलिये के बिछाए जाल में फंस गए।
जाल में फंसे पक्षी आपस में राय बात
करने लगे कि अब क्या किया जाए। क्या बचने की अभी कोई राह है? उधर बहेलिया खुश हो गया कि पहली
बार में ही कामयाबी मिल गयी। बहेलिया जाल उठाने को चला ही था कि आपस में बातचीत कर
सभी पक्षी एकमत हुए। पक्षियों का झुंड़ जाल ले कर उड़ चला।
।
बहेलिया हैरान खड़ा रह गया। उसके हाथ
में शिकार तो आया नहीं, उलटा जाल भी निकल गया। अचरज में पड़ा
बहेलिया अपने जाल को देखता हुआ उन पक्षियों का पीछा करने लगा। आसमान में जाल समेत
पक्षी उड़े जा रहे थे और हाथ में लाठी लिए बहेलिया उनके पीछे भागता चला जा रहा था।
रास्ते में एक ऋषि का आश्रम था। उन्होंने यह माजरा देखा तो उन्हें हंसी आ गयी। ऋषि
ने आवाज देकर बहेलिये को पुकारा। बहेलिया जाना तो न चाहता था पर ऋषि के बुलावे को
कैसे टालता। उसने आसमान में अपना जाल लेकर भागते पक्षियों पर टकटकी लगाए रखी और
ऋषि के पास पहुंचा।
ऋषि ने कहा- तुम्हारा दौड़ना व्यर्थ
है। पक्षी तो आसमान में हैं। वे उड़ते हुए जाने कहां पहुंचेंगे, कहां
रूकेंगे। तुम्हारे हाथ न आयेंगे। बुद्धि से काम लो, यह बेकार
की भाग-दौड़ छोड़ दो।
बहेलिया बोला- ऋषिवर अभी इन सभी
पक्षियों में एकता है। क्या पता कब किस बात पर इनमें आपस में झगड़ा हो जाए। मैं उसी
समय के इंतज़ार में इनके पीछे दौड़ रहा हूं। लड़-झगड़ कर जब ये जमीन पर आ जाएंगे तो
मैं इन्हें पकड़ लूंगा।
।
यह कहते हुए बहेलिया ऋषि को प्रणाम
कर फिर से आसमान में जाल समेत उड़ती चिड़ियों के पीछे दौड़ा। एक ही दिशा में उड़ते
उड़ते कुछ पक्षी थकने लगे थे। कुछ पक्षी अभी और दूर तक उड़ सकते थे।
थके पक्षियों और मजबूत पक्षियों के
बीच एक तरह की होड़ शुरू हो गई। कुछ देर पहले तक संकट में फंसे होने के कारण जो
एकता थी वह संकट से आधा-अधूरा निकलते ही छिन्न-भिन्न होने लगी। थके पक्षी जाल को
कहीं नजदीक ही उतारना चाहते थे तो दूसरों की राय थी कि अभी उड़ते हुए और दूर जाना
चाहिए। थके पक्षियों में आपस में भी इस बात पर बहस होने लगी कि किस स्थान पर
सुस्ताने के लिए उतरना चाहिए। जितने मुंह उतनी बात। सब अपनी पसंद के अनुसार आराम
करने का सुरक्षित ठिकाना सुझा रहे थे। एक के बताए स्थान के लिए दूसरा राजी न होता।
देखते ही देखते उनमें इसी बात पर आपस में ही तू-तू, मैं-मैं हो गई।
एकता भंग हो चुकी थी। कोई किधर को उड़ने लगा कोई किधर को। थके कमजोर पक्षियों ने तो
चाल ही धीमी कर दी। इन सबके चलते जाल अब और संभल न पाया। नीचे गिरने लगा। अब तो
पक्षियों के पंख भी उसमें फंस गए। दौड़ता
बहेलिया यह देखकर और उत्साह से भागने लगा। जल्द ही वे जमीन पर गिरे।
बहेलिया अपने जाल और उसमें फंसे
पक्षियों के पास पहुंच गया। सभी पक्षियों को सावधानी से निकाला और फिर उन्हें
बेचने बाजार को चल पड़ा।
।
तुलसीदासजी कहते है- जहां सुमति
तहां संपत्ति नाना, जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना। यानी जहां
एक जुटता है वहां कल्याण है। जहां फूट है वहां अंत निश्चित है। महाभारत के उद्योग
पर्व की यह कथा बताती है कि आपसी मतभेद में किस तरह पूरे समाज का विनाश हो जाता है।
👉 अपनी रोटी मिल बाँट कर खाओ
एक राजा था। उसका मंत्री बहुत
बुद्धिमान था। एक बार राजा ने अपने मंत्री से प्रश्न किया – मंत्री जी! भेड़ों और
कुत्तों की पैदा होने कि दर में तो कुत्ते भेड़ों से बहुत आगे हैं, लेकिन
भेड़ों के झुंड के झुंड देखने में आते हैं और कुत्ते कहीं-कहीं एक आध ही नजर आते
है। इसका क्या कारण हो सकता है?
मंत्री बोला – “महाराज! इस प्रश्न
का उत्तर आपको कल सुबह मिल जायेगा।”
राजा के सामने उसी दिन शाम को
मंत्री ने एक कोठे में बिस कुत्ते बंद करवा दिये और उनके बीच रोटियों से भरी एक
टोकरी रखवा दी।”
दूसरे कोठे में बीस भेड़े बंद करवा
दी और चारे की एक टोकरी उनके बीच में रखवा दी। दोनों कोठों को बाहर से बंद करवाकर,वे
दोनों लौट गये।
सुबह होने पर मंत्री राजा को साथ
लेकर वहां आया। उसने पहले कुत्तों वाला कोठा खुलवाया। राजा को यह देखकर बड़ा
आश्चर्य हुआ कि बीसो कुत्ते आपस में लड़-लड़कर अपनी जान दे चुके हैं और रोटियों की
टोकरी ज्यों की त्यों रखी है। कोई कुत्ता एक भी रोटी नहीं खा सका था।
इसके पश्चात मंत्री राजा के साथ
भेड़ों वाले कोठे में पहुंचा। कोठा खोलने के पश्चात राजा ने देखा कि बीसो भेड़े एक
दूसरे के गले पर मुंह रखकर बड़े ही आराम से सो रही थी और उनकी चारे की टोकरी एकदम
खाली थी।
वास्तव में अपनी रोटी मिल बाँट कर
ही खानी चाहिए और एकता में रहना चाहिए।
सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है, पर्याप्त
है।।
🌸हम बदलेंगे, युग बदलेगा।🌸
👉 समय का सदुपयोग
किसी गांव में एक व्यक्ति रहता था।
वह बहुत ही भला था लेकिन उसमें एक दुर्गुण था वह हर काम को टाला करता था। वह मानता
था कि जो कुछ होता है भाग्य से होता है।
एक दिन एक साधु उसके पास आया। उस
व्यक्ति ने साधु की बहुत सेवा की। उसकी सेवा से खुश होकर साधु ने पारस पत्थर देते
हुए कहा- मैं तुम्हारी सेवा से बहुत प्रसन्न हूं। इसलिय मैं तुम्हे यह पारस पत्थर
दे रहा हूं। सात दिन बाद मै इसे तुम्हारे पास से ले जाऊंगा। इस बीच तुम जितना चाहो, उतना
सोना बना लेना।
उस व्यक्ति को लोहा नही मिल रहा था।
अपने घर में लोहा तलाश किया। थोड़ा सा लोहा मिला तो उसने उसी का सोना बनाकर बाजार
में बेच दिया और कुछ सामान ले आया।
अगले दिन वह लोहा खरीदने के लिए
बाजार गया, तो उस समय मंहगा मिल रहा था यह देख कर वह व्यक्ति घर लौट
आया।
तीन दिन बाद वह फिर बाजार गया तो
उसे पता चला कि इस बार और भी महंगा हो गया है। इसलिए वह लोहा बिना खरीदे ही वापस
लौट गया।
उसने सोचा-एक दिन तो जरुर लोहा
सस्ता होगा। जब सस्ता हो जाएगा तभी खरीदेंगे। यह सोचकर उसने लोहा खरीदा ही नहीं।
आठवे दिन साधु पारस लेने के लिए
उसके पास आ गए। व्यक्ति ने कहा- मेरा तो सारा समय ऐसे ही निकल गया। अभी तो मैं कुछ
भी सोना नहीं बना पाया। आप कृपया इस पत्थर को कुछ दिन और मेरे पास रहने दीजिए।
लेकिन साधु राजी नहीं हुए।
साधु ने कहा-तुम्हारे जैसा आदमी
जीवन में कुछ नहीं कर सकता। तुम्हारी जगह कोई और होता तो अब तक पता नहीं क्या-क्या
कर चुका होता। जो आदमी समय का उपयोग करना नहीं जानता, वह
हमेशा दु:खी रहता है। इतना कहते हुए साधु महाराज पत्थर लेकर चले गए।
शिक्षा:-
जो व्यक्ति काम को टालता रहता है, समय
का सदुपयोग नहीं करता और केवल भाग्य भरोसे रहता है वह हमेशा दुःखी रहता है।
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