Ad Code

इन्द्र स्वाभाविक शक्ति से अकेला सारे कार्य करता है

1191
English version is at the end

इन्द्र स्वाभाविक शक्ति से अकेला सारे कार्य करता है
                   वैदिक भजन ११९१ वां
                    राग अल्हैया बिलावल
            गायन समय दिन का प्रथम प्रहर
                    ताल कहरवा आठ मात्रा
                      👇  वैदिक मन्त्र 👇
एता विश्वा चकृवॉं इन्द्र भूर्यपरीतो जनुषा वीर्येण। 
या चिन्नु वज्रिन् कृणवो दधृष्वान् न ते वर्त्ता तविष्या अस्ति तस्या: ।।              ‌‌‌        ‌          ऋ० ५. २९.१४
                 👇      वैदिक भजन   👇
तुम महाबल हो महाबुद्धे! महाकर्मन् महामते ! हो
 तुमने तो अचिन्त्यपार जग की रचना की 
अद्भुत जगत रचना की ।। 
तुम....... 
तुमने नए-नए पदार्थ रचे 
इसमें तो ना कोई सहाय रहे 
स्वाभाविक इसमें सामर्थ रहे 
तुम्हें कोई दबा भी नहीं सकते
 तुमने अपनी ही महत्ता से 
जग को अपनी शुभ शक्ति दी ।। 
तुम............. 
प्रभु की शक्ति सच्ची- मीठी 
ना सीमा है इस शक्ति की 
त्रिकालाबाधित सित शक्ति 
ना विघ्न रुकावट ना विपत्ति 
कोई अन्य नियंता कर ना सके 
प्रभु का कोई वक्ता भी तो नहीं ।। 
तुम......... 
शक्तियों का वर्णन कौन करे? 
अल्पज्ञ है जीव क्या कथन करे? 
कोई प्रभु के बाल को दबा न सके 
कार्यों की महत्ता हटा ना सके 
अनुकरण भी शक्ति का कर ना सके
 है शक्तिमान अनुपम अग्रणी ।। 
तुम......... 
है प्रेरणा प्रभु की गुणों को वरें 
दया प्रेम करें, हिंसा न करें 
परमात्मनिष्ठ हो जाया करें 
मुक्ति का हृदय आनन्द भरे 
है शक्ति हमारी अति सीमित 
पर प्रभु की अपार अनन्त अति 
तुम........ 
              1.6.2024    6.35 PM
                         शब्दार्थ:-
अचिन्त्यपार= जो ध्यान में ना आ सके उससे पार 
 महामते= अत्यन्त बुद्धिमान 
सहाय= सहायता करने वाला 
महत्ता= महानता
त्रिकालबाधित= तीनों कालों में अबाधित(भूत वर्तमान भविष्य) 
अल्पज्ञ= अल्प बुद्धि वाला
अग्रणी= नेता,आगे ले जाने वाला
निष्ठ= विश्वास करने वाला
                     👇स्वाध्याय👇
भगवान ने अद्भुत अचिन्त्यपार संसार की रचना की है और प्रतिदिन नए-नए पदार्थ का निर्माण कर रहा है। यह सारे कार्य वह अपरित= अकेला दूसरे की सहायता लिए बिना कर रहा है। उसमें इस विश्व के निर्माण का स्वाभाविक सामर्थ्य है। उसका समर्थ ऐसा है कि उसे कोई दबा नहीं सकता, अपना सकते कि तो बात ही कौन कहे भगवान के बाल समर्थ का वर्णन एक स्तुति मन्त्र में बहुत सुन्दर रीति से हुआ है। तुविशुष्म तुविक्रतो शचीवो विश्व या मते। अप्राथ महित्वना।। ऋ•८.६८.२
हे महाबल! हे महकर्मन्! महाबुद्धे! हे मते !
तूने अपनी महत्ता से संसार को पसार है। भगवान् में बल महान्, कर्म महान्, ज्ञान महान्, सब कुछ महान् है। दूसरे स्थान पर कहा गया है -- विश्वस्मादिन्द्र उत्तर:( ऋ•10/८६) =भगवान सबसे महान् है अतः उसकी उस शक्ति को ना कोई दबा सकता और ना अपना सकता है। सचमुच नकिरस्य शचिनां नियन्ता सूनृतानाम्। नकिर्वक्तान दादिति।। ऋ॰८.३२.१५
इस भगवान् की सच्ची मीठी शक्तियों का ना कोई नियन्ता है ना कोई वक्ता है, ना कोई दाता है। उसकी शक्तियां सच्ची हैंअर्थात्त त्रिकालबाधित हैं, किसी समय उसकी शक्ति में विघ्न या रुकावट नहीं आ सकती। अबाधित होने के कारण उसका नियन्ता कोई नहीं हो सकता। अनन्त होने के कारण उनका कोई वक्ता भी नहीं है। जब 
अनन्त शक्तियां हैं, तो उनका वर्णन कौन करे? जीव सारे अल्पज्ञ सान्त, उस अनन्तशक्ति की शक्तियों का कथन कैसे करें? जो कहीं ही ना जा सकती हो उसके देने की बात तो दूर रही! भगवान् का बल कोई भी नहीं दबा सकता--न मे दासो नार्यो महित्वा व्रतं मीयाय यदहं धरिष्ये[ऋ० जिस व्रत को मैं धारण करता हूं, महत्व के कारण न दास और न आर्य उस वृत को मार सकते हैं । भला बुरा कोई भी भगवान् के कार्यों को नहीं कर सकता, उनको वह स्वयं ही करता है।  वेद में कहा ही है--
न तत्ते अन्यो अनुवीर्यं शकन्न पुराणो मघवन्नोत नूतन:
[अ॰ २०/१७/५] मघवन्! नया पुराना कोई भी तेरी शक्ति का अनुकरण नहीं कर सकता। भगवान सदा से अनुपम शक्तिमान् है। जब वेद कहता है कि भगवान् के सामर्थ्य को कोई अपना नहीं सकता,तो इसका गहरा अभिप्राय है। इसका अभिप्राय यह नहीं कि भगवान् कि धारणीय दया आदि गुणों को भी हम धारण न करें, प्रत्युत इसका भाव यह है कि भगवान् का सामर्थ्य अनन्त है सान्त जीव अनन्त के सामर्थ्य को कैसे धारण कर सकता है। 
सृष्टि- रचना आदि भगवान् के विशिष्ट कर्मों के करने की शक्ति तो जीव में आ ही नहीं सकती। व्यास मुनि ने वेदांत दर्शन में इसी आशय को लक्ष्य में रखकर कहा-- भोगमात्रसाम्यलिङ्गाच्च[४/४/२१]= मुक्त जीव तथा भगवान् में आनन्द- भोग की समता है । 
प्रश्न यह है कि मुक्त जीव जब सब साधनों से मुक्त हो गया, छूट गया, तो वह भगवान् या भगवान के समान क्यों न माना जाए? महर्षि व्यास उत्तर देते हैं कि यह सत्य है की मुक्ति प्राप्त करने पर जीव बन्धनरहित हो गया किन्तु बन्धनशून्यता का आरम्भ होने के कारण उसके अन्त की सम्भावना भी है।अल्पज्ञ,अल्प सामर्थ्य जीव परमात्मनिष्ठ हो जाने के कारण परमात्मा के आनन्दगुण के उपयोग का अधिकारी तो हो जाता है, किन्तु उसकी अनन्तता तथा सृष्टि रचनादि गुण उसको कभी प्राप्त नहीं होते।
🕉👏 द्वितीय श्रृंखला का १८५ वां वैदिक भजन 
और अब तक का ११९१ वां वैदिक भजन 🙏🌹
सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹

1191
Indra does all the work alone with his natural power

Vedic hymn 1191st
Raag:- Alahiyaa Bilawal
Singing time:- First quarter of the day
Taal:- Kaharva eight beats

👇 Vedic mantra 👇

Etaa Vishwaa Chakravam Indra Bhuryapaarito Janushaa Veeryen.
 Yaa Chinnu Vajrin Krinavo Dadhrishvaan na te vartaa Tavishyaa asti tasyaa : Rigved 5.29.14
 
👇 vaidik bhajan   👇

tum mahaabal ho mahaabuddhe! mahaakarman mahaamate ! ho
 tumane to achintyapaar jug kee rachanaa kee 
adbhut jagat rachanaa kee .. 
tum....... 
tumane naye-naye padaarth rache 
isamen to na koee sahaay rahe 
svaabhaavik isamen saamarth rahe 
tumhen koee dabaa bhee nahin sakate
 tumane apanee hee mahattaa se 
jag ko apanee shubh shakti dee .. 
tum............. 
prabhu kee shakti sachchee- meethee 
na seemaa hai is shakti kee 
trikaalaabaadhit sit shakti 
naa vighna rukaavat na vipatti 
koee anya niyantas kar na sake 
prabhu ka koee vaktaa bhee to nahin .. 
tum......... 
shaktiyon ka varnan kaun kare? 
alpagya hai jeev kyaa kathan kare? 
koee prabhu ke bal ko dabaa naa sake 
kaaryon kee mahattaa hataa naa sake 
anukaran bhee shakti kaa kar naa sake
 hai shaktimaan anupam agranee .. 
tum......... 
hai preransa prabhu kee gunon ko varen 
dayaa prem karen, hinsaa naa karen 
paramaatmanishth ho jaaya karen 
mukti ka hriday aanand bhare 
hai shakti hamaaree ati seemit 
par prabhu kee apaar anant ati 
tum........ 

👇 Vedic hymn 👇

Achintyapaar= Beyond that which cannot be remembered
Mahamate= Extremely intelligent
Sahay= One who helps
Mahattaa= Greatness
Trikalbaadhit=Uninterrupted  in all three time periods (past, present and future)
Alpagya= One with less intelligence
Agrahani= Leader, one who takes forward
Nishtha= One who believes

       1.6.2024    6.35 pm

Indra does everything a *lo* ne with his natural power

Meaning of vaidik bhajan 👇

You are great, great Buddha!  great worker!  yes

you have created a wonderful world

you have created a wonderful world..

you..

you have no meaning

no one has helped you in this

you are natural in this

no one can suppress you

you have awakened with your own greatness  Give your good power to them..

you...........

God's power is true and meet

There is no limit to this power

The power of the three worlds is complete

No obstacles, no obstacles, no obstacles

No one can control anything

God's power  There is no speaker either...
you...

Description of powers  who should I do?  The creature is short-lived, what should I say?  No one can suppress the hair of the Lord

No one can reduce the importance of the workers

Even the power cannot be rejected

You are powerful and unique..

You are inspiration. Bless the virtues of the Lord

Love, do not commit violence  do it
become supremely self-sufficient
the day of liberation is filled with joy
our strength is limited
but the grace of God is infinite
you..........

         ************
Indra does all the work alone with his natural power

 selfstudy(swaadhyaay) 👇
God has created the wonderful, unimaginable world and is creating new things every day. He is doing all these works alone without taking help from others. He has the natural power to create this world. His power is such that no one can suppress him, let alone take him over. The child power of God has been described very beautifully in a prayer mantra. (Tuvishusham tuvikrato sachivo vishva ya mate. Apratha mahitvana. ॥8.68.2) 
O great power! O great action! Great wisdom! O Mate!
You have spread the world with your greatness. God has great power, great action, great knowledge, everything is great.  In another place it is said -- [Vishvaasmadindra Uttara: (Rigveda 10/86) ]= God is the greatest, therefore no one can suppress or adopt His power. Truly( Nakirsya Shachinam Niyanta Sunritanaam. Nakirvaktaan Daditi. Rigveda 8.32.15) 

There is no controller, no speaker, no giver of the true sweet powers of this God. His powers are true, that is, they are timeless, there can be no interruption or obstruction in His power at any time. Being uninterrupted, no one can be its controller. Being infinite, there is no speaker of them. When there are infinite powers, then who will describe them? All living beings are ignorant and finite, how can we describe the powers of that infinite power? Forget about giving it which cannot go anywhere!  No one can suppress the power of God-- [ Na me daso naryo mahitva vratam meeyaaya yadhaam dharishye [(R.)] 
The vow that I observe, due to its importance, neither a slave nor an Arya can kill that vow. No one, good or bad, can do the works of God, He does them Himself. It is said in the Vedas--
[Na tatte anyo anuveeryaam shakan puraano maghavannot nutan:
[A. 20/17/5] 

Maghavan! No one, new or old, can imitate your power. God has always been uniquely powerful. When the Vedas say that no one can adopt the power of God, it has a deep meaning. It does not mean that we should not adopt the qualities like kindness etc. that God has to bear, rather its meaning is that God's power is infinite, how can a finite being bear the power of the infinite.
When Veda says that no one can adopt the power of God, then it has a deep meaning. It does not mean that we should not adopt the qualities of God like mercy etc., rather it means that God's power is infinite, how can a finite being adopt the power of the infinite. 
The power to do the special works of God like creation of the world etc. cannot come to the living being. Vyasa Muni said keeping this meaning in mind in Vedanta philosophy - [Bhogamātrasamyaalingaccha [4/4/21] = 
There is equality of enjoyment between the liberated being and God. 

The question is that when the liberated being is freed from all means, then why should he not be considered equal to God or God?  Maharishi Vyas replies that it is true that on attaining salvation the soul becomes bondless, but since the bondlessness has begun, there is a possibility of its end as well. A soul with limited knowledge and limited capability, on becoming God-oriented, becomes entitled to use the blissful quality of God, but he never receives His qualities like infinity and creation.
🕉👏 185th Vedic hymn of the second series
And 1191st Vedic hymn till now🙏🌹
Hearty greetings to all Vedic listeners🙏🌹

Post a Comment

0 Comments

Ad Code