॥ वेद ॥
देव सवितः प्र सुव यज्ञं प्र सुव यज्ञपतिं भगाय.
दिव्यो गन्धर्वः केतपू: केतं नः पुनातु वाचस्पतिर्वाचं नः स्वदतु.. (१)
सविता देव! आप प्रमुख उत्पादक व यज्ञ के जनक हैं. आप यज्ञपति को भाग्य प्रदान करने की कृपा कीजिए. आप दिव्य गंधर्व और पवित्र विचारों वाले हैं. आप हमारी विचार वाणी को भी पवित्र बनाने की कृपा कीजिए. आप वाणी पति हैं. आप हमें भी मधुर वचन दीजिए. ( १ )
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्.. (२)
हे सविता देव! आप वरेण्य और देवताओं के लिए सौभाग्य धारते हैं. आप हमारी बुद्धि को भी प्रेरित करने की कृपा कीजिए. (२)
विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद्भद्रं तन्न ऽ आ सुव.. (३)
हे सविता देव! आप सब देवों के देव हैं. आप हमारी कमियों को दूर कीजिए. आप जो भी हमारे लिए भद्र है, उसे लाने की कृपा कीजिए. (३)
विभक्तार हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः.
सवितारं नृचक्षसम्.. (४)
सविता देव! हम आप का आह्वान करते हैं. आप संरक्षक, धनवान, प्रेरक व सभी को संपत्ति देने वाले हैं. (४)
ब्रह्मणे ब्राह्मणं क्षत्राय राजन्यं मरुद्भ्यो वैश्यं तपसे शूद्रं तमसे तस्करं नारकाय वीरहणं पाप्मने क्लीब माक्रयाया ऽ अयोगूं कामाय पुंश्चलूमतिक्रुष्टाय मागधम्.. (५)
ब्राह्मण के लिए ब्रह्मज्ञान क्षत्रिय के लिए रक्षण, वैश्य के लिए पालनपोषण, शूद्र के लिए सेवा कर्तव्य व उपयुक्त हैं. चोर के लिए अंधकार, नरक के लिए वीरघातक, नपुंसक के लिए पाप, खरीद के लिए पुरुषार्थी, काम के लिए व्यभिचारी अच्छी बोलने की शक्ति के लिए प्रमाण देने वाला उपयुक्त होता है. (५)
नृत्ताय सूतं गीताय शैलूषं धर्माय सभाचरं नरिष्ठायै भीमलं नर्माय रेभहसाय कारिमानन्दाय स्त्रीषखं प्रमदे कुमारीपुत्रं मेधायै रथकारं धैर्याय तक्षाणम्.. (६)
अंग चालन हेतु सूत, गीत के लिए नट, धर्म के लिए सभासद, नेतृत्व हेतु क्षमतावान, नरमाई हेतु मधुरभाषी, मनोविनोद हेतु स्वांग करने वाला उपयुक्त रहता है. आनंद प्राप्ति के लिए स्त्रियों के प्रति सख्य भाव, प्रबल मद ( से उन्मत्त ) के लिए कुमारी ( वीरांगना ) पुत्र, मेधावी के लिए रथकार और धैर्य के लिए गढ़िया (गढ़ाई करने वाला) उपयुक्त है. (६)
तपसे कौलालं मायायै कर्माररूपाय मणिकार : शुभे वपशरव्याया ऽ इषुकार हेत्यै धनुष्कारं कर्मणे ज्याकारं दिष्टाय रज्जुसर्जं मृत्यवे मृगयु मन्तकाय श्वनिनम्.. (७)
तपाने के लिए कुम्हार, माया के लिए कारीगर, रूप के लिए मणिकार, शुभ कार्य के लिए काटछांट में प्रवीण, लक्ष्यभेदी बाण के लिए इषुकार, आयुध के लिए धनुषकार, कर्म के लिए ज्याकार ( डोरी बनाने वाले), आज्ञा देने हेतु रज्जुसर्जक (रस्सी बनाने वाले), मृत्यु के लिए कसाई, यम के लिए कुत्ते पालक की नियुक्ति की जानी चाहिए. ( ७ )
नदीभ्यः पौञ्जिष्ठ मृक्षीकाभ्यो नैषादं पुरुषव्याघ्राय दुर्मदं गन्धर्वाप्सरोभ्यो व्रात्यं प्रयुग्भ्य ऽ उन्मत्त सर्पदेवजनेभ्योप्रतिपदमयेभ्यः कितव मीर्यतायाऽअकितवं पिशाचेभ्यो विदलकारीं यातुधानेभ्यः कण्टकीकारीम्.. (८)
नदियों के लिए नाविक, रीछ आदि के लिए वनचरों (निषाद), शेर की तरह दुर्दम्य पुरुष के लिए प्रबल प्रतापी को, गंधर्व और अप्सराओं के लिए असंस्कारित, शोधार्थी हेतु उन्मत्त को, सांप, मनुष्य और देवों के लिए ज्ञानी को, जुए के लिए जुए में कुशल व्यक्ति को, उन्नति के लिए छलकपट मुक्त को पिशाचों के लिए हृदय विदीर्ण करने वाले राक्षस जैसे लुटेरों के लिए रास्ते में कांटे (रोड़े) अटकाने वालों को नियुक्त किया जाना चाहिए. (८)
सन्धये जारं गेहायोपपति मात्यै परिवित्तं निर्ऋत्यै परिविविदान मराध्या ऽ एदिधिषुः पतिं निष्कृत्यै पेशकारी संज्ञानाय स्मरकारीं प्रकामोद्यायोपसदं वर्णायानुरुधं बलायोपदाम्.. (९)
संधि के लिए मित्र को, घर के लिए उपमुखिया को, गरीबी के लिए धनी को, आपातकाल में साधन जुटाने में दक्ष को, सिद्धि के लिए हित को सर्वोपरि मानने वाले, संस्कार हेतु शुद्धिकरण में कुशल को, ज्ञानप्राप्ति हेतु कार्य कुशल को, अचानक काम आ पड़ने पर पास वाले व्यक्ति को, स्वीकार कराने के लिए आग्रह में दक्ष को तथा बल हेतु सहारा देने वाले को नियुक्त करना चाहिए. ( ९ )
उत्सादेभ्यः कुब्जं प्रमुदे वामनं द्वाः स्राम स्वप्नायान्धमधर्माय बधिरं पवित्राय
भिषजं प्रज्ञानाय नक्षत्रदर्श माशिक्षायै प्रश्निन मुपशिक्षाया अभिप्रश्निनं मर्यादायै प्रश्नविवाकम्.. (१०)
शत्रुओं के नाश हेतु तलवार वाले को, मनोरंजन हेतु बौने को, द्वार हेतु मेहनती को नियुक्त किया जाना चाहिए. सपने के लिए चक्षुहीन का, अधर्म के लिए बहरे का अनुकरण करना चाहिए. पवित्रता के लिए वैद्य, अच्छे ज्ञान के लिए नक्षत्र विज्ञानी, अशिक्षा हेतु प्रश्नकर्ता, उपशिक्षा हेतु अभिप्रश्न कर्ता और मर्यादा के लिए प्रश्न कर्त्ता को नियुक्त करना चाहिए. (१०)
अर्मेभ्यो हस्तिपं जवायाश्वपं पुष्ट्यै गोपालं वीर्यायाविपालं तेजसेजपालमिरायै कीनाशं कीलालाय सुराकारं भद्राय गृहप श्रेयसे वित्तधमाध्यक्ष्यायानुक्षत्तारम्.. ( ११ )
भारी वाहन हेतु हाथी पालक को, तेज गति हेतु अश्व पालक को, पुष्टि हेतु ग्वाले को, वीर्य हेतु भेड़ पालक को, तेज हेतु बकरी पालक को, अन्नवृद्धि हेतु किसान को, अमृत जैसे पेय हेतु अमृत विशेषज्ञ को, सुख कल्याण हेतु गृहपति, श्रेय हेतु धनवान को, अध्यक्षता हेतु निरीक्षक को नियुक्त किया जाना चाहिए. ( ११ )
भायै दार्वाहारं प्रभाया ऽ अग्न्येधं ब्रध्नस्य विष्टपायाभिषेक्तारं वर्षिष्ठाय नाकाय परिवेष्टारं देवलोकाय पेशितारं मनुष्यलोकाय प्रकरितार सर्वेभ्यो लोकेभ्यऽ उपसेक्तारमव ऋत्यै वधायोपमन्थितारं मेधाय वासः पल्पूलीं प्रकामाय रजयित्रीम्.. (१२)
अग्नि हेतु लकड़हारे, प्रकाश हेतु अग्नि जलाने वाले, गरमी के लिए जल बरसाने वाले को, स्वर्ग जैसे सुख हेतु चारों ओर से घेरने वाले को, देवलोक हेतु सुंदर आकार बनाने वाले को, मनुष्यलोक हेतु प्रसार करने वाले को, सभी लोकों के लिए संतोष देने वाले को, वध के लिए हल्ला मचाने वाले को नियुक्त किया जाना चाहिए. बुद्धि पाने के लिए वस्त्र क्षालन, शोभा हेतु चित्रकारी के ज्ञाता का अनुकरण करना चाहिए. ( १२ )
ऋतये स्तेनहृदयं वैरहत्याय पिशुनं विविक्त्यै क्षत्तार मौपद्रष्ट्यायानुक्षत्तारं बलायानुचरं भूपरिष्कन्दं प्रियाय प्रियवादिन मरिष्ट्या अश्वसादस्वर्गाय लोकाय भागदुघं वर्षिष्ठाय नाकाय परिवेष्टारम्.. (१३)
शत्रु के लिए गुप्त हृदय वाला, वैरी की हत्या हेतु चुगलखोर, भेद के लिए भेद करने वाले को, निरीक्षण के लिए निरीक्षक को, बल हेतु आज्ञा पालक को, क्षेत्र विशेष हेतु भ्रमणशील को, प्रिय के लिए प्रिय बोलने वाले को, अरिष्ट निवारण हेतु घुड़सवार को, स्वर्ग के लिए भाग्यदोहक को अच्छे सुख के लिए सब ओर से वेष्टित (घेरने ) वाले को नियुक्त करना चाहिए. ( १३ )
मन्यवेयस्तापं क्रोधाय निसरं योगाय योक्तारशोकायाभिर्त्तारं क्षेमाय विमोक्तार मुत्कूलनिकूलेभ्यस्त्रिष्ठिनं वपुषे मानस्कृत शीलायाञ्जनीकारों निर्ऋत्यै कोशकारीं यमायासूम्.. (१४)
क्रोध लोहे को भी ताप देने वाला होता है. क्रोध की शांति हेतु जग को निस्सार समझने वाले की नियुक्ति करनी चाहिए. योग के लिए योगी को नियुक्त करना चाहिए. शोक के लिए सांत्वना देने वाले को नियुक्त करना चाहिए. संरक्षण के लिए मुक्तिदाता को नियुक्त करना चाहिए. उतारचढ़ाव हेतु ऊँचनीच में दक्ष को, शरीर हेतु मनोनुकूल आचरण करने वाले को, शालीनता हेतु आंख शुद्ध करने वाले को, नियुक्त किया जाना चाहिए. विपत्ति हेतु संचय नीति को यमनियम आदि हेतु असूया ( ईर्ष्या रहित ) को नियुक्त किया जाना चाहिए. ( १४ )
यमाय यमसूमथर्वभ्योवतोका ४ संवत्सराय पर्यायिणीं
परिवत्सरायाविजातामिदावत्सरायातीत्वरीमिद्वत्सरायातिष्कद्वरीं वत्सराय विजर्जरा संवत्सराय पलिक्नीमृभुभ्योजिनसन्ध साध्येभ्यश्चर्मम्नम्.. (१५)
हे परमात्मा ! यम के लिए नियम में समर्थ स्त्री को नियुक्त करना चाहिए. अहिंसकों के लिए अवतोका नामक स्त्री को नियुक्त करना चाहिए. संवत्सर हेतु समय की व्यवस्था जानने वाली की नियुक्ति की जानी चाहिए. परिवत्सर के लिए कुंआरी को, इदावत्सर हेतु गतिशील को, अनुवत्सर हेतु ज्ञानवती को, वत्सर या अनुवत्सर हेतु वृद्धा को, संवत्सर हेतु श्वेत बालों वाली वृद्धा को नियुक्त करना चाहिए. ऋभु हेतु पराजित न होने वाले से मित्रता की जानी चाहिए. साध्य हेतु विशेष धर्म ज्ञानी की नियुक्ति की जानी चाहिए. ( १५ )
सरोभ्यो धैवरमुपस्थावराभ्यो दाशं वैशन्ताभ्यो वैन्दं नड्वलाभ्यः शौष्कलं पाराय मार्गारमवाराय कैवर्तं तीर्थेभ्य ऽ आन्दं विषमेभ्यो मैनाल स्वनेभ्यः पर्णकं गुहाभ्यः किरात सानुभ्यो जम्भकं पर्वतेभ्यः किम्पुरुषम्.. (१६)
तालाब हेतु मछुआरों को, उपवन हेतु सेवकों को, छोटे तालाब हेतु निषादों को, नडवल हेतु मछली से जीविका निर्वाहक को नियुक्त किया जाना चाहिए. पार जाने के लिए रास्ता जानने वाले को, उस पार से इस पार आने वाले के लिए केवट को, तीर्थ के लिए बाड़ बांधने वाले को, असमान स्थान के लिए किनारा लगाने वाले को नियुक्त करना चाहिए. मधुर ध्वनि के लिए तुरही वादक की, गुफाओं के लिए भीलकिरात की, शिखर के लिए प्रचंड व्यक्ति की और पर्वत के लिए छोटे पुरुषों की नियुक्ति की जानी चाहिए. ( १६ )
बीभत्सायै पौल्कसं वर्णाय हिरण्यकारं तुलायै वाणिजं पश्चादोषाय ग्लाविनं विश्वेभ्यो भूतेभ्यः सिध्मलं भूत्यै जागरणमभूत्यै स्वपनमार्त्यै जनवादिनं व्यृद्धयाऽ अपगल्भ स शराय प्रच्छिदम्.. (१७)
बीभत्स ( भयंकर / घृणित ) कामों के लिए अनगढ़ ( निर्दय ) लोगों की नियुक्ति की जानी चाहिए. अच्छे वर्ण के लिए सुनार, तौलने के लिए बनिए की नियुक्ति करनी चाहिए. बाद में दोष देने के लिए नाराज व्यक्ति को, सभी प्राणियों के लिए सिद्धिदायक व्यक्ति को नियुक्त करना चाहिए. समृद्धि हेतु जागरणशील को, असमृद्धि हेतु स्वप्नजीवी को, पीड़ा से मुक्ति के लिए सावधान करने वाले को, उन्नति (बढ़ोतरी ) हेतु अभिमान रहित को, बाण निशाने पर साधने के लिए लक्ष्य साधक को नियुक्त करना चाहिए. ( १७ )
अक्षराजाय कितवं कृतायादिनवदर्शं त्रेतायै कल्पिनं द्वापरायाधिकल्पिन मास्कन्दाय सभास्थाणुं मृत्यवे गोव्यच्छमन्तकाय गोघातं क्षुधे यो गां विकृन्तन्तं भिक्षमाणऽउपतिष्ठति दुष्कृताय चरकाचार्यं पाप्मने सैलगम्.. (१८)
जुआ खेलने के लिए द्यूतकार, क्रियाशील हेतु समीक्षा करने वाले, त्रेता के लिए कल्पनाकार, द्वापर हेतु अकल्पनाकार की नियुक्ति की जानी चाहिए. आक्रमण जैसी स्थिति में स्थिर मति वाला ठीक रहता है. मृत्यु की स्थिति में इंद्रियों का अनुकरण कर्ता ठीक रहता है. यमराज हेतु गौ घाती, भूख हेतु भीख मांगने वाले, पाप के निवारण के लिए चरकाचार्य और दुष्टों के लिए कठोर दंड दे सकने वाले की नियुक्ति की जानी चाहिए. ( १८ )
प्रतिश्रुत्काया ऽ अर्त्तनं घोषाय भषमन्ताय बहुवादिनमनन्ताय मूक शब्दायाडम्बराघातं महसे वीणावादं क्रोशाय तूणवध्म मवरस्पराय शङ्खध्मं वनाय वनपमन्यतोरण्याय दावपम्.. (१९)
प्रतिज्ञा के लिए उस को निबाह सकने वाले की नियुक्ति की जानी चाहिए. योजना के लिए उद्घोषक को, विवाद निर्णय हेतु चुप रहने वालों को, बहुवादी हेतु आडंबर का आघात करने वाले को, महिमा हेतु वीणावादक को, भीषण स्वर के लिए ढोल बजाने वाले को, ठीकठीक आवाज हेतु शंख वादक को, वन रक्षार्थ वन रक्षक को, अन्य वनों की रक्षा के लिए दावानल रक्षक को नियुक्त करना चाहिए. (१९ )
नर्माय पुंश्चलूहसाय कारि यादसे शाबल्यां ग्रामण्यं गणकमभिक्रोशकं तान्महसे वीणावादं पाणिघ्नं तूणवध्मं तान्नृत्तायानन्दाय तलवम्.. (२०)
मनोरंजन हेतु पुरुषों के पीछे चलने वाली, हंसाने में नक्काल, जल जंतुओं को मारने में नीच जाति वालों की नियुक्ति की जानी चाहिए. स्वागतसत्कार के लिए ग्रामीण ज्योतिषी और व्यवहार कुशल व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए. नृत्य हेतु वीणावादक, तालवादक और स्वरवादक की नियुक्ति की जानी चाहिए. आनंद हेतु तालीवादक की नियुक्ति की जानी चाहिए. ( २० )
अग्नये पीवानं पृथिव्यै पीठसर्पिणं वायवे चाण्डालमन्तरिक्षाय व शनर्तिनं दिवे खलति सूर्याय हर्यक्षं नक्षत्रेभ्यः किर्मिरं चन्द्रमसे किलासम शुक्लं पिङ्गाक्ष रात्र्यै कृष्णं पिङ्गाक्षम् .. (२१)
आग से जुड़े कार्य हेतु पुष्ट को, पृथ्वी के लिए आसन पर बैठने वाले को, वायु को सहने के लिए चांडाल को, अधर में लटकने जैसे काम के लिए बांस पर नृत्य करने वाले को नियुक्त करना चाहिए. स्वर्गलोक हेतु खगोल विज्ञानी को, सूर्य हेतु हरे रंग वाले को, नक्षत्रों के लिए नारंगी रंग जानने वाले को, चंद्रमा हेतु किलास (चर्म रोग विशेष) वाले को, सफेद रंग हेतु पीली आंख वाले को, रात्रि के लिए कालीपीली आंखों वालों को नियुक्त किया जाना चाहिए. (२१)
अथैतानष्टौ विरूपाना लभतेतिदीर्घं चातिह्रस्वं चातिस्थूलं चातिकृशं चातिशुक्लं चातिकृष्णं चातिकुल्वं चातिलोमशं च.
अशूद्रा ऽ अब्राह्मणास्ते प्राजापत्याः मागधः पुंश्चली कितवः क्लीबोशूद्राऽ अब्राह्मणास्ते प्राजापत्या:.. (२२)
इस प्रकार इन आठों अति दीर्घ, अतिह्रस्व, अतिस्थूल, अतिकृश, अतिशुक्ल, अतिकृष्ण, रोम रहित व रोम सहित को तथा इन चार प्रकार के चाटुकार, चरित्रहीन, जुआरी, नपुंसक ऐसे ब्राह्मणत्वहीन अशूद्र प्रजापालक को सौंप देना चाहिए. (२२)
॥ वेद ॥
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