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जीवन क्या है, साक्षात मृत्यु का तांडव है,

  



जीवन क्या है, साक्षात मृत्यु का तांडव है,

जीवन में हर तरफ असफलता बीमारी, बेबसी और लाचारी है, यहां संसार में कौन प्रसन्न है, कहने के लिए लोगों के पास सब कुछ है, लेकिन सब झुठा और छलावा से अधिक कुछ भी नहीं है, लोग जीने के लिए रोज तिल – तिल कर मर रहें हैं, और झुठा लीप पोत कर दिखावा कर रहें हैं, की उनके जीवन में बहुत अधिक प्रसन्नता और सुख है, यद्यपि सत्य तो यह की सभी लोग अपने जीवन के संघर्ष से बुरी तरह से परेशान है, कोई परिवार के नाम पर कोई समाज क नाम पर और कोई देश के नाम पर और कोई विश्व की समस्या को लेकर परेशान है, सभी लोग समाधान कर रहें हैं, और समाधान आज तक किसी का भी नहीं हो सका है, जीवन में समस्या रोज नई – नई उत्पन्न हो रही है। समस्या को ही जीवन लोगों ने बना रखा है, कोई नशे में अपने जीवन को व्यतीत कर रहा है, तो कोई मांस का सेवन कर रहा है तो कोई अपनी काम वासना की तृप्ति के लिए वेश्याओं के पीछे लगा है, और औरतें अपनी वेश्या वृत्ति को ही अपना हथियार बना लिया है। उसको नाम भले ही बहुत सुन्दर दे दिया है, घूमा फिरा कर सभी को पैसे के संग्रह और अपनी काम वासना की तृप्ति  करना है उस काम वासना का की तृप्ति के लिए तरह – तरह के मादक द्रव्य और औषधियों का सेवन कर रहें हैं। संसार का नग्न सत्य कोई देखना ही नहीं चाहता है, संसार का सत्य जो एक बार भी ध्यान से देख लेगा वह संसार के माया से मुक्त हो जाएगा। यहां पर लोगों के पास आँखें हैं, लेकिन उससे किसी को संसार का सत्य, मृत्यु, पीड़ा, दुःख, लोगों की कराहती आवाज नहीं सुनाई देती है, यहां लोग हर वस्तु में अपनी वासना की दृष्टि से देखते हैं। यहां पर कोई भी सफल नहीं है, सफलता का जो माप दण्ड बनाया गया है, वह गलत है,  सफलता का मतलब जीवन में सुख और शांति है, लेकिन किसी के जीवन में ना ही सुख और ना ही शांति ही विद्यमान हैं। यह सब कुछ झूठा और छल कपट से पूर्ण जगत का सारा संबंध है। वास्तव में कोई किसी को सुखी देखना ही नहीं चाहता है, लोगों को केवल मृत्यु की ही भाषा समझ में आती है लेकिन उसको नाम जीवन का दे रखा है। लोगों को खुद ही नहीं पता है कि वह क्या कर रहें हैं। फिर भी वह दूसरों को उपदेश दे रहें हैं, स्वयं के जीवन में किसी प्रकार का कोई सद्गुण और मर्यादा या धर्म का नामों निशान नहीं हैं। लेकिन वह दूसरों धर्म की शिक्षा दे रहें हैं। जीवन में मनुष्य को अपनी आत्मा का साक्षात्कार कार नहीं हो रहा है अपनी स्वयं की आत्मा ही दर्द से कराह रही है, तो वह दूसरे की आत्मा के दर्द को कैसे महसूस कर सकते हैं, लोगों के दर्द को तो वहीं देख सकता है जिसने अपनी आत्मा में उठने वाले दर्द के सैलाब को देखा होगा, लोगों को अपनी ही आत्मा में दर्द से भरा हुआ समुद्र नहीं दिखाई  पड़ रहा है। ऐसा क्यों हो रहा क्या आप ने कभी इस विषय पर विचार किया है, आप भी कैसे विचार कर सकते हैं, क्योंकि आपके पास भी इस विषय पर विचार करने का समय कहां हैं। आप अपने जीवन की चक्की में किसी कोल्हु के बैल की तरह चक्कर पर चक्कर लगाए जा रहें हैं, आपको भी अपने काम से फुर्सत कहां है, कि आप मानवता सज्जनता सदाचार अध्यात्म ईश्वर जीव और प्रकृति के गुणों क बारे में विचार करें, आप कौन है, कहां से आये है, आपका क्या धर्म है, आप का क्या कर्म है, आपका कोई ऐसा भी कार्य है जिससे आपकी मानव जाती का उत्थान संभव हो सकता है आपका मानव के साथ भी कोई रिश्ता और संबंध है, आपको कभी थोड़ा समय अपने जीवन के व्यस्त दिनचर्या में से निकाल कर कुछ ऐसा कार्य करना चाहिए या फिर जो ऐसा कार्य कर रहे हैं, ऋषि महर्षि साधु संत फकीर हैं उनके कार्य में कुछ यथा शक्ति तन मन धन से कुछ सहयोग कर सकें, ऐसा भी आप नहीं कर सकते, क्योंकि आपको ऐसी शिक्षा दी गई है, जिससे आपको ऐसे महापुरुषों से ईर्ष्या और द्रोह के साथ आप ऐसे पुरुषों को ढोंगी, लंपट, चोर डकैत भिखारी कामचोर समझते हैं, और वास्तव में जो चोर, डकैत लुटेरे और लंपट ढोंगी हैं। उनको साधु संत फकीर समझते हैं, क्योंकि यहीं आपको आपके नायकों और गुरुओं ने सिखाया है, क्योंकि आपने फिल्मों में देखा है टीवी में देखा है, और ऐसी किताबों में पढ़ा है। आपका हृदय तो केवल खून को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने का कार्य करने की एक मशीन से अधिक नहीं है। आपको अपने हृदय की दृष्टि से कुछ भी दिखाई ही नहीं पड़ता है, इसलिए ही मैं कहता हूं की लोग आँख रहते हुए भी किसी अंधे के समान कार्य को करते हैं ,और जिनके पास आँख है उनको लोग अंधा कहने से भी कभी नहीं चुकते हैं।  क्योंकि सत्य और असत्य का निर्णय करने के लिए जिस विवेक की जरूरत पड़ती है वह विवेक तो कही किसी दुकान में मिलता नहीं है जिसको आप खरीद सकें। आपको तो इस प्रकार स प्रशिक्षित किया गया की सब कुछ धन स खरीदा जा सकता है और जिसके पास धन है उसके पास सब कुछ है, इसलिए आप अपना सब कुछ बेच कर केवल धन का बड़ा अंबार खड़ा करने के लिए लोभ ग्रस्त हैं। भौतिक संपदा में ही आपको अपनी आत्मा मन दिल दिमाग हृदय को परम सुख दिखाई देता है। आपने कभी भी उनको ध्यान से नहीं देखा हैं जिनके पास धन का बहुत बड़ा अंबार है, उनकी आत्मा अंदर से मर चुकी है, वह सब साक्षात खतरनाक भयानक हिंसक पशु के भी बाप बन चुके हैं, क्योंकि सत्य में यह सब मानव के खून चुसने वाले खटमल और मच्छर से अधिक नहीं हैं। परमेश्वर ने मानव जीवन दिया है, ईश्वर के गुणों और ऐश्वर्य को धारण करने के लिए, जिससे मानवता को उस शिखर पर पहुंचाया जा सके, जहां पर स्वयं कालों का काल महाकाल बिराजमान रहते हैं। लेकिन इन सब ने मिल कर ऐसी दुनिया का निर्माण किया, जहां पर कामुकता का साम्राज्य स्थापित हो चुका है, दुनिया में हर तरफ काम क्रोध, लोभ, मोह, शोक, भय, अनाचार, अत्याचार, शोषण, हिंसा,  असत्य, छल, कपट, झूठ, व्यभिचारिता, चोरी, चमारी, लूट, पाट, डकैती, नशाखोरी, मांसाहार अश्लीलता का नंगा नाच चल रहा है। क्या यह मृत्यु का तांडव से कम है। इस सब के बाद कोरोना का कहर जो लोगों को पंगु बना दे रहा है, एक तरफ रोटी लोगों की पहुंच से दूर हो रही है, और मृत्यु दवा के नशे में झूम रही है। क्या इसी दुनिया में अमर होने की बात हमारे महापुरुषों ने की है, जरूर इस विषय पर विचार करने की जरूरत है, इस सब के बाद सिधा - सिधा खाने - पीने की हर वस्तु में जहर को मिलाया जा रहा है, यह दुनिया किसी प्रकार से रहने योग्य एक सच्चे मानवता के प्रेमी के लिए उपयोगी सिद्ध नहीं हो सकती है, यहां दानवता का ही बोल बाला है। लोगों को लोगों के जीवन से प्रेम नहीं हैं लोगों को लोगों की मृत्यु से प्रेम है, इसलिए ही इसको मृत्युलोक कहते हैं, यहां सब कुछ मर ही रहा है और नंगा मृत्यु का नाच हो रहा है। और यदि आप इसमें भाग नहीं लेते, तो लोग आप को हिजड़ा और नपुंसक कहते हैं, जबकि आप अपने आप को मर्द समझते हैं जो अपने दर्द से ही मर रहा है वहीं मर्द है। ऐसे मर्द से हम क्या आशा कर सकते हैं की यहां जगत में दर्द से कराहती मानवता का वह किसी प्रकार से सहयोग कर सकता है। जो अपनी ही सहायता करने में असमर्थ और अयोग्य सिद्ध हो चुका है। ऐसा क्यों हुआ इस पर विचार करने से शायद  इस समस्या का समाधान कुछ हद तक निकल सके।

मनोज पाण्डेय अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान 

What is life, the orgy of death is real,
Failure everywhere in life is disease, helplessness and helplessness, here people have everything to say who is happy in the world, but everything is nothing more than falsehood and deceit, people do mole every day to live dying, and pretending that there is a lot of happiness and happiness in their life, although the truth is that all the people are badly troubled by the struggle of their life, some society in the name of family In the name of one and some in the name of the country and some are worried about the problem of the world, all the people are solving, and till date no one has been able to solve the problem, new problems are arising in life every day. The problem has been made by people, some are living their lives intoxicated, some are consuming meat, some are after prostitutes for the fulfillment of their lust, and women indulge in their prostitution. He has made his own weapon. Even though he has been given a very beautiful name, by roaming around, everyone has to collect money and satisfy his sex desire, for the satisfaction of that sex lust, he is consuming different types of intoxicants and medicines. No one wants to see the naked truth of the world, whoever sees the truth of the world carefully even once, will be freed from the illusion of the world. Here people have eyes, but from them one does not hear the truth of the world, death, pain, sorrow, groaning of people, here people look at everything with their lustful eyes. No one is successful here, the measure of success that has been made is wrong, success means happiness and peace in life, but neither happiness nor peace exists in anyone's life. All this is all related to the whole world with falsehood and deceit. In fact, no one wants to see anyone happy, people understand only the language of death, but have given it the name of life. People themselves don't know what they are doing. Still, he is preaching to others, there is no trace of any virtue and dignity or religion in his own life. But he is teaching other religions. In life, man is not getting the experience of his own soul, his own soul is moaning with pain, so how can he feel the pain of other's soul, he can only see the pain of people who have lost his soul. I must have seen the flood of pain arising, people do not see the sea full of pain in their own soul. Why is this happening, have you ever thought about this topic, how can you also think, because where do you have the time to think about this topic. You are spinning in the wheel of your life like a bullock of a crusher, where do you have the time to do your work, that you think about the qualities of humanity, gentleness, virtue, spirituality, God, soul and nature, who are you? Where have you come from, what is your religion, what is your karma, do you have any such work, which can be possible for the upliftment of your human race, you also have a relationship and relationship with human, you have to spend some time in your life. You should do some such work by taking it out of the busy routine or else, the sage Maharishi, who is a saintly saint, can cooperate in their work with some amount of body, mind and wealth, you cannot do this, because You have been given such an education that, with envy and scorn from such great men, you consider such men as hypocrites, lusts, thieves, dacoits, beggars, workmen, and in fact who are thieves, dacoits, robbers and lustful hypocrites. They are considered by sages and saints, because this is where you have been taught by your heroes and gurus, because you have seen in films, seen in TV, and read in such books. Your heart is not more than just a machine for carrying blood from one place to another. You do not see anything from the point of view of your heart, that's why I say that people do work like a blind person even with eyes, and people who have eyes never fail to call them blind. Because the discretion that is needed to decide the truth and the untruth is not found in any shop, which you can buy. You have been trained in such a way that everything can be bought with money and whoever has money has everything, so you are tempted to sell everything you have just to build a big pile of money. It is in material wealth that you see the ultimate happiness in your soul, mind, heart and heart. You have never looked carefully at those who have a huge wealth of wealth, their soul is dead from inside, they have become the father of all the dangerous terrifying predatory animals, because in truth they are all human blood suckers. Bedbugs and mosquitoes are no more. The Supreme Lord has given human life, to imbibe the qualities and opulences of God, so that humanity can be taken to the summit, where the Kaal of Kaal himself resides. But all these together have created a world where the kingdom of sexuality has been established, anger, greed, attachment, grief, fear, incest, tyranny, exploitation, violence, untruth, deceit, deceit everywhere in the world. The orgy of lying, adultery, theft, pecking, plundering, plundering, dacoity, drug addiction, non-vegetarian obscenity is going on. Is it less than the orgy of death? After all this the havoc of Corona which is paralyzing people, on one side the bread of the people is getting out of reach, and death is looming over the drug. Have our great men talked about being immortal in this world, definitely there is a need to think about this matter, after all this, poison is being mixed in every food and drink, this world is somehow The habitable may not prove useful to the lover of a true humanity, here only the demonic is in sway. People do not love people's lives, people love people's death, that's why it is called Mrityutloka, here everything is dying and dancing of naked death is taking place. And if you don't participate in it, then people call you eunuch and impotent, while you think of yourself as a man who is dying from his own pain, there is a man. What can we expect from such a man that here in the world he can help the suffering humanity in some way. Who has proved incapable and unfit to help himself. Thinking about why this happened might solve this problem to some extent. 

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