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मौलाना जलालुद्दीन रूमी की कथाएं भाग -3

 

मौलाना जलालुद्दीन रूमी की कथाएं भाग -3

 

9.     मूर्खों से भागो

 

     हजरत ईसा एक बार पहाड़ की तरफ इस तरह दौड़े जा रहे थे कि जैसे कोई शेर उनपर हमला करने के लिए पीछे से आ रहा हो। एक आदमी उनके पीछे दौड़ा और पूछा, "खैर तो है? हजरत, आपके पीछे तो कोई भी नहीं, फिर परिन्दे की तरह क्यों उड़े चले जा रहे हो?" परन्तु ईसा ऐसी जल्दी में थे कि कोई जवाब नहीं दिया। कुछ दुर तक वह आदमी उनके पीछे-पीछे दौड़ा और आखिर बड़े जोर की आवाज देकर उनको पुकार, "खुदा के वास्ते जरा तो ठहरिये। मुझे आपकी इस भाग-दौड़ से बड़ी परेशानी हो रही है। आप इधर से क्यों भागे जा रहे हैं? आपके पीछे न शेर है, दुश्मन!"

 

      हजरत ईसा बोलो, "तेरा कहना सच है। परन्तु मैं एक मूर्ख मनुष्य से भाग रहा हूं।"

 

     उसने कहा, "क्या तुम मसीहा नहीं हो, जिनके चमत्कार से अन्धे देखने लगते हैं और बहरों को सुनायी देने लगता है?"

वह बोले, "हां।"

उसने पूछा, "क्या तुम वह बादशाह नहीं कि जिनमें ऐसी शक्ति है कि यदि मुर्दे पर मन्त्र फंक दे तो वह मुर्दा भी जिंदा पकड़ें गए शेर की तरह उठा खड़ा होता है।"

ईसा ने कहा, "हां, मैं वही हूं।"

फिर उसने पूछा, "क्या आप वह नहीं कि मिट्टी को पक्षी बनाकर जरा मन्त्र पढ़े तो जान पड़ जाये और उसी वक्त हव में उड़ने लगे?"

ईसा ने जवाब दिया, "बेशक, वही हूं।"

फिर उसने निवदन किया।"ऐ पवित्र आत्मा! आप जो चाहें कर सकते हैं, फिर आपको किसका डर है?"

हजरत ईसा ने कहा, "ईश्वर की कसम, जो और जीव का पैदा करनेवाला है,

 

    और जिसकी महान् शक्ति के मुकाबले में आकाश भी तुच्छ हैं, जब उसके पवित्र नाम को मैंने बहारों और अन्धों पर पढ़ा तो वे अच्छे हो गये, पहाड़ों पर चढ़ा तो उनके टुकड़े-टुकड़े हो गये, मृत शरीरों पर पढ़ा तो जीवित हो गये, परन्तु मैंने बड़ी श्रद्धा से वही पवित्र नाम जब मूर्ख पर पढ़ा और लाखों बार पढ़ा तो अफसोस कि कोई लाभ नहीं हुआ!"

 

     उस आदमी ने आश्चर्य से पूछा कि हजरत, यह क्या बात है कि ईश्वर का नाम वहां फायदा करता है और यहां कोई असर नहीं करता? हालांकि यह भी एक बीमारी है और वह भी। फिर क्या कारण है कि उस सृष्टि-कर्ता का पवित्र नाम दोनों पर समान असर नहीं करता?

 

     हजरत ईसा ने कहा, "मूर्खता का रोग ईश्वर की ओर से दिया हुआ दंड है और अन्धेपन की बीमारी दंड नहीं, बल्कि परीक्षा के तौर पर जो बीमारी है, उसपर दया आती है, और मूर्खता वह रोग है, जिससे दिल में जलन होती है।"

 

    हजरत ईसा की तरह मूर्खों से दूर भागना चाहिए। मूर्खों के संग ने बड़े-बड़े झगड़े पैदा किये है। जिस तरह हवा आहिस्ता-आहिस्ता पानी को खुश्क कर देती हैं, उसी तरह मूर्ख मनुष्य भी धीरे-धीरे प्रभाव डालते है और इसका अनुभव नहीं होता।

 

10.    मूसा और चरवाहा

 

    एक दिन हजरत मूसा ने रास्ता चलते एक चरवाहे को यह कहते सुना, "ऐ प्यारे खुदा तू कहां है? बता, जिससे मैं तेरी खिदमत करुं। तेरे मोजे सीऊं और सिर में कंघी करुं। मैं तेरी सेवा में जाऊं। तेरे कपड़ों में थेगली लगाऊं। तेरे कपड़े धोऊं और ऐ प्यारे, तेरे और तेरे आगे दूध रक्खूं और अगर तू बीमार हो जाये तो संबंधियों से अधिक तेरी सेवा-टहल करुं। तेरे हाथ चूमूं, पैरों की मालिश करुं और जब सोने का वक्त हो तो तेरे बिछौने को झाड़कर साफ करुं और तेरे लिए रोज घी और दूध पहुंचाया करुं। चुपड़ी हुई रोटियां और पीने के लिए बढ़िया दही और मठा तैयार करके सांझ-सवेरे लाता रहूं। मतलब यह है कि मेरा काम मेरा काम लाना हो और तेरा काम खना हो। तेरे दर्शनों के लिए मेरी उत्सुकता हद से ज्यादा बढ़ गयी है।"

 

    यह चरवाह इस तरह की बेबुनियाद बातें कर रहा था। मूसा ने पूछा, "अरे भाई, तू ये बातें किससे कह रहा है?"

 

    उस आदमी ने जवाब दिया, "उसने, जिससे, हमको पैदा किया है, यह पृथ्वी और आकाश बनाये हैं।"

 

    हजरत मूसा ने कहा, "अरे आभागे! तू धर्म-शील होने के बजाय काफिर हो गया है क्या? काफिरों जैसी बेकार की बातें कर रहा है। अपने मुंह में रुई ठूंस। तेरे कुफ्र की दुर्गंध सारे ससार में फैल रही है। तेरे धर्म-रूपी कमख्वाब में थेगली लगा दी। मोजे और कपड़े तुझे ही शोभा देते हैं। भला सूर्य को इन चीजों की क्या आवश्यकता है? अगर तू ऐसी बातें करने से नहीं रुकेगा तो शर्म के कारण सारी सृष्टि जलकर राख हो जायेगी। अगर तू खुदा को न्यायकारी और सर्वशक्तिमान मानता है तो इस बेहूदी बकवास से क्या लाभ? खुदा को ऐसी सेवा की आवश्यकता नहीं। अरे गंवार! ऐसी बातें तू किससे कर रहा है? वह ज्योतिस्वरुप (परमेश्वर) तो शरीर और आवश्यकताओं से रहित है। दूध तो वह पिये, जिसका शरीर और आयु घटे-बढ़े और मोजे वह पहने, जो पैरों के अधीन हो।"

 

      चरवाहे ने कहा, "ऐ मूसा! तूने मेरा मुंह बन्द कर दिया। पछतावे के कारण मेरा शरीर भुनने लगा है।"

 

     यह कहकर उस चरवाहे ने कपड़े फाड़ डाले, एक ठंडी सांस ली और जंगल में घुसकर गायब हो गया। इधर मूसा को आकाशावाणी सुनायी दी, "ऐ मूसा! तूने हमारे बन्दे को हमसे क्यों जुदा कर दिया? तू संसार में मनुष्यों को मिलाने आया है या अलग करने? जहां तक सम्भव हो, जुदा करने का इरादा न कर। हमने हर एक आदमी का स्वभाव अलग-अलग बनाया है और प्रत्येक मनुष्य को भिन्न-भिन्न की बोलियां दी हैं। जों बात इसके लिए अच्छी है, वह तेर लिए बुरी है। एक बात इसके हक में शहद का असर रखती है और वही तेरे लिए विष का। जो इसके लिए प्रकाश है, वह तेरे लिए आग है। इसके हक में गुलाब का फूल और तेरे लिए कांटा हैं। हम पवित्रता, अपवित्रता, कठोरता और कोमलता सबसे अलग हैं। मैंने इस सृष्टि की रचना इसलिए नहीं की कि कोई लाभ उठाऊं, बल्कि मेरा उद्देश्य तो केवल यह है कि संसार के लोगों पर अपनी शक्ति और उपकार प्रकट करुगं। इनके जाप और भजन से मैं कुछ पवित्र नहीं हो जाता, बल्कि जो मोती इनके मुंह से झड़ते हैं, उनसे स्वयं ही इनकी आत्मा शुद्ध होती है। हम किसीके वचन या प्रकट आचरणों को नहीं देखते। हम तो ह्दय के आन्तरिक भावों को देखते हैं। ऐ मूसा, बुद्धिमान मनुष्यों की प्रार्थनाएं और हैं और दिलजलों की इबादत दूसरी है। इनका ढंग ही निराला है।"

 

    जब मूसा ने अदृष्ट से ये शब्द सुने तो व्याकुल होकर जंगल की तरफ चरवाहे की तलाश में निकले। उसके पद-चिह्नों को देखते हुए सारे जंगल की खाक छान डाली। आखिर उसे तलाश कर लिया। मिलन पर कहा, "तू बड़ा भाग्यवान है। तुझे आज्ञा मिल गयी। तुझे किसा शिष्टाचार या नियम की आवश्यकता नहीं। जो तेरे जी में आये, कहा। तेरा कुफ्र धर्म और तेरा धर्म ईश्वर-प्रेम है। इसलिए तेरे लिए सबकुछ माफ है बल्कि तेरे दम से ही सृष्टि कायम है। ऐ मनुष्य! खुदा की मर्जी से माफी मिल गयी। अब तू निस्संकोच होकर जो मुंह आये, कह दे।"

 

      चरवाहे ने जवाब दिया, "ऐ मूसा! अब मैं इस तरह की बातें मुंह से नहीं निकालूंगा। तूने जो मेरे बुद्धि-रुपी घोड़े को कोड़ा लगाया तो वह एक छलांग में सातवे आसमान पर जा पहुंचा। अब मेरी दशा बयान से बाहर है, बल्कि मेरे ये शब्द भी मेरी हार्दिक दशा को प्रकट नहीं करते।"

 

     ऐ मनुष्य! तो जो ईश्वर की प्रशंसा और स्तुति करता है, तेरी दशा भी इस चरवाहे से अच्छी नहीं है। मू महा अधर्मी और संसार में लिप्त है। तेरे कर्म और वचन भी निकृष्ट हैं। यह केवल उस दयालु परामात्मा की कृपा है कि वह तेरे अपवित्र उपहार को भी स्वीकार कर लेता है।]

 

 

11.     ईश्वर की खो

 

      इब्राहीम आधी रात में अपने महल में सो रहा था। सिपही कोठे पर पहरा दे रहे थे। बादशाह का यह उद्देश्य नहीं था कि सिपाहियों की सहायता से चोरों और दुष्ट मनुष्यों से बचा रहे, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि जो बादशाह न्यायप्रिय है, उसपर कोई विपत्ति नहीं आ सकती, वह तो ईश्वर से साक्षात्कार करना चाहता था।

 

    एक दिन उसने सिंहासन पर सोते हुए किसके कुछ शब्द और धमाधम होने की आवाज सुनी।

 

     वह अपने दिल में विचारने लगा कि यह किसीकी हिम्मत है, जो महल के ऊपर चढ़कर इस तरह धामाके से पैरे रक्खे! उसने झरोखों से डांटकर कहा, 'कौन है?"

 

     ऊपर से लोगों ने सिर झुकाकर कहा, "रात में हम यहां कुछ ढूंढ़ने निकले हैं।"

 

 बादशाह ने पूछा, "क्या ढूंढ़ने निकले हैं?"

 

 लोगों ने उत्तर दिया, "हमारा ऊंट खो गया है उसे।"

बादशाह ने कहा, "ऊपर कैसे आ सकता है?"

 

   उन लोगों ने उत्तर दिया, "यदि इस सिंहासन पर बैठकर, ईश्वर से मिलने की इच्छा की जा सकती है तो महल के ऊपर ऊंट भी मिल सकता हैं।"

 

    इस घटना के बाद बादशाह को किसीने महल में नहीं देखा। वह लोगों की नजर से गायब हो गया।

 

   इब्राहीम का आन्तरिक गुण गुप्त था और उसकी सूरत लोगों के सामने थी। लोग दाढ़ी और गुदड़ी के अलावा और क्या देखते हैं?

 

12.    चुड़ैल का जादू

 

     एक राजा था। उसके एक नौजवान लड़का था। लड़का बड़ा सुंदर था। राज ने एक दिन स्वप्न में देखा कि लड़का मर गया। इकलौता बेटा, फिर सुन्दर और होनहार। राजा खूब रोया और सिर धुनने लगा। इतने में उसकी निद्रा भंग हो गयी। जागा तो सब भ्रम था। लड़का बड़े आनंद में था। पुत्र के जन्म पर जो खुशी हुई थी, अब उसके मरकर जीने पर उससे अधिक खुशी हुई।

 

     जब राज-ज्योतिषियों को यह हाल मालूम हुआ तो वे दौड़े आये कहने लगे कि यह स्वप्न विवाह का सूचक है। अब जल्द राजकुमार का विवाह हो जाना चाहिए।

 

      राजा एक साधु से परिचित थे, जो अपनी तपस्या और विद्या के कारण विख्यात था। साधु एक बड़ी सुन्दर लड़की थी। उसीसे राजा ने राजकुमार का विवाह करने का निश्चय किया। साधु के पास सन्देश भेजा। साधु बड़ा खुश हुआ और विवाह के लिए राजी हो गया। राजा के लड़के और साधु की लड़की का विवाह हो गया।

 

     जब रानी को यह हाल मालूम हुआ कि पुत्र-वधू एक साधारण साधु की लड़की है, तो उसे बड़ा क्रोध आया। राजा से बोली, "तुमने अपनी प्रतिष्ठा का कुछ भी ख्याल न किया। राजा होकर साधु से रिश्ता जोड़ लिया!"

 

    राजा ने रानी की बात सुनी तो कहने लगा, "तू उसको साधु न समझ, वह तो राजा है। जिसने अपनी इच्छाओं को वश में कर लिया वही राजा है। इन्द्रियों के दास को कौन बुद्धिमान मनुष्य राजा कह सकता है? बस, अब चिन्ता न कर मैंने राजा से रिश्ता जोड़ा है, साधु से नहीं।"

 

    इधर तो यह हुआ और उधर राजकुमार को वह साधु की लड़की, जो वास्तव में बड़ी रुपवती थी, पसन्द नहीं आयी। उसे एक दूसरी ही स्त्री पसन्द थी।

 

     वह स्त्री बिलकुल चुड़ैल थी। सब उससे नफरत करते थे। पर राजकुमार उसपर मुग्ध था। उसे इस चुड़ैल का इतना मोह हो गया था कि इसके लिए जान देने को भी तैयार था।

 

    राजा का जब यह हाल मालूम हुआ तो सन्न रह गया। बार-बार राजकुमार के सौन्दर्य और उसकी वधू के रूप की याद करके उसके भाग्य पर रोने लगा। अब राजा को यह चिन्ता हुई कि किसी तरह राजकुमार का मन अपनी विवाहित स्त्री की ओर आकर्षित हो और इस चुड़ैल से छुटकारा मिले। यत्न करने से कार्य सिद्ध होता है। राजा ने जब यत्न करने का बीड़ा उठाया तो सफलता नज़र आने लगी। राजा को एक जादूगर मिल गया। उसने कहा, "मैं अपनी विद्या से राजकुमार को चुड़ैल के चक्कर से निकाल दूंगा। आप घबराएं नहीं।"

 

   यह कहकर जादूगर राजकुमार के पास पहुंचा और उसको अपनी जादू-भरी वाणी से उपदेश करने लगा। उपदेश सुनना था कि राजकुमार के होश ठिकाने आ गये और चुड़ैल को डांटकर कहने लगा कि तूने मुझे इतने दिनों तक बहकाये रक्खा। अब मैं एक क्षण के लिए भी तेरी सूरत नहीं देखना चाहता। चुडैल तुरन्त वहां से भाग गयी। राजकुमार उसके फन्दे से निकलकर अपनी परी-जैसी पत्नी के पास आ पहुंचा। जब उसे इस देवी के दर्शन हुए तो फूला न समाया। अब व अपने को सचमुच धन्य समझने लगा।

 

    यह दुनिया चुड़ैल के समान है, जो भोले मनुष्य को अपने जाल में फंसा कर, मक्ति-पथ से विचलित कर देती हैं परन्तु जब जादूगर की तरह कोई सच्चा ज्ञानी मिल जाता है तो मनुष्य के मन को परमात्मा की ओर लगा देता है।]

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