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कहानी स्वयं केहोने की

 


         बैजुनाथ कि आखिरी बहु सुमित्रा अब भि वह अपने मायके अपने भाई के साथ रहति थी| जब उसे यह पत चला कि मुरलिधर कि मृत्यु कर दी गई है उस समय तक वह भी बृद्ध हो चुकी थी| उनका छोटा भाई अयोद्धा प्रशाद जिसके साथ वह रहती थी| मुरली धर के चार पुत्रों ने अब बैजु कि सम्पत्ती को सम्हालने का कार्य करते सबकी शादी हो चुकी है| जिसमें से रमाशंकर का पुत्र चार पुत्र में दुसरा पुत्र यशवंत है| जिसकी शादी सुमित्रा अपने भाई अयोद्धा प्रशाद की आखीर पुत्री से करा देती है जिसका नाम श्यामा है| जो आर्यन की मां है, जैसा कि मैने पिछे थोड़ा परिचय करया था| इस तरह से बैजु कि सारी सम्पत्ती और जमिन मुरली के चार पुत्रों में हमेशा के लिये आ गई| जिसके कुछ समय बाद सुमित्रा की मृत्यु हो गई, उससे कुछ पहले जब यशवन्त की बारात शादि कर के वापिस आये ठीक उसी दिन मुखिया का बड़ा लड़का जो बहुत बड़ा योद्धा था उसको कुछ उसके शत्रु मिल कर पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिये घेर लिया जब वह बाजार में डाढ़ी एक नाई की दुकान पर बैठ कर बनवा रहें थे| और वहा पर उनको गोली मार दिया वहां से तत्काल उनको बनारस ले जाया गया जहां पर शत्रुओं चिकित्शक को पैसा दे कर और उसे धमका कर बचाने के अस्थान पर जहर की सुई लगा दिया जिससे उनकी कुछ समय में मृत्यु हो गई| उनके बाद कोई उतना बड़ा महान शुरमा पुरूष व्यक्ति उस परिवार में जन्म नही लिया | उनकी तलवार आज भी है जिसको कोई चलाने वाला नहीं है| इस सब का दोसी पुरा मुखिया परिवार श्यामा को मानता है उसके साथ जानवर जैसा व्यवहार करते है जिसमें सबसे प्रथम यशवन्त अग्रणी है वह सब परिवार के लोगो को खुस करने के लिये तरह- तरह की यातना और अपमान देना सबका पेशा बन गया और श्यामा कि नियत बन गई जो सभी सम्पत्ती कि मालकिन बन कर आई थी उसको दाशी बना कर रखा जाने लगा| और जो दाश थे वह सब यशवन्त को आगे कर के मालिक बन गये| मुखिया से भी अब सारा कारो बार नहीं सम्हाला गया वह भी बिमार हो गया और उसको किड़े उशके शरिर में पड़ गया और वह भी तड़प-तड़प कर एक दिन चार पाई पर दम तोड़ दिया|


   इस तरह से उस ब्रह्म पुरा क्षेत्र का स्वामित्व मुरली के बड़े लड़के माता शंकर के उपर आगई और यहां इन सब का भयंकर पतन होना शुरु हो गया क्योंकि यह सब अब स्वेच्छाचारी व्यभीचारी और बहुत सारे दुर्गुणो के शिकार हो गये थे| सबकी आपस में फुट पड़ गई और कुछ ही सालो में सभी भाई अलग हो गये और सबने जमिनों मे बटवारा कर लिया| इसके बाद वहां पर सरकारी जो सिहं जाती के लोग आकर बशे थे वह सब हाबी हो गये|

   आर्यन के जीवन को समझने के लिये लिये उसके कुछ पिछले पुर्वजो को समझना जरुरी है क्योंकि जो भि पिछे हुआ है उसका परिणाम आर्यन के जीवन पर पड़ने वाला है| जब तक हम पिछली घटनाये वह जो मुख्य कारण है उसको नहीं समझते तो पुरी तरह से उसे समझ नही सकते है| अब हम वर्तमान युग में आते है| और आर्यन के के जीवन को समझते है आगे इन घटनाओं का तारतम्य आर्यन से होगा समय आने उससे भि परिचय कराया जायेगा|

जैसा कि हमने परिचय कराया पहले कि श्यामा यशवन्त कि पत्नी और आर्यन कि मां जिसको यशवन्त बराबर ताने मारता और उसे हमेशा बुरा भला कहता है| उसके माता पिता भी उसका सहयोग करते थे क्योंकि उस समय यशवन्त अपने माता पिता और अपने भाई बहनो के साथ संयुक्त परिवार में रहता था| सभी लोग मिल श्यामा को सभी तरह के यातना देते थे| और वह यशवन्त को अपना पति परमेश्वर होता है ऐसा उसको समझाया गया वह अब भी ऐसा ही समझती है| वह भोली-भालि, सरल चित्त निर्दोष स्वभाव की औरत है| जैसा कि कहा गया है सिधा सरल वृक्ष जंगल का सबसे पहले काटा जाता है ऐसा ही कुछ श्यामा के साथ होता रहा था| वह दूसरों के कड़वे जहर के घुट पिकर हमेंशा सबके क्रुर वर्ताव को बर्दास्त करती थी इसके शिवाय उसके पास कोई और चारा भी तो नहीं था | क्योंकि जब रक्षक हि भक्षक बन जाये तो कोई चाह कर भी क्या करें? और उसके पिता अयोद्धा प्रशाद जी जब मजबुत थे उस समय उनके प्रभाव और पुरानी रिस्तेदारी कि वजह से बिवाह हो गया था| जैसा कि पहले बतया गया लेकिन अब समय बदल गया है उस समय श्यामा के पिता ने अच्छा खासा दहेज भी दिया था लेकिन समय कि मार ने सब कुछ गुण गोबर एक कर के उसके सामने रख दिया| जब श्यामा के परिवार वाले कमजोर हो गये, तो यशवन्त का रोब अत्यधिक बढ़ने लगा| वह अपने बाप का बिल्कुल सुनता नहीं था और अपनि मां का दुलारा था जिससे उसका पारा सातवें आसमान पर ही रहता था| वह यही समझता है कि वह जो भी कर रहा है वह अच्छा ही है| उसकी मां हमेशा यशवन्त का ही साथ देती थी| बात- बात पर श्यामा को ताने मारना कलुटी -- तु पागल है, अनपढ़ है,गन्दे स्वभाव की बेहया है इत्यादि अपशब्द अशोभनिय भासा का उपयोग करना उन सब कि दिन चर्या बन चुकी थी| खाने में कमि निकलना उसके प्रासः सभी काम में यशवन्त और उसकी मां को कमी नजर आती थी| जिसका बहाना बना कर उसे प्रताणित करते प्रायः मारते पिटते इत्यादि कुकर्मो को निरन्तर करते थे| वास्तव में यशवन्त एक बहुत निकृष्ट घटिया स्वभाव का मनचला स्वच्छन्द, आवारा, बदचलन, बदमिजाज अत्यन्त दुष्ट प्रकृत का हिन्सक स्वभाव का पुरुष स्वयं था| अपने सामने किसी की ना सुनने और मानने वाला स्वयं को सर्वे सर्वा सर्वस्व समझने वाला अपने शिवाय सभी को मुर्ख समझता था| या युं कहे तो गलत नहीं होगा कि वह सामन्जस्य तालमेल बनाने कि कला से बिल्कुल अन्भिज्ञ व्यक्ती था| जिसका सबसे अधिक प्रभाव उसके भावी जीवन के व्यक्तिगत परिवार पर पड़ता है| मुह में राम,बगल में छूरी वाली, बात उस पर खुब जचती है| वह श्यामा कि सिधाई और सरलता का फायदा आये दिन आजिवन उठाता रहा, क्योंकि श्यामा का कोई सहयोग करने वाला नहीं था| उसके तिन भाई थे वह तिनों बहुत कम पढ़ लिखे मन्द बुद्धि के व्यक्ति और बहुत अधिक सज्जन उसके जैसे ही स्वभाव  के पूरुष थे| जो किसी प्रकार से श्यामा कि सहायता करने में समर्थ नहीं थे| इसलिये श्यामा भगवान भरोशे ही रहती थी क्योंकि लोगों से उसने सुन रखा था कि जिसका कोई नहीं होता है, उसका भगवान होता है| इसमें कितना सत्य है, वह यह नहीं जानती थी| लेकिन वह यह अवश्य मानती थी कि कोई शक्ति है जिसने इस जगत का सृजन किया है वही सब को उसके अच्छे बुरे कर्मो की सजा और पुरष्कार देता है| और उसी अदृश्य शक्ति पर भरोशा करके उन सब की सारी दुस्वारियों और असहनिय शारिरीक मानशिक आत्मिक क्लेशों को सह कर जिवन का निर्वाह करती रहती है| उसी प्रकार से करती जैसे एक भयंकर अपराध कि सजा याप्त कैदी जिस प्रकार जेल में अपनी सजा को काटता है| इसमें फर्क सिर्फ इतना है कि जेल का कैदी अपनी सजा कुछ दिन साल या महिनों के दीन पुरा होने पर जेल से मुक्त हो जाता है| और यहां पर श्यामा को इस सजा याप्त जीवन से मुक्त केवल उसकी मौत कर सकती है लेकिन अभी मौत कहां आरही है अभी तो उसको बहुत कुछ लिखना जिवन के इतिहास में जो अभी शेष भविष्य कि अन्धेरी गर्त में विद्यमान है | इसी प्रकार से यशवन्त के साथ उसकी जीवन नैया संसार सागर में हिलकोरे खाती हूई चलती रही| कभी मझंदार के भंवर में तो कभि साहिल किनारें की तरफ, परिन्दे के समान कभी भाउक हो कर कल्पना के आकाश में बिचरण करती थी| समय ने करवट लि और श्यामा कि कोख से आर्यन जैसा कुन्दन बहुमूल्य पारसमणि उसके सहयोग उसको उसके दुःख सागर से उत्पन्न करने के लिये अवतरित हुआ| क्योंकि कहा गया है पुत्र अर्थात जो पु नरक दुःख है उससे त्राण त्र तारने पार करने वाला है वही वास्त्व में पुत्र है| जिस प्रकार कृष्ण अपने मां बाप को दुःखो से मुक्त करने के अपनी मां देवकी गर्भ से उत्पन्न होते है उसी प्रकार से आर्यन का उद्भव होता है| यहां पर आधुनिक बासुदेव है और आधुनिक देवकी है| बासुदेव के समान यशवन्त भी है वह समाज और परिवार के दबाव के कारण अपना सारा क्रोध और शक्ति का प्रयोग श्यामा पर करता है बाद में आगे चल कर आर्यन पर भी वहीं प्रक्रिया दोहराता है| लेकिन वहां से स्विकारोक्ति नही हैं प्रतिकार होता है जो आगे प्रस्तुत किया जायेगा अभी तो उसके जन्म की उत्सव का समय है| जिस प्रकार से कृष्ण के जन्म के समय भयंकर आंधी का आना और बारिष का निरन्तर कई दिनों तक पानी का बरसना नदी में भयंकर बाढ़ का आना सब कुछ वैसा ही था| लेकिन समय का अन्तर वह समय आर्यन के जन्म से ५१५० साल पहले का था| लेकिन प्रकृत वहीं साक्षी थी उसने कृष्ण के जन्म का भी खुब उत्सव मनाया था ऐसा ही कुछ आर्यन के जन्म पर भी किया यह सब संयोग कि बात ही है| कहां योगेश्वर कृष्ण कहां आर्यन दोनों में जमिन आसमान का फर्क है इसका निर्णय हम नहीं समय स्वयं करेगा| क्योंकि मानव बहुत बेबस और लाचार है वह सब कुछ नहीं जानत ना हि सब कुछ समझता ही है| कुछ प्रश्नों का उत्तर मानव के पास नहीं है| जिसका उत्तर वह स्वयं नहीं दे सकता है उसको या तो समय स्वयं उसका उत्तर देता है या फिर कोई योगी रहस्यदर्शि ही दे सकता है| आर्यन काफी सुन्दर बच्चा था | लोग बहुत खुस थे यद्यपि यशवन्त उससे कोई खास प्रशन्न नहीं था वह उसे एक नई मुसिबत के रुप में समझता था| क्योंकि यशवन्त अपने चार भाई और एक बहन में दूसरे नम्बर पर था, वह परिवार के और सदस्यें के साथ कृषि के कार्यों में हाथ नही बटाता था उसे अपना पुस्तैनि कार्य बहुत घटिया और निम्न कोटि का दिखाई देता था वह मौज मस्ती और जीवन की रंगिनीयों का आनन्द भोगना चाहता था जबकि परिवार के बड़े बुजुर्ग उससे चाहते थे, कि वह घर कि जिम्मेदारियों में उनका कुछ सहयोग करें ,क्योंकि परिवार काफी बड़ा था उसकी अपनी कुछ मान मर्यादा मान सम्मान समाज में वह उसे बरकरार रखना चाहते थे जो अब धिरे धिरे गिरने लगा था | क्योंकि प्रायः लोग काम से भागने लगे सब आराम पसन्द हो गये थोड़ी किसी वस्तु कमी और घर में भाईयों अथवा और सदस्यो से वह बवाल झगड़ा फसाद पर उतारु हो जाता था जो सभी के लिये चिन्ता विषय बन गया था| यशवन्त से बड़ा एक भाई था वह भी अभी बेकार था, जिसका अपना भि बड़ा परिवार हो गया था| यशवन्त और श्यामा के मध्य उनकी दुसरी समतान एक लड़की पैदा हुई, उसके बाद उसके दो लड़के और हुये, इस तरह से आर्यन अपने तिन भाई और एक बहन में सबसे बड़ा पुत्र है| श्यामा के लिए अब और मुसिबत बढ़ गई, उसे अपने चार बच्चो कि देख भाल के अतरिक्त और बहुत अधिक कार्य जो पहले नौकर करते थ अब वह सारा कार्य ईर्श्या और द्वेश के कीरण कराया जाता है| खुद घर के सभी सदस्यों के लिये अकेल खाना पकाना जो २०-२५ लोगों का बड़ा संयुक्त परिवार था उन सब लोगों  के लिये, और उसके लिये पुराने समय में पत्थल की चक्कि हुआ करती जिसमें आटा पिसना  और इसके अतिरिक्त घर के बहुत सारे कार्य जो श्यामा को नियमित करने पड़ते थे| जो श्यामा के लिये बहुत अधिक पड़ते थे| चार छोटे बच्चों को पालना उनके लिये आवश्यक बस्तुओं को एकत्रित करना, जिसके लिये पहले यातना सहना , मार खाना फिर किसी वस्तु को प्राप्त करना, जो उसके लिये आशिर्वाद बन गया था| इस पर भी श्यामा यशवन्त को गन्दी और भद्दी दिखाई देती थी वह चाहता था वह हमेंशा सजी और सवरीं उसे दिखाई दे, उसे अपने बच्चे पसंद नहीं आते थे उसको फुटि आंख नही सुहाता था| अपना परिवार इस लिये वह  बच्चों को भी खुस नहीं देखना चाहता था| उसे हमेंशा रोते -बिलखते और गन्दे कपड़ों मे रखना बच्चों को अच्छा नहीं लगता था| वह जब भि घर पर रहता तो उसकी मँ प्रायः उससे शिकायत कर के उसको भड़काती कि  उसकी पत्नी क्या गल्तियां कि है, जिसके लिये वह कहती इसनेे खाना अच्छा नही बनायी उसमें नमक अधिक डाल दिया मिर्च मशाला का इसको अंदाज नहीं है| मैने इसको साबुन दिया लेकिन शुवर ने कपड़ा साफ नहीं किया इत्यादि इत्यादि, जिसको सुन कर अपनी माँ को प्रशन्न करने के लिये यशवन्त जैसे इन्तजार ही करता था| कि उसे कोई शिकायत या मौका मिले बच्चों और श्यामा को प्रताड़ित दण्डित करने का वह झुठा रोब दिखाता और चाहता कि सब कुछ उसके इच्छा नुसार हो| साफ- सुथरा रहन- सहन और जैसा फिल्मों दिखाया जाता है सब कुछ ठीक वैसा ही हो, उस तरह का सब कुछ आधुनिक परिवार हो| यह तो श्यामा के लिये अत्यन्त मुस्किल और दुसाध्य कार्य था क्योंकि वह बहुत यथार्थ वादि महिला के साथ सरल प्रकृति की थी ज्यादा झुठा दिखावा करना उसे नहीं आता था, जबकि यशवन्त इसमें काफी माहिर किस्म का काल्पनिक व्यक्ति था| फिर भी श्यामा शवन्त के मन माफिक बनने के लि दिन रात जी तोड़ परिश्रम करती कि जिससे वह और उसकी माँ उस पर अपनी दया दृष्टि बनाये रखें और खुश रहें|   लेकिन वह सायद ही कभी अपने इस प्रयाश में वह सफल होती प्रायः उन सब का उसको लेकर रुग्ण दृष्टिकोण वाला स्वभाव बन गया था|क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति संसार को अपने अपने दृष्टि कोण या अपने नजरिये से देखता है|जैसा कि चारवाक इस संसार को भोग विलाश का आश्रय मानता है और कहता है कि कर्ज लेकर घी पीयो और जब तक जियों आनन्द से जीयो जिसका पक्षधर यशवन्त है| और दूसरी तरफ भारतिय दार्शनिक कहते है कि संसार दुःख है सर्वे विविकिनः संसार दुःख जिसका अनुभव श्यामा करती है दोनो एक साथ एक ही स्थान पर रहते है लेकिन दोनो कि अनुभूतिया बिल्कुल एक दूसरे से भिन्न है| इसीलिये कुछ लोग संसार को माया और कुछ लोग यथार्थ भी कहते है| संसार में दोनो वस्तुये है जो ज्यादा बुद्धिमान है वह  श्यामा के प्रकृत के है और जो थोड़े कम बुद्धिमान है वह चारवाक के प्रकृति के हैं| कुछ ऐसे भी है जो इन दोनो से विरक्त और निस्पक्ष रहते है जैसे किचड़ में कमल रहता है लेकिन वह किचड़ और पानी से निर्लिप्त रहता है|

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