॥ वेद ॥
अपेतो यन्तु पणयोसुम्ना देवपीयवः अस्य लोकः सुतावतः.
भिरभिरक्तुभिर्व्यक्तं यमो ददात्ववसानमस्मै.. (१)
चोर व जो अच्छे मन वाले नहीं हैं, वे इस स्थान से दूर चले जाएं. देवताओं के पीड़क इस स्थान से दूर चले जाएं. यह लोक हम देवपुत्रों का है. यम देव दिन और रात में अभिव्यक्त इस उत्तम स्थान को हमारे लिए प्रदान करने की कृपा करें. (१)
सविता ते शरीरेभ्यः पृथिव्याँल्लोकमिच्छतु तस्मै युज्यन्तामुस्त्रिया:.. (२)
सविता देव आप के शरीर के लिए पृथ्वीलोक की इच्छा करने की कृपा करें. पृथ्वीलोक को पशुओं से जोड़ने की कृपा करें. (२)
वायुः पुनातु सविता पुनात्वग्नेर्भ्राजसा सूर्यस्य वर्चसा. वि मुच्यन्तामुस्त्रिया:.. (३)
वायु देव व सविता देव इस स्थान को पवित्र बनाने की कृपा करें. सूर्य देव इस स्थान को वर्चस्वी बनाने की कृपा करें. बंधे हुए गायों और बैलों को खोल दिया जाए. (३)
अश्वत्थे वो निषदनं पर्णे वो वसतिष्कृता.
गोभाजऽ इत्किलासथ यत्सनवथ पूरुषम्.. (४)
पीपल और पलाश वृक्षों पर वास करने वाली ओषधियों से निवेदन है कि वे यजमान को गायों को कांति से युक्त करने की कृपा करें. आप यजमान को पौरुष युक्त करने की कृपा करें. (४)
सविता ते शरीराणि मातुरुपस्थ ऽ आ वपतु तस्मै पृथिवि शं भव.. (५)
सविता देव यजमान के शरीर को पृथ्वी माता की गोद में बैठाने की कृपा करें. पृथ्वी माता का हम आह्वान करते हैं. वे उन सब के लिए सुखदायी तथा कल्याणकारी हो. (५)
प्रजापतौ त्वा देवतायामुपोदके लोके नि दधाम्यसौ.
अप नः शोशुचदघम्.. (६)
प्रजापति देव को हम जल के पास स्थापित करते हैं. वे इस जल को धारण करने और हमें पवित्र बनाने की कृपा करें. (६)
परं मृत्यो अनु परेहि पन्थां यस्ते अन्य ऽ इतरो देवयानात्.
चक्षुष्मते शृण्वते ते ब्रवीमि मा नः प्रजा २ रीरिषो मोत वीरान्.. (७)
मृत्यु का पथ दूसरा है. उन का पथ देवताओं के पथ से भिन्न है. आप दूसरे पथ से लौट जाने की कृपा करें. आप नेत्रवान हैं. आप श्रवण क्षमता युक्त हैं. आप से अनुरोध है कि आप हमारी प्रजा व वीरों का नाश मत कीजिए. (७)
शं वातः श हि ते घृणिः शं ते भवन्त्विष्टकाः.
शं ते भवन्त्वग्नयः पार्थिवासो मा त्वाभि शूशुचन्.. (८)
वायु हमारे लिए सुखदायी हो. सूर्य हमारे लिए सुखदायी हो. इष्टिका देव हमारे लिए कल्याणदायी हो. अग्नि हमारे लिए कल्याणदायी हो. ये सभी पृथ्वी पर किसी को भी सोच एवं संताप न दें. ( ८ )
कल्पन्तां ते दिशस्तुभ्यमापः शिवतमास्तुभ्यं भवन्तु सिन्धवः.
अन्तरिक्ष शिवं तुभ्यं कल्पन्तां ते दिशः सर्वाः ... (९)
दिशाएं आप के लिए फलीभूत हों. जल आप के लिए कल्याणकारी हों. समुद्र आप के लिए कल्याणकारी हो. अंतरिक्ष आप के लिए कल्याणकारी हो. दिशाएं आप के लिए फलीभूत हों. ( ९ )
अश्मन्वती रीयते स रभध्वमुत्तिष्ठत प्र तरता सखायः.
अत्रा जहीमोशिवा ये असञ्छिवान्वयमुत्तरेमाभि वाजान्.. (१०)
पत्थर वाली नदी बह रही है. आप मित्र उस नदी को लांघने की कोशिश कीजिए. आप उठ कर उस के पार पहुँचिए. इस में जो अकल्याणकारी तत्त्व हैं, उन्हें दूर कीजिए. हम सुख और कल्याणदायी पदार्थ इस नदी से पाएं. (१०)
अपाघमप किल्बिषमप कृत्यामपो रपः.
अपामार्ग त्वमस्मदप दुःष्वप्न्य थं सुव.. (११)
हटाइए, पाप को दूर हटाइए, आप हमारे पाप कर्मों को दूर हटाइए. अपयशदायी कर्मों को आप हम से दूर हटाइए, आप दुःस्वप्नों को हम से (हमारे जीवन से ) दूर हटाइए. ( ११ )
सुमित्रियान आपऽ ओषधयः
सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तुयोस्मान्द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः .. (१२)
जल हमारे अच्छे मित्र हो जाएं. ओषधियां हमारी अच्छी मित्र हो जाएं. जो हम से द्वेष करते हैं, जिन से हम द्वेष करते हैं, उन दुष्ट अमित्रों के लिए पीड़ादायी होइए. ( १२ )
अनड्वाहमन्वारभामहे सौरभेयस्वस्तये.
स न ऽ इन्द्र ऽ इव देवेभ्यो वह्निः सन्तारणो भव.. (१३)
हम अपने कल्याण हेतु सुरभि पुत्र ( गाय के पुत्र बछड़े ) का बारबार आह्वान करते हैं. वह इंद्र देव के समान उद्धार करने वाला हो. वह अग्नि देव के समान उद्धार करने वाला हो. (१३)
उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त ऽ उत्तरम्.
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम्.. (१४)
हम अंधकार से ऊपर प्रकाशमय स्वर्गलोक को देखते हैं. देवता भी उत्तम ज्योतिष्मान सूर्य को देखते हुए परमात्मा को पाते हैं. (१४)
इमं जीवेभ्यः परिधिं दधामि मैषां नु गादपरो अर्थमेतम्.
शतं जीवन्तु शरदः पुरूचीरन्तर्मृत्युं दधतां पर्वतेन... (१५)
हम यह मर्यादा रूपी परिधि जीवों के लिए धारण करते हैं. हम इस मर्यादा रूपी परिधि का अनुसरण करें. हम सौ वर्ष तक उद्देश्यपूर्ण सार्थक जीवन जीएं. यदि इस बीच में मौत आए तो मृत्यु देवगण के पथ में पर्वत जैसी बाधाएं खड़ी कर दें. (१५ )
अग्न ऽ आयू षि पवस ऽ आ सुवोर्जमिषं च नः.
आरे बाधस्व दुच्छुनाम्.. (१६)
हे अग्नि ! आप आयु की बढ़ोतरी करने वाले हैं. हे अग्नि ! आप पवित्र कार्य संपन्न करने वाले हैं. हे अग्नि ! आप हमें ऊर्जादायी इष्ट पदार्थ प्रदान करने की कृपा कीजिए. आप दुष्टों को बाधित कीजिए. ( १६ )
आयुष्मानग्ने हविषा वृधानो घृतप्रतीको घृतयोनिरेधि.
घृतं पीत्वा मधु चारु गव्यं पितेव पुत्रमभि रक्षतादिमान्त्स्वाहा.. (१७)
हे अग्नि ! आप हवि से बढ़ोतरी पाने वाले हैं. घी आप का मूल स्थान हैं. आप घी रूपी प्रतीक वाले हैं. आप सुंदर गायों का मधुर घी पी कर उसी प्रकार हम यजमान रूपी पुत्रों की रक्षा कीजिए, जैसे पिता पुत्र की रक्षा करता है. आप के लिए स्वाहा. (१७)
परीमे गामनेषत पर्यग्निमहषत.
देवेष्वक्रत श्रवः कऽ इमाँ आ दधर्षति.. (१८)
जो अग्नि को इन परिपूर्ण आहुतियों से हर्षित करते हैं, इन आहुतियों को देवताओं तक पहुंचाते हैं, देवताओं के लिए ऐसे यज्ञ करने वाले यजमान को कोई नहीं हरा सकता. (१८ )
क्रव्यादमग्निं प्रहिणोमि दूरं यमराज्यं गच्छतु रिप्रवाह:.
इहैवायमितरो जातवेदा देवेभ्यो हव्यं वहतु प्रजानन्.. (१९)
हम क्रव्याद अग्नि को दूर करते हैं. हम उस से दूर यमराज्य में जाने का निवेदन करते हैं. सर्वज्ञ अग्नि हमारे घरों में होने वाले यज्ञ में बढ़ोतरी पाएं. अग्नि हमारी हवि को वहन करने व उसे देवताओं तक पहुंचाने की कृपा करें. (१९)
वह वपां जातवेदः पितृभ्यो यत्रैनान्वेत्थ निहितान् पराके.
मेदसः कुल्या ऽ उप तान्त्स्रवन्तु सत्या ऽ एषामाशिषः सं नमन्ता स्वाहा.. (२०)
हे अग्नि ! आप सर्वज्ञ हैं. आप जहां पितर निवास करते हैं, आप उस स्थान को जानते हैं. अतः आप हम से दूर पितरलोकवासी पितरों के लिए हवि वहन करने की कृपा करें. पितरों के पास जल की धाराएं स्रवित होने की कृपा करें पितरों के आशीर्वाद हमारे प्रति सधे हों. हम पितरों को नमन करते हैं. अग्नि के लिए स्वाहा. (२०)
स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी.
यच्छा नः शर्म सप्रथाः .
अप नः शोशुचदघम्.. (२१)
हे पृथ्वी देवी! आप हमारे वास योग्य होने की कृपा कीजिए. आप हमारे लिए सुख प्रदान कीजिए. आप हमें कष्ट मुक्त कीजिए. आप हमारे पापों को हम से दूर करने व हमें पवित्र बनाने की कृपा कीजिए. (२१)
अस्मात्त्वमधि जातोसि त्वदयं जायतां पुनः असौ स्वर्गाय लोकाय स्वाहा.. (२२)
हे अग्नि ! आप यजमान द्वारा उपजाए जाते हैं. फिर बारबार यजमान द्वारा उपजाए जाते हैं. यह यजमान स्वर्ग के व लोक के लिए यज्ञ संपादित करते हैं. हे अग्नि ! आप के लिए स्वाहा. (२२)
॥ वेद ॥
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