👉 भक्ति और संपत्ति
एक बार काशी के निकट के एक इलाके के
नवाब ने गुरु नानक से पूछा, ‘आपके प्रवचन का महत्व ज्यादा है या हमारी
दौलत का? ‘नानक ने कहा, ‘इसका जवाब
उचित समय पर दूंगा।’
कुछ समय बाद नानक ने नवाब को काशी
के अस्सी घाट पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं लेकर आने को कहा। नानक वहां प्रवचन कर रहे
थे। नवाब ने स्वर्ण मुद्राओं से भरा थाल नानक के पास रख दिया और पीछे बैठ कर
प्रवचन सुनने लगा। वहां एक थाल पहले से रखा हुआ था।
प्रवचन समाप्त होने के बाद नानक ने
थाल से स्वर्ण मुद्राएं मुट्ठी में लेकर कई बार खनखनाया। भीड़ को पता चल गया कि
स्वर्ण मुद्राएं नवाब की तरफ से नानक को भेंट की गई हैं। थोड़ी देर बाद अचानक नानक
ने थाल से स्वर्ण मुद्राएं उठा कर गंगा में फेंकना शुरू कर दिया। यह देख कर वहां
अफरातफरी मच गई। कई लोग स्वर्ण मुदाएं लेने के लिए गंगा में कूद गए। भगदड़ में कई
लोग घायल हो गए, मारपीट की नौबत आ गई। नवाब को समझ में नहीं आया कि आखिर
नानक ने यह सब क्यों किया। तभी नानक ने जोर से कहा, ‘भाइयों,
असली स्वर्ण मुद्राएं मेरे पास हैं। गंगा में फेंकी गई मुदाएं नकली
हैं। आप लोग शांति से बैठ जाइए।’ जब सब लोग बैठ गए तो नवाब ने पूछा, ‘आप ने यह तमाशा क्यों किया?
धन के लालच में तो लोग एक दूसरे की
जान भी ले सकते हैं।’नानक ने कहा, ‘मैंने जो कुछ किया वह आपके प्रश्न का
उत्तर था। आप ने देख लिया कि प्रवचन सुनते समय लोग सब कुछ भूल कर भक्ति में डूब
जाते हैं। लेकिन माया लोगों को सर्वनाश की ओर ले जाती है। प्रवचन लोगों में शांति
और सद्भावना का संदेश देता है मगर दौलत तो विखंडन का रास्ता है।‘ नवाब को अपनी
गलती का अहसास हो गया।
जब राजा का घमंड टूटा
एक राज्य में एक राजा रहता था जो
बहुत घमंडी था। उसके घमंड के चलते आस पास के राज्य के राजाओं से भी उसके संबंध
अच्छे नहीं थे। उसके घमंड की वजह से सारे
राज्य के लोग उसकी बुराई करते थे।
एक बार उस गाँव से एक साधु महात्मा
गुजर रहे थे उन्होंने ने भी राजा के बारे में सुना और राजा को सबक सिखाने की सोची।
साधु तेजी से राजमहल की ओर गए और बिना प्रहरियों से पूछे सीधे अंदर चले गए। राजा
ने देखा तो वो गुस्से में भर गया । राजा बोला – ये क्या उदण्डता है महात्मा जी, आप
बिना किसी की आज्ञा के अंदर कैसे आ गए?
साधु ने विनम्रता से उत्तर दिया –
मैं आज रात इस सराय में रुकना चाहता हूँ। राजा को ये बात बहुत बुरी लगी वो बोला-
महात्मा जी ये मेरा राज महल है कोई सराय नहीं, कहीं और जाइये।
साधु ने कहा – हे राजा, तुमसे
पहले ये राजमहल किसका था? राजा – मेरे पिताजी का। साधु – तुम्हारे
पिताजी से पहले ये किसका था? राजा– मेरे दादाजी का।
साधु ने मुस्करा कर कहा – हे राजा, जिस
तरह लोग सराय में कुछ देर रहने के लिए आते है वैसे ही ये तुम्हारा राज महल भी है
जो कुछ समय के लिए तुम्हारे दादाजी का था, फिर कुछ समय के
लिए तुम्हारे पिताजी का था, अब कुछ समय के लिए तुम्हारा है,
कल किसी और का होगा, ये राजमहल जिस पर तुम्हें
इतना घमंड है।
ये एक सराय ही है जहाँ एक व्यक्ति
कुछ समय के लिए आता है और फिर चला जाता है। साधु की बातों से राजा इतना प्रभावित
हुआ कि सारा राजपाट, मान सम्मान छोड़कर साधु के चरणों में गिर पड़ा
और महात्मा जी से क्षमा मांगी और फिर कभी घमंड ना करने की शपथ ली।
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