👉 हिसाब चार आने का
🔴 बहुत
समय पहले की बात है, चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था, दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसके
महल में हर एक सुख-सुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत
रहता था। उसने कई ज्योतिषियों और पंडितों से इसका कारण जानना चाहा, बहुत से विद्वानों से मिला, किसी ने कोई अंगूठी
पहनाई तो किसी ने यज्ञ कराए, पर फिर भी राजा का दुःख दूर
नहीं हुआ, उसे शांति नहीं मिली।
🔵 एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर
पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी
उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी, किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण
कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था।
🔴 किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि
वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां आ पाये।
🔵 राजा किसान के सम्मुख जा कर बोला – मैं एक राहगीर हूँ, मुझे
तुम्हारे खेत पर ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं, चूँकि
यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो।
🔴 किसान –
ना – ना सेठ जी, ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं, इसे आप ही रखें या किसी और को दान कर दें, मुझे इनकी
कोई आवश्यकता नहीं।
🔵 किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब
लगी,
वह बोला, धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला
आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं?”
🔴 सेठ जी, मैं रोज चार आने
कमा लेता हूँ, और उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ…, किसान बोला।
🔵 क्या? आप सिर्फ चार आने की कमाई
करते हैं, और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं, यह कैसे संभव है! राजा ने अचरज से
पुछा।
🔴 सेठ जी, किसान बोला,
प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती की आप कितना कमाते हैं या
आपके पास कितना धन है…. प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है।
🔵 तो तुम इन चार आने का क्या-क्या कर लेते
हो?,
राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।
🔴 किसान भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहता
था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया, इन चार आनो में से एक मैं कुएं में डाल
देता हूँ, दूसरे से कर्ज चुका देता हूँ, तीसरा उधार में दे देता हूँ और चौथा मिट्टी में गाड़ देता हूँ….
🔵 राजा सोचने लगा, उसे
यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था, पर वो जा चुका था।
🔴 राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार
में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।
🔵 दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किये पर
कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया, अंत में किसान को ही दरबार
में बुलाने का निर्णय लिया गया।
🔴 बहुत खोज-बीन के बाद किसान मिला और उसे कल
की सभा में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया।
🔵 राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण
करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।
🔴 मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ, और
तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ; बताओ, तुम
अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते
हो ? राजा ने प्रश्न किया।
🔵 किसान बोला, हुजूर, जैसा की मैंने बताया था, मैं एक आना कुएं में डाल
देता हूँ, यानि अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा देता हूँ,
दूसरे से मैं कर्ज चुकता हूँ, यानि इसे मैं
अपने वृद्ध माँ-बाप की सेवा में लगा देता हूँ, तीसरा मैं
उधार दे देता हूँ, यानि अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में
लगा देता हूँ, और चौथा मैं मिट्टी में गाड़ देता हूँ, यानि मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना
ना पड़े और मैं इसे धार्मिक, सामाजिक या अन्य आवश्यक कार्यों
में लगा सकूँ।
🔴 राजा को अब किसान की बात समझ आ चुकी थी। राजा
की समस्या का समाधान हो चुका था, वह जान चुका था की यदि उसे प्रसन्न एवं
संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किये धन का सही-सही उपयोग करना होगा।
🔵 मित्रों, देखा जाए तो पहले
की अपेक्षा लोगों की आमदनी बढ़ी है पर क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी
है? पैसों के मामलों में हम कहीं न कहीं गलती कर रहे हैं,
जिन्दगी को संतुलित बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और
उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों
रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे!
👉 बोले हुए शब्द वापस नहीं आते
🔴 एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को भला बुरा
कह दिया,
पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.
उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा।
🔵 संत ने किसान से कहा, तुम
खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो, और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो किसान ने ऐसा ही किया
और फिर संत के पास पहुंच गया।
🔴 तब संत ने कहा, अब
जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ।
🔵 किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और
किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे
द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने
मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते।
🔴 कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा
कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप
उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी
चाहिए, पर मानवीय स्वभाव कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर
लीजिये इंसान कहीं ना कहीं दुखी हो ही जाता है।
🔵 मित्रों जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह
उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को
कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए।
👉 जिज्ञासु के लक्षण-श्रद्धा और नम्रता
🔴 एक बार राजा जातश्रुति के राजमहल की छत पर
हंस आकर बैठे और आपस में बात करने लगे। एक हंस ने कहा जिसके राजमहल पर हम बैठे है, वह
बड़ा धर्मात्मा और दानी है। इसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई है। इस पर दूसरे हंस
ने कहा- गाड़ीवान रैक्य की तुलना में यह न तो ज्ञानी है और न दानी।
🔵 इस वार्ता को जातश्रुति सुन रहे थे। उन्हें
गाड़ीवान रैक्य से भेंट करने की इच्छा हुई। उनने चारों दिशाओं में दूत भेजे। पर वे
निराश होकर लौटे। उनने कहा-राजन् हमने सभी नगर, मन्दिर, मठ ढूँढ़ डाले पर वे कही नहीं मिले। तब राजा ने विचार किया ब्रह्मज्ञानी
पुरुषों का विषयी लोगों के बीच रहना कैसे हो सकता है। अवश्य ही वे कही साधना के
उपयुक्त एकान्त स्थान में होंगे वही उन्हें तलाश कराना चाहिए।
🔵 अब की बार दूत फिर भेजे गये तो वे एक निर्जन
प्रदेश में अपनी गाड़ी के नीचे बैठे मिल गये। यही उनका घर था। राजा उनके पास बहुत धन, आभूषण,
गाऐं, रथ आदि लेकर पहुँचा। उसका विचार था कि
रैक्य इस वैभव को देखकर प्रसन्न होंगे और मुझे ब्रह्मज्ञान का उपदेश देंगे। पर
परिणाम वैसा नहीं हुआ। रैक्य ने कहा-अरे शूद्र! यह धन वैभव तू मेरे लिए व्यर्थ ही
लाया है। इन्हें अपने पास ही रख।” ऋषि को क्रुद्ध देखकर राजा निराश वापिस लौट आया
और सोचता रहा कि किस वस्तु से उन्हें प्रसन्न करूँ। सोचते-सोचते उसे सूझा कि विनय
और श्रद्धा से ही सत्पुरूष प्रसन्न होते है। तब वह हाथ में समिधाएं लेकर, राजसी ठाठ-बाठ छोड़कर एक विनीत जिज्ञासु के रूप में उनके पास पहुँचा।
रैक्य ने राजा में जिज्ञासु के लक्षण देखे तो वे गदगद हो उठे। उनने जातश्रुति को
हृदय से लगा लिया और प्रेम पूर्वक ब्रह्म विद्या का उपदेश दिया।
🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961 पृष्ठ 25
👉 आप अपने बारे में क्या सोचते हैं?
🔴 एक भिखारी किसी स्टेशन पर पैंसिलों से भरा
कटोरा लेकर बैठा हुआ था। एक युवा व्यवसायी उधर से गुजरा और उसने कटोरे में 50 रुपए
डाल दिए लेकिन उसने कोई पैंसिल नहीं ली। उसके बाद वह ट्रेन में बैठ गया। डिब्बे का
दरवाजा बंद होने ही वाला था कि युवा व्यवसायी एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास
लौटा और कुछ पैंसिलें उठाकर बोला, ‘‘मैं कुछ पैंसिलें लूंगा। इन पैंसिलों
की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैं भी।’’ उसके
बाद वह युवा व्यवसायी तेजी से ट्रेन में चढ़ गया।
🔵 कुछ वर्षों बाद वह व्यवसायी एक पार्टी में
गया। वह भिखारी भी वहां मौजूद था। भिखारी ने उस व्यवसायी को देखते ही पहचान लिया।
वह उसके पास जाकर बोला, ‘‘आप शायद मुझे नहीं पहचान रहे हैं लेकिन
मैं आपको पहचानता हूं।’’ उसके बाद उसने उसके साथ घटी उस घटना का जिक्र किया।
व्यवसायी ने कहा, ‘‘तुम्हारे याद दिलाने पर मुझे याद आ रहा
है कि तुम भीख मांग रहे थे लेकिन तुम यहां सूट और टाई में क्या कर रहे हो?’’
🔴 भिखारी ने जवाब दिया, ‘‘आपको शायद मालूम नहीं है कि आपने मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझ पर दया
करने की बजाय मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आए। आपने कटोरे से पैंसिलें उठाकर कहा,
‘‘इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी
हो और मैं भी।’’
🔵 आपके जाने के बाद मैंने बहुत सोचा, मैं
यहां क्या कर रहा हूं? मैं भीख क्यों मांग रहा हूं? मैंने अपनी जिंदगी को संवारने के लिए कुछ अच्छा काम करने का फैसला लिया।
मैंने अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पैंसिलें बेचने लगा। फिर धीरे-धीरे मेरा
व्यापार बढ़ता गया। मैं कापियां-किताबें एवं अन्य चीजें भी बेचने लगा और आज पूरे
शहर में मैं इन चीजों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूं। मुझे मेरा सम्मान लौटाने के
लिए मैं आपका तहेदिल से धन्यवाद करता हूं क्योंकि उस घटना ने आज मेरा जीवन ही बदल
दिया।
🔴 आप अपने बारे में क्या सोचते हैं? अपने
लिए आज आप क्या राय जाहिर करते हैं? क्या आप अपने आपको ठीक
तरह से समझ पाते हैं? इन सारी चीजों को ही हम सीधे रूप से
आत्मसम्मान कहते हैं। दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं ये बातें उतनी
मायने नहीं रखतीं या यूं कहें कि कुछ भी मायने नहीं रखतीं लेकिन आप अपने बारे में
क्या राय जाहिर करते हैं, क्या सोचते हैं यह बात बहुत ही
ज्यादा मायने रखती है लेकिन एक बात तय है कि हम अपने बारे में जो भी सोचते हैं
उसका अहसास जाने-अनजाने में दूसरों को भी करवा ही देते हैं और इसमें कोई भी शक
नहीं कि इसी कारण की वजह से दूसरे लोग भी हमारे साथ उसी ढंग से पेश आते हैं।
👉 पत्नी त्याग - महापाप
🔵 उत्तानपाद के पुत्र और तपस्वी ध्रुव के छोटे
भाई का नाम उत्तम था। यद्यपि वह धर्मात्मा राजा था फिर भी उसने एक बार अपनी पत्नी से
अप्रसन्न होकर उसे घर से निकाल दिया और अकेला ही घर में रहने लगा।
🔴 एक दिन एक ब्राह्मण राजा उत्तम के पास आया
और कहा- मेरी पत्नी को कोई चुरा ले गया है। यद्यपि वह स्वभाव की बड़ी क्रूर वाणी से
कठोर,
कुरूप और अनेक कुलक्षणों से भरी हुई थी, पर
मुझे अपनी पत्नी की रक्षा, सेवा और सहायता करनी ही उचित है।
राजा ने ब्राह्मण को दूसरी पत्नी दिला देने की बात कही पर उसने कहा- पत्नी के
प्रति पति को वैसा ही सहृदय और धर्म परायण होना चाहिए जैसा कि पतिव्रता स्त्रियाँ
होती है।
🔵 राजा ब्राह्मण की पत्नी को ढूँढ़ने के लिए
चल दिया। चलते -चलते वह एक वन में पहुँचा जहाँ एक तपस्वी महात्मा तप कर रहे थे।
राजा का अपना अतिथि ज्ञान ऋषि ने अपने शिष्य को अर्घ्य, मधुपर्क
आदि स्वागत का समान लाने को कहा। पर शिष्य ने उनके कान में एक गुप्त बात कही तो
ऋषि चुप हो गये और उसने बिना स्वागत उपचार किये साधारण रीति से ही राजा से वार्ता
की।
🔴 राजा का इस पर आश्चर्य हुआ। उसने स्वागत
का कार्य स्थगित कर देने का कारण बड़े दुःख, विनय और संकोच के साथ
पूछा। ऋषि ने उत्तर दिया- राजन् आप ने पत्नी का त्याग कर वही पाप किया है। जो
स्त्रियाँ किसी कारण से अपने पति का त्याग कर करती हैं। चाहे स्त्री दुष्ट स्वभाव
की ही क्यों न हो पर उसका पालन और संरक्षण करना ही धर्म तथा कर्तव्य है। आप इस
कर्तव्य से विमुख होने के कारण निन्दा और तिरस्कार के पात्र हैं। आपके पत्नी त्याग
का पाप मालूम होने पर आपका स्वागत स्थगित करना पड़ा।
🔵 राजा को अपने कृत्य पर बड़ा पश्चाताप हुआ।
उसने ब्राह्मण की स्त्री के साथ ही अपनी स्त्री को भी ढूँढ़ा और उनको सत्कार
पूर्वक राजा तथा ब्राह्मण ने अपने - अपने घर में रखा।
🔴 देवताओं की साक्षी में पाणिग्रहण की हुई पत्नी
में अनेक दोष होने पर भी उसका परित्याग नहीं करना चाहिए। जैसे पतिव्रता स्त्री अपने
सद् व्यवहार से दुर्गुणी पति को सुधारती है वैसे ही हर पुरुष को पत्नी व्रती होना चाहिए
और प्रेम तथा सद् व्यवहार से उसे सुधारता चाहिए। त्याग करना तो कर्तव्य घात है।
👉 मेरी कीमत क्या होगी?
🔵 दुनिया के कट्टर और खूँखार बादशाहों में तैमूरलंग
का भी नाम आता है व्यक्तिगत महत्त्वाकाँक्षा, अहंकार और जवाहरात की
तृष्णा से पीड़ित तैमूर ने एक बार विशाल भू-भाग को देखकर बगदाद में उसने एक लाख
मरे हुए व्यक्तियों की खोपड़ियों का पहाड़ खड़ा कराया था। इसी बात से उसकी क्रूरता
का पता चल जाता है।
🔴 एक समय की बात है। बहुत से गुलाम पकड़कर उसके
सामने लाये गये। तुर्किस्तान का विख्यात कवि अहमदी भी दुर्भाग्य से पकड़ा गया। जब वह
तैमूर के सामने उपस्थित हुआ, तो एक विद्रूप- सी हँसी हँसते हुए उसने
दो गुलामों की ओर इशारा करते हुए पूछा- "सुना है कि कवि बड़े पारखी होते है,
बता सकते हो इनकी कीमत क्या होगी?”
🔵 “इनमें से कोई भी 4 हजार अशर्फियों से कम कीमत
का नहीं है।” अहमदी ने सरल किन्तु स्पष्ट उत्तर दिया।
🔴 ”मेरी कीमत क्या होगी?”तैमूर
ने अभिमान से पूछा।
🔵 ”यही कोई 24 अशर्फी।” निश्चिंत भाव से
अहमदी ने उत्तर दिया।
🔴 तैमूर क्रोध से आग बबूला हो गया। चिल्लाकर
बोला-बदमाश! इतने में तो मेरी सदरी (उसके पहनने का वस्त्र) भी नहीं बन सकती, तू
यह कैसे कह सकता है कि मेरा मूल्य कुल 24 अशर्फी है।”
🔵 अहमदी ने बिना किसी आवेश या उत्तेजना के
उत्तर दिया-बस वह कीमत उसी सदरी की है, आपकी तो कुछ नहीं। जो
मनुष्य पीड़ितों की सेवा नहीं कर सकता, बड़ा होकर छोटों की
रक्षा नहीं कर सकता, असहायों की, अनाथों
की जो सेवा नहीं कर सकता, मनुष्य से बढ़कर जिसे अहमियत
प्यारी हो उस इनसान का मूल्य चार कौड़ी भी नहीं, उससे अच्छे
तो यह गुलाम ही है, जो किसी के काम तो आते हैं।”
🌹 अखण्ड ज्योति मई 1988
👉 त्याग और प्रेम
🔵 एक दिन नारद जी भगवान के लोक को जा रहे थे।
रास्ते में एक संतानहीन दुखी मनुष्य मिला। उसने कहा-नाराज मुझे आशीर्वाद दे दो तो मेरे
सन्तान हो जाये। नारद जी ने कहा-भगवान के पास जा रहा हूँ। उनकी जैसी इच्छा होगी
लौटते हुए बताऊँगा।
🔴 नारद ने भगवान से उस संतानहीन व्यक्ति की बात
पूछी तो उसने उत्तर दिया कि उसके पूर्व कर्म ऐसे हैं कि अभी सात जन्म उसके सन्तान और
भी नहीं होगी। नारद जी चुप हो गये।
🔵 इतने में एक दूसरे महात्मा उधर से निकले, उस
व्यक्ति ने उनसे भी प्रार्थना की। उसने आशीर्वाद दिया और दसवें महीने उसके पुत्र
उत्पन्न हो गया।
🔴 एक दो साल बाद जब नारद जी उधर से लौटे तो उसने
कहा-भगवान ने कहा है-तुम्हारे अभी सात जन्म संतान होने का योग नहीं है।
🔵 इस पर वह व्यक्ति हँस पड़ा। उसने अपने
पुत्र को बुलाकर नारद जी के चरणों में डाला और कहा-एक महात्मा के आशीर्वाद से यह
पुत्र उत्पन्न हुआ है।
🔴 नारद को भगवान पर बड़ा क्रोध आया कि व्यर्थ
ही वे झूठ बोले। मुझे आशीर्वाद देने की आज्ञा कर देते तो मेरी प्रशंसा हो जाती सो तो
किया नहीं, उलटे मुझे झूठा और उस दूसरे महात्मा से भी तुच्छ सिद्ध
कराया। नारद कुपित होते हुए विष्णु लोक में पहुँचे और कटु शब्दों में भगवान की
भर्त्सना की।
🔵 भगवान ने नारद को सान्त्वना दी और इसका उत्तर
कुछ दिन में देने का वायदा किया। नारद वहीं ठहर गये। एक दिन भगवान ने कहा-नारद लक्ष्मी
बीमार हैं-उसकी दवा के लिए किसी भक्त का कलेजा चाहिए। तुम जाकर माँग लाओ। नारद
कटोरा लिये जगह-जगह घूमते फिरे पर किसी ने न दिया। अन्त में उस महात्मा के पास
पहुँचे जिसके आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न हुआ था। उसने भगवान की आवश्यकता सुनते ही
तुरन्त अपना कलेजा निकालकर दे किया। नारद ने उसे ले जाकर भगवान के सामने रख दिया।
🔴 भगवान ने उत्तर दिया-नारद ! यही तुम्हारे प्रश्न
का उत्तर है। जो भक्त मेरे लिए कलेजा दे सकता है उसके लिए मैं भी अपना विधान बदल सकता
हूँ। तुम्हारी अपेक्षा उसे श्रेय देने का भी क्या कारण है सो तुम समझो। जब कलेजे
की जरूरत पड़ी तब तुमसे यह न बन पड़ा कि अपना ही कलेजा निकाल कर दे देते। तुम भी
तो भक्त थे। तुम दूसरों से माँगते फिरे और उसने बिना आगा पीछे सोचे तुरन्त अपना
कलेजा दे दिया। त्याग और प्रेम के आधार पर ही मैं अपने भक्तों पर कृपा करता हूँ और
उसी अनुपात से उन्हें श्रेय देता हूँ।” नारद चुपचाप सुनते रहे। उनका क्रोध शान्त
हो गया और लज्जा से सिर झुका लिया।
🌹 अखण्ड ज्योति मई 1961 पृष्ठ 41
👉 भगवान की नजरों से कौन बचा है?
🔴 ऋषिवर के आश्रम में एक दिन एक राहगीर आया और
ऋषिवर को सादर प्रणाम के बाद उसने ऋषिवर के सामने अपनी एक जिज्ञासा प्रकट की हे नाथ, मैंने
किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया और ना ही मैं किसी के साथ कुछ गलत करना चाहता हुं
पर ये संसार मेरे बारे में न जाने क्या - क्या कहता है और सोचता है मैं क्या करूँ
देव?
🔵 ऋषिवर - हे वत्स पहले जो मैं कहूँ उसे ध्यान
से सुनना!
🔴 राहगीर - जी गुरुदेव!
🔵 ऋषिवर - एक नगर में एक नर्तकी रहती थी उसके
घर के सामने एक ब्राह्मण रहता था और पीछे एक साधु की कुटिया थी! साधु रोज नगर जाते
और मन्दिर जाते नगरवासियों की सेवा करते और आकर कुटिया में अपना काम करते साधु बड़े
भले थे किसी को कभी किसी काम के लिये मना नहीं किया! नर्तकी अकेली थी और उसका पेशा
नृत्य करना था वो नृत्य करके जीवन बीता रही थी ब्राह्मण अत्यंत गरीब था और अकेला
था मजदूरी करके जीवन यापन कर रहा था और दिन भर श्री भगवान के गुणगान में तल्लीन
रहता था!
🔵 साधु की बड़ी प्रसिद्धि थी और ब्राह्मण के बारे
में उलटी सीधी बाते होती थी!
🔴 समय बीतता गया संयोगवश तीनों की एक ही समय
में मृत्यु हुई ब्राह्मण और नर्तकी को वैकुंठ मिला और साधु को पहले नरक फिर वापिस मृत्युलोक
में भेज दिया गया!
🔵 राहगीर - क्षमा हे नाथ पर ऐसा कैसे हुआ?
🔴 ऋषिवर - हे वत्स साधु जब भी मन्दिर जाता तो
उस ब्राह्मण और नर्तकी को कई बार बात करते हुये देखता और वो यही सोचता रहता की काश
मेरा घर इस ब्राह्मण के यहाँ होता तो कितना अच्छा होता वो साधु रात दिन उस नर्तकी
के विचारों में ही खोया हुआ रहता था संसार के सामने उसने चतुराई से प्रसिद्धि पाई
पर ठाकुर की नजरों से कौन बचा है?
🔵 और नर्तकी मन से बड़ी दुःखी रहती थी एक बार
वो ब्राह्मण के घर गई तो ब्राह्मण ने उसे कहा कहो देवी आज यहाँ कैसे आई और जैसे ही
उस ब्राह्मण ने उसे देवी कहा नर्तकी फूट फूटकर रोने लगी और कहने लगी ये सारा संसार
मुझे हेय दृष्टि से देखता है और हे ब्राह्मण देव आप और वो साधु जी कितने भाग्यशाली
है जिसे ईश्वर के गुणगान का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है और फिर उस ब्राह्मण ने उसे
समझाया और भगवान की भक्ति की राह से जोड़ा!
🔴 अब नर्तकी का सम्पूर्ण ध्यान भगवान श्री भगवान
के चरणों में लगा रहता चौबीसों घण्टे वो भगवान श्री भगवान में खोई रहती और जब कोई समस्या
आती तो वो ब्राह्मण के पास जाती और उनसे उस समस्या पर बातचीत करती!
🔵 जब दोनों बात करते थे तो संसार ब्राह्मण
के बारे में न जाने क्या -क्या उलटी सीधी बाते करते थे फिर एक दिन उस नर्तकी ने
कहा हे ब्राह्मण देव आपने जो मुझे भगवान भक्ति से जोड़ा है आपका इस जीवन पर ये वो उपकार
है जिससे मैं कभी उऋण नहीं हो पाऊंगी पर हे देव ये संसार आपके बारे में न जाने क्या-
क्या बाते करता है!
🔴 तो ब्राह्मण ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया, ब्राह्मण
देव ने कहा
🔵 संसार आपके और हमारे बारे में क्या सोचता है
क्या कहता है वो इतना महत्वपूर्ण नहीं है यदि हम अपनी नजरों में सही है तो फिर संसार
कुछ भी सोचे सोचने दो कुछ भी कहे कहने दो क्योंकि संसार कुछ तो कहेगा कुछ तो सोचेगा
बिना सोचे बिना कहे तो रह ही नहीं सकता है!
🔴 अरे जब राम और कृष्ण तक को नहीं बख्शा इस
संसार ने तो आप और हम क्या चीज है!
🔵 अरे हम तो अपना निर्माण करे ना, हम
भला क्यों किसी और की सोच की परवाह करे!
🔴 जिसकी जैसी प्रवर्ति होगी उसका वैसा स्वभाव
होगा और जिसकी जैसी प्रवर्ति होगी स्वयं नारायण उसके जीवन में वैसे ही साथी भेज
देंगे!
🔵 अपनी प्रवर्ति और स्वभाव अपने काम आयेगा और
औरों का स्वभाव और प्रवर्ति औरों के काम आयेगी!
🔴 यदि हमने अपनी और अपने भगवान की नजरों में
अपने आपको बना लिया तो फिर और क्या चाहिये, और यदि हम अपनी और भगवान
की नजरों में न बन पायें तो फिर क्या मतलब?
🔵 संसार क्या सोचे सोचने दो, संसार
क्या कहे कहने दो लक्ष्य पर एकाग्रचित्त हो जाओ!
🔴 संसार की सेवा करते रहो संसार सेवा के लायक
है विश्वास के लायक नही और विश्वास करो नारायण पर क्योंकि एक वही नित्य है बाकी सब
अनित्य है और जो अनित्य है उसके लिये क्यों व्यथित होते हो? व्यथित
होना ही है तो उस परमात्मा के लिये होवे ना किसी और के लिये क्यों एक वही सार है
बाकी सब बेकार है!
🔵 अब कुछ समझ मे आया वत्स बस एक ध्यान रखना की
स्वयं की नजर और नारायण की नजर दो अति महत्त्वपूर्ण है !
👉 प्रेमी हृदय का मार्ग
🔴 घृणा, विद्वेष, चिडचिडापन, उतावली, अधैर्य
अविश्वास यही सब उसकी संपत्ति थे। यों कहिये कि संपूर्ण जीवन ही नारकीय बन चुका था,
उसके बौद्धिक जगत में जलन और कुढन के अतिरिक्त कुछ भी तो नहीं था।
सारा शरीर सूखकर काँटा हो गया था। पडोसी तो क्या, पीठ पीछे
मित्र भी कहते स्टीवेन्सन अब एक-दो महीने का मेहमान रहा है; पता
नहीं कब मृत्यु आए और उसे पकड़ ले जाए।
🔵 विश्व-विख्यात कवि राबर्ट लुई स्टीवेन्सन के
जीवन की तरह आज सैकडों-लाखों व्यक्तियों के जीवन मनोविकार ग्रस्त हो गये हैं, पर
कोई सोचता भी नहीं कि यह मनोविकार शरीर की प्रत्येक जीवनदायिनी प्रणाली पर विपरीत
प्रभाव डालते हैं। रूखा, सूखा बिना विटामिन प्रोटीन और चर्बी
के भोजन से स्वास्थ्य खराब नहीं होता; यह तो चिंतन, मनन की गंदगी ऊब और उत्तेजना ही है जो स्वास्थ्य के चौपट कर डालती है शरीर
को खा जाती है।
🔴 उक्त तथ्य का पता स्टीवेन्सन को न चलता तो
उसकी निराशा भी उसे ले डूबती। पता नहीं अंत क्या होता ? यह
तो अच्छा हुआ कि उसमें बुद्धि से काम लेने की योग्यता थी सो जैसे ही एक
मनोवैज्ञानिक मित्र ने उन्हें यह सुझाव दिया कि आप अपने जीवन में परिवर्तन कर
डालिए। कुछ दिन के लिए किसी नए स्थान को चले जाइए जहां के लोग आपसे बिल्कुल परिचित
न हों। फिर उन्हें अपना कुटुंबी मानकर आप प्रेम, आत्मीयता,
श्रद्धा, सद्भावना और उत्सर्ग का अभ्यास
कीजिए। आपके जीवन में प्रेम की गहराई जितनी बढे़गी आप उतने ही स्वस्थ होते चले जायेंगे
यही नहीं आपका यह अब तक का जीवन जो नारकीय बन चुका है, स्वर्गीय
आभा में परिवर्तित हुआ दिखाई देगा।
🔵 प्रेम संसार की सृजनात्मक सत्ता है। प्रेम
से प्रिय,
मधुर और उल्लास वर्धक संसार में कुछ नहीं, जिसने
प्रेम करना सीख लिया उसका सूना, उजड़ा और दैन्य-दारिद्रय से
ग्रसित जीवन भी हरा-भरा हो गया। यह कथा इस तथ्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
🔴 तब श्री स्टीवेन्सन ने थोडा-सा सामान, कुछ
पैसे लिए और समोआ द्वीप में जा वसे। पहला दिन, पहला अभ्यास
प्रेम का। जिनसे भेंट हुई स्टीवेन्सन का हाथ नमस्कार के लिए पहले उठा कोई घर आया
वह चाहे कुली ही रहा हो, ऐसा नहीं हुआ कि वह स्टीवेन्सन के
साथ बैठकर चाय पिये बिना चला गया हो छोटे-छोटे बच्चे रात बेचैनी में काटते सबेरा
होते ही स्टीवेन्सन का दरवाजा खटखटाते और बाहर से ही पूछते-अरे यार लुई! तुम अब तक
सोए पडे हो कब से खेलने के लिए खड़े हैं आओ बाहर देखो न कितने लोग आ गए हैं?
🔵 स्टीवेन्सन अँगडाई लेकर उठते और कमरे का द्वार
खोलकर बाहर आते, बच्चों में ऐसे घुल-मिल जाते कि उन्हें पता भी नहीं चलता
कि द्वीप के दूसरे वयस्क प्रौढ, वृद्ध, स्त्री-पुरुष भी वही आ पहुँचे हैं। स्टीवेन्सन उन्हें मीठी-मीठी कहानियाँ
सुनाते, अपने और महापुरुषों के जीवन के संस्मरण सुनाते
बीच-बीच मे कोई शिक्षात्मक बातें भी कहते जाते, उसका प्रभाव
यह होता कि दिन भर लोग कथा के आनंद में झूमते रहते और अपने जीवन की थोड़ी बहुत
बुराइयाँ होती, उन्हें निकाल डालने के संकल्प बाँधते।
स्टीवेन्सन का स्वास्थ्य तब कोई देखता तो यही कहता-झूठ। यह स्टीवेन्सन नहीं
स्टीवेन्सन के शरीर में किसी देवात्मा ने प्रवेश कर लिया है।
🔴 पर सचमुच यह वही स्टीवेन्सन था, जिसने
अपने प्रेम से समोआवासियो को संगठित कर, बंदरगाह से नगर तक
के ऊबड-खाबड को समान रास्ते चौरस तथा पक्का करा दिया, प्रश्न
उठा उस सड़क का नाम क्या हो तब सब एक स्वर में बोल उठे, 'प्रेमी
हृदय का मार्ग'। अब तक भी इस सड़क का यही नाम है। स्टीवेन्सन
इस दुनिया में नहीं होगा तब भी यह सड़क उसकी इस प्रेमोपलब्धि की गाथा गाती रहेगी।
👉 सकारात्मक सोच
🔴 एक घर के पास काफी दिन एक बड़ी इमारत का काम
चल रहा था। वहां रोज मजदूरों के छोटे बच्चे एक दूसरों की शर्ट पकड़कर रेल-रेल का खेल
खेलते थे।
🔵 रोज कोई इंजिन बनता और बाकी बच्चे डिब्बे
बनते थे...
🔴 इंजिन और डिब्बे वाले बच्चे रोज बदल जाते, पर... केवल चङ्ङी पहना एक
छोटा बच्चा हाथ में रखा कपड़ा घुमाते हुए गार्ड बनता था।
🔵 उनको रोज़ देखने वाले एक व्यक्ति ने कौतुहल
से गार्ड बनने वाले बच्चे को बुलाकर पुछा, "बच्चे, तुम रोज़ गार्ड बनते हो। तुम्हें कभी इंजिन, कभी
डिब्बा बनने की इच्छा नहीं होती?"
🔴 इस पर वो बच्चा बोला...
🔵 "बाबूजी, मेरे
पास पहनने के लिए कोई शर्ट नहीं है। तो मेरे पिछले वाले बच्चे मुझे कैसे पकड़ेंगे?
और मेरे पिछे कौन खड़ा रहेगा?
🔴 इसलिये मैं रोज गार्ड बनकर ही खेल में हिस्सा
लेता हुँ।
🔵 "ये बोलते समय मुझे उसके आँखों में पानी
दिखाई दिया।
🔴 आज वो बच्चा मुझे जीवन का एक बड़ा पाठ
पढ़ा गया...
🔵 अपना जीवन कभी भी परिपूर्ण नहीं होता। उस में
कोई न कोई कमी जरूर रहेगी।
🔴 वो बच्चा माँ-बाप से ग़ुस्सा होकर रोते हुए
बैठ सकता था। वैसे न करते हुए उसने परिस्थितियों का समाधान ढूंढा।
🔵 हम कितना रोते है? कभी
अपने साँवले रंग के लिए, कभी छोटे क़द के लिए, कभी पड़ौसी की कार, कभी पड़ोसन के गले का हार,
कभी अपने कम मार्क्स, कभी अंग्रेज़ी, कभी पर्सनालिटी, कभी नौकरी मार तो कभी काम धंदे में
मार... हमें इससे बाहर आना पड़ता है।
🔴 ये
जीवन है... इसे ऐसे ही जीना पड़ता है।
👉 प्रेम, पवित्रता, क्षमा और सद्भावना
🔵 हजरत मोहम्मद जब भी नमाज पढ़ने मस्जिद
जाते तो उन्हें नित्य ही एक वृद्धा के घर के सामने से निकलना पड़ता था। वह वृद्धा
अशिष्ट,
कर्कश और क्रोधी स्वभाव की थी। जब भी मोहम्मद साहब उधर से निकलते,
वह उन पर कूड़ा-करकट फेंक दिया करती थी। मोहम्मद साहब बगैर कुछ कहे
अपने कपड़ों से कूड़ा झाड़कर आगे बढ़ जाते। प्रतिदिन की तरह जब वे एक दिन उधर से
गुजरे तो उन पर कूड़ा आकर नहीं गिरा। उन्हें कुछ हैरानी हुई, किंतु वे आगे बढ़ गए।
🔴 अगले दिन फिर ऐसा ही हुआ तो मोहम्मद साहब से
रहा नहीं गया। उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी। वृद्धा ने दरवाजा खोला। दो ही दिन में
बीमारी के कारण वह अत्यंत दुर्बल हो गई थी। मोहम्मद साहब उसकी बीमारी की बात सुनकर
हकीम को बुलाकर लाए और उसकी दवा आदि की व्यवस्था की। उनकी सेवा और देखभाल से
वृद्धा शीघ्र ही स्वस्थ हो गई।
🔵 अंतिम दिन जब वह अपने बिस्तर से उठ बैठी तो
मोहम्मद साहब ने कहा- अपनी दवाएं लेती रहना और मेरी जरूरत हो तो मुझे बुला लेना। वृद्धा
रोने लगी। मोहम्मद साहब ने उससे रोने का कारण पूछा तो वह बोली, मेरे
दुर्व्यवहार के लिए मुझे माफ कर दोगे? वे हंसते हुए कहने
लगे- भूल जाओ सब कुछ और अपनी तबीयत सुधारो। वृद्धा बोली- मैं क्या सुधारूंगी तबीयत?
तुमने तबीयत के साथ-साथ मुझे भी सुधार दिया है। तुमने अपने प्रेम और
पवित्रता से मुझे सही मार्ग दिखाया है। मैं आजीवन तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी।
🔴 जिसने स्वयं को प्रेम, क्षमा
व सद्भावना में डुबोकर पवित्र कर लिया, उसने संत-महात्माओं
से भी अधिक प्राप्त कर लिया।
👉 शहर से दूर एक घने ...
🔵 शहर से दूर एक घने जंगल में एक आम का पेड़
था और एक लंबा और घना नीम का पेड़ था।
🔴 नीम का पेड़ अपने पड़ोसी पेड़ से बात तक नहीं
करता था। उसको अपने बड़े होने पर घमंड था।
🔵 एक बार एक रानी मधुमक्खी नीम के पेड़ के पास
पहुंची और उसने कहाँ “नीम भाई में आपके यहाँ पर आपने शहद का छत्ता बना लू ” तब नीम
के पेड़ ने कहाँ “नहीं जा जाकर कही और अपना छत्ता बना”।
🔴 इतना सुनकर आम के पेड़ ने कहाँ “भाई छत्ता
क्यों नहीं बना लेने देते यह तुम्हारे पेड़ पर सुरक्षित रह सकेंगी।” इतने पर नीम
के पेड़ ने आम के पेड़ को जवाब दिया कि मुझे तुम्हारी सलाह कि आवश्यकता नहीं हैं।
🔵 रानी मधुमक्खी ने फिर से आग्रह किया तो भी
नीम के पेड़ ने मना कर दिया।
🔴 रानी मधुमक्खी आम के पेड़ के पास गई और कहने
लगी क्या मैं आपकी शाखा पर अपना छत्ता बना लूँ। इस पर आम के पेड़ ने उसे सहमति दे
दी रानी मधुमक्खी ने छत्ता बना लिया और सुखपूर्वक रहने लगी।
🔵 अभी कुछ दिनों बाद कुछ व्यक्ति वहाँ पर आये
और कहने लगे कि इस आम के पेड़ को काटते हैं तभी एक व्यक्ति कि नजर मधुमक्खी के
छत्ते पर पड़ी और उसने कहाँ यदि हम इस पेड़ को काटते हैं तो यह मधुमक्खी हमें नहीं
छोडेगी। अतः हम नीम के पेड़ को काटते हैं | इससे हमको कोई खतरा नहीं हैं।
और लकडियां भी हमें अधिक मात्रा में मिल जाएगी।
🔴 यह सब बाते सुनकर नीम डर गया अब वह कर भी क्या
सकता था।
🔵 दूसरे दिन सभी व्यक्ति आये और पेड़ काटने लगे
तो नीम ने कहाँ “ मुझे बचाओ – मुझे बचाओ नही तो ये लोग मुझको काट डालेंगे”।
🔴 तब मधुमख्खियो ने उन लोगों पर हमला कर दिया
और उन्हें वहाँ से भगा दिया।
🔵 नीम के पेड़ ने मधुमख्खियो को धन्यवाद
दिया तो इस पर मधुमख्खियो ने कहाँ “धन्यवाद हमें नही आम भाई को दो यदि वह हमसे
नहीं कहते तो हम आपको नहीं बचाते”।
🔴 सीख…“कभी कभी बड़े और महान होने का एहसास हमें
घमंडी और क्रूर बना देता हें | जिससे हम अपने सच्चे साथियों से दूर हो
जाते हैं।”
क्यों दे रहे हैं तलाक???*।
🔵 कल रात करीब 7 बजे शाम को मोबाइल बजा। उठाया तो उधर से रोने की आवाज...
मैंने शांत कराया और पूछा कि भाभीजी आखिर हुआ क्या?
🔴 उधर से आवाज़ आई.. आप कहाँ हैं??? और कितनी देर में आ सकते हैं?
🔵 मैंने कहा:- "आप परेशानी बताइये"।
और "भाई साहब कहाँ हैं...? माताजी किधर हैं..?"
"आखिर हुआ क्या...?"
लेकिन
🔴 उधर से केवल एक रट कि "आप आ जाइए"*, मैंने
आश्वासन दिया कि *कम से कम एक घंटा पहुंचने में लगेगा*. जैसे तैसे पूरी घबड़ाहट
में पहुँचा;
🔵 देखा तो भाई साहब [हमारे मित्र जो जज हैं]
सामने बैठे हुए हैं;
🔴 भाभीजी रोना चीखना कर रही हैं* 12 साल का बेटा
भी परेशान है; 9 साल की बेटी भी कुछ नहीं कह पा रही है।
🔵 मैंने भाई साहब से पूछा कि *""आखिर
क्या बात है""*???
🔴 ""भाई साहब कोई जवाब नहीं दे रहे
थे ""*.
🔵 फिर भाभी जी ने कहा ये देखिये *तलाक के पेपर, ये
कोर्ट से तैयार करा के लाये हैं*, मुझे तलाक देना चाहते हैं,
मैंने पूछा - *ये कैसे हो सकता है???. इतनी
अच्छी फैमिली है. 2 बच्चे हैं. सब कुछ सेटल्ड है. ""प्रथम दृष्टि में
मुझे लगा ये मजाक है""*.
🔴 लेकिन मैंने बच्चों से पूछा *दादी किधर
है*,
🔵 बच्चों ने बताया पापा ने उन्हें 3 दिन पहले
*नोएडा के वृद्धाश्रम में शिफ्ट* कर दिया है।
🔴 मैंने घर के नौकर से कहा। मुझे और भाई साहब
को चाय पिलाओ; कुछ देर में चाय आई. भाई साहब को *बहुत कोशिशें कीं चाय
पिलाने की*.
🔵 लेकिन उन्होंने नहीं पी और कुछ ही देर में
वो एक *"मासूम बच्चे की तरह फूटफूट कर रोने लगे "*बोले मैंने 3 दिन से कुछ
भी नहीं खाया है. मैं अपनी 61 साल की माँ को कुछ लोगों के हवाले करके आया हूँ.
🔴 पिछले साल से मेरे घर में उनके लिए इतनी मुसीबतें
हो गईं कि पत्नी (भाभीजी) ने कसम खा ली*. कि *""मैं माँ जी का ध्यान
नहीं रख सकती""*ना तो ये उनसे बात करती थी और ना ही मेरे बच्चे बात करते
थे. *रोज़ मेरे कोर्ट से आने के बाद माँ खूब रोती थी*. नौकर तक भी *अपनी मनमानी से
व्यवहार करते थे*
🔵 माँ ने 10 दिन पहले बोल दिया.. बेटा तू
मुझे *ओल्ड ऐज होम* में शिफ्ट कर दे.
🔴 मैंने बहुत *कोशिशें कीं पूरी फैमिली को समझाने
की*,
लेकिन किसी ने माँ से सीधे मुँह बात नहीं की*.
🔵 जब मैं 2 साल का था तब पापा की मृत्यु हो गई
थी दूसरों के घरों में काम करके *""मुझे पढ़ाया. मुझे इस काबिल बनाया कि
आज मैं जज हूँ""*. लोग बताते हैं माँ कभी दूसरों के घरों में काम करते
वक़्त भी मुझे अकेला नहीं छोड़ती थीं.
🔴 उस माँ को मैं ओल्ड ऐज होम में शिफ्ट करके
आया हूँ*. पिछले 3 दिनों से मैं *अपनी माँ के एक-एक दुःख को याद करके तड़प रहा हूँ,*जो
उसने केवल मेरे लिए उठाये।
🔵 मुझे आज भी याद है जब..
*""मैं 10th की
परीक्षा में अपीयर होने वाला था. माँ मेरे साथ रात रात भर बैठी रहती""*.
🔴 एक बार *माँ को बहुत फीवर हुआ मैं तभी स्कूल
से आया था*. उसका *शरीर गर्म था, तप रहा था*. मैंने कहा *माँ तुझे फीवर
है हँसते हुए बोली अभी खाना बना रही थी इसलिए गर्म है*.
🔵 लोगों से *उधार माँग कर मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय
से एलएलबी तक पढ़ाया*. मुझे *ट्यूशन तक नहीं पढ़ाने देती थीं*कि कहीं मेरा टाइम
ख़राब ना हो जाए.
🔴 कहते-कहते रोने लगे..और बोले--""जब
ऐसी माँ के हम नहीं हो सके तो हम अपने बीबी और बच्चों के क्या होंगे""*.
🔵 हम जिनके *शरीर के टुकड़े हैं*,आज
हम उनको *ऐसे लोगों के हवाले कर आये, ""जो उनकी
आदत, उनकी बीमारी, उनके बारे में कुछ
भी नहीं जानते""*, जब मैं ऐसी माँ के लिए कुछ नहीं
कर सकता तो *"मैं किसी और के लिए भला क्या कर सकता हूँ".*
🔴 आज़ादी अगर इतनी प्यारी है और *माँ इतनी बोझ
लग रही हैं, तो मैं पूरी आज़ादी देना चाहता हूँ*
🔵 जब *मैं बिना बाप के पल गया तो ये बच्चे
भी पल जाएंगे*. इसीलिए मैं तलाक देना चाहता हूँ।
🔴 सारी प्रॉपर्टी इन लोगों के हवाले* करके उस
*ओल्ड ऐज होम* में रहूँगा. कम से कम मैं माँ के साथ रह तो सकता हूँ।
🔵 और अगर *इतना सब कुछ कर के ""माँ
आश्रम में रहने के लिए मजबूर है"", तो एक दिन मुझे भी आखिर
जाना ही पड़ेगा*.
🔴 माँ के साथ रहते-रहते आदत भी हो जायेगी. *माँ
की तरह तकलीफ* तो नहीं होगी.
🔵 जितना बोलते उससे भी ज्यादा रो रहे थे*.
🔴 बातें करते करते रात के 12:30 हो गए।
🔵 मैंने भाभीजी के चेहरे को देखा. उनके *भाव
भी प्रायश्चित्त और ग्लानि* से भरे हुए थे; मैंने ड्राईवर से कहा अभी
हम लोग नोएडा जाएंगे।
🔴 भाभीजी और बच्चे हम सारे लोग नोएडा पहुँचे.
🔵 बहुत ज़्यादा रिक्वेस्ट करने पर गेट खुला*.
भाई साहब ने उस गेटकीपर के पैर पकड़ लिए*, बोले मेरी माँ है, मैं उसको लेने आया हूँ, चौकीदार ने कहा क्या करते हो
साहब, भाई साहब ने कहा *मैं जज हूँ,*
उस चौकीदार ने कहा:-
🔴 ""जहाँ सारे सबूत सामने हैं तब तो
आप अपनी माँ के साथ न्याय नहीं कर पाये, औरों के साथ क्या न्याय
करते होंगे साहब"*।
🔵 इतना कहकर हम लोगों को वहीं रोककर वह अन्दर
चला गया. अन्दर से एक महिला आई जो *वार्डन* थी. उसने *बड़े कातर शब्दों में कहा*:-
"2 बजे रात को आप लोग ले जाके कहीं मार दें, तो *मैं अपने ईश्वर
को क्या जबाब दूंगी..*?"
🔴 मैंने सिस्टर से कहा *आप विश्वास करिये*. ये
लोग *बहुत बड़े पश्चाताप में जी रहे हैं*.
🔵 अंत में किसी तरह उनके कमरे में ले गईं. *कमरे
में जो दृश्य था, उसको कहने की स्थिति में मैं नहीं हूँ.*
🔴 केवल एक फ़ोटो जिसमें *पूरी फैमिली* है और
वो भी माँ जी के बगल में, जैसे किसी बच्चे को सुला रखा है. मुझे देखीं
तो उनको लगा कि बात न खुल जाए लेकिन जब मैंने कहा *हम लोग आप को लेने आये हैं,
तो पूरी फैमिली एक दूसरे को पकड़ कर रोने लगी*
🔵 आसपास के कमरों में और भी बुजुर्ग थे सब
लोग जाग कर बाहर तक ही आ गए. *उनकी भी आँखें नम थीं*
🔴 कुछ समय के बाद चलने की तैयारी हुई. पूरे आश्रम
के लोग बाहर तक आये. किसी तरह हम लोग आश्रम के लोगों को छोड़ पाये.
🔵 सब लोग इस आशा से देख रहे थे कि *शायद उनको
भी कोई लेने आए, रास्ते भर बच्चे और भाभी जी तो शान्त रहे*.......
🔴 लेकिन भाई साहब और माताजी एक दूसरे की *भावनाओं
को अपने पुराने रिश्ते पर बिठा रहे थे*.घर आते-आते करीब 3:45 हो गया.
🔵 💐 *भाभीजी भी अपनी ख़ुशी
की चाबी कहाँ है; ये समझ गई थी मैं भी चल दिया. लेकिन *रास्ते
भर वो सारी बातें और दृश्य घूमते रहे*.
🔴 💐*""माँ केवल
माँ है""* 💐 उसको मरने
से पहले ना मारें.*
🔵 माँ हमारी ताकत है उसे बेसहारा न होने दें, अगर
वह कमज़ोर हो गई तो हमारी संस्कृति की ""रीढ़ कमज़ोर"" हो
जाएगी*, बिना रीढ़ का समाज कैसा होता है किसी से छुपा नहीं
🔴 अगर आपकी परिचित परिवार में ऐसी कोई समस्या
हो तो उसको ये जरूर पढ़ायें, *बात को प्रभावी ढंग से समझायें ,
कुछ भी करें लेकिन हमारी जननी को बेसहारा बेघर न होने दें*, अगर *माँ की आँख से आँसू गिर गए तो *"ये क़र्ज़ कई जन्मों तक
रहेगा"*, यकीन मानना सब होगा तुम्हारे पास पर
*""सुकून नहीं होगा""* , सुकून सिर्फ
*माँ के आँचल* में होता है उस *आँचल को बिखरने मत देना*।
👉 अट्ठाईस बरस बाद
🔴 उस समय दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था। अमेरिका
और जापान की सेनाएँ मोर्चों पर आमने-सामने डटी हुई थीं। जापान की सरकार ने अपने एक
छोटे से टापू गुआम को बचाने के लिए 13 हजार सैनिक तैनात कर दिये थे और अमेरिका
जल्दी से जल्दी इस टापू पर अपना अधिकार देखना चाहता था क्योंकि गुआम सैनिक दृष्टि
से काफी महत्वपूर्ण था। यहाँ से दुश्मन पर सीधे वार किया जा सकता था।
🔵 गुआम पर कब्जा बनाये रखने और उस पर अधिकार
करने के लिए दोनों देशों की सेनाएं घमासान लड़ाई लड़ रही थीं। जब जापानी सैनिकों
के हारने का मौका आया तो उन्होंने आत्म-समर्पण करने के स्थान पर लड़ते-लड़ते मर
जाना श्रेयस्कर समझा। संख्या और साधन बल में अधिक शक्तिशाली होने के कारण अमेरिकी
सैनिकों को जल्दी विजय मिल गई और गुआम का पतन हो गया। सैकड़ों जापानी सैनिक
निर्णायक युद्ध की अन्तिम घड़ियों तक लड़ते रहने के बाद, कुछ
बस न चलता देख जंगलों में भाग गये क्योंकि सामने रहते हुए उन्हें हथियार डालने
पड़ते, समर्पण करना पड़ता, पर उन्हें
यह किसी कीमत पर स्वीकार नहीं था।
🔴 सन् 1973 में इन्हीं सैनिकों में से सैनिक
सार्जेण्ट शियोर्चा योकोई वापस लौटा, जिसे जापान ने सर्वोच्च
राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया। योकोई अट्ठाईस वर्षों तक जंगल की खाक छानता
हुआ, पेड़-पौधों को अपना साथी मानते हुए, प्रगति की दौड़ दौड़ रही दुनिया से बेखबर सभ्य संसार में लौटा था। उसके इस
वनवास की कहानी बहुत ही रोमाँचकारी है। योकोई को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना
पड़ा? और उसने इन सबको किस सहजता से स्वीकार किया। उसके मूल
में है- आत्म सम्मान और राष्ट्रीय गौरव की अक्षुण्ण बनाये रखने की भावना। ‘टूट’
जायेंगे पर झुकेंगे नहीं, यह निष्ठा।
🔵 अट्ठाईस वर्षों तक जंगल में रहते हुए योकोई
को यह पता ही नहीं चला कि दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो गया है। इस सम्बन्ध में वह क्या
सोचता था?
पत्रकारी ने योकोई से यह प्रश्न किया तो उसने बताया, मैंने यह सीखा था कि जीतेजी बन्दी बनने की अपेक्षा मर जाना अच्छा है। गुआम
की लड़ाई में आसन्न पराजय को देखते हुए सैकड़ों सैनिकों के साथ में भी जंगल में
भाग गया। मेरे साथ आठ सैनिक और थे। हमें लगा कि सबका एक साथ रहना खतरे से खाली
नहीं है। इसलिए हम टोलियों में बँट गये। मेरी टोली में दो सैनिक और थे। हम तीनों टोलोफोफोखिर
किले की ओरे चले गये। यहीं पर हमें पता चला कि जापान हार गया है। अब तो नगर में
जाने की सम्भावना और भी समाप्त हो गई।
🔴 अट्ठाईस वर्षों तक योकोई ने आदिम जीवन बिताया।
उसके पास केवल एक कैंची थी, जिससे वह पेड़ों की शाखाएँ काटता और उनका
उपयोग भोजन पकाने तथा छाया करने के लिए करता। कपड़े सीने के लिए उसने अपने बढ़े
हुए नाखूनों का सुई के रूप में इस्तेमाल किया। रहने के लिए उसने जमीन में गुफा खोद
ली और वह बिछौने के लिए पेड़ों की पत्तियों का उपयोग करता। भोजन के काम जंगली फल
काम आते।
🔵 समय की जानकारी तो कैसे रखता? परन्तु
महीने और वर्ष की गणना तो वह रखता ही था। पूर्णिमा का चाँद देखकर वह पेड़ के तने
पर एक निशान बना देता। वह गुफा से बाहर बहुत कम निकलता था। प्रायः रात को ही वह
बाहर भोजन की तलाश में आता था। कभी कभार बाहर आना उसे पुनः सभ्य संसार में ले आया।
🔴 एक बार टोलोफोको नदि के किनारे घूम रहा था
कि जो मछुआरों ने उसे देख लिया और सन्देह होने के कारण वे उसे पकड़ कर ले आये तथा
पुलिस को सौंप दिया। वहाँ पूछताछ करने पर पता चला कि वह जापान की शाही सेना की 38
वीं इन्फैक्ट्री रेजीमेंट का सिपाही है। जापान की सरकार ने उसे करीब 350 सेन वेतन
और सहायता के रूप में काफी रकम देने की घोषणा की है।
🌹 अखण्ड ज्योति 1981 जनवरी
👉 जो भी करो आदर्श करो।
🔴 एक व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला- मेरी
शिक्षा तो समाप्त हो गई। अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, एक
यह कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूँ या संन्यास धारण करूँ? इन दोनों में
से मेरे लिए क्या अच्छा रहेगा यह बताइए?
कबीर ने कहा -दोनों ही बातें अच्छी
है जो भी करना हो वह उच्च कोटि का करना चाहिए। उस व्यक्ति ने पूछा उच्च कोटि का
करना चाहिए। उस व्यक्ति ने पूछा- उच्च कोटि का कैसे है? कबीर
ने कहा- किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बतायेंगे वह व्यक्ति रोज उत्तर प्रतीक्षा में
कबीर के पास आने लगा।
🔴 एक दिन कबीर दिन के बारह बजे सूत बुन रहे थे।
खुली जगह में प्रकाश काफी था फिर भी कबीर ने अपनी धर्म पत्नी को दीपक लाने का आदेश
दिया। वह तुरन्त जलाकर लाई और उनके पास रख गई। दीपक जलता रहा वे सूत बुनते रहे।
🔵 सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी
पर गए। जहाँ काफी ऊँचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे। कबीर ने साधु को
आवाज दी। महाराज आपसे कुछ जरूरी काम है कृपया नीचे आइए। बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से
इतनी ऊँचाई से उतर कर नीचे आया। कबीर ने पूछा आपकी आयु कितनी है यह जानने के
लिए नीचे बुलाया है। साधु ने कहा अस्सी
बरस। यह कह कर वह फिर से ऊपर चढ़ा। बड़ी कठिनाई से कुटी में पहुँचा। कबीर ने फिर
आवाज दी और नीचे बुलाया। साधु फिर आया। उससे पूछा- आप यहाँ पर कितने दिन से निवास
करते है?
उसने बताया चालीस वर्ष से। फिर जब वह कुटी में पहुँचे तो तीसरी बार
फिर उन्हें इसी प्रकार बुलाया और पूछा-
आपके सब दाँत उखड़ गए या नहीं? उसने उत्तर दिया। आधे उखड़ गए।
तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगा तब इतने चढ़ने उतरने से साधु की साँस फूलने
लगी, पाँव काँपने लगे। वह बहुत अधिक थक गया था फिर भी उसे
क्रोध तनिक भी न था।
🔴 अब कबीर अपने साथी समेत घर लौटे तो साथी ने
अपने प्रश्न का उत्तर पूछा। उसने कहा तुम्हारे प्रश्न के उत्तर में यह दोनों घटनायें
उपस्थित है। यदि गृहस्थ बनाना हो तो ऐसा बनाना चाहिये जैसे मैं पत्नी को मैंने
अपने स्नेह और सद्व्यवहार से ऐसा आज्ञाकारी बनाया है कि उसे दिन में भी दीपक जलाने
की मेरी आज्ञा अनुचित नहीं मालूम पड़ती और साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई
कितना ही परेशान करें क्रोध का नाम भी न आवे।
माँ: ईश्वर का भेजा फ़रिश्ता
एक समय की बात है, एक
बच्चे का जन्म होने वाला था. जन्म से कुछ क्षण पहले उसने भगवान् से पूछा: मैं इतना छोटा हूँ, खुद
से कुछ कर भी नहीं पाता, भला धरती पर मैं कैसे रहूँगा,
कृपया मुझे अपने पास ही रहने दीजिये, मैं कहीं
नहीं जाना चाहता।
भगवान् बोले, मेरे पास बहुत से फ़रिश्ते हैं,
उन्ही में से एक मैंने तुम्हारे लिए चुन लिया है, वो तुम्हारा ख़याल रखेगा।
पर आप मुझे बताइए, यहाँ
स्वर्ग में मैं कुछ नहीं करता बस गाता और मुसकुराता हूँ, मेरे
लिए खुश रहने के लिए इतना ही बहुत है।
तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हारे लिए
गायेगा और हर रोज़ तुम्हारे लिए मुसकुराएगा भी, और तुम उसका प्रेम महसूस करोगे और
खुश रहोगे।
और जब वहां लोग मुझसे बात करेंगे तो
मैं समझूंगा कैसे, मुझे तो उनकी भाषा नहीं आती?
तुम्हारा फ़रिश्ता तुमसे सबसे मधुर
और प्यारे शब्दों में बात करेगा, ऐसे शब्द जो तुमने यहाँ भी नहीं सुने
होंगे, और बड़े धैर्य और सावधानी के साथ तुम्हारा फ़रिश्ता
तुम्हें बोलना भी सीखाएगा।
और जब मुझे आपसे बात करनी हो तो मैं
क्या करूँगा?
तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हें हाथ जोड़
कर प्रार्थना करना सीखाएगा, और इस तरह तुम मुझसे बात कर सकोगे।
मैंने सुना है कि धरती पर बुरे लोग
भी होते है उनसे मुझे कौन बचाएगा?
तुम्हारा फरिश्ता तुम्हें बचाएगा, भले
ही उसकी अपनी जान पर खतरा क्यों ना आ जाये।
लेकिन मैं हमेशा दुखी रहूँगा
क्योंकि मैं आपको नहीं देख पाऊंगा।
तुम इसकी चिंता मत करो; तुम्हारा
फ़रिश्ता हमेशा तुमसे मेरे बारे में बात करेगा और तुम वापस मेरे पास कैसे आ सकते
हो बतायेगा।
उस वक़्त स्वर्ग में असीम शांति थी, पर
पृथ्वी से किसी के कराहने की आवाज़ आ रही थी….बच्चा समझ गया कि अब उसे जाना है,
और उसने रोते- रोते भगवान् से पूछा, हे ईश्वर,
अब तो मैं जाने वाला हूँ, कृपया मुझे उस
फ़रिश्ते का नाम बता दीजिये?
भगवान् बोले, फ़रिश्ते के नाम का कोई महत्त्व
नहीं है, बस इतना जानो कि तुम उसे “माँ” कह कर पुकारोगे।
गुरु का अवलंबन
बिजलीघर से तार जोड़ लेने पर नगर के
अनेकों पंखे , बल्ब, हीटर, कूलर
आदि चलने लगते हैं । भरी टंकी के साथ जुड़ा नल बराबर पानी देता रहता है । हिमालय
के साथ जुड़ी हुई नदियाँ सदा प्रवाहित रहती हैं , पति की
कमाई पर पत्नी , बाप की कमाई पर औलाद मौज मनाती रहती है । यही
बात साधना क्षेत्र में भी है ।
एकाकी साधक अपने बलबूते कुछ तो कर
ही सकता है और देर- सबेर में लम्बी यात्रा भी पूरी कर लेता है। इसलिए एकाकी प्रयास
को भी झुठलाया तो नहीं जा सकता पर सुविधा इसी में है कि किसी शक्ति भण्डार के साथ
जुड़कर अपनी प्रगति सम्भावना को सुनिश्चित किया जाये। गुरु वरण इसी को कहते हैं ।
यह एक अनुबन्ध है जिसमें दोनों पक्ष
अपनी -अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करते और परस्पर पूरक बनकर दोनों पक्ष प्रसन्नता
एवं सफलता उपलब्ध करते हैं । अंधे -पंगे के सयोंग से नदी पार कर लेने वाली बात इसी
प्रकार बनती है ।
नारद के साथ जुड़कर पार्वती, सावित्री,
वाल्मीकि, ध्रुव , प्रह्लाद,
आदि ने अपने साधारण स्तर को असाधारण बनाया था । बुद्ध के साथ जुड़कर
अंगुलि माल, आम्रपाली, अशोक जैसों ने
अपने स्तर का कायाकल्प कर लिया था। चाणक्य और चन्द्रगुप्त, समर्थ
और शिवाजी, परमहंस और विवेकानंद, गाँधी
और विनोबा आदि के अगणित युग्म ऐसे हैं जिनमें शक्ति संपन्नों के साथ जुड़कर
असमर्थों ने भी उच्चस्तरीय सफलता पायी। गुरु शिष्य का गठबंधन इसीलिए आध्यात्मिक
प्रगति के लिए आवश्यक माना गया है ।
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
जीवन देवता की साधना- आराधना वांग्मय
2/1.45
क्या बनेंगे ये ?
यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर ने अपने
विद्यार्थियों को एक एसाइनमेंट दिया। विषय
था मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में रहते 10 से 13 साल की उम्र के लड़कों के बारे में
अध्यन करना और उनके घर की तथा सामाजिक परिस्थितियों की समीक्षा करके भविष्य में वे
क्या बनेंगे, इसका अनुमान निकालना।
कॉलेज विद्यार्थी काम में लग
गए। झोपड़ पट्टी के 200 बच्चों के घर की पृष्ठ
भूमिका,
मां-बाप की परिस्थिति, वहाँ के लोगों की
जीवनशैली और शैक्षणिक स्तर, शराब तथा नशीले पदार्थों के सेवन,
ऐसे कई सारे पॉइंट्स पर विचार किया गया। तदुपरांत हर एक लडके के विचार
भी गंभीरता पूर्वक सुने तथा ‘नोट’ किये गए।
करीब करीब 1 साल लगा एसाइनमेंट पूरा
होने में। इसका निष्कर्ष ये निकला कि उन लड़कों में से 95% बच्चे गुनाह के
रास्ते पर चले जायेंगे और 90% बच्चे बड़े होकर किसी न किसी कारण से जेल जायेंगे। केवल 5% बच्चे ही अच्छा जीवन जी पाएंगे।
बस, उस समय यह
एसाइनमेंट तो पूरा हो गया, और बाद में यह बात का विस्मरण हो
गया। 25 साल के बाद एक दूसरे प्रोफ़ेसर की नज़र इस अध्ययन पर पड़ी, उसने अनुमान कितना सही निकला यह जानने के लिए 3-3 विद्यार्थियों की 5 टीम
बनाई और उन्हें धारावी भेज दिया। 200 में
से कुछ का तो देहांत हो चुका था तो कुछ
दूसरी जगह चले गए थे। फिर भी 180 लोगों से मिलना हुवा। कॉलेज विद्यार्थियों
ने जब 180 लोगों की जिंदगी की सही-सही जानकारी प्राप्त की तब वे आश्चर्यचकित हो
गए। पहले की गयी स्टडी के विपरीत ही परिणाम दिखे।
उन में से केवल 4-5 ही सामान्य
मारामारी में थोड़े समय के लिए जेल गए थे! और बाकी सभी इज़्ज़त के साथ एक सामान्य
ज़िन्दगी जी रहे थे। कुछ तो आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छी स्थिति में थे।
अध्ययन कर रहे विद्यार्थियों तथा
उनके प्रोफ़ेसर साहब को बहुत अचरज हुआ कि जहाँ का माहौल गुनाह की और ले जाने के लिए
उपयुक्त था वहां लोग मेहनत तथा ईमानदारी की जिंदगी पसंद करें, ऐसा
कैसे संभव हुवा ?
सोच-विचार कर के विद्यार्थी पुनः उन
180 लोगों से मिले और उनसे ही ये जानें की कोशिश की। तब उन लोगों में से हर एक ने कहा कि “शायद हम
भी ग़लत रास्ते पर चले जाते, परन्तु हमारी एक टीचर के कारण हम सही रास्ते
पर जीने लगे। यदि बचपन में उन्होंने हमें सही-गलत का ज्ञान नहीं दिया होता तो शायद
आज हम भी अपराध में लिप्त होते…. !”
विद्यार्थियों ने उस टीचर से मिलना
तय किया। वे स्कूल गए तो मालूम हुवा कि वे तो सेवानिवृत्त हो चुकी हैं। फिर तलाश
करते-करते वे उनके घर पहुंचे। उनसे सब बातें बताई और फिर पूछा कि “आपने उन लड़कों
पर ऐसा कौन सा चमत्कार किया कि वे एक सभ्य नागरिक बन गए ?”
शिक्षिका बहन ने सरलता और स्वाभाविक
रीति से कहा : चमत्कार? अरे! मुझे कोई चमत्कार-वमत्कार तो आता नहीं।
मैंने तो मेरे विद्यार्थियों को मेरी संतानों जैसा ही प्रेम किया। बस! इतना ही!”
और वह ठहाका देकर जोर से हँस पड़ी।
मित्रों, प्रेम
व स्नेह से पशु भी वश हो जाते है। मधुर संगीत सुनाने से गौ भी अधिक दूध देने लगती
है। मधुर वाणी-व्यवहार से पराये भी अपने हो जाते है। जो भी काम हम करें थोड़ा
स्नेह-प्रेम और मधुरता की मात्रा उमसे मिला के करने लगे तो हमारी दुनिया जरूर
सुन्दर होगी।
आपका दिन मंगलमय हो, ऐसी
शुभ भावना।
👉 शिकायत नहीं करती
🔴 कल
मैं दुकान से जल्दी घर चला आया। आम तौर पर रात में 10 बजे के बाद आता हूं, कल
8 बजे ही चला आया।
🔵 सोचा
था घर जाकर थोड़ी देर पत्नी से बातें करूंगा, फिर कहूंगा कि कहीं बाहर
खाना खाने चलते हैं। बहुत साल पहले, हम ऐसा करते थे।
🔴 घर
आया तो पत्नी टीवी देख रही थी। मुझे लगा कि जब तक वो ये वाला सीरियल देख रही है, मैं
कम्पयूटर पर कुछ मेल चेक कर लूं। मैं मेल चेक करने लगा, कुछ
देर बाद पत्नी चाय लेकर आई, तो मैं चाय पीता हुआ दुकान के
काम करने लगा।
🔵 अब
मन में था कि पत्नी के साथ बैठ कर बातें करूंगा, फिर खाना खाने बाहर
जाऊंगा, पर कब 8 से 11 बज गए, पता ही
नहीं चला।
🔴 पत्नी
ने वहीं टेबल पर खाना लगा दिया, मैं चुपचाप खाना खाने लगा। खाना खाते
हुए मैंने कहा कि खा कर हम लोग नीचे टहलने चलेंगे, गप
करेंगे। पत्नी खुश हो गई।
🔵 हम
खाना खाते रहे, इस बीच मेरी पसंद का सीरियल आने लगा और मैं खाते-खाते
सीरियल में डूब गया। सीरियल देखते हुए सोफा पर ही मैं सो गया था।
🔴 जब
नींद खुली तब आधी रात हो चुकी थी। बहुत अफसोस हुआ। मन में सोच कर घर आया था कि
जल्दी आने का फायदा उठाते हुए आज कुछ समय पत्नी के साथ बिताऊंगा। पर यहां तो शाम
क्या आधी रात भी निकल गई।
🔵 ऐसा
ही होता है, ज़िंदगी में। हम सोचते कुछ हैं, होता
कुछ है। हम सोचते हैं कि एक दिन हम जी लेंगे, पर हम कभी नहीं
जीते। हम सोचते हैं कि एक दिन ये कर लेंगे, पर नहीं कर पाते।
🔴 आधी
रात को सोफे से उठा, हाथ मुंह धो कर बिस्तर पर आया तो पत्नी सारा
दिन के काम से थकी हुई सो गई थी। मैं चुपचाप बेडरूम में कुर्सी पर बैठ कर कुछ सोच
रहा था।
🔵 पच्चीस
साल पहले इस लड़की से मैं पहली बार मिला था। पीले रंग के शूट में मुझे मिली थी।
फिर मैंने इससे शादी की थी। मैंने वादा किया था कि सुख में, दुख
में ज़िंदगी के हर मोड़ पर मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।
🔴 पर
ये कैसा साथ? मैं सुबह जागता हूं अपने काम में व्यस्त हो जाता हूं। वो
सुबह जागती है मेरे लिए चाय बनाती है। चाय पीकर मैं कम्पयूटर पर संसार से जुड़
जाता हूं, वो नाश्ता की तैयारी करती है। फिर हम दोनों दुकान
के काम में लग जाते हैं, मैं दुकान के लिए तैयार होता हूं,
वो साथ में मेरे लंच का इंतज़ाम करती है। फिर हम दोनों भविष्य के
काम में लग जाते हैं।
🔵 मैं
एकबार दुकान चला गया, तो इसी बात में अपनी शान समझता हूं कि मेरे
बिना मेरा दुकान का काम नहीं चलता, वो अपना काम करके डिनर की
तैयारी करती है।
🔴 देर
रात मैं घर आता हूं और खाना खाते हुए ही निढाल हो जाता हूं। एक पूरा दिन खर्च हो
जाता है,
जीने की तैयारी में।
🔵 वो
पंजाबी शूट वाली लड़की मुझ से कभी शिकायत नहीं करती। क्यों नहीं करती मैं नहीं जानता।
पर मुझे खुद से शिकायत है। आदमी जिससे सबसे ज्यादा प्यार करता है, सबसे
कम उसी की परवाह करता है। क्यों?
🔴 कई
दफा लगता है कि हम खुद के लिए अब काम नहीं करते। हम किसी अज्ञात भय से लड़ने के लिए
काम करते हैं। हम जीने के पीछे ज़िंदगी बर्बाद करते हैं।
🔵 कल
से मैं सोच रहा हूं, वो कौन सा दिन होगा जब हम जीना शुरू करेंगे।
क्या हम गाड़ी, टीवी, फोन, कम्पयूटर, कपड़े खरीदने के लिए जी रहे हैं?
🔴 मैं
तो सोच ही रहा हूं, आप भी सोचिए
🔵 कि
ज़िंदगी बहुत छोटी होती है। उसे यूं जाया मत कीजिए। अपने प्यार को पहचानिए। उसके साथ
समय बिताइए। जो अपने माँ बाप भाई बहन सगे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश्ता जोड़
आपके सुख-दुख में शामिल होने का वादा किया उसके सुख-दुख को पूछिए तो सही।
🔴 एक
दिन अफसोस करने से बेहतर है, सच को आज ही समझ लेना कि ज़िंदगी
मुट्ठी में रेत की तरह होती है। कब मुट्ठी से वो निकल जाएगी, पता भी नहीं चलेगा।
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