सत्य बोलो! आर्यसमाज के नियम बनाते हुए महर्षि दयानन्द ने चौथे नियम में लिखा----------
"सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिये।" सत्य की महिमा महान् है । महाभारत में कहा है--
सत्यं स्वर्गस्य सोपानम् । सत्य स्वर्ग की सीढ़ी है।
सत्य क्या है ? सत्य का अर्थ है यथार्थ ज्ञान। जैसा देखा, सुना या अनुभव किया हो, उसे वैसा ही कहने का नाम सत्य है। ऋषि दयानन्द के शब्दों में "जो पदार्थ जैसा है, उसको वैसा ही कहना, लिखना और मानना सत्य कहाता है।"
सत्यवादी बनो क्योंकि सत्यवादी की सभी प्रशंसा करते हैं, सभी उसका विश्वास करते हैं, वह आदर और सम्मान का पात्र बन जाता है। चाहे कैसा ही संकट उपस्थित हो जाये, कितनी ही हानि हो जाये, असत्य कभी मत बोलो।
चारुदत्त ब्राह्मण के आदर्श को सामने रखो । लोग उसके ऊपर विश्वास करके अपनी धरोहर उसके पास रख जाया करते थे। एक बार कोई उसके पास अपने कुछ रत्न रख गया। दैवयोग से ब्राह्मण के घर चोरी हो गई और धरोहर के रत्न भी चोरी में चले गये । रत्नों के जाने का चारुदत्त को बड़ा दुःख हुआ। एक मित्र को पता लगा तो उसने पूछा, "क्या कोई साक्षी (गवाह) था?" चारुदत्त ने कहा, "साक्षी तो कोई नहीं था।" मित्र बोला, "तब तो कुछ भी बात नहीं, कह देना मेरे पास रक्खे ही नहीं।" उस समय चारुदत्त ने जो उत्तर दिया वह प्रत्येक व्यक्ति को आदर्श-वाक्य के रूप में सदा अपने सम्मुख रखना चाहिये । चारुदत्त ने कहा था
भैयेणाप्यर्जयिष्मामि पुनन्यास प्रतिक्रयाम् ।
अनृतं नाभिधास्यामि चारित्रभृशकारणम् ॥
(मृच्छकटिकम् ३ । २६)
भिक्षा के द्वारा भी धरोहर योग्य धन का उपार्जन कर मैं उसे लौटा दूंगा, किन्तु चरित्र को कलंकित करनेवाले झूठ का उपयोग नहीं करूंगा।
इसके विपरीत आज तो बात-बात पर झूठ बोला जाता है। आज तो अवस्था यह है एक सैनिक छुट्टी लेने के लिए अपने अधिकारी के पास पहुँचा और कहा, "मेरी धर्मपत्नी बीमार है, घर से सूचना आई है कि छुट्टी लेकर पहुँच जाऊँ।" अधिकारी बोला, "मैं तुम्हारे घर पत्र डालकर पूछ लेता हूँ, तुम सात दिन पश्चात् मेरे पास आना।" जब यह सैनिक सात दिन पश्चात् पुनः अपने अधिकारी के पास पहुंचा तो उसने बताया, "मैंने तुम्हारे घर पत्र डाला था। वहाँ से उत्तर आया है कि वह बिल्कुल ठीक है, अतः तुम्हें छुट्टी नहीं मिलेगी।" यह सुनकर सैनिक बाहर आया तो उसकी हंसी फूट पड़ी। अधिकारी ने उसे बुलाकर उसकी हेंसी का कारण पूछा तो उसने कहा, "मैं यह सोचकर हँसा था कि हम दोनों में बड़ा झूठा कौन-सा है ? मेरा तो अभी विवाह भी नहीं हुआ, फिर आपके पास चिट्ठी कहाँ से आ गई!"
सत्य बोलिये परन्तु आपके सत्य में भी माधुर्य हो । महर्षि मनु के शब्दों में-- सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयात्सत्यमप्रियम् ।
(मनु० ४ । १३८) सत्य बोलो, प्रिय भाषा में बोलो, सत्य को कटु भाषा में मत बोलो।
यह शरीर आत्मा का मन्दिर और परमात्मा का निवासस्थल है, अत: इसे गन्दा मत करो । असत्य भाषण से यह मन्दिर अपवित्र हो जाता है । आपके मुख से भूलकर भी असत्य वचन न निकले । यदि असत्य निकल ही जाये तो उसके लिए प्रायश्चित्त करो, पुनः असत्य न बोलने का व्रत लो।
सरलता को अपना रथ और सत्य को अपना शस्त्र बनाकर कार्यक्षेत्र में कूद पड़ो। आप जहाँ भी, जिस क्षेत्र में भी जायेंगे आपका स्वागत होगा और सफलता आपके गले में विजयमाला पहनायेगी। 'सत्यमेव जयते नानृतम्'-सत्य की ही विजय होती है, असत्य की नहीं । अतः सत्य बोलो !
ऐसा अनर्गल असत्य भाषण मत करो। वेद के शब्दों में आपकी यह भावना होनी चाहिये
वाचः सत्यमशीय । (यजुः०३६ । ४) मैं अपनी वाणी में सत्य को प्राप्त करूँ।
सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप दीपक केवल बाह्य अन्धकार को दूर कर सकते हैं, परन्तु सत्य वह दिव्य-दीपक है जो आन्तरिक तम, अविद्या और अन्धकार को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। इसीलिए विद्वानों ने सत्य को श्रेष्ठ दीपक कहा है। वेद में कहा है
ऋतस्य धीतिव॒ जनानि हन्ति । (ऋ० ४ । २३ । ८) सत्य का आचरण पापों को नष्ट कर देता है। पाठकगण ! मनुष्य के लिए सत्य की रक्षा से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। जो असत्य भाषण करता है उसके अग्निहोत्र, तप, स्वाध्याय आदि सारे कर्म निष्फल हो जाते हैं। बुद्धिमान् पुरुषों ने संसार-सागर को तरने के लिए सत्य को ही सर्वश्रेष्ठ साधन बतलाया है। जब आप सत्यपथ से डगमगाने लगें और प्रलोभन आपको सताने लगें तो सत्यवादी हरिश्चन्द्र का स्मरण कर लिया करो। उनके जीवन को अपने समक्ष रक्खो । कितने संकट सामने आये। राज्य गया, परिवार से पृथक् हुए, डोम के यहाँ बिकना पड़ा, पुत्र भी चला गया, परन्तु बे सत्य से तनिक भी विचलित नहीं हुए। ___संसार में जो भी सुख-सामग्री है, वह सत्य से ही प्राप्त होती है । सत्य से ही सूर्य तपता है, सत्य से ही अग्नि जलती है, सत्य से ही वायु चलती है। सत्य से ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है, अतः सत्य को कभी न छोड़ना चाहिए।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know