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ज्ञानवर्धक कथाएं भाग -37

 

ज्ञानवर्धक कथाएं भाग -37

 

👉 त्याग का रहस्य: -

 

एक बार महर्षि नारद ज्ञान का प्रचार करते हुए किसी सघन बन में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने एक बहुत बड़ा घनी छाया वाला सेमर का वृक्ष देखा और उसकी छाया में विश्राम करने के लिए ठहर गये।

 

नारदजी को उसकी शीतल छाया में आराम करके बड़ा आनन्द हुआ, वे उसके वैभव की भूरि- भूरि प्रशंसा करने लगे।

 

उन्होंने उससे पूछा कि।। “वृक्ष राज तुम्हारा इतना बड़ा वैभव किस प्रकार सुस्थिर रहता है? पवन तुम्हें गिराती क्यों नहीं?”

 

सेमर के वृक्ष ने हंसते हुए ऋषि के प्रश्न का उत्तर दिया कि- “भगवान्! बेचारे पवन की कोई सामर्थ्य नहीं कि वह मेरा बाल भी बाँका कर सके। वह मुझे किसी प्रकार गिरा नहीं सकता।”

 

नारदजी को लगा कि सेमर का वृक्ष अभिमान के नशे में ऐसे वचन बोल रहा है। उन्हें यह उचित प्रतीत न हुआ और झुँझलाते हुए सुरलोक को चले गये।

 

सुरपुर में जाकर नारदजी ने पवन से कहा।। ‘अमुक वृक्ष अभिमान पूर्वक दर्प वचन बोलता हुआ आपकी निन्दा करता है, सो उसका अभिमान दूर करना चाहिए।‘

 

पवन को अपनी निन्दा करने वाले पर बहुत क्रोध आया और वह उस वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए बड़े प्रबल प्रवाह के साथ आँधी तूफान की तरह चल दिया।

 

सेमर का वृक्ष बड़ा तपस्वी परोपकारी और ज्ञानी था, उसे भावी संकट की पूर्व सूचना मिल गई। वृक्ष ने अपने बचने का उपाय तुरन्त ही कर लिया। उसने अपने सारे पत्ते झाड़ा डाले और ठूंठ की तरह खड़ा हो गया। पवन आया उसने बहुत प्रयत्न किया पर ढूँठ का कुछ भी बिगाड़ न सका। अन्ततः उसे निराश होकर लौट जाना पड़ा।

 

कुछ दिन पश्चात् नारदजी उस वृक्ष का परिणाम देखने के लिए उसी बन में फिर पहुँचे, पर वहाँ उन्होंने देखा कि वृक्ष ज्यों का त्यों हरा भरा खड़ा है। नारदजी को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ।

 

उन्होंने सेमर से पूछा- “पवन ने सारी शक्ति के साथ तुम्हें उखाड़ने की चेष्टा की थी पर तुम तो अभी तक ज्यों के त्यों खड़े हुए हो, इसका क्या रहस्य है?”

 

वृक्ष ने नारदजी को प्रणाम किया और नम्रता पूर्वक निवेदन किया- “ऋषिराज! मेरे पास इतना वैभव है पर मैं इसके मोह में बँधा हुआ नहीं हूँ। संसार की सेवा के लिए इतने पत्तों को धारण किये हुए हूँ, परन्तु जब जरूरत समझता हूँ इस सारे वैभव को बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग देता हूँ और ठूँठ बन जाता हूँ। मुझे वैभव का गर्व नहीं था वरन् अपने ठूँठ होने का अभिमान था इसीलिए मैंने पवन की अपेक्षा अपनी सामर्थ्य को अधिक बताया था। आप देख रहे हैं कि उसी निर्लिप्त कर्मयोग के कारण मैं पवन की प्रचंड टक्कर सहता हुआ भी यथा पूर्व खड़ा हुआ हूँ।“

 

नारदजी समझ गये कि संसार में वैभव रखना, धनवान होना कोई बुरी बात नहीं है। इससे तो बहुत से शुभ कार्य हो सकते हैं। बुराई तो धन के अभिमान में डूब जाने और उससे मोह करने में है। यदि कोई व्यक्ति धनी होते हुए भी मन से पवित्र रहे तो वह एक प्रकार का साधु ही है। ऐसे जल में कमल की तरह निर्लिप्त रहने वाले कर्मयोगी साधु के लिए घर ही तपोभूमि है।

 

‘अखण्ड ज्योति, फरवरी-1943’

 

👉 कर्म और व्यवहार

 

एक बार एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया-

 

मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना, किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ।।?

 

इसका क्या कारण है ?

राजा के इस प्रश्न से सब निरुत्तर हो गये ।।

अचानक एक वृद्ध खड़े हुये बोले- महाराज आपको यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको उत्तर मिल सकता है।।

 

राजा ने घोर जंगल में जाकर देखा कि एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार ( गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं।। राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर कहा “तेरे प्रश्न का उत्तर आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं ,वे दे सकते हैं ।”

 

राजा की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी कठिनाइयों से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा।।

 

राजा हक्का बक्का रह गया, दृश्य ही कुछ ऐसा था, वे महात्मा अपना ही माँस चिमटे से नोच नोच कर खा रहे थे।।

 

राजा को महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास समय नहीं है।।।

आगे आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा।।

वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर दे सकता है।।

 

राजा बड़ा बेचैन हुआ, बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न।।

 

उत्सुकता प्रबल थी।।

राजा पुनः कठिन मार्ग पार कर उस गाँव में पहुंचा।।

गाँव में उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही।।

 

जैसे ही बच्चा पैदा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया।।

 

राजा को देखते ही बालक हँसते हुए बोलने लगा ।।

राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है ,किन्तु अपना उत्तर सुन लो –

तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई राजकुमार थे।।

एक बार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।

अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली ।हमने उसकी चार बाटी सेंकी।।

 

अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा वहां आ गये।।

अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा –

“बेटा, मैं दस दिन से भूखा हूँ, अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो, मुझ पर दया करो, जिससे मेरा भी जीवन बच जाय ।।।

 

इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले।।

 

तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या खाऊंगा आग।।।? चलो भागो यहां से…।।

 

वे महात्मा फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही।।

 

किन्तु उन भईया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि।।

बड़ी मुश्किल से प्राप्त ये बाटी तुम्हें दे दूंगा तो क्या मैं अपना मांस नोचकर खाऊंगा?

भूख से लाचार वे महात्मा मेरे पास भी आये।।

मुझसे भी बाटी मांगी…

किन्तु मैंने भी भूख में धैर्य खोकर कह दिया कि

चलो आगे बढ़ो मैं क्या भूखा मरुँ …?

 

अंतिम आशा लिये वो महात्मा, हे राजन !।।

आपके पास भी आये, दया की याचना की।।

दया करते हुये ख़ुशी से आपने अपनी बाटी में से आधी बाटी आदर सहित उन महात्मा को दे दी।

बाटी पाकर महात्मा बड़े खुश हुए और बोले।।

तुम्हारा भविष्य तुम्हारे कर्म और व्यवहार से फलेगा।

बालक ने कहा “इस प्रकार उस घटना के आधार पर हम अपना अपना भोग, भोग रहे हैं।।।

और वो बालक मर गया

 

धरती पर एक समय में अनेकों फल-फूल खिलते हैं, किन्तु सबके रूप, गुण,आकार-प्रकार, स्वाद भिन्न होते हैं ।।।

 

राजा ने माना कि शास्त्र भी तीन प्रकार के ह--

ज्योतिष शास्त्र, कर्तव्य शास्त्र और व्यवहार शास्त्र

 

जातक सब अपना किया, दिया, लिया ही पाते हैं।।

यही है जीवन।।।

 

👉 हमारा व्यवहार ही हमें श्रेष्ठ बनाता है

 

हमारे द्वारा किये गए कार्यों का फल हमें ज़रूर मिलता है। हमारे द्वारा किये गए अच्छे कार्य हमें दूसरे लोगों की नज़रों में श्रेष्ठ बनाते हैं। हमारा व्यवहार हमें लोगों की नज़रों में इस कदर सम्माननीय बना देता है कि ज़रूरत पड़ने पर लोग हमारे साथ खड़े होते है। हमें अपने सुख दुःख में शामिल करते है।

 

क्या आजकल की इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में आप इस बात पर एक दम से यकीन कर सकते हैं कि हमारा व्यवहार या हमारा कोई छोटा सा काम कभी हमारी जान बचा सकता है।

 

एक व्यक्ति एक बर्फ की फैक्टरी में काम करता था। एक दिन रोजाना की तरह शाम को वह घर जाने की तैयारी में था। तभी फैक्टरी में एक तकनीकी समस्या उत्पन्न हो गयी और वह उसे दूर करने में जुट गया। जब तक वह कार्य पूरा करता, तब तक अत्यधिक देर हो गयी। लाइटें बुझा दी गईं, दरवाजे सील हो गये और वह उसी प्लांट में बंद हो गया। बिना हवा व प्रकाश के पूरी रात बर्फ की फैक्टरी में फंसे रहने के कारण उसकी मौत होना लगभग तय था।

 

लगभग आधा घण्टे का समय बीत गया। तभी उसने किसी को दरवाजा खोलते देखा। क्या यह एक चमत्कार था? उसने देखा कि दरवाजे पर सिक्योरिटी गार्ड टार्च लिए खड़ा है। उसने उसे बाहर निकलने में मदद की।

 

बाहर निकल कर उस व्यक्ति ने सिक्योरिटी से पूछा “आपको कैसे पता चला कि मैं फैक्टरी के अंदर हूँ?”

 

गार्ड ने उत्तर दिया – “सर, इस प्लांट में 100 लोग कार्य करते है पर सिर्फ एक आप ही है जो मुझे सुबह आने पर हेलो व शाम को जाते समय बाय कहते है। आज सुबह आप ड्यूटी पर आये थे पर शाम को आप बाहर नहीं गए। इससे मुझे शंका हुई और मैं देखने चला आया।”

 

वह व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका किसी को छोटा सा सम्मान देना कभी उसका जीवन बचाएगा। उसने प्रसन्न मन से उसका धन्यवाद किया और अपने घर चला गया।

 

तो मित्रों, जब भी आप किसी से मिले, गर्मजोशी से मिले और प्यारी से मुस्कान के साथ उसका सम्मान करे। कभी भी किसी से घमंड या अभिमान से बात न करें। चाहे कोई आपसे उम्र या पद में छोटा हो या बड़ा सबसे एक समान व्यवहार करे। सबका सम्मान करें। आपका ये व्यवहार लोगों कि नज़रों में आपको सबसे अलग बना देगा और लोग हर परिस्थिति में आपके साथ रहेंगे।

 

👉 ईश्वर की कृपा पाना चाहते हो तो

 

शहर में एक अमीर सेठ रहता था। उसके पास बहुत पैसा था। वह बहुत फैक्टरियों का मालिक था।

 

एक शाम अचानक उसे बहुत बैचेनी होने लगी। डॉक्टर को बुलाया गया सारी जाँच करवा  ली गयी। पर कुछ भी नहीं निकला। लेकिन उसकी बैचेनी बढ़ती गयी। उसके समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। रात हुई, नींद की गोलियां भी खा ली पर न नींद आने को तैयार और ना ही बैचेनी कम होने का नाम ले।

 

वो रात को उठकर तीन बजे घर के बगीचे में घूमने लगा। घुमते-घुमते उसे लगा कि बाहर थोड़ा सा सुकून है तो वह बाहर सड़क पर पैदल निकल पड़ा।

 

चलते- चलते हजारों विचार मन में चल रहे थे। अब वो घर से बहुत दूर निकल आया था। और थकान की वजह से वो एक चबूतरे पर बैठ गया। उसे थोड़ी शान्ति मिली तो वह आराम से बैठ गया।

 

इतने में एक कुत्ता वहाँ आया और उसकी चप्पल उठाकर ले गया। सेठ ने देखा तो वह दूसरी चप्पल उठाकर उस कुत्ते के पीछे भागा। कुत्ता पास ही बनी जुग्गी-झोपड़ीयों में घुस गया। सेठ भी उसके पीछे था, सेठ को करीब आता देखकर कुत्ते ने चप्पल वहीं छोड़ दी और चला गया। सेठ ने राहत की सांस ली और अपनी चप्पल पहनने लगा। इतने में उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।

 

वह और करीब गया तो एक झोंपड़ी में से आवाज आ रहीं थीं। उसने झोंपड़ी के फटे हुए बोरे में झाँक कर देखा तो वहाँ एक औरत फटेहाल मैली सी चादर पर दीवार से सटकर रो रही हैं। और ये बोल रही है -- हे भगवान मेरी मदद कर ओर रोती जा रहीं है।

 

सेठ के मन में आया कि यहाँ से चले जाओ, कहीं कोई गलत ना सोच लें। वो थोड़ा आगे बढ़ा तो उसके दिल में ख़्याल आया कि आखिर वो औरत क्यों रो रहीं हैं, उसको तकलीफ क्या है? और उसने अपने दिल की सुनी और वहाँ जाकर दरवाजा खटखटाया।

 

उस औरत ने दरवाजा खोला और सेठ को देखकर घबरा गयी। तो सेठ ने हाथ जोड़कर कहा तुम घबराओ मत, मुझे तो बस इतना जानना है कि तुम रो क्यों रही हो।

 

वह औरत के आंखों में से आँसू टपकने लगें। और उसने पास ही गुदड़ी में लिपटी हुई उसकी 7-8 साल की बच्ची की ओर इशारा किया। और रोते -रोते कहने लगी कि मेरी बच्ची बहुत बीमार है उसके इलाज में बहुत खर्चा आएगा। और में तो घरों में जाकर झाड़ू-पोंछा करके जैसे-तैसे हमारा पेट पालती हूँ। में कैसे इलाज कराउ इसका?

 

सेठ ने कहा--- तो किसी से माँग लो। इसपर औरत बोली मैंने सबसे माँग कर देख लिया खर्चा बहुत है कोई भी देने को तैयार नहीं। तो सेठ ने कहा तो ऐसे रात को रोने से मिल जायेगा क्या?

 

तो औरत ने कहा कल एक संत यहाँ से गुजर रहे थे तो मैंने उनको मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा बेटा-- तुम सुबह 4 बजे उठकर अपने ईश्वर से माँगो। बोरी बिछाकर बैठ जाओ और रो रो कर -गिड़गिगिड़ाके उससे मदद माँगो वो सबकी सुनता है तो तुम्हारी भी सुनेगा।

 

मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। इसलिए में उससे माँग रही थीं और वो बहुत जोर से रोने लगी।

 

ये सब सुनकर सेठ का दिल पिघल गया और उसने तुरन्त फोन लगाकर एम्बुलेंस बुलवायी और उस लड़की को एडमिट करवा दिया। डॉक्टर ने डेढ़ लाख का खर्चा बताया तो सेठ ने उसकी जवाबदारी अपने ऊपर ले ली, और उसका इलाज कराया। और उस औरत को अपने यहाँ नौकरी देकर अपने बंगले के सर्वेन्ट क्वाटर में जगह दी। और उस लड़की की पढ़ाई का जिम्मा भी ले लिया।

 

वो सेठ कर्म प्रधान तो था पर नास्तिक था। अब उसके मन में सैकड़ों सवाल चल रहे थे। क्योंकि उसकी बैचेनी तो उस वक्त ही खत्म हो गयी थी जब उसने एम्बुलेंस को बुलवाया था। वह यह सोच रहा था कि आखिर कौन सी ताकत है जो मुझे वहाँ तक खींच ले गयीं? क्या यहीं ईश्वर हैं? और यदि ये ईश्वर है तो सारा संसार आपस में धर्म, जात -पात के लिये क्यों लड़ रहा है। क्योंकि ना मैंने उस औरत की जात पूछी और ना ही ईश्वर ने जात -पात देखी। बस ईश्वर ने तो उसका दर्द देखा और मुझे इतना घुमाकर उस तक पहुंचा दिया। अब सेठ समझ चुका था कि कर्म के साथ सेवा भी कितनी जरूरी है क्योंकि इतना सुकून उसे जीवन में कभी भी नहीं मिला था।

 

तो दोस्तों मानव और प्राणी सेवा का धर्म ही असली इबादत या भक्ति हैं। यदि ईश्वर की कृपा या रहमत पाना चाहते हो तो इंसानियत अपना लो और समय-समय पर उन सबकी मदद करो जो लाचार या बेबस है। क्योंकि ईश्वर इन्हीं के आस -पास रहता हैं।

 

 

👉 घास और बाँस

 

ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक Business man था लेकिन उसका business डूब गया और वो पूरी तरह hopeless हो गया। अपनी life से बुरी तरह थक चुका था। अपनी life से frustrate चुका था।

 

एक दिन परेशान होकर वो जंगल में गया और जंगल में काफी देर अकेले बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान से बोला – मैं हार चुका हूँ, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों ना हताश होऊं, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है।

 

मैं क्यों ना frustrate होऊं?

 

Please help me God

 

भगवान का जवाब

 

तुम जंगल में इस घास और बांस के पेड़ को देखो- जब मैंने घास और इस बांस के बीज को लगाया। मैंने इन दोनों की ही बहुत अच्छे से देखभाल की। इनको बराबर पानी दिया, बराबर Light दी।

 

घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरती को हरा भरा कर दिया लेकिन बांस का बीज बड़ा नहीं हुआ। लेकिन मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी।

 

दूसरी साल, घास और घनी हो गयी उसपर झाड़ियाँ भी आने लगी लेकिन बांस के बीज में कोई growth नहीं हुई। लेकिन मैंने फिर भी बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी।

 

तीसरी साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी।

 

चौथे साल भी बांस के बीज में कोई growth नहीं हुई लेकिन मैं फिर भी लगा रहा।

 

पांच साल बाद, उस बांस के बीज से एक छोटा सा पौधा अंकुरित हुआ………।। घास की तुलना में ये बहुत छोटा था और कमजोर था लेकिन केवल 6 महीने बाद ये छोटा सा पौधा 100 फ़ीट लम्बा हो गया।

मैंने इस बांस की जड़ को grow करने के लिए पांच साल का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो गयी कि 100 फिट से ऊँचे बांस को संभाल सके।

 

जब भी तुम्हें life में struggle करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। आपका संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे कि आप आने वाले  कल को सबसे बेहतरीन बना सको।

 

मैंने बांस पर हार नहीं मानी,

मैं तुम पर भी हार नहीं मानूंगा,

किसी दूसरे से अपनी तुलना(comparison) मत करो

घास और बांस दोनों के बड़े होने का time अलग अलग है दोनों का उद्देश्य अलग अलग है।

 

तुम्हारा भी समय आएगा। तुम भी एक दिन बांस के पेड़ की तरह आसमान छुओगे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, तुम भी मत हारो !

अपनी life में struggle से मत घबराओ, यही संघर्ष हमारी सफलता की जड़ों को मजबूत करेगा।

लगे रहिये, आज नहीं तो कल आपका भी दिन आएगा।

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