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ज्ञानवर्धक कथाएं भाग -33

 

ज्ञानवर्धक कथाएं भाग -33

 

👉 साधना की शक्ति

 

वर्षों पुरानी बात है। एक राज्य में महान योद्धा रहता था। कभी किसी से नहीं हारा था। बूढ़ा हो चला था, लेकिन तब भी किसी को भी हराने का माद्दा रखता था। चारों दिशाओं में उसकी ख्याति थी। उससे देश-विदेश के कई युवा युद्ध कौशल का प्रशिक्षण लेने आते थे।

 

एक दिन एक कुख्यात युवा लड़ाका उसके गांव आया। वह उस महान योद्धा को हराने का संकल्प लेकर आया था, ताकि ऐसा करने वाला पहला व्यक्ति बन सके। बेमिसाल ताकतवर होने के साथ ही उसकी खूबी दुश्मन की कमजोरी पहचानने और उसका फायदा उठाने में महारत थी। वह दुश्मन के पहले वार का इंतजार करता। इससे वह उसकी कमजोरी का पता लगाता। फिर पूरी निर्ममता, शेर की ताकत और बिजली की गति से उस पर पलटवार करता। यानी, पहला वार तो उसका दुश्मन करता लेकिन आखिरी वार इस युवा लड़ाके का ही होता था।

 

अपने शुभचिंतकों और शिष्यों की चिंता और सलाह को नजरअंदाज करते हुए बूढ़े योद्धा ने युवा लड़ाके की चुनौती कबूल की। जब दोनों आमने-सामने आए तो युवा लड़ाके ने महान योद्धा को अपमानित करना शुरू किया। उसने बूढ़े योद्धा के ऊपर रेत-मिट्टी फेंकी। चेहरे पर थूका भी। देर तक बूढ़े योद्धा को गालियां देता रहा। जितने तरीके से संभव था, उतने तरीके से उसे अपमानित किया। लेकिन बूढ़ा योद्धा शांतचित्त, एकाग्र और अडिग रहा और उसके प्रत्येक क्रियाकलाप को पैनी नज़रों से देखता रहा। युवा लड़ाका थकने लगा। अंतत: अपनी हार सामने देखकर वह शर्मिंदगी के मारे भाग खड़ा हुआ।

 

बूढ़े योद्धा के कुछ शिष्य इस बात से नाराज और निराश हुए कि उनके गुरु ने गुस्ताख युवा लड़ाके से युद्ध नहीं किया। उसे सबक नहीं सिखाया। इन शिष्यों ने गुरु को घेर लिया और सवाल किया, 'आप इतना अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? आपने उसे भाग जाने का मौका कैसे दे दिया?’

 

महान योद्धा ने जवाब दिया, ‘यदि कोई व्यक्ति आपके लिए कुछ उपहार लाए, लेकिन आप लेने से इनकार कर दें। तब यह उपहार किसके पास रह गया?’ देने वाले के पास ही न।

 

इसी प्रकार साधना में भी कई प्रकार की बाधाएं आएँगी उनसे लड़ने में अपनी शक्ति न गवाएं बल्कि कुछ समय मौन रहें साधना में निरन्तरता रखें सहज होने की कोशिश रखें। थोड़े ही समय बाद आप उन परिस्तिथियों से आगे निकल जायेंगे। और हमेशा विजयी ही रहेंगे। साधना से जो बड़ी बात अंदर पैदा होती है वो है असीम शांति जिसके सम्पर्क में आते ही बड़ी से बड़ी आसुरी शक्ति भी अपनी कोशिशें कर के थक जाती हैं और भाग जाती हैं या साधक के शरणागत हो जाती है बस जरूरत है धैर्य की और असीम शांति की। अगर परिस्तिथिवश कभी लड़ना भी पड़े तो अंदर शांत रहते हुए पूरी परिस्तिथियों को देखते हुए लड़ो बिना क्रोध किये कोई भी शक्ति होगी आपके ऊपर प्रभाव न डाल सकेगी।

 

👉 झूठा अभिमान

 

एक मक्खी एक हाथी के ऊपर बैठ गयी। हाथी को पता न चला मक्खी कब बैठी।

 

मक्खी बहुत भिनभिनाई आवाज की, और कहा, ‘भाई! तुझे कोई तकलीफ हो तो बता देना। वजन मालूम पड़े तो खबर कर देना, मैं हट जाऊंगी।’ लेकिन हाथी को कुछ सुनाई न पड़ा। फिर हाथी एक पुल पर से गुजरने लगा बड़ी पहाड़ी नदी थी, भयंकर गङ्ढ था, मक्खी ने कहा कि ‘देख, दो हैं, कहीं पुल टूट न जाए! अगर ऐसा कुछ डर लगे तो मुझे बता देना। मेरे पास पंख हैं, मैं उड़ जाऊंगी।’

 

हाथी के कान में थोड़ी-सी कुछ भिनभिनाहट पड़ी, पर उसने कुछ ध्यान न दिया। फिर मक्खी के बिदा होने का वक्त आ गया। उसने कहा, ‘यात्रा बड़ी सुखद हुई, साथी-संगी रहे, मित्रता बनी, अब मैं जाती हूं, कोई काम हो, तो मुझे कहना, तब मक्खी की आवाज थोड़ी हाथी को सुनाई पड़ी, उसने कहा,  तू कौन है कुछ पता नहीं, कब तू आयी, कब तू मेरे शरीर पर बैठी, कब तू उड़ गयी, इसका मुझे कोई पता नहीं है।  लेकिन मक्खी तब तक जा चुकी थी सन्त कहते हैं, ‘हमारा होना भी ऐसा ही है। इस बड़ी पृथ्वी पर हमारे होने, ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।

 

हाथी और मक्खी के अनुपात से भी कहीं छोटा, हमारा और ब्रह्मांड का अनुपात है। हमारे ना रहने से क्या फर्क पड़ता है? लेकिन हम बड़ा शोरगुल मचाते हैं। वह शोरगुल किसलिये है? वह मक्खी क्या चाहती थी? वह चाहती थी हाथी स्वीकार करे, तू भी है; तेरा भी अस्तित्व है, वह पूछ चाहती थी। हमारा अहंकार अकेले तो नहीं जी सक रहा है। दूसरे उसे मानें, तो ही जी सकता है।  इसलिए हम सब उपाय करते हैं कि किसी भांति दूसरे उसे मानें, ध्यान दें, हमारी तरफ देखें; उपेक्षा न हो।

 

सन्त विचार- हम वस्त्र पहनते हैं तो दूसरों को दिखाने के लिये, स्नान करते हैं सजाते-संवारते हैं ताकि दूसरे हमें सुंदर समझें। धन इकट्ठा करते, मकान बनाते, तो दूसरों को दिखाने के लिये। दूसरे देखें और स्वीकार करें कि तुम कुछ विशिष्ट हो, ना की साधारण।

 

तुम मिट्टी से ही बने हो और फिर मिट्टी में मिल जाओगे,  तुम अज्ञान के कारण खुद को खास दिखाना चाहते हो वरना तो तुम बस एक मिट्टी के पुतले हो और कुछ नहीं।  अहंकार सदा इस तलाश में है–वे आंखें मिल जाएं, जो मेरी छाया को वजन दे दें।

 

याद रखना आत्मा के निकलते ही यह मिट्टी का पुतला फिर मिट्टी बन जाएगा इसलिए अपना झूठा अहंकार छोड़ दो और सब का सम्मान करो क्योंकि जीवों में परमात्मा का अंश आत्मा है।

 

👉 स्वार्थ छोडिये

 

एक छोटे बच्चे के रूप में, मैं बहुत स्वार्थी था, हमेशा अपने लिए सर्वश्रेष्ठ चुनता था। धीरे-धीरे, सभी दोस्तों ने मुझे छोड़ दिया और अब मेरे कोई दोस्त नहीं थे। मैंने नहीं सोचा था कि यह मेरी गलती थी और मैं दूसरों की आलोचना करता रहता था लेकिन मेरे पिता ने मुझे जीवन में मदद करने के लिए 3 दिन 3 संदेश दिए।

 

एक दिन, मेरे पिता ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया ।

 

एक के ऊपर 2 बादाम थे जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था ।।।। मैंने 2 बादाम वाले कटोरा को चुना!

 

मैं अपने बुद्धिमान विकल्प / निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था और जल्दी जल्दी मुझे मिले 2 बादाम हलवा खा रहा था परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था जब मैंने देखा कि की मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे 8 बादाम छिपे थे!

 

बहुत पछतावे के साथ, मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डांटा।

 

मेरे पिता मुसकुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि

आपकी आँखें जो देखती हैं वह हरदम सच नहीं हो सकता उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत की अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।

 

अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे एक कटोरा के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था।

 

फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम कटोरी को चुना परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था! फिर से, मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, "मेरे बच्चे, आपको हमेशा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि कभी-कभी, जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुखी न हों, बस अनुभव को एक सबक अनुभव के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्य पुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

 

तीसरे दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए, एक कटोरा ऊपर से 2 बादाम और दूसरा शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था।

 

लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे।

 

मेरे पिता मेरे लिए खुश थे।

उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना, लेकिन जैसा कि मैंने अपने  कटोरे का हलवा खाया! कटोरे के हलवे के एकदम नीचे 2 बादाम और थे।

 

मेरे पिता मुसकुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए, उन्होंने कहा मेरे बच्चे, तुम्हें याद रखना होगा कि जब तुम भगवान पर छोड़ देते हो, तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी।

 

👉 "कर्मो का लेखा जोखा"।।।।।

 

एक महिला बहुत ही धार्मिक थी ओर उसने ने नाम दान भी लिया हुआ था और बहुत ज्यादा भजन सिमरन और सेवा भी करती थी किसी को कभी गलत न बोलना, सब से प्रेम से मिलकर रहना उस की आदत बन चुकी थी। वो सिर्फ एक चीज़ से दुखी थी के उस का आदमी उस को रोज़ किसी न किसी बात पर लड़ाई झगड़ा करता। उस आदमी ने उसे कई बार इतना मारा की उस की हडी भी टूट गई थी। लेकिन उस आदमी का रोज़ का काम था। झगडा करना। उस महिला ने अपने गुरु महाराज जी से अरज की हे गुरुदेव मेरे से कोन भूल हो गई है। मै सत्संग भी जाती हूँ सेवा भी करती हूँ। भजन सिमरन भी आप के हुक्म के अनुसार करती हूँ। लेकिन मेरा आदमी मुझे रोज़ मारता है। मै क्या करूँ।

 

गुरु महाराज जी ने कहा क्या वो तुझे रोटी देता है महिला ने कहा हाँ जी देता है। गुरु महाराज जी ने कहा फिर ठीक है। कोई बात नहीं। उस महिला ने सोचा अब शायद गुरु की कोई दया मेहर हो जाए और वो उस को मारना पीटना छोड़ दे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उस की तो आदत बन गई ही रोज़ अपनी घरवाली की पिटाई करना। कुछ साल और निकल गए उस ने फिर महाराज जी से कहा की मेरा आदमी मुजे रोज़ पीटता है। मेरा कसूर क्या है। गुरु महाराज जी ने फिर कहा क्या वो तुम्हे रोटी देता है। उस महिला ने कहा हांजी देता है। तो महाराज जी ने कहा फिर ठीक है। तुम अपने घर जाओ। महिला बहुत निराश हुई के महाराज जी ने कहा ठीक है।

 

वो घर आ गई लेकिन उस के पति के स्वभाव वैसे का वैसा रहा रोज़ उस ने लड़ाई झगडा करना। वो महिला बहुत तंग आ गई। कुछ एक साल गुज़रे फिर गुरु महाराज जी के पास गई के वो मुझे अभी भी मारता है। मेरी हाथ की हड्डी भी टूट गई है। मेरा कसूर क्या है। मै सेवा भी करती हूँ। सिमरन भी करती हूँ फिर भी मुझे जिंदगी में सुख क्यों नहीं मिल रहा। गुरु महाराज जी ने फिर कहा वो तुजे रोटी देता है। उस ने कहा हांजी देता है। महाराज जी ने कहा फिर ठीक है। परन्तु इस बार वो महिला जोर जोर से रोने लगी और बोली की महाराज जी मुझे मेरा कसूर तो बता दो मैंने कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया फिर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है।

 

महाराज कुछ देर शांत हुए और फिर बोले बेटी तेरा पति पिछले जन्म में तेरा बेटा था। तू उस की सोतेली माँ थी। तू रोज़ उस को सुबह शाम मारती रहती थी। और उस को कई कई दिन तक भूखा रखती थी। शुक्र मना के इस जन्म में वो तुझे रोटी तो दे रहा है। ये बात सुन कर महिला एक दम चुप हो गई। गुरु महाराज जी ने कहा बेटा जो कर्म तुमने किए है उस का भुगतान तो तुम्हें अवश्य करना ही पड़ेगा फिर उस महिला ने कभी महाराज से शिकायत नहीं की क्यों की वो सच को जान गई थी।

 

इसलिए हमे भी कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए सब से प्रेम प्यार के साथ रहना चाहिए। हमारी जिन्दगी में जो कुछ भी हो रहा है सब हमारे कर्मो का लेखा जोखा है। जिस का हिसाब किताब तो हमे देना ही पड़ेगा।

 

👉 आगे के लिये बचाओ

 

एक धनवान मनुष्य था। उसे सब प्रकार के सुख, ऐश्वर्य प्राप्त थे। मखमली वस्त्र और सोने के जेवरों से उसकी देह सजी रहती थी। सारे दिन शौक मौज करने के अतिरिक्त उसके पास और कोई काम न था।

 

इलियाजर नामक एक कंगाल उसी धनवान का पड़ौसी था। वृद्धावस्था और बीमारी के कारण बेचारा कुछ कर नहीं सकता था इसलिये अपने धनवान पड़ौसी के द्वार पर जाता और उसकी मेज के नीचे भोजन के जो किनके गिर पड़ते बीन बीन कर पेट में डाल लेता। धनी के पास किसी बात की कमी न थी पर उसने कंगाल की हालत पर न तो कभी तरस खाया और न उसकी कुछ मदद की।

 

इलियाजर धर्मात्मा था। गरीबी और अशक्त होने के कारण वह किसी की कुछ सेवा नहीं कर सकता था इससे उसे बड़ा दुख होता। उसके पाँवों में घाव हो गये थे। जब कभी वह कुत्तों को देख पाता तो उन्हें प्यार से बुलाता और अपने घाव उनके चाटने के लिये खोल देता। अपना थोड़ा सा रक्त माँस कुत्तों को दान करके वह अपने दुख को हल्का कर लेता और अपने कष्टों के लिये प्रभु को धन्यवाद देता, जिनके कारण वह ईश्वर को हर घड़ी याद करता रहता है।

 

समय आने पर इलियाजर मरा। थोड़े ही दिन बाद उस धनी को भी मरना पड़ा। प्रेत लोक में दोनों ही पहुँचे। धनी को घोर पीड़ाओं से भरे नरक में रखा गया वहाँ वह असहनीय पीड़ायें सहने लगा। ममन्तिक कष्टों से वह तड़प रहा था कि उसकी निगाह दूसरी ओर गई। उसने देखा कि स्वर्ग के देवता की गोद में इलियाजर बैठा हुआ है और विपुल ऐश्वर्यों का उपभोग कर रहा है।

 

धनी का गला भर आया। उसने चीखकर इब्राहीम से कहा-हे पिता! दया कर इलियाजर को मेरे पास भेजिये ताकि वह मेरे जलते हुये गले में कुछ पानी की बूंदें डाल दे मैं प्यास के मारे मरा जा रहा हूँ।

 

इब्राहीम ने कहा- पुत्र! प्रभु का न्याय बड़ा कठोर है उसमें पक्षपात को स्थान नहीं है। तू जीते जी अपनी सम्पत्ति पा चुका। अब अधिक तुझे कैसे मिल सकता है? काश, तूने उस समय बचाकर कुछ इस समय के लिये संचित किया होता तो आज इस तरह यहाँ न तड़पता।

 

📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर १९४०

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