👉 सबसे खुश कौन?
🔶 जंगल में एक कौआ रहता था जो अपने जीवन से पूर्णतया
संतुष्ट था। लेकिन एक दिन उसने बत्तख देखी और सोचा, “यह बत्तख कितनी
सफ़ेद है और मैं कितना काला हूँ। यह बत्तख तो संसार की सबसे ज़्यादा खुश पक्षी
होगी।” उसने अपने विचार बत्तख से बतलाए। बत्तख ने उत्तर दिया, “दरअसल मुझे भी ऐसा ही लगता था कि मैं सबसे अधिक खुश पक्षी हूँ जब तक मैंने
दो रंगों वाले तोते को नहीं देखा था। अब मेरा ऐसा मानना है कि तोता सृष्टि का सबसे
अधिक खुश पक्षी है।”
🔷 फिर कौआ तोते के पास गया। तोते ने उसे समझाया, “मोर
को मिलने से पहले तक मैं भी एक अत्यधिक खुशहाल ज़िन्दगी जीता था। परन्तु मोर को
देखने के बाद मैंने जाना कि मुझमें तो केवल दो रंग हैं जबकि मोर में विविध रंग
हैं।” तोते को मिलने के बाद वह कौआ चिड़ियाघर में मोर से मिलने गया। वहाँ उसने
देखा कि उस मोर को देखने के लिए हज़ारों लोग एकत्रित थे।
🔶 सब लोगों के चले जाने के बाद कौआ मोर के
पास गया और बोला, “प्रिय मोर, तुम तो
बहुत ही खूबसूरत हो। तुम्हें देखने प्रतिदिन हज़ारों लोग आते हैं। पर जब लोग मुझे
देखते हैं तो तुरंत ही मुझे भगा देते हैं। मेरे अनुमान से तुम भू मण्डल के सबसे
अधिक खुश पक्षी हो।”
🔷 मोर ने जवाब दिया, “मैं
हमेशा सोचता था कि मैं भू मण्डल का सबसे खूबसूरत और खुश पक्षी हूँ। परन्तु मेरी इस
सुंदरता के कारण ही मैं इस चिड़ियाघर में फंसा हुआ हूँ। मैंने चिड़ियाघर का बहुत
ध्यान से परीक्षण किया है और तब मुझे यह अहसास हुआ कि इस पिंजरे में केवल कौए को
ही नहीं रखा गया है। इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं इस सोच में हूँ कि अगर मैं कौआ
होता तो मैं भी खुशी से हर जगह घूम सकता था।”
🔶 यह कहानी इस संसार में हमारी परेशानियों का
सार प्रस्तुत करती है: कौआ सोचता है कि बत्तख खुश है, बत्तख
को लगता है कि तोता खुश है, तोता सोचता है कि मोर खुश है
जबकि मोर को लगता है कि कौआ सबसे खुश है।
सीख :
🔷 दूसरों से तुलना हमें सदा दुखी करती है। हमें
दूसरों के लिए खुश होना चाहिए, तभी हमें भी खुशी मिलेगी। हमारे पास जो
है उसके लिए हमें सदा आभारी रहना चाहिए। खुशी हमारे मन में होती है।। हमें जो दिया
गया है उसका हमें सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। हम दूसरों की ज़िन्दगी का अनुमान
नहीं लगा सकते। हमें सदा कृतज्ञ रहना चाहिए। जब हम जीवन के इस तथ्य को समझ लेंगे
तो सदा प्रसन्न रहेंगे।
👉 बलि का तेज चला गया
🔷 राजा बलि असुर कुल में उत्पन्न हुए थे पर वे
बड़े सदाचारी थे और अपनी धर्म परायणता के उसने बहुत वैभव और यश कमाया था। उनका पद
इन्द्र के समान हो गया। पर धीरे-धीरे जब धन सें उत्पन्न होने वाले अहंकार, आलस्य,
दुराचार जैसे दुर्गुण बढ़ने लगे तो उनके भीतर वाली शक्ति खोखली होने
लगी।
🔶 एक दिन इन्द्र की बलि से भेंट हुई तो सब ने
देखा कि बलि के शरीर से एक प्रचण्ड तेज निकलकर इन्द्र के शरीर में चला गया है और
बलि श्री विहीन हो गये।
🔷 उस तेज से पूछा गया कि आप कौन हैं? और
क्यों बलि के शरीर से निकलकर इन्द्र की देह में गये? तो तेज
ने उत्तर दिया कि मैं सदाचरण हूं। मैं जहां भी रहता हूँ वहीं सब विभूतियाँ रहती
हैं। बलि ने तब तक मुझे धारण किया जब तक उसका वैभव बढ़ता रहा था। जब इसने मेरी
उपेक्षा कर दी तो मैं सौभाग्य को साथ लेकर, सदाचरण में तत्पर
इन्द्र के यहाँ चला आया हूँ।
🔶 बलि का सौभाग्य सूर्य अस्त हो गया और इन्द्र
का चमकने लगा, उसमें सदाचरण रूपी तेज की समाप्ति ही प्रधान कारण थी।
🔷 ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जो अपने व्यक्तित्व
को ऊँचा उठाकर अपने को महा मानव स्तर तक पहुँचा देते है, जन
सम्मान पाते हैं। ऐसे निष्ठावान से भारतीय-संस्कृति सदा से गौरवान्वित होती रही
है।
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