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तुम सब में निर्दोष हो

 

  तुम सब में निर्दोष हो

 

   मा वः स्तेनः ईशत= श्तेन अर्थात चोर लुटेरें तुम्हारें स्वामी ना बनने पाये।  जब मैं कहता हू की परमेश्वर का कोई योग दान नहीं हैहमारे जीवन में ऐसा इसलिये है क्योकि हम ही परमेश्वर है और हमारे जैसे ही जीतने जीवन के बिन्दु है उतने ही परमेश्वर भी है। इन सब के द्वारा जो उर्जा का विसर्जन हो रहा है उससे सिर्फ़ हमार ही जीवन ही नहीं बनता है यद्यपी हमारे अतिरीक्त जो हमारा ब्रह्माण्ड है वह भी निरंतर बढ़ रहा है। इसको हम पृथ्वी के सात घटा कर देख सकते है जैसा यह मानव है उसके अनुरुप ही पृथ्वी भी स्वयं को ढालती जा रही है। ह भी बन रहीं है यह मानव के अनुकुल बनने के लिये हर पल प्रयाश रत है। यहाँ रहने वाला मानव अपने जीवन को ले कर अत्यधिक संकट में दिखाई दे रहा है। इसका जीवन खतरे में यहा पृथ्वी पर नजर आ रहा है इस लिये यह यहा से कही और दूसरे किसी ग्रह पर अपना निवास अस्थान बनाने के लिये लगातार परिश्रम कर रहा है। यह पृथ्वी भी अब ठीक मनुष्य की तरह है इसे भी अपने अस्तित्व पर खतरा नजर आ रहा है। ऐसा ही ब्रह्माण्ड के साथ भी हो रहा है। जीतना जीवन का विकास होगा उतना ही ब्रह्माण्ड का विकास होगाजिसको विग वैगं के नाम से जानते है और जितना जीवन का हराश होगा उतना ही उतना ही पृथ्वी का भी नाश होगाइसके साथ ब्रह्माण्ड का भी पतन नाश होगा। जिसको ब्लैक होल कहते है। यह विग वैग की घटना एक परीवर्तन है जो हर परमाणु में घट रही हैयह ब्लैक होल भी हर परमाणु में भी विद्य मान है। यह नया नहीं है यही जीवन और मृत्यु है। जब जीवन से भरे है तो आपका विकास हो रहा है जिस वैज्ञानिक भाषा में विग वैगं कहते है। लेकिन जब आप मृत्यु के साये को अपने चारों तरफ महशुष करते है तो यह वैज्ञानिक भाषा में ब्लैक होल है जो आपको पिघला कर आपका जो जीवन रस है उसे चुस रहा है। जो एक बार इस शरीर से मुक्त करके दूसरे शरीर के लिये तैयार कर रहा है।

         इस विश्व ब्रह्माण्ड के प्रारंभ में सर्वप्रथम सबका ज्ञात सबको जानने वाला और सबका उत्पादक सब को पैदा करने वालासबको विस्तायुक्त विस्तार कर्ता सब को फैलाने वालाजो सब प्रकार के सद्गुण को धारण कर्ता सब का अद्वितिय प्रकाशका सूर्य के समान तेजस्वी है। सबसे श्रेष्ठ जिसमें सभी रुची लेते है जो अलौकिक अद्भुत प्रकाशयुक्त विषयों सबसे बहुमुल्य विषय है। जिसको प्राप्त करने की योग्यता प्रत्येक मनुष्य जन्मजात धारण करता है। जिसको सबने पहले से ही प्राप्त ही कर रखा हैजिस परमेश्वर के प्रेम पूर्ण सामर्थ के वशी भूत होकर सभी आकाशगंगाब्रह्माण्डसौर्यमंडलग्रह आदि अपना अपनी धुरी पर निरंतर यथा स्थान निश्चित गती कर रहे है। जो ईश्वर ज्ञान का दृष्टान्त लोक और अपने व्याप्ती से सब को आच्छादित कर रहा हैवह ईश्वर मर्यादा से देखने योग्य अव्यक्त अदृश्यता के कारण जो आकाश स्थान को ग्रहण करता है।

       मा अघ शंसः = पापात्मा पुरुष के विचार तुम पर शासन ना करें।  जिस ब्रह्मा के ब्रह्मज्ञान को जानने के लिये प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध सब लोक दृष्टान्त के समान है। जो सर्वत्र व्यापक सबका आवरण सबका प्रकाशक और सबका सुन्दर अनुशाशन कर्ता है। जिसने सभी को उनको नियम के साथ नियमन करके सभी छात्रों को जो लोकों के समान है लोकपाल है। उनको रखता है। वहीं परमेश्वर हम सब के अन्तर्मन में अन्तर्यामी रूप में विद्यमान है जो निरंतर हम सब की हर कामना में सर्व श्रेष्ठ और उपसना करने के योग्य है। इसके अतिरीक्त कोई दूसरा पदार्थ इसके स्थान पर सेवन के योग्य करने नहीं है और जो यह अद्भुत और अलौकिक कार्य करता है वही ब्राह्मण है जिसके लिये उसका ब्रह्मज्ञान सब कुछ हैजिस ब्राह्मण के पास ब्रह्मज्ञान नहीं है वह ब्राह्मण नहीं है वह कुछ और इसके अतिरीक्त है। यह ब्रह्मज्ञान सभी मनुष्यों को संतती के रूप में नहीं मिलता है यह अनुवांसिक वंस परम्परा का सम्वाहक नहीं है। इसके लिये केवल एक मार्ग है वह है पुरषार्थ के चरम उत्कर्ष को उपलब्ध होना ही ब्राह्मज्ञान है। जो सबसे बड़ा ब्रह्मज्ञानी है वहीं सबका उत्पादक सबका माता पिता और सबका सच्चा निस्वार्थ निस्पक्ष गुरु है। वही यह सब निश्चित करता है कि कौन-सा छात्र किस प्रकार की योग्यता रखता है। उसकी योग्यता के सामर्थ के अनुरुप ही वह ब्रह्मज्ञानी पुरुष उस छात्र को उसके लिये उपयुक्त शीक्षा का ज्ञान दे कर शीक्षित करता है और उस विशेष कार्य के लिये इस भुमंडल पर नियुक्त करता है। क्योकि हर किसी के लिये हर प्रकार का विशेष ज्ञान उपलब्ध करना इस छोटे से जीवन में संभव नहीं है और ना हि हर व्यक्ती हर प्रकार का विशेष कार्य ही कर सकता है। इसके लिये कुछ विशेष व्यक्तियों का ही वह परम पुरुष निश्चित करता है। मानवों में अत्यधिक मानव लेवर किस्म के कार्य का संपादन करते है। जिस प्रकार से हर व्यक्ती ना ही किसी देश का प्रधान मंत्री बनता है ना ही राष्ट्रपती ही बनता है। ना ही हर व्यक्ती जजचिकित्सक ना ही हर व्यक्ती वैज्ञानिक ही बनते है। यह बात अलग है कि यह संभावन सब के अन्दर है। यद्यपी यह पुरुष के परिश्रम और उसकी परिस्थिति पर भी काफी कुछ निश्चित करता है। यदि वह मानव यह अपने प्रारंभिक जीवन में एक विशेष उद्देश्य बना कर निश्चित उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पुरुषार्थ करें तो अवश्यमेव वह एक दिना अपने निश्चित लक्ष्य पर पहुंच जायेगा। इसके लिये वह अपना कर्म करने के लिये बिल्कुल स्वतन्त्र हैयही इस स्वतन्त्रता का ग़लत उपयोग ही इस मानव को बहुत सारे ना करने योग्य करम करता जिसके कारण ही उसे बंधन को उपलब्ध होना पड़ता है जिसके लिये वह अपने भाग्यकिस्मत और अपने भगवान को दोष देता है और बार-बार उलाहना करता है कि परमेश्वर तुमने हमें यह क्यों नहीं दियामुझे ऐसा क्यो बनाया? ऐसा ही मानवों की संख्या इस भुमंडल पर सबसे अधिक है जो स्वयं से और स्वयं के कर्मो से और मिलने वाले कर्मों से अत्यधिक अतृप्त है उनका जीवन साक्षात मृत्यु के समान है कहले को वह जीवीत होते है वास्तव में उनमे जीवन जैसा कुछ भी नहीं हैवह अपने अंदर पुरी तरह से टुट चुके होते है उनके सामने हर तरफ से केवल निराश के बादल ही दिखाई देते है उनके जीवन में कोई आशा की किलण नहीं दिखाई देती है। वह अपने जीवन में वस्तव मेंकभी जीवन को अनुभव ही नहीं करते है। सदा उन्हें मृत्यु ही दिखाई देती है। इसके पिछे मुख्य कारण है कि वह जिस समाज में रहते वह समाज और वह परिवार उनको बनाता हे वह स्वयं के मालिक नहीं होते है यद्यपी वह सब दाश क समान होते है। जो वस्तु जितनी दुर्लभ या बहुमुल्य है या जितनी बड़ी है या जितनी क्षुद्र हैउसको उपलब्ध करने वाले भी उसी प्रकार के व्यक्ती होते है। बहुत कम और दुर्लभ व्यक्ती ही होते है। जीवन के चरम उत्कर्श अपने जीवन में उपलब्ध कर पाते है। जितनी क्षुद्र या छोटी वस्तु है उसको चाहने वाले भी बहुत अधीक मात्रा में उपलब्ध होते हैयह सब निम्न स्तर के व्यक्ती होते है। यहाँ किसी को मुफ्त में कोई वस्तु नहीं मिलती है हर किसी व्यक्ती को उस वस्तु की उपयुक्त किमत अवश्य चुकानी पड़ती है। जो मुफ्त में किसी वस्तु को प्राप्त कर लेते है वह उसकी उपयोगिता और बहुमुल्यता से अन्जान ही रहते है। जैसा कि हर व्यक्ती को नहीं पता है कि सूर्य की किमत क्या हैहवा की किमत क्या हैपृथ्वी की किमत क्या हैजल की किमत क्या हैआकाश की किमत क्याइन पांच तत्वों का मेल ह यह शरीर है या फिर वह परममेश्वर हमारें जीवन के लिये कितना बहुमूल्य है। लोग इसको भुल कर हमेंशा किसी ना किसी प्रकार से येन केन प्रकारेण केवल हर समश्या का सामाधान के रूप रूपये को देखते है और इसको ही उपलब्ध करना अपने जीवन का परम उद्देश्य समझते है। जिसके कारण वह उस वस्तु का सही उचित उपयोग नहीं कर पाते इसके विपरीत वह उसका अधिकतर दुर्प्रयोग ही करते है। इस जगत में जो अ नाम का कोई एक प्राणी है जिसको ब्रह्मज्ञान हो गया हैविज्ञान के माध्यम से उसने स्वयं के जीवन में कुछ विशेष प्रयोग करके ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया। जिसके माता पिता स्वयं शिव है और जिसकी माता स्वयं पार्वती है जो स्वयं साक्षात अर्धनारेश्वर है जो ना स्त्री है ना पुरुष है वह दोनों से उपर उठ चुका है। वह उस जगत में रहता है जहाँ जगत जागते हु गती करता है।


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