जादुई अंगूठी
एक बार की बात है एक देश में एक राजा था, जिसके
महल के चारों तरफ अपना एक बड़ा शानदार बगीचा था। यद्यपि बाग़ीचे की देख भाल करने के
लिए बहुत माली थे। और बग़ीचे की मिट्टी भी बहुत अच्छी थी, फिर
भी बग़ीचे में कभी भी ना ही कोई फल दिखता था, और ना ही कोई
फूल ही खिलता था। इसके अतिरिक्त बग़ीचे में ना कोई छाया दार वृक्ष था, और ना ही किसी प्रकार की वहां कोई हरियाली ही थी।
राजा अपने बग़ीचे की स्थिती को देख कर, बहुत
अधिक उदास हो चुका था, तभी उससे एक बुद्धिमान बुजुर्ग मिला,
और उसने राजा से कहा।
आपके सभी माली अपने कार्य को अच्छी तरह से
करना नहीं जानते हैं,
हम यह आशा भी कैसे कर सकते हैं? की जिसका पिता
मोची या बढ़ई का कार्य करता हो, उसका पुत्र एक श्रेष्ठ माली
कैसे हो सकता है? और वह कैसे अच्छी प्रकार से बग़ीचे की
देख-भाल सीख सकता है?
राजा ने उस बुद्धिमान आदमी के सुझाव को सुन
कर,
कहा कि महाशय आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं।
आगे उस बुद्धिमान आदमी ने राजा से कहा, इसलिए
आप ऐसे किसी माली की खोज करे, जिसके पिता और उसके दादा खेती
का कार्य करते हो, इस प्रकार से आपका बगीचा जल्दी ही फल फूल
और हरियाली से खिलने लगेगा। इसके साथ बग़ीचे से आपको स्वादिष्ट फल भी मिलने लगेगें।
इसके बाद राजा ने अपने संदेशवाहक को हर तरफ, अर्थात
हर गांव, नगर, और राज्य में भेजा,
यह पता करने के लिए, जिसके पिता और दादा खेती
का कार्य करते हो, जिसके परिणाम स्वरूप चालीस दीन के बाद एक
ऐसा आदमी मिल गया।
राजा के संदेशवाहक ने उस आदमी से कहा तुम
हमारे साथ चले,
राजा तुम को अपने बग़ीचे का रखवाला बनाना चाहते हैं।
उस किसान ने उन संदेशवाहक से कहा, मैं
राजा के पास कैसे जा सकता हूं? क्योंकि मैं दुर्भाग्यशाली और
एक गरीब आदमी हूं।
इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने, उस
किसान और उसके परिवार के सभी लोगों को नए कपड़े दिये, इस पर
किसान ने कहा की मैंने कुछ लोगों से ऋण भी ले रखा है।
उस ऋण को भी देने के लिए राजा के आदमी
तैयार हो गए,
और उन्होंने कहा की हम तुम्हारे द्वारा लिए गये ऋण को भी दे देंगे।
जब माली को संदेशवाहक के कार्यों से
स्वयं को संतुष्ट हो गया,
तो वह उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गया। और अपने साथ उसने अपनी
पत्नी और पुत्र को भी ले लिया। राजा को जब पता की एक सच्चा माली बग़ीचे कि देख –भाल करने के लिए मिल गया है। तो वह बहुत अधिक प्रसन्न हुआ, और उसने अपने बग़ीचे को उस किसान को सुपुर्द कर दिया। उस किसान को किसी भी
प्रकार की कोई कठिनाई, बग़ीचे की देखभाल करने में, या फल फूलों के उत्पादन करने में महसूस नहीं हुई। साल के अंत तक वह बगीचा
वही पुराना बगीचा नहीं रहा, उसका काया कल्प हो चुका था। जिस
को देख कर राजा उस नये माली और उसके परिवार के उपर उपहारों की बौछार करने लगा।
जैसा की आपने पहले से सुन रखा है, की
माली का एक पुत्र भी था, जो अब बहुत सुन्दर एक युवा आदमी बन
चुका था। जिसके साथ उसमें बहुत अच्छा व्यवहारिक ज्ञान का भंडार भी था। जिससे वह
सभी को प्रसन्न रखता था। क्योंकि वह रोज राजा और उनकी पुत्री के लिए बग़ीचे से
अच्छे फलों और श्रेष्ठतम फूलों को लेकर महल में जाता था। राजा की पुत्री जो
आश्चर्यजनक सुन्दर के साथ अब वह 16 साल हो चुकी थी। जिसके लिए राजा विचार कर रहा
था, कि अब राजकुमारी का विवाह कर देना चाहिए। क्योंकि अब वह
इसके योग्य हो चुकी है।
इस लिए उसने एक दिन राजकुमारी से कहा, कि
पुत्री अब तुम विवाह के योग्य हो चुकी हो। मैं चाहता हूं तुम विवाह कर लो, और मैंने विचार कर लिया है, कि तुम्हारा पति होने के
योग्य हमारे प्रधानमंत्री का पुत्र है। जिससे तुम विवाह कर लो।
इस पर राजा कुमारी ने राजा से कहा, पिता
जी मैं प्रधान मंत्री के पुत्र से कभी विवाह नहीं करूंगी।
राजा ने कहा, ऐसा क्यों कह रही
हो पुत्री?
इस पर राज कुमारी ने उत्तर दिया क्योंकि
मैं माली के पुत्र से प्रेम करती हूं।
इस को सुन कर राजा पहले तो वह बहुत क्रोधित
हुआ,
और फिर वह रोने के साथ आह भरने लगा। अंत में उसने निर्णय किया,
कि माली का पुत्र राजकुमारी के पति होने के योग्य कदापि नहीं है।
लेकिन किसी भी शर्त पर राजकुमारी माली के पुत्र के साथ अपने विवाह के इस दृढ़
संकल्प को त्यागने के लिए तैयार नहीं थी।
इस पर राजा ने अपने मंत्रियों से
सलाह करने लगा। उन मंत्रियों राजा को सुझाव दिया, कि आप के पास केवल
एक रास्ता है। जिसके माध्यम से आप इस समस्या का समाधान कर सकते हैं, वह यह है की आप दोनों माली के पुत्र और प्रधान मंत्री के पुत्र को एक साथ
यहां से बहुत दूर शिकार पर भेज दे। वहां से जो सकुशल पहले आयेगा राजकुमारी का
विवाह उसी कर दीजिएगा।
राजा ने अपने मंत्रियों के द्वारा दिये गये, सुझाव
का पालन किया, प्रधानमंत्री का पुत्र अपने शानदार घोड़े और
सोने की मुहरों से भरें अपने बटुआ के साथ वहां उपस्थित हुआ। जबकि माली का लड़का
अपने वृद्ध और लगड़े घोड़े के साथ ताबे के सिक्का से भरे हुए, अपने बटुआ के साथ उपस्थित हुआ। जिस को देख कर हर कोई यही सोच रहा था,
कि माली का पुत्र कभी भी अपनी यात्रा से वापिस नहीं आ पायेगा।
उनकी यात्रा के एक दिन पहले राजकुमारी अपने
प्रेमी माली के पुत्र से मिली और उससे कहा।
तुम बहादुर हो और यह हमेशा याद
रखना,
कि मैं तुम से प्रेम करती हूं, इस बटुआ को ले
लो, जिसमें बहुमूल्य रत्न है इन को तुम अपनी जरूरत के अनुसार
व्यय करना। मेरे प्रेम के लिए, और जल्दी से वापिस आकर मेरे
हाथ को माँगना।
दोनों यात्री एक साथ अपनी यात्रा के लिए नगर से प्रस्थान किया, लेकिन
प्रधानमंत्री का बेटा अपने अच्छे घोड़े को भगाते हुए जल्दी ही पहाड़ों के पार निकल
गया। और माली के पुत्र की आँखों से ओझल हो गया। वह कई दिनों तक यात्रा करता रहा,
और इसके उपरांत वह एक झरने के पास पहुंचा। जिसके पास एक वृद्ध औरत
फटे पुराने वस्त्रों को धारण किए एक पत्थर पर बैठी हुई मिली।
उसने प्रधानमंत्री के पुत्र से कहा युवा यात्री
आपका दिन शुभ हो।
लेकिन प्रधानमंत्री के लड़के ने, इसका
कोई उत्तर नहीं दिया।
उस वृद्ध औरत ने कहा कृपया मुझ पर
दया करो,
मैं भूख से मर रही हूं, जैसा कि तुम स्वयं देख
रहे हो, और यहां तीन दिन से पड़ी हूं, किसी
ने मुझे कुछ भी खाने के लिए नहीं दिया है।
मुझे अकेला छोड़ दो चुड़ैल, चिल्लाते
हुए मंत्री के पुत्र ने कहा, मेरे पास तुम को देने के लिए
कुछ भी नहीं है, इस प्रकार से कहता हुआ, वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया।
उसी दिन शाम को माली का पुत्र वहां
झरने के पास अपने भूरे लगड़े घोड़े के साथ पहुंचा।
उससे भी उस वृद्ध भिखारी औरत ने
कहा,
युवा यात्री आपका दिन शुभ हो।
इसके उत्तर माली के पुत्र ने कहा, आपका
भी दिन शुभ हो अच्छी औरत।
युवा यात्री मुझ पर दया दिखाए।
इस पर माली के पुत्र ने अपना धन से भरा
बटुआ निकाल कर,
उसकी तरफ बढ़ा दिया, और उससे कहा आए मेरे
घोड़े पर मेरे पीछे बैठ जाए, क्योंकि आपके पैर ज्यादा मजबूत
नहीं दिखता है।
वृद्ध औरत ने दूसरी बार कहने का
इंतजार किये बगैर,
उसके पीछे घोड़े पर बैठ गई, इस प्रकार से वह
दोनों एक शक्तिशाली राजा के मुख्य राजधानी में पहुँचे।
प्रधानमंत्री का लड़का एक बड़े शानदार रैन
बसेरा में ठहरा हुआ था। जबकि माली का पुत्र उस वृद्ध औरत के साथ एक भिखारिनों के
ठहराने के लिए बने रैन बसेरा में ठहरा था।
अगले दिन सुबह माली के पुत्र ने बाहर गली में
काफी शोर-गुल को सुना,
और देखा राजा का संदेशवाहक जा रहे थे, बहुत
प्रकार के वाद्य यंत्रों को बजाते हुए, और चिल्ला रहे थे।
हम सब के स्वामी महाराज इस समय वृद्ध और
अस्वस्थ हो चुके है,
वह बहुत बड़ा पुरस्कार देंगे, जो उन को स्वस्थ,
और उन्हें पहले के समान युवा और शक्तिशाली बना देगा।
इसको सुन कर उस भिखारी औरत ने अपने शुभ
चिंतक माली के पुत्र से कहा-
इस अवसर का फायदा तुम्हें अवश्य उठाना
चाहिए,
और राजा ने जिस पुरस्कार को देने का वादा किया वह तुम्हें अवश्य
प्राप्त करना चाहिए। बाहर नगर में जाए, और नगर के दरवाज़े के
पास देखना वहां तुम्हें अलग - अलग रंग के कुत्ते दिखाई देंगे, पहला कुत्ता सफेद रंग का होगा, दूसरा कुत्ता काले
रंग का होगा, तीसरा कुत्ता लाल रंग का होगा। तुम उन को पकड़
कर मार देना, अलग - अलग, जला कर उनकी
राख को एकत्रित कर लेना। जिस रंग के कुत्ते थे, उन की राख को
उसी रंग के थैले में भर लेना। फिर राजा के महल के दरवाज़े पर जा कर चिल्लाना,
मैं एक बड़ा चिकित्सक हूं और जानीना अल्बानिया से आया हूं। और केवल
मैं ही राजा की बीमारी को दूर कर के, उन को पहले के समान
युवा और शक्तिशाली बना सकता हूं। राजा के चिकित्सक तुम्हें मूर्ख कहेंगे और
तुम्हारे लिए बहुत सारी कठिrनाइयों को खड़ी करेंगे। लेकिन
तुम तब तक मत मानना जब तक की तुम्हारा मुलाकात बीमार राजा से नहीं हो जाती है। तब
तुम राजा से कहना की वह तीन ख़च्चर जितनी लकड़ी को उठा सकते है, उनकी व्यवस्था करें, और एक बड़े शानदार कलश के साथ
राजा को अपने साथ ले कर एक अकेले कमरे में बंद कर लेना। इसके बाद लकड़ीयों को
भट्टी में डाल कर जला लेना। उसके उपर एक बड़ा पात्र पानी से भर कर रख देना,
जब पानी खूब उबलने लगे, तो उसमें उस कलश के
साथ राजा को भी डाल देना, और ध्यान से देखना तब तक, जब तक की राजा के शरीर का सारा माँस उसकी हड्डियों से अलग नहीं हो जाता।
फिर तुम उन हड्डियों को उनके सही स्थान पर जोड़ कर, उनके उपर
कुत्तों की राख को छिड़कना, जिसके परिणाम स्वरूप राजा जिंदा
हो कर, फिर से बिल्कुल ठीक हो जायेगा। और पुनः 20 साल के
युवा के समान शक्तिशाली हो जायेगा। इसके पुरस्कार के रुप में तुम राजा से केवल
जादुई अंगूठी की मांग करना, जिसके अंदर शक्ति है, जो तुम्हारे सभी इच्छा को पूर्ण कर सकती है। जाओ पुत्र जाओ और मेरे किसी
निर्देश को भूलना मत।
युवा आदमी ने उस वृद्ध भिखारी औरत के
निर्देशों के अनुसार शहर में गया, और उसको वहां पर तीन रंग के कुत्ते
मिले, जिन को पकड़ कर उसने उन को मार दिया, और जला कर उनकी राख को उनके रंग वाले तीन थैले में रख लिया। और फिर वह महल
के दरवाज़ा पर गया, और वहां चिल्लाते हुए कहने लगा।
कि वह एक महान चिकित्सक है और "अल्बानिया
के जेनीना से एक नामी चिकित्सक के यहां आया है। वह अकेले ही राजा का इलाज कर सकता
है और उसे उसकी जवानी की ताकत वापस दे सकता है।"
राजा के चिकित्सकों ने जब उसको सड़क पर देखा तो हँसने लगे, लेकिन
सुलतान ने आदेश देकर अजनबी को अपने पास बुलाया। इसके बाद युवा चिकित्सक के कथन के
अनुसार एक शानदार कलश और तीन ख़च्चरों पर लकड़ी को लाद कर लाया गया। और जल्दी ही
राजा को लकड़ी के साथ उस चिकित्सक ने उबाल दिया। दोपहर के समय युवा माली के पुत्र
चिकित्सक ने उस राजा की हड्डियों को एकत्रित कर के उनके यथा स्थान पर व्यवस्थित कर
दिया। और उस पर बड़ी कठिनाई से कुत्तों की राख को छिड़क दिया। जिसके परिणाम स्वरूप
राजा पुनर्जीवित हो गया। और उसने अपनी युवा अवस्था को प्राप्त कर लिया ।
और फिर उसने चिल्लाते हुए कहा मेरे
जीवन रक्षक और मेरे परम शुभ चिंतक, मैं तुम्हें क्या
पुरस्कार दु, क्या तुम मेरा आधा राज्य लेना चाहोगे।
माली के पुत्र ने कहा नहीं।
राजा ने कहा क्या मेरी पुत्री का
हाथ चाहिए ?
माली के पुत्र फिर कहा नहीं।
राजा ने जोर दे कर कहा तुम मेरा
आधा राज्य का वरण करो।
इस पर माली के पुत्र ने कहा आप मुझे के वह
जादुई अँगूठी दे,
जो तत्काल मेरी किसी इच्छा को पूर्ण करने में समर्थ है।
राजा ने कहा आह! मैं उस अंगूठी के रखने के
लिए बहुत शानदार स्थान बनवाया है, फिर भी तुम्हें यदि वही चाहिए,
तो तुम वह मिलेगा। और राजा ने उस जादुई अंगूठी को माली के पुत्र को
दे दिया।
फिर माली का पुत्र उस वृद्ध भिखारी औरत को विदा करके वहाँ से चल पड़ा। और
समुद्र किनारे जा कर जादुई अंगूठी को अपनी जेब से निकाल कर उससे कहा, मेरी
आगे की यात्रा के लिए एक शानदार जहाज को तैयार करो। जो सोने बनी हो, जिसकी पाल अच्छे रेशम के तारों से बना हो, जिसकी
कालीन सुन्दर चाँदी के तारों की बनी हों, जहाज को चलाने वाले
12 युवा राजा के समान हो। और जहाज की पतवार संत निकोलस के हाथ में हो। जहाज में
माल के रूप में बहुमूल्य रत्न हो। जिसमें चमकते हीरा, मोती
माणिक और पन्ना इत्यादि भरा हो।
और तुरंत समुद्र पर एक जहाज दिखाई दिया, जो
माली के बेटे द्वारा दिए गए हर विशेष विवरण से मिलता था, और
फिर वह जहाज पर कदम रखते हुए, उसने अपनी यात्रा को जारी रखा।
कुछ समय में वह एक बड़े शहर में पहुंचा। और खुद के लिए एक अद्भुत महल स्थापित
किया। और उसमें निवास करने लगा। कई दिनों के बाद वह अपने प्रतिद्वंद्वी, मंत्री के बेटे से मिला, जिसने अपना सारा पैसा खर्च
कर दिया था। और वह धूल और उबटन के वाहक के साथ असहनीय बेरोज़गारी के कारण अस्वस्थ
हो गया था। माली के बेटे ने उससे कहा
तुम्हारा नाम क्या है, तुम्हारा
परिवार क्या है? और तुम किस देश से आते हो?
मैं एक महान राष्ट्र के प्रधान मंत्री का
बेटा हूं,
और फिर भी देखता हूं कि मैं किसी अपमान जनक व्यवसाय में पड़ा हूं।
मेरी बात सुन, हालाँकि
मैं तुम्हारे बारे में और कुछ नहीं जानता, मैं तुम्हारा मदद
करने को तैयार हूँ। मैं तुम्हें एक शर्त पर तुम्हें तुम्हारे देश वापस ले जाने के
लिए तुम को एक जहाज दूँगा।
प्रधान मंत्री के बेटे ने कहा कि जो भी हो, मैं
उसे स्वेच्छा से स्वीकार करता हूं। फिर सौदागर के बेटे नौ कहा मेरे महल में मेरे
पीछे आवो।
मंत्री के पुत्र ने अजनबी धनी आदमी के पीछे
उसके महल में गया,
जिस को वह पहचानता नहीं था। जब वह महल में पहुँच गये, माली के पुत्र ने अपने दाश की पहचान के लिए एक चिन्ह बनवा रखा था। जिस को
वह अपने दाश के शरीर को निर्वस्त्र करा के उसकी पीठ पर छपवा देता है।
ऐसा ही उस प्रधान मंत्री के पुत्र के साथ
करने के लिए,
उसने अपने सेवकों को आदेश दिया। कि अंगूठी को लाल करके उस आदमी की
पीठ पर छाप दो।
सेवकों ने अपने मालिक के आदेश का पालन किया।
फिर
उस युवा राजा ने अपने नये बने अजनबी दाश से कहा, अब मैं तुम को एक
जहाज दुंगा। जिससे तुम अपने देश जा पाओगे।
और, बाहर
जा कर, उसने अपनी जादुई की अंगूठी ली और कहा-
मेरी जादुई अंगूठी,
अपने मालिक की बात मानो। मेरे लिए एक ऐसा जहाज तैयार करो, जो आधा सड़े हुए लकड़ी से बना हो, जिस को काले रंग
से रंगा गया हो। पाल को लत्तों बनाया गया हो, और उसके सभी
नाविक बीमार हों। जिसमें एक का पैर टूटा हो, दूसरे का हाथ
टूटा होगा। तीसरा एक कुबड़ा होगा, एक अन्य लंगड़ा या अपाहिज
पैर वाला हो, अथवा अंधा होगा। और उनमें से ज्यादातर लोग
बदसूरत होंगे, और उन सभी के शरीर पर मेरे राज्य निशान के साथ
चिन्हित किया हो। जाओ, और मेरे आदेशों को निष्पादित करो।
उसके ऐसा कहते ही तत्काल एक उसके कहने के अनुरूप बन कर समुद्र के किनारे पर तैयार
हो गया।
मंत्री का लड़का उस पुराने जहाज पर आरूढ़
हो गया,
और उसने हवा को धन्यवाद दिया। जिसने उसकी जहाज को उस दिशा में ले
जाने में सहायता किया, जिस तरफ वह जाना चाहता था। इस प्रकार
से वह कुछ समय में अपने देश में पहुँच गया। अपनी दयनीय दशा के साथ फिर भी उसका
उसके देश में भरपूर स्वागत और सत्कार किया गया।
उसने वहां पहुंच कर राजा से
कहा की जैसा की आपने वादा किया था। जो पहले वापिस आयेगा उसी से अपने पुत्री का
विवाह करेंगे। और मैंने आपकी इच्छा को पूर्ण किया है। अब आप मेरा विवाह राजकुमारी
से कर दीजिए।
इस प्रकार से तत्काल वे सब
विवाह की तैयारी में लग गये। यद्यपि बेचारि राजकुमारी इस घटना से बहुत दुःखी और
क्रोधित थी।
अगले
दिन प्रातःकाल सुबह होते ही, एक अद्भुत आश्चर्य से पूर्ण
अलौकिक जहाज ने उस नगर के किनारे पर अपनी लंगऱ को डाला। यह सब कुछ राजा अपने महल
की खिड़की से देख रहा था।
उसने चिल्लाते हुए कहा की यह
अद्भुत जहाज किस का है?
जिस के जहाज को सोने से मढ़ा गया है, जिस पर
चाँदी का कालीन बिछा है, और रेशम से बना पाल लगा है, इसके उपर सवार राजकुमार के समान युवा कौन है? और
क्या मैं देखन नहीं पा रहा हूं? कि संत नीकोलश पतवार पर बैठे
हैं। तुरंत जाओ और जहाज के कप्तान को आमंत्रित करके महल में ले आवों।
राजा के आदेश का तत्काल सेवकों ने पुरा
किया,
वह जहाज पास गये, और अपने साथ जल्दी ही एक
अतिसुन्दर आकर्षक राज कुमार को ले कर आये। जिसने कीमती रेशमी कपड़ों को पहन रखा था,
और हीरे जड़ित मोती के आभूषणों को अपने शरीर पर धारण कर रखा था।
राजा
ने युवा राज कुमार को संबोधित करते हुए कहा, आपका हमारे राज्य में
स्वागत है, तुम यहां अपने मन की जो भी हो, वह अपनी स्वेच्छा से कर सकते हो, और जब तक चाहो मेरे
महल मेरे मेहमान बन कर रह सकते हो।
जहाज
के कप्तान ने कहा आपको बहुत - बहुत धन्यवाद, और मैं आपका प्रस्ताव
स्वीकार करता हूं।
राजा ने कहा मेरी पुत्री का विवाह करने
वाली है,
क्या आप उसको ऐसा करने की आज्ञा देंगे?
इस पर युवक राज कुमार ने कहा यह तो मेरा
सौभाग्य है,
साहब इसमें पूछने जैसा क्या है?
इसके कुछ समय के बाद राजकुमारी उस युवा
राजकुमार के पास आई,
उससे औपचारिक मुलाकात के लिए।
इस पर युवा राजकुमार कप्तान ने तेजी से कहा
ऐसा तुम क्यों कर रही हो?
तुम इतनी सुन्दर हो और तुम ऐसे आदमी से विवाह क्यों करना चाहती हो?
इसके उत्तर में राजा ने कहा यह हमारे
प्रधान मंत्री का पुत्र है!
इस पर माली के पुत्र ने यह आप क्या कर रहे
हैं?
मैं आपकी पुत्री को इस आदमी से विवाह नहीं करने दे सकता हूं,
यह मेरे दासों में से ही एक है।
राजा ने कहा क्या यह आपका एक सेवक?
इस पर युवा राजकुमार ने कहा मेरी बात पर
किसी प्रकार का आपको संदेह नहीं करना चाहिए? मैं जब इससे पहली बार
मिला था, तो यह बर्बाद हो चुका था, धूल
धूसरित जीर्ण शीर्ण कपड़ों में बेहाल था। मुझे इस पर दया आ गई। और तब मैंने अपने
सेवकों में इसको भी रख लिया था।
इस पर राजा चिल्लाते हुए कहा यह असंभव है।
युवा राजकुमार ने कहा क्या आप चाहते है? कि मैं जो भी कह रहा हूं
इसको सिद्ध कर के दिखाउं। जिस जहाज से यह आदमी वापिस अपने देश आया है। उस जहाज की
व्यवस्था मैंने ही किया था। एक ऐसा समुद्री जहाज जो मेरे काम का नहीं था। काला सा
दुर्घटना ग्रस्त हो चुका था। जिसके सभी नाविक अपंग और बीमार थे।
राजा ने कहा यह आप तो बिल्कुल ठीक कह रहें है
।
इस पर प्रधान मंत्री के पुत्र ने चिल्लाते
हुए कहा,
यह आदमी सब झूठ कह रहा है। इससे मैं कभी नहीं मिला और मैं इसको नहीं
जानता हूं।
इस पर युवा राजकुमार ने राजा से कहा आप अपनी
पुत्री को आज्ञा दे,
कि वह इस आदमी के सभी कपड़ों को इसके शरीर से उतार दे, और देख ले, इसके पीठ पर मेरे राज्य का प्रतीक चिन्ह,
अंगूठी का निशान है की नहीं है।
राजा ने जैसे ही यह आज्ञा अपनी पुत्री को
देना चाहा,
तभी प्रधान मंत्री के पुत्र ने अपने प्रतिष्ठा के बचाव में कहा की
यह आदमी बिल्कुल सही कह रहा है।
और इसके बाद कप्तान युवा राजकुमार ने कहा, क्या
आप मुझको नहीं पहचान रहें है?
इसके उत्तर में राजकुमारी ने कहा मैं पहचान
रही हूं,
आप माली के पुत्र हैं, जिससे मैं हमेशा से
प्रेम करती हूं। और वह आप ही हैं जिससे मैं विवाह करूंगी।
इस पर राजा ने चिल्लाते हुए कहा युवा राज कुमार तुम ही मेरे दामाद होंगे, विवाह
उत्सव पहले से ही चल रहा है, इसलिए अब तुम मेरी पुत्री से
विवाह आज ही कर लों।
इस प्रकार से माली के पुत्र ने सुन्दर राजकुमारी से उसी दिन विवाह कर लिया।
इस प्रकार से युगल दंपति ने आनंद पूर्वक काफी
दिन बिताया। और राजा अपने दामाद से हर प्रकार प्रसन्न रहता था। उसकी खुशी का कोई
ठिकाना नहीं रहता था। क्योंकि वह उसके साथ स्वयं को बहुत अधिक सुरक्षित महसूस करता
था।
लेकिन वर्तमान में यह बहुत आवश्यक हो चुका
था। उसके सुनहरे जहाज के लिए की वह एक लंबी समंदर की यात्रा पर जाये। अपनी पत्नी
के बहुत मना करने पर भी किसी तरह से उसको सहानुभूति पूर्वक समझा कर, वह
युवा आदमी एक लंबी यात्रा पर पुनः निकल पड़ा, अपने सुनहरे
जहाज के साथ।
इसके कुछ समय बाद एक दूसरी घटना घटी, राजा
के राजधानी की सीमा पर एक वृद्ध आदमी रहता था। जिसने अपने जीवन के बहुत अधिक समय
तक काला जादू का प्रयोग, ज्योतिषी जादू, तांत्रिक साधना करने व्यतीत किया था। उसको पता चल गया, कि माली के पुत्र के सफलता और राजा के पुत्री के साथ विवाह का केवल एक
कारण है। और वह यह सब जादुई अँगूठी में रहने वाले जिन्न की सहायता से किया है।
उसने आपने आप से कहा की वह जादुई अँगूठी मेरे
पास होगी। इसलिए वह नीच समुद्र किनारे गया, और वहां पर उसने कुछ
सुन्दर आश्चर्यजनक लाल मछलियों को अपनी जाल में फंसा लिया। फिर वह वापिस नगर में
आया और राजकुमारी के खिड़की पास गुजरते हुए वह चील्लाने लगा।
किसी
को यह सुन्दर मछलियाँ चाहिएं?
राजकुमारी ने उसकी बातों को सुना, और
उसने अपने एक सेवक को बाहर भेजा। और उससे कहा जो वृद्ध व्यापारी कह रहा था।
उस सेवक ने उस मछली बेचने वाले से जा कर पूछा। तुम अपनी मछली के बदले क्या
चाहते हो?
इस पर उस वृद्ध मछली बेचने वाले ने कहा पुरानी कांसे की अँगूठी चाहिए।
इस पर उस सेवक ने कहा पुरानी कांसे की अँगूठी, मैं
कहा पाउंगा वृद्ध सज्जन।
इस पर उस वृद्ध ने कहा, राजकुमारी के गद्दे के नीचे वह अंगूठी
तुम को मिलेगी।
सेवक पुनः अपनी मालकिन रानी के पास उसके कमरे में गया।
और राजकुमारी से कहा की वह वृद्ध पागल आदमी ना सोना ले रहा है ना चाँदी ले
रहा है।
इस पर राजकुमारी ने कहा फिर उसे क्या चाहिए?
इस पर सेवक ने कहा,
की उसे कांसे की अँगूठी चाहिए जो आपके गद्दे के नीचे छिपा कर रखा
गया है।
इस पर राजकुमारी ने कहा तलाश करो अँगूठी की, और
उसे उस वृद्ध आदमी को दे दो।
और इस प्रकार से अंत में अँगूठी उस सेवक के
हाथ लग गई। और वह तत्काल उस जादुई अँगूठी को उस वृद्ध तांत्रिक को दे दिया। यह
वहीं जादुई अँगूठी थी,
जो माली के पुत्र अर्थात जहाज के कप्तान की थी, जिस को वह अपने दुर्भाग्य के वशीभूत होकर, यहां महल
में भूल कर अपने पीछे छोड़ कर चला गया था।
जिस को प्राप्त करते ही वह वृद्ध तांत्रिक ने
वहां से तत्काल रफूचक्कर हो गया, मुश्किल से वह अपने घर भी नहीं पहुंच
पाया था। कि वह उसने अँगूठी के जिन्न से बात करने लगा, और
उससे कहा जादुई अँगूठी मेरे आदेश का तत्काल
पालन करो। मैं तुम्हारा मालिक हूं, मैं चाहता हूं की
वह सोने की जहाज तत्काल काली लकड़ी की हो जाये। और उसके सभी नाविक कुरूप नीग्रों
में बदल जाये, संत निकोलस तत्काल जहाज की पतवार छोड़ कर वहां
से गायब हो जाये, जहाज पर माल के रूप में केवल काली
बिल्लियां ही हों।
इसको सुनते ही जादुई अँगूठी में विद्यमान
जिन्न ने तत्काल उसके आदेश का पालन किया।
युवा कप्तान अपनी जहाज पर जब अपने आपको
दयनीय अवस्था में पाया,
तो वह तत्काल समझ गया। किसी ने उसकी जादुई अँगूठी को चुरा लिया है।
और इसी कारण से उसके उपर उसके दुर्भाग्य ने इतनी तीव्रता सवारी कर लिया है। लेकिन
जिसने भी ऐसा किया है उसने ठीक नहीं किया है।
आह! के साथ उसने अपने आप से कहा जिसने मेरी
जादुई अँगूठी को चुराया है,
संभव है की उसने मेरी प्रिय पत्नी को भी चुरा लिया हो। मेरे लिए इस
समय यहीं अच्छा होगा की मुझे अपने देश की तरफ तत्काल प्रस्थान करना चाहिए। अन्यथा
और भी अनर्थ हो सकता है। और इस तरह से उसने अपनी जहाज को एक द्वीप से दूसरे द्वीप
तक एक किनारे से दूसरे किनारे तक की यात्रा करता हुआ, निरंतर
आगे बढ़ता रहा। उसे विश्वास था की वह जहां भी जायेगा लोग उसका मखौल उड़ायेंगे। और
उस पर हसेगें, और अकसर ऐसा ही होता था। और जल्दी ही उसकी
दरिद्रता बढ़ने लगी। जिसके कारण उसके नाविकों और उसकी बेचारी काली बिल्लियों को
खाने के लिए केवल घास और उसकी जड़ों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। बहुत लंबे समय तक
ऐसे ही घूमते - घूमते वह एक ऐसे द्वीप पर पहुंचा। जहां पर केवल चूहों के और कोई
दूसरा प्राणी निवास नहीं करता था। जहाज का नीचे सागर के किनारे पर वह उतरा,
और उस देश को और अधिक जानने के लिए घूमने के लिए चला गया। वहां द्वीप पर चारों तरफ केवल
चूहों के कुछ भी नहीं था। उसके साथ उसकी कुछ काली बिल्लियां भी उसके साथ चल रही
थी। और उन्होंने कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया था। जिस कारण से वह बहुत बुरी तरह
से भूख से तड़प रही थी। इस लिए वह चूहों का बुरी तरह से शिकार करती और उन्हें खा
जाती थी।
जिसके कारण चूहों की रानी ने आपत्काल अपने
दरबारी और मंत्रियों की एक सभा को बुलाया।
और सभी से कहा की ये बिल्लियां इस प्रकार
से हम सभी को खा कर यहां से खत्म कर देगी। जब तक इनका मालिक जहाज का कप्तान इन को
शक्ति के साथ नहीं रोकता है। इस लिए हमें अपने में से कुछ बहादुर लोगों को जहाज के
कप्तान के पास जा कर,
इसके बारे में बात करनी चाहिए।
चूहों के मध्य के कुछ बहादूर
चूहों ने,
युवा कप्तान के पास जा कर बात करने की बात की। और उसकी खोज में वह
तत्काल निकल गये। और अंत में उन्होंने उस जहाज के युवा कप्तान को तलाश लिया।
और कप्तान से कहा की आप तत्काल अपनी इस
जहाज को और अपनी बिल्लीयों को लेकर यहां हमारे द्वीप से चले जायें। क्योंकि इन
बिल्लीयों के कारण हम सभी चूहे यहां पर मार दिये जायेगें। और हमारा बंस यहां पर
संपूर्ण खत्म हो सकता है।
युवा कप्तान ने उनकी बात को अपनी एक शर्त पर
मानने के लिए तैयार हो गया। और उसने अपनी शर्त के बारें में बताया की पहले तुम सब
को मेरी जादुई अँगूठी को चालाक जादूगर के पास लेकर आना होगा। जो मेरी अँगूठी को
चुरा ले गया है। अगर तुम सब ने ऐसा नहीं किया। तो मैं अपनी सभी बिल्लीयों को यहां
पर खुल्ला छोड़ा दुँगा। जिससे तुम सब का यहां संपूर्ण सर्वनाश हो जायेगा।
चूहों ने युवा कप्तान की बातों को सुन कर
बहुत अधिक उदास हुआ। फिर चूहों की रानी ने कहा इस पर हमें क्या करना चाहिए? हम
कैसे तलाश सकते है उस जादुई अँगूठी को? इसलिए उसने फिर
दोबारा एक नई सभा को बुलायी। जिसमें उसने भूमंडल के सभी चूहों को आमंत्रित किया।
लेकिन उनमें से किसी को भी नहीं पता था कि वह जादुई अँगूठी कहां पर है? तभी अचानक वहां सभा में तीन चूहे जो बहुत दूर देश से आए। जिसमें से एक
अंधा, दूसरा लंगड़ा, तीसरा जुड़े कानों
वाला था।
हो, हो, हो! नये आने वाले चूहों ने कहा। हम सब दूर देश से आये हैं।
क्या तुम जानते हो? वह
जादुई अँगूठी कहां है? जिस अंगूठी में जिन्न रहता है। और वह
अपने मालिक के सभी आदेश का पालन करता है।
हो, हो, हो! हां हम जानते है। एक वृद्ध
जादूगर उस अँगूठी का मालिक है। जो अब उस अँगूठी को दिन में अपनी जेब में रखता है।
और रात्रि के समय में अपने मुँह में रख कर सोता है।
चूहों की रानी ने तत्काल आदेश दिया जाओ और उस
अँगूठी को उससे ले कर आवों। जितनी जल्दी हो सके उसको ले कर ही आना।
इस तरह वह तीनों चूहे एक साथ, उस
जादुई अँगूठी को लेने के लिए उस द्वीप से अपनी एक छोटी जहाज में निकल पड़े। । जब
वह उस देश में पहुँचे। जिस को वह वृद्ध जादूगर अपनी राजधानी बनाकर अपने महल में
रहता था। वहां समुद्र के किनारे पर अंधे चूहे को अपनी नाव की रखवाली के लिए छोड़
कर दूसरे दोनों चूहे, वहां से चल पड़े और रात्रि होने का
इंतजार कर लगे। वृद्ध जादूगर के महल में, जब रात्रि हो गई,
कुरूप वृद्ध जादूगर अपनी जादुई अँगूठी को अपने मुँह में डाल कर जब
सो गया। अपने बिस्तर पर जल्दी ही वह गहरी नींद में चला गया।
फिर उन दोनों छोटे जानवरों ने, आपस
में कहां अब हमें क्या करना चाहिए?
उनमें से जो जुड़े कानों वाला चूहा था, उसने
एक दीपक को देखा, जिसमें कागज के साथ तेल भरा हुआ था,
उसने अपनी पूंछ को उसमें अच्छी तरह से डुबों लिया, फिर कागज को तेल से भिगो लिया, और उसको ले जा कर उस
कुरूप जादूगर के नाक के उपर रख कर खड़ा हो गया।
जिसके कारण कुरूप जादूगर आछीः आछीः करके जोर
से छींका,
लेकिन वह अपनी गहरी नींद से जागा नहीं, छींक
के झटके के कारण उसके मुँह अँगूठी निकल कर बाहर गीर पड़ी। दूसरा लंगड़ा चूहा इसी
के इंतजार में ही था। जैसे ही जादुई अंगूठी बाहर गीरी, उसको
तुरंत झपट कर उठाया, और बिना किसी प्रकार की देरी के लेकर वह
दोनों चूहे अपनी नाव पर समुद्र के किनारे आ गये, और अपनी नाव
से चल दिया, अपने चूहों के देश के लिए वहां से निकल पड़े।
वृद्ध जादूगर ने अपने दुःख की कल्पना की जब
वह निंद से जागा,
और जब कहीं भी उसने उस जादुई अँगूठी को नहीं पाया तो।
लेकिन इसी समय तक तीनों चूहे अपने पुरस्कार
के साथ जहाज में यात्रा कर रहें थे, एक सहयोगी हवा उनका साथ
दे रही थी। जहां पर उनकी प्रिय रानी बड़ी बेसब्र के साथ उनका इंतजार कर रही थी।
स्वाभाविक रूप से वह आपस में बात करना प्रारंभ कर लगे। उस जादुई अँगूठी के बारें
में कि हम में से सबसे अधिक किस का योगदान है। इस जादुई अँगूठी को प्राप्त करने
में, इस बहस के साथ वह सब एक साथ चिल्लाने लगे।
जो चूहा अंधा था उसने कहा इसमें सबसे अधिक
मेरा योगदान है। क्योंकि मैंने किनारे पर रहकर नाव की रक्षा कि है। यदि मैं ऐसा
नहीं करता,
तो हमारी नाव बह कहीं और खुले समुद्र जा सकती थी।
इस पर जुड़े कानों वाले चूहे ने कहा वस्तुतः ऐसा
नहीं है। इसमें सबसे अधिक योग दान मेरा है, यदि मैं वह कारण ही नहीं
उपस्थित करता, तो जादुई अँगूठी उस कुरूप वृद्ध जादूगर के
मुँह से, कैसे बाहर निकलती?
इस पर तीसरे लगड़े चूहे ने कहा, नहीं
इसमें सबसे अधिक योगदान तो मेरा है। क्यों कि सही समय पर अँगूठी को ले कर तो मैं
ही वहां से भागा था।
और इस बहस में वह सब एक दूसरे के साथ हवा
में तेजी से बात कर रहे थे,
और तभी आह! जब उनकी लड़ाई बहुत अधिक बढ़ गई, जादुई
अँगूठी उनके हाथ से छिटक कर समुद्र में जा गीरी।
तब तीनों चूहे शांत हुए, और
अचानक मिलकर कहा हम अपनी रानी का सामना कैसे करेंगे? हमारे
दुर्भाग्य के कारण हमने जादुई अँगूठी को पा कर भी खो दिया। हमने अपने लोगों के साथ
अपराध किया है, अब हमारी संपूर्ण जाती का सर्वनाश हो जायेगा।
हम अपने देश ऐसे वापिस नहीं जायेंगे, आवो हम इस वीरान द्वीप
पर चलते हैं। और यहीं पर अपने इस दुःख पूर्ण जीवन को समाप्त कर देंगे। जल्दी ही
उनकी नाव उस द्वीप के किनारे पर पहुंच गई। और चूहे उस द्वीप उतर कर वहां वीरान
द्वीप पर से घूमने लगे।
अंधे चूहे ने जल्दी ही अपनी दो बहनो को वहां
वीरान रेगिस्तान द्वीप पर तलाश लिया। जो वहां समुद्र के किनारे पर मक्खों का शिकार
कर रहीं थी। उनके साथ वह भी निराश होकर घूम रही था, तभी उन को किनारे
कुछ मरी हुई मछलियाँ मिली, और वह सब उन को खाने लगे जब अंधे
चूहे को उन को खाने में कुछ बहुत कठोर महसूस हुआ। और वह चिल्लाने लगा, जिस को सुन कर दूसरे उसके दो मित्र चूहे दौड़ कर उसके पास आये।
और उन्होंने देखा वह जादुई अँगूठी ही थी, जिस
को पा कर वह आनंद से झुमने लगे। और तुरंत भाग कर उन्होंने अपनी नाव पर दुबारा
यात्रा करने के लिये चल पड़े। वे जल्दी ही उस द्वीप पर पहुंच गये, जिस पर चूहों का अधिकार था। यह वही समय था जब कप्तान अपनी सभी बिल्लियों
को चूहा खाने के लिए खोलने वाला ही था। तभी चूहों के अधिकारियों ने उस बहुमूल्य
जादुई अँगूठी को लेकर उस कप्तान के पास आये।
तत्काल युवा आदमी ने जादुई अँगूठी को आदेश
दिया,
अपने मालिक की आज्ञा का पालन करों। और मेरी जहाज को तत्काल पहले के
समान कर दो।
तुरंत जादुई अँगूठी के जिन्न ने अपना कार्य
प्रारंभ कर दिया। और वह पुराना जहाज तत्काल पुनः सोने के जहाज में बदल गया। और
उसके नाविक पहले के समान युवा बन गये और पतवार को संत निकोलस ने सम्हार लिया। और
जल्दी ही वह अपने देश की तरफ अपने जहाज से रवाना हो गये।
आह! जहाज के नाविक जब शीशे जैसी
लहरों पर बह रहें थे और आनंद से गान कर रहे थे।
अंत में जहाज अपने बंदरगाह पर पहुंच गया।
जहाज का कप्तान तुरंत जहाज से नीचे उतरा, और तुरंत भाग कर
उस तांत्रिक के महल में गया। जहां पर उसने देखा वह कुरूप वृद्ध जादूगर गहरी निद्रा
में सो रहा था। जिसने अपने अदिकारमें पहले ही राजकुमारी को कर लिया था, लेकिन जब राजकुमारी ने अपने पति को देखा, वह तुरंत
आकर उसके गले से चिपक गई। वृद्ध जादूगर वहां से भाग ने का प्रयास करने लगा। लेकिन
उसको दौड़ा कर पकड़ लिया गया। और मजबूत रसियों से बांध लिया गया।
अगले दिन सुबह कुरूप जादूगर को गंदे ख़च्चरों
की पूंछ से जकड़ कर बांध दिया गया। जिस पर टूटे हुए मूँगफली लदी थी। जैसा की
ख़च्चरों से काम लिया जाता था वहीं काम उस कुरूप जादूगर के करने का बनाया गया था।
7. राजकुमार ह्यसिंथ और प्रिय छोटी
राजकुमारी
बहुत समय पहले कि बात है, एक
राजा था, जो एक राज कुमारी से बहुत प्रेम करता थ, लेकिन राजकुमारी किसी से विवाह नहीं कर सकती थी, क्योंकि
वह किसी जादूगर के प्रेम फांस में गिरफ्त थी। इसलिए राजा ने इस समस्या के समाधान
के लिए एक परी के पास गया, और उसने उस परी पूछा की राजकुमारी
के प्रेम को पाने के लिए क्या करना चाहिए?
इस परी ने कहा-
तुम जानते हो कि राजकुमारी के पास एक बहुत
सुंदर बिल्ली है,
जिस को वह बहुत पसंद करती है। जो आदमी बड़ी चालाकी से उस बिल्ली की
पूंछ को कुचल देगा वहीं आदमी राजकुमारी से विवाह करने में समर्थ होगा।
राजा ने अपने आप से कहा की यह कार्य उसके
लिए बहुत कठिन नहीं है,
और वह परी के पास से अपने महल में चला आया, और
उसने निश्चय कि वह बिल्ली की पूंछ को पूंछ को कुचलने के बजाय उसकी पुरी पूंछ को
पीस कर पाउडर बना देगा।
आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं कि इस कार्य को
जल्दी करने के लिए ही,
वह राजा अगले दिन ही से राजकुमारी से मिलने के लिए उसके महल में लग –भग रोज जाने लगा, और वह उस बिल्ली की पूंछ को अपने
पैर से कुचलने के लिए मौका देखने लगा, इसलिए वह उस बिल्ली के
आस - पास घूमने लगा, राजा ने जैसे ही सोचा कि बिल्ली पूंछ
उसके पैर के नीचे आने वाली है, इसलिए अपना लंबा पग उठाते हुए,
उसने जमीन पर पटका, लेकिन वह बिल्ली बहुत अधिक
चालाक थी, इस लिए राजा का पैर उसकी पूंछ पर पड़े, इस पहले ही उस बिल्ली ने बड़ी फुर्ती से, लग-भग
बिजली की गति से, अपनी पूंछ को वहां से हटा लिया, और ऐसा ही राजा के साथ आठ दिनों तक होता रहा, राजा
जब भी उस बिल्ली के पूंछ को अपने पैर से दबाना चाहता, वह
अपनी पूंछ को किसी ना किसी प्रकार से बचा ही लेती थी। इस पर राजा ने स्वयं के मन
विचार किया की इसकी पूंछ निश्चय से विद्यूत के समान है, जो
एक क्षण के लिए भी अपने स्थान पर स्थित नहीं रहती है।
अंत में दिन, हालांकि राजा बहुत
अधिक भाग्यशाली था, क्योंकि जब वह राजकुमारी के महल में गया,
तो उसने देखा की बिल्ली अपनी पूंछ को लापरवाही के साथ फैला कर,
गहरी निद्रा में सो रही थी। इस प्रकार किसी प्रकार का विलंब किये
अपने पैर के भार से बिल्ली की पूंछ को कुचलने में सफल हो गया।
इसके साथ ही वह बिल्ली एक भयंकर गर्जना के
साथ तत्काल एक लंबे तगड़े आदमी में परिवर्तित हो गई, और वह आदमी अपनी
क्रोध से भरी लाल आँखों से राजा को देखने लगा।
और कहा की तुम्हारा विवाह राजकुमारी से होगा, क्योंकि
तुमने उसके प्रेम के बंधन को तोड़ने में समर्थ हो चुके हो, (अर्थात
अब उस राजकुमारी का मुझ बिल्ली के प्रती का जादुई आकर्षण था खत्म हो जायेगा।)
लेकिन मैं तुम्हारे इस अपराध का बदला लूगा। तुम्हारा एक पुत्र होगा, लेकिन जब उसको पता चलेगा की उसकी नाक आवश्यकता अधिक लंबी है, इसलिए वह अपने जीवन में कभी प्रसन्न नहीं रहेगा। मैंने अभी जो तुम से कहा
है यदि तुम किसी से कहेगो, उसी समय तत्काल तुम अदृश्य हो
जाओगे। जिससे कोई भी आदमी नाहीं तुम को देख पायेगा, और नाहिं
कोई तुम्हारे आवाज को ही सुन सकेगा। इसके बाद वह स्वयं गायब हो गया।
जब राजा ने उस भविष्य वक्ता की भविष्यवाणी
पर विचार किया,
तो वह भय से आतंकित हो गया। उसे भविष्यवाणी की इस भयावह घटना में
ऐसा कुछ नहीं मिला, जो उसके हँसने में सहायता कर सके।
राजा ने विचार किया, जैसा
की उस भविष्य वक्ता ने कहा है कि मेरे पुत्र की नाक बहुत बड़ी होगी, वह हमेशा उसको देख और उसको महसूस कर पायेगा। यदि वह अंधा अथवा बिना हाथों
के नहीं होगा तो।
लेकिन जैसे ही वह भविष्य वक्ता अदृश्य हुआ, राजा
ने अपना समय बिना किसी व्यर्थ चिंतन में व्यतीत किये, तत्काल
राजकुमारी से मिलने के लिए चला गया। अपनी उत्कंठा को शांत करने के लिए, जिसने तुरंत राजा से विवाह करने के लिए अपनी स्वीकृति को दे दिया। लेकिन
इस सब के बाद ज्यादा समय तक वह एक साथ विवाहित हो कर एक दंपति की तरह साथ नहीं रह
सके। अर्थात राजा की युद्ध के संग्राम में मृत्यु हो गई। जिसके कारण राजकुमारी के
जीवन में शोक ने अपना स्थान बना लिया, उनके पास उनके सहारे
लिए उनका एक पुत्र रह गया। जिस को लोग ह्यासिंथ कहते थे। छोटे राजकुमार ह्यासिंथ
की बड़ी-बड़ी नीली आँखें थी, जो संसार की सबसे सुन्दर आँखें
थी, और एक छोटा सा मधुर मुस्कान वाला मुख था, लेकिन ओह! उसकी नाक बहुत अधिक बड़ी थी, जिसने लग-भग
उसके आधे मुख को घेर रखा था। रानी ने जब अपने पुत्र की नाक को देखा तो वह भयंकर
दुःख से भाव व्यग्र हो गई। लेकिन उनकी प्रधान सेविका ने उन को आश्वस्त किया,
की यह बहुत बड़ी नाक नहीं है। जितनी बड़ी नाक रोमन के लोगों की होती
है। और आप इतिहास की किताबें उठा कर देख सकती हैं। जितने भी इस संसार में महान
नायक हुए हैं, उन सब की नाक बहुत बड़ी हुआ करती थी। इस
प्रकार से रानी अपनी प्रमुख सेविका की बात को सुन कर कुछ आश्वस्त हुई। इसके
अतिरिक्त वह अपने पुत्र से बहुत अधिक प्रेम भी करती थी, इसलिए
जब उसने अपने राजकुमार को दोबारा देखा तो, निश्चित रूप से
उसकी नाक उसे बहुत बड़ी नहीं दिखती थी।
राजकुमार की देख-भाल और पालन पोषण को बहुत
ध्यान से किया जा रहा था। जिसके कारण वह जल्दी ही बोलने लगा, उसको
बहुत सारी ऐसे भयानक और कुरूप लोगों कहानी को सुनाई गयी, जिनकी
नाक बहुत छोटी थी। राजकुमार को ऐसे किसी आदमी या औरत अथवा बच्चों को मिलने नहीं
दिया जाता था। जिनकी राजकुमार की नाक के समकक्ष या उससे मिलती जुलती नाक नहीं थी।
और रानी की जितने भी दरबारी थे उन सब को सख्त आज्ञा रानी की तरफ से था। कि वह अपने
बच्चों की नाक को खींच कर लंबा करे, और वह सब ऐसा अपने
बच्चों की नाक के साथ दिन में कई बार करते थे। जिससे उनकी नाक जल्दी राजकुमार के
समान लंबी हो जाये। लेकिन उन सब के प्रयास के बावजूद उनके बच्चों की नाक राज कुमार
की नाक के समान बड़ी नहीं हो पाई। राजकुमार की नाक से उनके बच्चों की नाक की कोई
समानता नहीं था।
जब राजकुमार बड़ा और काफी समझदार हो गया, तब
उसने संसार के इतिहास को पढ़ा, तो उसको ऐसा कहीं कोई
राजकुमार या राजकुमारी नहीं मिली, जिसके बारें में अकसर उसके
अध्यापक और गुरु के द्वारा कहानी में बताया गया था। अर्थात लंबी नाक वाले
महापुरुषों की कथा के बारें में उसको कुछ खास इतिहास में पढ़ने को नहीं मिला।
राजकुमार के कमरे की दीवाल पर बहुत लोगों की
तस्वीर टँगती थी,
उनमें सब की नाक बहुत बड़ी - बड़ी थी। और राजकुमार को इस प्रकार के
पालन पोषण के साथ समझाया गया था। कि जिनकी लंबी नाक होती है वह बहुत अधिक सुन्दर
और संसार को सौभाग्यशाली लोग होते हैं। उसके पास ऐसी कोई जानकारी नहीं थी, जिनकी नाक उसकी नाक से एक इंच से भी अधिक छोटी थी।
जब राजकुमार का 20 वां जन्मदिन बीत गया, तो
रानी ने विचार किया की यही समय है, जब राजकुमार का विवाह कर
देना चाहिए। इस लिए उसने आदेश दिया बहुत सारी राजकुमारीयों की तस्वीरों को लाया
जाये, राजकुमार को देखने के लिए। जिसमें से किसी को चून कर
राजकुमार का विवाह किया जा सके, बहुत सारी तस्वीर
राजकुमारीयों के लाया गया, जिसमें से एक चित्र उनकी प्रिय
छोटी राजकुमारी का भी चित्र था।
यह राजकुमारी एक महान राजा की पुत्री थी, और
भविष्य में वह बहुत से राज्यों की स्वामिनी बनने वाली थी। लेकिन राजकुमार ह्यासिंथ
के साथ ऐसा नहीं था। वह अपना जो कुछ था, वह सब कुछ उस
राजकुमारी के साथ बाँटना चाहता था। उसकी सुंदरता को देख कर, वह
अत्यधिक दीवाना हो गया था। जिसके बारें राजकुमार सोचता था कि उसकी सुन्दरता
अतुलनीय है, जिसकी छोटी सी नाक उसके चेहरे में चार लगा रही
थी। जो उसके चेहरे में सबसे सुन्दर वस्तु थी। लेकिन यह और दूसरे दरबारी के लिए
मजाकिया लग रहा था। क्योंकि उन सब को ऐसा संस्कारित किया गया था, जब भी वह किसी छोटी नाक वाले स्त्री पुरुष को देखते, उन सब को बिल्कुल नहीं भाता था। ऐसा ही उन्होंने किया जब उन को उस
राजकुमारी के बारें में विचार करने का समय दिया गया था। लेकिन यह उन्होंने
राजकुमार के सामने प्रकट नहीं किया। क्योंकि राजकुमार को राजकुमारी के चित्र में
किसी प्रकार का कोई मजाकिया तत्व नहीं दीख रहा था, जिससे की
वह उसकी खिल्ली उड़ाये। वास्तव में दरबार के दो दरबारीयों को, राजकुमारी की छोटी नाक के अपमान करने की गुस्ताखी में, बाहर पहले ही निकाला जा चुका था।
जिसके कारण दूसरे दरबारी इसको अपने लिये
चेतावनी की तरह से समझते थे, इसलिए वह कुछ भी राजकुमारी के बारें
में बोलने से पहले दो बार विचार अवश्य करते थे। उन दरबारीयों के मध्य में से एक दरबारी
ने कहा यह बिल्कुल सत्य है। कोई भी आदमी तब तक बहुमूल्य नहीं होता, जब तक उसके पास एक लंबी नाक ना हो। लेकिन एक औरत की सुंदरता पुरुष से
भिन्न बात है, रोमन साहित्य में ऐसे बहुत से दृष्टांत मिलते
है जिन को एक बुद्धिमान ही मनुष्य ही समझ सकता है, और कुछ
बहुत पुरानी भारतीय पांडु लिपि में आज भी देखा जा सकता है की पहले की सुन्दरीयों
की नाक बहुत छोटी ही हुआ करती थी।
इस शुभ समाचार को सुन कर राजकुमार ह्यासिंथ बहुत अधिक प्रसन्न हुआ, और
उसने एक शानदार उपहार राजकुमारी के लिए तैयार करवाया, और
तुरंत अपना एक प्रतिनिधित्व करने वाले संदेशवाहक को राजकुमारी के पास अपने विवाह
का प्रस्ताव लेकर भेज दिया। जिस को जान कर राजकुमारी के पिता ने अपनी सहमति दे दी।
राजकुमार ह्यासिंथ राजकुमारी से मिलने के लिए अत्यधिक उतावला पन के साथ बेक़रार
था। जिसके लिए वह अपने कुछ साथी के साथ राजकुमारी के यहां उससे मिलने के लिए गया।
क्योंकि वह राजकुमारी के हाथों को शादी से पहले ही एक बार चूमना चाहता था। वह
राजकुमारी के हाथों छुआ, उससे पहले एक भयावह घटना घटती है।
जब वह दोनों एक साथ खड़े होते हैं, तभी वहां बिजली के कड़कने
से चारों तरफ प्रकाश फैलता हैं, और राजकुमारी वहां से अपने
को लोगों के मध्य में से भाग कर वहां से अंदर अपने कमरे में चली जाती है।
जिससे राजकुमार ह्यासिंथ अपने आप को
शर्मिंदित महसूस करता है,
और उसका दिल टूट जाता है, जिससे वह वहां से वह
तत्काल अपने सभी साथी को छोड़ कर, अपनी राजधानी के लिए वापिस
निकल पड़ता है। और अपने सभी दरबारीयों को उसने आदेश दिया, कि
कोई भी उसके पीछे नहीं आयेगा। अपने घोड़े पर उदासी के साथ सवार हुआ, और जंगल के रास्ते पर घोड़े को दौड़ा दिया।
इस प्रकार से चलते हुए काफी लंबे समय में
राजकुमार एक बड़े मैदान में पहुंचा, उसने पूरे दिन भर यात्रा
किया था। लेकिन रास्ते में उसे एक भी मकान दिखाई नहीं दिया था। और अब भूख-प्यास के
कारण घोड़ा और घुड़सवार दोनों बुरी तरह से थक चुके थे। और अब अंधेरा का प्रारंभ
होना शुरु हो गया था। राजकुमार ह्यासिंथ को दुर प्रकाश की किरण दिखाई दी, जो किसी बड़े गुफे के अंदर से आ रही थी।
वह उसी तरफ अपने घोड़े को दौड़ाया, और
कुछ देर में वह उस गुफा के सामने पहुंच गया। जहां पर उसको एक छोटी सी वृद्ध औरत
दिखाई दी, जो दिखने में सैकड़ों साल की लग रही थी।
उसने अपने चश्मे को लगाकर राजकुमार ह्यासिंथ
को देखा,
उसको अपना चश्मा अपनी नाक पर रखने में लंबा समय लग गया। क्योंकि
उसकी नाक बहुत ही छोटी थी।
वह औरत वहां गुफा में विद्यमान देवी की
मंदिर की सेविका थी,
जिसने राजकुमार को बहुत आश्चर्य भरी दृष्टि से देखा, और बहुत तेज से ठहाके मार कर हँसने लगी, और उसी पल
उसने कहा तुम्हारी नाक कितनी अधिक बड़ी और मजाकिया है।
इस पर राजकुमार ह्यासिंथ ने कहा तुम्हारे
जितनी मजाकिया नहीं है,
यद्यपि श्रीमती मैं आपसे क्षमा चाहता हूं आप मेरी नाक के बारें में
चिंतन मत करें, वह जैसी भी है मेरे लिए अच्छी है। कृपया आप
कुछ मुझे और मेरे बेचारे घोड़े के लिए खाने को दे दें।
पूरे दिल से दूंगी, उस
वृद्ध औरत ने कहा, यद्यपि तुम्हारी नाक तुम्हें बहुत अधिक
हास्य पद बना रही है, फिर भी तुम मेरे प्रिय मित्र के पुत्र
हो, मैं तुम्हारे पिता से बहुत अधिक प्रेम करती थी जैसे वह
मेरा भाई हो। अब उनके पास एक बहुत सुन्दर बड़ी नाक वाला राजकुमार है।
इस पर राजकुमार ह्यासिंथ ने कहा आप से
प्रार्थना है कि आप मेरी त्रुटियों के बारें में मुझ से बात ना करें।
इस पर वृद्ध औरत ने कहा नहीं यह तुम्हारी
त्रुटी नहीं है,
यह बिल्कुल विचित्र है, और अपने स्थान पर बहुत
अधिक बड़ी है, लेकिन कोई बात नहीं, कोई
भी मनुष्य हमारे लिए बहुमूल्य है, भले ही उसकी नाक बहुत बड़ी
हो, मैं तुम्हें बता रही थी। कि मैं तुम्हारे पिता की मित्र
थी। बहुत समय पहले वह यहां अकसर देवी जी का दर्शन करने के लिए आते थे, तो मुझ से भी मिलते थे। और तुम्हें पता होगा, कि उस
समय मैं बहुत सुन्दर हुआ करती थी। अंत में वह कहते थे, कि
मैं आपसे और अधिक वार्तालाप करना चाहता
हूं, ऐसी ही उन्होंने मुझ से कहा था। जब वह अंतिम बार
मुझ से मिले थे।
राजकुमार ह्यासिंथ ने कहा वस्तुतः जब मैं
नशे में रहता हूं। तो मुझे यह बात चित बहुत अधिक रुचिकर लगती है, फिर
भी आप से प्रार्थना करता हूं, की आप मेरे बारे में विचार
करें, कि मैं पिछले दो दिनों से कुछ भी नहीं खाया है।
बेचारे लड़के, क्या
तुम सच में ऐसा कह रहे हो? ठीक है उस वृद्ध औरत ने कहा,
मैं भूल गई थी, अंदर आओं मैं तुम्हें रात्रि
में खाने के लिए कुछ देती हूं, और जब तुम खाना खा रहे होंगे,
तो मैं अपनी कहानी कुछ ही शब्दों में बताउँगी। क्योंकि मैं किसी
वार्तालाप को अधूरे में समाप्त करना पसंद नहीं करती हूं। बहुत बड़ी ज़बान बुरी बात
है, किसी कि बहुत बड़ी नाक की तुलना में, और मुझे याद है, जब मैं युवा हुआ करती थी, मुझे बहुत अधिक पसंद किया जाता था। क्योंकि मैं बहुत अधिक वार्तालाप नहीं
करती थी।
लोग ऐसा रानी से बताते थे, जो
मेरी मां थी, यह बहुत समय पहले की बात है, क्योंकि तुम देख रहे हो इस समय मैं जो भी हूं। वह इसलिए है क्योंकि मेरे
पिता एक बहुत बड़े राजा थे।
राजकुमार ह्यासिंथ ने उस वृद्ध औरत की बात
को बीच में ही काटते हुए कहा, क्या आप उन को खाने के लिए देती थी जब वह भूखा हुआ करते थे।
हां निश्चित रूप से उस वृद्ध औरत ने कहा, और
तुम को अब सीधा भोजन चाहिए। मैं अभी तुम से केवल एक बात करना चाहती हूं।
लेकिन मैं वास्तव में कुछ भी सुनना नहीं
चाहता हूं,
जब तक की मैं कुछ खा नहीं लेता, चिल्लाते हुए
राजकुमार ह्यासिंथ ने कहा, जो बिल्कुल क्रोधित हो रहा था,
लेकिन फिर उसको याद आया, की यदि उसको उस वृद्ध
औरत से सहायता चाहिए, तो उसके साथ विनम्रता से व्यवहार करना
होगा। इसलिए आगे उसने अपनी बात को सम्हालते हुए कहा, मैं
जानता हूं की आपकी बातों को सुनने में मुझे बहुत अधिक आनंद आ रहा है, लेकिन मेरे घोड़े का क्या होगा? जो सुन नहीं सकता है,
उसको खाने के लिए अवश्य चाहिए।
इस टिप्पणी को सुन कर वह वृद्ध औरत बहुत
अधिक प्रसन्न हुई,
और अपनी दासी सेविका को बुलाते हुए उससे भोजन तैयार करने के लिए
कहा।
आगे उसने कहा की एक भी मिनट इंतजार नहीं करना
पड़ेगा,
क्योंकि आप बहुत अधिक व्यवहारिक है, इसके बजाय
की आपकी नाक बहुत बड़ी है, फिर भी आप बहुत अधिक मित्रवत्
हैं।
राजकुमार ने अपने आप से कहा, यह
वृद्ध औरत कैसे मेरे नाक के बारें में बात करना बंद करेगी? जैसे
यह कोई महामारी है, जिसके बारे में हमेशा सोचती रहती है,
कि मेरी किसी वस्तु की अधिकता दूसरे की कमज़ोरी होगी। अगर मैं इतना
अधिक भूखा नहीं होता तो, मैं इसको इसकी सारी बातों का बहुत
अच्छा उत्तर देता, जो यह सोचती है कि वह बहुत कम बात करती
है। कितने मूर्ख लोग इस संसार में विद्यमान है, जिन को अपनी
कमी दिखाई नहीं देती है। जो अपने को राजकुमारी होने की बात कहती है, जिसके अंदर भयंकर चापलूसी भरी है, और यह ऐसा विश्वास
करती है, की यह काफी व्यवहारिक और उदार वादी है।
इसके बाद सेविका ने खाने को उनके सामने तख्त
पर लगा दिया,
और फिर उस वृद्ध औरत ने हज़ारों प्रकार के प्रश्न किये, केवल अपनी संतुष्टि के लिए, कि उसकी बात को सुना जा
रहा है, जिस को राजकुमार ह्यासिंथ बड़े रस के साथ सुनता रहा।
विशेष रूप से राजकुमार ने देखा वृद्ध औरत की एक सेविका है, जो
अपनी मालकिन की बुद्धिमत्ता के बारे में बिना बिचारे किए, वह
हमेशा उसकी प्रशंसा से वंचित रहा करती थी।
ठीक ही है! उसने अपने मन में सोचा, जब
वह अपना रात्रि का भोजन कर रहा था, मैं यहां आकर अपने आप को
बहुत अधिक प्रसन्न महसूस कर रहा था, यह मुझे केवल यह दिखाना
चाहती है। कि वह कितनी अधिक समझदार है?
इस प्रकार की चापलूसी भरी बातों को अपने जीवन में उसने कभी
नहीं सुना था। लोग हमारे चेहरे के सामने हमारा क्षणिक सम्मान करते हैं, बिना किसी प्रकार के शर्मिंदगी के, और इसलिए वह
हमारी त्रुटि को छिपाते हैं, और उसको हमारे सद्गुण की तरह से
प्रस्तुत करते हैं। मेरे साथ भी लग-भग ऐसा ही हुआ, मैं अपनी
कमज़ोरी को जानता हूं, ऐसा मैं आशा करता हूं।
बेचारा राजकुमार ह्यासिंथ! वह वास्तव में
विश्वास नहीं करता था,
जैसा कि उस वृद्ध औरत ने उसके बारे में उससे कहा था। और उसे इस बात
का अंदाजा नहीं था, कि जिन लोगों ने उसकी नाक की प्रशंसा की
थी, वे उस पर हंस रहे थे, जैसे उस
वृद्ध औरत की नौकरानी उस पर हंस रही थी,
क्योंकि राजकुमार ने उस वृद्ध औरत की जानकारी के बिना ऐसा
करते हुए उसे देखा था।
हालांकि, उसने कुछ नहीं कहा,
और वर्तमान में, जब वह खाने में मग्न थे,
तो वृद्ध औरत ने कहा-
"मेरे प्यारे राजकुमार, हो
सकता है कि मैं आपसे कुछ और आगे बढ़ने की विनति करुँ, आपकी
नाक के बारें में जो एक ऐसी छाया डाल रही है जिसके कारण मैं वास्तव में यह न देख
पा रहीं हूं, कि मेरे पास मेरी थाली में क्या है? आह! धन्यवाद! अब हम आपके पिता के बारे में बताते हैं। जब मैं उनके दरबार में
गयी थी, तब वह केवल एक छोटे से लड़के थे, लेकिन वह चालीस साल पहले की बात है, और मैं तब से इस
उजाड़ जगह पर हूं। मुझे बताओ कि आजकल क्या चल रहा है? क्या
महिलाएं मनोरंजन की शौकीन हैं? मेरे समय में उन्हें हर दिन
पार्टियों, सिनेमा घरों, गेंदों के
खेलने के साथर सैर करते हुए देखा जाता था। प्रिय मुझे बताओ! राजकुमार आपके पास एक
लंबी नाक है! मुझे इसकी आदत नहीं है! "
"वास्तव
में,
श्रीमती," राजकुमार ने कहा,
"मैं चाहता हूं कि आप मेरी नाक का उल्लेख करना छोड़ दें। यह
आपके लिए कोई मायने नहीं रख सकता है कि यह ऐसा है। मैं इससे काफी संतुष्ट हूं,
और इसे छोटा करने की कोई इच्छा नहीं है। जो मुझे ईश्वर ने दिया है
वह ठीक है। "
अब आप मुझ से नाराज़ हैं, मेरे
बेचारे राजकुमार" वृद्ध औरत ने कहा, "और मैं आपको
विश्वास दिलाती हूं कि मेरा आपका नाराज़ करने का उद्देश्य नहीं था, इसके विपरीत, मैंने आपकी सेवा करने की कामना की।
हालांकि, मैं वास्तव में नहीं कर सकती। अपनी नाक को मेरे लिए
एक झटका देने में मदद करें, मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं
कहने की कोशिश करूंगी। मैं यह भी सोचने की कोशिश करूंगी कि आपकी एक साधारण नाक
हैं। सच्चाई बताने के लिए, यह उचित होगा। "
राजकुमार, जो अब भूखा नहीं
था, अपनी नाक के बारे में वृद्ध औरत की लगातार टिप्पणियों पर
इतना अधीर हो गया, कि आखिरकार उसने खुद को अपने घोड़े पर
फेंक दिया। और वहां से जल्दबाजी में भाग गया। लेकिन जब भी वह अपनी यात्रा में
निकलता था, तो उसे लगता कि लोग पागल हैं, क्योंकि वे सभी उनकी नाक के बारे में ही बात करते थे, और फिर भी वह खुद स्वीकार नहीं कर पाया, कि उसकी नाक
बहुत लंबी है, क्योंकि उसने इस अपनी नाक के बारे में हमेशा
अपने लोगों से यहीं सुना था की वह बहुत सुन्दर है।
वृद्ध औरत जब मंदिर में उपस्थित हुई, तो
उसे देवी से प्रेरणा मिली की राजकुमार ह्यासिंथ को प्रसन्न किया जाये, क्योंकि उसका पिता देवी जी का भक्त था, और यह
राजकुमार उसके मित्र भाई का पुत्र है,। इसलिए देवी जी ने एक
योजना बनाई, और उसने छोटी राजकुमारी को एक बड़े पारदर्शी सीसे
के कीले में बंद कर दिया, और इस कीले को राजकुमार के पहुंच
के अंदर स्थापित कर दिया। जब वह राजकुमारी को दोबारा देखा, उसको
बहुत अधिक आनंद मिला। उसको प्राप्त करने के लिए प्रयास करने लगा, किसी भी प्रकार से वह राजकुमारी को उसकी कैद से मुक्त कराना चाहता था। और
जब वह हर प्रकार के प्रयास को करके हार गया। इस निराशा की स्थिति में वह उसके करीब
जा कर उससे बात करना चाहता था। और उसको छूना चाहता था की वह उसका ही एक भाग है,
जिसके लिए वह उसके पास गया, और अपने हाथों को
फैला कर उसका चुंबन लेना चाहता था। लेकिन उसकी नाक बहुत बड़ी अड़चन बन कर खड़ी हो
गई, जिससे उसको पहली बार यह समझ में आया की उसकी नाक सच में
बहुत बड़ी है, जिसके कारण वह अपने होठों को अपनी प्रिय छोटी
राजकुमारी के ओंठों से सटा नहीं सकता है।
तब उसने चिल्ला कर कहा सच में मेरी नाक
बहुत बड़ी है।
तत्काल पारदर्शी कीले में बना जेल एक
झटके के साथ हज़ारों सूक्ष्म कड़ों में विभक्त होकर आकाश में विलीन हो गया, और
वृद्ध औरत ने छोटी राजकुमारी को अपनी गोद में उठा लिया। और राजकुमार से कहा-
अब तुमने मेरी बातों को स्वीकार कर लिया
है,
की तुम्हारी नाक वास्तव में बहुत बड़ी है, जिसके
बारें में मैं बहुत बात कर रही थी। तुम अपने समान असाधारण नाक के समान और किसी और
को नहीं पाओगे, चाहे तुम सैंकड़ों सालों तक उसकी तलाश करो।
तुम ने देखा की कैसे अपना स्वयं का सम्मान करने से?, हमें
अपनी मन, शरीर की कमी दिखाई देती है, हमारा
तर्क हमें हमारी कमी को देखने में रुकावट खड़ी करता है। हम सब तब तक उसको अस्वीकार
करते है, जब तक हम उन को अपने किसी रुचिकर कार्य के मध्य में
नहीं देख लेते हैं।
अब राजकुमार की नाक देवी जी के आशीर्वाद
के कारण सामान्य मानव के समान हो गई, और उसने अपनी अपने जीवन
में एक नई शिक्षा को प्राप्त किया, जिस को वह कभी भी नहीं
भूलना चाहेगा। इसके बाद उसने अपनी प्रिय छोटी राजकुमारी से विवाह कर लिया, और प्रसन्नता पूर्वक अपने जीवन को व्यतीत करने लगा।
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