Ad Code

ईश्वरीय ज्ञान-वेद

 

ईश्वरीय ज्ञान-वेद


 

वैदिक धर्म के समान विश्व के सभी आस्तिक मत जैसे इस्लाम, पारसी, ईसाई आदि ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता को मानते हैं; और साथ-साथ सभी अपने-अपने धर्म ग्रन्थों के ईश्वरीय ग्रन्थ होने का दावा भी करते हैं; परन्तु आज के वैज्ञानिक युग में इन पुस्तकों को तर्क और प्रमाण की कसौटी पर परखा जाना चाहिये, जिससे सच्चाई का पता लग सके।

 

ईश्वरीय ग्रंथ की कसौटी

 

यदि निष्पक्ष दृष्टि से विचार करें तो किसी भी ईश्वरीय ग्रंथ में निम्न गुण व लक्षण होने चाहिये


१. ग्रंथ का आविर्भाव मानव सृष्टि के आरम्भ में होना चाहिये।

२. ऐसी पुस्तक में मानवीय इतिहास नहीं होना चाहिये।

३. उसका ज्ञान सृष्टि विज्ञान के सत्य सनातन नियमों के अनुकूल व प्रकृति के गुणों तथा रहस्यों को खोलने वाला होना चाहिये।

४. उसका ज्ञान तर्क संगत, विवेक पूर्ण, वैज्ञानिक एवं विरोधाभास से मुक्त हो।

५. उसका ज्ञान आस्तिकों की दृष्टि से ईश्वर-जीव- प्रकृति के मूल गुणों एवं उनके पारस्परिक सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या करने वाला हो।

६. वह पुस्तक समस्त भौतिक व मानवीय ज्ञान विज्ञान की आदि स्रोत हो।

७. उसका ज्ञान सार्वदेशिक, सार्वभौमिक, समतावादी, निष्पक्ष एवं प्राणी मात्र के लिये समान हितकारी हो।

८. वह विश्वभर के मानवों के लिये समान हो। उसमें जाति, नस्ल, रंग, देश, भाषा और लिंग के आधार पर भेद न हो।

९. वह पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, गरीब-अमीर, गोरा-काला सभी प्रकार के भेद-भावों से मुक्त हो।

१०. उसमें वर्ग द्वेष, जाति द्वेष, संकीर्णता एवं पाखण्ड नहीं होना चाहिये।

 

धर्म ग्रंथों की परीक्षा

 

विचारणीय यह है कि वेद, कुरान, बाईबल, जिन्दावस्ता में से कौन सा ग्रन्थ उपरोक्त ग्रन्थ उपरोक्त कसौटियों पर खरा उतरता है। यह सब जानते हैं कि


पारसियों का जिन्दवस्ताँ लगभग साढ़े तीन हजार (३५००) वर्ष, ईसाईयों की बाईबल लगभग दो हजार वर्ष और मुसलमानों की कुरान लगभग पन्द्रह सौ (१५००) वर्ष पुरानी है। जब कि वैज्ञानिकों के परीक्षणों के अनुसार मानव सृष्टि लाखों वर्ष पुरानी है। फिर यह भी प्रश्न उठता है कि मनुष्य साढ़े तीन हजार वर्ष पहले किन आचार संहिताओं का पालन करता होगा।


इन तीनों में उनके रचने के समय का मानव इतिहास है। मोहम्मद साहब व जीसस क्राईस्ट ने तो स्पष्ट रूप से अपने चमत्कारों एवं अपने मत के विरोधियों के प्रति कटु व्यवहार का वर्णन किया है। अत: ये पुस्तकें सृष्टि के आदि समय की नहीं हैं।


(३) से (६) इन में प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध अनेक वर्णन हैं। ये पुस्तकें वैज्ञानिक तर्क व प्रमाण की कसौटी पर खरी नहीं उतरती।


(७) से (१०) इनमें वर्ग द्वेष की प्रेरणा कूट-कूट कर भरी है। भला ईश्वर अपने पुत्रों में द्वेष फैलाने की आज्ञा कैसे देगा ?


तदप्रामाण्यमनृत-व्याघात--पुनरुक्तदोषेभ्यः ॥ (न्याय दर्शन २/१/५८) अर्थात् जिस पुस्तक में ये तीन दोष हों वह प्रमाण करने योग्य नहीं हो सकती। जिसमें


१. मिथ्या बातों का उल्लेख हो ।

२. परस्पर विरोधी बातें लिखी हों ।

३. पुनरुक्त असंबद्ध बातों का समावेश हो। वह पुस्तक प्रामाणिक नहीं हो सकती।

 

वेद ही ईश्वरीय ज्ञान क्यों ?

 

क्योंकि उपरोक्त सभी कसौटियाँ वेद के विषय में सही उतरती हैं।

"बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे" (वै.६/१/१) वेद में वाक्य रचना बुद्धि पूर्वक है।


सभी निष्पक्ष विद्वान् मानते हैं कि वेद विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है। सभी धर्मों ने मानवतावादी नैतिक मूल्य इन्हीं वेदों से लिये हैं।


इनमें मानव इतिहास नहीं जैसे रामायण, महाभारत, कुरान, बाईबल आदि में है। वेद में वर्तमान विज्ञान के मूल स्रोत हैं। गणित का स्रोत वेद है यह विदेशी भी मानते हैं।


वेदों की शिक्षा सार्वदेशिक, सार्वकालिक, मानवतावादी, प्रेरणादायक, तथा वर्ग-जाति भेद, राग-द्वेष अन्यायादि से मुक्त मानव मात्र के लिये एक समान कल्याणकारी है।


वेद विश्वबन्धुत्व व एक विश्वराज्य व्यवस्था का हामी है। सब प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में इसे ईश्वरीय ज्ञान माना है। और अनेक विदेशी विद्वान् जैसे रेव. मोरिश, फिलिप, मोक्समूलर, जेकोब मेट्रो, मदाम ब्लाव-स्टिकी आदि भी इसे ईश्वरीय ज्ञान मानते हैं।

 

 

वैदिक दर्शन और आधुनिक विज्ञान

 

आज का विज्ञान स्वीकार करता है कि


(१) इस संसार का मूल तत्त्व ऊर्जा है जो कि जड़ है।

(२) मूल्य त्वों की विशेषताओं में परिवर्तन नहीं किया जा सकता यदि परिवर्तन हो जाये तो उन्हे मूल तत्त्व नहीं माना जा सकेगा ।

(३) भौतिक विज्ञान केवल उन्हीं तत्त्वों की सत्ता को स्वीकार करता है जिन्हें आंखों से या यन्त्रों से देखा जा सके अथवा बुद्धि से स्वीकार किया जा सके।

(४) अभाव से भाव नहीं हो सकता इत्यादि ।

अब सत्य की खोज के उद्देश्य से भौतिक वैज्ञानिकों के समक्ष कुछ प्रश्न उपस्थित किये जाते हैं।

प्रश्न- (१) भौतिक विज्ञान उन तत्त्वों को भी स्वीकार करता है जो बुद्धि से जाने जाते हैं, भले ही आँखों या यन्त्रों से नहीं देखे जा सकते हों जैसे कि ऊर्जा, पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति आदि। 'क्वाक्क्स' ' नामक सूक्ष्म द्रव्य भी अभी तक किन्हीं भी यन्त्रों के (माध्यम) से देखे नहीं जा सके। फिर भी विज्ञान इनकी सत्ता को स्वीकार करता है। इसी प्रकार पत्थर आदि भारी पदार्थ पृथ्वी की ओर आकर्षित होते हैं। इस आकर्षण रूपी कार्य के आधार पर पृथ्वी में

'गुरुत्वाकर्षण' के नाम से एक शक्ति की 'सत्ता' स्वीकार की गई।

ठीक इसी प्रकार के हम आप सब सोचते विचारते हैं। अनेक प्रकार की विद्याओं को सीखकर विद्वान् हो जाते हैं। तो यहाँ प्रश्न होता है कि इन विद्याओं को सीखने वाला द्रव्य कौन सा है ? भौतिक विज्ञान के अनुसार तो मूल तत्त्व ज्ञान से रहित हैं। और मूल तत्त्वों की विशेषताओं में परिवर्तन भी नहीं हो सकता जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि जड़ (ज्ञान रहित) मूल तत्त्व से विद्याओं को सीखने वाले चेतन(ज्ञान सहित) द्रव्य की उत्पत्ति हो गई। जब हमें विद्याओं को सीखने वाला, सोचने-समझने वाला तत्त्व व्यवहार में मनुष्य आदि के रूप में उपलब्ध है, तो एक चेतन (ज्ञानवाला) तत्त्व भी हमें मूल तत्त्व के रूप में अवश्य ही स्वीकार करना होगा जो कि विचार पूर्वक कार्य करता है; मोटर, रेल, घर आदि बनाता है और अपने अनेक प्रयोजन सिद्ध करता है। ऊर्जा नामक मूल तत्त्व में ऐसी क्षमता सिद्ध नहीं होती और न ही वैज्ञानिक ऊर्जा में ऐसी क्षमता मानने को तैयार हैं। हम इस ऊर्जा से भिन्न चेतन मूल तत्त्व को 'आत्मा' कहते हैं ।


(२) इसी प्रकार से ब्रह्माण्ड में हम देखते हैं तो सभी जगह (परमाणु सौरमंडल आदि में) हमें व्यवस्था दिखाई देती है। ब्रह्माण्ड का मूल तत्त्व ऊर्जा तो जड़ (ज्ञान से रहित) है। वह तो ऐसी व्यवस्था और नियम बना नहीं सकता। इन नियमों और व्यवस्थाओं (व्यवस्थित रचनाओं) के लिये किसी बुद्धिमान् (ज्ञानवान् ) तत्त्व को स्वीकार करना ही होगा , जो ऊर्जा, क्वाक्स और इलेक्ट्रोन आदि द्रव्यों को परमाणुओं तथा रासायनिक द्रव्यों (= हीलियम, आक्सीजन, हाइड्रोजन आदि) के रूप में व्यवस्थित कर सके। यदि इस कार्य के लिये हम यह सोचे कि मनुष्य के रूप में उपलब्ध ज्ञानवान् पदार्थ 'आत्मा' ने यह व्यवस्था बनाई होगी, तो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि किसी भी मनुष्य का ऐसा सामर्थ्य नहीं दीखता, जो अरबों आकाश गंगाओं तक फैले विशाल ब्रह्माण्ड की व्यवस्था कर सके। परिणाम स्वरूप हमें एक ऐसे अन्य चेतन (ज्ञानवान्) मूल तत्त्व की सत्ता माननी होगी जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना और व्यवस्था कर सके। ऐसे शक्तिशाली मूल तत्व को हम 'ईश्वर' कहते हैं। इसकी सत्ता को स्वीकार किये बिना सृष्टि की रचना का प्रश्न सुलझ नहीं पायेगा।


कोई भी जड़ वस्तु ज्ञानपूर्वक स्वयं गतिशील होकर किसी कार्य पदार्थ के रूप में उपस्थित नहीं हो जाती। जैसे कि वृक्ष से लकड़ी के टुकड़े स्वयं कटकर और बुद्धि पूर्वक जुड़कर मेज कुर्सी के रूप में नहीं आ जाते उन्हें मेज कुर्सी के रूप में लाने के लिये चेतन कत्त्ता (बढ़ई) की आवश्यकता होती है। ठीक इसी प्रकार से इस ब्रह्माण्ड के मूल तत्त्व ऊर्जा और क्वाक्क्स आदि ज्ञान शून्य होने से स्वयं बुद्धि पूर्वक मिलकर इलेक्ट्रोन, प्रोटोन आदि के रूप में उपस्थित नहीं हो सकते। उनको इस स्थिति में लाने के लिये भी बढ़ई के समान एक ज्ञानवान् तत्त्व की आवश्यकता होगी। और वह भी एक मूल तत्त्व होगा। क्योंकि उसकी विशेषतायें ऊर्जा और आत्मा से भिन्न हैं।


उसी मूल तत्त्व को हम ईश्वर कहते हैं। यदि ईश्वर की सत्ता को न माना जाये तो हमारा प्रश्न है कि- ऊर्जा से क्वाक्क्स तथा इलेक्ट्रोन, प्रोटोन आदि पदार्थ किसने बनाये? जब कि सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि सृष्टि की रचना बुद्धिपूर्वक है और ऊर्जा आदि मूल तत्त्व बुद्धि से शून्य (ज्ञान रहित) हैं

 

 

विश्व की समस्याओं का समाधान

 

 

विश्व की समस्याओं को सुलझाने के लिये हमें विश्व के सम्पूर्ण तत्त्वों का अध्ययन करना ही होगा। विश्व के सम्पूर्ण तत्त्व उपर्युक्त विवेचन के अनुसार 'तीन' ही सिद्ध होते हैं। इन तीनों का विस्तृत विवरण वेद और वैदिक साहित्य (भारतीय वैदिक दर्शन एवं उपनिषदादि) में उपलब्ध होता है। इन सभी में इन तीन त्त्वों के नाम हैं - ईश्वर, जीव और प्रकृति।


वैज्ञानिक लोग भौतिक - विज्ञान में केवल 'प्रकृति' नामक एक ही मूल तत्त्व का अध्ययन करते हैं परन्तु शेष दो तत्त्वों की उपेक्षा कर देते हैं । ऐसी स्थिति में हम यह समझते हैं कि जीवन की सभी समस्याओं का समाधान नहीं हो पायेगा।                              


मनुष्यों की स्वाभाविक इच्छा है कि हम दुःखों से पूर्णतया छूटकर स्थायी और पूर्ण सुख की प्राप्ति कर सकें। इसकी पूर्ति के लिये हमें "ईश्वर और आत्मा" के बारे में भी अवश्य ही जानना होगा क्या भौतिक वैज्ञानिक इन दो तत्त्वों के सम्बन्ध में जानने के लिये भारतीय वैदिक साहित्य का अध्ययन करेंगे? और क्या संसार के अन्य लोगों को भी वैदिक साहित्य अध्ययन करने का परामर्श देंगे ? ऐसा करने से मानवता का बहुत बड़ा उपकार होगा।

Post a Comment

0 Comments

Ad Code