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यजुर्वेद अध्याय 37 हिन्दी व्याख्या

 


॥ वेद ॥

॥ वेद ॥>॥ यजुर्वेद ॥>॥ अध्याय ३७ ॥

देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्. 

आ ददे नारिरसि.. (१)

सविता देव सभी देवताओं को पैदा करने वाले हैं. हम अश्विनी देव व पूषा देव को उन के हाथों से ग्रहण करते हैं. (१)

 

युञ्जते मन ऽ उत युञ्जते धियो विप्रा विप्रस्य बृहतो विपश्चितः.

वि होत्रा दधे वयुनाविदेक ऽ इन्मही देवस्य सवितुः परिष्टुतिः.. (२)

हम परमात्मा से मन और बुद्धि जोड़ते हैं. ब्राह्मण विशाल सर्वव्यापक परमात्मा से अपना मन जोड़ते हैं. परमात्मा सर्वविद हैं. होता उन्हें धारण करते हैं. सविता देव अभिनंदनीय हैं. उन की आराधना करते हैं. (२)

 

देवी द्यावापृथिवी मखस्य वामद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः. मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (३)

हम स्वर्गलोक की दिव्य शक्तियों को यज्ञ में आमंत्रित कर के वेदी पर प्रतिष्ठित करते हैं. हम पृथ्वी की दिव्य शक्तियों को यज्ञ में आमंत्रित कर के वेदी पर प्रतिष्ठित करते हैं. हम स्वर्गलोक और पृथ्वीलोक की दिव्य शक्तियों को पृथ्वी के इस देवयज्ञ में आराधनापूर्वक यज्ञवेदी पर स्थापित करते हैं. हम मिट्टी देवी को यज्ञ के शीर्षस्थ (उच्च) स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं. (३)

 

देव्यो वक्र्यो भूतस्य प्रथमजा मखस्य वोद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः. मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (४)

अग्नि की लपटें सब से पहले उत्पन्न हुई हैं. वे प्राणियों से भी पहले उत्पन्न हुई हैं. पृथ्वी के इस दिव्य यज्ञ में हम आप को शिरोधार्य करते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को यज्ञ के शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं. (४)

 

इयत्यग्र ऽ आसीन्मखस्य तेद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः. मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (५)

हम पृथ्वी के दिव्य यज्ञ में आप को अग्र स्थान पर बैठाते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को यज्ञ के शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं. (५)

 

इन्द्रस्यौज स्थ मखस्य वोद्य शिरो राध्यासं देवयजने पृथिव्याः.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (६)

हम पृथ्वी के इस दिव्य यज्ञ में इंद्र देव को ओज की तरह यज्ञ के शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को शीर्ष पर प्रतिष्ठित करते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को शीर्ष पर प्रतिष्ठित करते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को शीर्ष पर प्रतिष्ठित करते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को शीर्ष पर प्रतिष्ठित करते हैं. ( ६ )

 

प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता.

अच्छा वीरं नर्यं पङ्क्तिराधसं देवा यज्ञं नयन्तु नः.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (७)

ब्रह्मणस्पति देव इस दिव्य यज्ञ में पधारने की कृपा करें. सरस्वती देवी इस दिव्य यज्ञ में पधारने की कृपा करें. श्रेष्ठ वीर को प्रजानुपालक इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. (७)

 

मखस्य शिरोसि.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखस्य शिरोसि. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखस्य शिरोसि. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (८)

हे अग्नि ! आप यज्ञ के सिर हैं. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. (८)

 

अश्वस्य त्वा वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

अश्वस्य त्वा वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

अश्वस्य त्वा वृष्णः शक्ना धूपयामि देवयजने पृथिव्याः. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (९)

हे परमात्मा ! आप के लिए पृथ्वी पर किए जा रहे इस दिव्य यज्ञ में हम शक्तिशाली घोड़े को धूपायित (संस्कारमय) करते हैं. हम यज्ञ के लिए आप को यज्ञ के शीर्षस्थ स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. ( ९ )

 

ऋजवे त्वा साधवे त्वा सुक्षित्यै त्वा. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे. 

मखाय त्वा मखस्य त्वा शीर्ष्णे.. (१०)

हे सामर्थ्यशाली देव ! हम सत्य और सुरक्षा हेतु आप को साधते हैं. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. यज्ञ के लिए इस दिव्य यज्ञ में ले जाने की कृपा करें. (१०)

 

यमाय त्वा मखाय त्वा सूर्यस्य त्वा तपसे. 

देवस्त्वा सविता मध्वानक्तु पृथिव्याः स स्पृशस्पाहि. 

अर्चिरसि शोचिरसि तपोसि.. (११)

हे सामर्थ्यशाली देव ! हम यम देव के लिए आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम यज्ञ देव व सूर्य के लिए आप को प्रतिष्ठित करते हैं. हम सविता देव के लिए आप को मधुर बनाएं. आप पृथ्वी को स्पर्श करने की कृपा करें. आप पृथ्वी की रक्षा करने की कृपा करें. आप पवित्र व तपोमय हैं. हम आप की अर्चना करते हैं. (११)

 

अनाधृष्टा पुरस्तादग्नेराधिपत्य ऽ आयुर्मे दाः.

पुत्रवती दक्षिणत ऽ इन्द्रस्याधिपत्ये प्रजां मे दाः.

सुषदा पश्चाद्देवस्य सवितुराधिपत्ये चक्षुर्मे दाः.

आश्रुतिरुत्तरतो धातुराधिपत्ये रायस्पोषं मे दाः.

विधृतिरुपरिष्टाद्वृहस्पतेराधिपत्य ऽ ओजो मे दा विश्वाभ्यो मा नाष्ट्राभ्यस्पाहि 

मनोरश्वासि.. (१२)

हे पृथ्वी ! शत्रु आप को हिंसा न पहुंचाए. आप पूर्व दिशा में अग्नि का आधिपत्य स्थापित कराने की कृपा करें. आप हमें आयु प्रदान कीजिए. आप पुत्रवती हो कर दक्षिण दिशा में इंद्र देव के आधिपत्य में रहने की कृपा कीजिए. हमें भी संतान प्रदान करने की कृपा कीजिए. आप सुखदायिनी हैं. हे पृथ्वी ! आप पश्चिम दिशा में सविता देव के आधिपत्य में रहने की कृपा करें. आप हमें सम्यक् चक्षु (दृष्टि) प्रदान करने की कृपा करें. आप हमारी विनती पूरी तरह सुनने की कृपा कीजिए. हे पृथ्वी! आप उत्तर दिशा में धातु देव के आधिपत्य में रहने की कृपा कीजिए. हे पृथ्वी! आप हमें धन से पोषित करने की कृपा कीजिए. हे पृथ्वी देवी ! आप ऊपर की दिशाओं में बहुत पदार्थ धारिए. आप बृहस्पति देव के आधिपत्य में रह कर हमारे लिए बलदायिनी होइए. आप हमारे सभी शत्रुओं को नष्ट कर दीजिए. आप हमारी रक्षा कीजिए. आप हमारे मन का अश्व हैं. (१२)

 

स्वाहा मरुद्भिः परि श्रीयस्व दिवः स स्पृशस्पाहि. मधु मधु मधु.. (१३)

मरुद्गणों के लिए स्वाहा. स्वर्गलोक को यह हवि चारों ओर से स्पर्श करे. यह हवि हमारी रक्षा करने की कृपा करे. मधुरता की स्थापना हो. (१३)

 

गर्भो देवानां पिता मतीनां पतिः प्रजानाम्. 

सं देवो देवेन सवित्रा गत स सूर्येण रोचते.. (१४)

परमात्मा देवताओं के गर्भ, बुद्धियों के पिता और प्रजाओं के पालक हैं. परमात्मा देवों के देव सविता देव संसार को प्रेरित करते हैं. सूर्य सर्वत्र प्रकाशित करते हैं. (१४)

 

समग्निरग्निना गत सं दैवेन सवित्रा स सूर्येणारोचिष्ट. 

स्वाहा समग्निस्तपसा गत सं दैव्येन सवित्रा स सूर्येणारूरुचत.. (१५)

परमात्मा अग्नि के साथ सविता देव से एकमेक हो कर सूर्यरूप में प्रकाशित होते हैं. अग्नि के साथ सूर्य के लिए स्वाहा. सविता देव सूर्यरूप में शोभित होते हैं. (१५)

 

धर्ता दिवो वि भाति तपसस्पृथिव्यां धर्ता देवो देवानाममर्त्यस्तपोजाः. 

वाचमस्मे नि यच्छ देवायुवम्.. (१६)

परमात्मा स्वर्गलोक के धारक हैं. वे अपने तेज से पृथ्वी पर विभूषित होते हैं. वे पृथ्वी पर देवों के धारक व अपने दिव्य तप और ओज से संपन्न हैं. वे हमें दिव्य वाणी और आयु प्रदान करने की कृपा करें. (१६)

 

 

अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश्चरन्तम्. 

स सध्रीचीः स विषूचीर्वसान ऽ आ वरीवर्ति भुवनेष्वन्तः.. (१७)

हम सूर्य देव को गोपथ पर आतेजाते हुए देखते हैं. सूर्य देव सर्वरक्षक, सर्वश्रेष्ठ व अविनाशी हैं. सूर्य देव देवताओं के पथ से आनेजाने वाले हैं. वह सूर्य देव सभी लोकों के द्रष्टा हैं. (१७)

 

विश्वासां भुवां पते विश्वस्य मनसस्पते विश्वस्य वचसस्पते सर्वस्य वचसस्पते. 

देवश्रुत्वं देव घर्म देवो देवान् पाह्यत्र प्रावीरनु वां देववीतये.

मधु माध्वीभ्यां मधु माधूचीभ्याम्.. (१८)

परमात्मा सभी भुवनों के पति हैं. विश्व के मन के स्वामी हैं. वे विश्व की वाणियों के स्वामी हैं. वे सभी की वाणियों के पालक हैं और देवताओं में विश्रुत (प्रसिद्ध) हैं. देवों के देव हैं. धर्म मार्ग पर चलने वालों के रक्षक हैं. देवत्व चाहने वालों को संरक्षण प्रदान करते हैं. (१८)

 

हृदे त्वा मनसे त्वा दिवे त्वा सूर्याय त्वा. ऊर्ध्वा अध्वरं दिवि देवेषु धेहि.. (१९)

हे परमात्मा ! आप हमारे हृदय व मन में हैं. आप स्वर्गलोक में हैं. हे सूर्य ! हम आप के लिए उपासना करते हैं. आप हमारे यज्ञ को ऊंचाइयों तक ले जाइए. आप इसे देवताओं हेतु दिव्यलोक तक पहुंचाइए. (१९)

 

पिता नोसि पिता नो बोधि नमस्ते अस्तु मा मा हि सीः. 

त्वष्ट्रमन्तस्त्वा सपेम पुत्रान्पशून्मयि धेहि प्रजामस्मासु 

धेह्यारिष्टाह सह पत्या भूयासम्.. (२०)

हे परमात्मा ! आप हमारे पिता हैं. आप पिता की तरह हमें बोधित (जाग्रत ) करते हैं. हमारा आप को नमस्कार. आप किसी भी प्रकार की हिंसा मत कीजिए. आप किसी भी प्रकार की हिंसा मत कीजिए. आप हमारे लिए पुत्र धारिए. आप हमारी रक्षा कीजिए. आप हमारे लिए संतान धारण करें. आप हमारी रक्षा कीजिए. हम इष्ट वचनों से आप की स्तुति करते हैं. हम पालक सहित बारबार आप की उपासना करते हैं. (२०)

 

अहः केतुना जुषता सुज्योतिर्थ्योतिषा स्वाहा. 

रात्रिः केतुना जुषता सुज्योतिर्थ्योतिषा स्वाहा.. (२१)

आप कर्मयुक्त, इष्ट साधक व सुप्रकाशवान हैं. आप की ज्योति सहित आप के लिए स्वाहा. आप रात में भी कर्मयुक्त हैं. आप इष्ट साधक हैं. आप सुप्रकाशवान हैं. आप की ज्योति सहित आप के लिए स्वाहा. (२१)

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