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भर्तृहरिकृत शृंगार-शतक संस्कृत हिन्दी व्याख्या सहित भाग -1






 भर्तृहरिकृत

भर्तृहरिकृत शृंगार-शतक ।

शम्भुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणाना

येनाक्रियन्त सततं गृहकर्मदासाः।

कसवाचामगोचरचरित्रविचित्रिताय ।। 

तस्मै नमो भगवते कुसुमायुधाय ।।१।। 

   जिन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेशको, मृगनयनी कामिनियोंके बरका काम-धन्धा करनेके लिये, दास बना रखा है, जिनके वेचित्र चरित्रका वर्णन वाणीसे किया नहीं जा सकता,—उन पुष्पायुध भगवान् कामदेवको हमारा नमस्कार है,  भगवान् कामदेवकी विचित्र महिमाका पार नहीं । आपके जीब-अजीब कामों का बखान ज़बान से कौन कर सकता हैं?

    यद्यपि आपका शस्त्र फुलोंका धनुर्बाण है; तथापि अपने अपने इसी हथियार से त्रिलोकी को अपने अधीन कर रखा है। औरों की क्या चलाई, स्वयं जगत्के रचनेवाले ब्रह्मा, पालनेवाले विष्णु और संहार करनेवाले शिवजी तकको अपने बाकी नहीं छोड़ा। इन तीनों देवताओंको भी आपने, घरका काम-धन्धा करनेके लिये, कुरङ्गनयनी सुन्दरी कामिनियोंका गुलाम बना दिया है। यद्यपि भगवान् कामदेव भगवान् विष्णुके पुत्र हैं, पर आप अपने पितासे भी बढ़ गये। “गुरु गुड़ रहे और चेला चीनी हो गये” वाली कहावत आपने चरितार्थ की । आपने स्वयं अपने पिता पर ही हाथ साफ किये। उन्हें ही अनेक कुए झंकवाये। अपने पितासे लक्ष्मी और रुक्मिणी । प्रभृतिकी गुलामी करवा कर ही आपको सन्तोष नहीं हुआ।

    आपने उन्हें परनारी ब्रजबालाओं तक की मुहब्बतमें पागलसा कर दिया। यहाँ तक कि, उनसे मालिन और मनिहारिन तकके स्वाँग भरवाये। एक बार बेचारोको जलन्धर-पत्नो वृन्दाके यहाँ भेष बदलकर जाने तक पर मजबूर किया और शेषमें उनका फ़ज़ीता करवाया। । पूर्ण योगी, श्मशान-वासी शिवजी तकको आपने नहीं छोड़ा। बेचारोंको शैलसुताका क्रत-दास बना दिया, यहाँ तक तो खैर थी । आपने एक बार उनकी सारी सुध-बुध हर ली और मोहिनीके पीछे इसे बुरी तरहले दौड़ाया कि, हमसे तो लिखा तक नहीं जाता। एक और मौके पर शिवजी समाधि में । लीन थे। वहीं वनमें मृत्युलोक-वासिनी चन्द मृगलोचनी परम सुन्दरी युवतियाँ, अपनी रूपच्छटासे वनको प्रकाशमान करती हुई, क्रोड़ा कर रही थीं। उनके अपूर्व रूप-लावण्यको देख कर, शिवजीका शान्त मन अशान्त हो गया—उनके भोगनेके लिये अचल पड़ा। शिवजी, सारा शम-दम भूल, कामके वश हो, उनके पीछे दौड़े। आप अपनी शक्तिसे उन्हें आकाशमें ले गये और उनसे भोग-विलास करने लगे। पोछे गिरिजा महारानीको जब आपकी करतूत मालूम हुई, तो उन्होंने क्रोध में भर स्त्रियोंको तो नीचे पटका और भोले भण्डारीको डाँटडपटकर कैलाशमें लाई और ऊँच-नीच समझाकर फिर समाधिमें लगाया ॥

     कई वार आपने चार मैं हवाले, सृष्टिके रचयिता, ब्रह्माको भो अपने जाल में फंसा लिया। सुनते हैं, विधाताने एक बार तो अपना निज पुत्री तकके पोछे दौड़कर अपनी घोर बदनामी/ कराई। इसके सिवा, एक बार ब्रह्माजी शान्तनु नामक ऋषिके पास किसी कामसे गये। उन ऋषिकी स्त्री अमोघा अनुपम सुन्दरी थी ; पर थी पतिव्रता। उस समय ऋषि घर पर न थे। अमोघाने आपके बैठने के लिये एक आसन बिछा दिया और पूछा-*भगवन् आप किस लिये पधारे हैं ?" विधाताने कहा-“कुछ जरूरी काम है, पर उन्हींसे कहूँगा।” ये बातें करते-करते ही आपका मन अमोघा पर मचल गया। आपको कामदेवने ऐसा व्याकुल किया कि, आपका'""""वहीं आसन । ( ४ ) पर निकल गया। आप शर्मिन्दा होकर चुपचाप चले आये ।। ज़रा देर बाद ही शान्तनु ऋषि भी आ गये। उन्होंने आसनको देखकर सारा हाल पूछा। अमोघाने सारा वृत्तान्त ज्योंका त्यों निवेदन कर दिया। सुनते ही ऋषि बोले-“धन्य कामदेव तुम्हारी शकि-सामर्थ्य की सीमा नहीं, जो तुमने जगत्के रचयिता ब्रह्माजीको भी मोहित कर दिया।”

     सुरपति और गौतमनारी अहिल्याकी बातको कौन नहीं जानता ? अहिल्या परमा सुन्दरी थी। देवराजका मन उस पर चल गया। आपने उससे मिलनेके बहुत कुछ दांव-पेच लगाये, पर वह हाथ न आयी। तब आपने एक दिन तीन चार बजे रातको वहाँ जानेका विचार स्थिर किया ; क्योंकि उस समय ऋषि गङ्गास्नानको चले जाते थे। अपने चन्द्रमाको साथ लिया, अतः चन्द्रमाने मुर्गा बनकर द्वार पर कुकड़े के कुकड़े कू करना आरम्भ किया। ऋषि समझे कि, अब रातका अवसान हो चला। वे उठकर नहाने चले गये। देवराज उनका रूप धर घर में घुस गये और बातें बनाकर मनमानी की। इतने में ऋषि भो स्नान करके आ गये। उन्होंने इन्हें और अहिल्या दोनोंको श्राप दिया। अहिल्या पत्थर की हो गई और इन्द्रके शरीरमें भग-ही-भग हो गई। । पुराणों में ऐसी-ऐसी अनेक कथाएँ भरी पड़ी हैं। हमने, नमूनेके तौर पर, तीन-चार यहाँ लिख दी हैं। किसीने ठीक ही कहा है :-

। ( ५ ) कामेन विजितो ब्रह्मा, कामेन विजितो हरिः ।

कामेन विजितः शम्भु, शक्रः कामेन निर्जितः ॥ अर्थात् कामदेवने ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सुरेश–इन चारोंको जीत लिया। जब भगवान् कामदेवने ऐसों-ऐसको हो अपने वशमें करके, मनमाने नाच नचाये, तब और किस की कही जाय ? सारांश यह, भगवान् कामदेव सबसे अधिक बलवान् हैं, इसीसे कवि महोदय, सब देवताओंको छोड़ भगवान् कामदेवको ही नमस्कार करते हैं।

पाश्चात्य विद्वानोंमेंसे एक गोथे नामक महापुरुष कहते हैं :-Cupid is even a rogue, and whoever trusts, him is deceived. कामदेव सदा छल करता हैं, जो उसका विश्वास करता है, वह धोखा खाता है। कोई कुछ कहे, हम तो यही कहेंगे कि, खूबसूरतीमें बड़ी क्षमता है। खूबसूरती पुरुष को अपनी ओर उसी तरह खींचती है; जिस तरह चुम्बक पत्थर लोहेको खींचता है। पोप महोदयने कहा भी है*Beauty draws us with a single hain.” सुन्दरता एक बालके द्वारा भी हमको अपनी ओर खींच सकती है। चैनिंग महोदय भी कहते हैं-*Beauty is an all-pervading presence.”

 सौन्दर्य की सर्वत्र सत्ता है। मतलब यह है, कि पुरुष सौन्दर्य का दास है। जिसमें भी, बकौल लावेल महाशयके “Earth's, noblest thing, a women perfeo ted.

 साध्वी स्त्री संसारका सर्वोत्तम पदार्थ है; अतः ऐसे सर्वोत्तम पदार्थसे प्रेम करना और प्रेमवश उसकी गुलामी करना, कोई बुरी बात भी नहीं है। हाँ, प्रेम-क्षेत्रके बाहरकी गुलामी बेशक बुरो है; क्योंकि जे० जी० हालैण्ड महोदय कहते हैं:-*

Duty, especially out of the domain of love, is the veriest slavery in the world.” 

प्रेम-क्षेत्रके बाहर जो कर्त्तव्य किये जाते हैं, वे घृणितसे भी घृणित गुलामीसे भी बुरे हैं। तात्पर्य यह है कि, अपनी सती-साध्वी स्त्री या माशकाकी गुलामीमें दोष नहीं ; बशर्ते कि, वह सच्ची पतिव्रता हो । सती स्त्री अपने पतिकी आज्ञापालन करके, उसे हर तरह से सन्तुष्ट करके, उस पर अपना प्रभाव जमा लेती है। लेबर महोदय कहते हैं। 

“A chaste) wife acquires an, influence over her husband by obeying him."

   साध्वी स्त्री अपने पतिकी आज्ञापालन कर, उस पर अपना अभाव जमा लेती है। जब एक दूसरे की हर तरहसे खातिर- करता है । उसको प्यारकी नज़र से देखता हुआ, उसके लिये अपना तन-मन न्यौछावर करता है, तो दूसरा ऐसा कौन होगा, जो बदला चुकानेमें घाटा रक्खेगा ? बस, हमारे विष्णु भगवान् जो लक्ष्मीकै घरका काम-धन्धा करते हैं और शिवजी गिरिजारानीकी सेवकाई करते हैं, उसमें दोष ही क्या है ? क्योंकि लक्ष्मी और पार्वती दोनों ही रूप, यौवन और लावण्य की खान, प्रथम श्रेणीकी प्रतिपरायणा और तन-मनसे पतिसेवा करनेवाली हैं। अब रही उनकी बात ; जो पराई खुबसूरत रमणियोंका दासत्व स्वीकार करते हैं। उनके दासत्व सच्चा प्रेम और पवित्रता नहीं, केवल सौन्दर्यका प्रभाव है। सौन्दर्य अपने दर्शकोंको मदिराकी तरह मतवाला कर देता है और वे उसी नशेके वश हो, अपने होश-हवास खो, अपनी माशूकाओंकी गुलामी करने लगते हैं । कामदेव स्त्रियोंका चाकर है, वह जिसे अपना शिकार चुनती हैं, जिसे अपने अधीन करनेकी आज्ञा देती हैं, वह उसीको अपने पुष्पायुधसे काबू में करके, अपनी स्वामिनियोंके हवाले कर देता है। कामदेव ही नहीं, स्वयं परमात्मा स्त्रियोंकी इच्छानुसार चलता है। अँगरेज़ीमें एक कहावत है :-*What woman wills, God wills.” जो स्त्री चाहती है, वही परमात्मा चाहता है। स्त्री और परमात्मा P की एक ही इच्छा है।

_ दोहा । विधि हरि हरहु करत है, मृगनैनी की सेव।

वचन अगोचर चरित गति, नमो कुसुमसर देब ।।१।।

सार–कोमदेवने त्रिलोकीको स्त्रियोंका गुलाम बना रखा है।

1. I bow to that Lord Kamdeva ( Cupid ) who has flowers for his weapon, whose wonderful actions are beyond the power of speech and by whom Shambhu, the self-born ( Brahma ) and Hari have been rendered constant servants of the deer-eyed women to scharge their house-hold duties. ।

स्मितेन भावेन च लज्जया भिया । 

पराङ्मुखैरर्द्धकटाक्षवीक्षणैः ॥ 

वचोभिरीयाकलहेन लीलया ।

समस्तभावैः खलु बन्धनं स्त्रियः ॥२॥ 

'मन्द-मन्द मुस्कराना, लजाना, भयभीत होना, मुँह फेर लेना, तिरछी नज़रसे देखना, मीठी-मीठी बातें करना, ईर्षा करना, कलह करना और अनेक तरहके हाव-भाव दिखाना,—ये सब स्त्रियों में पुरुषों के बन्धनमें फँसानेके लिये ही होते हैं, इसमें सन्देह नहीं ॥२॥  स्त्रियोंमें हाव-भाव या नाज़-नखरे स्वभावसे ही पैदा हो

जाते हैं। ये हाव-भाव या नाज़-नखरे पुरुषोंके मोहित करने या बन्धनमें बाँधनेके लिये उनके ब्रह्मास्त्र हैं। पुरुष उनकी रुपच्छटाकी अपेक्षा उनके हाव-भावों पर जल्दी मुग्ध होता है। उनके हाव-भाव उसके दिल पर नकुश हो जाते हैं। उन्हें वह दिन-रात याद किया करता है। पुरुषको वशीभूत करने के लिये, स्त्रियाँ उसको देखकर, होठोंमें हसतीं या मुस्कराती हैं, कभी परले सिरेकी लाज करती है और कभी बेहयाई । कभी किसीसे डरनेका सा नाट्य करती हैं। कभी उसकी ओर नज़र भर देखती हैं और कभी देखकर मुंह फेर लेती हैं ; कभी तिरछी नज़रसे देखती हैं और कभी उसको अच्छी तरहसे देख या घूरकर झटसे घूघट कर लेती हैं ; कभी किसी बहानेसे घृ घटको हटाकर अपना चन्द्रानन उसे फिर दिखा देती हैं और  फिर शीघ्र ही घं घट कर लेती हैं, कभी चलती-चलती राहमें ठहर कर, अपने पैरका जेवर बिछुआ प्रभृति ठीक करने लगती हैं। कभी कहती हैं “तुम उस स्त्री के यहाँ क्यों गये ? मैं तुमसे न बोलू गी ।” पुरुष बोलना चाहता है तो कहती हैं

वहीं जाओ, मुझसे क्या काम है ? वह बड़ी सुन्दरी है, मैं उसके मुकाबलेमें किस कामकी हूँ ?” इत्यादि । पुरुष यदि चूमना चाहता है, तो एक अजीब आन-बान और अदाके साथ उसके मुंहके पाससे अपना मुंह हटा लेती हैं। अगर वह स्तनों पर हाथ डालता है, तो एक अजीब अदासे उसके हाथको (झटक देती हैं, जिससे बुरा भी न मालूम हो और पुरुष उल्टा ।। मर मिटे। अगर पुरुष किसी दूसरीके यहाँ चला जाता है या उससे और कोई अपराध हो जाता है, तो झट आँखों में आँसू भर लाती हैं उन आँसूओंमें कामियोंको जो मज़ा आता है,* उसे लिखकर बता नहीं सकते। बातें करती हैं, तो निहायत मीठी-मीठी और ऐसी रस-घुली कि, पुरुप उनकी बातों पर ही कुर्बान हो जाता है। कहाँ तक लिखें, स्त्रियों में जवानीके समय अनन्त हाव-भाव आप ही पैदा हो जाते हैं। ये उन्हें कोई सिखाने नहीं जाता। जेवर स्त्रियों के रूपको हज़ार गुणा बढ़ा देते हैं, तो नखरे उसे लाख गुणा बढ़ा . देते हैं।

* Beauty's bears are lovelier, then her smiles :-Campbell.

 सुन्दरी के आँसू उसकी मुसक्याम की अपेक्षा प्यारे लपते हैं। 

 एकबार इतिहास-प्रसिद्ध लोक-विमोहिनी नूरजहाँ,# बचपन में, अपनी माँ के साथ, बादशाही महलों में गई। उस समय नूरजहाँ को मेहरुन्निसा कहते थे। जहाँगीर '' भी लड़का हो था । उसे उन दिनों सलीम कहते थे। सलीमको कबूतर उड़ाने का शौक था। शाहज़ादे के हाथ में दो कबूतर थे। वह उन्हें किसी को पकड़ा, और कबूतर दवे से निकालना चाहता था । पास ही मेहर खड़ी थी। शाहज़ादेने कहा-“मेहर ! ज़र हमारे कबूतरोंको तो अपने हाथों में पकड़े रहो।” मेहरने कहा

-“बहुत अच्छा, लाइये ।” शाहज़ादेने मेहरको कबूतर थमा

दिये और आप आगे दरबे की ओर चला गया। इतनेमें एक कबूतर किसी तरह मेहरुन्निस के हाथसे उड़ गया। शाहज़ा देने आकर पूछा-“हमारा एक कबूतर कहाँ ?” मेहर ने कहा “वह तो उड़ गया।” शाहज़ादे ने पूछा-“कैसे उड़ गया?” मेहरने उस समय भोली-भाली, पर एक अजीब अदाके साथ हाथ का दूसरा कबूतर भी छोड़ते हुए कहा-“शाहज़ादे ! ऐसे उड़ गया !” शाहज़ादेका दिल आजके पहले मेहरुन्निसा पर नहीं था, पर इस वक्तकी एक अदाने शाहज़ादेको मेहरुन्निसा का गुलाम बना दिया। आज पीछे वह मेहरको जन्म-भर न भूला। उसने मेहरुन्निसा को अपनी बीवी बनाने के लिये बड़ी कोशिशें कीं, पर उसे कामयाबी न हुई । क्योंकि बादशाह एक मामूली सरदारकी लड़कीसे हिन्दुस्तानके शाहज़ादेकी शादी करना उचित न समझते थे। उन्हेंने झगड़ो मिटानेको मेहरकी शादी शेर अफ़ग़नके साथ कर दी। सलीमका वश न चला; पर वह मेहरको भूला नहीं। जब वह तख्तेशाही पर बैठा, उसने मेहरको बंगालसे मँगवा कर, उसके कोमल कदमों में अपना अपना ताज़शाही रख दिया और सदाको उसका गुलाम होना कबूल किया। देखा पाठक ! स्त्रीके एक नखरेने क्या काम किया है। - हम स्त्रियोंके हाव-भाव और नाज़ो-अदाओं पर मर मिटने D वालों के चन्द नमूने नीचे देते हैं। एक साहब फरमाते हैं।

मैं तो उसी झिचक पै फिदा हैं, कि कानको ।। 

शब क्या हटा लिया, मेरे लाकर दहनके पास ।।जौका।

मुझे उनका वह हाव कितना अच्छा मालूम हुआ कि, उन्होंने अपने कानको मेरे मुंह के पास लाकर हटा लिया। इस अदा पर मैं फिदा हो गया और भोऐ जौक, मैं तो बैठ गया, दिल को थाम कर ।

इस नाजसे खडे थे वह, रक्खे कमर में हाथ ॥जोक।। डिस अन्दाज़से वह कमरे पर हाथ रक्खे खड़े थे-जौक !

मैं तो उन्हें देखकर दिल थामकर बैठ गया , नहीं तो दिल चला ही था।

महाकवि नज़ीरने नाज़नियों की चुलबुलाहटका सीधोसादी भाषामें कैसा चटकीला चित्र खींचा है। ज़रा उसकी भी चाशनी देखिये :- ये राह चलने की चुलबुलाहट, कि दिल कहीं है, नजर कहीं है ।

कहाँ का ऊँचा, कहा का नीचा, खयोल किसको कृदम की जाका, लड़ायें आँखें, वो बेहिजाबी,

कि फिर पलकसे पलक न मारे । नजर जोनीचे करे तो गोया, खुला सरापा चमन हया को । ये चञ्चलाहट ये चुलबुलाहट,

खबर न सरकी, न तनकी सुध-बुध । जो चीरा बिखरा, बलासे बिखरा, न बन्द बँधा, कभू कबाका । मैंने एक छोटी उम्रकी नाज़नी देखो, वह अपनी राह-राह चली जाती थी, पर उसके चलनेमें गज़बकी चुलबुलाहट थी। उसका दिल कहीं था और उसकी आँखें कहीं थीं। उसे ऊँचे नीचे स्थानों तकका खयाल न था। यह भी ध्यान नहीं था कि, पैर कहाँ पड़ते हैं। । वह बेड्या जव आँखें लड़ाती थी, तो इस तरह लड़ाती थी कि, पलक-से-पलक न लगाती थी और अगर नज़रको नीची करती थी, तो ऐसा मालूम होता था, मानों हया और शर्मका चमन ही खुल गया है। । उसमें ऐसी चञ्चलाहट और चुलबुलाहट थी, कि ने उसे अपने सर की खबर थी और न शरीरको सुध-बुध थी। सिर से ओढ़नी उतर गई है तो उतर गई, परवा नहीं। कुरती का बन्द खुला पड़ा है, तो खुला ही पड़ा है। रसमें त्योंही रोषमें, दरशत सहज अनूप । बोलिन चलनि चितौनिमें, बनिता बन्धन रूप ॥२॥सार-स्त्री हर हालतमें मर्दको प्यारी यों तो चञ्चलता और चुलबुलाहट उठती जवानीकी सभी स्त्रियों में होतो है; पर ऐसी चुलबुलाहट, जिसका मज़ेदार चित्र मियाँ नज़ीरने खींचा है, कुल-बधुओं में नहीं देखी जाती और वह भी राहमें। हाँ, ऐसी चुलबुलाहट कुल-बधुओं में भी देखी जाती है, पर .शोदी हो जाने के दो-चार बरस बाद और अपने घरमें अपने पतिके सामने ; जब कि उनकी लज्जाशर्म और संकोच-भय प्रभृति दूर हो जाते हैं। हमारी समझमें, यह चित्र किसी कमसिन वोराङ्गनाका है।

लगती है। उसका बोलना चालना और देखना प्रभृति प्रत्येक कोम पुरुषको बन्धनमें बाँधता है।

३. Gentle smile, emotions, hashfulness, timility, the turning of face, the side-long casting of glances, speech, jealousy, quarrel and gesture ( these ) are the various qualities by which the women become the chains for men.

भूचातुर्याकुञ्चिताक्षाः कटाक्षाः !

स्निग्धा वाचो लज्जिताश्चैव हासाः ।। 

लीलामन्दं च स्थितं मस्थितं च । 

स्त्रीणामेतद्भूषणं चायुधं च ।।३।।

चतुराईसे भैहें फेरना, आधी अँखिसे कटाक्ष करना, मधु जैसी मोठी-मीठी बातें करना, लज्जाके साथ मुस्कराना, लीलासे)- मन्द-मन्द चलना और फिर ठहर जाना प्रभृति भाव स्त्रियोंके आभूषण और शस्त्र हैं ॥३॥ । स्त्रियाँ कभी अपनी कमान सी भौंहोंको टेढ़ी करती हैं, कभी आँखें चलाती हैं, कभी लञ्जाका भाव दिखाती हुई मन्दमन्द मुस्कराती हैं, कभी शरीर तोड़ती हैं, कभी अँगड़ाई लेती हैं, कभी उँगलियाँ चटखाती हैं, कभी उझक-एझककर देखती हैं, और कभी मुंह फेरकर दूसरी ओर देखने लगती हैं, जिससे पुरुष समझे कि यह मेरी ओर नहीं देखती, कभी घूध मार। लेती हैं और कभी उसे खोल देती हैं ये सब स्त्रियाँ क्यों करती हैं ? केवल अपना सौन्दर्य बढ़ाने और पुरुषोंको अपने ऊपर फिदा करके, उनसे मनमाने नाच नचवानेके लिये । पुरुषोंको अपने अधीन करनेके लिये, अबलाओं के पास तलवार, बन्दूक या वाण नहीं होते। उनको ईश्वर ने ये ही अमोघ अस्त्र दिये हैं। बन्दूक, तलवार और मैशीनगन जो काम नहीं कर सकतीं, वह काम ये अस्त्र करते हैं। किसीसे भी पराजित न होने वाले और बड़े-बड़े शूरवीर योद्धाओंको बात-की-बातमें धराशायी करने वाले बहादुर स्त्रियोंके अस्त्रोंकी मारसे, अपने होश-हवास खोकर, इनके दास बन जाते हैं। 

छप्पय । करत चातुरी भौंह, नयनहू नचत चितेवो । प्रगटत चित्तको चाव, चावसों मृदुः (मुसकैवो दुरत मुरत सकुचाते, गात अरसात जम्हावत । उझकत इत उत देख, चलत ठिठकत छविछावत । ए आभूषण तियन, अंगमाहिं शोभा धरन । अरु येही शस्त्र-समानहैं, पुरुष-मन-मृग बस करन ।।३।।

सार—स्त्रियोंके हाव-भाव पुरुषों के मारने के लिये अस्त्र और उनको सौन्दर्य बढ़ाने के लिए आभूषण हैं।

3. The skilfulness in turning the brows, the casting of oblique glances, sweet talk, smiling with shyness, walking slowly by gestures and stopping at intervals (these ) are the ornaments as well as the weapons for women.

क्वचित्सुश्रूभंगैः क्वचिदपि च लज्जापरिणतैः क्वचिद्भीतित्रस्तैः क्वचिदपि च लीलाविलसितैः ।। नवोढानामेभिवेदनकमलैर्नेत्रचलितैः स्फुरन्नीलाञ्जानां प्रकरपरिपूर्णा इव दिशः ॥४॥ 

कामी पुरुषकों, कभी सुन्दर भौंहोंसे कटाक्ष करने वाली, कभी शर्मसे सिर नीचा कर लेने वाली, कभी भयसे भीत होने वाली, कभी लीलामय विलास करने वाली, नवीन व्याही हुई कामिनियोंके मुख्कर्लोकी खूबसूरती बढ़ाने वाले नीलकमलोंके समान चञ्चल

= नेत्रों से दश दिशाएँ पूर्ण दीखती हैं ॥४॥

हालकी व्याहो हुई नववधुओंमें कमान सी भौंहों से कटाक्ष करना, कभी लाजके मारे सिर नीचा कर लेना, कभी भयसे भीत होना, कभी अन्य प्रकारके नखरे करना ये सब स्वभाव से ही होते हैं। प्रथम तो इस उम्रमें सुन्दरता आप ही बढ़ जाती है । फिर उनके नखरे और नीलकमलसे चञ्चल नेत्र उनकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते हैं। कामी पुरुषों को, जिनके मनमें इनके चञ्चल नेत्रे अपना घर कंर लेते हैं हर ओर इनके चञ्चल नेत्र ही नेत्र दिखाई देते हैं । अर्थात् उनका मन इनके नीलकमलवत् सुन्दर नेत्रों में ही जा बसता है। जिसमें जिसका दिल जा बसता है, उसे वही-वह दीखता है। चूंकि कामियोंकी आँखों में कमसिन अल्पवयस्को नवविवाहिता कामिनियाँ समा जाती हैं । अतः उन्हें हर ओर, जहाँ तक उनकी दृष्टि जाती है, वहां-वह दिखाई देती हैं।

किसी ऐसी ही उठती जवानीकी कम-उम्र परीकी खूबसूरती का चित्र महाकवि नज़ीरने क्या ही कारीगरीसे खींचा है :- पलकों की झपक, पुतली की फिरत, सुरेमे की लूगाबट वैसी ही ।। ऐयार नजर, मक्कार अदा, त्योरी की चढ़ावट वैसी ही ।।१।। वह अँखिंया मस्त नशीली सीं, कुछ काली सीं, कुछ पीली सीं । चितवन की दगा, नज़रोंकी कपट, सीनोंकी लड़ावट वैसी ही ॥२॥ वह रात अँधेरी बाल सी, वह मॅाग चमकती बिजली सी ।। जुल्फों की खुलत, पट्टी की जमत, चोटी की गूंधावट वैसी ही ॥३॥ वह छोटी-छोटी सख्त कुचैं, वह कच्चे-कच्चे सेव ग़ज़ब । अगिया की भड़क, गोटोंकी चमक, बन्दों की कसावट वैसी ही ॥४॥ वह चञ्चल चाल जवानी की, ऊँची ऐड़ी नीचे पजे । कफ़शों की खटक, दामनकी झटक, ठोकरकी लगावट वैसी ही ॥५॥ कुछ हाथ हिले, कुछ पँव हिले, फड़कें बाज़, थिरकै सब तन । गाली वो बला, ताली वो सितम, उँगली की नचावट वैसी ही ॥६॥ 

चञ्चल अचपल, मटके चटके, सर खोले ढाँके हँस-हँस के। कह कह की हँसावट और गज़ब, ठट्ठों की उड़ावट वैसी ही ॥७॥ हर वकृत फ़बन हर आन सजै, दम-दम में बदले लाख सगैं । बाहों की झपक, पूँघट की अदा, जोबनकी दिखावट वैसी ही ॥८॥ । पाठक ! मनचले पाठक ! आप ही बिचारिये, इस आनिबान और खूबसूरती वालीको कौन भूल सकता है ? जो इन स्त्रीरत्नों की कद्र जानने वाले हैं, उनकी नज़रोंसे इनके नीलकमल की आभा रखने वाले नीलमसे नेत्र कभी उतर ही नहीं सकते।

उन्हें तो हर ओर नीलम या नील-कमल ही नील-कमल फुले दीखते हैं और वे मन-ही-मन उनकी अनुपम छटा को याद कर करके प्रसन्न होते हैं।य । नक लज्जापुरसत  कबहुँक ससकत संकि, कबहुँ लीलारस बरषत । कबहुँक मुख मृदुहास, कबहुँ हित बचन उधारत । कबहुँक लोचन फेर, चपल चहुँ ओर निहारत । छिन-छिन सुचरित्र विचित्र करि, भरे कमल जिमि दशहुँदिशि । ऐसी अनूप नारी निरख, हरषत रहिये दिवस-निशि ॥४॥

सार—जिस तरह ब्रह्मज्ञानियोंको हर ओर ब्रह्म ही ब्रह्म दीखता हैं; उसी तरह कामियों  को हर ओर नवबधुओ के नीलकमल के समान चंचल नेत्र ही नेत्र दोखते हैं। जिसकी आँखों में जा समा जाता है, उसे वही वह दीखता है।

। 4. What, with the turning of her beautiful brows, what with her gentle bashfulness, what with her fearfulness and what with her playful gestures, the face of a young woman, having moving eyes with all the above qualifications, appears like a lotus ( with black bees hovering on it ).

वक्त्रं चन्द्रविकासि पङ्कजपरीहासक्षमे लोचने वर्णः स्वर्णमपाकरिष्णुरलिनीजिष्णुः कचानाञ्चयः।

वक्षोजाविभकुम्भसंभ्रमहरौ गुर्वी नितम्बस्थली । वाचो हारि च मार्दवं युवतिषु स्वाभाविक मंडनम् ।।५।।

चन्द्रमाके समान प्रकाशमान मुख, कमलकी मसखरी करनेवाले दोनों नेत्र, सुवर्णकी दमकको फीकी करनेवाली शरीरकी कान्ति, भौरोंके पुञ्जको जीतनेवाले केश, गजराजके गण्डस्थलकी शोभाका अपमान करनेवाली दोनों छातियाँ, विशाल नितम्ब—चूतड़, मनोहर वाणी और कोमलता नज़ाकत—ये सब स्त्रियों के स्वाभाविक भूषण हैं ॥५॥

खुलासा–चन्द्रमोके समान मुख; कमलको लजाने वाले नेत्र, कनककी आभाको मलीन करने वाली देहकी कान्ति, भौंरों की पंक्तियोंको पराजित करने वाली अलके, गजराजके गण्डस्थलोंको लजाने वाले स्तनद्वय, फूलोंकी कोमलताको मात करने वाली नज़ाकत, मृगमदको नीचा दिखाने वाली मुखकी सुवास -ये सब स्त्रियों के स्वाभाविक आभूषण या कुदरती जेवर हैं। तात्पर्य यह है, कि स्त्रियाँ स्वभाव से ही बड़ी सुन्दरी होती हैं। इनकी असाधारण सुन्दरता और अनूप रूप पर किसका मन लहालोट नहीं हो जाता ? इनकी सुन्दरता पर मुग्ध होकर ही लोग इनके क्रीत-दास हो जाते और दुःख-सुखकी परवा न कर, दिन-रात इनके लिये परिश्रम करते हैं।

करत चन्द्र इव विशद बदन, अद्भुत छवि वाजत ।। कमलन विहँसित नैन, रैन दिन प्रफुलित राजत । करत कनक द्युतिहीन, अंग-आभा अति उमगतं । अलकन जीते भौंर, कुचन करि-कुम्भ किये हत । मदुता मरोर मारे सुमन, मुख-सुवास मृगमद कदन । ऐसो अनूप तिय रूप लखि, बँहिधूप नहिं गिनत मन ॥५।।

सार–नाना प्रकारके हाव-भाव स्त्रियों के नाना प्रकारके अस्त्र हैं। इनसे ही वे पुरुषों को अपने वशमे करतीं और अपना गुलाम बनाती हैं।

  The natural ornaments of a woman are her face which puts to shame even the moon, her eyes which laugh at the lotuses, the colour of her body which dims even the lustre of gold, her hair which surpasses in beauty the swarm of bees, her breast that outstrips the beanty of the forehead of an elephant, the two big hips and the sweet voice which attracts the mind.

स्मितं किञ्चिद्वक्त्रे सरलतरलो दृष्टिविभवः परिष्यन्दो वाचामभिनवविलासोक्तिसरसः ।। 

गतीनामारम्भः किसलयितलीलापरिकरः स्पृशंत्यास्तारुण्यं किमिह नहि रम्यं मृगदृशः ।।६।। 

उठती जवानीकी मृगनयनीं सुन्दरियोंके कौन काम मनोमुग्धकर नहीं होते ? उनका मन्द-मन्द मुस्कराना, स्वाभाविक चञ्चल कटाक्ष, नवीन भोग-विलासकी उक्तिसे रसीली बातें करना और नखरेके साथ मन्द-मन्द चलना-ये सभी हाव-भाव कामियोंके मनको शीघ्र ही वशमें कर लेते हैं ॥६॥

  जवानीमें कदम रखने वाली, उठती जवानीकी मृगनयनी सुन्दरियोंका धीरे-धीरे हँसना, स्वभावसे चञ्चल नेत्र चलाना, मीठी-मीठी रसीली बातें करना और नखरे एवं अजीब नाज़ोअदा के साथ धीरे-धीरे कदम रखकर चलना ये हाव भाव कामी पुरुषों के होश-हवास खता कर, उनको इनका गुलाम बना देते हैं ; अर्थात् कामी पुरुष स्त्रियोंके इन हाव-भाव और नाज़ोअदाओंको देख-देखकर,• अपनी सुध-बुध खो, पागलसे ही जाते और इनकी इन अदाओं पर न्यौछावर होकर सदाको इनके क्रीत-दास हो जाते हैं।

दोहा । मन्द हसन तीखे नयन, सरस बचन सविलास । गजगमनी रमणी निरख, को न करे अभिलाष ?॥॥

सारनवीना युवतियांके हृदयहारी हावभावे पर न मर मिटनेवाला पुरुष केाई विरली ही महतारी जनती है।

6. Is not everything charming in a lotus-eyed woman just verging on her youth ? Say the gentle smile on her face, the casting of her restless eyes, talking sweetly in different new charming modes, walking by gestures and with slow stepes like that

of new leaves.

द्रष्टव्येषु किमुत्तमं मृगदृशां प्रेमप्रसन्नं मुखं घातव्येष्वपि किं तदास्यपवनः श्राव्येषु किं तद्वचः ।। 

किं स्वाद्येषु तदोष्ठपल्लवरसः स्पृश्येषु किं तत्तनु, ध्येयं किं नवयौवनं सुहृद्यैः सर्वत्र तद्विश्रमः ।।७।। 

  रसिकोंके देखने योग्य क्या है ? मृगनयनी कामिनियोंका प्रेमपूर्ण प्रसन्न मुख । पूँघने-योग्य क्या है ? उनके मुँहकी भाफ । सुनने-योग्य क्या है ?* उनके वचन । स्वादिष्ट पदार्थ क्या है ? उनके ओष्ठपल्लवका रस। छूने-यग्य क्या है ? उनका कोमल  शरीर । ध्यान करने योग्य क्या है ? उनका नवयौवन और विलास ॥७॥

मनुष्य के पाँच इन्द्रियाँ होती हैं :-(१ ) आँख, (२) नाक, (३) कान, (४) जीभ, और (५) त्वचा। अखका काम देखना, नाकका यूं घना, कानका सुनना, जीभको चखना और त्वचाको स्पर्श करना है। आँख रूप देखना चाहती है, नाक सुगन्धित पदार्थ से घना, कान रसोली बातें सुनना, जीभ सुस्वादु पदार्थ चखना और त्वचा कोमल वस्तु छूना चाहती है। कामी पुरुषोंकी पाँचों इन्द्रियोंकी सन्तुष्टिके लिये, भगवान् ने एक सुन्दरी नारी ही पैदा कर दी है। मतलब यह कि, रसिकों की पाँचों ज्ञानेन्द्रियोंकी सन्तुष्टिके सामान एक कामिनीमें ही मौजूद हैं। मृगनयनियोंके सुन्दर मुख आँखों के देखने के लिये हैं। उनके मुंहकी सुगन्धित भाफ नाकके से घनेके लिये है। उनके मिश्रोसे भी मीठे और मधुर वचन कानोंके सुननेके लिये हैं। उनके नीचले होठका अमृत-समान स्वादिष्ट रस जीभके चखनेके लिये है और चमड़े को छूकर सुखी होनेके लिये उनका मखमलसे भी कोमल शरीर या उनके पैरोंके तलवे हैं तथा ध्यान करनेके लिये उनकी नयी जवानी और उनकी नाज़ोअदा हैं। सारांश यह कि, सारे सुख एक सुन्दरी ही में मौजूद हैं। । अगर कोई यह कहे कि, नहीं जी; यह सब कवियोंकी लीला—उनके बढ़ावे हैं, तो हम यही कहेंगे कि, आप उनसे पूछिये, जिन्होंने इन सबका आनन्द अनुभव किया या इनका मज़ा उठाया है। जिसने उनका चन्द्रमाके समान प्रेमरससे पूर्ण मुख देखा है, वही कह सकता है कि, उनका मुख देखनेसे रूप देखनेकी इच्छुक नेत्र-इन्द्रियकी तृप्ति होती है या नहीं। जिसने मृगमद–कस्तूरीको भी मात करनेवाली उनके मुखकी सुगन्धका मज़ा लिया है, वही कह सकता है कि, उस सुगन्ध से बढ़कर और भी कोई सुगन्ध नासिकाकी तृप्ति करनेवाली है या नहीं। जिसने उनके मख़मलकी भी नरमीको मात करनेवाले शरीर या पैरोंके तलवों पर हाथ फैरे हैं, वही कह सकता है कि, यह बात कहाँ तक सच है। जिसने उनकी मधुर और रसीली एवं कानों में अमृत ढालनेवाली बातें सुनी हैं, वही कह सकता है कि, उनकी मीठी-मीठी बातमें क्या मज़ा है। जिसने उनके रूप, यौवन और हाव-भाव तथा विलासोंका ध्यान किया है, वही कह सकता है कि, उनके ध्यानमें कैसा आनन्द हैं। जिसने ब्रह्मका ध्यान किया है, वही कह सकता है कि, ब्रह्मके ध्यानमें वह आनन्द है, जिसकी समता त्रिलोकीके और किसी आनन्दमें नहीं है। जिसने ब्रह्मका ध्यान ही नहीं किया, वह ब्रह्मानन्द के वर्णनातीत आनन्दकी बातको क्या जाने ? जिसने अनुपम सुन्दरी मृगनयनीके होठोंसे होठ लगाकर अमृत पिया है, वही कह सकता है कि, सुन्दरीके नीचले होठमें अमृत है या नहीं। महाकवि नज़ीर कहते हैं और ठीक ही कहते हैं:-

जिसके गोरे-दोरे स्तनों पर मोतियों के हार झेल रहे हैं। नपुर-रूप हंस जिसके त्वरण-कमलों में मधुर-मधुर शब्द कर रह है---ऐसी मनोमोहिनी काम-मद से मताली नारी किसके मन को बश में नहीं कर लेती ?

सागिरके लबसे पूँछिये, इस लव की लज्जते । किस वास्ते, कि खूब समझता है लब की लव ॥ उसके ओठोंका स्वाद प्यालेके ओठोंसे पूछिये । क्योंकि ओठोंकी बात ओठ ही समझता है।

छप्पय । । कहा देखिने योग्य ? प्रियाको अति प्रसन्न मुख ।

कहा सँघिये सोधि ? श्वास सौगन्धि हरत दुख हा दीजिये। कानव अणूप्यारी की चातन कहा लीजिये स्वाद ? अधरके अमृत अघातन । । परसिये कहा ? ताको सुवपु, ध्यान कहा ? जोवन सुछवि । सव भाति सकल सुखको सदन, जान सुयश रावत सुकवि ॥७॥ सार-एक सुन्दरी कामिनीमें पुरुषकी सारी इन्द्रियोंकी तृप्तिको मसाला है।

7. For lovers what is the best sight worth seeing? The lovely and beautiful face of a lotus-eyed woman. What is the best thing worth smelling? The vapour of her mouth. What is the best thing for hearing ? Her sweet voice. What object has the best taste? The enjoyment of her leaf-like lips. What is best among the objects of touch ? * Hoe body. And what is the best thing for mehitation ? Her youth and the pleasure arising from it. 

एताः स्खलद्वलयसंहतिमेखलोत्थझंकारनपुररवात्दृतराजहंस्यः । 

कुर्वन्ति कस्य न मनो विवशं तरुण्यो वित्रस्तमुग्धहरिणीसदृशैः कटाक्षैः ।।८।। 

चञ्चल कङ्गन, ढीली कौंधनी और पायजेबोंके धुंघरुओंकी मधुर झङ्कारसे राजहंसोंको शरमानेवाली नवयुवती सुन्दरियँ, भयभीत हिरनीके समान कटाक्ष करके, किसके मनको विवश नहीं कर देती ? ॥८॥

कर्धनी और पायजेब प्रभृति अलङ्कारोंके मधुर-मधुर शब्दों से राजहंसनियोंका निरादर करनेवाली नवयुवतियाँ, जब भड़की हुई भोली हिरनीकी तरह अपनी तीखी नज़रका तीर चलाती हैं, तब बड़े-बड़े बहादुर उनके वशीभूत होकर उनकी गुलामी करने लगते हैं। मनुष्य तो कौन चीज़ है, देवता तक - ऐसो कामिनियोंके कटाक्ष-वाणोंसे पराजित हो जाते हैं। अब इनकी निगाहके तेज़ तोरसे जो परास्त न हो, अपनी रक्षा कर ले, उसे हम क्या कहें, सो हमारी समझमें नहीं आता। भोले-भाले पाठक ! इतके कटाक्ष की मारको मामूलो मार न समझे। महाकवि दाग़ कहते हैं और ठीकहो कहते हैं :- तीर तेरा मिजाँसे बढकर नहीं । कुछ खटकते हैं, इसी नश्तरसे हम ।।

  तेरी भौंहों में जो काट है, वह तेरे तीरमें नहीं। इसीलिये मुझे तीरसे तेरे भौंह रूप नश्तरका हर सयय खटका लगा रहता है। मतलब यह कि, तीरकी मारका इलाज है; पर कामिनीके कटाक्ष- चाणका इलाज नहीं ।

दोहा । नूपुर किंकन किंकिणी, बालत अमृत बैन । काको मन नहिं बस करत, मृगनैनिनके नैन ?॥८॥

सारनाज़ोनियाके निगाहे तोरसे न घायल IP होनेवाला करोड़ों में कोई एक होता हो, तो "

होता है ! Which nind thare this o n e of contest by the casting of the eyes like that of a frightened hind of । the young woman, the sounds of whose restless bracelets and the waist chain and the tinklings of whose anklets defeat the sweet sound of swans even.

कुकुंमपंककलंकितदेहा गौरपयोधरकम्पितहारा ।

नूपुरहंसरणत्पदपद्मा कं न वशीकुरुते भुवि रामा ॥9॥

 जिसकी देह पर केसर लगी है, जिसके गोरे-गोरे स्तनों पर हार झूल रहा है और नूपुररूप हंस जिसके चरणकमलों में मधुर मधुर शब्द कर रहे हैं, ऐसी सुन्दरी इस पृथ्वी पर किसके मनको वश में नहीं कर लेती ? ॥६॥

खुलासा–जिसकी देह पर केसर लगी है, जिसके सघन पीनपयोधरों पर मोतियोंका हार धीरे-धीरे हिल रहा है, जिसके कमल-जैसे चरणोंसे बाजेकी मधुर-मधुर झंकार निकल रही है, वह सुन्दरी इस जगत्में किसीको भी अपने अधीन किये बिना नहीं छोड़ती ; जो उसकी नज़रों तले आता है, वही उसका गुलाम हो जाता है। परन्तु जो पुरुष ऐसी मनोमोहिनी नारीके वशमें नहीं होता, उसके रूपलावण्य और नाज़ो-अदाँ पर नहीं मर मिटता, वह सच्चा शुरवीर और मोक्ष का अधिकारी है।

दोहा।। हार हले कुचकनक लग, केशर रांजत देह ।। नूपुरधनि पदकमल की, केहि न करें बस येह है ।

सार–जिनके गोरे-गोरे बदन पर केसर । लगी है, जिनकी नारंगियांसी सुगाल छातियां । पर मेातियों के हार हिल रहे हैं और जिनके चरणकमलाकी पायजेबांसे छम-छमकी मीठी-मीठी मनोहारिणी आवाजें आती हैं, वे मृगनयनी किसे अपने वश मैं नहीं कर लेतीं हैं?

Whose minds are not overpowered on this earth by such beautiful women whose body is decorated by saffron and sandal and on whose white breasts garlands are hung and in whose lotuslike feet anklets sound like swans ?

नूनं हि ते कविवरा विपरीतबोधा ये नित्यमाहुरबला इति कामिनीनाम् ।। 

याभिर्विलोलतरतारकदृष्टिपातैः शक्रादयोऽपि विजितास्त्ववलाः कथं ताः ॥१०॥

 स्त्रियोंको “अबला'' कहनेवाले श्रेष्ठ कवियोंकी बुद्धि निश्चय ही उल्टी है। भला, जो अपने नेत्रोंके चञ्चल कटाक्षोसे महाबली इन्द्रादिक देवताओं को भी मार देती हैं, वे “अबला' किस तरह हो सकती हैं ? ॥१०॥ 

जो कोमलाङ्गी कामिनियाँ, बिना अस्त्र-शस्त्रोंके, अपनी दूष्टिमात्रसे, जगत्-विजयो योद्धाओंकी तो बात ही क्या है, त्रिलोकीका पलक मारते संहार कर डालनेकी शक्ति रखने चले शङ्कर और महाबली इन्द्रादिक देवताओं को भी अपने चशमें करके, मनमाने नाच नचानेको शक्ति रखती हैं, और उन्हें अपने इशारोंपर नचाती हैं, उन्हें अबला' कहनेवाले कवि निश्चय ही पागल हैं उनकी , मति मारी गई है।  सबलाओं को अबला करने वाले यदि मूर्ख नहीं, तो क्या अक्लमन्द है ? 

दोहा । कामिनिको अबला कहत, ते नर मूढ़ अचेत । इन्द्रादिक जीते दृगन, सो अबला किहि हेत ? ।।१०॥

सा–स्त्रियाँ अपनी एक नजरसे भूतलके जबर्दस्त-से-जबर्दस्त योद्धाको पराजित कर सकती हैं, इसलिये उन्हें “अबलो” कहना भूल है।

10. Those great poets who have called women powerless have surely thought just in the opposite way. How can they be said to be C80 whose casting of the morning eyelids subdnes oven Indra and •others.

नूनमाज्ञाकरस्तस्याः सुभ्रुवो मकरध्वजः । यतस्तन्नेत्रसंचारसुचितेषु पवतेते ॥ 11॥

 कामदेव निश्चय ही सुन्दर भौंहवाली स्त्रियोंकी आज्ञा पालन करनेवाली चाकर है ; क्योंकि जिनपर उनके कटाक्ष पड़ते हैं, उन्हींको वह जा दबाता है ॥११॥ 

 खुलासा–निस्सन्देह, कामदेव सुन्दर भौंहवाली स्त्रियों की आज्ञाके वशवत होकर चलने वाला सेवक है। वह उनके इशारों पर चलता है। जिसकी ओर वे सैन कर देती हैं; वह उन्हींको जो मारता है। अव्वल तो स्त्रियाँ स्वयं ही बलचती होती हैं। अपने ही कटाक्षोंसे- बड़े-बड़े शूरवीरों के छक्के छुड़ा सकती हैं, फिर कामदेव उनके हुक्म में हैं, यह और भी ग़ज़बक बैल, हैं। ऐसी स्त्रियोंसे कौन अपनी रक्षा कर सकता है ? केवल वही उनसे बच कर रह सकता है, जो उनके दृष्टिपथमें न आवे । शायद इसीलिये, मोक्ष-कामी पुरुष मनुष्यों की बस्तियाँ छोड़ कर, निर्जन वनों में जाकर, आत्मोद्धारकी चेष्टा करते हैं, क्योंकि वनमें न कामिनी होगी और न वे

अपने सेवक कामदेवको पञ्चशर चलाकर अपना शिकार . मारनेका हुक्म देंगी।

दोहा । । कामिनि हुक्मी काम यह, नैन सैन प्रगटात । तीन लोक जी मदन, ताहि करत निज हात सार–कामदेव स्त्रियों का सेवक है। 1, 11, Surely Kamdev (Cupid ) is the obedient servant of Formen, because he, at once, overpowers that man who has made his mark.

केशा संयमिनः श्रुतेरपि परं पारंगते लोचने चान्तर्वक्त्रमपि स्वभावशुचिभिः कीर्ण द्विजानां गणैः ॥ 

मुक्तानां सतताधिवासरुचिरं वक्षोजकुम्भद्वयं चेत्थं तन्वि वपुः प्रशांतमपि ते क्षोभं करोत्येव नः ।।१२।।

 ऐ कृशाङ्ग ! हे, नाज़नी ! तेरे बाल साफ-सुथरे और सँवारे हुए हैं, तेरी आखें बड़ी-बड़ी और कानोंतक हैं, तेरा मुख स्वमाव  से ही स्वच्छ और सफेद दन्तपंक्तिसे शोभायमान है, तेरे कुचों पर मोतियों के हार झेल रहे हैं ; पर तेरा ऐसा शीतल और शान्तिमय शरीर भी मेरे मन में तो विकार ही उत्पन्न करता है, यह अचम्भे की बात है ! ॥१२॥

नोट-इस श्लोकमें जो “संयमिन, श्रुतेरपि, द्विजानां और मुक्तानां शब्द आये हैं, उनके दो-दो अथ हैं। उनके इस्तेमाल से कवि महोदयने अपूर्व चमत्कार दिखाया है। इससे इस श्लोकके दो अर्थ हो गये हैं। एक अर्थ ऊपर लिखा ही है, और दूसरा नीचे लिखते हैं ; पर पहले उन शब्दोंके दो-दो अर्थ बता देना उचित समझते हैं:-संयमिन=सँवारे हुए और जितेन्द्रिय । तेराप=कानों तक पहुँचे हुए और वेदशास्त्र परिङ्गत, काननवारी और बनचारी। द्विजानांत, ब्राह्मण मुक्तान-मोती और मुक्त पुरुष । हे कृशाङ्गि ! पे नाज़नी ! तेरे बाल जितेन्द्रिय हैं, तेरे नेत्र वेदशास्त्र-पारङ्गत और काननचारी हैं, तेरा मुख पवित्र है और . उसमें ब्राह्मणों का निवास है, तेरी छातियों पर मुक्त पुरुषों का निवास है । इसलिये तेरा शरीर सतोगुणका धाम है । अतः उसे शीतल और शान्तिमय होना चाहिये । पर, है उल्टी बात। तेरे सतोगुणी शरीर से मुझे शान्ति मिलनी चाहिये । पर उससे मेरे एनमें उल्टी अशान्ति यः क्षोभ अथवा अनुराग उत्पन्न होता हैं, यह आश्चर्य की बात है।


छप्पय । संयम राखत केश, नयनहूँ काननचारी ।। मुख मॅाहि पवित्र रहत, द्विजगन सुखकारी ।। उस पर मुक्ताहार, रहत निशिदिन छवि छायो ।

आनन चन्द-उजास, रूप उज्ज्वल दरसायो । तेरो तन तरुणी ! मृदुल अति, चलत चाल धीरज-सहित । सब “ति सतोगुणको सदन, तऊ करत अनुराग चित ॥१२॥

नोट–इस कवितासे भी दूसरा अर्थ साफ समझमें आता है। तेरे बाल संयमी हैं, नेत्र काननचारी हैं, मुख्नमें पवित्र सुखकोरी ब्राह्मणों का निवास है, छातियों पर मुक्त पुरुषोंका हार है, मुख चन्द्रमाके समान है, शरीर नाजुक है, तू धीमी-धीमी चाल चलती है,—इन सब लक्षयोंसे तेरा शरीर सतोगुणका घर है। सतोगुणी शरीरसे विकार या जोभ उत्पन्न हो नहीं सकता ; फिर भी, तेरा शरीर अनुराग पैदा करता है, यह अचम्भे की ही बात है। सार–त्रीको शरीर, सब तरहसे सतो गुणी, शीतल और शान्तिमय होनेपर भी, पुरुष के मनमें क्षीभ ही करता है। । 12, 

0 women, of slender constitution, ( you ) whose hair is well controlled, whose eyes are outstretched up to ears, whose mouth is filled with naturally clean teeth and on whose breasts pearls are always shining, though your frame is full of calmness yet it disturbs us. 

 The references in this shloka have double meanings. Sanyami —means controlled as well as bound ; Shruti-means Vedas as well.

‘पुग्धे धानुष्कता केयम पूर्वा त्वयि दृश्यते ।

यथा हरसि चेतांसि गुणैरेव न सायकैः ।।१३।।

हे मुग्धे सुन्दरी ! धनुर्विद्यामें ऐसी असाधारण कुशलता तुझमें कहाँसे आई कि, वाण छोड़े बिना, केवल गुण* से ही, तू पुरुष के हृदयको बेध देती है ? ॥ १३ ॥

हे कमसिन भोली-भाली नाज़नी ! तैने ऐसी गजबकी तीरन्दाज़ी किससे सीखी, जो बिना तीर चलाये ही, केवल कमान की डोरी छूकर ही, तू मर्द के दिल को छेद देती है ? उस्ताद ज़ौक ने कहा हैं :-

तुरूंगा तीर तो जाहिर, न था कुछ पास कातिलके ।

इलाही फिर जो दिल पर, ताकके मारा ते क्या मारा ?।। 

Da Dah,Solapf-to-i ted souls as well as pearls. In the body of a beautiful girl we find the hairs well bound up-this is control ; eyes stretched up to ears and the other meaning is it goes beyond the knowledge of Vedas; mouth full of beautiful teeth-the other meaning is that venerable Brahmins are connected with it ; breast adorned by pearls -the other meaning is even the liberated souls are connected with it. Hence taking one side of the meaning---we find that a woman whose body is thus full of signs of calmness is also very attractive and disturbing to us.

ॐ गुण=(१) चतुराई, (२) रस्सी, जिससे धनुषके दोनों कोटि बांधे जाते हैं। 

बड़ा आश्चर्य है, उसके पास न तीर था न पिस्तौल। पर हे परमेश्वर, उसने मेरे दिल पर फिर क्या चीज़ ताककर मारी, जो मैं लौट-पोट हो गया ? मौलाना हाली कहते हैं:-

था कुछ न कुछ, कि फैंस सी इक दिल में चुभ गई । माना कि उसके हाथमें, तीरो सनां न था । महाकवि गालिब कहते हैं :- इस सादगी पर कौन न मर जाये ऐ खुदा ! लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं 

दोहा ।। अति अद्भुत कमनैल तिय, करलें वाणु ल लेत.

"देखो यह विपरीत गति, गुण ते बँधे देत ।। १३॥

सार–स्त्रियोंके पास कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं रहता, वे केवल अपनी चतुराईसे ही पुरुषोंको वशमें कर लेती हैं, यह अचम्भेकी बात है।

18. 0 beautiful girl, how nice is your skillfully in the use of the bow, because you do not pierce the heart of men by arrows but by only bending the bow ( in other words, by your charms only ) सति प्रदीपे सत्यग्नौ सत्सु तारारवीन्दुषु । विना में मृगशावाच्या तमोभूतमिदं जगत् ।। १४॥

यद्यपि दीपक, अग्नि, तारे, सूर्य और चन्द्रमा सभी प्रकाशमान पदार्थ मौजूद हैं, पर मुझे एक मृगनयनी सुन्दरी बिना सारा जगत् अन्धकारपूर्ण दीखता है ॥१४॥

खुलासा–यद्यपि दीपक-चिराग, आग, सितारे, सूरज और चाँद जैसे सदा थे, वैसे ही अब भी हैं ; ये जिस तरह पहले अन्धकार नाश करके उजियाला करते थे, उसी तरह अब भी कर रहे हैं। परन्तु मुझे तो एक मृगनयनी प्यारी बिना सर्वत्र अंधेरा-ही-अँधेरा नज़र आता है। तात्पर्य यह है कि, घरमें सब कुछ होने पर भी, एक स्त्री बिना घर शून्य निर्जन वनसा मालूम होता है।

पण्डितेन्द्र महाराज जगन्नाथ अपने “भामिती-विलास” में 

कहते हैं :-

हरिणीप्रेक्षणा यत्र गृहिणी न विलोक्यते ।

सेवितं सर्व सम्पभिरपि तद्भवनं वनम् ।। 

जिस घरमें मृगनयनी गृहिणी नहीं दीखती, वह घर सर्व सम्पत्तिसम्पन्न होने पर भी वन है।

सच है, घरमें चाहे पुत्र हों, पुत्र-बधुएँ हों, नौकर-चाकर और दास-दासी हों, हाथी-घोड़े और ग्थ-पालकी प्रभृति सभी  ऐश्वके सामान हों । पर एक हिरनीके से नेत्रों वाली प्यारी न हो । तो वह घर, सर्व सम्पदायें होने पर भी, निर्जन वनकी तरह शून्य है। संसारमें घर-गृहस्थीको सच्चा आनन्द सुन्दरी प्राणप्यारीसे ही है। महाकवि नज़ीर कहते हैं :--

मै भी है मीना भी है, सागिर भी है साकी नहीं । दिलमें आता है, लगादें आग मैखानेको हम ।। इस समय सारे कामोद्दीपन करनेवाले ऐश-आरामके सामान–सुरा सुराही आदि मौजूद हैं ; पर है क्या नहीं ? केवल वही, जिसके लिये इन सब वस्तुओंकी आवश्यकता हुई। इससे अब होली ऐसी बुरी जान पड़ती है कि, जी चाहता है कि, इसमें आग लगा हूँ ; अर्थात् सब कुछ मौजूद है, पर एक नाज़नी नहीं है। इससे मुझे सब बुरे लगते हैं। स्त्री बिना सारे आनन्द फीके हैं। जिन्होंने स्त्रीका सुख नहीं भोगा है, जिन्हें स्त्री रत्नकी कीमत नहीं मालूम, जो नारी-रहस्यको नहीं जानते,जो स्त्रीको पैरकी जूतीमात्र समझते हैं, वे हमारी इन बातोंको पढ़ कर हँसेंगे हमें स्त्रीदास या स्त्र ण कहेंगे। जो जिसकी कीमत जानता है, वही उसकी कदर करता है। मोती बहुमूल्य होता है, पर भीलनी उसे पाकर फेंक देती है और जौहरी उसे हृदयसे लगा लेता है। जो जिसके रहस्यको जानता है, वही उसके सम्बन्धमें कुछ कह सकता है। मौलाना हाली ठीक ही कहते हैं :- हकीकत महरमे असरार से पूछ । मजा अँगूर को मैस्वार से पूछ । दिले महज़र से सुन लज्जते वस्ल । निशाते आफियत बीमार से पूछ ।। जो सब तरहकी बातें जानता है, तत्त्वज्ञ या रहस्यज्ञ है, उसीसे तत्त्वकी बात पूछनी चाहिये। अंगूरमें क्या मज़ा है, यह अंगूरी शराब पीने वालेसे पूछना चाहिये। वही उस विषयमें कह सकता है।  जिस दिलने माशूकासे मिलनेके लिए अनेक तरहकी तकलीफे उठाई हैं, उसीसे वस्लका मज़ा या मिलनेके आनन्दकी बात पूछनी चाहिये। जिस रोगीने अनेक तरहके कष्ट उठाकर आरोग्य लाभ किया है, वही तन्दुरुस्तीकी कीमत जानता है। हमें भी स्त्रियोंके सम्बन्धमें थोड़ा-बहुत अनुभव है, हमने उनके संयोग और वियोग दोनों ही देखे हैं, उनकी सेवा-शुश्रूषाओंसे सुखी और उनकी मंत्रणाओंसे लाभान्वित हुए हैं, अतः हम भी ज़ोरके साथ कहते हैं :–निश्चय ही स्त्री-बिना संसारके सभी सुखैश्वर्ण्य अलौने-फीके और बेमज़े हैं। स्त्री ईश्वरके संसार रूपी बगीचेका सर्वोत्तम फूल है। उसीसे ईश्वरकी सृष्टिकी शोभा है। अगर स्त्री न होती, तो यह जगत् अन्धकारपूर्ण, निर्जन और भयानक होता। जिस करोड़पतिके घरमें सती स्त्रीं नहीं है, उसका घर साक्षात् श्मशान है और जिस दरिद्रीके घरमें पतिव्रता, लज्जावत और मधुरभाषिणी स्त्री है, उसका घर नन्दन कानन है। देखिये, संसारके प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानों और महापुरुषोंने नारी जातिके सम्बन्धमें क्या कहा है :- स्त्री-महिमा । हे स्त्री ! स्वर्गमें क्याहै, जो तुझमें नहीं ? अद्भुत ज्योति, सत्य, अनन्त सुख और अनादि प्रेम–सभी तुझमें हैं। आवे।

स्त्री इस संसारको रमणीक प्रदेश है। इस प्रदेशमें विश्वास तरु लहलहा रहे हैं, आनन्दके फूल खिल रहे हैं, हर्ष-विहग कलरव कर रहे हैं तथा निवृत्ति और विश्वासकी नदियाँ बह रही हैं। यहाँ शोरोगुलका नाम भी नहीं है। लाई बैरन  स्त्री पुरुषका आधा श्रेष्ठ भाग है। पुरुष जबतक शादी नहीं करता, अधूरा रहता है। स्त्री एक तरह का तीर्थ है। विधाता  हमें उसकी यात्रा को भेजता है। स्त्री पुण्यात्मा के लिए स्वर्ग हैं। और दके लिए स्वर्ग-सोपानका पहला पद । स्त्री एक खज़ाना है। जिस पुरुषके पास यह खज़ाना नहीं, वह अपने कर्ज़ को अदा कर नहीं सकता, यानी अपने पितरोंका ऋण चुका नहीं सकता।है स्त्री ! तू रातका तारा और प्रातःकालका हीरा है। तू ओसका कुतरा है, जिससे काँटेका मुंह भी मोतियोंसे भर जाता है। वह रात अँधेरी और वह दिन फीका मालूम होता है, जबकि तेरी आँखोंकी रोशनी दिलको ठण्डा नहीं करती। हृदय का घाव बिना तेरे मधुर ओठोंके अच्छा हो नहीं सकता। विपत्तिमें तू सहायक होती है।

है अबला ! तेरे शरीर और आत्मामें एक जादू है। जिधर हम जाते हैं उधर तेरी ज्योति हमें राह दिखाती है। चाहे गरम-से-गरम देश हो और चाहे शीतल-से-शीतल देश हो, अगर तु वहाँ मौजूद है, तो वहाँ भी आनन्द ही है। टामस मोर। सलाह या मशवरः करनेके लिए स्त्री पुरुषसे अच्छी है । जब कभी किसी मामूली सी बातसे मेरा दिल घबरा उठता है, तब

स्त्री की मदद मिलने से मुझे एसा मालूम होता है, मानो यह बात ऐसी नहीं है, जिससे मुझे दुखी होना पड़े। (स्त्री सलाह देनेमें) मुसलमान के यहाँ भी लिखा है कि, पहले दम पैदा हुआ और फिर हव्वा ( Adam and Eve ) । मनुसे मनुष्य शब्द और आदमसे आदमी शब्द बना । संसारका पहला पुरुष मनु या दम था और पहली स्त्री शतरूपा या हवा थी। इन्हींस जगत को उत्पत्ति हुई। जबतक अदमको इवा न मिली, तब तक उसे बा अदन या नन्दनकानन उजाड़से भी बुरा मालूम होता था।

व्यास-संहिता में लिखा है-जब तक विवाह नहीं होता, तब तक पुरुष अदं देह रहता है। विवाह होने के बाद पुरुष पूदेह होता है।

शलें । । ॐ हमारे भगवान् मनु ने भी यही बात कही है। उन्होंने कहा है कि, विधाता ब्रह्माने अपने शरीरके दो भागकर, अध अंशसे पुरुष और आधेसे स्त्रीको पैदा किया। पुरुषका नाम मनु और स्त्रीको नाम शतरूपा हुआ। अंगरेजों और 

मृगनयनाका अपूर्व सुख भोगनेकी इच्छा । रखनेवालेांके लिए अमूल्य सम्मति ।।

गृहस्थोंके लिए संसारमें सार क्या है ? हम इसी ग्रन्थमें लिख आये हैं कि इस जगत्में पृथ्वी सार है, । पृथ्वीपर शहर सार है , शहरमें घर सार है ; घरमें मृगनयनी, * चन्द्रमुखी, मधुरमाषिणी नारी सार है और नारीमें सुरत

या सम्भोग सार पदार्थ है जो लोग सुरत-सुखको भोग नहीं करते या नहीं कर सकते, उनका इस

। जगतमें आना ही वृथा है।" सुरत सुखके लिए किन चीजोंकी दरकार है ? । स्त्रीभोगका सुख वही पुरुष लूट सकता है, जो निरोग है,

बलवान है, वीयवान और पुष्ट है। जो रोगी है, बलहीन, । है, वीर्यदक्षीण है, दुबला-पतला और कमजोर

है, वह स्त्री-भोगका आनन्द नहीं उठा सकता ।।

निरोग और बलवान होनेके क्या उपाय हैं ? ससा के सुखोंमें आरोग्यता पहला सुख है। यद्यपि “सुरत* सुख” सब सुखों का सार माना गया है, पर बिना आरोग्य रहे वह सुख फीका है। कैसा ही कामी पुरुष क्यों न " अगर वह बीमार है, तो उसे स्त्री विषसे भी बुरी मालूम गी । निरोग, रोग-रहित, बलवान और वीर्यवान को ही स्त्री अच्छी । मालूम होती है। इसलिये जो लोग संसारके सार सुख ‘सुरत का आनन्द उठाना चाहें, उन्हें सदा निरोग रहेनेके उपाय करने चाहिये। निरोग रहनेके लिये इस बात की पहली ज़रूरत है, कि मनुष्य इस बात को जाने कि, उसे उसकी किन-किन ग़लतियोंसे या किन-किन मिथ्या आहार-विहारों रोग होते हैं। जो इन बातों को जानेगा, वह ग़लती क्यों

करेगा ? वह मिथ्या आहार विहारोंके झंझट पाल कर बीमार क्यों होगा ? जो इस बात को जानता है कि, हस्तमैन

करनेसे पुरुषकी शिश्नेन्द्रिय निकम्मी और बे-काम होजर, है, "}

धातुएँ नष्ट हो जाती हैं, स्मरण-शक्ति जाती रहती है, चित्तमै शान्ति नहीं रहती और मौत सिर पर खड़ी रहती है

वह हस्तमैथुन जैसे मृत्युको निमंत्रण देनेवाले काम क्यों करेगा ? आज भारतके १०० में ६८ बालक और जवान, इस सत्यानाशी कुकर्मसे पुसत्व खोकर, जीवनसे आगरी आरहे हैं। वह अपने घरमें युवती स्त्रोको देख-देखकर नौ नौ आँसू रोतेवैद्य-हकीमों की खुशामद करते और उन्हें अपनी कड़ी कमाई का पैसा ठगाते हैं। आजकलके चटकीले-भड़कीले ठग "विज्ञापनबाजोंके वी० पी० पर वी० पी० मँगा-हँगा कर धन नाश करते हैं पर उनकी मनोकामना सिद्ध नहीं होती। 


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