पञ्चत्रिंशोऽध्यायः मुख्य-मुख्य नागोंके नाम
शौनक उवाच भुजङ्गमानां शापस्य मात्रा चैव सुतेन च ।
विनतायास्त्वया प्रोक्तं कारणं सूतनन्दन ॥१॥
शोनकजीने कहा-सूतनन्दन! सोको उनकी मातासे और विनता देवीको उनके | पुत्रसे जो शाप प्राप्त हुआ था, उसका कारण आपने बता दिया ॥१॥
वरप्रदानं भर्चा च कविनतयोस्तथा ।
नामनी चैव ते प्रोक्ते पक्षिणोवैनतेययोः ॥२॥
कद्रू और विनताको उनके पति कश्यपजीसे जो वर मिले थे, वह कथा भी कह सुनायी तथा विनताके जो दोनों पुत्र पक्षीरूपमें प्रकट हुए थे, उनके नाम भी आपने बताये है।॥२॥
पन्नगानां तु नामानिन कीर्तयसि सूतज ।
प्राधान्येनापि नामानि श्रोतुमिच्छामहे वयम् ।।३।।
किंतु सूतपुत्र! आप सापोंके नाम नहीं बता रहे हैं। यदि सबका नाम बताना सम्भव न हो, तो उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उन्हींके नाम हम सुनना चाहते हैं ॥३॥
सोतिरुवाच बहुत्वान्नामधेयानि पन्नगानां तपोधन ।
न कीर्तयिष्ये सर्वेषां प्राधान्येन तु मे शृणु ।।४।।
उग्रश्रवाजीने कहा-तपोधन! सापोंकी संख्या बहुत है; अतः उन सबके नाम तो नहीं कहूँगा, किंतु उनमें जो मुख्य-मुख्य सर्प हैं, उनके नाम मुझसे सुनिये ॥ ४ ॥
शेषः प्रथमतो जातो वासुकिस्तदनन्तरम्।
ऐरावतस्तक्षकश्च कर्कोटकधनंजयो ॥५॥
कालियो मणिनागश्च नागश्चापूरणस्तथा ।
नागस्तथा पिञ्जरक एलापत्रोऽथ वामनः ॥६॥
नीलानीलो तथा नागी कल्माषशबलो तथा ।
आर्यकश्वोग्रकश्चैव नागः कलशपोतकः ॥७॥
सुमनाख्यो दधिमुखस्तथा विमलपिण्डकः ।
आप्तः कर्कोटकश्चैव शखो वालिशिखस्तथा ॥८॥
निष्टानको हेमगुहो नहुषः पिङ्गलस्तथा।
बाह्यकर्णो हस्तिपदस्तथा मुद्गरपिण्डकः ॥९॥
कम्बलाश्वतरो चापि नागः कालीयकस्तथा ।
वृत्तसंवर्तको नागो द्वीच पद्माविति श्रुती ।।१०।।
नागः शङ्खमुखश्चैव तथा कूष्माण्डकोऽपरः ।
क्षेमकश्च तथा नागो नागः पिण्डारकस्तथा ।। ११ ।।
करवीरः पुष्पदंष्ट्रो बिल्वको बिल्वपाण्डुरः ।
मूषकादः शङ्खशिराः पूर्णभद्रो हरिदकः ।। १२ ।।
अपराजितो ज्योतिकश्च पन्नगः श्रीवहस्तथा ।
कोरव्यो धृतराष्ट्रश्च शङ्खपिण्डश्च वीर्यवान् ॥ १३ ॥
विरजाश्च सुबाहुश्च शालिपिण्डश्च वीर्यवान् ।
हस्तिपिण्डः पिठरकः सुमुखः कोणपाशनः ।। १४ ।।
कुठरः कुञ्जरश्चैव तथा नागः प्रभाकरः ।
कुमुदः कुमुदाक्षश्च तित्तिरिहलिकस्तथा ।। १५ ॥
कर्दमश्च महानागो नागश्च बहुमूलकः ।
कर्कराकर्करो नागी कुण्डोदरमहोदरी ।। १६ ।।
नागोंमें सबसे पहले शेषजी प्रकट हुए हैं। तदनन्तर वासुकि, ऐरावत, तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, कालिय, मणिनाग, आपूरण, पिंजरक, एलापत्र, वामन, नील, अनील, कल्माष, शबल, आर्यक, उग्रक, कलशपोतक, सुमनाख्य, दधिमुख, विमलपिण्डक, आप्त, कर्कोटक (द्वितीय), शंख, वालिशिख, निष्टानक, हेमगुह, नहुष, पिंगल, बाह्यकर्ण, हस्तिपद, मुद्गरपिण्डक, कम्बल, अश्वतर, कालीयक, वृत्त, संवर्तक, पद्म (प्रथम), पद्म (द्वितीय), शंखमुख, कूष्माण्डक, क्षेमक, पिण्डारक, करवीर, पुष्पदंष्ट्र, बिल्वक, बिल्वपाण्डुर, मूषकाद, शंखशिरा, पूर्णभद्र, हरिट्रक, अपराजित, ज्योतिक, श्रीवह, कौरव्य, धृतराष्ट्र, पराक्रमी शंखपिण्ड, विरजा, सुबाहु, वीर्यवान् शालिपिण्ड, हस्तिपिण्ड, पिठरक, सुमुखा, कोणपाशन, कुठर, कुंजर, प्रभाकर, कुमुद, कुमुदाक्ष, तित्तिरि, हलिक, महानाग कर्दम, बहुमूलक, कर्कर, अकर्कर, कुण्डोदर और महोदर-ये नाग उत्पन्न हुए।।५-१६ ॥
एते प्राधान्यतो नागाः कीर्तिता द्विजसत्तम।
बहुत्वान्नामधेयानामितरे नानुकीर्तिताः ।।१०।।
द्विजश्रेष्ठ! ये मुख्य-मुख्य नाग यहाँ बताये गये हैं। सपोंकी संख्या अधिक होनेसे उनके नाम भी बहुत हैं। अतः अन्य अप्रधान नागोंके नाम यहाँ नहीं कहे गये हैं ।। १७॥
एतेषां प्रसवो यश्च प्रसवस्य च संततिः ।
असंख्येयेति मत्वा तान्न ब्रवीमि तपोधन ।।१८।।
तपोधन! इन नागोंकी संतान तथा उन संतानोंकी भी संतति असंख्य हैं। ऐसा समझकर उनके नाम में नहीं कहता हूँ॥ १८ ॥
बहूनीह सहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च ।
अशक्यान्येव संख्या पन्नगानां तपोधन ।। १९ ।।
तपस्वी शौनकजी! नागोंकी संख्या यहाँ कई हजारोंसे लेकर लाखों-अरबोंतक पहुँच जाती है। अतः उनकी गणना नहीं की जा सकती है ।। १९ ।।
इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सर्पनामकथने पञ्चत्रिंशोऽध्यायः ।।३५।।
इस प्रकार श्रीमहाभारत आदिपर्वके अन्तर्गत आस्तीकपर्वमें सर्वनामकधनविषयक पैतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ।। ३५ ।।
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