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यजुर्वेद अध्याय 36 हिन्दी व्याख्या

 


॥ वेद ॥

॥ वेद ॥>॥ यजुर्वेद ॥>॥ अध्याय ३६ ॥

ऋचं वाचं प्रपद्ये मनो यजुः प्रपद्ये साम प्राणं प्रपद्ये चक्षुः श्रोत्रं प्रपद्ये.

वागोजः सहौजो मयि प्राणापानौ .. (१)

ऋग्वेद वाणी स्वरूप है. हम उसे प्राप्त करते हैं. यजुर्वेद मन स्वरूप है. हम उसे प्राप्त करते हैं. सामवेद प्राण स्वरूप है. हम उसे प्राप्त करते हैं. हम नेत्रों की सामर्थ्य को प्राप्त करते हैं. हम कानों की सामर्थ्य को प्राप्त करते हैं. वाणी, प्राण व अपान अपनी ऊर्जा सहित हम से स्थापित होने की कृपा करें. (१)

 

यन्मे छिद्रं चक्षुषो हृदयस्य मनसो वातितृण्णं बृहस्पतिर्मे तद्दधातु. 

शं नो भवतु भुवनस्य यस्पतिः.. (२)

हे बृहस्पति देव! आप हमारे चक्षुओं के दोष दूर करने की कृपा कीजिए. आप हमारे हृदय व मन के दोष दूर करने की कृपा कीजिए. आप हमारे लिए सुखों का विस्तार करने की कृपा कीजिए. आप भुवन के स्वामी हैं. आप हमारे लिए कल्याणदायी होने की कृपा कीजिए. (२)

 

भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्.. (३)

परमात्मा स्वयंभू, प्राणदायी व स्वयं प्रकाशवान हैं. वे सविता देव वरेण्य और सौभाग्यदायी हैं. हम उन का ध्यान करते हैं. वे हमारी बुद्धियों को प्रेरित करने की कृपा करें. (३)

 

कया नश्चिऽ आ भुवदूती सदावृधः सखा. कया शचिष्ठया वृता.. ( ४ )

परमात्मा उत्तम व शक्तिमान हैं. वे सदा हमारी बढ़ोतरी करने व हमारे सखा होने की कृपा करें. वे हमें सुखों से आवृत करने की कृपा करें. (४)

 

कस्त्वा सत्यो मदानां म १ हिष्ठो मत्सदन्धसः. दृढा चिदरुजे वसु.. (५)

हे इंद्र देव ! सचमुच कौन आप को मदयुक्त बनाता है. सचमुच आप क्या पीकर हर्षित होते हैं. आप यजमान को दृढ़ बनाइए. आप हमें शाश्वत धन प्रदान करने की कृपा कीजिए. ( ५ )

 

अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्. शतं भवास्यूतिभि: .. ( ६ )

हे इंद्र देव ! आप सखा की तरह हमारी रक्षा करने की कृपा कीजिए. आप धन देने की कृपा कीजिए. हम आप के सैकड़ों रक्षा साधनों से रक्षित हों. ( (६)

 

कया त्वं न ऽ ऊत्याभि प्र मन्द्र से वृषन्. 

कया स्तोतृभ्य ऽ आ भर.. (७)

हे परमात्मा! आप अपनी रक्षाओं से किस के लिए आनंद की वर्षा नहीं करते हैं ? आप अपने स्तोताओं को जो भरपूर धन प्रदान करते हैं. वह किस को आनंदित नहीं करता ? ( ७ )

 

इन्द्रो विश्वस्य राजति. 

शं नो अस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे.. (८)

इंद्र देव विश्व की शोभा हैं. वे हमारे लिए सुखदायी हैं. वे दोपायों व चौपायों

के लिए सुखदायी हैं. (८)

 

शं नो मित्रः शं वरुणः शं नो भवत्वर्यमा.

शं न इन्द्रो बृहस्पतिः शं नो विष्णुरुरुक्रमः.. (९)

मित्र देव, वरुण देव, अर्यमा देव हमारे लिए कल्याणदायी हों. इंद्र देव व बृहस्पति देव व जगत्पालक विष्णु हमारे लिए कल्याणकारी हों. (९)

 

 

शं नो वातः पवता शं नस्तपतु सूर्यः.

शं नः कनिक्रदद्देवः पर्जन्यो अभि वर्षतु .. (१०)

वायु हमारे लिए कल्याणदायी हों. वे हमें पवित्र बनाने की कृपा कीजिए. सूर्य देव हमारे लिए सुखदायी हो कर तपने की कृपा करें. गड़गड़ाहट करने वाले पर्जन्य देव हमारे लिए कल्याणदायी हो कर बरसात करें. (१०)

 

अहानि शं भवन्तु नः श १ रात्रीः प्रति धीयताम्.

शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभिः शं न ऽ इन्द्रावरुणा रातहव्या.

शं न ऽ इन्द्रापूषणा वाजसातौ शमिन्द्रासोमा सुविताय शं योः .. ( ११ )

दिन हमारे लिए कल्याणदायी हो. हम बुद्धिपूर्वक प्रार्थना करते हैं. रात्रि हमारे लिए कल्याणदायी हो. हम बुद्धिपूर्वक प्रार्थना करते हैं. इंद्र देव हमारे लिए कल्याणदायी हों. इंद्र देव हमारी रक्षा करने की कृपा करें. अग्नि हमारे लिए कल्याणदायी हों. वे हमारी रक्षा करने की कृपा करें. इंद्र देव हमारे लिए कल्याणदायी हों. वे हमारी हवि स्वीकारने की कृपा करें. वरुण देव हमारे लिए कल्याणदायी हों व हमारी हवि स्वीकारने की कृपा करें. इंद्र देव हमारे लिए कल्याणदायी हों और रोग दूर करें. पूषा देव हमारे लिए कल्याणदायी हों और रोग दूर करें. (११)

 

शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये.

योरभि स्रवन्तु नः.. (१२)

दिव्य जल हमारा कल्याण करे वह हमारे अभीष्टपूरक हो. जल हमारे पीने के लिए हो. वह हमारे लिए सुखदायी हो व हमारे लिए प्रवाहित होने की कृपा करे. (१२) 

 

स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी. 

यच्छा नः शर्म सप्रथा:.. (१३)

हे पृथ्वी देवी! आप वासयोग्य होने की कृपा करें. आप उत्तम वास प्रदान करने की कृपा करें. आप हमें इच्छित सुख प्रदान कीजिए. आप बहुत अधिक विस्तृत होने की कृपा कीजिए. ( १३ )

 

आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऽ ऊर्जे दधातन. 

महे रणाय चक्षसे.. (१४)

जल हमारे लिए कल्याणदायी हो. वह हमारे लिए ऊर्जा धारण करने की कृपा करें. वह हमें ऊर्जस्वी बनाने की कृपा करें. परमात्मा हमें देखने हेतु महती दृष्टि प्रदान करने की कृपा करें. (१४)

 

यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः. 

उशतीरिव मातर:.. (१५)

जैसे माताएं सर्वाधिक कल्याणदायी रस से बच्चों को पोसती हैं, वैसे ही आप हम सब को सर्वाधिक कल्याणदायी रस ( पोषण हेतु ) सेवन कराने की कृपा करें. (१५)

 

तस्माऽ अरं गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ. 

आपो जनयथा च नः.. (१६)

हे जल देव! हम ने क्षय को जीतने के लिए आप तक गमन किया है. आप हम सब जनों का कल्याण करने की कृपा करें. (१६)

 

द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः. 

वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ४ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः  सा मा शान्तिरेधि.. ( १७ )

स्वर्गलोक हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. अंतरिक्षलोक हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. पृथ्वीलोक हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. जल देव हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. ओषधि देव हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. वनस्पति देव हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. सब देवगण हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. परब्रह्म हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. शांति भी हमारे लिए शांतिदायी होने की कृपा करें. (१७)

 

दृते दृह मा मित्रस्य मा चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् . मित्रस्याहं चक्षुषा  सर्वाणि भूतानि समीक्षे.

मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे.. (१८)

हे परमात्मा! आप दृढ़ हैं. आप हमें दृढ़ बनाने की कृपा कीजिए. हम मित्रभाव की दृष्टि से सभी प्राणियों को देख सकें. सभी प्राणी हमें मित्र भाव से देख सकें. (१८)

 

दृते  दृ ह मा.

ज्योक्ते सन्दृशि जीव्यासं ज्योक्ते सन्दृशि जीव्यासम्.. (१९)

हे परमात्मा! आप सामर्थ्यवान हैं. आप हमें भी सामर्थ्यशाली बनाइए. आप की ज्योति से हम चिरायु हों. आप की ज्योति से हम चिरकाल तक देखें. ( १९ )

 

नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्ते अस्त्वर्चिषे.

अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः पावको अस्मभ्य ४ शिवो भव.. (२०)

हे अग्नि ! आप को नमस्कार. हम आप की अर्चना करते हैं. आप को नमस्कार है. हम आप की अर्चना करते हैं. आप की ज्वालाएं हमें पवित्र बनाएं. हमारे दुःख हरें. आप हमें पवित्र बनाएं व हमारे लिए कल्याणदायी होने की कृपा करें. (२०)

 

नमस्ते अस्तु विद्युते नमस्ते स्तनयित्नवे. 

नमस्ते भगवन्नस्तु यतः स्वः समीहसे.. (२१)

हे परमात्मा! आप को नमस्कार. बिजली की तरह चमकने वाले व गड़गड़ाने वाले परमात्मा आप को नमस्कार. हे भगवन! आप को नमस्कार. हे भगवन! आप को बारबार नमस्कार. (२१)

 

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु. 

शं नः कुरु प्रजाभ्योभयं नः पशुभ्यः.. (२२)

हे भगवन! जिसजिस से आप चाहते हैं, उसउस से हमें निर्भय बनाने की कृपा करें. आप हमारी प्रजा व पशुओं का कल्याण करने की कृपा करें. (२२)

 

सुमित्रिया न ऽ आप ऽ ओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु.

योस्मान् द्वेष्टि यं च वयं द्विष्मः.. (२३)

जल हमारे अच्छे मित्र हो जाएं. हमारे शत्रु के लिए शत्रु हो जाएं. ओषधियां हमारी अच्छी मित्र हो जाएं. हमारे शत्रु के लिए शत्रु हो जाए. जो हम से द्वेष करते हैं, उन के लिए शत्रु हो जाए, जिन से हम द्वेष करते हैं, उन के लिए शत्रु हो जाए. (२३)

 

तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्.

पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत : शृणुयाम शरदः शतं प्र ब्रवाम शरदः  शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात्.. (२४)

सूर्य जगत् के नेत्र हैं. वे हितकारक हैं. वे जगत् में सर्वत्र विचरते हैं. वे हमारे सामने प्रकट होते हैं. हम सौ शरदों तक उन की कृपा से देखें. हम सौ शरदों तक उन की कृपा से सुनें. हम सौ शरदों तक उन की कृपा से बोलें. हम सौ शरदों तक उन की कृपा से अदीन (दीनता रहित ) हों. हम सौ से भी अधिक समय तक सुखी हों. (२४)

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