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इन्द्र और विमद ऋषि की मित्रताएं
वैदिक भजन 1192 वां
राग केदार
गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
👇वैदिक मन्त्र👇
माकिर्न एना सख्या वि यौषुस्तव चेन्द्र विमदस्य च ऋषे: ।
विद्या हि ते प्रमतिं देव जामिवदस्मे ते सन्तु सख्या शिवानि।। ऋग्वेद•१०.२३.७
सत्य ज्ञान है दृष्टा है आत्मा
विमद ऋषि है यह आत्मा
आनन्द का ग्रहीता ज्ञानवान गुणी
लेते आत्मा सत्- ज्ञान का आनन्द ।।
सत्य ज्ञान........
ज्ञानों का आनन्द भिन्न-भिन्न स्तर का
कोई निम्न कोई मध्यम.उच्च कोई
चोरी हो मदिरापान, हत्या, डाका- काम तमाम
निम्न कोटि का है आनन्द सोई
स्वयं को होती इससे हानि
और समाज प्रताड़न।।
सत्यज्ञान.........
दूसरों की निन्दा, अदृश्य दर्शनादि,
व्यासनादि से भी जो मिलता आनन्द
ये तो आनन्द है मध्य कोटि का
यह तो स्वयं को ही होता पसंद
लालच, तृष्णा, व्यसन तजो
वरना ये दु:ख के कारण ।।
सत्यज्ञान,..........
दीन-दु:खिया सेवा, राष्ट्र भक्ति- सेवा
प्रभु भक्ति का भी दिव्य आनन्द
उच्च कोटि का मिले हार्दिक परम आनन्द
मिलता समाज को भी आनन्द
जिस वर्ग के हैं मित्र- साथी
मिलता वैसा आनन्द
सत्य ज्ञान........
संत महात्मा, साधु सन्यासी,
राज्याधिकारी धार्मिक सुजन
उनके संग मित्रता, मिले अवसर ज्ञान का
विमद ऋषि बन सकते हैं हम
जगदीश्वर से हो मैत्री मिलता ज्ञान आनन्द ।।
सत्य ज्ञान.........
हे इन्द्र जगदीश करो ज्योति उद्दीप्त
विमद ऋषियों की दो मैत्री उत्तम
होवे जिससे उद्धार और तरिणी हो पार
दूर ही कुमार्ग जो है अधम
मैत्रियां शिवमय हो करुणेश !
सत्य शिव सुन्दरम्
सत्यज्ञान..........
12.5 .2024 1135 p.m.
विमद ऋषि {विभिन्न आनन्दों का ग्रहीता सात्विक ऋषि तरिणी= नाव नौका
अधम= पतित गिरा हुआ।
👇 उपदेश👇
प्रत्येक मानव के अन्दर एक विमद ऋषि बैठा हुआ है। आत्मा ही विमद ऋषि है। ऋषि कहते हैं दृष्टा को। आत्मा ज्ञान का दृष्टा होने से ऋषि और विविध मदों या अनन्दों का ग्रहीता होने से विमद कहाता है। परन्तु ज्ञानों तथा आनन्दों का स्तर प्रत्येक आत्मा का भिन्न-भिन्न है।
प्रत्येक आत्मा को ज्ञान के साधन के रूप में मन और ज्ञान- इन्द्रियां मिली हुई हैं। इनसे कोई निम्न स्तर का ज्ञान संगृहीत करता है,कोई मध्यम स्तर का और कोई उच्च स्तर का। इस ज्ञान की अनुभूति से वह आनन्दित होता है। आनन्द भी निम्न, मध्यम या उच्च स्तर के होते हैं। चोरी, मदिरापान, हत्या आदि से जो आनन्द मिलता है वह निम्न कोटि का है, क्योंकि इनसे स्वयं को भी तथा समाज को भी हानि पहुंचती है । दूसरे की निन्दा करने,अदृश्य दर्शन करने आदि के व्यसन से जो आनन्द मिलता है वह मध्यम कोटि का है क्योंकि उससे मुख्यत: स्वयं को हानि पहुंचती है। दीन-दु:खियों की सेवा, राष्ट्रभक्ति, प्रभु भक्ति आदि में जो आनन्द आता है वह उत्कर्ष कोटि का है, क्योंकि उससे स्वयं को भी तथा समाज को भी लाभ पहुंचता है। हम कैसे ज्ञान और आनन्द में रुचि लेते हैं यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हमारी मित्रता किन लोगों के साथ है। निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग के लोगों से सङ्गति होने पर हम क्रमशः निम्न, मध्यम तथा उच्च ज्ञान तथा आनन्द में रस लेते हैं। गुरुजन, संत- महात्मा, विरक्त साधु- सन्यासी, धार्मिक राज्याधिकारी आदि श्रेष्ठ जनों से मैत्री होने से मनुष्य श्रेष्ठ ज्ञान एवं आनन्द में रुचि लेता है। श्रेष्ठों में भी श्रेष्ठ तो इन्द्र जगदीश्वर है। श्रेष्ठजनों से मैत्री के साथ-साथ यदि जगदीश्वर से भी हम इस में हम मैत्री जोड़े, तो हम उत्कृष्ट 'विमद ऋषि 'बन सकते हैं। तब हमारे ज्ञानो और आनन्दों का स्तर अत्यधिक उन्नत हो सकता है।
हे इन्द्र जगदीश्वर ! ऐसी कृपा करो कि तुम्हारी और हम विमद ऋषियों की मित्रता को कोई भी तोड़ने ना पाए। तुम्हारी मित्रता से हमें तुम्हारी प्रमति प्राप्त होगी,जिससे हमारा उद्धार हो जाएगा। हम कुमार्ग पर इसी कारण चलते हैं कि हमारे पास प्रमति( प्रकृष्ट मति) नहीं होती
हे देव ! तुमसे प्राप्त प्रमिति को हम बहिन के समान उपकारक समझते हैं। हे करुणेश ! तुम्हारी मित्रताएं हमारे लिए सदा ' शिव ' बनी रहें। मैत्रियां शिव तभी हो सकती हैं, जब दोनों ओर से मित्रता का हाथ बढ़े। है प्रभु! तुम हमारे हो जाओ, हम तुम्हारे हो जाएं, दोनों मिलकर 'सत्यं शिवं सुन्दरम् ' की आराधना करें।
🕉👏 द्वितीय श्रृंखला का १८६ वां वैदिक भजन
अबतक का ११९२ वां वैदिक भजन 🙏
🙏सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏
1192. English
friendships of Indra and Rishi- vimad
vaidik bhajan 1192 nd
Raag kedaar
Singing time first face of night
taal aadhha
👇vaidik mantra👇
maakirn enaa sakhyaa vi yaushustav chendra vimadasya cha rishe: ।
vidhyaa hi te pramatim dev jaamivadasme te santu sakhyaa shivani।। Rigved• 10.23.7
👇vaidik bhajan👇
satya gyaan -drishtaa hai aatmaa
vimad rishi hai ye aatmaa
anand kaa grahitaa gyaanavaan gunee
lele aatmaa sat- gyaan kaa aanand ।।
satya gyaan........
Gyaanon kaa aanand bhinna-bhinna stur kaa
koi nimna koi madhyam.uccha koee
chori ho madiraapaan, hatyaa, dakaa- kaam tamaam
nimna koti kaa hai anand soee
svayam ko hoti isase haani
aura samaj prataadan।।
satya gyaan.........
dusron ki nindaa, adrishya darshan,
vyasanwadi se bhi jo milataa aanand
ye to anand hai madhya koti kaa
yah to swayam ko hi hota pasand
laalach, trishnaa, vyasan tajo
varana ye du:kh ke kaaran ।।
satya gyaan,..........
deen-du:khiyaa sevaa, raashtra bhakti- sevaa
prabhu bhakti kaa bhi divya aanand
ucch koti kaa mile hardik param aanand
milataa samaj ko bhi aanand
jis varg ke hain mitra- sathi
milata vaisaa aanand ll
satya gyaan........
Part 2
sant mahaatmaa, saadhu sanyasi,
rajyaadhikaari dhaarmik sujan
unake sang mitrataa, mile avasar gyaan kaa
vimad rishi ban sakate hain hum
jagadishvar se ho maitri milataa gyaan aanand ।।
satya dnyan.........
hay indra jagadish karo jyoti uddeept
vimad rishiyon ki do maitree uttam
hove jisase uddhaar aur tarinee ho paar
door ho kumaarg jo hai adham
maitriyan shivamaya ho karunesh !
satya shivam sundaram
satya gyaan.........
12.5 .2024 1135 p.m.
👇Meaning of words👇
Vimad Rishi =the Sattvic sage who received various pleasures Tarini= boat boat
Adham= fallen fallen,
👇Meaning of bhajan👇🏼
True knowledge is the seer is the soul
This soul is the Vimad Rishi
The recipient of joy is the wise virtuous
taking the joy of soul true- knowledge.
True Knowledge.
Different levels of enjoyment of knowledge
No low no medium.no high
Theft, drunkenness, murder, robbery- all the work
Low-class is Anand Soi
It would have been a loss to himself
and social persecution.
Truthfulness.
Slander of others, invisible visions,
The joy that comes from Vyasana and others
This is the joy of the middle class
It would have been selfish
Give up greed, craving, addiction
Otherwise, these are the causes of suffering.
Truthfulness,.
Service to the poor, patriotic- service
Even the divine joy of devotion to the Lord
Get the heartfelt ultimate joy of high quality
Gets joy to the society too
The class of which are friends- companions
Get such joy
True Knowledge.
Sant Mahatma, Sadhu Sanyasi,
Statesman Religious Eugenics
Friendship with them, get the opportunity to know
We can become Vimad Rishis
Friendship with the Lord of the universe brings knowledge and joy.
True knowledge.
O Indra, Lord of the universe, illuminate the light
The two friendships of the Vimad sages are excellent
May there be salvation and salvation across
Far from the evil path which is the lowest
Friendships are Shivamaya, O Karunesh!
Truth Shiva is beautiful
Truthfulness.
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👇 Preaching👇
Within every human being sits a Vimad Rishi. The soul is the Vimad Rishi. The sage says to the seer. The soul is called a sage because it is the seer of knowledge and Vimad because it is the recipient of various pleasures. But the level of knowledges and joys is different for each soul.
Every soul has got the mind and the senses of knowledge as the means of knowledge. Some of these store low level knowledge, some medium level and some high level. He rejoices in the realization of this knowledge. Bliss is also of low, medium or high level. The pleasure that comes from stealing, drinking, killing, etc. is of a low order, because they cause harm to oneself and to society. The pleasure that comes from the addiction of condemning others, seeing the invisible, etc. is of moderate quality because it mainly harms oneself. The joy that comes from serving the poor and suffering, patriotism, devotion to the Lord, etc. is of the highest order, because it benefits both oneself and society. How we are interested in knowledge and joy depends a lot on the people we are friends with. When we associate with people from the lower class, the middle class or the upper class, we indulge in low, middle and high knowledge and joy respectively. By being friends with the best people like teachers, saints, mahatmas, detached sadhu-sanyasis, religious statesmen, etc., man takes interest in the best knowledge and joy. Even the best of the best is Indra, the Lord of the universe. Along with friendship with the best, if we add friendship with the Lord of the universe, we can become an excellent 'Vimad Rishi' Then our level of knowledge and joys can be greatly elevated.
O Indra, Lord of the universe! Please do so that no one can break the friendship between you and us Vimad Rishis. Your friendship will give us your grace, which will save us. We walk on the wrong path because we do not have pramati (excellent mind).
O God ! We consider the pramit received from you as helpful as a sister. O Karunesh! May your friendships always remain ' Shiva ' for us. Friendships can only be Shiva, when the hand of friendship extends from both sides. O Lord! You become ours, we become yours, let us both worship 'Satyam Shivam Sundaram' together.
🕉👏 186th Vedic Bhajan of the Second Series
1192nd Vedic Bhajan ever 🙏
🙏Wish all Vedic listeners🙏
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