॥ अथ सुभाषितसंग्रहः ॥
सरस्वतीदृषद्वत्योर्देवनद्योर्यदन्तरम् ।
तं देवनिर्मितं देशं, ब्रह्मावर्त्त प्रचक्षते ।।
आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात् ।
तयोरेवान्तरं गिर्योरार्यावर्त्त विदुर्बुधाः ।। (मनुस्मृतिः -२.१७,२२)
सरस्वती (सिन्धु) और दृषद्वती (ब्रह्मपुत्रा) इन दो देवनदियों के मध्य में तथा पूर्वसमुद्र (बंगाल की खाड़ी) और पश्चिम समुद्र (अरब सागर) के मध्य में और हिमालय पर्वत-श्रृंखला और विन्ध्याचल पर्वतमाला के विस्तार-पर्यन्त जो देश बसा हुआ है, उसे देवों के द्वारा बसाया हुआ होने से 'देवभूमि'; ब्रह्म (वेद) का देश (आवर्त) होने से 'ब्रह्मावर्त'; आर्यों का देश होने से 'आर्यावर्त्त' और भरतवंशियों से शासित होने के कारण 'भारतवर्ष' कहते हैं ।
अत्र ते कीर्त्तयिष्यामि, वर्ष भारत भारतम् ।
प्रियमिन्द्रस्य देवस्य, मनोवैवस्वतस्य च ।।
पृथोस्तु राजन् वैन्यस्य, तथेक्ष्वाकोर्महात्मनः ।
ययातेरम्बरीषस्य, मान्धातुर्नहुषस्य च ।।
तथैव मुचुकुन्दस्य, शिबेरौशीनरस्य च ।
ऋषभस्य तथैलस्य, नृगस्य नृपतेस्तथा ।।
कुशिकस्य च दुर्धर्ष ! गाधेश्चैव महात्मनः ।
सोमकस्य च दुर्धर्ष, दिलीपस्य तथैव च ।।
अन्येषां च महाराज ! क्षत्रियाणां बलीयसाम् ।
सर्वेषामेव राजेन्द्र, प्रियं भारत भारतम् ।। (महाभा.भी. ९.५-९)
हे भरतवंशी, राजाओं में श्रेष्ठ, तीव्र तेजवाले धृतराष्ट्र ! मैं तुम्हारे समक्ष भारतवर्ष का वर्णन करूंगा जो कि-देवश्रेष्ठ इन्द्र, वैवस्वत मनु, वैन्य पृथु, महात्मा इक्ष्वाकु, ययाति, अम्बरीष, मान्धाता, नहुष, मुचुकुन्द, औशीनर शिबि, ऐल, ऋषभ, नृग, कुशिक, गाधि, सोमक, दिलीप इन महाराजाओं का और अन्य अनेक सभी बलशाली क्षत्रियों का सदा प्रिय रहा है ।
॥ अथ सुभाषितसंग्रहः ॥
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