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विवेकहीन बदले की भावना

 

 

👉 विवेकहीन बदले की भावना

 

🔷 एक दिन एक साँप एक बढ़ई की औजारों वाली बोरी में घुस गया। घुसते समय बोरी में रखी हुई बढ़ई की आरी उसके शरीर में चुभ गई, और उसमें घाव हो गया, जिस से उसे दर्द होने लगा, और वह विचलित हो उठा। गुस्से में उसने उस आरी को अपने दोनों जबड़ों में जोर से दबा दिया।

 

🔶 अब उसके मुख में भी घाव हो गया और खून निकलने लगा। अब इस दर्द से परेशान हो कर उस आरी को सबक सिखाने के लिए अपने पूरे शरीर को उस साँप ने उस आरी के ऊपर लपेट लिया, और पूरी ताकत के साथ उसको जकड़ लिया। इस से उस साँप का सारा शरीर जगह - जगह से कट गया और वह मर गया।

 

🔷 ठीक इसी प्रकार कई बार, हम तनिक सा आहत होने पर आवेश में आकर सामने वाले को सबक सिखाने के लिए, अपने आप को अत्यधिक नुकसान पहुंचा देते हैं।

 

🔶 यहीं ज्ञान और शिक्षा, हमारे जीवन में हमारा मार्गदर्शन करते हैं, और हमारे विवेक को जागृत करते हैं।

 

🔷 यह जरूरी नहीं कि हमें हर बात की प्रतिक्रिया देनी है, हमें दूसरों की गलतीं को नजर अंदाज करते हुए  अपने परम पथ पर अग्रसर होना है और यह नहीं कि दूसरे को उसकी गलती की सजा देने के लिए हम अपने लक्ष्य और पथ से विचलित हो जाएं।

 

🔶 इसलिए अपने विवेक को सकारात्मक कार्यों, विचारों में इस्तेमाल करें।

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