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ज्ञानवर्धक कथाएं भाग -38

 

ज्ञानवर्धक कथाएं भाग -38

 

👉 मन की चंचलता दूर करने का रहस्य

 

एक दिन सत्संग में एक सज्जन ने प्रश्न उठाया कि मन बड़ा चंचल है कैसे वश में किया जाये। बिना न के एकाग्र हुए भजन वृथा है। मन की चाल हवा से भी तेज है। क्षण भर में चौदह लोकों में घूम आता है। जाग्रत में ही नहीं, स्वप्न में भी चुप होकर नहीं बैठता। जन्म भर में कभी देखे सुने न हो, ऐसे-ऐसे अनोखे पदार्थ रच लेता है। यह बड़ा दुष्ट, चंचल प्रबल व ढीठ है।

 

एक दूसरे सज्जन ने कहा- मन की बात मत छेड़ो। मैं जब भजन करने बैठता हूँ तो और भी भागता है। बहुतेरा रोकता हूँ रुकता नहीं। मंत्र में लगाता हूँ तो बिना सिर पैर के खयाली पुलाव पकाने लगता है। भगवान का ध्यान करना चाहता हूँ तो भागा-भागा फिरता है। राम-राम जपता हूँ तो ग्राम-ग्राम घूमता है। घर बाहर के, कचहरी दरबार के सब झगड़े भजन में लाकर खड़े कर देता है।

 

एक तीसरे सज्जन ने अपनी कठिनाई बताई कि-मैं तो इस मन की हरकतों से तंग आ गया हूँ। एक न एक बखेड़ा यह बराबर खड़े किये रहता है। मैं संसार से मुक्त होना चाहता हूँ तो मुझे लौटा-लौटा कर उसी में डालता है। सत्संग में जाना चाहता हूँ तो गप्प, ताश, शतरंज में लगा देता है। मन्दिर में दर्शन करने जाता हूँ तो सिनेमा के सामने ला खड़ा कर देता है। स्वाध्याय करना चाहता हूँ तो उपन्यास सामने जाकर रख देता है। गीता पढ़ने बैठता हूँ तो कहता है घर में दाल नहीं है, घी नहीं, मिर्च मसाला नहीं है, लकड़ी नहीं है, चलो, ले आओ। गीता फिर पढ़ लेना। यह तो रोज का गीत है। पेट पूजा तो प्रधान है। गीता का अमरत्व योग भूखे पेट की ज्वाला नहीं शांत कर सकता। मन की फरमाइशों के मारे तो तबीयत परेशान हो गई है।

 

सबकी सुन लेने पर अन्त में उस सत्संग में उपस्थित एक महात्मा जी ने कहा कि-आप लोग उलटी गंगा बहा रहे हैं। आप लोगों के कहने के अनुसार तो आप कोई और हैं और मन कोई और। मगर बात असल में यह है कि आप ही से मन की सत्ता हैं। मन से आपकी सत्ता नहीं है। आप ही से मन निकला है। जैसे आप हैं वैसा आपका मन है। मन तो सरल, अबल और बेपेंदी का लोटा है। बिना कौड़ी पैसे का गुलाम है। वचन में बंधा हुआ है। इशारे पर काम करता है। जो-जो भोग आप माँगते हैं कि भजन नहीं करने देता। भजन करना आप चाहते ही कब हैं। धन में, स्त्री में, पुत्र में, नाम में, जुए मैं, माँस-मदिरा में, बीड़ी-सिगरेट में, सिनेमा, क्लब में आपकी रुचि है। इनसे आपको फुरसत ही कहाँ है। चौबीस घंटा में 23 घंटा इन्हीं का ध्यान करते हैं फिर एक घंटा राम नाम लेने का आडम्बर करते हैं और उस समय भी सांसारिक कार्यों का ताना बाना बुनते रहते हैं।

भाई! जो खाओगे उसकी डकार आवेगी। ग्रामोफोन में जो राग भरा जायेगा वही बजेगा। जैसे आप बनोगे वैसा मन भी बन जायेगा। आप चाहते हैं कि स्वाद में कमी न आने पावे। खाना-पीना राजसी व तामसी होता रहे। नेत्रों से सिनेमा आदि देखते रहें। कानों से फिल्मी संगीत सुनते रहें। वीर्य पात में भी कोई बन्धन न हो। आहार-विहार अनियमित होता रहे, मगर मन वश में हो जावे यह कैसे मुमकिन है। सभी विषयों पर लगाम लगाइये, मन आपसे आप आपका गुलाम हो जायेगा।

 

एक भेद की बात जान लीजिये कि वीर्य, प्राण व मन एक ही स्तर की वस्तुएं है। एक को रोक लेने पर दूसरी दोनों स्वयमेव रुक जाती है। मन को रोकिये प्राण व वीर्य वश में हो जाते हैं। वीर्य की गति ऊर्ध्व रत कीजिये तो मन व वीर्य पर आधिपत्य मिल जाता है। इन तीनों को वश में करने का एक भी साधन है और अलग-अलग भी। वीर्य पर विजय पाने के लिए मनसा वाचा कर्मणा ब्रह्मचारी बनना पड़ेगा। सात्विक आहार व सात्विक विहार रखना पड़ेगा। आसन, प्राणायाम, बन्ध, मुद्राओं द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना पड़ेगा। इसी तरह प्राण को रोकने के लिए हठयोग, अष्टाँग योग, विशेष प्राणायामों आदि का साधन करना पड़ेगा। मगर यह सब क्रियाएं बड़ी कठिन व कष्ट साध्य हैं। सबसे सरल उपाय यह है कि आप लोग ध्यान सहित गायत्री का जप कीजिये और देखिये कि कितनी जल्दी आप मन को अपना चाकर बना लेते हैं। श्रद्धा पूर्वक स्वर, ताल व लय से गायत्री मंत्र का जप करने से अभीष्ट की पूर्ति हो जाती है। भगवान ने कहा कि यज्ञों में मैं जप यज्ञ हूँ। इसका मुख्य कारण है कि अन्य यज्ञों में जो बाहरी तैयारी, सहायता आदि की आवश्यकता पड़ती है। वे सब झंझटें जप यज्ञ में नहीं होती। जप यज्ञ में केवल सात्विक भाव, प्रेम साधना, तन्मयता, एकाग्रता की ही आवश्यकता पड़ती है। प्रेम भाव से किसी स्थान, अवस्था, समय व परिस्थिति में जप किया जा सकता है। गायत्री जप से जो मन की एकाग्रता होती है उसका वैज्ञानिक आधार भी है।

 

गायत्री मंत्र के अक्षरों व शब्दों का गुन्थन कुछ इस प्रकार का है कि उसके जप से स्वर यंत्रों में जो कंपन उत्पन्न होता है उसका प्रभाव पृष्ठ वंश में स्थित नस नाड़ियों में पड़ता रहता है। उन्हीं शब्दों के बार-बार दुहराने से कंपन के झटके चक्रों में लगा करते हैं और कुछ दिनों के अभ्यास के बाद वे चक्र खुलने लगते हैं। कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है। यह क्रियाएं अनजाने हुआ करती हैं।

 

गायत्री मंत्र में 24 अक्षर हैं और तीन पद। ओम व व्याहृतियों का एक पद है। इस तरह चार पद हो जाते हैं। इन पदों व शब्दों का उच्चारण कुछ इस प्रकार किया जाता है कि ध्वनि में ताल, स्वर व लय का समावेश हो जाता है। एक स्वर में ताल युक्त लय के साथ जब जप किया जाता है तब ध्वनि का माधुर्य इतना बढ़ जाता है कि मन सब तरफ से खिंच कर इन्द्रियों सहित एक ओर लग जाता है। जप का यह तरीका गुरु मुख से ही जानने योग्य है। जैसे किसी एक योग को सीखने के लिए बार-बार अभ्यास करना पड़ता है उसी तरह गायत्री मंत्र के तालयुक्त जप का ढंग गुरु के पास रह कर अभ्यास द्वारा सीखा जाता है। जब जप ठीक ढंग से होने लगता है तब मन नहीं भागता है बल्कि उसी में आनन्द प्राप्त करने लगता है।

 

संगीत के जानकार जानते हैं कि विभिन्न राग-रागनियों के विभिन्न रूप होते हैं। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इसका पता लगा लिया था। पश्चिमी विद्वानों ने भी विज्ञान द्वारा यह प्रमाणित कर दिया है कि खास तरह के राग छेड़ने पर एक खास तरह की आकृति बन जाती है। फ्राँस में दो बार इस विषय को लेकर प्रदर्शन व परीक्षण किये गये हैं। एक में मेडम लैंग ने एक राग छेड़ा तो फलस्वरूप देवी मेरी की आकृति शिशु जिजस क्राइष्ट को गोद में लिये हुई प्रकट होती दीख पड़ी। दूसरी बार एक भारतीय गायक ने भैरव राग छेड़ा था जिसके फलस्वरूप भैरव की भीषण आकृति प्रकट हुई थी।

 

इसी प्रकार इटली में एक युवती ने एक भारतीय से सामवेद की एक ऋचा को सितार पर बजाना सीखा। खूब अभ्यास कर लेने के अनन्तर उसने एक बार नदी के किनारे रेत में सितार रख कर उसी राग को छेड़ा। उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वहाँ रेत पर एक चित्र सा बन गया। उसने अन्य कोई विद्वानों को यह बात बतलाई। उन्होंने उस चित्र का फोटो लिया। चित्र वाणी पुस्तक धारिणी सरस्वती का निकला। जब वह युवती तन्मय होकर उस राग को छेड़ती तब वही चित्र बन जाता।

 

इस प्रकार जब गायत्री मंत्र का जप ताल स्वर व लय के साथ किया जाता है तो राग से पुस्तक, पुष्प, कमण्डल, माला लिये हुए हंस पर आरुढ़ एक देवी का चित्र बन जाता है। उसको हमारे ऋषियों ने वेदमाता गायत्री की संज्ञा दी है। लय की विभिन्नता होने पर किसी को एक मुख वाली, किसी को पाँच मुख वाली गायत्री माता के दर्शन होते हैं। इसी प्रकार प्रातः ध्यान में दूसरा रूप रहता है, मध्याह्न ध्यान में दूसरा और सायंकालीन ध्यान में दूसरा रूप रहता है। मूल तत्व में माता का ही चित्र विभिन्न रूपों व कलाओं में भासित होता है। हर मनुष्य की प्रकृति पृथक-पृथक होती है। उसी के अनुसार और समय के भेद से जप के समय गायत्री माता का ध्यान विभिन्न रूपों में किया जाता है जब अभ्यास आगे बढ़ता है तब साधक माता के ध्यान में इतना तन्मय हो जाता है कि उसकी आत्मा उसी रूप में अवस्थित हो जाती है। उस समय जप ध्यान में लीन हो जाता है।

 

वैज्ञानिक बता रहे हैं कि जिन विचारों का उदय मस्तिष्क में बार-बार होता है वे वहाँ चित्रित हो जाते हैं। उसी प्रकार के भाव मस्तिष्क में घर बना लेते हैं। उनसे मन का इतना लगाव हो जाता है कि उन्हीं में वह आनन्द प्राप्त करने लगता है। उन्हीं में मग्न रहता है। इसी प्रकार जब गायत्री का जप ध्यान सहित किया जाता है तब वही संस्कार घर बनाने लगते हैं। दैवी गुणों का प्रादुर्भाव होने लगता है और पूर्व संस्कार और आसुरी वृत्तियाँ मिटने लगती हैं।

 

एक पात्र में जल भरा है। उसमें पिघला हुआ शीशा उड़ेला जाता है। जैसे-जैसे शीशे की धार पात्र की तरह धंसती जाती है वैसे ही वैसे पानी का अंश पात्र के ऊपर से बाहर बहकर निकलता जाता है। अन्त में शीशे की तह पात्र के मुँह तक आ जाती है तब पानी का कुल भाग पात्र से बाहर निकल जाता है। पात्र में शीशा ही शीशा दिखाई पड़ता है ।

इसी तरह जब साधक ध्यान सहित गायत्री का जप करता है तब मस्तिष्क रूपी पात्र मैं दैवी गुणों की धारा उड़ेलने लगता है और जल रूपी गंदे विचार बाहर गिरने लगते हैं। शुद्ध सात्विक भाव आने लगते हैं। काम, क्रोध, लोभ, सात्विक भाव आने लगते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, मद, मत्सर दूर होने लगते हैं। मन शुद्ध-निर्मल होने से एकाग्र होने लगता है। वह भागा-भागा नहीं फिरता। आपका खरीदा गुलाम बन जाता है। जो चाहिए काम लीजिये।

 

मन की चंचलता दूर करने के लिए गायत्री जप यज्ञ से बढ़कर और कोई तरीका इतना सरल सुसाध्य व शीघ्र फल देने वाला नहीं है।

 

👉 साधु की सीख

 

किसी गाँव में एक साधु रहा करता था, वो जब भी नाचता तो वारिस होती थी। अतः गाव के लोगों को जब भी वारिस की जरूरत होती थी, तो वे लोग साधु के पास जाते और उनसे अनुरोध करते की वे नाचे, और जब वो नाचने लगता तो वारिस ज़रूर होती।

 

कुछ दिनों बाद चार लड़के शहर से गाँव में घूमने आये, जब उन्हें यह बात मालूम हुई की किसी साधु के नाचने से वारिस होती है तो उन्हें यकीन नहीं हुआ।

 

शहरी पढाई लिखाई के घमंड में उन्होंने गाँव वालों को चुनौती दे दी कि हम भी नाचेंगे तो बारिस होगी और अगर हमारे नाचने से नहीं हुई तो उस साधु के नाचने से भी नहीं होगी। फिर क्या था अगले दिन सुबह-सुबह ही गाँव वाले उन लड़कों को लेकर साधु की कुटिया पर पहुंचे।

 

साधु को सारी बात बताई गयी , फिर लड़कों ने नाचना शुरू किया , आधे घंटे बीते और पहला लड़का थक कर बैठ गया पर बादल नहीं दिखे, कुछ देर में दूसरे ने भी यही किया और एक घंटा बीतते-बीतते बाकी दोनों लड़के भी थक कर बैठ गए, पर बारिश नहीं हुई।

 

अब साधु की बारी थी, उसने नाचना शुरू किया, एक घंटा बीता, बारिश नहीं हुई, साधु नाचता रहा …दो घंटा बीता बारिश नहीं हुई…। पर साधु तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था, धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहत सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी। लड़के दंग रह गए।

और तुरंत साधु से क्षमा मांगी और पूछा-

 

”बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से वारिस नहीं हुई और आपके नाचने से हो गयी?”

 

साधु ने उत्तर दिया – ”जब मैं नाचता हूँ तो दो बातों का ध्यान रखता हूँ, पहली बात मैं ये सोचता हूँ कि अगर मैं नाचूँगा तो वारिस को होना ही पड़ेगा और दूसरी ये कि मैं तब तक नाचूँगा जब तक कि वारिस न हो जाये।”

 

सफलता पाने वालों में यही गुण विद्यमान होता है वो जिस चीज को करते हैं उसमे उन्हें सफल होने का पूरा यकीन होता है और वे तब तक उस चीज को करते है जब तक सफल नहीं हो जाते है।

 

👉 अभागा राजा और भाग्यशाली दास:-

 

एक बार एक गुरुदेव अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे।

 

एक विशाल नदी जो की सदाबहार थी उसके दोनो तरफ दो सुन्दर नगर बसे हुये थे! नदी के उस पार महान और विशाल देव मन्दिर बना हुआ था! नदी के इधर एक राजा था राजा को बड़ा अहंकार था कुछ भी करता तो अहंकार का प्रदर्शन करता वहाँ एक दास भी था बहुत ही विनम्र और सज्जन!

 

एक बार राजा और दास दोनो नदी के वहाँ गये राजा ने उस पार बने देव मंदिर को देखने की ईच्छा व्यक्त की दो नावें थी रात का समय था एक नाव मे राजा सवार हुआ और दुजि मे दास सवार हुआ दोनो नाव के बीच मे बड़ी दूरी थी!

 

राजा रात भर चप्पू चलाता रहा पर नदी के उस पार न पहुँच पाया सूर्योदय हो गया तो राजा ने देखा की दास नदी के उसपार से इधर आ रहा है! दास आया और देव मन्दिर का गुणगान करने लगा तो राजा ने कहा की तुम रातभर मन्दिर मे थे! दास ने कहा की हाँ और राजाजी क्या मनोहर देव प्रतिमा थी पर आप क्यों नही आये!

 

अरे मैंने तो रात भर चप्पू चलाया पर ।।।।।

 

गुरुदेव ने शिष्य से पुछा वत्स बताओ की राजा रातभर चप्पू चलाता रहा पर फिर भी उसपार न पहुँचा? ऐसा क्यों हुआ? जब की उसपार पहुँचने मे एक घंटे का समय ही बहुत है!

 

शिष्य - हे नाथ मैं तो आपका अबोध सेवक हुं मैं क्या जानु आप ही बताने की कृपा करे देव!

 

ऋषिवर - हे वत्स राजा ने चप्पू तो रातभर चलाया पर उसने खूंटे से बँधी रस्सी को नहीं खोला!

 

और इसी तरह लोग जिन्दगी भर चप्पू चलाते रहते है पर जब तक अहंकार के खूंटे को उखाड़कर नहीं फेंकेंगे आसक्ति की रस्सी को नहीं काटेंगे तब तक नाव देव मंदिर तक नहीं पहुंचेगी!

 

हे वत्स जब तक जीव स्वयं को सामने रखेगा तब तक उसका भला नहीं हो पायेगा! ये न कहो की ये मैंने किया ये न कहो की ये मेरा है ये कहो की जो कुछ भी है वो सद्गुरु और समर्थ सत्ता का है मेरा कुछ भी नहीं है जो कुछ भी है सब उसी का है!

 

स्वयं को सामने मत रखो समर्थ सत्ता को सामने रखो! और समर्थ सत्ता या तो सद्गुरु है या फिर इष्टदेव है , यदि नारायण के दरबार में राजा बनकर रहोगे तो काम नहीं चलेगा वहाँ तो दास बनकर रहोगे तभी कोई मतलब है!

 

जो अहंकार से ग्रसित है वो राजा बनकर चलता है और जो दास बनकर चलता है वो सदा लाभ में ही रहता है!

 

इसलिये नारायण के दरबार में राजा नहीं दास बनकर चलना!

 

👉 माँ तो माँ होती है

 

आज फिर से साहब का दिमाग उचट गया था ऑफिस में! बाहर बारिश हो रही थी, मन किया कि पास वाले ढाबे पर चलकर कुछ खाया जाए! सो ऑफिस का काम फटाफट निपटा कर पहुँच गए साहब ढाबे में!

 

रामू दौड़ता हुआ आया, हाथ  में पानी का गिलास मेज पर रखते हुए साहब को नमस्ते की और बोला "क्या बात है साहब काफी दिनों बाद आये हैं आज आप ?"

 

"हाँ  रामू , मैं शहर से बाहर गया था!" साहब ने जवाब दिया!

"आप बैठो साहब, मैं आपके लिए कुछ खाने को लाता हूँ!"

 

वो एक साधारण सा ढाबा था, मगर पता नहीं इतने बड़े साहब को वहाँ आना बड़ा ही अच्छा लगता था! साहब को कुछ भी आर्डर देने की जरूरत नहीं पड़ती थी, बल्कि उनका  मनपसंद  भोजन अपने आप ही रामू ले आता था! स्वाद भी बहुत भाता था साहब को यहां के खाने का! पता नहीं रामू को कैसे पता लग जाता था की साहब को कब क्या अच्छा लगेगा! और पैसे भी काफी कम लगते थे यहां पर!

 

साहब बैठे सोच ही रहे थे की चिर-परिचित पकोड़ों की खुशबु से साहब हर्षित हो गए!

 

"अरे रामू, तू बड़ा जादूगर है रे! इस मौसम में इससे  अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता है!" साहब पकोड़े खाते हुए बोले!

 

"अरे साहब, पैट भर के खाईयेगा, इसके बाद अदरक वाली चाय भी लाता हूँ!" रामू बोला!

 

साहब का मूड एकदम फ्रेश हो गया था!

 

"देखो आज मैं तुम्हारे ढाबे के कुक से मिलकर ही जाऊँगा, बड़ा ही अच्छा खाना बनाता है वो!" साहब ने फिर से अपनी पुरानी जिद्द दोहरा दी!

 

हर बार रामू टाल देता था, मगर आज साहब ने भी जिद्द पकड़ ली थी कि रसोइये से मिलकर ही रहूँगा, उसका शुक्रिया अदा करूँगा!

साहब जबरदस्ती रसोई में घुस गए! आज रामू की एक ना चल पायी!

अंदर का नजारा साहब ने  देखा की एक बूढी सी औरत चाय बना रही थी, वो बहुत खुश थी!

 

"माँ" साहब के मुंह से निकला,

 

"मैने तो आपको वृद्धाश्रम में डाल दिया था।।।।।!"

 

"हाँ बेटा, मगर जो सुख मेरे को यहाँ तुझे खाना खिला कर मिलता है वो वहां नहीं है!"

 

आज साहब को पता लग गया कि रामू को उसकी पसंद की डिशेज कैसे पता है और वहां पर पैसे कम क्यों लगते हैं!

 

👉 सत्संग: -

 

एक बार एक युवक पूज्य कबीर साहिब जी के पास आया और कहने लगा, ‘गुरु महाराज! मैंने अपनी शिक्षा से पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है। मैं विवेकशील हूं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांति समझता हूं, किंतु फिर भी मेरे माता-पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं। जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेक युक्त हूं, तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है?’

 

कबीर ने उसके प्रश्न का मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई और पास ही जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी। युवक अनमने भाव से चला गया।

 

अगले दिन वह फिर कबीर के पास आया और बोला,

 

 ‘मैंने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था, किंतु आपने उत्तर नहीं दिया। क्या आज आप उत्तर देंगे?’

 

कबीर ने पुन: खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किंतु बोले कुछ नहीं।

 

 युवक ने सोचा कि संत पुरुष हैं, शायद आज भी मौन में हैं।

 

वह तीसरे दिन फिर आया और अपना प्रश्न दोहराया।

 

कबीर ने फिर से खूंटे पर हथौड़ी चलाई। अब युवक परेशान होकर बोला, ‘आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं? मैं तीन दिन से आपसे प्रश्न पूछ रहा हूं।’

 

 तब कबीर ने कहा, ‘मैं तो तुम्हें रोज जवाब दे रहा हूं। मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूं। यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में थोड़ी सी हलचल होने पर यह निकल जाएगा।"

 

 यही काम सत्संग हमारे लिए करता है। वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है, ताकि हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें।

 

युवक को कबीर ने सही दिशा-बोध करा दिया। सत्संग हर रोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है, इसलिए सत्संग हमारी दैनिक जीवन चर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए।

 

!! चिंता !!

 

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।

 

राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया। राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।

 

विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई। कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं? संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे। संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं।

 

सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।

 

ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया।

 

शिक्षा:

अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है। उसको (भगवान) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।

 

कभी आप बहुत परेशान हों, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो तो आप आँखें बंद करके विश्वास के साथ पुकारें, सच मानिये थोड़ी देर में आपकी समस्या का समाधान मिल जायेगा।

 

सदैव प्रसन्न रहिये।

जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।

 

👉 !! शब्दों की ताकत !!

 

एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, ” अरे छोटू, कहाँ जा रहे हो तुम ?” “मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ !”,

 

चीता रोमांचित होते हुए बोला। “हा-हा-हा-, लकड़बग्घा हंसा,” अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं, तुम इतने छोटे हो, तुम्हे शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है, तुम क्या शिकार करोगे !! लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया।

 

दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा, कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा। अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला।

 

कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा, ” कहाँ जा रहे हो बेटा ?” “बंदर मामा, मैं शिकार पर जा रहा हूँ। ” चीता बोला। बहुत अच्छे ” बन्दर बोला , ” तुम्हारी ताकत और गति के कारण तुम एक बेहद कुशल शिकारी बन सकते हो।

 

जाओ तुम्हे जल्द ही सफलता मिलेगी।” यह सुन चीता उत्साह से भर गया और कुछ ही समय में उसने के छोटे हिरन का शिकार कर लिया।

 

मित्रों, हमारी ज़िन्दगी में “शब्द” बहुत मायने रखते हैं। दोनों ही दिन चीता तो वही था, उसमे वही फूर्ति और वही ताकत थी पर जिस दिन उसे डिस्करेज किया गया वो असफल हो गया और जिस दिन एनकरेज किया गया वो सफल हो गया।

 

📚शिक्षा--:--

इस छोटी सी कहानी से हम तीन ज़रूरी बातें सीख सकते हैं । -:-

 

🌹 पहली, हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने “शब्दों” से किसी को Encourage करें, Discourage नहीं। Of Course, इसका ये मतलब नहीं कि हम उसे उसकी कमियों से अवगत न करायें, या बस झूठ में ही एन्करजे करें।

 

🌹 दूसरी  हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा निगेटिव सोचते और बोलते हों, और उनका साथ करें जिनका Outlook Positive हो।

 

🌹 तीसरी और सबसे अहम बात,

हम खुद से क्या बात करते हैं, Self-Talk में हम कौन से शब्दों का प्रयोग करते हैं इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखें, क्योंकि ये “शब्द” बहुत ताकतवर होते हैं।

 

क्योंकि ये “शब्द” ही हमारे विचार बन जाते हैं, और ये विचार ही हमारी ज़िन्दगी की हकीकत बन कर सामने आते हैं, इसलिए दोस्तों, Words की Power को पहचानिये, जहाँ तक हो सके पॉजिटिव वर्ड्स का प्रयोग करिये, इस बात को समझिए कि ये आपकी ज़िन्दगी बदल सकते हैं।

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