॥ वेद ॥
अस्याजरासो दमामरित्रा ऽ अर्चद्भूमासो अग्नयः पावकाः.
श्वितीचयः श्वात्रासो भुरण्यवो वनर्षदो वायवो न सोमा:.. (१)
यजमान ने जो अग्नियां प्रज्वलित की हैं, वे अजर हैं. वे दुश्मनों से त्राण करने वाली, पूजनीय, धूम्रमय, पवित्र, शीघ्र फल देने वाली व भुवन को पालने वाली हैं. वे वन के समान व्यापक व वायु के समान प्राणदायी हैं. वे अग्नियां सोम की तरह हमारी इच्छा पूरी करने की कृपा करें. ( १ )
हरयो धूमकेतवो वातजूता ऽ उप द्यवि यतन्ते वृथगग्नयः.. (२)
अग्नियां हरी हैं. धुएं की पताका वाली और वायु से बढ़ोतरी पाने वाली हैं. स्वर्गलोक में जाने के लिए बारबार प्रयत्न करती हैं. (२)
यजा नो मित्रावरुणा यजा देवाँ ऋतं बृहत् अग्ने यक्षि स्वं दमम्.. (३)
हे अग्नि ! आप मित्र, वरुण व अन्य देवताओं के लिए यजन करने की कृपा कीजिए. आप सत्यवान व विशाल हैं. आप अपने घर को यज्ञ के शुभ कार्यों से युक्त करने की कृपा कीजिए. (३)
युक्ष्वा हि देवहूतमाँ अश्वां अग्ने रथीरिंव. नि होता पूर्व्यः सदः.. (४)
हे अग्नि ! जैसे सारथी रथ में घोड़े जोतता है, वैसे ही देवों को ( यज्ञ में ) आमंत्रित करने के लिए आप घोड़ों को रथ में जोतिए, आप चिरकाल से ही यज्ञ में बुलाए जाते हैं. (४)
द्वे विरूपे चरतः स्वर्थे अन्यान्या वत्समुप धापयेते.
हरिरन्यस्यां भवति स्वधावाञ्छुको अन्यस्यां ददृशे सुवर्चा:.. (५)
रात्रि और दिवस अपने श्रेष्ठ काम के लिए वैसे ही विचरते हैं, जैसे अलगअलग रूपरंग वाली स्त्रियां विचरती हैं. रात्रि हरी (काली) है. रात्रि के स्वधावान चमकीले पुत्र चंद्रमा हुए. दूसरी के श्रेष्ठ वर्चस्वी पुत्र सूर्य हुए. ऐसा देखा ( कहा) जाता है. (५)
अयमिह प्रथमो धायि धातृभिर्होता यजिष्ठो अध्वरेष्वीड्यः.
यमप्नवानो भृगवो विरुरुचुर्वनेषु चित्रं विभ्वं विशे विशे.. ( ६ )
यह अग्नि अग्रगण्य हैं. यज्ञ में सर्वप्रथम इन्हीं का ध्यान किया जाता है. यह यजमानों के होता व यज्ञ में उपासनीय हैं. यज्ञों में विशेष रूप से इन्हें प्रतिष्ठित किया जाता है. इन अग्नि को अप्नवान, भृगु, विरुरुचु आदि ऋषियों ने वनों में बारबार प्रतिष्ठित किया है. (६)
त्रीणि शता त्री सहस्राण्यग्निं त्रि शच्च देवा नव चासपर्यन्.
औक्षन् घृतैरस्तृणन् बर्हिरस्मा आदिद्धोतारं न्यसादयन्त.. (७)
हे यजमानो! तीन हजार, तीन सौ तीस और नौ अर्थात् तैंतीस सौ उनतालीस देवता अग्नि की उपासना करते हैं. देवगण घी की आहुतियों से अग्नि को सींचते हैं. अग्नि के विराजने के लिए कुश का आसन बिछाते हैं. उन्हें होता के रूप में प्रतिष्ठित कर के यज्ञ करते हैं. (७)
मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत ऽ आ जातमग्निम्.
कवि सम्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रं जनयन्त देवाः.. (८)
अग्नि मूर्धन्य, स्वर्गलोक में भी श्रेष्ठ, पृथ्वीलोक को सूर्य के रूप में जगमगाने वाले व वैश्वानर हैं. वे यज्ञ में उत्पन्न होने वाले, कवि, सम्राट्, यजमान के अतिथि हैं. देवताओं के आह्वाहक हैं. यजमानों ने अपनी रक्षा हेतु पात्र में अग्नि को उपजाया. ( ८ )
अग्निर्वृत्राणि जङ्घनद्द्रविणस्युर्विपन्यया समिद्धः शुक्र आहुत:.. (९)
अग्नि वृत्र को मारते हैं ( नष्ट करते हैं ). अग्नि धनवान व प्रकाशमान हैं. समिधा से उन्हें प्रदीप्त किया जाता है. उन को आहुति समर्पित करते हैं. (९)
विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न ऽ इन्द्रेण वायुना. पिबा मित्रस्य धामभिः.. (१०)
हे अग्नि ! आप इंद्र देव, वायु, मित्र देव व सभी देवताओं के साथ आइए. आप इन सब के साथ मधुर सोमरस का पान करने की कृपा कीजिए. ( १० )
आ यदिषे नृपतिं ते ऽ आनट् शुचि रेतो निषिक्तं द्यौरभीके.
अग्निः शर्धमनवद्यं युवान १ स्वाध्यं जनयत् सूदयच्च.. (११)
जब अग्नि में अन्न और पवित्र जल से शुद्ध हवि से यजन किया जाता है, तब अग्नि जल से सींचते हैं. यह जल बलशाली बनाता है. यह सुखवर्द्धक, निरंतर प्रवाहित होने वाला, युवा बनाने वाला व जग के लिए उपजाऊ है. ( ११ )
अग्ने शर्ध महते सौभगाय तव द्युम्नान्युत्तमानि सन्तु
सं जास्पत्य सुयममा कृणुष्व शत्रूयतामभि तिष्ठा महा सि.. (१)
हे अग्नि ! आप हमें अपनी महत्ता प्रदान कीजिए. आप हमारे सौभाग्य में बढ़ोतरी कीजिए. स्वर्गलोक से आप और अधिक यशस्वी हों. आप यजमान जोड़े को प्रेम भाव से जोड़िए. यजमान से शत्रुभाव रखने वालों की साख (प्रतिष्ठा ) गिराइए. ( १ )
त्वा हि मन्द्रतममर्कशोकैर्ववृमहे महि नः श्रोष्यग्ने.
इन्द्रं न त्वा शवसा देवता वायुं पृणन्ति राधसा नृतमा:.. (१३)
हे अग्नि ! आप के लिए महिमामय स्तोत्र गा रहे हैं. आप उन्हें सुनने की कृपा कीजिए. आप विचारक हैं. हम सूर्य की तरह आप का वरण करते हैं. आप इंद्र देव की तरह बलवान और वायु की भांति बलशाली हैं. हम आप को धनधान्य भरी आहुतियों से परिपूर्ण करते हैं. (१३)
त्वे अग्ने स्वाहुत प्रियासः सन्तु सूरयः.
यन्तारो ये मघवानो जनानामूर्वान् दयन्त गोनाम्.. (१४)
हे अग्नि ! हम आप के लिए श्रेष्ठ आहुति भेंट करते हैं. शूरवीर आप के प्रिय हो जाते हैं, जो धनवान और ऊर्जावान हैं, उन के प्रति आप दयावान हैं. उन पर गोधन आदि की कृपा करते हैं. (१४)
कर्ण वह्निभिर्देवैरग्ने सयावभिः.
आ सीदन्तु बर्हिषि मित्रो अर्यमा प्रातर्यावाणो अध्वरम्.. (१५)
हे अग्नि ! आप श्रेष्ठ कानों वाले हैं. आप हमारे द्वारा की गई स्तुतियों को सुनते हैं. हम देवताओं के लिए अग्नि में जो आहुति अर्पित करते हैं. आप उस हवि को वहन करते हैं. आप हमारे प्रातःकालीन यज्ञों में मित्र देव व अर्यमा देव के साथ आइए. आप उन के साथ कुश के आसन पर विराजने की कृपा कीजिए. ( १५ )
विश्वेषामदितिर्यज्ञियानां विश्वेषामतिथिर्मानुषाणाम्.
अग्निर्देवानामव आवृणानः सुमृडीको भवतु जातवेदाः.. (१६)
अग्नि ! आप सर्वज्ञाता, देवों में अदिति देव जैसे ( वर्चस्वी ), यज्ञ करने योग्य, मनुष्यों के लिए अतिथि जैसे आदरणीय व प्रकाशमान हैं. आप देवताओं तक हमारी हवि पहुंचाने व हमें भरपूर सुख प्रदान करने की कीजिए. (१६)
महो अग्नेः समिधानस्य शर्मण्यनागा मित्रे वरुणे स्वस्तये.
श्रेष्ठे स्याम सवितुः सवीमनि तद्देवानामवो अद्या वृणीमहे .. ( १७ )
हे अग्नि ! आप महिमाशाली व समिधावान हैं. हम आप का संरक्षण पाना चाहते हैं. हम अपने कल्याण के लिए मित्र और वरुण देव की उपासना करते हैं. हम सविता देव की कृपा से श्रेष्ठता प्राप्त करें. अर्थात् श्रेष्ठ हो जाएं. हम देवताओं को हवि प्रदान करने के लिए आप का वरण करते हैं. ( १७ )
आपश्चित्पिप्यु स्तर्यो न गावो नक्षन्नृतं जरितारस्त ऽ इन्द्र.
याहि वायुर्न नियुतो नो अच्छा त्व हि धीभिर्दयसे वि वाजान्.. (१८)
हे इंद्र देव ! यजमान यज्ञ में आप का ध्यान करते हैं. आप के लिए मंत्र गाते हैं. आप के लिए जल व शक्ति की बढ़ोतरी करते हैं. आप हमारे पास आइए. आप आने के लिए वायु जैसे वेगशाली घोड़े जोतिए, आप हमें अन्न व बल दीजिए. ( १८ )
गाव ऽ उपावतावतं मही यज्ञस्य रप्सुदा.
उभा कर्णा हिरण्यया.. (१९)
सूर्य की किरणें यज्ञ व पृथ्वी की रक्षा करती हैं. किरणों के दोनों कान स्वर्णमय हैं. (१९)
यद सूरऽ उदितेनागा मित्रो अर्यमा सुवाति सविता भगः .. (२०)
आज सूर्य के उदित होने पर निश्छल यजमानों को मित्र और अर्यमा देव श्रेष्ठ कामों में लगाने की कृपा करें. सविता देव सौभाग्यशाली बनाएं. वे श्रेष्ठ कामों में लगाएं. (२०)
आ सुते सिञ्चत श्रिय रोदस्योरभिश्रियम्.
रसा दधीत वृषभम्.
तं प्रत्नथायं वेन:.. (२१)
यजमानगण प्रवहमान सोमरस को सिंचित करते हैं. स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक के संरक्षण में सोम का प्रवाह बहुत तेज होता है. वह शोभायमान होता है. ( २१ )
आतिष्ठन्तंपरि विश्वे अभूषञ्छ्रियो वसानश्चरति स्वरोचि :.
महत्तद्वृष्णो असुरस्य नामा विश्वरूपो अमृतानि तस्थौ.. (२२)
इंद्र देव प्रकाशमान और वैभववान हैं. सभी देवताओं ने मिल कर उन की प्रतिष्ठा की है. सभी देव चारों ओर से घेर कर उन की उपासना करते हैं. वे महान् व विश्वरूप हैं. कई असुरों को मार कर उन्होंने ख्याति पाई है. वे अमर हैं. (२२)
प्र वो महे मन्दमानायान्धसोर्चा विश्वानराय विश्वाभुवे.
इन्द्रस्य यस्य सुमख सहो महि श्रवो नृम्णं च रोदसी सपर्यतः.. (२३)
हे यजमानो! इंद्र देव महिमाशाली, सब लोकों के पालक, संपूर्ण जग को उपजाने वाले व मदमस्त बनाने वाले हैं. हम उन की अर्चना करते हैं. इंद्र देव के लिए श्रेष्ठ यज्ञ किए जाते हैं. उन की महिमा सुनी जाती है, जो पृथ्वी और स्वर्ग दोनों लोकों को महान् वैभव प्रदान करते हैं. ( २३)
बृहन्निदिध्म एषां भूरि शस्तं पृथुः स्वरुः येषामिन्द्रो युवा सखा.. (२४)
इंद्र देव युवा, हमारे सखा, विशाल व शत्रुनाशी हैं. वे बहु प्रशंसित और सामर्थ्यशाली हैं. (२४ )
इन्द्रेहि मत्स्यन्धसो विश्वेभिः सोमपर्वभिः.
महाँ अभिष्टिरोजसा.. (२५)
हे इंद्र देव ! आप महान्, आदरणीय व सब को आनंद देने वाले हैं. आप सोम उत्सव में पधारिए. आहुति ग्रहण कर के प्रसन्न होइए, हमें ओजस्वी बनाइए. हमारे अभीष्ट पूरिए. (२५)
इन्द्रो वृत्रमवृणोच्छर्धनीतिः प्र मायिनाममिनाद्वर्पणीतिः.
अहन् व्य समुशधग्वनेष्वाविर्धेनाऽ अकृणोद्राम्याणाम्.. (२६)
हे इंद्र देव ! आप वृत्रासुर, मायावी राक्षसों व दुष्टों का दलन करने वाले हैं. आह्लादक और हमारी स्तुतियों को प्रकट करते हैं. (२६)
कुतस्त्वमिन्द्र माहिनः सन्नेको यासि सत्पते किं तऽ इत्था. सं पृच्छसे समराणः शुभानैर्वोचेस्तन्नो हरिवो यत्ते अस्मे.
महाँ इन्द्रो य ऽ ओजसा कदा चन स्तरीरसि कदा चन प्रयुच्छसि .. (२७)
आप हे इंद्र देव ! आप महिमाशाली सज्जनों के स्वामी हैं. आप अकेले कहाँ जाते हैं ? आप इस प्रकार क्यों जाते हैं. अच्छी तरह जाते हुए आप से यह प्रश्न पूछा जाता है. आप के घोड़े हरे रंग के हैं. आप ओजस्वी हैं. आप कभी भी हिंसा आदि नहीं करते हैं. आप हमारे शुभचिंतक और अपने हैं. इसीलिए हम आप से यह सब पूछ रहे हैं. (२७)
आ तत्त ऽ इन्द्रायवः पनन्ताभि य ऊर्वं गोमन्तं तितृत्सान्.
सकृत्स्वं ये पुरुपुत्रां मही थं सहस्रधारां बृहतीं दुदुक्षन्.. (२८)
हे इंद्र देव! आप गोस्वामियों के घातकों व भूपतियों (भूमिस्वामी) के हत्यारों को मारते हैं. पृथ्वी पर सहस्त्रों धाराओं वाले सोम को निचोड़ते हैं. उस का दोहन करते हैं. श्रेष्ठ कर्मों वाले आप के पुत्र आप की महिमा का गान करते हैं. (२८)
इमां धियं प्र भरे महो महीमस्य स्तोत्रे धिषणा यत्त ऽ आनजे.
तमुत्सवे च प्रसवे च सासहिमिन्द्रं देवासः शवसामदन्ननु.. (२९)
हे इंद्र! हम आप की बुद्धि को धारण करते हैं. आप महान व पृथ्वी का भरणपोषण करने में समर्थ हैं. हम आप की स्तुति करते हैं. उत्सव और प्रसव के समय हमें कष्ट पहुंचाने वाले शत्रुओं का साहसी इंद्र देव दमन करते हैं. देवगण भी आनंदित हो कर इंद्र देव के गुण गाते हैं. (९)
विभ्राड् बृहत्पिबतु सोम्यं मध्वायुर्दधद्यज्ञपतावविह्रुतम्.
वातजूतो यो अभिरक्षति त्मना प्रजाः पुपोष पुरुधा वि राजति.. (३०)
हे इंद्र देव ! आप चमकीले व विशाल हैं. आप सोमरस को पीने की कृपा कीजिए. सोमरस मधुर है. हम यज्ञ में आप का आह्वान करते हैं. आप अपनी प्रजा की सर्वविधि (सब प्रकार से ) रक्षा करते हैं. आप प्रजा का पालनपोषण और उन्हें बहुविधि प्रकाशित करते हैं. (३०)
उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः दृशे विश्वाय सूर्यम्.. (३१)
सूर्य सब को प्रकाशित करने वाले, सब कुछ जानने वाले व सारे विश्व को देखने में समर्थ हैं. वे ऊर्ध्वगामी पताका वहन करते हैं. (३१)
येना पावक चक्षसा भुरण्यन्तं जनाँ अनु.
त्वं वरुण पश्यसि.. (३२)
हे वरुण देव ! आप पवित्र बनाने वाले व भरणपोषण करने वाले हैं. आप जिस दृष्टि से देखते हैं. हम भी उसी दृष्टि से (लोगों को ) देखने में आप का अनुकरण करें. (३२)
दैव्यावध्वर्यू आ गत थं रथेन सूर्यत्वचा. मध्वा यज्ञं समञ्जाथे.
तं प्रत्नथायं वेनश्चित्रं देवानाम्.. (३३)
हे अश्विनीकुमारो ! आप दोनों दिव्य व ( यज्ञ के ) अध्वर्यु (पुरोहित) हैं. आप सूर्य के समान चमकने वाले रथ से यहां आ जाइए. आप देवताओं के इस यज्ञ को प्रयत्नपूर्वक (अच्छी तरह से ) पूर्ण कराइए. ( ३३ )
आन इडाभिर्विदथे सुशस्ति विश्वानरः सविता देव ऽ एतु.
अपि यथा युवानो मत्सथा नो विश्वं जगदभिपित्वे मनीषा.. (३४)
सविता देव! आप बहुप्रशंसित, कल्याणकारी व अन्नदाता हैं. आप हमारे यहां यज्ञ स्थान में पधारने की कृपा कीजिए. आप युवा व जगत् के पालनहार हैं. आप हम सभी को अपनी बुद्धि से तृप्त करने की कृपा कीजिए. (३४ )
यदद्य कच्च वृत्रहन्नुदगा अभि सूर्य.
सर्वं तदिन्द्र ते वशे.. (३५)
हे इंद्र देव ! आप शत्रुनाशी हैं. सूर्य जैसे अंधेरे का नाश करते हैं, वैसे ही आप वृत्र का नाश करते हैं. हे इंद्र देव ! सब कुछ आप के ही वश में है. (३५)
तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य.
विश्वमा भासि रोचनम्.. (३६)
हे सूर्य ! आप तारक, संसार के लिए दर्शनीय व ज्योति के आविष्कारक हैं. आप अपने प्रकाश से सब को प्रकाशित करने वाले हैं. ( ३६ )
तत्सूर्यस्य देवत्वं तन्महित्वं मध्या कर्तोर्वितत सं जभार.
यदेदयुक्त हरितः सधस्थादाद्रात्री वासस्तनुते सिमस्मै.. (३७)
सूर्य की दिव्यता व महिमा व्यापक है. सूर्य संसार के मध्य विराजमान (स्थित) व विशाल निर्माण और संहार करने वाले हैं. जब वे अलग कर के अपनी हरी किरणों को साधते हैं, तब रात्रि संसार को अंधकार से घेर लेती है. (३७)
तन्मित्रस्य वरुणस्याभिचक्षे सूर्यो रूपं कृणुते द्योरुपस्थे.
अनन्तमन्यद्रुशदस्य पाजः कृष्णमन्यद्धरितः सं भरन्ति.. (३८)
सूर्य मित्र देव और वरुण देव के साथ मनुष्यों को सब ओर से देखते हैं. सूर्य रूपवान हैं. स्वर्गलोक उन के उस रूप को धारण करता है. दूसरा कृष्ण और हरित रूप है. उसे आकाश धारण करता है. ( ३८ )
बहाँ असि सूर्य बडादित्य महाँ असि.
महस्ते सतो महिमा पनस्यतेद्धा देव महाँ असि.. (३९)
हे सूर्य ! आप बड़े ही महान् हैं. हे आदित्य देव ! आप बड़े महान् हैं. महान् होने के कारण ही सभी आप की महिमा गाते हैं. वास्तव में आप सभी देवों में महान् हैं. ( ३९ )
बट् सूर्य श्रवसा महाँ असि सत्रा देव महाँ असि.
मह्ना देवानामसुर्यः पुरोहितो विभु ज्योतिरदाभ्यम् .. (४०)
हे सूर्य ! आप प्रख्यात, महान्, सभी देवों में महान् व असुरनाशक हैं. आप पुरोहित, प्रकाशक व ज्योति के भंडार हैं. (४० )
श्रायन्त इव सूर्यं विश्वेदिन्द्रस्य भक्षत.
वसूनि जाते जनमानऽ ओजसा प्रति भागं न दीधिम.. (४१)
सूर्य से उत्पन्न हो कर उन के संरक्षण में उन की किरणें संसार के वैभव को भोगती हैं, वैसे ही हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए ओज और धन को धारण करें. ( ४१ )
अद्या देवाऽ उदिता सूर्यस्य निर हसः पिपृता निरवद्यात्.
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदिति: सिन्धुः पृथिवी उत द्यौ:.. (४२)
हे यजमानो! आज सूर्य की किरणें उदित हो कर हमें पापों व हिंसा से बचाएं. वे मित्र देव, वरुण देव, अदिति देव, समुद्र, पृथ्वी और स्वर्गलोक हम अहिंसक यजमानों की इच्छा पूरी करने की कृपा करें. (४२)
आ कृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च.
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्.. (४३)
काले अंधकार से भरे पथ पर घूमते हुए सविता देव अपने सोने के रथ पर सवार हो कर लोकों को देखते हुए जाते हैं. सविता देव मनुष्यों को निवेश (काम में लगाते ) करते हुए जाते हैं. (४३)
प्र वावृजे सुप्रया बर्हिरेषामा विश्पतीव बीरिट ऽ इयाते.
विशामक्तोरुषसः पूर्वहूतौ वायुः पूषा स्वस्तये नियुत्वान्.. (४४)
यजमान अपने कल्याण के लिए उषाकाल में वायु व पूषा देव को आमंत्रित करते हैं. यजमान इन देवों के लिए कुश के आसन भेंट करते हैं. ये देव ठाटबाट से राजा की तरह पधारते हैं. (४४ )
इन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगम्.
आदित्यान् मारुतं गणम्.. (४५)
हम इंद्र देव, वायु देव, बृहस्पति देव, मित्र देव, अग्निपूषा देव भग देव, आदित्यगण और मरुद्गण का आह्वान करते हैं. (४५)
वरुणः प्राविता भुवन्मित्रो विश्वाभिरूतिभिः करतां नः सुराधसः.. (४६)
वरुण देव और मित्र देव संसार के मित्र हैं. वे अपनी पूरी क्षमता से अपने सभी रक्षा साधनों से हमारी रक्षा करने की कृपा करें. ये देव हमें श्रेष्ठ धनों से संपन्न बनाने की कृपा करें. (४६ )
अधि नऽ इन्द्रैषां विष्णो सजात्यानाम्.
इता मरुतो अश्विना.
तं प्रत्नथायं वेनो ये देवास आ न ऽ इडाभिर्विश्वेभिः सोम्यं मध्वोमासश्चर्षणीधृतः.. (४७)
हे इंद्र देव ! हे विष्णु ! आप पधारिए. आप सजातीय बंधुओं के बीच अधिष्ठित होइए. मरुद्गण और अश्विनी देव भी अधिष्ठित होने की कृपा करें. सभी देव सर्वद्रष्टा हैं. सभी देव मधुर सोमरस को पीने व हमें धारण करने की कृपा करें. (४७)
अग्न ऽ इन्द्र वरुण मित्र देवाः शर्धः प्रयन्त मारुतोत विष्णो.
उभा नासत्या रुद्रो अध ग्नाः पूषा भगः सरस्वती जुषन्त.. (४८)
हे अग्नि ! हे इंद्र देव ! हे वरुण देव, हे मित्र देव! हे मरुद्गण ! हे विष्णु ! आप हमें सुख व सामर्थ्य प्रदान कीजिए. अश्विनीकुमार, रुद्रगण, पूषा, भग, सरस्वती आदि देवता भी हमारे यज्ञ में पधारने की कृपा करें. (४८)
इन्द्राग्नी मित्रावरुणादिति स्वः पृथिवीं द्यां मरुतः पर्वताँ अपः.
हुवे विष्णुं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं भगं नु श स सवितारमूतये.. (४९)
हम इंद्र देव, अग्नि, मित्र देव, वरुण देव, अदिति देव, पृथ्वीलोक, स्वर्गलोक, मरुद्गण, पर्वत, जल, विष्णु, पूषा देव, बृहस्पति देव, भग देव व सविता देव का आह्वान करते हैं. हम सभी देवों से रक्षा साधनों सहित पधारने का अनुरोध करते हैं. (४९)
अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतौ सजोषाः.
यः शं सते स्तुवते धायि पज्र इन्द्रज्येष्ठा अस्माँ अवन्तु देवाः.. (५०)
यजमान हेतु मेह (वर्षा) बरसाने वाले, वृत्रासुर का नाश करने वाले, शत्रुओं को रुलाने वाले, पर्वतवासी इंद्र देव हमारा भरणपोषण व हमारी रक्षा करने की कृपा करें. इंद्र देव वरिष्ठ हैं. उन की हम स्तुति करते हैं. उन की हम उपासना करते हैं. वे हमारी रक्षा करने की कृपा करें. (५०)
अर्वाञ्चो अद्या भवता यजत्रा आ वो हार्दि भयमानो व्ययेयम्.
त्राध्वं नो देवा निजुरो वृकस्य त्राध्वं कर्तादवपदो यजत्राः.. (५१)
हे देवगण! आप हमारा कल्याण व हमारे यज्ञ की रक्षा कीजिए. आज आप हमारे निकट पधारिए, हम डरे हुए यजमानों के हृदय में प्रेम भाव भरिए. आप बुरे कामों व बुरे लोगों से हमारी रक्षा कीजिए. (५१)
विश्वे अद्य मरुतो विश्व ऽ ऊती विश्वे भवन्त्वग्नयः समिद्धाः.
विश्वे नो देवा अवसा गमन्तु विश्वमस्तु द्रविणं वाजो अस्मे .. (५२)
आज हमारे इस यज्ञ में मरुद्गण सब की रक्षा के लिए पधारने की कृपा करें. अग्नि व विश्व हमारी रक्षा के लिए पधारने की कृपा करें. समिधाओं से इंद्र देव बढ़ोतरी पाएं. सभी देव हमें बल प्रदान करें. सभी देव हमें अन्न व धन प्रदान करने की कृपा करें. (५२)
विश्वे देवाः शृणुतेम हवं मे ये अन्तरिक्षे यऽ उप द्यवि ष्ठ.
अग्निजिह्वा वा यजत्रा ऽ आसद्यास्मिन्बर्हिषि मादयध्वम्.. (५३)
सभी देव हमारी स्तुतियां सुनने की कृपा करें. जो देव अंतरिक्ष लोक में हैं, देव स्वर्गलोक में हैं, वे देव भी हमारी स्तुतियां सुनने की कृपा करें. अग्निमुख वाले देव हमारी दी हुई हवि को स्वीकार करने की कृपा करें. यज्ञ में हम ने कुश के आसन उन के लिए बिछाए हैं. वे कृपया उस पर विराजें. (५३)
देवेभ्यो हि प्रथमं यज्ञियेभ्योमृतत्व सुवसि भागमुत्तमम्.
आदिद्दामान थं सवितर्व्यूर्णुषेनूचीना जीविता मानुषेभ्य:.. (५४)
हे सविता देव! आप देवताओं में प्रथम हैं. आप यज्ञ करने वालों को अमृत और उत्तम सौभाग्य प्रदान करते हैं. वे फिर (अंतरिक्ष में ) अपनी किरणों का विस्तार करते हैं. मनुष्यों के जीवन के लिए वे यत्न करते हैं. (५४)
प्र वायुमच्छा बृहती मनीषा बृहद्रयिं विश्ववारं रथप्राम्.
तद्यामा नियुतः पत्यमानः कविः कविमियक्षसि प्रयज्यो.. (५५)
हे पुरोहित! आप वैभवशाली, कवि व रथवान हैं. हम श्रेष्ठ बुद्धि से आप की उपासना करते हैं. आप श्रेष्ठ बुद्धि से यज्ञ करने में अपने को लगाइए. आप वायु की श्रेष्ठ बुद्धि से उपासना कीजिए. (५५)
इन्द्रवायू इमे सुता उप प्रयोभिरा गतम्.
इन्दवो वामुशन्ति हि.. (५६)
हे इंद्र देव ! हे वायु ! आप के इन पुत्रों ने आप के लिए सोमरस निचोड़ कर तैयार किया है. आप सोमरस को ग्रहण करने के लिए पधारिए. इंद्र देव और वायु देव हमें शांति प्रदान करने की कृपा करें. (५६)
मित्र हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम्.
धियं घृताची साधन्ता.. (५७)
मित्र देव और वरुण देव पवित्रतादायी, दक्ष और पाप धोने वाले हैं. हम घी से सींची हुई, साधी हुई बुद्धि से उन की आराधना करते हैं. (५७)
दस्रा युवाकवः सुता नासत्या वृक्तबर्हिषः.
आ यात रुद्रवर्त्तनी.
तं प्रत्नथायं वेन:.. (५८)
हे अश्विनीकुमारो ! आप युवा व सुंदर हैं. आप आइए और कुश वाले आसन पर विराजिए. आप रुद्र जैसी वृत्ति वाले हैं, आप आइए. हम ने आप के लिए प्रयत्नपूर्वक सोमरस तैयार किया है. आप उसे ग्रहण करने की कृपा कीजिए. (५८ )
विद्यदी सरमा रुग्णमद्रेर्महि पाथः पूर्व्य सध्र्यक्कः.
अग्रं नयत्सुपद्यक्षराणामच्छा रवं प्रथमा जानती गात्.. (५९)
अग्रगण्य श्रेष्ठ अक्षर वाले मंत्रों से यजमान देवों की उपासना करते हैं. पत्थरों से कूटकूट कर सोमरस निचोड़ा गया है. विद्वान् इस सोमरस का सेवन करते हैं. (५९)
नहि स्पशमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुर ऽ एतारमग्नेः.
मेनमवृधन्नमृता अमर्त्यं वैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः .. (६०)
हे अग्नि ! यजमानों ने वैश्वानर के बिना और किसी को अग्रणी नहीं जाना. यजमानों ने आप को अमर जाना. मनुष्यों ने विभिन्न क्षेत्रों में जीत पाने के लिए वैश्वानर की बढ़ोतरी की (६०)
उग्रा विघनिना मृध ऽ इन्द्राग्नी हवामहे . ता नो मृडात ऽ ईदृशे.. (६१)
हे इंद्र देव! हे अग्नि! आप उग्र व विघ्न नाशक हैं. हम आप दोनों देवों का आह्वान करते हैं. आप इस तरह की स्थितियों में हमें सुख प्रदान करने की कृपा कीजिए. (६१)
उपास्मै गायता नरः पवमानायेन्दवे. अभि देवाँ इयक्षते.. (६२)
हे यजमानो! देवताओं द्वारा चाहे गए सोमरस को तैयार कीजिए. सोमरस पवित्र है. आप उस के लिए और स्तुतियां गाइए. (६२)
ये त्वाहिहत्ये मघवन्नवर्धन्ये शाम्बरे हरिवो ये गविष्टौ .
ये त्वा नूनमनुमदन्ति विप्राः पिबेन्द्र सोम सगणो मरुद्भिः.. (६३)
हे इंद्र देव! आप धनवान व हरे रंग के घोड़े वाले हैं. मरुद्गण मेधावी हैं. उन्होंने अहि, शंबर आदि शत्रुओं के नाश के लिए आप को प्रेरित किया. गायों को छुड़ाने पर उन्होंने आप की स्तुतियां गाईं. वे सदैव आप का अनुमोदन करते हैं. हे इंद्र देव ! आप विप्र हैं. आप पधारिए. आप मरुद्गण के साथ सोमरस को पीने की कृपा कीजिए. (६३)
जनिष्ठा उग्रः सहसे तुराय मन्द्र ऽ ओजिष्ठो बहुलाभिमानः.
अवर्धन्निन्द्रं मरुतश्चिदत्र माता यद्वीरं दधनद्धनिष्ठा.. (६४)
हे इंद्र देव ! आप लोगों द्वारा चाहे गए हैं. आप उग्र, साहसी, बुद्धिमान, वेगवान, ओजवान व बहुत अभिमानी हैं. हे इंद्र देव ! (शत्रुनाश हेतु ) देव माता अदिति ने आप को गर्भ में धारण किया. मरुद्गणों ने निष्ठापूर्वक आप की स्तुति की है (६४)
आ तू न ऽ इन्द्र वृत्रहन्नस्माकमर्धमा गहि.
महान्महीभिरूतिभि: (६५)
हे इंद्र देव ! आप वृत्रासुर नाशक व संरक्षणधर्मा हैं. आप हमारे पास पधारिए. आप अपनी महान् महिमा और रक्षाओं के साथ पधारने की कृपा कीजिए. (६५)
त्वमिन्द्र प्रतूर्त्तिष्वभि विश्वाऽ असि स्पृधः.
अशस्तिहा जनिता विश्वतूरसि त्वं तूर्य तरुष्यतः.. (६६)
हे इंद्र देव! आप सभी शत्रुओं के साथ स्पर्धा करते हैं. आप दुष्टों का दलन करते हैं. आप सुख उपजाते हैं. (६६)
अनु ते शुष्मं तुरयन्तमीयतुः क्षोणी शिशुं न मातरा.
विश्वास्ते स्पृधः श्रथयन्त मन्यवे वृत्रं यदिन्द्र तूर्वसि.. (६७)
हे इंद्र देव! जैसे मातापिता अपने शिशु को संरक्षण देते हैं वैसे ही आप हमें संरक्षण दीजिए. जब आप शत्रु से स्पर्द्धा करते हैं. तब सारी शत्रु सेना भयभीत हो जाती है. (६७)
यज्ञो देवानां प्रत्येति सुम्नमादित्यासो भवता मृडयन्तः.
आ वोर्वाची सुमतिर्ववृत्याद १ होश्चिद्या वरिवोवित्तरासत्.. (६८)
हे यजमानो! हम देवताओं के प्रति यज्ञ करते हैं. हे आदित्य देव ! आप अच्छे मन वाले हैं. आप सुखदाता हैं. आप हमें सुमति दीजिए. आप शत्रुओं की बुद्धि को हमारे प्रति अनुकूल करने की कृपा कीजिए. ( ६८ )
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्ट्व शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम्.
हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिन अवश सऽ ईशत.. (६९)
हे सविता देव! आप हमारे घरों व अपने रक्षासाधनों से हमारी रक्षा व हमारा कल्याण कीजिए. आप सोने की जीभ वाले हैं. हम आप को शीश नवाते हैं. (६९)
प्रवीरया शुचयो दद्रिरे वामध्वर्युभिर्मधुमन्तः सुतासः.
वह वायो नियुतो याह्यच्छा पिबा सुतस्यान्धसो मदाय.. (७०)
हे पुरोहितो! आप पत्थरों से कूट कर, निचोड़ कर सोमरस तैयार कीजिए. हे वायु! आप घोड़े जोतिए, रथ लाइए. आप आनंद के लिए सोमरस पीने की कृपा कीजिए. ( ७० )
गाव ऽ उपावतावतं मही यज्ञस्य रप्सुदा. उभा कर्णा हिरण्यया.. (७१)
हे यज्ञ में बह रही जलधाराओ! आप पृथ्वी की रक्षा कीजिए. हे पुराहितो! आप पत्थरों से कूट कर, निचोड़ कर सोमरस तैयार कीजिए. आप के दोनों कान सोने के बने हुए हैं. आप उन से हमारी स्तुति सुनने की कृपा कीजिए. (७१)
काव्ययोराजानेषु क्रत्वा दक्षस्य दुरोणे. रिशादसा सधस्थ ऽ आ.. (७२)
हे देवगण! आप राजा व दक्ष हैं. आप इस यज्ञ में पधारने व यज्ञ पूरा कराने की कृपा कीजिए. ( ७२ )
दैव्यावध्वर्यू आ गत ं रथेन सूर्यत्वचा.
मध्वा यज्ञं समञ्जाथे.
तं प्रनथायं वेन:.. (७३)
हे पुरोहितो! आप दिव्य हैं. आप सूर्य की तरह चमकने वाले रथ से इस यज्ञ में पधारने की कृपा कीजिए. हम ने प्रयत्नपूर्वक आप के लिए हवि तैयार की है. (७३)
तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी ३ दुपरि स्विदासी ३ त्.
रेतोधा ऽ आसन्महिमानऽआसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात्.. (७४)
सोम पवित्र हैं. उन की तिरछी किरणों का प्रकाश बहुत दूर तक फैलता है. वे नीचे ऊपर सब ओर व्याप्त हैं. ये किरणें वीर्य धारण करती हैं. ये किरणें महिमामयी हैं. ये ऊपर नीचे सब ओर से संसार को धारण करती हैं. (७४ )
आ रोदसी अपृणदा स्वर्महज्जातं यदेनमपसो अधारयन्.
सो अध्वराय परि णीयते कविरत्यो न वाजसातये चनोहित:.. (७५)
स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक में अग्नि को यजमान धारण करते हैं. अग्नि सब को प्रकाशित करते हैं. यज्ञ के लिए हम अग्नि का वरण करते हैं. जैसे घोड़ा सब ओर विचरता है, वैसे ही अग्नि सब ओर विचरते हैं. (७५)
उक्थेभिर्वृत्रहन्तमा या मन्दाना चिदा गिरा. आयूषैराविवासत:.. (७६)
हे इंद्र देव ! आप वृत्रासुर नाशक व आनंददाता हैं. हम श्रेष्ठ उक्थों ( मंत्रों ) से आप की आराधना करते हैं. (७६)
उप नः सूनवो गिरः शृण्वन्त्वमृतस्य ये. सुमृडीका भवन्तु नः.. (७७)
हम आप के पुत्र हैं. अमर देवता हमारी वाणियां सुनने व हमारे प्रति कल्याणकारी होने की कृपा करें. (७७)
ब्रह्माणि मे मतयः शसुतासः शुष्म ऽ इयर्ति प्रभृतो मे अद्रिः.
आ शासते प्रति हर्यन्त्युक्थेमा हरी वहतस्ता नो अच्छ.. (७८)
आप के पुत्रों की बुद्धि सुखदायी है. हम ने पत्थरों से कूट कर सोमरस निचोड़ा है. आप अपने हरे घोड़ों को साधिए, जोतिए और यहां पधारने की कृपा कीजिए. हम आप के लिए उक्थ मंत्र गाते हैं. (७८ )
अनुत्तमा ते मघवन्नकिर्नु न त्वावाँ अस्ति देवता विदानः.
न जायमानो नशते न जातो यानि करिष्या कृणुहि प्रवृद्ध.. (७९)
इंद्र देव ! आप से अधिक उत्तम कोई नहीं है. आप से ज्यादा धनवान, आप से ज्यादा कोई देवता विद्वान् नहीं है. आप जैसा कोई न उत्पन्न हुआ है, न ही उत्पन्न होगा. आप जैसे कार्य भी न किसी ने किए हैं, न करेंगे. (७९)
तदिदास भुवनेषु ज्येष्ठं यतो जज्ञ ऽ उग्रस्त्वेषनृम्णः.
सद्यो जज्ञानो नि रिणाति शत्रूननु यं विश्वे मदन्त्यूमा:.. (८०)
इंद्र देव भुवनों में ज्येष्ठ, उग्र व शत्रुनाशक हैं. यज्ञ में रक्षा करने वाले सभी देवगण उन को प्रसन्न करते हैं. संसार में इंद्र देव सब का कल्याण करते हैं. (८०)
इमा उ त्वा पुरूवसो गिरो वर्धन्तु या मम.
पावकवर्णाः शुचयो विपश्चितोभि स्तोमैरनूषत.. (८१)
हे देवगण! आप बहुत धनवान हैं. आप हमारी वाणी की बढ़ोतरी करने की कृपा कीजिए. आप अग्नि जैसे वर्ण ( रंग ) वाले और पवित्र हैं. हम आप को सर्वविध जानना चाहते हैं. हम सर्वविध आप की स्तुति कर रहे हैं. (८१)
यस्यायं विश्वऽ आर्यो दासः शेवधिपा अरि:.
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत्सो अज्यते रयि:.. (८२)
जिस का ( इंद्र देव का ) सारा संसार दास है, सारे आर्य जिस के दास हैं, उदारताहीन लोग उस के लिए दुश्मन हैं. इंद्र देव हमें आयुष्मान बनाने की कृपा करें. वे हमें धनवैभव प्रदान करें, ताकि हम उस धन का उपभोग कर सकें. (८२)
अय सहस्रमृषिभिः सहस्कृतः समुद्र इव प्रपथे.
सत्यः सो अस्य महिमा गृणे शवो यज्ञेषु विप्रराज्ये.. (८३)
इंद्र देव को हजारों ऋषियों ने अपने स्तोत्रों से बलवान बनाया है. वे हजारों कार्य करने में समर्थ हैं. वे समुद्र की भांति विस्तृत हैं. वे अतीव महिमावान व गणमान्य हैं. यज्ञों में ब्राह्मणों के कहे अनुसार उन की महिमा का गुणगान किया जाता है. (८३ )
अदब्धेभिः सवितः पायुभिष्टव शिवेभिरद्य परि पाहि नो गयम्.
हिरण्यजिह्वः सुविताय नव्यसे रक्षा माकिन अवश सऽ ईशत.. (८४)
हे सविता देव! आप सोने की जीभ वाले और कल्याणदायी हैं. आप हमारे घरों की सब ओर से रक्षा करते हैं. आप हमारी रक्षा कीजिए. पापी हम पर कब्जा न जमा सकें. हम आप को बारबार नमन करते हैं. ( ८४)
आ नो यज्ञं दिविस्पृशं वायो याहि सुमन्मभिः.
अन्तः पवित्रऽ उपरि श्रीणानोयशुक्रो अयामि ते.. (८५)
हे वायु ! स्वर्गलोक तक छूने ( पहुंचने वाले हमारे इस यज्ञ में आप पधारने की कृपा कीजिए. हम अच्छे मन वाले यजमान आप से आने का अनुरोध करते हैं. सोम पवित्र, चमकीले व अत्यंत शोभादायक हैं. हम ऊपर से धरती पर आए इस सोमरस को आप के पीने के लिए भेंट करते हैं. (८५)
इन्द्रवायू सुसन्दृशा सुहवेह हवामहे .
यथा नः सर्व ऽ इज्जनोनमीवः सङ्गमे सुमनाऽ असत्.. (८६)
हे इंद्र देव ! हे वायु ! आप अच्छी तरह से आह्वान के योग्य हैं. हम अच्छी तरह आप का आह्वान करते हैं, जिस से हमारे सभी ( आत्मीय ) जन रोग रहित व श्रेष्ठ मन वाले हो जाएं. (८६ )
ऋगित्था स मर्त्यः शशमे देवतातये.
यो नूनं मित्रावरुणावभिष्टय आचक्रे हव्यदातये .. (८७)
जो मनुष्य अपने सुख के लिए आप का आह्वान करते हैं, निश्चय ही जो मनुष्य अपने अभीष्ट की पूर्ति के लिए मित्र देव और वरुण देव का आह्वान करते हैं, हवि देने के लिए मनुष्य आप का आह्वान करते हैं. आप उन का अभीष्ट पूरा करने की कृपा कीजिए. (८७)
आ यातमुप भूषतं मध्वः पिबतमश्विना.
दुग्धं पयो वृषणा जेन्यावसू मा नो मर्धिष्टमा गतम्.. (८८)
हे अश्विनीकुमारो ! आप यज्ञ में आने की कृपा कीजिए. आप यज्ञ की शोभा बढ़ाइए. आप यज्ञ में दूध और रसों को पीने व धन बरसाने की कृपा कीजिए. (८८)
प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता.
अच्छा वीरं नर्यं पङ्क्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः.. (८९)
हे अश्विनीकुमारो ! आप यज्ञ में पधारने, दिव्य तथा सत्यवाणी प्रदान करने की कृपा कीजिए. देवगण मनुष्यों के हितैषी हैं. वे यज्ञ में पंक्ति में पधारें और शत्रुनाश की कृपा करें. (८९)
चन्द्रमा ऽ अप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि .
रयिं पिशङ्गं बहुलं पुरुस्पृह हरिरेति कनिक्रदत्.. (९०)
सोम देव चंद्रमा के भीतर से निकले हैं. सोम देव दीप्तिमान ( चमकदार ) व रंगबिरंगे हैं. वे घन गर्जना के साथ स्वर्गलोक की ओर दौड़ते हैं. वे हम पर धन की वर्षा करने की कृपा करें. (९० )
देवं देवं वोवसे देवं देवमभिष्टये.
देवं देव हुवेम वाजसातये गृणन्तो देव्या धिया.. (९१)
हम अपनी अभीष्ट सिद्धि के लिए देव का आह्वान करते हैं. हम अपनी अभीष्ट सिद्धि के लिए देव को हवि समर्पित करते हैं. हम बुद्धिपूर्वक देवता का आह्वान करते हैं. (९१)
दिवि पृष्टो अरोचताग्निर्वैश्वानरो बृहन्.
क्ष्मया वृधान ऽ ओजसा चनोहितो ज्योतिषा बाधते तम:.. (९२)
वैश्वानर देव स्वर्गलोक के पृष्ठ देश में दीप्त हैं. वैश्वानर देव हवि से बढ़ोतरी पाते हैं. वैश्वानर देव दीप्ति से अंधकार नष्ट करते हैं. (९२)
इन्द्राग्नी अपादियं पूर्वागात् पद्वतीभ्यः.
हित्व शिरो जिह्वया वावदच्चरत्त्रि शत्पदा न्यक्रमीत्.. (९३)
हे इंद्र देव! उषा देवी पैर रहित हो कर भी पैर वालों से पूर्व आती हैं. हे अग्नि ! सिर रहित होने पर भी प्राणियों के सिर प्रेरित करती हैं. हे अग्नि ! मनुष्यों की जिह्वा से बोलती हुई आगे बढ़ती हैं. दिन में सैकड़ों पैरों से बढ़ती हैं. (९३)
देवासो हि ष्मा मनवे समन्यवो विश्वे साकसरातयः
ते नो अद्य ते अपरं तुचे तु नो भवन्तु वरिवोविदः .. (९४)
सभी देव मनन तथा समन्वयशील हैं. सभी देव हमें सभी वैभव प्रदान करने की कृपा करें. सभी देव आज हमें और भविष्य में हमारी पीढ़ियों के लिए वैभव प्रदाता हों. (९४)
अपाधमदभिशस्तीरशस्तिहाथेन्द्रो द्युम्न्याभवत्.
देवास्त ऽ इन्द्र सख्याय येमिरे बृहद्भानो मरुद्गण.. (९५)
इंद्र देव उद्दंडों को दंडित करते हैं. वे हिंसा को दूर भगाते हैं. उन से सभी देवगण मित्रता चाहते हैं. हे मरुद्गण! आप की सभी देवता मित्रता चाहते हैं. हे अग्नि देव ! आप की सभी देवगण मित्रता चाहते हैं. (९५)
प्र व ऽ इन्द्राय बृहते मरुतो ब्रह्मार्चत.
वृत्र हनति वृत्रहा शतक्रतुर्वज्रेण शतपर्वणा.. (९६)
हे यजमानो! आप इष्टदेव व मरुद्गण के लिए विस्तृत मंत्र उचारिए, इंद्र देव वृत्रासुरनाशी हैं. वे सौ तीखे बाणों वाले वज्र से वृत्रासुर का नाश करते हैं. वे सैकड़ों यज्ञ कर्ता हैं. (९६)
अस्येदिन्द्रो वावृधे वृष्ण्य शवो मदे सुतस्य विष्णवि.
अद्या तमस्य महिमानमायवोनुष्टुवन्ति पूर्वथा.
इमा ऽ उ त्वा यस्यायमयसहस्रमूर्ध्व ऽ ऊ षु ण... (९७)
इंद्र देव सोमरस से मदमस्त हो कर यजमान के बल की बढ़ोतरी करते हैं. वे एवं विष्णु देव यजमान पूर्व ऋषियों की भांति ही आप की महिमा स्तोत्रों से अभिव्यक्त हैं. (९७ )
॥ वेद ॥
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