संस्कृत का स्वयं शिक्षक बनें।
अक्षर
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं
अः ।
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण त थ द ध
न, प फ ब भ म य र ल व, श ष स ह क्ष त्र
ज्ञ।
शुद्ध स्वर
अ, इ, उ, ऋ,
लृ,
पाठ 1
नीचे कुछ संस्कृत शब्द और उनके अर्थ
दिए हुए हैं। फिर उनके वाक्य बनाये हैं । संस्कृत भाषा के शब्द काले टाइप में छपे
शब्द
सः=वह। त्वम्=तू। अहम् = मैं |
गच्छति = वह जाता है।
गच्छसि = तू जाता है ।
गच्छामि=मैं जाता हूं।
वाक्य
अहं गच्छामि=मैं जाता हूं । त्वं गच्छसि तू जाता है।
सः गच्छति = वह जाता हैI
पाठक यहां ध्यान रखें कि संस्कृत वाक्यों का भाषा में
अर्थ शब्द के
क्रम से ही दिया गया है।
शब्द
कुत्र = कहां । यत्र = जहां । अत्र यहां ।
तत्र=वहां। सर्वत्र=सव स्थान पर । किम् = क्या |
वाक्य
1. त्वं कुत्र गच्छसि - तू कहां जाता है ?
2. यत्र सः गच्छति - जहां वह जाता है।
3. अहं तत्र गच्छामि - मैं वहां जाता हूं।
4. सः कुत्र गच्छति - वह कहां जाता है ?
5. यत्र अहं गच्छामि - जहां मैं जाता हूं ।
6. त्वं सर्वत्र गच्छसि - तू सब स्थान पर जाता है।
7. किं सः गच्छति -क्या वह जाता है ? 8.
सः गच्छति किम् - वह जाता है क्या ?
9. सः कुत्र गच्छति - वह कहां जाता है ?
10. यत्र त्वं गच्छसि – जहां तू जाता है ।
11. त्वं गच्छसि किम् - तू जाता है क्या ?
12. अहं सर्वत्र गच्छामि - मैं सब स्थान पर जाता हूं।
पाठकों को ये सब वाक्य ध्यान में
रखने चाहिए। यदि दो पाठक साथ-साथ पढ़ते हो तो एक दूसरे से संस्कृत तथा हिन्दी के
वाक्य उच्चारण कर अर्थ पूछने चाहिए, और
दूसरे को चाहिए कि अर्थ बताए। परन्तु यदि अकेला ही पढ़ना हो तो उसे प्रथम उंची
आवाज में प्रत्येक वाक्य दस बार उच्चारण करके तत्पश्चात संस्कृत वाक्यों की ओर
दृष्टि देकर उनका अर्थ भाषा के वाक्यों की ओर दृष्टि न देते हुए मन से लगाने का
प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा दो तीन बार करने से सब वाक्य याद हो सकते हैं, जो पाठक इन
वाक्यों की ओर ध्यान देंगे उनको शब्दों से कई अन्य वाक्य स्वयं बनाने की योग्यता
आयेगी और पता लगेगा कि थोड़े से शब्दों से कितनी बातचीत हो सकती है।
न – नहीं। अस्ति- है। कः – कौन। नास्ति – नहीं है।
वाक्य
1.
अहं गच्छामि- मैं नहीं जाता हूं।
2. त्वं न गच्छसि – तू नहीं
जाता है।
3. सः न गच्छति- वह नहीं जाता
है।
4. अहहं तत्र न गच्छामि – मैं
वहां नहीं जाता हूं।
5. त्वं सर्वत्र न गच्छसि – तू
सब स्तान पर नहीं जाता है।
6. किं सः न चच्छति –क्या वह
नहीं जाता है।
7. यत्र त्वं न गच्छसि – जहां
तू नहीं जाता है।
8. त्वं न गच्छसि किम् – तू
नहीं जाता है क्या?
9. अहं सर्वत्र न गच्छामि - मैं सब स्थान पर नहीं जाता हूं।
सूचना- पाठक यह देख सकते हैं कि
केवल एक ‘न’ (नकार) के उपयोग से कितने नये उपयोगी वाक्य बन गए
हैं। अब ‘क’ का उपयोग देखिए-
1.
कः तत्र गच्छति- कौन वहां जाता है?
2. कः सर्वत्र गच्छति- कौन सब
स्तान पर जाता है?
3. तत्र कः न गच्छति- वहां कौन जाता
है?
4. कः सर्वत्र न गच्छति – कौन
सब स्थान पर नहीं जाता है?
5. कः तत्र अस्ति –कौन वहां है?
6. तत्र कः अस्ति – वहां कौन
है?
7. अस्ति कः तत्र – है कौन
वहां?
पाठ 2
निम्नलिखित शब्द याद कीजिए-
शब्द
गृहम् - घर को । नगरम् - नगर को ।
ग्रामम् - गांव को । आपणम्-वाज़ार को । पाठशालाम्-पाठशाला को । उद्यानम् - बाग़ को
।
वाक्य
1. त्वं कुत्र गच्छसि - तू कहां जाता है ?
2. अहं गृहं गच्छामि - मैं घर को जाता हूं।
3. सः कुत्र गच्छति - वह कहां जाता है ?
4. सः ग्रामं गच्छति - वह गांव को जाता है ।
5. त्वं पाठशालां गच्छसि किम् – तू पाठशाला को जाता
है क्या ?
6. सः उद्यानं गच्छति किम्-वह बाग़ को जाता है क्या ?
7. किं सः ग्रामं गच्छति-क्या वह गांव को जाता है ?
8. किं त्वम् आपणं गच्छसि - क्या तू बाज़ार को जाता
है ?
9. यत्र त्वं गच्छसि - जहां तू जाता है ।
10. तत्र अहं गच्छामि - वहां मैं जाता हूं ।
11. यत्र सः गच्छति - जहां वह जाता है ।
12. तत्र त्वं गच्छसि किम् - वहां तू जाता है क्या ?
शब्द
यदा - जब । कदा - कब । सदा-सदा, हमेशा। सर्वदा -
सदा, हमेशा। सदैव - हमेशा । तदा-तब ।
अब नीचे लिखे हुए वाक्यों को याद
कीजिए। यदि आपने पूर्वोक्त वाक्य याद किए हों तो ये वाक्य आप स्वयं बना सकते हैं-
वाक्य
1. कदा सः नगरं गच्छति - कब वह नगर को जाता है ?
2. यदा सः ग्रामं गच्छति - जब वह गांव को जाता है ।
3. अहं सदैव पाठशालां गच्छामि - मैं हमेशा पाठशाला
जाता हूं :
4. सः सर्वदा उद्यानं गच्छति - वह सदा वाग़ को
जाता है।
5. किं त्वं सदा आपणं गच्छसि - क्या तू हमेशा
बाज़ार जाता है ?
6. अहं संदैव नगरं गच्छामि - मैं हमेशा नगर को
जाता हूं।
7. यदा त्वं ग्रामं गच्छसि - जव तू गांव को
जाता है ।
8. तदाऽहं उद्यानं गच्छामि - तव में वाग़ को
जाता हूं।
9. सः नगरं गच्छति किम्-वह नगर को जाता क्या ?
10. सः सर्वदा ग्रामं गच्छति - वह सदा गांव को
जाता है।
11. किं त्वम् उद्यानं गच्छसि - क्या तू बाग़
को जाता है ?
12. अहं सदैव उद्यानं गच्छामि - मैं सदा ही
वाग़ को जाता हूं।
13. त्वं कुत्र गच्छसि - तू कहां जाता है ?
14. त्वं कदा गच्छसि - तू कव जाता है ?
15. सः सदैव गच्छति - वह हमेशा ही जाता है ।
पूर्वोक्त प्रकार से इन वाक्यों को
भी जोर से बोल कर दस-दस बार उच्चारण करना चाहिए। तत्पश्चात् संस्कृत वाक्य की ओर
देखकर (हिन्दी के वाक्य को देखते हुए उसको हिन्दी का वाक्य बनाना चाहिए। तदनन्तर
हिन्दी का वाक्य देखकर उसको संस्कृत वाक्य बनाना चाहिए। इस प्रकार करने से पाठक
स्वयं कई नये वाक्य बना सकते हैं। अब कुछ निषेध के वाक्य बताते हैं-
1. अहं गृहं न गच्छामि मैं घर नहीं जाता हूँ ।
2. सः ग्रामं न गच्छति - वह गाँव को नहीं जाता
है ।
3. त्वं पाठशालां न गच्छसि किम् - तू पाठशाला
को नहीं जाता है क्या ?
4. सः उद्यानं किं न गच्छति-क्या वह बाग़ को
नहीं जाता ?
5. किं सः ग्रामं न गच्छति-क्या वह गाँव को
नहीं जाता ?
6. किं त्वम् आपणं न गच्छसि - क्या तू बाज़ार
नहीं जाता ?
7. तत्र त्वं किं न गच्छसि - वहाँ त क्यों
नहीं जाता ? तू
8. यदा सः ग्रामं न गच्छति - जब वह गाँव को
नहीं जाता।
9. कः सदा उद्यानं न गच्छति - कौन हमेशा बाग़
को नहीं जाता ?
10. सं: उद्यानं सर्वदा न गच्छति - वह बाग़ को
हमेशा नहीं जाता ।
11. त्वं तत्र किं न गच्छसि -तु वहाँ क्यों
नहीं जाता ?
12. सः तत्र सदैव न गच्छति - वह वहाँ हमेशा ही
नहीं जाता ।
इसी प्रकार पाठक स्वयं वाक्य बना सकते हैं ।
पाठ 3
यदि आपने पूर्व पाठ के वाक्य तथा
शब्द अच्छी प्रकार याद कर लिये हों तो अब निम्नलिखित शब्दों को याद कीजिए-
सायम् - शाम को । प्रातः - प्रातः
काल । रात्रौ - रात्रि में । श्वः - कल ( आगामी दिन) । परश्वः - परसों । दिवा -
दिन में । मध्याह्ने - दोपहर में । अद्य - आज । ह्यः-कल (बीता दिन ) ।
वाक्य
1. त्वं कुत्र सदैव प्रातः गच्छसि - तू कहाँ हमेशा ही
प्रातःकाल जाता है ?
2. अहं सदैव प्रातः उद्यानं गच्छामि - मैं सदा ही
प्रातःकाल बाग़ जाता हूँ ।
3. सः सायम् उद्यानं गच्छति - वह सायंकाल बाग़ को
जाता है ।
4. अद्य अहं पाठशालां न गच्छामि - आज मैं पाठशाला
नहीं जाता हूँ ।
5. त्वम् अय पाठशालां गच्छसि किम् - तू आज पाठशाला
जाता है क्या ?
6. त्वं मध्याह्ने कुत्र गच्छसि - तू दोपहर को कहाँ
जाता है ?
7. अहं मध्याह्ने ग्रामं गच्छामि - मैं दोपहर में
गाँव जाता हूँ ।
8. सः दिवा नगरं गच्छति - वह दिन में नगर जाता है ।
9. अहं रात्रौ गृहं गच्छामि- मैं रात्रि में घर जाता
हूँ ।
10. त्वं यत्र रात्रौ गच्छसि - जहाँ तू रात्रि जाता
है।
11. तत्र अहं दिवा गच्छामि - वहाँ मैं दिन में जाता
हूँ ।
12. तत्र सः प्रातः गच्छति - वहाँ वह प्रातःकाल जाता
है ।
शब्द
यदि-यदि, अगर।
तर्हि तो । गमिष्यसि - तू जाएगा।
गमिष्यति-वह जाएगा।
यथा - जैसे । तथा-वैसे ।
कथम् - कैसे ।
गमिष्यामि - मैं जाऊँगा ।
जालन्धरनगरम् - जालन्धर शहर को ।
हरिद्वारनगरम् - हरिद्वार शहर को ।
वाक्य
1. यदि त्वं जालन्धरनगरं श्वः गमिष्यसि - अगर तू जालन्धर
शहर को कल जाएगा ।
2. तर्हि अहं हरिद्वारं परश्वः गमिष्यामि - तो मैं
हरिद्वार शहर को परसों जाऊँगा ।
3. यदि त्वं गमिष्यसि तदा अहं गमिष्यामि - जब तू
जाएगा तब मैं जाऊँगा ।
4. यदि त्वं न गमिष्यसि तर्हि अहं न गमिष्यामि - अगर
तू नहीं जाएगा तो मैं नहीं जाऊँगा ।
5. सः हरिद्वारं श्वः गमिष्यति - वह कल हरिद्वार
जाएगा ।
6. सः श्वः प्रातः जालन्धरनगरं गमिष्यति - वह कल
प्रातः जालन्धर शहर जाएगा ।
7. यत्र सः श्वः गमिष्यति - जहाँ कल वह जाएगा।
8. तत्र अहं परश्वः गमिष्यामि - वहाँ मैं परसों
जाऊँगा ।
9. त्वं परश्वः ग्रामं गमिष्यसि किम् - तू परसों गाँव
जाएगा क्या ?
10. न अहम् अद्य सायं नगरं गमिष्यामि- नहीं, मैं आज सायंकाल शहर
जाऊँगा ।
11. यथा त्वं गच्छसि तथा सः गच्छति - जैसे तू जाता है, वैसे वह जाता है ।
12. कथं तत्र सः श्वः न गमिष्यति - कैसे वहाँ वह कल
नहीं जाएगा ?
13. सः तत्र श्वः गमिष्यति - वह वहाँ कल जाएगा।
ये वाक्य देखकर पाठकों को पता लगेगा
कि वे दैनिक व्यवहार के नए वाक्य स्वयं बना सकते हैं। इसीलिए वे नए-नए वाक्य ज्ञात
शब्दों से बनाने का यत्न किया करें। अब निषेध के वाक्य देखिए-
1. सः सायम् उद्यानं न गच्छति - वह शाम को बाग़ नहीं
जाता।
2. कः मध्याह्ने पाठशालां न गच्छति - कौन दोपहर में पाठशाला
नहीं जाता ?
3. अहं रात्रौ नगरं न गच्छामि- मैं रात्रि को शहर
नहीं जाता।
4. कः तत्र दिवा न गच्छति-कौन वहाँ दिन में नहीं जाता
?
5. त्वं श्वः जालन्धरं न गमिष्यसि किम् - तू कल
जालन्धर नहीं जाएगा क्या ?
6. यथा त्वं न गच्छसि तथा सः न गच्छति-जैसे तू नहीं
जाता वैसे वह नहीं जाता ।
7. कथं सः न गच्छति - कैसे वह नहीं जाता ?
8. सः रात्रौ कुत्र - कुत्र न गमिष्यति - वह रात्रि
में कहाँ-कहाँ नहीं जाएगा ?
9. यत्र-यत्र त्वं गमिष्यसि, तत्र तत्र सः न
गमिष्यति - जहाँ-जहाँ तू जाएगा, वहाँ-वहाँ वह नहीं जाएगा।
पाठ 4
'गम् – (गच्छ)' का अर्थ 'ना' । परन्तु उससे पूर्व 'आ' लगाने
से - आगम् - उसी का अर्थ 'आना' होता है
। जैसे-
शब्द
गच्छति - वह जाता है ।
गच्छामि - जाता हूँ ।
गच्छसि - तू जाता है।
गमिष्यति - वह जाएगा।
गमिष्यसि - तू जाएगा।
आगच्छति - आता है।
आगच्छामि - आता हूँ ।
गमिष्यामि - मैं जाऊँगा ।
आगच्छसि - तू आता है ।
आगमिष्यामि - मैं आऊँगा ।
आगमिष्यसि - तू आएगा ।
आगमिष्यति - वह आएगा ।
अपि भी। नहि - नहीं ।
च - और ।
औषधालयम् - दवाखाने को ।
वनम् - वन को।
कूपम् - कुएँ को ।
वाक्य
1. यदा त्वं वनं गमिष्यसि - जब तू वन को जाएगा।
2. तदा अहम् अपि आगमिष्यामि - तब मैं भी आऊँगा ।
3. यदा तत्र सः गमिष्यति - जब वह वहाँ जाएगा।
4. तदा तत्र त्वं न आगमिष्यसि किम् - तब वहाँ तू न
आएगा क्या ?
5. अहं प्रातः गमिष्यामि सायं च आगमिष्यामि - मैं
सवेरे जाऊँगा और सायंकाल को आऊँगा ।
6. कदा त्वं तत्र गमिष्यसि - तू वहाँ कब जाएगा ?
7. अहं मध्याह्ने तत्र गमिष्यामि - मैं दोपहर को वहाँ
जाऊँगा ।
8. यदि त्वं गमिष्यसि - अगर तू जाएगा ।
9. सः अपि न आगमिष्यति - वह भी नहीं आएगा।
शब्द
भक्षयति- वह खाता है ।
भक्षयसि - तू खाता है।
भक्षयामि - मैं खाता हूँ ।
फलम् - फल को ।
भक्षयिष्यति - वह खाएगा।
भक्षयिष्यामि - मैं खाऊँगा ।
मुद्गौदनम् - खिचड़ी |
अन्नम् - अन्न को ।
मोदकम् - लड्डू को ।
भक्षयिष्यसि - तू खाएगा।
ओदनम् - चावल को |
आम्रम् - आम को ।
वाक्य
1. सः अन्नं भक्षयति - वह अन्न खाता है ।
2. त्वं मोदकं भक्षयसि - तू लड्डू खाता है ।
3. अहं फलं भक्षयामि - मैं फल खाता हूँ ।
4. सः ओदनं भक्षयिष्यति - वह चावल खाएगा ।
5. त्वम् आनं भक्षयिष्यसि - तू आम खाएगा ।
6. अहं मुद्गौदनं भक्षयिष्यामि - मैं खिचड़ी खाऊँगा ।
7. यदि सः वनं प्रातः गमिष्यति - अगर वह वन को प्रातः
काल जाएगा ।
8. तर्हि आनं भक्षयिष्यति - तो आम खाएगा ।
9. अहं तत्र गमिष्यामि फलं च भक्षयिष्यामि - मैं वहाँ
जाऊँगा और फल खाऊँगा ।
10. सः गृहं गमिष्यति मोदकं च भक्षयिष्यति - वह घर
जाएगा और लड्डू खाएगा।
11. किं सः अन्नं भक्षयिष्यति -क्या वह अन्न खाएगा ?
12. तथा तत्र अहम् आम्रं भक्षयिष्यामि - वैसे वहाँ
मैं आम खाऊँगा ।
13. यथा सः ओदनं भक्षयिष्यति-जैसे वह चावल खाएगा।
विभक्तियां
अब कुछ विभक्तियों के रूप देते हैं, जिनको स्मरण करने
से पाठकों की योग्यता बहुत बढ़ सकती है। संस्कृत में सात विभक्तियाँ होती हैं (य
हिन्दी में भी हैं) । -
'देव' शब्द के सातों
विभक्तियों के रूप
विभक्ति का नाम विभक्ति के रूप
हिन्दी में अर्थ
1. प्रथमा
देवः देव (ने)
2. द्वितीया
देवम् देव को
3. तृतीया देवेन देव के द्वारा
(ने, से)
4. चतुर्थी देवाय देव के लिए
(को)
5. पंचमी देवात् देव से
6. षष्ठी देवस्य देव का, की, के
7. सप्तमी देवे देव में, पर सम्बोधन [हे]
देव हे देव
पाठ देख सकते हैं कि इन रूपों का
बातचीत करने में कितना उपयोग होता है। उक्त रूपों का उपयोग करके अब कुछ वाक्य देते
हैं-
1. देवः तत्र गच्छति - देव वहाँ जाता है ।
2. तत्र देवं पश्य' - वहाँ देव को देख ।
3. देवेन अन्नं दत्तम् - देव के द्वारा अन्न दिया गया
।
4. देवाय फलं देहि - देव के लिए फल ।
5. देवात् ज्ञानं लभते - देव से ज्ञान पाता है ।
6. देवस्य गृहम् अस्ति - देव का घर है ।
7. देवे ज्ञानम् अस्ति - देव में ज्ञान है ।
1. उक्त वाक्यों में 'पश्य' आदि शब्द
नए आए हैं, उनका अर्थ हिन्दी के वाक्यों को देखकर पाठक जान
सकते हैं। अर्थ देखने के लिए 1, 2, 3,
4 अंक शब्दों के ऊपर रखे हैं।
सम्बोधन - हे देव ! त्वं तत्र
गच्छसि किम् ? - हे देव ! तू वहाँ जाता है क्या ?
इस प्रकार पाठक वाक्य बना सकेंगे ।
उनको चाहिए कि वे इस प्रकार नये शब्दों का उपयोग करते रहें । अब उक्त वाक्यों के
निषेध अर्थ के वाक्य देते हैं । इनका अर्थ पाठक स्वयं जान सकेंगे, इसलिए नहीं दिया
है।
1. देवः तत्र न गच्छति ।
2. तत्र देवं न पश्य ।
3. देवेन अन्नं न दत्तम् ।
4. देवाय फलं न देहि ।
5. देवात् ज्ञानं न लभते ।
6. देवस्य गृहं न अस्ति ।
7. देवे ज्ञानं न अस्ति ।
सम्बोधन - हे देव ! त्वं तत्र न
गच्छसि किम् ?
पाठ कों को ध्यान रखना चाहिए कि ये वाक्य कोई विशेष
अर्थ नहीं रखते । यहाँ इतना ही बताया है कि नकार के साथ वाक्य कैसे बनाए जाते हैं
। इनको देखकर पाठक बहुत-से नए वाक्य बनाकर बोल सकते हैं ।
वाक्य
अहं नैव गमिष्यामि ।
सः मांसं नैव भक्षयिष्यति ।
सः आम्रं कदा भक्षयिष्यति ?
यदा त्वं मोदकं भक्षयिष्यसि ।
सः नित्यं कदलीफलं भक्षयति ।
देवः इदानी कुत्र अस्ति ? देवः सर्वत्र अस्ति
।
सः कदा आगमिष्यति ?
सः अत्र श्वः प्रातः आगमिष्यति ।
यत्र - यत्र अहं गच्छामि, तत्र तत्र सः
नित्यम् आगच्छति ।
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