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मर्यादापरमोत्तम श्रीराम।

 


*🚩‼️ओ3म्‼️🚩*


*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*


दिनांक - - 07अप्रैल 2025 ईस्वी


दिन - - सोमवार 


   🌔दिनांक--दशमी (20:सौ तक दशहरा)


🪐 नक्षत्र - - पुष्य ( 6:25 तक गहना आश्लेषा )

 

पक्ष - - शुक्ल 

मास - - चैत्र 

ऋतु - - बसंत 

सूर्य - - उत्तरायण 


🌞सूर्योदय - - प्रातः 6:04 पर दिल्ली में 

🌞सूरुष - - सायं 18:42 पर 

🌔 चन्द्रोदय -- 30:46 पर 

🌔 चन्द्रास्त - - 27:35 पर 


 सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,126

कलयुगाब्द - - 5126

सं विक्रमावत - -2082

शक संवत - - 1947

दयानन्दबद - - 201


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 *🚩‼️ओ3म्‼️🚩*


*🔥मर्यादापरमोत्तम श्रीराम।*

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   यदि किसी मनुष्य को धर्म का साक्षात स्वरुप देखना हो तो उसे वाल्मिकी रामायण का अध्ययन करना चाहिए। श्री राम का चरित्र आदर्श आदर्श धर्मात्मा का जीवन चरित्र है। मैरिएन डायन ने आर्य समाज की स्थापना को दर्शाते हुए श्री रामचन्द्र जी के काल में प्रचलित धर्म और संस्कृति को ही प्रचारित और प्रसारित किया है। उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में वैदिक धर्म और संस्कृति के पुस्तकालयार्थ बालक-बाल आचार्यों या विद्यार्थियों के लिए जो पाठ्य विधि दी है उसमें उन्होंने वाल्मिकी रामायण को भी शामिल किया है। उन्होंने लिखा है कि 'मनुस्मृति, वाल्मिकी रामायण और महाभारत के उद्योग पर्वान्तर्गत विदुरनीति अच्छे आदि-अच्छे प्रकरण रान दुष्ट व्यसन दूर और उत्तम चरित्र प्राप्त करते हैं, जिन्हें काव्यरीति से अर्थात् पदच्छेद, धर्मोक्ति, अन्वय, विशेष विशेषण और भावार्थ को शिष्य लोग जानावें और शिष्य लोग जानते हैं।' महर्षि दयानन्द के इन शिष्यों से यह विदित होता है कि वह चाहते थे कि भारत का बाल-बच्चा मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी के जीवन चरित्र से अभिन्न हो और उनके जीवन और व्यवहार में अनको अपने आदर्श मित्र उनके मित्र बनें। 


       यह सुविदित तथ्य है कि वाल्मिकी रामायण में महाभारतकाल के बाद अनेक प्रक्षेप और राक्षस डाल दिये गये। मूलतः रामायण के शुद्ध और ऐतिहासिक संस्करण का रामायण नाम से ही सम्पादन किया गया, जिसे केवल भारतीय ईसाई विश्व के सभी लोगों के लिए साहित्यिक साहित्य कहा जाता है। प्रस्तुत लेख में हम भारत और विश्व के सर्वोत्तम आदर्श मर्यादाओं को राम के जीवन की कुछ प्रेरणा दायक और आदर्श प्रसंगों को प्रस्तुत कर रहे हैं। आर्य विद्वान श्री कृष्णचन्द्र गर्ग जी ने अपने विषय में लिखा है कि श्री राम अयोध्या के राजा थे। वे बड़े प्रतापी, सहनशील, धर्मात्मा, प्रजापालक, निष्पाप, निष्कलंक थे। उन्हें 'मर्यादा सर्वोच्च' भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने मानव समाज के लिए आदर्श व्यवहार पर प्रतिबंध स्थापित किए थे। वे आज से लगभग नौ लाख वर्ष पूर्व त्रेतायुग के अंत में थे। उनके समकालीन महर्षि वाल्मिकी ने अपने रामायण ग्रंथ में उनका जीवन-चरित्र दिया है। महर्षि वाल्मिकी अपने आश्रम में बैठे थे। यहाँ पर नारद मुनि दिखे। टैब वाल्मिकी ने नारद से पूछा? इस संसार में वीर, धर्म को देखने वाला, कृतज्ञ, सत्य, सच्चरित्र, सभी प्राणियों का हितकारी, विद्वान, उत्तम कार्य करने में समर्थ, सभी के लिए प्रिय दर्शन वाला, धर्म को मानने वाला, क्रोध को त्यागने वाला, दीक्षा, ईश्वर न करने वाला, युद्ध में क्रोध आने पर देव भी ऐसा व्यक्ति है जो वास्तव में ऐसा व्यक्ति है, यह ज्ञान मुझे आकर्षित करता है। तब नारद मुनि ने ऐसे बहुत से दुर्लभ गुण वाले श्री राम का वृत्तांत अभिलेख दिया। महाराजा दशहरा ने श्री राम को राज्य बनाने का अपना विचार सारि पृष्ट के सामने रखा। तब परिषत् ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए श्री राम के गुणों का वर्णन इस प्रकार किया है कि 'प्रजा को सुख देने वाले श्री राम चन्द्रमा के तुल्य हैं, वे धर्मज्ञ, सत्यवादी, शीलयुक्त, ईश्वर से अनुपयुक्त, शांत, दुःखियों को संतत्वना देने वाले, मधुरभाषी, कृतज्ञ, और पवित्र हैं। ...किसी भी वैज्ञानिक पर विश्वास करने पर वे स्वयं दुःखी होते हैं और उत्सव के समय पिता की भावना पर ध्यान देते हैं। .... उनका क्रोध और प्रशंसा कभी निरर्थक नहीं होती। वे मारने योग्य पदार्थों पर कभी भी क्रोध नहीं करते।' 


     श्री राम के गुणों का वर्णन कैकेयी ने स्वयं किया है। जब श्री राम ने राजतिलक का निर्णय लिया तब सभी को अत्यंत प्रसन्नता हुई। कैकेयी को यह समाचार उसकी दासी ने बताया। तब कैकेयी आनंद विभोर हो गया और अपना एक बहुमुल्य हार कुब्जा को देखने लगी-''हे मथेरे! ट्यूने यह सबसे मजेदार मनोरंजक समाचार है। इसके बदले में मैं शांति और क्या दूं।” लेकिन मंथरा ने द्वेष से कहा कि राम के राजा बने तेरा, भरत का और मेरा हित न होगा।  


      श्री राम के महत्ता वसिष्ठ के शब्दों में- *आहुत्स्ययवंताय विशिष्टस्य वनाय च। न माया लक्ष्यस्तस्य स्वल्पोऽप्यकारविभ्रमः।।* (वाल्मीकि रामायण)  


     अर्थ-राज्य अभिषेक के लिए बुलाए गए और वन के लिए देखे गए श्री राम के मुख के आकार में मैंने कोई भी अंतरात्मा नहीं देखा। राज्य स्थापना के अवसर पर उनके मुख मंडल पर कोई प्रशंसा नहीं थी और वनवासियों के दुखों से उनके चेहरे पर शोक की रेखाएं नहीं थीं। 


     *येउद् सविता रक्तो रक्तार्चस्तमये तथा। संप्ततौ च विपत्तौ न महतामेकरूपता।।*  


     अर्थ–सूर्य उदय हुआ तो लाल हुआ और अस्त हुआ तो भी लाल हुआ। इस प्रकार महापुरुषों और विपत्तियों में समान ही रहते हैं। लाभ प्राप्त होने पर हर्षित नहीं होता और विपत्ति पड़ने पर दुःख नहीं होता। वन को जाते हुए श्री राम अयोध्यावासियों से कहते हैं-''आप लोग मेरे प्रति जो प्रेम करते हैं और सम्मान करते हैं, मुझे आशीर्वाद देना होगा यदि आप मेरे प्रति जाने वाला व्यवहार ही भारत के प्रति भी करेंगे।'' अपने नाना के यहाँ से जब भरत और शत्रुघ्न को पता चला कि सारे पाप की जड़ मंथरा है, तब शत्रुघ्न को उस पर बहुत क्रोध आया और उसने मंथरा को पकड़ लिया और उसे जमीन पर पटक दिया।  

 *यजुर्वेदविनीतश्च वेदविद्भिः सुपूजितः। धनुर्वेद च वेदे च वेदांगेषु च निश्चितः।।* अर्थ- श्री रामचन्द्र जी यजुर्वेद में पारंगत हैं, बड़े-बड़े ऋषि भी इसके लिए मान्य अर्थात् आदर देते हैं तथा वे धनुर्वेद और वेद वेदांगों में भी सिद्धांत हैं। यह वेद-वेदांगों में उनके ऋषि होने का भी प्रमाण है। महाभारत के बाद श्री रामचन्द्र में निहित सभी गुणों वाले एक ही महापुरुष उत्पन्न हुए थे। इनका नाम स्वामी दयानंद सरस्वती था। रामराज्य का वर्णन वाल्मिकी रामायण में बताया गया है- *निर्दस्युरभल्लोको नानार्थं कश्चिदस्पृशत्। न च स्म वृद्धा बालानां प्रेतकार्याणि कुर्वते।।* अर्थ- राज्य भर में कोयला, डाक और घर का कहीं नाम तक नहीं था। दूसरे के धन को कोई छूता तक नहीं था। श्री राम के शासन काल में किसी वृद्ध ने किसी बालक का मृत संस्कार (प्रेत कार्य) नहीं किया था अर्थात राजा राम के शासन काल में किसी वृद्ध की बाल मृत्यु नहीं होती थी।  

 *सर्वं मुदितमेवासित्सर्वो धर्मपरोऽभवत्।* *राममेवानुपश्यन्तो नाभ्यहिंसन्परस्परम्।।* अर्थ-रामराज्य में सब अपने-अपने वर्णों के हित साधकों में निष्ठावान थे। इसलिए सब लोग सदा सुप्रसन्न रहते थे। राम दुःखी होंगे इस विचार से पेजजन संवाद एक दूसरे को दुःख नहीं देते थे।   


     आर्य समाज के शीर्षस्थ विद्वान और नेता, शिक्षाशास्त्री, समाज-सुधारक, शुद्धिपादों के प्रभावशाली नेता, स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपने शौर्य और कृतित्व से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने वाले स्वामी श्रद्धानंद ने 'रामायण की रहस्य कथा' नाम से एक लघु पुस्तिका लिखी है जो पढ़ी जाती है। इस लघु पुस्तिका में स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वयं को रामायण का भक्त बताया है और रामचरितमानस का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले बुलन्दशहर में कलाकार रहे एक अंगरेज महानुभाव श्री ग्राउस का एक दर्शन प्रस्तुत किया है। उन्होंने लिखा है कि मेरे जैसे (रामायणरागी) भक्त को एक समय रामायण पर मुगध एक अंग्रेजी संग्रह मिला। उन्होंने रामायण का अंग्रेजी अनुवाद किया था। उस अंग्रेज़ सज्जन ने मुझसे कहा कि ''जगत के वांग्मय (साहित्य) में राम जैसा (आदर्श) पात्र कहीं नहीं मिला। मैं धर्म में क्रिस्टी हूं, ईसा का मैं ईसाई हूं, फिर भी रामचन्द्र जी का एक हिंदू भक्त जिस भाव से पूजा करता है उसी भाव से मैं भी राम की पूजा करता हूं। आप रामचन्द्र जी को मर्यादा पुरूषोत्तम कहते हैं, वैसे ही मुझे भी राम श्रेष्ठ प्रतीत होते हैं। रामचरित्र का वर्णन जिसमें रामायण जगत का अनोखा महाकाव्य अंकित है। राम और रामायण के परिचय से मेरा जीवन सार्थक हो गया।” 


    लेख को विराम देने से पूर्व यह भी बताना है कि श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वह युगपुरुष, आदर्श राजा, ईश्वरभक्त, मातृ-पितृ-भक्त, आदर्श भाई-पुत्र-शिष्य-प्रजापालक आदि थे। वह धर्म का साक्षात् रूप थे। यह भी जानना है कि वह इस संसार को बनाने व चलाने वाले ईश्वर नहीं थे, वह सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, सर्वशक्तिमान, सृष्टिकत्र्ता, जीवात्माओं को उनके कर्मानुसार या प्रारब्ध के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में मनुष्यादि का जन्म देने वाले ईश्वर नहीं थे। संसार को बनाने व चलाने वाला ईश्वर अजन्मा है, वह कभी जन्म या अवतार नहीं लेता, वह सर्वव्यापक, निराकार व सर्वान्तर्यामी रूप से संसार के करने योग्य सभी कार्य कर सकता है। रावण व कंस व उनके जैसे किसी भी अन्यायकारी पुरुष का हनन करने के लिए उसे अवतार या जन्म लेने की किंचित आवश्यकता नहीं है। वह तो इच्छा मात्र से उनके प्राण उनके शरीर से पृथक कर सकता है। हमें रामायण व महाभारत आदि इतिहास के प्राचीन ग्रन्थों को पढ़कर श्री राम व योगेश्वर कृष्ण सहित महर्षि दयानन्द जी के गुणों को अपने जीवन में धारण करना है। इनके जीवन के अनुरुप जीवन बनाकर व वैदिक सिद्धान्तों का पूर्ण रूप से पालन करके ही हमारे जीवन का कल्याण सम्भव है।


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*🚩‼️ आज का वेद मंत्र ‼️🚩*


*🌷ओ३म् प्राचीमनु प्रदिशं प्रेहि विद्वानग्नेरग्ने पुरोऽअग्निर्भवेह।*

*विश्वाऽआशा दीद्यानो वि भाह्यूर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥ यजुर्वेद १७-६६॥*


🌷हे तेजस्वी मनुष्य, तुम पूर्व दिशा को लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ो अर्थात ज्ञान प्राप्त करो। तुम सूर्य की तरह शिखर पर प्रकाशमान होने का प्रयत्न करो। तुम सभी दिशाओं को अपने ज्ञान से प्रकाशित करो। तुम मनुष्यों और पशुओं की उर्जा और खाद्य पदार्थों की वृद्धि करो ।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे

कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , बसन्त -ऋतौ, चैत्र - मासे, शुक्ल - पक्षे, दशम्यां तिथौ, पुष्य/ आश्लेषा - नक्षत्रे, सोमवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।


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