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।। शून्य की नाव भाव की जिज्ञासा ।।

 
।। शून्य की नाव भाव की जिज्ञासा ।।


3म् नमः शम्भवाय च मयोभवायं च।

नमः शङ्कराय च मयस्कराय च।

नमः शिवाय च शिवतराय च।

यस्मिन्सर्वाणि भूतान्यात्मैवाभूद्विजानतः। तत्र को मोहः कः शोक एकत्वमनुपश्यतः।।

 

       कल्याण कारक प्रभु के लिए हमारा नमस्कार हो और सुख कारक सुख आनन्द का दान देने वाले प्रभु को हम सब का नमस्कार, और शान्ति दायक शान्ति को देने वाले उस सर्व शक्तिमान प्रभु को मेरा नमस्कार, श्रद्धा और आदर भाव से और आदर भाव से मैं उसको नमस्कार करता हूं अत्यन्त मंगल रूप प्रभु के लिए हमारा बार-बार नमस्कार प्रणाम पहुँचें।

 

      मतलब सिर्फ इतना है कि तुम जीवन को उसकी पूर्णता में नहीं जी रहे हो, क्योंकि कल की चिन्ता में आज को पूर्ण रूप से आनंदित होकर नहीं जी रहें हो, हाँ जीने में रुकावट अवश्य खड़ी करते हो, कल कभी नहीं आता है। यह एक तरीका है स्वयं को यातना, कष्ट, प्रताड़ित और तरह-तरह के अविद्या आदि क्लेशों से क्लेशित रखने के लिए। इसके लिए ही तुम सब को लम्बे समय संस्कारित किया गया है और आज भी यह सब निरन्तर किया जा रहा है, इसी के कल्चरल संस्कृति संस्कार नाम दिया है। और यह सब तुम सब के नश नाड़ियों में रच वश गया है और तुम्हें ज्ञात ही नहीं है कि आखिर तुम हो कौन, तुम्हारा ना ही भूत है ना ही तुम्हारा भविष्य है। तुम्हारे पास तो केवल सिवाय तुम्हारा आज है, और आज को तुम अपने आने वाले कल कि चिन्ता में खर्च किए जा रहे हो की आने वाला कल अपने साथ - साथ सुख सुविधा और समृद्धि ले कर आयेगा। इससे बड़ा कोई बकवास हो सकता है। यह सब तुम्हारे जीवन को कबाड़ा श्मशान बनाना के लिए पर्याप्त है। तुम स्वयं अपनी चिता सजाने में इतने अधिक व्यस्त हो की भूल ही गए हो कि तुम्हारा वास्तविक स्वरूप क्या है? इसमें तुम सब की कोई गलती नहीं है ऐसा तो तुम सब को बनाया गया। तुम सब का उपयोग किया जा रहा है। जिसे तुम अपना समझते हो वहीं तुम्हारे कब्र तैयार कर रहें है और यही बात समाप्त नहीं होती है उसमें तुम स्वयं भरपूर उनका सहयोग कर रहें हो। क्योंकि यह जो समाज है और इसकी व्यवस्था रूपी जो सणयन्त्रकारी नींव वह एक दूसरे के शोषण पर ही आश्रित है। जैसा की संस्कृत का एक कथन है की जीव जीवस्य भोजनम्। यह तो प्रकृत का स्वभाव है एक प्राणी दूसरे के जीवन का अन्त करके ही अपने जीवन को बरकरार रख सकता है। लेकिन इसके लिए जो परम आवश्यक संयम सन्तुलन है वह मानव जीवन से प्रायः लुप्त हो रहा है। जिसकी वजह क्या ठीक है और क्या गलत है उसका ज्ञान ही नहीं है? और यदि तुम्हें यह ज्ञान हो जाए तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाती हैं क्योंकि ज्ञान विज्ञान और अज्ञान अपूर्ण है। मानव जिससे पूर्ण होता है वह ब्रह्मज्ञान हैं। ब्रह्म का मतलब है ब्रह्म जैसा जीवन जीना जो इन तीनों से परे है। उसकी अनुभूति भर जाओ उसके लिए केवल आज और अभी में है जो किया जा सकता है वह इसी पल में होगा इसके लिए अलग से समय कभी नहीं मिलने वाला है। करना कुछ भी नहीं है सब कुछ जो भी कार्य उसके होने दो, उसमें स्वयं केवल द्रष्टा की तरह तटस्थ रखना है। मौन और शान्त हो जाओ चिन्ता करने का कोई प्रश्न नहीं है सारी चिन्तायें स्वतः अदृश्य हो जाएगी यह साइकोलाजीकल साइन्स है। इस क्षण में आने से तुम इस क्षण का भरपूर आनन्द ले पाओगे जो अद्वितीय होगा। यह जानकर तुमको आश्चर्य होगा की सब कुछ तो तुम्हारे पास था तुम ही अनुपस्थित थे ऐसा ही सभी प्रबुद्ध पुरुषों ने जाना है। तुम और तुम्हारी समृद्धि तुम्हारे साथ हर पल रहती है उससे तुमको दुनिया की कोई ताकत अलग नहीं सकती है। मगर तुम हमेशा से बीते हुए कल में जीने के आदि हो जिसके कारण जीवन में कुछ भी तरो-ताजा नया नवेला ओश की बुदं की भांति नहीं दिखता है सब तरफ से सड़ान्ध ही दिखाई देता है। उसे कितना ही सजाओं सवारों वह आंख को और इन्द्रियों को मात्र धोखा को धोखा ही दे सकते है। मगर उसमें सजीवता नहीं पैदा कर सकते है। मैं चाहता हूं कि लोग यह समझे अपने अस्तित्व को और उसकी भाषा को जीवन अभी और अभी में ही उसका आनन्द है उसके आगोश में तत्क्षण है। उसके लिए किसी विज्ञान या गणित की आवश्यकता नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ जागने कि और जो इस पल में जाग गया वह शरीर नहीं रहा वह शरीर का स्वामी हो गया और जो स्वामी है उसको तनाव कहां होता है। तनाव तो दास को होता है।

 

यस्मिन्सवार्णि भूतान्यात्मेंवाभूद्विजानतः।

तत्र को मोहः क शोक एकत्वमनुपश्यतः।

    जैसा कि यह मन्त्र कह रहा है जो स्वयं को जानते है उसको यह लगता है। सब कुछ तो उसके पास है उसको किस वस्तु कि चिन्ता, तनाव, शोक मोह हो सकता है वह देखने से मुक्त हो जाता है।

 

       यह तो निर्विचार, निर्विकल्प, निर्बिज समाधि कि अनुभूति का प्रथम पल है। जिसकी यात्रा पर प्रत्येक पथिक को चलाना जो स्वयं को पाना चाहते हैं जो परम सत्य या कल्याण मार्ग का पथिक बनना चाहते है। उनके लिए ही झेनों में एक प्रसिद्ध कहानी कहते है। सब को चोरी करने की कला सीखना चाहिए।

 

    जापान में एक बहुत ही प्रसिद्ध चोर था वह इतना ज्यादा प्रसिद्ध था। जिस प्रकार से भारत में सबसे अच्छे महा पुरुषों को सम्मान प्राप्त है। जिस प्रकार भारत में राम जैसे महापुरुषों को पुजा जाता है, और पश्चिम में नोबेल प्राप्त वैज्ञानिकों सम्मान मिलता है और पुजा जाता है।

 

 

       उस चोर के अन्दर एक कला थी व चोरी करता था लेकिन वह अपने जीवन में पकड़ा नहीं गया अर्थात सरकारी मुजरिम नहीं बना वह महापुरुषों में अग्रणी है वह बड़ी सफाई से अपना कार्य करता था। वह चोर अपना कार्य इस तरह से करता था जैसे वह प्रभु की ध्यान, प्रार्थना, साधना, समाधि सिद्धि के लिए उपासना कर रहा हो। यहां तक उसको वहां के राजा के द्वारा सबसे श्रेष्ठ पुरस्कार उस देश का उसको दिया गया था। जिस प्रकार से भारत में सबसे अच्छे उच्च महापुरुष जो सज्जन के प्रकृत के है उनको पुरस्कार में भारत रत्न, पद्म श्री, पद्म भूषण दिया जाता है। इसी प्रकार से उस चोर को भी पुरस्कृत किया गया था। लेकिन आज लोग अपनी योग्यता से कहीं ज्यादा पाते है और बाद में उसका दुरुपयोग करते उसको पाने में ही उनका जीवन उनके लिए पूर्णतः सोख लिया जाता है जैसे कपड़े में से पानी को निचोड़ लेते है। कपड़ा सुख कर कड़ा हो जाता है। सुखाने का मतलब है उसमें से तरलता नष्ट हो जाती है। लेकिन उस चोर की प्रकृत बहुत अलग थी, और यह बहुत प्रसिद्ध जापान के रहस्यदर्शि का क्लासिकल सिद्ध योग का दृष्टान्त है। जब वह चोर 80 साल का वृद्ध हो गया। उस समय केवल उसका एक युवा लड़का था। उसने एक दिन अपने पिता से कहा अब आपकी उम्र बहुत हो गई है मरने से पहले आप अपनी कला को मुझको भी सीखा दे क्योंकि वह चोर बहुत श्रेष्ठ चोरों का गुरु भी था। उसके पिता ने उससे कहा यह तो बहुत कठिन कार्य है यह तो ऐसा ही है जैसे ध्यान में उतरना हो और यह सब के लिए कहां सुलभ है। उसके बेटे ने उसकी कोई बात नहीं मानी जैसा कि बेटे बाप की बात कहा मानते है जिसे ऐसा लगता है की उसका बेटा उसकी बात मान रहा है तो यह उसके लिए सबसे बड़ा भ्रम है। क्योंकि इस जगत में ना ही ऐसे बेटे है ना ही ऐसे बाप ही है। यह एक रहस्यदर्शि है इसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है वह अपने आप में अतुलनीय है। अन्त में उसने जब देखा की उसका लड़का उसकी बात नहीं मान रहा है तब उसने कहा ठीक है तुम आज रात मेरे साथ चलना। रात्रि के समय उस चोर के साथ उसका बेटा भी हो लिया, जब वह एक बड़े घर के पास पहुंचा तब वह चोर वहीं पर रुक गया, और अपना औजार निकाल कर उस मकान की नींव खोदने लगा। वह नींव खोदने का कार्य ऐसे कर रहा था जैसे वह अपने घर में कार्य कर रहा हो। उसका लड़का उसके पास ही खड़ा हो कर थर -थर कांप रहा था उसके पसीने छूट रहें थे। वह बार-बार चारों तरफ घूम- घूम कर देख रहा था उसको भय सताए जा रहा था की उसको चोरी करते कोई पकड़ सकता है। उसका पिता उस समय अपने निव खोदने के कार्य में ऐसे तल्लीन था जैसे वह ध्यान में हो चारों तरफ से बेखबर था। नीव में जब सुराख हो गया तो वह मकान के अन्दर घुस गया और अपने बेटे को भी मकान के अन्दर बुला लिया। जब उसका पुत्र मकान के अन्दर पहुँच गया तब उसके पिता ने अपनी जेब से चाभी का एक बड़ा गुच्छा निकाला कर घर में जो एक बड़ी अलमारी थी उसके ताले को खोल कर अपने बेटे से कहा जाओ अलमारी के अन्दर और देखो क्या-क्या बहुमूल्य अपने काम की जो भी वस्तु है उस को उसको निकाल कर ले कर आवों। जब उसका बेटा अलमारी के अन्दर गया तो बाहर से उसके पिता ने बाहर से अलमारी के दरवाजे को बन्द कर दिया, और जिस नींव को खोद कर मकान में प्रवेश किया था उसी मार्ग से वह निकल कर बाहर आकर अपने घर का रास्ता पकड़ा। उधर उसका बेटा अलमारी के अन्दर फंस गया और अपने बाप को बहुत कोसने लगा कि इस मूर्ख ने यह मुझको कहां पर लाकर फंसा दिया? उसका दिमाग बिल्कुल शून्य हो गया उसको कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करें? जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी वह उसके साथ हो रहा था। अलमारी के अन्दर उसको काफी देर गुजर गया लेकिन कोई नहीं आया उसको भय सताने लगा की थोड़े समय में ही सुबह होने वाली है, और उस समय यदि किसी के हाथ वह लग गया तो उसके जीवन के लिए बड़ी समस्या उपस्थित हो जायेगी। जो भी कार्य यहां से निकलने के लिए किया जा सकता है किया जा सकता वह अभी रात्रि में ही उसे अभी करना होगा अन्यथा बहुत देर हो जायेगी। यह विचार करके उसने अलमारी के अन्दर से अलमारी को इस तरह से खुरचने लगा जैसे कोई चूहा या बिल्ली अलमारी में फंस गई है। खुरचने की आवाज को सुन उस घर की नौकरानी जाग गई और उसने विचार किया जरूर कोई बिल्ली अलमारी के अन्दर फंस गई है इसलिए उसने एक हाथ में चाभी का गुच्छा लिया और दूसरे हाथ में उसने एक दीपक लेकर वह अलमारी के पास आई और उसको खोलने लगी जैसे ही अलमारी खुली उस चोर के बेटे तुरन्त दीपक पर फुंक मार कर उसको बुझा दिया और उस औरत को धक्का देकर एक तरफ ढकेलते हुए जिस मार्ग से मकान के अन्दर आया था उसी रास्ते से वह बाहर की तरफ अपने पैर को अपने सर पर रख कर वहां से भागा। जब उस नौकरानी ने चोर को देखा तो उसके तो हास उड़ गए उसने किसी तरह स्वयं को जल्दी से संतुलित किया और चिल्लाने लगी चोर-चोर उसकी आवाज को सुन कर उस घर के सभी सदस्य उठ खड़े हुए और पड़ोसी भी जाग गये और पूछा कहां है चोर नौकरानी तुरन्त उस सुराग को दिखाया जिससे वह बाहर की तरफ भागा था। सभी लोग उस चोर के बेटे के पीछे लग गये उसको पकड़ने के लिए चिल्लाते हुए पकोड़ों मारो। चोर का लड़का तो ऐसे भाग रहा था जैसे नदी समन्दर की तरफ वारिस के दिनों में भागती है। तूफान के समय में जैसे धुल के कण हवा के साथ भागते है। जब उसने देखा की इस तरह से इन सब लोगों से स्वयं की जान को बचाना बहुत दुर्गम कठिन होगा। तभी उसकी निगाह रास्ते में एक कुएँ पर पड़ी जिसके पास ही एक बड़ा पत्थर पड़ा था उसने तुरन्त पलक झपकते ही उस पत्थर के टुकड़े को उठा कर अपनी पूरी ताकत के साथ जोर से कुएँ में फेंक पत्थर के कुएँ में गिरते ही बहुत तेज आवाज हुई जो लोग उस चोर पीछे उसको पकड़ने के लिए भाग रहे थे जब तक वह सब कुएँ के पास पहुंचे उससे पहले ही वह चोर का लड़का स्वयं को कुएँ पास के ही झाड़ीयों में छुपा लिया और लोगों ने समझा की वह चोर कुएं में कुंद गया है सभी लोगों ने उस कुएँ को चारों तरफ से घेर लिया और चोर को कुएं में से निकालने का विचार करने लगें।

 

    जबकि चोर का लड़का उन झाड़ीयों से निकल कर पीछे के मार्ग से अपने घर पहुँचा तो क्या देखता है? उसका पिता अपने मुंह पर कम्बल डाल कर खर्राटे मार-मार कर आराम सो रहा है। उसने अपने पिता के मुंह से कम्बल को खींचा और पूछने लगा की तुमने क्या किया? मुझको फंसा कर चले आए और यहां आराम से सो रहें हो, वहां मेरी जान पर मुसीबत आ पड़ी थी। उसके पिता ने उंघते हुए कहा तो तुम आ गए चलो अब सो जाओ सुबह इसके बारे में बात करेंगे। इसके बाद पुनः मुंह पर कम्बल डाल कर सोने लगा। उसके बेटे ने कहा यह क्या कर रहें हो तुम मुझे बताओ वहां मुझको छोड़ कर क्यों चले आए नहीं तो मैं सो नहीं पाउगा? उसके पिता ने कहा यह कार्य रोज नया होता है और रोज नया घर नयी अवस्था में जाते हैं इस कार्य में पुराना किसी प्रकार कोई अनुभव काम नहीं आता है वह भले ही मेरा ही अनुभव क्यों ना हो? यहां तो स्वयं का निजी ज्ञान और अनुभव ही काम आता है। जो तुम ने कर लिया है अब तुम पक्के चोर बन गए हो कल से तुम अकेले ही चोरी करने के लिए जा सकते हो। होगा भी क्यों नहीं तुम मेरे बेटे हो और तुम्हारे अन्दर मेरा खून है मेरा सारा गुण तुम्हारे अन्दर होना ही था। सुफी झेन कहते है कि जिस प्रकार चोरी करने में किसी प्रकार का पुराना अनुभव काम नहीं आता है क्योंकि रोज नए घर में और नई परिस्थिति जाना पड़ता है। उसी प्रकार से सत्य की जिसको प्यास है उसके लिए भी सब कुछ हर पल नया होता है। वहां पर किसी दूसरे का अनुभव कभी भी स्वयं के काम नहीं आता है।


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