👉 तृष्णा
🔶 एक व्यापारी था, वह
ट्रक में चावल के बोरे लिए जा रहा था। एक बोरा खिसक कर गिर गया। कुछ चीटियां आयीं
10-20 दाने ले गयीं, कुछ चूहे आये 100-50 ग्राम खाये और चले
गये, कुछ पक्षी आये थोड़ा खाकर उड़ गये, कुछ
गायें आयीं 2-3 किलो खाकर चली गयीं, एक मनुष्य आया और वह
पूरा बोरा ही उठा ले गया।
🔷 अन्य प्राणी पेट के लिए जीते हैं, लेकिन
मनुष्य तृष्णा में जीता है। इसीलिए इसके पास सब कुछ होते हुए भी यह सर्वाधिक दुखी
है।
आवश्यकता के बाद इच्छा को रोकें, अन्यथा
यह अनियंत्रित बढ़ती ही जायेगी, और दुख का कारण बनेगी।✍🏻
चौराहे पर खड़ी जिंदगी,
नजरें दौड़ाती हैं।।। 👀
काश कोई बोर्ड दिख जाए
जिस पर लिखा हो।।। ✍🏻😌🙏🏻
"सुकून।।
0.
कि।मी।"
बड़प्पन का व्यावहारिक मापदण्ड
🔷 एक राजा थे। बन-विहार को निकले। रास्ते में
प्यास लगी। नजर दौड़ाई एक अन्धे की झोपड़ी दिखी। उसमें जल भरा घड़ा दूर से ही दीख रहा
था।
🔶 राजा ने सिपाही को भेजा और एक लोटा जल माँग
लाने के लिए कहा। सिपाही वहाँ पहुँचा और बोला- ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे। अन्धा
अकड़ू था। उसने तुरन्त कहा- चल-चल तेरे जैसे सिपाहियों से मैं नहीं डरता। पानी
तुझे नहीं दूँगा। सिपाही निराश लौट पड़ा। इसके बाद सेनापति को पानी लाने के लिए
भेजा गया। सेनापति ने समीप जाकर कहा अन्धे! पैसा मिलेगा पानी दे।
🔷 अन्धा फिर अकड़ पड़ा। उसने कहा, पहले
वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। फिर भी चुपड़ी बातें बना कर दबाव डालता है,
जा-जा यहाँ से पानी नहीं मिलेगा।
🔶 सेनापति को भी खाली हाथ लौटता देखकर राजा स्वयं
चल पड़े। समीप पहुँचकर वृद्ध जन को सर्वप्रथम नमस्कार किया और कहा- ‘प्यास से गला सूख
रहा है। एक लोटा जल दे सकें तो बड़ी कृपा होगी।’
🔷 अंधे ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और
कहा- ‘आप जैसे श्रेष्ठ जनों का राजा जैसा आदर है। जल तो क्या मेरा शरीर भी स्वागत में
हाजिर है। कोई और भी सेवा हो तो बतायें।
🔶 राजा ने शीतल जल से अपनी प्यास बुझाई फिर नम्र
वाणी में पूछा- ‘आपको तो दिखाई पड़ नहीं रहा है फिर जल माँगने वालों को सिपाही
सरदार और राजा के रूप में कैसे पहचान पाये?’
🔷 अन्धे ने कहा- ‘वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति
के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है।’
👉 जिस मरने से जग डरे, सो
मेरे आनन्द
🔶 प्रसिद्ध क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को
जब फाँसी की सजा सुनाई गई, तो उनके आँखें डबडबा गईं। माँ बोली,
"राम, देश की आजादी के लिए तेरे जैसे
बलिदानी बेटे को जन्म देने के लिए मैं स्वयं को धन्य मानती थी। पर तेरी आँखो के
आँसुओं ने मुझे निराश कर दिया। मैं तो सोच रही थी कि मेरा बेटा हँसते-हँसते फाँसी
के तख्ते पर चढे़गा, पर……।।"।
🔷 वीर बिस्मिल ने बीच में ही टोकते हुए कहा, "माँ, भले ही दूसरे लोग 'मृत्यु'
शब्द सुनते ही भय से काँप उठते हो, पर मैं
उनके समान कायर नहीं हूँ। तुमने मुझे उन्हीं के जैसा कैसे मान लियी? मैंने तुम जैसी वीर माता के कोख से जन्म लिया है। ऐसा पुत्र फाँसी की
पूर्वसन्ध्या पर मुझे विदा करने तुम्हें आया देख और तेरी आँखों में हर्ष और उमंग
की झलक पाकर मेरी आँखों से खुशी के आँसू निकल आए। माँ मैं वचन देता हूँ कि अगले
जन्म में भी तुम्हारी ही कोख से जन्म लूँगा।" इतिहास साक्षी है कि मृत्यु से
अभय यह वीर सपूत फाँसी के फन्दे पर हँसते-हँसते झूल गया।
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