👉 प्राण देकर बीज बचाये
🔶 यज्ञ की श्रेष्ठता उसके वाह्य स्वरूप की विशालता
में नहीं अन्तर की उत्कृष्ट त्याग वृत्ति में है। यज्ञ के साथ त्याग- बलिदान की अभूतपूर्व
परम्परा जुड़ी हुई है। यही संस्कृति को धन्य बनाती है।
🔷 एक बार विदर्भ देश में जोर का अकाल पड़ा। एक
गाँव में किसी के पास कुछ भी न बचा। उसी गाँव के एक किसान के पास एक कोठी भरा धान
था। वह उससे कई महीने तक अपने परिवार का भरण- पोषण कर सकता था, लेकिन
उसे ध्यान आया कि अगले वर्ष मौसम के समय खेतों में बोने के लिए बीज न मिलेगा तो
फिर से सबको अकाल का सामना करना पड़ेगा। किसान ने उस धान के कोष को खाने में खर्च
नहीं किया और सपरिवार सहर्ष मृत्यु की गोद में सो गया।
🔶 लोगों ने सोचा कि काफी अन्न होते हुए भी किसान
परिवार क्यों मर गया। लेकिन उसकी वसीयत को पढ़कर सभी किसान की महानता पर हर्ष सें आँसू
बहाने लगे। उसमें लिखा था, "मेरा समस्त अन्न खेतों में फसल बोने
के समय गाँव में बीज के लिए बाँट दिया जाय। " वर्षा हुई और चारों ओर नई
लहलहाती फसल से लग रहा था मानो किसान मरा नहीं अपितु असंख्यों जीवधारी के रूप में
हरे- भरे खेतों में लहलहाता फिर से धरती
पर उतर आया हो।
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