Ad Code

झूठे मित्र

 

👉 झूठे मित्र

 

🔷 एक खरगोश बहुत भला था। उसने बहुत से जानवरों से मित्रता की और आशा की कि वक्त पड़ने पर मेरे काम आयेंगे। एक दिन शिकारी कुत्तों ने उसका पीछा किया। वह दौड़ा हुआ गाय के पास पहुँचा और कहा—आप हमारे मित्र हैं, कृपा कर अपने पैंने सींगों से इन कुत्तों को मार दीजिए। गाय ने उपेक्षा से कहा—मेरा घर जाने का समय हो गया। बच्चे इंतजार कर रहे होंगे, अब मैं ठहर नहीं सकती।

 

🔶 तब वह घोड़े के पास पहुँचा और कहा—मित्र घोड़े! मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर इन कुत्तों से बचा दो। घोड़े ने कहा—मैं बैठना भूल गया हूँ, तुम मेरी ऊँची पीठ पर चढ़ कैसे पाओगे? अब वह गधे के पास पहुँचा और कहा—भाई, मैं मुसीबत में हूँ, तुम दुलत्ती झाड़ने में प्रसिद्ध हो इन कुत्तों को लातें मारकर भगा दो। गधे ने कहा—घर पहुँचने में देरी हो जाने से मेरा मालिक मुझे मारेगा। अब तो मैं घर जा रहा हूँ। यह काम किसी फुरसत के वक्त करा लेना।

 

🔷 अब वह बकरी के पास पहुँचा और उससे भी वही प्रार्थना की। बकरी ने कहा—जल्दी भाग यहाँ से, तेरे साथ मैं भी मुसीबत में फँस जाऊँगी। तब खरगोश ने समझा कि दूसरों का आसरा तकने से नहीं अपने बल बुते से ही अपनी मुसीबत पार होती है। तब वह पूरी तेजी से दौड़ा और एक घनी झाड़ी में छिपकर अपने प्राण बचाए।

 

🔶 अकसर झूठे मित्र कुसमय आने पर साथ छोड़ बैठते हैं। दूसरों पर निर्भर रहने में खतरा है, अपने बल बुते ही अपनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

 

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1964 पृष्ठ 21

Post a Comment

0 Comments

Ad Code