॥ अथ सुभाषितसंग्रहः ॥
अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेऽन्नं, निरम्बुपानाच्च स एव दोषः ।
तस्मान्नरो वह्नि-विवर्धनाय, मुहुर्मुहुर्वारि पिबेदभूरि ।।
अति जल पीने से अन्न नहीं पचता है और जल सर्वथा न पीने से भी वही दोष होता है । अतः मनुष्य जठराग्नि के उद्दीपन के लिये बार-बार किन्तु अल्पमात्रा में जल पीने (जिससे अन्न का सम्यक् परिपाक हो) ।
भुक्तादौ सलिलं पीतं, कार्श्वमन्दाग्निदोषकृत् ।
मध्येऽग्निदीपनं श्रेष्ठमन्ते स्थौल्यकफप्रदम् ।। (क्षेमकुतूहलम् - ३.३१,३२)
भोजन के आरम्भ में जल पीना दुर्बलता और मन्दाग्नि कारक है । भोजन के मध्य में जल पीना जठराग्नि-दीपक होने से उत्तम है और भोजन के अन्त में जल पीना मोटापा और कफ को बढ़ाने वाला है ।
॥ अथ सुभाषितसंग्रहः ॥
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