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यजुर्वेद अध्याय 28 हिन्दी व्याख्या

 


॥ वेद ॥

॥ वेद ॥>॥ यजुर्वेद ॥>॥ अध्याय २८ ॥

होता यक्षत्समिधेन्द्रमिडस्पदे नाभा पृथिव्या ऽ अधि.

दिवो वर्ष्मन्त्समिध्यत ऽ ओजिष्ठश्चर्षणीसहां वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (१)

होता (पुरोहित) समिधा से इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. यज्ञ पृथ्वी और अंतरिक्ष की नाभि है. स्वर्गलोक में समिधा चमक रही है. इंद्र देव ओजस्वी और विजेता हैं. यजमान से अनुरोध है कि वह उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. उन से अनुरोध है कि वे हवि ग्रहण करने की कृपा करें. ( १ )

 

होता यक्षत्तनूनपातमूतिभिर्जेतारमपराजितम्.

इन्द्रं देव स्वर्विदं पथिभिर्मधुमत्तमैर्नराश सेन तेजसा वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (२)

इंद्र देव तेजस्वी, शरीर के रक्षक, अपने रक्षा साधनों से जीतने वाले और कभी नहीं हारने वाले हैं. होता उन के प्रति प्रसन्नतादायी आहुतियों से यज्ञ करते हैं. वे आत्मज्ञाता हैं. वे मधुर हवि ग्रहण करने की कृपा करें. होता उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (२)

 

होता यक्षदिडाभिरिन्द्रमीडितमाजुह्वानममर्त्यम्.

देवो देवैः सवीर्यो वज्रहस्तः पुरन्दरो वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (३)

इंद्र देव अमर, उपासना के योग्य है. वे देवताओं के सर्वेसर्वा और उन के हाथ में वज्र हैं. वे शत्रुओं के नगर नष्ट करने वाले हैं. होता उन के लिए मधुर प्रार्थनाओं से यज्ञ करने की कृपा करें. वे हवि द्वारा आनंदित होने की कृपा करें. (३)

 

होता यक्षद्धर्हिषीन्द्रं निषद्वरं वृषभं नर्यापसम्.

वसुभी रुद्रैरादित्यैः सयुग्भिर्बर्हिरासदद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. ( ४ )

इंद्र देव धनवर्षक, यजमानों का हित चाहने वाले व बलवान हैं. होता कुश के आसन पर विराज कर उन के लिए यज्ञ करते हैं. वे वसु, रुद्र, आदित्य और अपने साथ के अन्य देवों के साथ कुश के आसन पर बैठ कर हवि ग्रहण करने की कृपा करें. होता उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (४)

 

होता यक्षदोजो न वीर्य सहो द्वार ऽ इन्द्रमवर्धयन्. 

सुप्रायणा अस्मिन्यज्ञे वि श्रयन्तामृतावृधो द्वार ऽ 

इन्द्राय मीढुषे व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज.. (५)

होता ने इंद्र देव हेतु यज्ञ किया. उन्होंने उन की बढ़ोतरी की एवं उन के ओज और वीर्य की बढ़ोतरी की. इस यज्ञ में यज्ञ को बढ़ाने वाले द्वार की ओर देवता अच्छी तरह प्रयाण करें. वे इच्छापूर्ति करने वाले हैं. वे यज्ञ में पधारें. अमृत स्वरूप हवि को ग्रहण करने की कृपा करें. हम उन के लिए यज्ञ करते हैं. होता उन के लिए यज्ञ कीजिए. (५)

 

होता यक्षदुषे इन्द्रस्य धेनू सुदुघे मातरा मही.

सवातरौ न तेजसा वत्समिन्द्रमवर्धतां वीतामाज्यस्य होतर्यज.. (६)

इंद्र देव के लिए पृथ्वी मां जैसी है, अच्छे दूधवाली गायों जैसी है. होता ने महान् उन के लिए पवित्र यज्ञ किया. होता ने अपने तेज से उन की बढ़ोतरी की. जैसे मां के प्यार से बच्चा दृढ़ बनता है, वैसे ही वे हवि से दृढ़ हों. होता! आप उन के लिए यज्ञ कीजिए. (६)

 

होता यक्षव्या होतारा भिषजा सखाया हविषेन्द्रं भिषज्यतः.

कवी देवौ प्रचेतसाविन्द्राय धत्त इन्द्रियं वीतामाज्यस्य होतर्यज.. (७)

अश्विनीकुमार दिव्य, भिषगाचार्य ( चिकित्सक) हमारे सखा, इंद्र देव के वैद्य और कवि हैं. वे श्रेष्ठ चित्त वाले हैं. इंद्र देव के लिए स्वास्थ्य धारण करते हैं. होता देवों ने अश्विनीकुमारों के लिए यज्ञ किया. अश्विनीकुमार हवि ग्रहण करने की कृपा करें. होता उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (७)

 

होता यक्षत्तिस्त्रो देवीर्न भेषजं त्रयस्त्रिधातवो ऽपस ऽ इडा सरस्वती भारती मही:.  इन्द्रपत्नीर्हविष्मतीर्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज.. (6)

होता ने इड़ा, सरस्वती व भारती के लिए यज्ञ किया. तीनों देवियों के लिए होता ने यज्ञ किया. ये तीनों देवियां तीनों लोकों में तीनों ऋतुओं को धारण करने वाले इंद्र देव की आज्ञा का पालन करती हैं. ये तीनों देवियां ओषधि युक्त हैं. तीनों देवियां हविष्मती हों. यजमान इन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (८)

 

होता यक्षत्त्वष्टारमिन्द्रं देवं भिषज सुयजं घृतश्रियम्.

पुरुरूप सुरेतसं मघोनमिन्द्राय त्वष्टा दधदिन्द्रियाणि वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (९)

त्वष्टा देव वैभववान, दानी, रोगनाशक, श्रेष्ठ यज्ञकर्त्ता, शोभाधारी व अनेक रूप वाले हैं. उत्तम वीर्य वाले धनवान त्वष्टा ने इंद्र के लिए शक्तियां धारीं त्वष्टा देव हवि ग्रहण करने की कृपा करें. होता उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (९)

 

होता यक्षद्वनस्पति शमितार शतक्रतुं धियो जोष्टारमिन्द्रियम्. 

मध्वा  समञ्जन्पथिभिः सुगेभिः स्वदाति यज्ञं मधुना घृतेन वेत्वाज्यस्य होतर्यज..  (१०)

वनस्पति देव शांतिदाता, सैकड़ों यज्ञ करने वाले, बुद्धि योजक ( जोड़ने वाले) और इंद्र देव से संबंधित हैं. वे पथ को सुगम बनाने वाले हैं. यज्ञ को मधुर हवियों से पूरते हैं. वे वनस्पति मधुर हवि को ग्रहण करने की कृपा करें. होता उन वनस्पति देव के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (१०)

 

होता यक्षदिन्द्र स्वाहाज्यस्य स्वाहा मेदसः स्वाहा स्तोकाना स्वाहा  स्वाहाकृतीना स्वाहा हव्यसूक्तीनाम्.

स्वाहा देवा ऽ आज्यपा जुषाणा ऽ इन्द्र ऽ आज्यस्य व्यन्तु होतर्यज.. (११)

इंद्र देव के लिए स्वाहा. आज्य के लिए स्वाहा. मेद के लिए स्वाहा. स्तोत्र के लिए स्वाहा. स्वाहा करने वाले के लिए स्वाहा. हवि के लिए सूक्त गाने वालों के लिए स्वाहा. देवों के लिए स्वाहा. हवि का पान करने वालों के लिए स्वाहा. इंद्र देव हवि का पान करने की कृपा करें. यजमान इंद्र देव के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (११)

 

देवं बर्हिरिन्द्र सुदेवं देवैर्वीरवत्स्तीर्णं वेद्यामवर्धयत्.

वस्तोर्वृतं प्राक्तोर्भृत राया बर्हिष्मतोत्यगाद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (१२)

हे इंद्र देव ! देवता अच्छी वेदी पर बढ़ोतरी पाते हैं. देवताओं की भी बढ़ोतरी करते हैं. देवगण कुश के आसन पर विराजने व हवि का भोग लगाने की कृपा करें. यजमान कुश के आसन से युक्त हैं. यजमान ऐश्वर्य पाने व धन धारण करने के लिए यज्ञ करते हैं. (१२)

 

देवीर्द्वारऽ इन्द्र सङ्घाते वीड्वीर्यामन्नवर्धयन्.

आ वत्सेन तरुणेन कुमारेण च मीवतापार्वाण ४ रेणुककाटं नुदन्तां वसुवने  वसुधेयस्य व्यन्तु यज.. (१३)

इंद्र देव देवों के द्वार हैं. सब ने मिल कर उन के पराक्रम व बल की बढ़ोतरी की. इंद्र देव बाल्य, युवा और कुमारावस्था में होने वाले हानिकारी तत्त्वों व धूल भरे बादलों को भी रोकते हैं. वे यजमान को वैभव प्रदान करने व वैभव धारण करने की कृपा करें. वे यजमान के घर में सुखशांति के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. हे यजमानो! आप इंद्र देव के लिए यज्ञ कीजिए. ( १३ )

 

देवी उषासानक्तेन्द्रं यज्ञे प्रयत्यह्वेताम्

दैवीर्विशः प्रायासिष्टा : सुप्रीते सुधिते वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज.. (१४)

उषा देवी और रात्रि देवी प्रेमिल हैं. यज्ञ में उन का आह्वान कीजिए. वे यजमानों को अच्छी प्रीति और अच्छी बुद्धि के लिए प्रेरित करती हैं. हे यजमानो! आप यज्ञ कीजिए ताकि वे आप के लिए धन धारण कर सकें. आप को धन प्रदान कर सकें. (१४)

 

देवी जोष्ट्री वसुधिती देवमिन्द्रमवर्धताम्. 

अयाव्यन्याघा द्वेषा स्यान्या वक्षद्वसु वार्याणि यजमानाय शिक्षिते वसुवने  वसुधेयस्य वीतां यज.. (१५)

देवी जोशीली, धन धारण करने वाली, इंद्र देव की बढ़ोतरी करने वाली, द्वेषों व पापों को दूर करने वाली हैं. यजमान के लिए धन धारने की कृपा कीजिए. यजमान को धन प्राप्ति की शिक्षा दीजिए. यजमान इस सब के लिए यज्ञ करें. (१५)

 

देवी ऊर्जाहुती दुघे सुदुघे पयसेन्द्र मवर्धताम्.

इषमूर्जमन्या वक्षत्सग्धि सपीतिमन्या नवेन पूर्वं दयमाने पुराणेन  नवमधातामूर्जमूर्जाहुती ऊर्जयमाने वसु वार्याणि यजमानाय शिक्षिते वसुवने  वसुधेयस्य वीतां यज.. (१६)

देवी ने इंद्र देव को ऊर्जस्वी बनाया. पयस से उन की बढ़ोतरी की. देव अन्न शक्ति से युक्त हैं. देवी जल शक्ति से युक्त हैं. देवी दयामयी, पुरातन तत्त्वों को जानने वाली हैं व नए और पुराने अन्न को धारण करती हैं. वे यजमान के लिए महान् ऐश्वर्य प्रदान करने उस को स्थायित्व प्रदान करने की कृपा करें. देवगण हव्यपान की कृपा करें. यजमान गण इन के लिए यज्ञ करें. (१६)

 

देवा दैव्या होतारा देवमिन्द्रमवर्धताम्.

हताघश सावाभाष्र्ण्यं वसु वार्याणि यजमानाय शिक्षितौ वसुवने वसुधेयस्य  वीतां यज.. (१७)

होता दिव्य है. वह ( यज्ञ से ) देवी की बढ़ोतरी करने की कृपा करे. होता इंद्र देव की बढ़ोतरी करने की कृपा करें. देव और देवी हमारा वैभव बढ़ाने की कृपा करें. देवी और देव यजमान को वैभव प्रदान कराने के लिए हवि ग्रहण करने की कृपा करें. देव और देवी उस वैभव को स्थायी बनाने की कृपा करें. हे यजमान ! आप भी इसीलिए यज्ञ करने की कृपा करें. ( १७ )

 

 

देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीः पतिमिन्द्रमवर्धयन्.

अस्पृक्षद्भारती दिव रुद्रैर्यज्ञसरस्वतीडा वसुमती गृहान् वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु  यज.. (१८)

इंद्र देव पालक हैं. तीन देवियों ने उन की बढ़ोतरी की. भारती देवी स्वर्गलोक का व रुद्र यज्ञ का स्पर्श करते हैं. सरस्वती, इड़ा और वसुमती घर का स्पर्श करती हैं. तीनों देवियां यजमान के लिए धन धारने की कृपा करें. यजमान इस के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (१८)

 

देवऽ इन्द्रो नराश & सस्त्रिवरूथस्त्रिबन्धुरो देवमिन्द्रमवर्धयत्.

शतेन शितिपृष्ठानामाहितः सहस्रेण प्रवर्त्तते मित्रावरुणेदस्य होत्रमर्हतो बृहस्पतिः  स्तोत्रमश्विनाध्वर्यवं वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (१९)

इंद्र बहुप्रशंसित हैं. तीनों लोकों के बंधु हैं. यज्ञ देव इंद्र देव की बढ़ोतरी की कृपा करें. इंद्र देव सैकड़ों काली पीठ वाली गायों से शोभते हैं. कर्मनिष्ठ वरुण, स्तोता बृहस्पति एवं अध्वर्यु अश्विनीकुमारद्वय इस यज्ञ के होता हैं. देवगण यजमानों को वैभव दें. देवगण यजमानों के लिए धन धारने की कृपा करें. होता इस के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (१९)

 

देवो देवैर्वनस्पतिर्हिरण्यपर्णो मधुशाखः सुपिप्पलो देवमिन्द्रमवर्धयत्.

दिवमग्रेणास्पृक्षदान्तरिक्षं पृथिवीमद् हीद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (२०)

वनस्पति देव सोने के पत्तों से युक्त, मधुर शाखाओं वाले और उत्तम फलों वाले हैं. वनस्पति इंद्र देव की बढ़ोतरी करने की कृपा करें. वनस्पति देव अपने उग्र त्याग से स्वर्गलोक व अंतरिक्षलोक का स्पर्श करते हैं. वनस्पति देव पृथ्वीलोक में व्याप्त हैं. वनस्पति देव यजमानों को धन देने व धन धारने की कृपा करें. होता इस के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (२०)

 

देवं बर्हिर्वारितीनां देवमिन्द्रमवर्धयत्.

स्वासस्थमिन्द्रेणासन्नमन्या बहीं : ष्यभ्यभूद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (२१)

हे देवगण! इंद्र देव कुश के आसन पर विराजते हैं. हे देवगण! उन की बढ़ोतरी करने की कृपा करें. वे आकाश में स्थित वस्तुओं को अभिभूत करने व यजमान को ऐश्वर्य देने की कृपा करें. उस वैभव को स्थिर करने की कृपा करें. यजमान उस वैभव को पाने के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (२१)

 

देवो अग्निः स्विष्टकृद्देवमिन्द्रमवर्धयत्.

स्विष्टं कुर्वन्त्स्विष्टकृत्स्विष्टमद्य करोतु नो वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (२२)

अग्नि इष्ट कार्य की पूर्ति करते हैं. इंद्र देव की बढ़ोतरी करते हैं. इंद्र देव आज हमारे इष्ट कार्य की पूर्ति करने की कृपा करें. ( सदैव ) इष्ट कार्य की पूर्ति करने की कृपा करें, वे यजमान को वैभव प्रदान करने की कृपा करें. आप यजमान के लिए वैभव धारण करने की कृपा करें. यजमान उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (२२)

 

अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः पचन्पक्ती: पचन्पुरोडाशं बध्नन्निन्द्राय  छागम्. 

सूपस्था ऽ अद्य देवो वनस्पतिरभवदिन्द्राय छागेन.

अघत्तं मेदस्तः प्रति पचताग्रभीदवी वृधत्पुरोडाशेन. त्वामद्य ऋषे.. ( २३ )

अग्नि ने आज होता का वरण किया. पचने योग्य वस्तु व पुरोडाश को पकाया. इंद्र देव के लिए बकरी को बांधा. आज वनस्पति देव ने बकरी के दूध से इंद्र देव की बढ़ोतरी की. आज पुरोडाश पका कर उस से उन की बढ़ोतरी की. हे ऋषि गणो! आप भी ऐसा करने की कृपा कीजिए. ( २३ )

 

होता यक्षत्समिधानं महद्यशः सुसमिद्धं वरेण्यमग्निमिन्द्रं वयोधसम्.

गायत्री छन्द ऽ इन्द्रियं त्र्यविं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (२४)

होता ने अग्नि और इंद्र देव के लिए यज्ञ किया. दोनों देव महान् यशस्वी, श्रेष्ठ समिधा से युक्त, वरेण्य व आयुधारी हैं. होता गायत्री छंद और इंद्रिय शक्ति के द्वारा उन के लिए आहुति भेंट करते हैं. होता ऊर्जा प्रकाश और उन की किरणों से उन के लिए आहुति भेंट करते हैं. (२४)

 

होता यक्षत्तनूनपातमुद्भिदं यं गर्भमदितिर्दधे शुचिमिन्द्रं वयोधसम्.

उष्णिहं छन्द ऽ इन्द्रियं दित्यवाहं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (२५)

होता ने इंद्र देव के लिए यज्ञ किया. उन को अदिति देवी ने गर्भ में धारा. वे आयुधारी हैं. होता उष्णिक् छंद में इंद्र देव की स्तुति करते हैं. होता इंद्रियशक्ति से उन को हवि प्रदान करते हैं. वे दित्यवाट् गौ ( यज्ञीय प्रक्रिया संचालित करने वाली किरणें ) धारने वाले हैं. यजमान उन के लिए आहुति समर्पित करते हैं. प्रयाज देव के साथ वे हमारी हवि ग्रहण करें. (२५)

 

होता यक्षदीडेन्यमीडितं वृत्रहन्तममिडाभिरीड्य सहः सोममिन्द्रं वयोधसम्.  अनुष्टुभं छन्द ऽ इन्द्रियं पञ्चविं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (२६)

होता इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. वे वृत्रासुरनाशक व सुखदाता हैं. सोम के साथ आनंददाता व आयुधारी हैं. हम अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा बारंबार उन की उपासना करते हैं. हम इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. हम अनुष्टुप् छंद में उन की स्तुति करते हैं. इंद्रिय शक्ति के द्वारा हम पंचावि गायों (पंचभूतों में व्याप्त किरणें ) से उन को आहुति भेंट करते हैं. प्रयाज देव इंद्रादि देवता के साथ आहुति ग्रहण करने की कृपा करें. (२६)

 

होता यक्षत्सुबर्हिषं पूषण्वन्तममर्त्य सीदन्तं बर्हिषि प्रियेमृतेन्द्रं वयोधसम्.

बृहतीं छन्द ऽ इन्द्रियं त्रिवत्सं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (२७)

होता इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. वे कुश के आसन पर विराजते हैं. वे पोषकता से युक्त, अमर हैं, प्रिय हैं, अमृतराज व आयुधारी हैं. हम बृहती छंद में उनकी स्तुति करते हैं. हम इंद्रिय शक्ति से उन की स्तुति करते हैं. हम तीन बछड़ों वाली गाय से उन की स्तुति करते हैं. प्रयाज देव इंद्र आदि देव सहित हवि ग्रहण करने की कृपा करें. यजमान आहुति भेंट करने की कृपा करें. (२७ )

होता यक्षद्व्यचस्वतीः सुप्रायणाऽ ऋतावृधो द्वारो देवीर्हिरण्ययीर्ब्रह्माणमिन्द्रं  वयोधसम्. पङ्क्तिं छन्द ऽ इहेन्द्रियं तुर्यवाहं गां वयो दधद्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज..  (२८)

होता इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. वे तुर्यवाट्, वाहक ( स्वेदज, अंडज, उद्भिज एवं जरायुज चारों योनियों), आयुधारी, ब्रह्मज्ञानी, सुनहरे द्वार जैसे यज्ञ की वेदी वाले व सुगम हैं. होता उन के लिए पंक्ति छंद से स्तुति व इंद्रिय शक्ति से उन की उपासना करते हैं. प्रयाज एवं इंद्र देव आहुति स्वीकार करने की कृपा करें. यजमान गण उन के लिए यज्ञ करें. ( २८ )

 

होता यक्षत्सुपेशसा सुशिल्पे बृहती उभे नक्तोषासा न दर्शते विश्वमिन्द्रं वयोधसम्.  त्रिष्टुभं छन्द ऽ इहेन्द्रियं पष्ठवाहं गां वयो दधद्वीतामाज्यस्य होतर्यज.. (२९)

होता ने इंद्र देव के लिए यज्ञ किया. वे आयुधारी हैं. उषा और रात्रि विशाल हैं. वे अच्छे शिल्प वाली और सर्वव्यापक हैं. दोनों देवियां हवि स्वीकारने की कृपा करें. हम त्रिष्टुप् छंद से इन की व इंद्रिय शक्ति से उन की उपासना करते हैं. हम उन के लिए भार सहने वाली पृष्टवाही गौएं धारण करते हैं प्रयाज एवं इंद्र देव हवि स्वीकारें यजमान उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (२९)

 

होता यक्षत्प्रचेतसा देवानामुत्तमं यशो होतारा दैव्या कवी सयुजेन्द्रं वयोधसम्.  जगतीं छन्द ऽ इन्द्रियमनड्वाहं गां वयो दधद्वीतामाज्यस्य होतर्यज.. (३०)

होता इंद्र देव और सहयोगी देवों के लिए यज्ञ करते हैं. इंद्र देव दिव्य, यशस्वी, कवि व आयुधारी हैं. यजमान जगती छंद से उन की उपासना करते हैं. इंद्रिय शक्ति से उन की उपासना करते हैं. प्रयाज सहित इंद्र देव हवि स्वीकारें. यजमान उन के लिए यज्ञ करें. (३०)

 

होता यक्षत्पेशस्वतीस्तिस्रो देवीर्हिरण्ययीभरतीर्बृहतीर्महीः पतिमिन्द्रं वयोधसम्.  विराजं छन्द ऽ इहेन्द्रियं धेनुं गां न वयो दधद्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज.. (३१)

होता ने इंद्र देव के लिए यज्ञ किया. पालक इंद्र देव इड़ा, सरस्वती व भारती देवी के साथ हैं. ये देवियां आयुधारी, स्वर्णमयी, विशाल और महिमामयी हैं. हम विराज छंद से इंद्र देव के लिए उपासना करते हैं. हम इंद्रिय शक्ति से इंद्र देव की उपासना करते हैं. हम दुधारू गाएं उन के लिए धारण करते हैं. हम यजमान उन के लिए आहुति भेंट करें. यजमान उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (३१ )

 

होता यक्षत्सुरेतसं त्वष्टारं पुष्टिवर्धनरूपाणि बिभ्रतं पृथक् पुष्टिमिन्द्रं वयोधसम्.  द्विपदं छन्द ऽ इन्द्रियमुक्षाणं गां न वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (३२)

होता ने त्वष्टा और इंद्र देव के लिए यज्ञ किया. दोनों देव पोषकता बढ़ाने वाले हैं, वे रूपधारी व प्राणियों के पालनहार हैं. हम द्विपदा छंद में रची प्रार्थना से उन की उपासना करते हैं. हम इंद्रिय शक्ति से उन के लिए उपासना करते हैं. यजमान इन दोनों देवों को हवि भेंट करें. यजमान इन दोनों देवों के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (३२)

 

होता यक्षद्वनस्पति शमितार ४ शतक्रतुं हिरण्यपर्णमुक्थिन रशनां बिभ्रतं वशिं  भगमिन्द्रं वयोधसम्.

ककुभं छन्दऽ इहेन्द्रियं वशां वेहतं गां वयो दधद्वेत्वाज्यस्य होतर्यज.. (३३)

होता ने इंद्र देव के लिए यज्ञ किया. वनस्पति देव शांतिदायी, सैकड़ों यज्ञ करने वाले, सोने के पत्तों वाले, चाबुकधारी, आयुवर्धक व सौभाग्यदायी हैं. यजमान ने वनस्पति देव के लिए यज्ञ किया. हम यजमान ककुभ छंद से इन दोनों देवों की उपासना करते हैं. इंद्रिय शक्ति से उन की उपासना करते हैं. वंध्या गायों को धारण करते हैं. वनस्पति और इंद्र देव आहुति स्वीकारने की कृपा करें. यजमान इन के लिए हवन करें. ( ३३ )

 

होता यक्षत्स्वाहाकृतीरग्निं गृहपतिं पृथग्वरुणं भेषजं कविं क्षत्रमिन्द्रं वयोधसम्.  अतिच्छन्दसं छन्द ऽ इन्द्रियं बृहद्वृषभं गां वयो दधद्व्यन्त्वाज्यस्य होतर्यज.. (३४) 

होता अग्नि के लिए यज्ञ करते हैं. अग्नि बलवान, आयुधारी, गृहपति, वैद्य, कवि व स्वाहायुक्त हैं. हम छंदस छंद से अग्नि और इंद्र देव की उपासना करते हैं. दोनों देव हवि स्वीकारने की कृपा करें. हम इंद्रिय शक्ति से उन की उपासना करते हैं. यजमान दोनों देवों के लिए यज्ञ करें. (३४)

 

देवं बर्हिर्वयोधसं देवमिन्द्रमवर्धयत्.

गायत्र्या छन्दसेन्द्रियं चक्षुरिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (३५)

इंद्र देव कुश के आसन पर विराजते हैं. वे आयुवर्द्धक हैं. देवताओं ने उन की बढ़ोतरी की. हम गायत्री छंद से इंद्र देव की उपासना और अपनी नेत्र शक्ति से उन का ध्यान धरते हैं. वे ऐश्वर्य धारण करते हैं. वे धन प्रदान करते हैं. यजमान इंद्र देव के लिए यज्ञ करें. (३५)

 

देवीर्द्वारो वयोधसशुचिमिन्द्रमवर्धयन्.

उष्णिहा छन्दसेन्द्रियं प्राणमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज.. (३६)

हे होता! आप इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. देवियों ने उन की आयु व पवित्रता की बढ़ोतरी की. हम उष्णिक् छंद में उन की उपासना करते हैं. हम उन को प्राण देते हैं. वे हमारे लिए धन धारते हैं. वे हमें धन प्रदान करने की कृपा करें. होता उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (३६)

 

देवी उषासानक्ता देवमिन्द्रं वयोधसं देवी देवमवर्धताम्.

अनुष्टुभा छन्दसेन्द्रियं बलमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज.. (३७)

उषा देवी और रात्रि देवी इंद्र देव की आयुवृद्धि व उन की बढ़ोतरी करने की कृपा करें. हम उन की अनुष्टुप् छंद में उपासना करते हैं. देवियों ने इंद्र देव में बल व आयु की स्थापना की. देव हमारे लिए धन धारते हैं. देव हमें धन प्रदान करें. हे होता! आप उन के लिए यज्ञ करने की कृपा कीजिए. ( ३७ )

 

देवी जोष्ट्री वसुधिती देवमिन्द्रं वयोधसं देवी देवमवर्धताम्.

बृहत्या छन्दसेन्द्रिय श्रोत्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज.. (३८)

देवी जोशीली, धनधारिणी और इंद्र देव की आयु बढ़ाती हैं. हम देवताओं की उपासना करते हैं. हम अपनी कर्णशक्ति व अपनी आयुशक्ति इंद्र देव में लगाते हैं. वे हमारे लिए धन धारते हैं. वे हमें धन प्रदान करें. उन के लिए यजमान यज्ञ करें. (३८)

 

देवी ऊर्जाहुती दुघे सुदुघे पयसेन्द्रं वयोधसं देवी देवमवर्धताम्.

पङ्क्त्या छन्दसेन्द्रिय शुक्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज.. (३९)

देवी ऊर्जावती हैं. इंद्र देव के लिए अच्छी तरह दूध का दोहन करती हैं. देवी इंद्र देव के लिए आयु धारती और उन की बढ़ोतरी करती हैं. हम पंक्ति छंद में उन की उपासना करते हैं. हम अपना पराक्रम उन को देते हैं. हम अपनी आयु उन के लिए धारते हैं. वे हमारे लिए धन धारते हैं. यजमान उन के लिए हवन करने की करें. (३९)

 

देवा दैव्या होतारा देवमिन्द्रं वयोधसं देवौ देवमवर्धताम्.

कृपा त्रिष्टुभा छन्दसेन्द्रियं त्विषिमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वीतां यज.. (४०)

दिव्य होता इंद्र देव के लिए यज्ञ करते हैं. वे उन के लिए आयु धारण करते हैं. देवताओं ने उन की बढ़ोतरी की. हम त्रिष्टुप् छंद से उन की उपासना करते हैं, वे हमारे लिए धन धारते हैं. वे हमें धन प्रदान करें. यजमान उन के लिए यज्ञ करने की कृपा करें. (४० )

 

देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीर्वयोधसं पतिमिन्द्रमवर्धयन्.

जगत्या छन्दसेन्द्रिय शूषमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज.. (४१)

तीनों देवियां इंद्र देव के लिए आयु धारती हैं. वे पालक इंद्र देव की बढ़ोतरी करती हैं. हम जगती छंद से उन की उपासना करते हैं. हम अपनी आयु व अपनी इंद्रिय शक्ति उन को अर्पित करते हैं. यजमान उन के लिए यज्ञ करें. ( ४१ )

 

देवो नराश सो देवमिन्द्रं वयोधसं देवो देवमवर्धयत्.

विराजा छन्दसेन्द्रिय रूपमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (४२)

यज्ञ देव ने इंद्र देव की बहुविध प्रशंसा की. वे उन के लिए आयु धारते हैं. वह उन की बढ़ोतरी करते हैं. हम विराज छंद से उन की उपासना करते हैं. हम अपना रूप व आयु उन को अर्पित करते हैं. वे धन धारी हैं. वे हमें धन प्रदान करें. यजमान उनके लिए यज्ञ करें. (४२)

 

देवो वनस्पतिर्देवमिन्द्रं वयोधसं देवो देवमवर्धयत्.

द्विपदा छन्दसेन्द्रियं भगमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (४३)

वनस्पति देव इंद्र देव के लिए आयु धारते हैं. वनस्पति देव उन की बढ़ोतरी करते हैं. हम द्विपद छंद से उन की स्तुति करते हैं. हम अपना सौभाग्य व अपनी आय उनको सौंपते हैं. वे धनधारी हैं. वे हमें धन प्रदान करें. यजमान उन के लिए यज्ञ करें. (४३)

 

देवं बर्हिर्वारितीनां देवमिन्द्रं वयोधसं देवं देवमवर्धयत्.

ककुभा छन्दसेन्द्रियं यश ऽ इन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (४४)

इंद्र देव कुश के आसन पर विराजते हैं. बर्हिदेव उन के लिए आयु धारते व उन की बढ़ोतरी करते हैं. हम ककुप् छंद से उन की स्तुति करते हैं. हम अपना यश उन को सौंपते हैं. हम अपनी आयु उन को सौंपते हैं. वे धनधारी हमें धन प्रदान करें. यजमान उन के लिए यज्ञ करें. (४४)

 

देवो अग्निः स्विष्टकृद्देवमिन्द्रं वयोधसं देवो देवमवर्धयत्.

अतिच्छन्दसा छन्दसेन्द्रियं क्षत्रमिन्द्रे वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य वेतु यज.. (४५)

अग्नि इंद्र देव की वीरता और आयु की बढ़ोतरी करते हैं. हम अतिच्छंद से उन की उपासना करते हैं. हम अपनी वीरता व अपनी आयु उन को सौंपते हैं. वे धनधारी हैं. वे हमें जीवन प्रदान करें. यजमान उन के लिए यज्ञ करें. (४५ )

 

अग्निमद्य होतारमवृणीतायं यजमानः पचन्पक्तीः पचन्पुरोडाशं बध्नन्निन्द्राय  वयोधसे छागम्.

सूपस्था ऽ अद्य देवो वनस्पतिरभवदिन्द्राय वयोधसे छागेन.

अघत्तं मेदस्तः प्रतिपचताग्रभीदवीवृधत्पुरोडाशेन त्वामद्य ऋषे.. (४६)

अग्नि ने आज होता को वरण किया! पचने योग्य वस्तु और पुरोडाश को पकाया. इंद्र देव के लिए बकरी को बांधा. वनस्पति देव ने बकरी के दूध सेव पुरोडाश पका कर उन की बढ़ोतरी की. हे ऋषि गणो! आप भी ऐसा करने की कृपा कीजिए. (४६)

 

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