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संत की चिन्ता

 

👉 संत की चिन्ता

 

🔶 एक नगर में एक संत चिन्ता में खोये हुए थे! संसारी का रोना स्वार्थ का होता है उसकी चिन्ता अपने स्वार्थ के लिये होती है पर सच्चे संत का रोना और उनकी चिन्ता परमार्थ के लिये होती है !

 

🔷 एक नगर के बाहर एक संत रहते थे कई व्यक्ति वहाँ आया जाया करते थे और वहाँ सच्चे जिज्ञासु भी अकसर वहाँ आया जाया करते थे! अनेक लोग आते और केवल अपने दुखों का रोना रोते और चले जाते! एक दिन संत श्री नगर भ्रमण गये और वापस आकर पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गये और बड़ी चिन्ता में डुबे हुए गहरे चिंतन में खोये हुए थे इतनी चिन्ता में खोये हुए थे की उनके सामने अनेक व्यक्ति और जिज्ञासु का दल आकर बैठ गया पर उन्हें पता न चला! फिर सहसा उनकी दृष्टि उनपर पड़ी!

 

🔶 जिज्ञासु दल - क्या हुआ नाथ आप ऐसी कौन सी चिन्ता में खोये हुए थे?

 

🔷 संत श्री ने कहा- हे वत्स जब महानगर को देखा तो उसकी हालत देखकर बड़ा दुःख हो रहा है! चारों तरफ आग लगी हुई है!

 

🔶 जिज्ञासु - कैसी आग हे नाथ?

 

🔷 संत श्री - आग लगी है चारों तरफ़ कुसंस्कारों की, अंधी दौड़ की, अश्लीलता की, मूर्खतापूर्ण देखादेखी की, कामवासना की और आसूरी शक्तियां छाई हुई है चारों तरफ समझदार समझ जायेगा आग से बच जायेगा पर मूर्ख और कुतर्की आग में जलकर राख हो जायेंगे मिट्टी में मिलकर खाक हो जायेंगे!

 

🔶 साधक - तो हम क्या करें देव?

 

🔷 संत श्री - अपना कर्तव्य निभाओ और आपका पहला कर्तव्य है की आप अधिक से अधिक को इस आग से बचाओ दूसरा कर्तव्य है की आसपास के लोगों को बचाओ और कोई न सुने तो कम से कम अपने आपको तो इस आग से बचाओ!

 

🔶 जिज्ञासु - कैसे बचाये हे नाथ इस भयंकर ज्वाला से?

 

🔷 संत श्री - भक्तिरूपी नियमित साधना की चादर ओढ़ लो वत्स और साधना की चादर अधिक से अधिक लोगों को ओढ़ाओ और मूर्ख और कुतर्की न ओढ़े तो कम से कम तुम तो अपने आप को नियमित-साधना की चादर से अपने आपको बचाओ! और एक बात याद रखना वत्स ये आग बड़ी भयंकर है जो दिख रही है समझ भी रहे है पर अपनों कुतर्कों की वजह से और धर्म व संत की अवहेलना करने की वजह वह इस आग में जल रहे है!

 

🔶 सभ्यता और मर्यादाओं का उल्लंघन पर उल्लंघन किए जा रहे है बार - बार समझा रहे है की सच्ची शान्ति चाहते हो तो धर्म वृक्ष की छाँव में मर्यादा से बैठ जाओ! अब जो मान लेगा तो कल्याण हो जायेगा और जो नहीं मानेगा उन्हें फिर भयंकर दूरगामी परिणाम भोगने पडेंगे!

 

🔷 इसलिये ईश्वर से यही प्रार्थना करना की हे नाथ ऐसी बुद्धि देना की मैं आपको भूले नहीं और यदि एक को याद रख लिया और बाकी को भूल भी गये तो कोई दिक्कत नहीं और यदि सब को याद रख के उस एक को भुला दिया तो कोई मतलब नहीं !

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