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प्रभु सब का है सहारावह परमपिता हमारा

English version is at the end
वैदिक भजन* 🙏 1247 
*ओ३म् आ त्वा॑ र॒म्भं न जिव्र॑यो रर॒भ्मा श॑वसस्पते ।*
*उ॒श्मसि॑ त्वा स॒धस्थ॒ आ ॥*
ऋग्वेद 8/45/20

प्रभु सब का है सहारा
वह परमपिता हमारा
है सभी बलों का स्वामी
सच्चा सखा हमारा
प्रभु सब का है सहारा
वह परमपिता हमारा

पिछले जन्म में शायद
अपध्यान कर लिया हो
धनी बन के धन व बल का
अभिमान कर लिया हो
अभिमान में ही शायद
प्रभु ही गया विसारा
प्रभु सब का है सहारा
वह परमपिता हमारा

इस जन्म का यह देह
दीखे है वृद्ध चाहे
अनुभव मगर पुराना
यह तथ्य समझाये
क्यों मुक्त  हुआ ना मैं
और दूर था किनारा
प्रभु सब का है सहारा
वह परमपिता हमारा

बलशाली मेरे ईश्वर!
क्षण भर ना दूर होना
व्याकुल मैं होके तुमको 
चाहूँ कभी न खोना 
मुझे वृद्ध की हो लाठी
और तुम ही हो निस्तारा
प्रभु सब का है सहारा
वह परमपिता हमारा
है सभी बलों का स्वामी
सच्चा सखा हमारा
प्रभु सब का है सहारा
वह परमपिता हमारा

*रचनाकार, वाद्यवादक व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई*
*रचना दिनाँक :--*  २.६.२००१ ६.३० सायं

*राग :- गोरख कल्याण*
गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर, ताल दादरा ६ मात्रा

*शीर्षक :- परमेश्वर मेरी लाठी* वैदिक भजन ८२२ वां

*तर्ज :- *घेऊ कशा उठाता(मराठी) 


अपध्यान = अनिष्ट चिन्तन
वृद्ध = पुराना (कई जन्म प्राप्त)
निस्तारा = पार करने वाला, परमानन्

*प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सवाध्याय- सन्देश :-- 👇👇*

परमेश्वर मेरी लाठी
हे भगवन्! जन्म जन्मान्तरों से इस संसार में आता रहता हूं इसलिए जन्म ले लेकर बूढ़ा हुआ हुआ हूं और चाहे यह देह दीखने में वृद्ध ना हो किन्तु सच्चे अर्थ में मैं जीर्ण हूं, पुराना हूं अतैव अनुभवी हूं, यह अनुभव हर जन्म में आप के अनुग्रह से ही समय-समय पर मुझे मिलता रहा है, इसलिए आप मेरे सहारे हो, प्रभु आप मेरी लाठी हो। पर अब मैं तुम्हें 'शवस्पते'करके सम्बोधन करता हूं। तुम सब बलों के स्वामी हो इसलिए सभी प्रयोजन आपके बलों से ही सिद्ध हुए हैं यह मैंने सुदीर्घ अनुभव से जान लिया है। मैंने अज्ञान वश धनाढ्य धनी होकर धनबल का, तो कभी दल बनाकर दलबन्दी के बल का घमण्ड किया है। कभी बुद्धिबल, चतुराई बल, के मुकाबले में अकड़कर चला और दुनिया को हेय समझा, छोटा समझा। ओह! शरीरबलों और शस्त्रबलों का तो कहना ही क्या! सारी पृथ्वी को तहस-नहस करने की फिराक में बैठा खुद को बलों का स्वामी मान बैठा है, उसे यह नहीं पता कि क्षण भर में उसका अस्तित्व मिट सकता है परन्तु आज मुझे इतने लम्बे, अनगिनत योनियों के सुदीर्घ अनुभव से ज्ञात हो चुका है कि मैं जीर्ण हूं-पुराना हूं-वृद्ध हूं और बलों के स्वामी परमेश्वर के आगे नगण्य हूं। किन्तु यदि परमेश्वर के अनुशासित बलों का विवेक पूर्वक आश्रय लेकर उसे अपनी लाठी बनाकर चला तो परमेश्वर मुझे सही दिशा की ओर ले जाएगा।
हे मेरे एकमात्र बल! तुम क्षण भर के लिए भी मुझसे अलग ना होना, दूर ना होना। मैं अपने मानसिक विचार- नेत्रों से तुम्हें कभी भी ओझल ना पाऊं, नहीं तो मैं दिशाहीन होकर व्याकुल हो जाऊंगा। निस्सहाय हो जाऊंगा। इसलिए हे मुझ वृद्ध की लाठी! हे मुझ निर्बल के बल! हे एकमात्र सहारे! तुम अब सदा मेरे साथ रहो। सधस्थ बने रहो। अब मैं तुमसे और दूर नहीं रह सकता। 
🎧 821 वां वैदिक भजन🕉️🌹
🕉👏ईश  भक्ति भजन 
भगवान ग्रुप द्वारा🙏🌹
         *********

🙏Today's vaidik bhajan* 🙏 1247 
*om aa tva rambhan na jivrayo rarabhma shavasaspate .*
*ushmasi tva sadhasth aa .*
rigved 8/45/20

prabhu sab kaa hai sahaaraa
vah parama pitaa hamaaraa
hai sabhee balon kaa swaamee
sachchaa sakhaa hamaaraa
prabhu sab kaa hai sahaaraa
vah paramapitaa hamaaraa

pichhale janam me shaayad
apadhyaan kar liyaa ho
dhanee ban ke dhan va bal kaa
abhimaan kar liyaa ho
abhimaan me hee shaayad
prabhu hee gayaa visaaraa
prabhu sab kaa hai sahaaraa
vah parama pitaa hamaaraa

is janma kaa yah deh
deekhe hai vriddha chaahe
anubhav magar puraanaa
yah tathya samajhaaye
kyon mukta  hua na main
aur door thaa kinaaraa
prabhu sab kaa hai sahaaraa
vah parama pitaa hamaaraa

balashaalee mere eeshwar!
kshan bhar naa door honaa
vyaakul main hoke tumako 
chaahoon kabhee naa khonaa 
mujh vriddha kee ho laathee
aur tum hee ho nistaaraa
prabhu sab kaa hai sahaaraa
vah parama pitaa hamaaraa
hai sabhee balon kaa swaamee
sachchaa sakhaa hamaaraa
prabhu sab kaa hai sahaaraa
vah parama pitaa hamaaraa
           **********"

*Writer  instrumentalist, and voice:- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji - Mumbai*
*Date of composition:--* 2.6.2001 6.30 p.m.
*Raag:- Gorakh Kalyan*
Singing time: Second quarter of the night, rhythm: Dadra 6 beats
*Title:- Parameshwar Meri Lathi* 
Vedic hymn 822nd
*Tune:- *gheoo kashaa ookhanaa(maraathi) 

 👇Meaning of words👇

Apadhyan = evil thoughts
Vriddh = old (passed through many births)
Nistara = one who takes across, bliss


👇Meaning of bhajan👇

The Lord is the support of all

He is our Supreme Father

He is the master of all forces

Our true friend

The Lord is the support of all

He is our Supreme Father

In the previous birth

Perhaps he had committed a mistake

Becoming rich

He became proud of his wealth and power

Perhaps in pride

The Lord himself forgot

The Lord is the support of all

He is our Supreme Father

This body of this birth

Looks old, though

Experience is old

But this fact

Explains why I was not liberated

And I was far away  Shore
The Lord is the support of all
He is our Supreme Father

My powerful God!  Don't go away for a moment
I am restless for you
I want you never to lose me
You are the old man's stick
And you are the only salvation
Lord is the support of all
He is our supreme father
He is the master of all forces
Our true friend
Lord is the support of all
He is our supreme father
           *********
Swaadyaay-Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji related to this Bhajan:-- 👇👇*

God is my stick
O Lord! I keep coming to this world from birth to birth, therefore I have become old by taking birth and though this body may not look old, but in the true sense I am worn out, old and therefore experienced, I have been getting this experience from time to time by your grace in every birth, therefore you are my support, Lord you are my stick. But now I address you as 'Shavaspate'. You are the master of all powers, therefore all purposes have been accomplished by your powers only, I have come to know this from long experience. Due to ignorance, I have become very rich and have been proud of my wealth, and sometimes of the power of forming a group. Sometimes in comparison to the power of intellect, the power of cleverness, I have walked with arrogance and considered the world despicable, small. Oh! What to say about the physical powers and the power of weapons!  He, who is busy in destroying the whole earth, has considered himself the master of all powers. He does not know that his existence can be wiped out in a moment. But today, after such a long experience of countless lives, I have come to know that I am worn out, old and aged and am insignificant in front of God, the master of all powers. But if I take shelter of the disciplined powers of God wisely and make them my stick, then God will lead me in the right direction.

Oh my only strength! Do not separate yourself from me, do not go far from me even for a moment. I should never lose sight of you from my mental thoughts, otherwise I will become restless and directionless. I will become helpless. Therefore, Oh the stick of an old man like me! Oh the strength of a weak man like me! Oh the only support! Now you should always be with me. Remain calm. Now I cannot stay away from you any more.  🎧 821st Vedic Hymn🕉️🌹
🕉👏God's devotional hymn
By Bhagwan Group🙏🌹

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